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21 जुलाई 2009
मानसून ने बदला फसलों का पैटर्न
नई दिल्ली. दक्षिण पश्चिम मानसून का चालू सीजन जिस तरह से आगे बढ़ रहा है उसके साथ-साथ सरकार और किसान दोनों की चिंता बढ़ती जा रही है। लेकिन उपभोक्ताओं पर इसका असली असर अक्टूबर के बाद देखने को मिलेगा, क्योंकि तब तक अधिकांश खरीफ फसलें बाजार में आने लगेंगी और सरकार उत्पादन के पहले आरंभिक अनुमान भी जारी कर चुकी होगी। भारत में उत्पादन में गिरावट की आशंका का असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी साफ दिखने लगा है। सोमवार को विश्व के बड़े कमोडिटी एक्सचेंजों में चीनी, मक्का, सोयाबीन, चावल, गेहूं और कॉफी के अक्टूबर से दिसंबर की डिलीवरी वाले वायदा सौदों में तेजी रही। अधिकांश फसलों का बुवाई क्षेत्रफल पिछले साल से पीछे तो चल ही रहा है, फसलों का पैटर्न भी बदल रहा है। इस स्थिति में खरीफ सीजन की सबसे अहम फसल धान के उत्पादन में 20 फीसदी तक गिरावट की आशंका जताई जा रही है। कम बारिश के चलते धान की जगह किसान दालों को तरजीह दे रहे हैं। हालांकि दालों और तिलहन के क्षेत्रफल में गिरावट का स्तर कम है लेकिन बारिश में कमी का सीधा असर इनकी उत्पादकता पर भी पड़ेगा। मोटे अनाजों के उत्पादन में भी गिरावट की आशंका है।देश के खाद्यान्न उत्पादन में सबसे अहम हिस्सा उत्तर-पश्चिम भारत का होता है। लेकिन चालू सीजन में दक्षिण-पश्चिम मानसून यहां अभी तक औसत से 44 फीसदी कम रहा है। इस कमी ने फसलों के पैटर्न में बदलाव के लिए किसानों को मजबूर कर दिया है। वर्ष 2003 के बाद पहली बार इस तरह का संकट आया है, जिसके चलते घरेलू बाजार में ही नहीं वैश्विक बाजार में भी खाद्यान्न, खाद्य तेलों और दालों की कीमतें सीधे प्रभावित होंगी।इन कृषि जिन्सों के साथ ही चीनी की कीमतों में भी मजबूती का रुख देखने को मिलेगा। सोमवार को शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड में मक्का दिसंबर वायदा के भाव 1.5 सेंट यानी आधा फीसदी बढ़कर 3.33 डॉलर प्रति बुशल पर पहुंच गया। सोयाबीन नवंबर वायदा 9.5 सेंट यानी एक फीसदी मजबूती के साथ 9.33 सेंट प्रति बुशल पर रहा। न्यूयार्क के आईसीई फ्यूचर में रॉ शुगर अक्टूबर वायदा 0.31 सेंट (1.8 फीसदी) बढ़कर 17.61 सेंट प्रति पाउंड हो गया। चीनी के भाव में और तेजी की संभावना व्यक्त की जा रही है।ताजा आंकड़ों के मुताबिक एक जून से 16 जुलाई के बीच देश भर में मानसून सामान्य से 24 फीसदी कम बना हुआ है। पश्चिमोत्तर भारत में यह सामान्य से 44 फीसदी और पूवरेत्तर में सामान्य से 40 फीसदी कम है। यानी यह दोनों हिस्से इस साल मानसून की बेरुखी से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। इसका नतीजा साफ दिख रहा है। धान का क्षेत्रफल पिछले साल से करीब 31 लाख हेक्टेयर कम है तो मोटे अनाजों का क्षेत्रफल 15 लाख हेक्टेयर कम बना हुआ है। यही नहीं चालू सीजन में अधिक कीमत के बावजूद गन्ने का क्षेत्रफल पिछले साल से कम, 42.50 लाख हेक्टेयर पर है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि उत्तर भारत में मानसून की बेरुखी से धान के उत्पादन में कमी आने की आशंका है। हालांकि पूसा-1121 का रकबा बढ़ने से अक्टूबर-नवंबर में अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती की कीमतों में तो कमी आ सकती है, लेकिन अगर सरकार ने गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगी रोक नहीं हटाई तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैर बासमती चावल की कीमतों में तेजी बन सकती है। दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन (डिवोटा) के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि खाद्य तेलों के आयात में तो भारी इजाफा हुआ है लेकिन मानसून की देरी के चलते घरेलू बाजार में पिछले एक सप्ताह में खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी दर्ज की गई। जल्दी ही पूरे देश में मानसून सक्रिय नहीं हुआ तो खाद्य तेलों की कीमतें और बढ़ सकती हैं। दलहन आयातक संघ के अध्यक्ष के.सी. भरतिया ने बताया कि मानसून कमजोर रहने से गत सप्ताह दालों की कीमतों में रिकार्ड तेजी देखी गई थी। घरेलू बाजार में दालों का स्टॉक तो कम है ही, आयातित दालें महंगी होने से भी इसकी तेजी को बल मिला है। (Business Bhaskar)
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