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05 मार्च 2011
सोना-चांदी में निवेश करना क्यों है बेहतर?
पिछले 10 सालों में सोने में 400 फीसदी और चांदी में 480 फीसदी उछाल के बाद बहुमूल्य धातुओं की कीमतों में हम थोड़ा ठहराव देख रहे हैं। सभी एसेट वर्ग की कीमतों में उछाल तरलता बढ़ने के चलते पैदा हुई रैली का हिस्सा थी और अमेरिका में कर्ज संकट के बाद इसमें तेजी आई। यूरोपीय सरकारी कर्ज संकट के बाद सुरक्षित निवेश विकल्प की वजह से बहुमूल्य धातुओं में निवेश बढ़ने लगा और इससे कीमतों में जबरदस्त उछाल आया। अब कीमतें थोड़ी ठहरी हुई दिख ही हैं। कम ब्याज दरों, अधिक तरलता (प्रोत्साहन पैकेज सहित अन्य कारण), अर्थव्यवस्था में अस्थिरता और दूसरे एसेट वर्ग में निवेशकों का भरोसा कायम नहीं रहने से शुरुआत में सोने में तेज उछाल देखने को मिला और सोने की तुलना में सस्ती होने की वजह से चांदी में उछाल तुलनात्मक रूप से अधिक रहा। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार होने और जोखिम लेने का हौसला बढ़ने के कारण निवेशकों ने सर्राफा में मुनाफावसूली की राह पकड़ी। हालांकि, व्यापक तौर पर अस्थिरता बने रहने और बेरोजगारी की दर भी ऊंचे स्तरों पर होने के कारण विकसित देशों को नरम मौद्रिक नीति अपनाने और अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ाने के उपाय करने पर मजबूर होना पड़ा है। इन कारणों से निवेशक अधिक रिटर्न हासिल करने के लिए दूसरे एसेट वर्ग पर दांव लगा रहे हैं। अमेरिकी रिकवरी को लेकर उम्मीदें बरकरार हैं, लेकिन यूरोप में ढांचागत मुद्दे अभी तक नहीं सुलझे हैं और इससे वैश्विक स्तर पर जोखिम झेलने की स्थिति कमजोर बनी हुई है। इसलिए निवेशक अभी भी इन दोनों धातुओं को लेकर उत्साहित हैं। ईटीएफ में निवेश बढ़ रहा है और यह अब तक के सबसे उच्च स्तर के करीब है। इससे साफ है कि इन धातुओं में लंबी अवधि का निवेश लगातार आ रहा है। हालांकि, इस रैली के लिए कुछ चुनौतियां भी मौजूद हैं। अमेरिका में तेज और बेहतर रिकवरी से निवेशक फिर शेयर बाजार की ओर रुख कर सकते हैं। बहुमूल्य धातुओं में ज्यादा मजबूती और ईटीएफ का लॉन्च होना भी अपने आप में चुनौती है। निवेशक ईटीएफ से बाहर निकल सकते हैं और इससे नीचे जाने का दबाव बढ़ सकता है। फिर, अधिक कीमतों से स्क्रैप की बिक्री बढ़ जाती है और आपूर्ति की तरफ से भी दबाव बढ़ जाता है। भारत और चीन की तरफ से आ रही भौतिक मांग से इन धातुओं को सपोर्ट कमजोर पड़ेगा। जीएफएमएस के मुताबिक, वैश्विक खदानों से सोने की आपूर्ति ने 2010 में 2,652 टन का रिकॉर्ड स्तर छू लिया था और इसमें आगे भी बढ़ोतरी होने की संभावना बरकरार है। दूसरी तरफ, स्क्रैप की बिक्री में एक फीसदी की मामूली कमजोरी दिखाई पड़ रही है। हालांकि, खदान से बाहर सोने का भंडार 1.70 लाख टन के अनुमानित स्तर तक पहुंच जाने के बाद भी कीमतों पर बहुत प्रभाव नहीं पड़ेगा चांदी की खदानों से आपूर्ति 3 फीसदी बढ़ने का अनुमान है। वहीं, स्क्रैप की बिक्री से आपूर्ति में भी 11 फीसदी बढ़ोतरी होने का अनुमान है। इससे 2011 में चांदी की कुल आपूर्ति 5 फीसदी बढ़ जाएगी। दूसरी तरफ, फैब्रिकेशन के लिए चांदी की मांग में 10 फीसदी उछाल आने का अनुमान है। 2010 में चांदी की औद्योगिक मांग में 18 फीसदी का उछाल देखने को मिला था, जो 2011 में गिरकर 4 फीसदी पर आ सकती है क्योंकि अधिक कीमतों की वजह से मैन्युफैक्चरर्स दूसरे सस्ते विकल्पों की तलाश करेंगे। हालांकि, सोलर पैनल और सिक्के बनाने वालों की तरफ से मांग मजबूत बनी रहेगी। चांदी का बाजार छोटा है और इससे कीमतों में तेज उछाल से अस्थिरता बढ़ जाती है। साल 2010 में चांदी का बाजार 19 अरब डॉलर का था, जबकि सोने का बाजार 170 अरब डॉलर का था। इसलिए इस कमोडिटी से बेहतर रिटर्न हासिल करने के लिए सही समय की पहचान करना सबसे बड़ी चुनौती है। गौरतलब है कि पोर्टफोलियो को सोना ज्यादा स्थायित्व दे सकता है। सवाल उठता है कि क्या बहुमूल्य धातुओं में तेजी आगे भी बरकरार रहेगी। लंबी अवधि के निवेशकों को कीमतों को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए। हालांकि, कीमती धातुओं में निवेश का तात्पर्य पोर्टफोलियो की विविधता बढ़ाने और पोर्टफोलियो में अस्थिरता घटाने से ज्यादा होता है, जिसमें रिटर्न अधिक से अधिक करने का लक्ष्य भी छिपा होता है। (Navbharat times)
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