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23 नवंबर 2019

महाराष्ट्र के किसानों को अंतरिम राहत के रुप में 600 करोड़ की मदद

आर एस राणा
नई दिल्ली। केन्द्र सरकार ने महाराष्ट्र के किसानों को 600 करोड़ रुपये की अंतरिम राहत देने का फैसला किया है। अक्टूबर माह में बेमौसम बारिश के कारण राज्य में खरीफ की फसलों कपास, सोयाबीन, अंगूर, मक्का तथा गन्ने को भारी नुकसान हुआ है।
कृषि राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने शुक्रवार को राज्यसभा में राहत राशि की घोषणा की है। प्रश्नकाल के दौरान प्रश्नों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि न केवल महाराष्ट्र में बल्कि कई अन्य राज्यों में भी बारिश के कारण फसलें प्रभावित हुई हैं।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा किए गए पहले अनुरोध के आधार पर हमने नुकसान का आकलन करने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजा है। केंद्र सरकार ने राज्य के किसानों की मदद के लिए 600 करोड़ रुपये अंतरिम राहत के रुप में देने का निर्णय लिया है। महाराष्ट्र में अक्टूबर के बाद नवंबर में भी मौसम बारिश हुई है। उन्होंने कहा कि फसलों के नुकसान के बारे में केंद्र सरकार राज्य से मिलने वाली रिपोर्ट का इंतजार कर रही है। राज्य से सूचना मिलने के बाद अनुदान जारी करने की कार्रवाई की जाएगी। राज्य सरकार पात्र किसानों को प्रमाणित करने के बाद धन जारी करती है।
फसलों को हुए नुकसान के आंकलन के लिए केंद्रीय टीम महाराष्ट्र पहुंची
खरीफ फसलों को बेमौसम बारिश से हुए नुकसान का आंकलन करने के लिए केंद्र सरकार की टीम तीन दिन के दौरे पर महाराष्ट्र के महाराठवाड़ा में शुक्रवार को पहुंच गई। राज्य सरकार के अनुसार पहले दिन औंरगाबाद के सिल्लोड, फूलमबरी और कन्नड़ तालुका में फसलों को हुए नुकसान का आंकलन किया जायेगा। शनिवार को टीम गेवराई और मजलगाँव के अलावा बीड जिले के धरुर और वाधवानी का दौरा करेगी। रविवार को जालना जिले के बदनापुर, भोकरदन और जाफराबाद का दौरा करेगी।
बेमौसम बारिश से मक्का, अंगूर, सोयाबीन और कपास सहित अन्य फसलों को नुकसान
राज्य सरकार के एक अधिकारी के अनुसार केंद्रीय टीम राज्य में बेमौसम बारिश से खराब हुई फसलों मक्का, अंगूर, सोयाबीन, कपास सहित बाजरा के नुकसान का जायजा लेगी। राज्य के औरंगाबाद, अमरावती और नासिक डिवीजन में अक्टूबर और नवंबर में बेमौसम बारिश से भारी नुकसान हुआ है। राज्य के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 16 नवंबर को कहा था कि बेमौसम बारिश से प्रभावित किसानों को तत्काल राहत दी जायेगी। उन्होंने कहा कि था खरीफ फसलों के प्रभावित किसानों को 8,000 रुपये प्रति हेक्टेयर, दो हेक्टेयर तक के किसानों को नुकसान की भरपाई की जायेगी। राज्य के बागवानी किसानों को प्रति हेक्टेयर 18,000 रुपये, दो हेक्टेयर तक की सहायता दी जायेगी। इस महीने के शुरू में बेमौसम बारिश से प्रभावित किसानों लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विशेष सहायता के रूप में 10,000 करोड़ रुपये मंजूर किए थे।........  आर एस राणा

पिछले साल से 500 रुपये नीचे दाम पर धान बेचने को मजबूर हैं किसान, चावल निर्यात घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। धान किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है, मानसून सीजन में बारिश सामान्य से कम होने के कारण जहां लागत बढ़ी है, वहीं कीमतों में आई भारी गिरावट से किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। उत्पादक मंडियों में धान के भाव पिछले साल की तुलना में 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल नीचे चल रहे हैं।
बहादुरगढ़ के मांडोठी गांव के किसान चरण सिंह दलाल ने तीन एकड़ में पूसा 1,121 बासमती धान की फसल लगाई है। उन्होंने बताया कि इस बार मानसूनी सीजन में बारिश नहीं होने के कारण ट्यूबवेल से घान की सिंचाई करनी पड़ी थी जिससे लागत पिछले साल से ज्यादा आई, साथ ही बारिश की कमी से प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भी कम हुई हैं। उन्होंने बताया कि नजफगढ़ मंडी में धान 2,750 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिका है, जबकि पिछले साल 3,250 रुपये प्रति क्विटंल के भाव बिका था।
ईरान को निर्यात सौदे नहीं, सऊदी अरब की आयात मांग भी कम
कैथल मंडी में धान कारोबारी रामनिवास खुरानियां ने बताया कि धान में राइस मिलर्स की मांग कमजोर है। उन्होंने बताया कि ईरान में भारतीय चावल निर्यातकों का पैसा फंसा हुआ है, जिस कारण निर्यातक नए निर्यात सौदे नहीं कर रहे हैं, जबकि सऊदी अरब की आयात मांग भी कम आ रही है। इसलिए धान की कीमतों में मंदा बना हुआ है। मंडी में पूसा 1,121 धान का भाव 2,750 से 2,850 रुपये और डीपी धान का भाव 2,525 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। पिछले साल इस समय मंडी में पूसा 1,121 धान 3,250 से 3,300 रुपये और डीपी धान 2,900 से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था। पूसा 1,509 धान का भाव मंडी में घटकर 2,400 रुपये प्रति क्विवंट रह गया जबकि ट्रेडिशनल बासमती धान के भाव घटकर 3,600 से 3,650 रुपये प्रति क्विवंटल रह गया, जबकि सप्ताह के शुरू में ट्रेडिशनल बासमती धान का भाव 3,800 से 3,900 रुपये प्रति क्विंटल था।
बासमती चावल का निर्यात 10 फीसदी और गैर बासमती का 26 फीसदी घटा
एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान बासमती चावल का निर्यात 10.13 फीसदी घटकर 18.71 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 20.82 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से बासमती चावल का निर्यात अप्रैल से सितंबर के दौरान घटकर 14,188 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 15,331 करोड़ रुपये का हुआ था। गैर-बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 25.90 फीसदी घटकर 24.88 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में गैर-बासमती चावल का निर्यात 33.58 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से गैर-बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में केवल 7,091 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 10,774 करोड़ रुपये का हुआ था।.......  आर एस राणा

