कुल पेज दृश्य

28 अगस्त 2019

ई-कॉमर्स कंपिनयों के लिए उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत दिशानिर्देश होंगे अनिवार्य-पासवान

आर एस राणा
नई दिल्ली। उपभोक्ता हितों की रक्षा के लिए नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए तैयार किए गए दिशानिर्देशों को अनिवार्य किया जाएगा तथा उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ नियामक प्राधिकरण द्वारा कड़ी कार्रवाई की जायेगी। ई-कॉमर्स के लिए दिशानिर्देशों का प्रारुप राज्यों को भेजा गया है।
खाद्य एवं आपूर्ति उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान ने मंगलवार को दिल्ली में कहा कि देश में ई-कॉमर्स कारोबार तेजी से बढ़ रहा है, तथा बड़ी संख्या में लोग इससे सामान मंगाते हैं। कई बार ग्राहकों के साथ अनियमितता बरती जाती है और इससे लोगों को परेशानी होती है। उन्होंने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण कानून से संबंधित नियम इस वर्ष दिसम्बर तक तैयार हो जायेंगे। उन्होंने कहा कि इस विधेयक को संसद के पिछले सत्र में पारित किया गया था। सांसदों के साथ विचार-विमर्श के बाद संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि नियमों को लेकर सुझाव देने के लिए लोगों को 15 दिसंबर तक का समय दिया गया है। कानून के अनुरुप ही नियम बनाये जायेंगे।
उन्होंने कहा कि ई-कॉमर्स पर दिशानिर्देशों को नए उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत नियमों का हिस्सा बनाया जाएगा। पासवान ने कहा कि प्रत्येक सांसद का मानना है कि नए कानून के तहत ई-कॉमर्स गाइडलाइन को नियमों के हिस्से के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। हम उनके सुझावों को स्वीकार करेंगे।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के पास कार्यवाही का अधिकार
प्रमुख दिशानिर्देशों के बीच ई-कॉमर्स कंपनियों को भी यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ग्राहकों को उचित कीमत पर उत्पाद उपलब्ध हो, तथा आपस में एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो। इस अवसर पर उपभोक्ता मामलों के सचिव अविनाश के श्रीवास्तव ने कहा कि केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) जोकि नए कानून के तहत उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा, संरक्षण और लागू करने के लिए स्थापित किया जाएगा वहीं ई-कॉमर्स फर्मों द्वारा कानून का उल्लंघन करने पर कार्रवाई भी करेगा। उन्होंने कहा कि उपभोक्ता अदालतों के पास उल्लंघनकर्ताओं फर्मों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की शक्तियां होंगी।
भ्रामक विज्ञापनों पर जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान
संसद ने हाल ही में उपभोक्ता संरक्षण कानून, 1986 को प्रतिस्थापित करने के लिए 'उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019' को मंजूरी दी थी। इसमें उपभोक्ता विवादों के निपटारे की नई प्रक्रिया का प्रावधान है। इसमें मिलावट और भ्रामक विज्ञापनों के लिए जेल भेजने सहित कठोर दंड के प्रावधान किये गये हैं। भ्रामक विज्ञापनों के बारे में पासवान ने कहा कि निर्माताओं के लिए जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। मशहूर हस्तियों के लिए जेल का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन यदि वे भ्रामक विज्ञापन करेंगे तो उनको एक साल तक प्रतिबंधित किया जायेगा और दूसरी बार भी ऐसा करते हैं तो उन पर जुर्माना लगाया जा सकता है ।
विधेयक में स्वास्थ्य सेवाओं को शामिल नहीं किया गया है
उन्होंने कहा कि विधेयक में स्वास्थ्य सेवाओं को शामिल नहीं किया गया था। राज्यसभा में कुछ सदस्यों ने स्वास्थ्य सेवाओं को शामिल करने का विरोध किया था। उन्होंने कहा कि कम्पनी अपने उत्पाद को लेकर जो दावा करती हैं यदि उस पर खरी नहीं उतरती है तो उसे जेल तक की सजा हो सकती है। इस कानून के तहत केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) की स्थापना के प्रावधान को क्रांतिकारी कदम करार देते हुए पासवान ने कहा कि इस कानून को जरूरी ताकत दी गयी है। उन्होंने कहा कि यह प्राधिकरण किसी भी उपभोक्ता मामलों का अपनी ओर से संज्ञान ले सकता है, जांच शुरू कर सकता है और उपयुक्त कार्रवाई कर सकेगा।...........  आर एस राणा

