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31 अक्टूबर 2008
लगातार बढ़ रही है देश में दालों की मांग
नई दिल्ली : भारत में दालों की मांग लगातार बढ़ रही है। हालांकि, इस बीच उत्पादन में कमोबेश ना के बराबर बढ़ोतरी हुई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगले 10 साल तक दालों के आयात में वृद्धि की उम्मीद है। यह खबर ग्राहकों के हक में नहीं है। रुपए में कमजोरी को देखते हुए आयातित दाल के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। इसका असर घरेलू बाजार में भी दाल की कीमतों पर पड़ेगा और ग्राहकों को दाल महंगी पड़ेगी। एसोचैम की पल्स प्रॉडक्शन रिपोर्ट, 2008 में कहा गया है कि भारत में दाल की कमी का फायदा उठाते हुए दुनिया भर के दाल उत्पादक कीमतों में बढ़ोतरी कर रहे हैं। अध्ययन के अनुसार 2019 - 2020 तक दालों का आयात में 27 लाख टन की वृद्धि होगी। भारत में दाल की कमी और कीमतों में बढ़ोतरी का सबसे ज्यादा फायदा कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार को होगा। यह रिपोर्ट इस मायने में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि औसतन प्रत्येक भारतीय घर में दाल का उपयोग होता है। घरेलू आपूर्ति कम होने और कीमतों में बढ़ोतरी के कारण उड़द, मूंग, मसूर और चने की दाल की कीमतें काफी बढ़ चुकी हैं। इससे सरकार भी काफी चिंतित है। इससे प्रति व्यक्ति दाल की खपत में कमी आ रही है। मौजूदा समय में प्रति व्यक्ति दाल का उपभोग 12.7 किलो सालाना है जबकि 1958-59 में यह 27.3 किलो सालाना था। एसोचैम के डायरेक्टर जनरल डी. एस. रावत के मुताबिक, 1.58 फीसदी की नकारात्मक वृद्धि चिंताजनक है। भारत दाल का प्रमुख उत्पादक देश है। दुनिया भर के दाल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 24 फीसदी है। 2007 में दुनिया भर में 6.13 करोड़ टन दाल का उत्पादन हुआ था और इसमें भारत की हिस्सेदारी 1.45 करोड़ टन रही थी। पिछले पांच दशक से दाल के उत्पादन में सीएजीआर 0.26 फीसदी रही है। (ET Hindi)
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