देशभर में केवल 100 चीनी मिलों में पेराई आरंभ, पिछले साल से 68 फीसदी कम

आर एस राणा
नई दिल्ली। गन्ने का पेराई सीजन आरंभ हुए डेढ़ महीना बीतने के बावजूद भी अभी तक देशभर में केवल 100 चीनी मिलों में ही पेराई आरंभ हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय 310 मिलों में पेराई आरंभ हो चुकी थी। महाराष्ट्र में सूखे और बाढ़ के कारण गन्ने की फसल की भारी नुकसान हुआ है जिस कारण अभी तक चीनी मिलों में पेराई आरंभ ही नहीं हुई है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन आफ इंडिया (इस्मा) के अनुसार पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन में 15 नवंबर तक 4.85 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है जबकि पिछले साल इस समय तक 13.38 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में अभी तक एक भी चीनी मिल में पेराई आरंभ नहीं हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य की 149 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हो गई थी, तथा पिछले साल 15 नवंबर 2018 तक राज्य में 6.31 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। महाराष्ट्र की चीनी मिलों में 22 नवंबर से पेराई आरंभ होने का अनुमान है।
कर्नाटक में 18 और उत्तर प्रदेश में 69 मिलों में ही हुई है पेराई आरंभ
कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में अभी तक केवल 18 चीनी मिलों में ही पेराई आरंभ हुई है तथा 15 नवंबर तक राज्य में 1.43 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। पिछले साल इस समय तक राज्य में 53 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हो चुकी थी तथा चीनी का उत्पादन 3.60 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में अभी तक 69 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हुई है तथा राज्य में 2.93 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। पिछले साल राज्य में इस समय तक 1.76 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
चीनी का उत्पादन 260 लाख टन होने का अनुमान
अन्य राज्यों में उत्तराखंड में दो चीनी मिलों में पेराई आरंभ हुई है, बिहार में दो, हरियाणा में एक, गुजरात में तीन और तमिलनाडु में पांच मिलों ने पेराई आरंभ की है तथा इन राज्यों में चालू पेराई सीजन में 15 नवंबर तक 49,000 टन चीनी का उत्पादन हुआ है। उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में अभी तक करीब 12 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे हो चुकी है, तथा इसमें से दो लाख टन चीनी की शिपमेंट भी हो चुकी है। इस्मा के अनुसार चालू पेराई सीजन 2019-20 में चीनी का उत्पादन घटकर 260 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में 331.61 लाख चीनी का रिकार्ड उत्पादन हुआ था। पहली अक्टूबर 2019 को शुरू हुए चालू पेराई सीजन में चीनी का बकाया स्टॉक 145.81 लाख टन का बचा हुआ था, जबकि देश में चीनी की सालाना खपत 255 से 260 लाख टन की ही होती है।............  आर एस राणा