खरीफ में समर्थन मूल्य पर 416 लाख टन चावल खरीद का लक्ष्य, पिछले साल से 12.50 फीसदी ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2019-20 में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 416 लाख टन चावल की खरीद का लक्ष्य तय किया है। यह पिछले साल के लक्ष्य 369.75 लाख टन से 12.50 फीसदी ज्यादा है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पिछले खरीफ में लक्ष्य तो 369.75 लाख टन का था लेकिन खरीद हुई 440.03 लाख टन की। उन्होंने बताया कि 2018-19 खरीफ में 10.21 करोड़ टन चावल का रिकार्ड उत्पादन का हुआ है। एक साल पहले यह 9.71 करोड़ टन था।
पंजाब और हरियाणा से खरीद का लक्ष्य ज्यादा
उन्होंने बताया कि पहली अक्टूबर 2019 से शुरू होने वाले खरीफ विपणन सीजन 2019-20 में प्रमुख उत्पादक राज्य पंजाब से चावल की खरीद का लक्ष्य 114 लाख टन और हरियाणा से 40 लाख टन तय किया गया है। यहां पिछले खरीफ सीजन में क्रमश: 113.34 और 39.41 लाख टन चावल की खरीद की गई थी जबकि लक्ष्य था 114 और 39.75 लाख टन का। अन्य राज्यों में आंध्र प्रदेश से 40 लाख टन, छत्तीसगढ़ से 48 लाख टन और ओडिशा से 34 लाख टन का लक्ष्य है। पिछले खरीफ सीजन में इन राज्यों से क्रमश: 48.04 लाख टन, 39.71 लाख टन और 43.83 लाख टन चावल की खरीद हुई थी। तेलंगाना से 30 लाख टन, उत्तर प्रदेश से 33 लाख टन और पश्चिम बंगाल से 23 लाख टन खरीद का लक्ष्य है। पिछले खरीफ में यहां क्रमशः 51.86 लाख टन, 32.33 लाख टन और 17.21 लाख टन चावल की खरीद की गई थी। अन्य राज्यों में बिहार से 12 लाख टन और मध्य प्रदेश से 14 लाख टन चावल की खरीद का लक्ष्य तय किया है। पिछले खरीफ सीजन में इन राज्यों से क्रमश: 9.49 लाख टन और 13.95 लाख टन चावल की खरीद की गई थी।
धान का एमएसपी 65 रुपये बढ़ाया था
केंद्र सरकार ने चालू खरीफ विपणन सीजन के लिए ए ग्रेड धान का एमएसपी 1,835 रुपये और सामान्य ग्रेड धान का 1,815 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पिछले खरीफ में ग्रेड ए धान का एमएसपी 1,770 रुपये और सामान्य किस्म के धान का 1,750 रुपये प्रति क्विंटल था।
केंद्रीय पूल में 275.50 लाख टन चावल का रिकार्ड स्टॉक
केंद्रीय पूल में पहली अगस्त को रिकार्ड 275.50 लाख टन चावल का स्टॉक मौजूद है। पिछले साल पहली अगस्त को केवल 218.55 लाख टन चावल का स्टॉक था। कृषि मंत्रालय के अनुसार धान की रोपाई चालू खरीफ में 6.43 फीसदी पिछड़ कर अभी तक केवल 334.92 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 357.97 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।...........   आर एस राणा

