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22 जून 2009
चीन का आयात धीमा पड़ने से कॉपर में गिरावट संभव
चीन में कॉपर का आयात घटने के संकेत मिलने से इसकी तेजी का दौर थम गया है। इससे अगले दो महीनों के दौरान भाव में दस फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। इस वजह से पिछले सप्ताह लंदन मेटल एक्सचेंज में जुलाई डिलीवरी वायदा सौदों में कॉपर के भाव लगभग 5.4 फीसदी घटकर बंद हुए। एमसीएक्स में भी जून वायदा कॉपर के भाव एक फीसदी से ज्यादा घटकर सप्ताहांत में 238.95 रुपये प्रति किलो रह गया। मुंबई में हाजिर कारोबार में चार फीसदी से ज्यादा की गिरावट से कॉपर 239 रुपये प्रति किलो रह गया। कॉपर के भावों में शुरू हुआ नरमी का यह दौर फिलहाल कुछ समय और जारी रहने की संभावना है।उल्लेखनीय है कि इस साल चीन की खरीद बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉपर के भाव बढ़कर लगभग दुगुने हो गए हैं। इस वजह से मुंबई के हाजिर बाजार में जनवरी में 156 रुपये किलो बिकने वाला कॉपर बीस जून तक साढ़े पांच महीने की अवधि में लगभग 55 फीसदी महंगा होकर 239 रुपये किलो तक पहुंच गया। लेकिन पिछले सप्ताह शंघाई फ्यूचर एक्सचेंज में कॉपर के स्टॉक में 13 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई जो कि अगस्त 2007 के बाद का सर्वाधिक है। इस वजह से चीन के आयातकों ने कॉपर की खरीद धीमी करने के संकेत दिए हैं। इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर मजबूत होने से स्टॉकिस्टों के लिए कॉपर का स्टॉक ज्यादा फायदे का सौदा नहीं रहा है। इस कारण भी मांग कमजोर होने से अगले दो महीने में कॉपर के भाव नीचे उतरने के आसार हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2009 में रिफाइंड कॉपर का सरप्लस स्टॉक बढ़कर 3.45 लाख टन को पार करने की संभावना है जबकि वर्ष 2008 में सरप्लस स्टॉक 2.50 लाख टन था। सरप्लस स्टॉक में बढ़ोतरी की वजह से भी भावों पर दबाव बना है। जहां तक कॉपर उत्पादन की बात है वैश्विक उत्पादन में अमेरिका की भागीदारी 41 फीसदी, यूरोप की 21 फीसदी और एशिया की 31 फीसदी है।इस तरह अमेरिका सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है लेकिन औद्योगिक उत्पादन घटने से इस साल अमेरिका में कॉपर की मांग में कमी देखी गई है। कमोबेश यूरोप की हालत भी ऐसी ही है। एशिया में कॉपर का सबसे बड़ा उपभोक्ता चीन है। इस वजह से वर्ष 2009 की पहली तिमाही में वैश्विक मांग में चीन की भागीदारी 38 फीसदी रही है जो कि पिछले वर्ष समानावधि में 27 फीसदी थी। अब चूंकि चीन द्वारा आयात में कमी की संभावना है, इसलिए कॉपर में गिरावट के आसार हैं। पिछले वर्ष मई में कॉपर ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में 8800 डॉलर प्रति टन का रिकॉर्ड बनाया था। लेकिन इस साल भावों का यह स्तर बनने की संभावना बहुत कम है। वहीं भारत में तीन बड़ी कंपनियां कॉपर उत्पादन कर रही है और यह घरलू बाजार की मांग को पूरा करने में यह सक्षम है। (Business Bhaskar)
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