18 नवंबर 2019

रबी फसलों की बुआई 11.59 फीसदी पिछे, गेहूं और दलहन पर ज्यादा असर

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में अक्टूबर और नवंबर में हुई बेमौसम बारिश से रबी फसलों की बुआई 10.59 फीसदी पिछड़ कर 148.23 लाख हेक्टेयर में ही हुई है। रबी की प्रमुख फसल गेहूं के साथ ही दलहन की बुआई पिछे चल रही है जबकि मोटे अनाजों के साथ तिलहन बुआई में सुधार आया है। हालांकि रबी फसलों की बुआई अभी शुरूआती चरण में है, तथा आगे इनकी बुआई में तेजी आने का अनुमान है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू सीजन में रबी फसलों की बुआई 148.23 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई 167.67 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुआई घटकर चालू रबी में 32.98 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 42.40 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। इसी तरह से दलहन की बुआई चालू रबी में घटकर 45.60 लाख हेक्टेयर में ही हो हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 54.20 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई पिछले साल के 37.42 लाख हेक्टेयर से घटकर 32.48 लाख हेक्टयेर में ही हुई है।
मोटे अनाजों में ज्वार की बुआई आगे
मोटे अनाजों की बुआई चालू रबी में 17.26 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 17.20 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुआई चालू रबी में 12.68 लाख हेक्टेयर हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 12.14 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। मक्का की बुआई चालू रबी में 2.55 लाख हेक्टेयर और जौ की बुआई 1.70 लाख हेक्टेयर में ही हुई है।
तिलहन की बुआई में हल्की बढ़ी
रबी तिलहन की बुआई चालू रबी में बढ़कर 47.36 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई 46.12 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुआई 43.09 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुआई 44.02 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मूंगफली की बुआई 1.40 लाख हेक्टेयर में और अलसी की बुआई 71 हजार हेक्टेयर तथा सनफ्लावर की बुआई 50 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है।.............  आर एस राणा

अक्टूबर में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 10 फीसदी बढ़ा, किसानों को नहीं मिल रहा समर्थन मूल्य

आर एस राणा
नई दिल्ली। सरकार किसानों की आय वर्ष 2022 तक बढ़ाकर दोगुनी करने का लक्ष्य लेकर चल रही है, जबकि खाद्य तेलों के आयात में हो रही लगातार बढ़ोतरी से तिलहन किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नहीं मिल पा रहा है। अक्टूबर में खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में जहां 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, वहीं चालू तेल वर्ष नवंबर-18 से अक्टूबर-19 के दौरान खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में 3.5 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 155.49 लाख टन का हुआ है।
खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में लगातार हो रही बढ़ोतरी से घरेलू मंडियों में किसानों को तिलहन की फसलें एमएसपी से नीचे बेचनी पड़ रही है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सोपा) के उपाध्यक्ष नरेश गोयनका ने बताया कि उत्पादक मंडियों में सोयाबीन के भाव 3,550 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल हैं। केंद्र सरकार ने सोयाबीन का एमएसपी 3,710 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। राजस्थान की भरतपुर मंडी में सरसों के भाव 3,800 से 4,100 रुपये प्रति क्विंटल रहे, जबकि सरसों का एमएसपी रबी विपणन सीजन 2020-21 के लिए 4,425 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
चालू तेल वर्ष में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 3.5 फीसदी बढ़ा
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार अक्टूबर में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 10 फीसदी बढ़कर 13,78,104 टन का हुआ है जबकि पिछले साल अक्टूबर में इनका आयात 12,56,433 टन का ही हुआ था। अक्टूबर में खाद्य तेलों का 13,31,926 टन खाद्य तेलों का एवं 46,178 टन अखाद्य तेलों का आयात हुआ है। चालू तेल वर्ष नवंबर-18 से अक्टूबर-19 के दौरान खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में 3.5 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 155.49 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 150.26 लाख टन का हुआ था। चालू तेल वर्ष में खाद्य तेलों का आयात 149.13 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले साल इनका आयात 145.16 लाख टन का हुआ था।
आरबीडी पामोलीन के भाव अक्टूबर में घटे, पॉम तेल के बढ़े
आरबीडी पामोलीन का भाव अक्टूबर में भारतीय बंदरगाह पर औसत 567 डॉलर प्रति रहा, जबकि अगस्त में इसका औसत भाव 571 डॉलर प्रति था। क्रुड पॉम तेल का भाव अगस्त में औसत 534 डॉलर प्रति टन था जबकि अक्टूबर में इसका औसत भाव 541 डॉलर प्रति टन हो गया। क्रुड सोया तेल का भाव अक्टूबर में औसत 722 डॉलर प्रति टन, क्रुड सनफ्लावर तेल का भाव 746 डॉलर प्रति टन और क्रुड सरसों तेल का भाव 787 डॉलर प्रति टन रहा। ........... आर एस राणा

