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27 अप्रैल 2011
लोकल ब्रोकरेज फर्मों की बड़ी हेराफेरी?
मुंबई : माना जा रहा है कि लोकल ब्रोकरेज फर्मों ने विदेशी निवेशकों को बिजनेस प्रोसेस आउटसोसर्सिंग(बीपीओ) सेवाएं देने की आड़ में विदेशी कमोडिटी एक्सचेंजों में करोड़ों के सौदे किए हैं। हाल में सोने और चांदी की कीमतों में तेजी आई है। भारतीय और विदेशी फ्यूचर्स मार्केट में इनकी कीमतों में अंतर का फायदा उठाने के लिए ये सौदे किए गए हैं। ब्रोकरों ने ये सौदे अपने खाते (प्रॉपराइटरी एकाउंट) से किए हैं। इस तरह के सौदों को आर्बिट्राज ट्रांजैक्शन कहा जाता है। भारतीय नियमों के मुताबिक, कमोडिटी ब्रोकर विदेशी एक्सचेंजों में ट्रेडिंग नहीं कर सकते। वे न तो विदेशी एक्सचेंजों द्वारा बेचे जाने वाले टर्मिनल और न ही इंटरनेट एकाउंट्स से ऐसे सौदे कर सकते हैं। एक सूत्र ने बताया, 'स्थानीय ब्रोकर सोने-चांदी की कीमतों में हालिया तेजी से मुनाफे का मौका नहीं चूकना चाहते थे। ऐसे कम से 10-15 ब्रोकर हो सकते हैं, जिन्होंने इस तरह के सौदे किए हैं। इन लोगों ने भारत में सिल्वर फ्यूचर्स बेचे और कीमतों में अंतर का फायदा उठाने के लिए विदेश में सिल्वर फ्यूचर्स खरीदे।' कमोडिटी बाजार नियामक फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) ने हाल में ऐसे सौदों पर अंकुश लगाने की कोशिश की है। उसने कुछ बड़े ब्रोकरेज फर्मों को ऐसे सौदों की इजाजत नहीं दी। एफएमसी ने 28 मार्च को जारी सर्कुलर में लोकल एक्सचेंजों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि उनका कोई सदस्य (ब्रोकर) विदेशी एक्सचेंजों में ट्रेडिंग करने वाले विदेशी निवेशकों को बीपीओ या नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग सर्विसेज (केपीओ) न दे। एफएमसी के चेयरमैन बी सी खटुआ ने कहा, 'मार्केट इंटेग्रिटी बनाए रखने के लिए ऐसा किया गया है।' ईटी से बातचीत में उन्होंने कहा, 'विदेशी निवेशकों को इस तरह की केपीओ/बीपीओ सेवाएं देने वाली किसी फर्म और भारतीय कमोडिटी एक्सचेंजों के बीच किसी तरह का संबंध नहीं होना चाहिए।' खटुआ ने यह भी संकेत दिया कि कोई मार्केट इंटरमीडियरी इस तरह के सौदे में शामिल है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए औचक जांच की जा सकती है। उन्होंने कहा कि उन्हें अभी इस तरह के सौदों की जानकारी नहीं है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि बगैर संदेह के सर्कुलर जारी करना असामान्य है। भारतीय ब्रोकर्स अपनी चतुराई के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने आर्बिट्राज सौदे के लिए एक अनोखा तरीका निकाला। उन्होंने भारत में सिल्वर फ्यूचर्स बेचा और कॉमेक्स में सिल्वर फ्यूचर्स खरीदा। कॉमेक्स न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज की डिवीजन है। मुंबई में बैठा आबिर्ट्राज ट्रेडर जो ऑर्डर पंच करता है, उसे दुबई (उदाहरण के लिए) में किसी विदेशी ग्राहक (बीपीओ) के लिए किए गए सौदे के रूप में दिखाया जाता है। इस व्यवस्था में दुबई स्थित इकाई किसी सहयोगी या रिश्तेदार या ब्रोकरेज फर्म के प्रमोटरों की सब्सिडियरी हो सकती है। दुबई स्थित इकाई विदेशी सौदे के लिए माजिर्न का भुगतान करती है। इस तरह के सौदों के तरीके की जानकारी रखने वाले एक चार्टर्ड एकाउंटेंट के मुताबिक, विदेशी इकाई और भारतीय ब्रोकर के खातों का समय-समय पर निपटान किया जाता है। अंतिम चरण का ट्रांजैक्शन खासकर तब जब दांव गलत पड़ गया हो और विदेशी एक्सचेंज के साथ मार्क-टू-मार्केट नुकसान का निपटान करना हो तो उसकी रकम हवाला के रास्ते भेजी जाती है। ब्रोकरों का कहना है कि सर्कुलर जारी होने के बाद इस तरह के सौदों में थोड़ी कमी आई है, लेकिन इन्हें फिर से शुरू होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। एक ब्रोकर ने बताया कि इस तरह की ट्रेडिंग के लिए दूर स्थित कोई जगह चुनी जा सकती है, जहां एफएमसी द्वारा ऑडिट किए जाने की संभावना नाममात्र की हो। ट्रेडरों के मुताबिक, कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग के शुरुआती दिनों में इस तरह के सौदे खूब होते थे। तब कई अमीर रीटेल निवेशक विदेशी एक्सचेंजों में पोजीशन लेते थे। ब्रोकर्स खुलकर ऐसी सेवाएं देते थे और विदेश में मौजूदगी वाले कुछ ब्रोकर तो बड़े बैंकों से क्रेडिट लाइन (कर्ज की मंजूरी) का फायदा उठाते हुए अपने विदेशी कार्यालयों के जरिए ट्रांजैक्शन को अंजाम देते थे। ये बैंक उनके लिए फंड ट्रांसफर की सुविधा भी देते थे। लेकिन, रिजर्व बैंक (आरबीआई) के निर्देश के बाद एफएमसी द्वारा कुछ खास तरह के प्रतिबंध लगा दिए जाने से इस तरह के सौदों का वॉल्यूम घट गया। आरबीआई ने अपने निर्देश में कहा था कि डेरिवेटिव जिसके तहत निवेशक को कुछ रकम का भुगतान कर पोजीशन लेने का मौका मिलता है, उसे अंडरलायर के बगैर नहीं किया जा सकता। (ET Hindi)
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