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15 जून 2009
महंगी हो गई चीनी
मुंबई- हाल के दिनों में चीनी की कीमतों में दर्ज की गई तेजी की क्या वजहें रहीं? इसका एक ठोस उत्तर तो यही है कि चुनावों के वक्त देसी शराब की मांग बढ़ गई थी और उसके लिए कच्चा माल यानी गुड़ तैयार करने वाली इकाइयों ने बड़े पैमाने पर गन्ने की खपत शुरू कर दी थी। पिछले कुछ वक्त से चीनी की कीमतों में चल रही बेतहाशा तेजी की वजह से सरकार को चीनी के वायदा कारोबार पर रोक लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। एक सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'ऐसा देखा गया है कि चुनाव वाले सालों में गन्ने से गुड़ बनाने वाली इकाइयों में होने वाली सप्लाई में इजाफा होता है। गन्ने की कीमतें ऊंची होने पर भी गुड़ इकाइयां ज्यादा खरीद कर पाती हैं क्योंकि इनमें चीनी मिलों के मुकाबले खर्च काफी कम होता है। देसी शराब बनाने वाली कंपनियां राजनीतिक दलों की ओर से बढ़ती मांग के चलते गुड़ की ज्यादा खरीद करती हैं। यह शराब वोटरों को रिझाने के लिए मुफ्त में बांटी जाती है। इससे चीनी के लिए पेरे जाने वाले गन्ने की बाजार में उपलब्धता कम हो जाती है।' कम बुआई क्षेत्र के अलावा गुड़ और खांडसारी (बिना रिफाइंड चीनी) इकाइयों को चीनी की बढ़ती कीमतों के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। खुदरा बाजार में चीनी इस वक्त 27 रुपए प्रति किलो पर चल रही है, जो पिछले साल के इसी वक्त के मुकाबले 60 फीसदी ज्यादा है। उत्पादन में 44 फीसदी गिरावट के साथ इस सीजन में (अक्टूबर से सितंबर) देश में चीनी उत्पादन के 1.47 करोड़ टन पर रहने का अनुमान है। पिछले महीने के अंत में कमोडिटी बाजार नियामक फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) ने चीनी के नए कॉन्ट्रैक्ट पर दिसंबर तक रोक लगा दी। साथ ही एफएमसी ने चीनी पर कारोबारियों और सट्टेबाजों के नई पोजीशन लेने पर भी रोक लगा दी है। एनसीडीईएक्स और एमसीएक्स पर चीनी का कारोबार प्रमुखता से होता है। अपने दावे के समर्थन में अधिकारी ने इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) और कृषि मंत्रालय के आंकड़ों को रखा। आईएसएमए के मुताबिक पिछले छह महीने में चीनी का रिकवरी रेट करीब 10.3 के औसत पर रहा है। साल 2002-03 से साल 2008-09 के लिए गन्ना उत्पादन के आंकड़े दिखा रहे हैं कि गुड़ इकाइयां गैर चुनावी सालों में 20.5 फीसदी से 31 फीसदी के आसपास गन्ने की खपत करती हैं लेकिन साल 2003-04 में इन इकाइयों ने 40 फीसदी गन्ने की खपत की (अप्रैल 2004 में लोकसभा चुनाव थे) और इसी तरह साल 2008-09 में दोबारा चुनावों के वक्त इन इकाइयों ने जबरदस्त तौर पर 49 फीसदी गन्ने की खपत की। बहरहाल गुड़ के बड़े निर्माता और चैंबर ऑफ कॉमर्स, हापुड़ के चेयरमैन विजेंदर कुमार ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि गुड़ की बढ़ी मात्रा शराब बनाने वाली इकाइयों को गई है। चीनी उद्योग के एक विश्लेषक के मुताबिक गन्ने के गुड़ इकाइयों में जाने की वजह यह है कि ये इकाइयां चीनी इकाइयों के मुकाबले किसानों को जल्दी भुगतान कर देती हैं। (ET Hindi)
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