कर्नाटक में बेमौसम बारिश से अरहर की फसल को भारी नुकसान

आर एस राणा
नई दिल्ली। कर्नाटक में अक्टूबर और नवंबर महीने में हो रही बेमौसम बारिश से अरहर की फसल पर  फफूंद के संक्रमण का प्रकोप होने से फसल को भारी नुकसान हुआ है। फसल की पकाई के समय राज्य के कई जिलों में लगातार बेमौसम बारिश हो रही है, जिससे अरहर की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में भारी कमी आने का अनुमान है।
राज्य के कलबुर्गी के किसान उमेश कुमार ने बताया कि उन्होंने 9 एकड़ में अरहर की फसल लगाई हुई है। राज्य में अक्टूबर और नवंबर में भी बेमौसम बारिश हो रही है जिससे अरहर के दाने काले पड़ गए हैं, साथ ही पौधे जड़ से उखड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैने 9 एकड़ खेत में अरहर की फसल की बुआई की थी, जोकि भारी बारिश से पूरी तरह से बर्बाद हो गई है। उन्होंने बताया कि बेमौसम बारिश के कारण सुबह के समय भारी ओस रहती है, जिससे फसल की क्वालिटी भी प्रभावित हुई है। उन्होंने बताया कि बेमौसम बारिश से चालू सीजन में अरहर की पैदावार में भारी कमी आने का अनुमान है जिससे भारी नुकसान होगा।
प्रतिकूल मौसम से फसल को भारी नुकसान की आशंका
कलबुर्गी कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के कृषि वैज्ञानिक जहिर अहमद ने बताया कि प्रतिकूल मौसम की वजह से इस बार अरहर की फसल को भारी नुकसान हुआ है। पिछले एक सप्ताह से बादल छाए हुए है जबकि इसके पहले सप्ताह में बारिश हुई थी। यह समय फसल की पकाई का होने की वजह से फसल को धूप की जरुरत होती है लेकिन बेमौसम बारिश का असर फसल की उत्पादकता के साथ ही क्वालिटी पर पड़ा है। उन्होंने बताया कि बारिश और आसमान में बादल छाए रहने की वजह से अरहर की फसल पर फफूंद का संक्रमण भी हुआ है।
नवंबर में भी राज्य में सामान्य से ज्यादा हुई है बारिश
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार नवंबर में उत्तर कर्नाटक में सामान्य से 104 फीसदी और दक्षिण कर्नाटक में 68 फीसदी अधिक बारिश हुई है। राज्य के होवरी में नवंबर में सामान्य से 243 फीसदी, बेलगाम में 200 फीसदी, बीदर में 110 फीसदी, धारवाड़ में 136 फीसदी तथा दावणगेरे में 162 फीसदी अधिक बारिश हुई है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में कर्नाटक में अरहर की बुआई 11.93 लाख हेक्टेयर में हुई है जोकि पिछले साल के 9.92 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है।...... आर एस राणा

दिसंबर से बीजों के पैकेट पर 2डी बार कोड होगा अनिवार्य, नकली बीजों की बिक्री पर लगेगी लगाम

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार प्रमाणित बीजों की बिक्री के लिए पैकेट/बोरी पर दिसंबर 2019 से अंतरराष्ट्रीय मानकों का उपयोग करते हुए 2डी बार कोड को अनिवार्य करने जा रही है इसका उद्देश्य नकली बीजों की बिक्री पर रोक लगाना है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार नकली बीजों की बिक्री पर लगाम लगाने के लिए सरकार पैकेट बंद बीजों की बिक्री पर 2 डी बार कोड को दिसंबर 2019 से अनिवार्य करने जा रही है। उन्होंने बताया कि बीज निर्माता कंपनियों को 2डी बार कोड में बीजों के पैकेट/बोरी आदि में बीज संबंधी पूरी जानकारी देनी होगी, साथ ही 2डी बार कोड को डिजिटल ढंग से निम्न सूचना देने के लिए केंद्रीय पोर्टल से जोड़ा जायेगा।
2डी बार कोड में निर्माता को देनी होनी पूरी जानकारी
उन्होंने बताया कि 2डी बार कोड में निर्माता कंपनी को उत्पादकों का पूरा विवरण देने के साथ ही, बीज उत्पादन स्थान का कोड, प्रोसेसिंग संयंत्र कोड, जीएम/बीटी कपास आदि मामलें में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अनुसार कोई अन्य आवश्यक सूचना के साथ ही अधिनियम के अनुसार बीज उपचार अथा किसी अन्य जानकारी से संबंधित सूचना देना अनिवार्य होगा।
देश के 25 राज्यों में ही हैं बीज प्रमाणीकरण एजेंसियां
उन्होंने बताया कि बीज अधीनियम के तहत अधिसूचित किस्में ही प्रमाणीकरण के लिए पात्र हैं, तथा देश में 25 राज्यों में बीज प्रमाणीकरण एजेंसियां कार्य कर रही हैं। जिन राज्यों के पास प्रमाणीकरण एजेंसियां नहीं है उन राज्यों में स्वतंत्र बीज प्रमाणीकरण एजेंसी बनाने के लिए जोर दिया जा रहा है। बीज प्रमाणीकरण एजेंसियों को केंद्रीय सहायता देकर सुदृढ़ करने की जरुरत है तथा प्रमाणीकरण बीजों का उपयोग करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जायेगा। उन्होंने बताया कि इस समय देशभर में 132 अधिसूचित बीज परीक्षण प्रयोगशालाएं कार्य कर रही हैं, लेकिन आधारभूत सुविधाओं या फिर कृषि वैज्ञानिकों की कमी के कारण बहुत सी प्रयोगशााएं प्रभावित ढंग से कार्य नहीं कर पा रही है। इसलिए राज्य सरकार को प्रयोगशालाओं में प्रशिक्षकों को नियुक्त करने को कहा गया है, ताकि उन्हें प्रशिक्षित किया जा सके।..... आर एस राणा

09 नवंबर 2019

गेहूं और दलहन की बुआई शुरूआती दौर में पिछड़ी, सरसों की बढ़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में बाढ़ और बेमौसम बारिश का असर फसलों की बुआई पर पड़ रहा है। रबी की प्रमुख फसल गेहूं के साथ ही दलहन की बुआई शुरूआती दौर में पिछे चल रही है, हालांकि तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुआई बढ़ी है। कृषि मंत्रालय के दौरान अभी तक रबी फसलों की कुल बुआई 95.35 लाख हेक्टयेर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 112.24 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।
मंत्रालय के अनुसार रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुआई अभी तक केवल 9.69 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 15.35 लाख हेक्टेयर में इसकी बुआई हो चुकी थी। इसी तरह से दालों की बुआई घटकर अभी तक 27.85 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 39.93 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई चालू रबी में 19.82 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस सयम तक 26.63 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। रबी फसलों की बुआई अभी शुरूआती चरण में है तथा आगे बुआई में तेजी आयेगी।
मध्य प्रदेश में गेहूं के साथ ही दालों की बुआई पिछड़ी
मंत्रालय के अनुसार गेहूं की बुआई मध्य प्रदेश में पिछे चल रही है, राज्य में सितंबर में हुई भारी बारिश से कई जिलों में बाढ़ जैसे हालात बन गए थे, जबकि अक्टूबर मेें भी सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है। चालू रबी में राज्य में अभी तक केवल 74 हजार हेक्टेयर में ही गेहूं की बुआई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 6 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। दालों की बुआई भी मध्य प्रदेश में पिछे चल रही है। राज्य में अभी तक केवल 1.58 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 12.26 लाख हेक्टेयर में इनकी बुआई हो चुकी थी। कर्नाटक के साथ ही राजस्थान में दालों की बुआई पिछले साल के मुकाबले आगे चल रही है।
मोटे अनाजों की बुआई पिछे, तिलहन की आगे
मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में अभी तक 12.39 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 13.54 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। ज्वार की बुआई चालू सीजन में 10.14 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 10.27 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। रबी में तिलहनी फसलों की बुआई में जरुर बढ़कर 39.65 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई 37.66 लाख हेक्टेयर में बुआई हो पाई थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुआई बढ़कर 37.42 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, पिछले साल इस समय तक सरसों की बुआई केवल 35.38 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।.............   आर एस राणा

कपास का उत्पादन अनुमान 13.62 फीसदी ज्यादा, किसान बेच रहे हैं समर्थन मूल्य से नीचे

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू सीजन में कपास का उत्पादन 13.62 फीसदी बढ़कर 354.50 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) होने का अनुमान है। मांग कम होने के कारण मंडियों में किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे दाम पर फसल बेचने को मजबूर हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की मंडियों में कपास 5,050 से 5,300 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है जबकि केंद्र सरकार ने चालू खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए कपास मीडियम स्टेपल कपास का समर्थन मूल्य 5,255 रुपये और लॉन्ग स्टेपल का 5,550 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अनुसार चालू फसल सीजन 2019-20 में कपास का उत्पादन 13.62 फीसदी बढ़कर 354.50 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 312 लाख गांठ का ही उत्पादन हुआ था। सीएआई के आरंभिक अनुसान के अनुसार चालू सीजन में कपास का आयात घटकर 25 लाख गांठ और निर्यात 42 लाख गांठ होने का अनुमान है। पिछले सीजन में 32 लाख गांठ कपास का आयात हुआ था, जबकि निर्यात 42 लाख गांठ का ही हुआ। देश में कपास की सालाना खपत 315 लाख गांठ होने का अनुमान है जोकि पिछले साल की तुलना में 3.5 लाख गांठ ज्यादा है। अक्टूबर में उत्पादक मंडियों में कपास की आवक 13.40 लाख गांठ की हो चुकी है।
सीसीआई ने एमएसपी पर खरीदी है केवल 19,000 गांठ
कॉटन कारपोरेशन आफ इंडिया (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू सीजन में अभी तक एमएसपी पर केवल 19,000 गांठ कपास की खरीद ही हुई है। उन्होनें बताया कि मंडियों में आ रही कपास में नमी की मात्रा 20 फीसदी से ज्यादा की आ रही है जबकि निगम 12 फीसदी नमी युक्त कपास की खरीद कर रही है। उन्होंने बताया कि उत्तर भारत के राज्यों के बाद तेलंगाना से भी खरीद शुरू हो गई है। आगामी दिनों में दैनिक आवक बढ़ने पर कपास की खरीद में भी तेजी आने का अनुमान है। पिछले फसल सीजन में निगम ने एमएसपी पर 10.70 लाख गांठ कपास की खरीद की थी, जिसमें से 1.70 लाख गांठ बेची गई है।
विश्व बाजार में दाम कम होने से निर्यात पड़ते कम
नार्थ इंडिया एसोसिएशन आफ इंडिया के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि उत्पादक मंडियों में कपास के भाव 5,050 से 5,300 रुपये प्रति क्विंटल क्वालिटीनुसार चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि  न्यूयार्क कॉटन के दिसंबर वायदा में कपास के भाव 7 नवंबर को 64.44 सेंट प्रति पाउंड हैं जबकि 18 अक्टूबर को इसके भाव 64.99 सेंट प्रति पाउंड थे। विश्व बाजार में कीमत कम होने के कारण निर्यात पड़ते भी सीमित मात्रा में ही लग रहे हैं। उन्होंने बताया कि बेमौसम बारिश से महाराष्ट्र और गुजरात में कपास की फसल को नुकसान हुआ है, साथ ही क्वालिटी भी प्रभावित हुई है।
बुआई में हुई थी बढ़ोतरी
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2019-20 में कपास का उत्पादन 322.67 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 287.08 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। कपास की बुआई चालू खरीफ में 127.67 लाख हेक्टेयर में हुई थी, जोकि इसके पिछले साल के 121.05 लाख हेक्टेयर से ज्यादा थी।..........  आर एस राणा

चीनी मिलों को राहत देने की तैयारी, निर्यात की समय सीमा दो महीने बढ़ा सकती है सरकार

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार चीनी मिलों को राहत देने के लिए निर्यात की समय सीमा को दो महीने बढ़ा सकती है। चीनी मिलों को पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में 50 लाख टन का निर्यात अक्टूबर 2019 तक करना था, लेकिन अभी तक तय लक्ष्य में से केवल 38 लाख टन चीनी का ही निर्यात ही हो पाया है। इसलिए सरकार तय समय सीमा 31 अक्टूबर 2019 को बढ़ाकर 31 दिसंबर 2019 कर सकती है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चीनी निर्यात की समय सीमा को 31 अक्टूबर 2019 से बढ़ाकर 31 दिसंबर 2019 करने का प्रस्ताव है। उन्होंने बताया कि पिछले पेराई सीजन में चीनी मिलों को 50 लाख टन चीनी के निर्यात का कोटा दिया था, जिसमें से अभी तक मिलों ने केवल 38 लाख टन चीनी का ही निर्यात किया है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों ने निर्यात की समय सीमा को बढ़ाने की मांग की थी। विश्व बाजार में व्हाईट चीनी के दाम 345.50 डॉलर प्रति टन और रॉ-शुगर चीनी के दाम 12.82 सेंट प्रति बुशल रहे।
केंद्र सरकार चीनी के निर्यात पर 10.50 रुपये किलो की दे रही है सब्सिडी
केंद्र सरकार चीनी के निर्यात पर मिलों को 10.50 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी दे रही है। उन्होंने बताया कि पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन के लिए चीनी के निर्यात का कोटा बढ़ाकर 60 लाख टन का कर दिया है। उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन 2019-20 (अक्टूबर से सितंबर) में चीनी का उत्पादन 22 फीसदी घटकर 260 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पेराई पिछले सीजन में चीनी का रिकार्ड 331.61 लाख टन का उत्पादन हुआ था। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन के समय चीनी का बकाया स्टॉक 145.81 लाख टन बचा हुआ है जबकि पिछले साल पेराई सीजन के आरंभ में बकाया केवल 107 लाख टन का था।
पहली अक्टूबर से अभी तक 8 से 9 लाख टन चीनी के हो चुके हैं निर्यात सौदे
दिल्ली में चीनी के थोक कारोबारी सुधीर भालोठिया ने बताया कि दिल्ली में चीनी की कीमतें  3,550 रुपये प्रति क्विंटल और उत्तर प्रदेश में चीनी के एक्स फैक्ट्री भाव 3,200 से 3,300 रुपये प्रति क्विंटल हैं। महाराष्ट्र में चीनी के दाम 3,125 से 3,175 रुपये प्रति क्विंटल हैं। उन्होंने बताया कि पहली अक्टूबर से अभी तक करीब 8 से 9 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे हो चुकी है, हालांकि इसमें से शिपमेंट केवल 2 से 3 लाख टन की ही हुई है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश की करीब 25 से 30 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हो चुकी है। ......... आर एस राणा

केंद्र ने अरहर आयात की अविध 15 नवंबर तक बढ़ाई, दिसंबर में आयेगी नई फसल

आर एस राणा
नई दिल्ली। अरहर की नई फसल की आवक घरेलू उत्पादक मंडियों में दिसंबर में बनेगी उससे पहले ही केंद्र सरकार ने अरहर के आयात की अवधि को बढ़ाकर 15 नवंबर 2019 कर दिया है जिससे अरहर की कीमतों में 300 रुपये की गिरावट आकर उत्पादक मंडियों मेंं भाव 5,800 से 5,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार अरहर का आयात अब 15 नवंबर 2019 तक किया जा सकेगा। सरकार ने अरहर, उड़द और मूंग के आयात की अनुमति 31 अक्टूबर 2019 तक दे रखी थी। डीजीएफटी के अनुसार उड़द और मूंग का आयात तो नहीं किया जा सकेगा, लेकिन अरहर के आयात की अवधि को 15 नवंबर तक बढ़ा दिया गया है। ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन ने हाल ही में अरहर के आयात की अवधि को बढ़ाकर 30 नवंबर 2019 करने की मांग की थी, साथ ही उड़द के आयात की मात्रा को भी डेढ़ लाख टन से बढ़ाकर 2.5 लाख टन करने के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखा था।
दिसंबर में उत्पादक मंडियों में आयेगी अरहर की नई फसल
जानकारों के अनुसार अगले महीने अरहर की नई फसल की आवक उत्पादक मंडियों में बनेगी, अत: सरकार द्वारा आयात की अवधि बढ़ा देने से अरहर की कीमतों में आगे और मंदा आने का अनुमान है, जिससे अरहर उगाने वाले किसानों को नुकसान हो सकता है। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,800 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है जबकि मंडियों में 5,800 से 5,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। केंद्रीय पूल में भी अरहर का बकाया स्टॉक बचा हुआ है।
अरहर का पौने छह लाख टन आयात की अनुमति
केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए अरहर के आयात के लिए 4 लाख टन की मात्रा तय की थी, जबकि उड़द और मूंग के आयात के लिए डेढ़-डेढ़ लाख टन का कोटा तय किया हुआ है। इसके अलावा पौने दो लाख टन अरहर का आयात मौजाम्बिक से सरकारी स्तर पर भी होगा। कर्नाटक के एक दाल मिलर्स ने बताया कि सरकार ने आयात की समय सीमा 15 नवंबर तक बढ़ाई है, अत: अगले 9 से 10 दिनों में कैसे विदेशों से सौदे, लोडिंग और अनलोडिंग हो जायेगी। उन्होंने बताया कि इससे वहीं कंनेटर पहुंच पायेंगे, जोकि पहले से लोड हो चुके हैं।
अरहर की बुआई पिछले साल से ज्यादा
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2019-20 में 35.4 लाख टन अरहर के उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में इसका उत्पादन 35.9 लाख टन का हुआ था। जानकारों के अनुसार उत्पादक राज्यों में अक्टूबर में हुई अच्छी बारिश से अरहर का उत्पादन तय अनुमान से ज्यादा ही होने का अनुमान है। मंत्रालय के अनुसार खरीफ में अरहर की बुआई बढ़कर 45.82 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि इसके पिछले साल इसकी बुआई 45.75 लाख हेक्टेयर में हुई थी। ..............  आर एस राणा

