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25 मार्च 2009
भारत ने कार्बन क्रेडिट कारोबार में चीन को दी चुनौती
नई दिल्ली : कार्बन क्रेडिट की कीमतों में गिरावट आई है। यूरोपीय औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आने की वजह से प्रदूषण कम हुआ है, जिससे कार्बन क्रेडिट की कीमतें भी कम हुई हैं। भारत के लिए सौभाग्य से चीन का कार्बन वायदा बाजार काफी खराब स्थिति में है। इस वजह से खरीदार यहां आकर क्रेडिट के सौदे कर रहे हैं। इस साल दिसंबर कॉन्ट्रैक्ट के लिए भारत में कार्बन क्रेडिट की कीमत 17 यूरो से गिरकर 11.50 यूरो पर आ गई है क्योंकि यूरोप में फैक्ट्रियों और ऊर्जा प्लांटों में उत्पादन कम हुआ है। इस वजह से यूरोप में इन इकाइयों से होने वाले प्रदूषण में कमी आई है जिससे कंपनियों के लिए कार्बन क्रेडिट खरीदने की आवश्यकता भी कम हुई है। खराब ईंधन इस्तेमाल करने वाली विकसित देशों की औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषण पैदा करने की तभी इजाजत है जबकि वे भारत और चीन जैसे विकासशील देशों की वातावरण अनुकूल कंपनियों से सर्टिफाइड इमिशन रीडक्शंस (सीईआर) की खरीदारी करें। इन देशों की वातावरण अनुकूल कंपनियों को संयुक्त राष्ट्र के स्वच्छ विकास तंत्र के तहत प्रमाणन दिया जाता है। बाजार के जानकार कहते हैं कि सीईआर बाजार आगे भी स्थिर रहेगा और इसके 19 यूरो के उच्च स्तर को छूने की संभावना कम ही है। मुंबई के एक एनालिस्ट का कहना है, '1 अप्रैल को यूरोपियन यूनियन के उत्सर्जन आंकड़ों के आने के बाद ही बेहतर तस्वीर दिखाई देगी। हालांकि लंबे वक्त के लिए बाजार स्थिर दिखाई दे रहा है क्योंकि अमेरिका अपने इमिशन ट्रेडिंग स्कीम (ईटीएस) को उतार सकता है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण पर कोपनहेगेन में दिसंबर में होने बातचीत पर भी कोई समझौता होने की उम्मीद है।' दूसरी ओर चीन का नुकसान भारत का फायदा बनता जा रहा है। चीन में सीईआर कीमतें सरकार के तय किए आठ यूरो के निम्नतम स्तर से भी नीचे चली गई हैं। एक कारोबारी के मुताबिक, मौजूदा आर्थिक अनिश्चितता भरे माहौल में शायद ही कोई खरीदार वायदा बाजार में जाने का जोखिम लेगा। एक एनालिस्ट के मुताबिक, 'वायदा कॉन्ट्रैक्ट में जाने की बजाय खरीदार भारत के हाजिर बाजार से सीईआर खरीदना पसंद करेंगे। हालांकि भारत के हाजिर बाजार में सीईआर की कीमतें ज्यादा हैं लेकिन इसमें जोखिम काफी कम है।' बाजार के जानकारों का मानना है कि इस वक्त सभी भारतीय सीईआर उत्पादकों को खरीदार मिल जाएंगे क्योंकि इनकी हाजिर बाजार में अच्छी मांग चल रही है। हालांकि, हकीकत यह है कि भारत के अभी भी बडे़ तौर पर हाजिर बाजार बने रहने से केवल अस्थायी फायदा हो सकता है। भारत और चीन दोनों में ही ज्यादातर बड़ी परियोजनाएं अभी जारी हैं। (ET Hindi)
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