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01 जून 2009
आधे-अधूरे फैसले से हल नहीं होगा चीनी संकट
मौजूदा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने पी.वी. नरसिंह राव सरकार में वित्त मंत्री के रूप में 1991 में देश में सुधारों की जो बयार शुरू की थी, उससे केवल एक उद्योग ही अछूता रह गया है और वह चीनी उद्योग। नई औद्योगिक नीति के जरिये 1991 में उद्योगों को नियंत्रण मुक्त करने का सिलसिला शुरू हुआ और उससे अधिकांश उद्योग खुली हवा में सांस लेने लगे। लेकिन चीनी उद्योग और गन्ना किसानों के मामले में ऐसा नहीं हुआ। इन दोनों के लिए अभी भी सरकारी हस्तक्षेप और नियंत्रण हर कदम पर मौजूद है। तर्कसंगत और दीर्घकालिक नीति के अभाव में सरकार जब तात्कालिक फैसले लेती है तो उनका नतीजा चीनी की कीमतों में भारी तेजी के रूप में सामने आता है। या फिर चीनी की कीमतों में भारी गिरावट के चलते किसानों को गन्ने की कम कीमत और भुगतान के साल भर और कई बार उससे भी अधिक समय तक लटकने की नौबत आती है। इसी के चलते चालू पेराई सीजन (2008-09) में चीनी उत्पादन में भारी गिरावट आई है। जिसके चलते पिछले करीब साल भर से सरकार चीनी की कीमतों को नियंत्रित करने में लगी हुई है।इस मोर्चे पर लिया गया ताजा फैसला 26 मई को चीनी के वायदा कारोबार पर रोक लगाने का रहा। हालांकि चीनी में वायदा कारोबार को लेकर इसकी शुरूआत से ही सवाल उठते रहे हैं। अभी भी इसके वायदा में भारी उतार-चढ़ाव के चलते ही रोक लगाने का फैसला लिया गया। हालांकि यह भी दिलचस्प पहलू है कि वायदा पर रोक उस समय लगाई गई जब चीनी की कीमतें गिर रही थी। 16 मई से लेकर 25 मई तक वायदा में चीनी की कीमतों में लगातार गिरावट दर्ज की गई। इस दौरान जुलाई के सौदों में एम-30 ग्रेड की चीनी के दाम 2514 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर 2311 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गए। जबकि अगस्त के सौदे 2569 से घटकर 2461 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गए।जून के सौदों में भी यह कमी आई। इस फैसले पर यह सवाल यह खड़ा होता है कि कारोबारियों को अहसास हो गया था कि चीनी वायदा पर रोक लगने वाली है। इसीलिए वहां लगातार बिकवाली का दबाव था। दूसरे अब इस कीमत पर चीनी खरीदारी करने के चलते उद्योग को एक बड़ी मात्रा के लिए खरीदार मिलेंगे जो उसके लिए बेहतर दाम बनाए रखने में मददगार साबित होगा। इसके पहले सरकार ने चीनी का अतिरिक्त कोटा जारी कर कीमतों को काबू रखने की कोशिश की। वहीं चीनी के स्टाकिस्टों के लिए लिमिट तय की गई और चीनी मिलों के लिए खुले बाजार के कोटे की बिक्री के नियमों को सख्त किया गया। इन कदमों का कुछ परिणाम भी आया। खुदरा में 30 रुपये प्रति किलो के करीब पहुंच चुकी चीनी की खुदरा कीमत 27 रुपये प्रति किलो के आसपास चल रही है। लेकिन सरकार की चिंता तीन माह बाद शुरू होने वाले त्यौहारी सीजन को लेकर ज्यादा है। हालांकि इसके लिए करीब 25 लाख टन रॉ शुगर (गैर-रिफाइंड) चीनी के लिए हो चुके आयात सौदों से हालात सुधरने की काफी उम्मीद है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक यह चीनी अगले दो माह तक आ जाएगी। इसके साथ ही अब उपभोक्ता भी करीब 25 रुपये किलो की चीनी की कीमत को स्वीकार कर चुका है। ऐसे में आयातित चीनी के बाजार में पहुंचने पर उद्योग कुछ मुनाफा कमाने की स्थिति में होगा। इसके अलावा कुछ सरकारी कंपनियों ने करीब दो लाख टन चीनी के आयात सौदे किए हैं। लेकिन इसके लिए अभी भी बहुत अधिक कमाई की गुंजाइश नहीं है। ऐसे में रिफाइंड चीनी (व्हाइट शुगर) के अधिक आयात की गुंजाइश नहीं है। इस बीच सरकार को कुछ समझ आ रहा है कि इस समस्या का असली हल किसानों को गन्ने के बेहतर दाम में ही छिपा है। इसलिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व चेयरमैन डॉ. टी. हक द्वारा करीब डेढ़ साल पहले गन्ने के न्यूनतम वैधानिक मूल्य (एसएमपी) को 125 रुपये प्रति क्विंटल करने की सप्लीमेंटरी रिपोर्ट पर फैसला लेने की प्रक्रिया चल रही है। इस पर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की टिप्पणी के बाद इसे प्रस्ताव का रूप दिया जा रहा है। कृषि मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी के मुताबिक सरकार आगामी पेराई सीजन के लिए 107 रुपये प्रति क्विंटल का एसएमपी निर्धारित करने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।लेकिन इसके लिए गन्ने में चीनी के रिकवरी के न्यूनतम स्तर को मौजूदा नौ फीसदी से बढ़ाकर 9.5 फीसदी करने का भी प्रस्ताव है। यानी इससे अधिक रिकवरी के बाद ही किसानों को एसएमपी के ऊपर प्रीमियम मिलेगा। हो सकता है कि इन कदमों से आने वाले सीजन में चीनी के उत्पादन में कुछ बढ़ोतरी देखने को मिले। लेकिन पिछले करीब तीन साल की अनिश्चितता के बाद किसानों ने इस साल भी गन्ना क्षेत्रफल में कोई भारी बढ़ोतरी नहीं की है। इसलिए इस बार समस्या को हल होने में दो साल का समय लगेगा। इसलिए जरूरी है कि जल्दी ही ऐसी नीति पर काम शुरू किया जाए जो इस क्षेत्र पर नियंत्रण को कम करने के साथ ही किसानों और चीनी उद्योग के बीच संतुलन कायम कर सके। उसके बाद ही उपभोक्ता के हित भी सुरक्षित रह सकेंगे। (Buisness Bhaskar)
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