केंद्र सरकार ने यूरोपियन यूनियन के लिए चावल निर्यात नियम किए सख्त

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने यूरोपियन यूनियन के देशों को किए जा रहे चावल के निर्यात नियमों को सख्त कर दिया है। इन देशों को चावल निर्यात करने के लिए अब निर्यातकों को निर्यात निरीक्षण एजेंसी या फिर निर्यात निरीक्षण परिषद से निरीक्षण का प्रमाण-पत्र लेना अनिवार्य होगा। इसका असर चावल के निर्यात सौदों पर पड़ने की आशंका है।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार यूरोपियन यूनियन के देशों को बासमती चावल के साथ ही गैर बासमती चावल के निर्यात करने के लिए निर्यातकों को निर्यात निरीक्षण एजेंसी या फिर निर्यात निरीक्षण परिषद से निरीक्षण का प्रमाण-पत्र लेना अनिवार्य होगा, जोकि तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। सूत्रों के अनुसार चावल में पेस्टीसाइड होने की वजह से सरकार ने निरीक्षण का प्रमाण-पत्र को अनिवार्य किया है।
इससे चावल के निर्यात पर असर पड़ने की आशंका
हरियाणा के करनाल स्थित बासमती चावल की निर्यात फर्म के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार के इस फैसले से बासमती के साथ ही गैर-बासमती चावल के निर्यात सौदों पर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यूरोप के एक-दो देश इस तरह की मांग कर रहे थे, लेकिन सरकार ने सभी यूरोपीयन यूनियन देशों के लिए इसे अनिवार्य कर दिया है। इसको देखते हुए अन्य आयातक देश जो भारत से बड़ी मात्रा में बासमती और गैर-बासमती चावल का आयात करते हैं, इस तरह की मांग कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि यूरोपीयन यूनियन के देशों को बासमती चावल का कुल निर्यात तीन लाख से भी कम होता है, जबकि गैर-बासमती का निर्यात तो सीमित मात्रा में ही होता है। वैसे भी चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान बासमती चावल के साथ ही गैर-बासमती चावल के निर्यात में कमी आई है। ईरान को बासमती चावल के निर्यात सौदे नहीं हो रहे हैं, जबकि सऊदी अरब को भी निर्यात सौदे सीमित मात्रा में ही हो रहे हैं। ऐसे में अन्य देशों ने भी निर्यात निरीक्षण की मांग की तो इसका सीधा असर चावल के कुल निर्यात पर पड़ेगा।
पहली छमाही में बासमती और गैर बासमती चावल का निर्यात घटा
चालू वित्त 2019-20 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान बासमती चावल के निर्यात में 11.33 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 18.70 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 20.82 लाख टन का हुआ था। गैर-बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में घटकर 25.17 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 38.68 लाख टन का हुआ था। वित्त वर्ष 2018-19 में देश से बासमती चावल का कुल निर्यात 44.14 लाख टन का और गैर-बासमती चावल का निर्यात 75.99 लाख टन का हुआ था।.........   आर एस राणा

चीनी का उत्पादन 22 फीसदी घटने का अनुमान, महाराष्ट्र और कर्नाटक में सूखे और बाढ़ का असर

आर एस राणा
नई दिल्ली। महाराष्ट्र और कर्नाटक में सूखे और बाढ़ से गन्ने की फसल को हुए भारी नुकसान से चालू पेराई सीजन 2019-20 में चीनी के उत्पादन में करीब 22 फीसदी की कमी आकर कुल उत्पादन 260 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में 331.61 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन घटकर 260 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पहले अनुमान में 282 लाख टन के उत्पादन का अनुमान लगाया था। प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में चीनी के उत्पादन में 40 फीसदी की गिरावट आकर कुल उत्पादन 62 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में राज्य में 107.20 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। उधर कर्नाटक में चीनी का उत्पादन चालू पेराई सीजन में घटकर 32 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में राज्य में 44.30 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
उत्तर प्रदेश में उत्पादन बढ़ने का अनुमान
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और सोलापूर में पहले सूखे का असर गन्ने की फसल पर पड़ा, उसके बाद राज्य के कोल्हापुर, सांगली, सतारा और पुणे में बाढ़ से गन्ने की फसल को भारी नुकसान हुआ। कर्नाटक में भी चालू सीजन में गन्ने की बुआई में पिछले साल की तुलना में कमी आई थी, उसके बाद राज्य के बेलगाम और बीजापुर में बाढ़ से गन्ने की फसल प्रभावित हुई थी। उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन 2019-20 में चीनी का उत्पादन जरुर बढ़कर 120 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में राज्य में 118.21 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
अन्य राज्यों में पिछले साल के बराबर ही उत्पादन का अनुमान
अन्य प्रमुख उत्पादक राज्यों में चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 54.50 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के लगभग बराबर ही है। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन के समय चीनी का बकाया स्टॉक बंपर 145.81 लाख टन बचा हुआ है जबकि पिछले साल पेराई सीजन के आरंभ में बकाया केवल 107 लाख का ही था।  
एथेनॉल के लिए तेल कंपनियों की निविदा जल्द आने की उम्मीद
इस्मा के अनुसार चालू पेराई सीजन के लिए तेल कंपनियों द्वारा एथेनॉल की खरीद के लिए जल्द ही निविदा जारी करने की उम्मीद है। केंद्र सरकार द्वारा चीनी मिलों को एथेनॉल उत्पादन बढ़ाने के लिए दी जा रही सहातया से कंपनियों की उत्पादन क्षमता बढ़ी है। माना जा रहा है कि चालू पेराई सीजन 2019-20 में मिलों द्वारा करीब 8.5 लाख टन चीनी उत्पादन के बराबर गन्ने से सीधे एथेनॉल बनने की उम्मीद है।
चालू वित्त वर्ष के चार महीनों में बढ़ा चीनी का निर्यात
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले चार महीने अप्रैल से जुलाई के दौरान चीनी का निर्यात बढ़कर 18.59 लाख टन का हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात केवल 9.67 लाख टन का ही हुआ था। विश्व बाजार में व्हाईट चीनी के भाव 380 से 385 डॉलर प्रति टन है। केंद्र सरकार चीनी के निर्यात पर 10.50 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी दे रही है। विश्व बाजार में चीनी की कुल उपलब्धता कम मानी जा रही है जिससे आगे निर्यात सौदों में तेजी आने का अनुमान है। ........ आर एस राणा

चालू वित्त वर्ष में बासमती चावल का निर्यात 15 फीसदी तक घटने की आशंका

आर एस राणा
नई दिल्ली। ईरान की आयात मांग नहीं होने के कारण चालू वित्त वर्ष में बासमती चावल के निर्यात में 12 से 15 फीसदी तक कमी आने की आशंका है। इसका सीधा असर बासमती धान के किसानों पर पड़ रहा है। उत्पादक मंडियों में पूसा बासमती धान 1,121 की कीमत घटकर शनिवार को 2,750 से 2,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गई, जबकि पिछले साल इसके दाम 3,150 से 3,200 रुपये प्रति क्विंटल थे।
एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारतीय बासमती चावल का ईरान सबसे बड़ा आयातक देश है तथा ईरान में भारतीय निर्यातकों के पहले करीब 1,500 करोड़ रुपये फंसे हुए हैं इसलिए निर्यातक भी नए निर्यात सौदे नहीं कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि चालू वित्त 2019-20 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान बासमती चावल के निर्यात में 11.33 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 18.70 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 20.82 लाख टन का हुआ था। गैर-बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में घटकर 25.17 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 38.68 लाख टन का हुआ था।
ईरान ने पिछले वर्ष में 14.83 लाख टन बासमती चावल का किया था आयात
एपीडा के अनुसार वित्त वर्ष 2018—19 में ईरान ने भारत से 14.83 लाख टन बासमती चावल का आयात किया था, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017—18 में 8.77 लाख टन का ही आयात किया था। उन्होंने बताया कि सितंबर में बासमती चावल का निर्यात घटकर 2.05 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल सितंबर में इसका निर्यात 2.28 लाख टन का हुआ था। गैर बासमती चावल का निर्यात सितंबर में घटकर 3.52 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल सितंबर में गैर बासमती चावल का निर्यात 5.39 लाख टन का हुआ था।
धान की कीमतें पिछले साल की तुलना में कम
कैथल के धान कारोबारी रामनिवाश खुरानियां ने बताया कि मंडियों में पूसा बासमती 1,121 और डीपी धान की दैनिक आवक बढ़ रही है जबकि पूसा 1,509 धान की आवक कम होने लगी है। चावल मिलों की मांग कम होने के कारण मंडी में पूसा 1,121 धान के भाव घटकर 2,750-2,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गए, जबकि पिछले साल इसके दाम 3,150 से 3,200 रुपये प्रति क्विंटल थे। इसी तरह से डीपी धान के भाव अच्छी क्वालिटी के 2,500 रुपये और पूसा बासमती 1,509 धान के भाव 2,400 से 2,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। पूसा 1,121 बासमती चावल सेला का भाव 5,300 से 5,400 रुपये और पूसा बासमती 1,509 चावल सेला का भाव 4,700 रुपये प्रति क्विंटल रहा।.............  आर एस राणा