कुल पेज दृश्य

12 जून 2009

भारत में कम बढ़ी रोटी-दाल की कीमत

नई दिल्ली June 11, 2009
भारत में महंगाई दर बढ़ाने में कृषि जिंस अहम भूमिका निभा रहा है, लेकिन अगर वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी से तुलना करें तो अप्रैल और मई के दौरान घरेलू स्तर पर कृषि जिंस की कीमतों में बढ़ोतरी बहुत कम हुई है।
अप्रैल के पहले तो ज्यादातर जिंसों की कीमतें मंदी के चलते गिरावट की ओर थीं। गेहूं, चीनी, मक्का जैसे जिंसों की कीमतों के साथ अन्य जिंसों की कीमतों में भारत में मई तक मामूली बढ़ोतरी हुई, जबकि अंततराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में दो अंकों में बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसका परिणाम यह हुआ है कि भारतीय उपभोक्ता तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित हुए हैं।
नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनविस ने कहा, 'घरेलू स्तर पर कीमतों में बढ़ोतरी, जिंसों की वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी की तुलना में बहुत कम रही है। इसकी प्रमुख वजह यही लगती है कि यहां कृषि उपज संतोषजनक है।'
देश में अनाज उत्पादन 2008-09 में 2298.5 लाख टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल के2307.8 लाख टन की तुलना में मामूली कम है। कृषि उपज के साथ ही सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत फैसलों ने भी कीमतों पर प्रभाव डाला है।
सरकार ने गेहूं और गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया, चीनी के कारोबार को प्रतिबंधित किया, कर मुक्त चीनी के आयात को अनुमति दी, जिसका असर यह हुआ कि घरेलू बाजार में कीमतों में उतनी बढ़ोतरी नहीं हुई, जितनी कि वैश्विक बाजार में हुई। ज्यादातर नीतिगत फैसले उस समय किए गए थे, जब पिछले साल महंगाई दर दो अंकों में पहुंच गई थी।
एक बड़ा दबाव अभी हाल के दिनों में पड़ा जब चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी होने लगी। अनुमान यह लगाया गया था कि चीनी के उत्पादन में 44 प्रतिशत की गिरावट होगी। 2008-09 (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान उत्पादन गिरावट के इस अनुमान के बाद कीमतें बढ़ीं।
लेकिन एक बार फिर, देखें तो वैश्विक मूल्यों की तुलना में इसकी कीमतों में बढ़ोतरी मामूली हुई है। सबनविस का अनुमान है कि खाद्य महंगाई दर में सुखार आएगा, क्योंकि देश में आने वाली खरीफ फसल के दौरान मानसून बेहतर रहने का अनुमान है। (BS Hindi)

कोई टिप्पणी नहीं: