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04 जून 2009
देश के कॉटन निर्यात में 40 फीसदी गिरावट के आसार
पैदावार में कमी और आर्थिक सुस्ती का असर भारत से कॉटन निर्यात पर भी देखा जा रहा है। अगले सितंबर में समाप्त हो रहे चालू फसल वर्ष में कॉटन के निर्यात में करीब 40 फीसदी की गिरावट आ सकती है। सरकार ने इस साल करीब पचास लाख गांठ (एक गांठ में 170 किलो) कॉटन का निर्यात होने की संभावना जताई है। कन्फेडरशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के महासचिव डी. के. नायर के मुताबिक कॉटन पर सब्सिडी के बावजूद पिछले साल के मुकाबले इस साल निर्यात कम रह सकता है। जानकारों के मुताबिक कॉटन के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में हुए इजाफे से घरलू बाजार में इसकी कीमतें बढ़ गईं। इससे विदेशी खरीदारों को भारतीय कॉटन महंगा पड़ने लगा। दक्षिण भारत कपास संघ के संयुक्त सचिव ए. रमानी ने इस साल महज 30 लाख गांठ कॉटन निर्यात होने की उम्मीद जताई है। उनके मुताबिक मौजूदा समय में भारतीय कॉटन वैश्विक बाजारों में तुलनात्मक रूप से 2-3 सेंट प्रति पौंड महंगा बैठ रहा है। लिहाजा इसकी निर्यात मांग बेहद कम है। साल 2007-08 के दौरान यहां बंपर पैदावार की वजह से करीब 85 लाख गांठ कॉटन का निर्यात हुआ था। चालू सीजन के दौरान मई तक 18 लाख गांठ कॉटन का निर्यात हो पाया है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष धीरन एन. सेठ के मुताबिक सरकार यदि निर्यात पर सब्सिडी आगे भी जारी नहीं रखती है तो निर्यात मांग पूरी तरह से ठप हो सकती है। इस साल फरवरी से केंद्र सरकार कॉटन निर्यात पर पांच फीसदी कर छूट दे रही है। लेकिन 30 जून के बाद रियायत की अवधि समाप्त हो जाएगी। उद्योग जगत छूट को आगे भी जारी रखने की मांग कर रहा है। आर्थिक सुस्ती की वजह से भी कॉटन की निर्यात मांग कम है। चीन को अब तक महज दस लाख गांठ कॉटन का ही निर्यात हो सका है। पिछले साल यहां से करीब 40 लाख गांठ कॉटन चीन को गया था। कॉटन एडवायजरी बोर्ड ने इस साल करीब 2.9 करोड़ गांठ कॉटन पैदा होने की संभावना जताई है जो पिछले साल के मुकाबले करीब आठ फीसदी कम है। (Business Bhaskar)
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