केंद्रीय पूल से दलहन एवं तिलहन की बिक्री बढ़ायेगी सरकार-पासवान

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्रीय पूल से खुले बाजार में दलहन और तिलहन की बिक्री बढ़ाई जायेगी। केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्री रामविलास पासवान टवीट कर कहा सरकार के पास भारी मात्रा में दलहन एवं तिलहन का स्टॉक है। हमने कृषि मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा है कि नाफेड के माध्यम से खरीदे हुए दलहन एवं तिलहन की जिसमें खासकर सरसों एवं चने की बाजार में तुरंत प्रभाव से बिक्री की जाए जिससे उपभोक्ता को उचित मूल्य पर दाल एवं तेल मिल सके।
राज्यों को निर्देश देकर दलहन की स्टॉक सीमा भी तय की जाएगी
उन्होंने कहा कि सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस के माध्यम से भी दालों की आपूर्ति कर रही है एवं सरकार के पास बहुत अधिक मात्रा में दलहन एवं तिलहन का स्टॉक है। आने वाले समय में देश में दाल एवं तेल की कमी देखने को नहीं मिलेगी। जरूरत पड़ने पर राज्यों को निर्देश देकर दलहन की स्टॉक सीमा भी तय की जाएगी।
सरकार जमाखोरों पर तुरंत प्रभाव से कार्रवाई करेगी
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों से बढ़ती हुई दालों एवं तेलों की कीमतों पर सरकार की नजर है। इसका मुख्य कारण जमाखोरों ने दालों एवं तेलों में बनावटी तेजी का माहौल बना रखा है। सरकार जमाखोरों पर तुरंत प्रभाव से कार्रवाई करेगी।
उत्पादक मंडियों में चना और सरसों के भाव एमएसपी से नीचे
सूत्रों के अनुसार नेफेड के पास इस समय 25 लाख टन दलहन का और 15 लाख टन तिलहन का स्टॉक है। इसके अलावा करीब 15 लाख दालों का स्टॉक केंद्रीय पूल में है। दलहन के कुल स्टॉक में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी चना की है जबकि तिलहन के कुल स्टॉक में 11 लाख टन सरसों है। नेफेड महाराष्ट्र में चना की बिक्री कम रही है जबकि हरियाणा में सरसों भी बेच रही है। उत्पादक मंडियों में सरसों के भाव 3,800 रुपये और चना के भाव 4,000 से 4,200 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि केंद्र सरकार ने सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,200 रुपये और चना का 4,620 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। .......  आर एस राणा

बारिश की स्थिति में सुधार के बाद भी खरीफ फसलों की बुआई चार फीसदी पिछे

आर एस राणा
नई दिल्ली। महीनेभर से देश के कई अधिकांश क्षेत्रों में अच्छी बारिश होने के बावजूद भी खरीफ फसलों की बुआई 4.06 फीसदी पिछड़ी है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में फसलों की बुआई 975.16 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 997.67 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। खरीफ की प्रमुख फसल धान के साथ ही दलहन की बुआई पिछे चल रही है।
मौसम विभाग के अनुसार चालू मानसूनी सीजन में पहली जून से 23 अगस्त तक देशभर में बारिश सामान्य से एक फीसदी ही कम हुई है। हालांकि जून और मध्य जुलाई तक बारिश सामान्य से कम हुई थी लेकिन मध्य जुलाई के बाद से बारिश की स्थिति में सुधार आया है। पहली जून से 23 अगस्त तक देशभर में सामान्यत: 658.5 मिलीमीटर बारिश होती है जबकि चालू खरीफ में इस दौरान 652.2 मिलीमीटर बारिश हुई है।
धान और दलहन की बुआई पिछड़ी
कृषि मंत्रालय के अनुसार धान की रोपाई चालू खरीफ में 6.43 फीसदी पिछड़ कर अभी तक केवल 334.92 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 357.97 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। दालों की बुआई भी घटकर 124.56 लाख हेक्टेयर में ही पाई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 3.08 फीसदी घटी है। पिछले साल इस समय तक देशभर में 128.53 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हो चुकी थी। खरीफ दलहन की प्रमुख फसल अरहर की बुआई में सुधार आया है, इसकी बुआई 43.43 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस सयम तक 43.26 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। मूंग की बुआई चालू खरीफ में 29.86 और उड़द की 35.10 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 32.65 और 37.43 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
मक्का और बाजरा में बुआई पिछले साल से ज्यादा
मोटे अनाजों की बुआई पिछले साल के 164.09 लाख हेक्टेयर से बढ़कर चालू खरीफ में 165.03 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। मोटे अनाजों में मक्का की बुआई चालू खरीफ में बढ़कर 75.09 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 73.73 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। बाजरा की बुआई भी चालू खरीफ में बढ़कर 65.02 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 62.02 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। ज्वार की बुआई पिछले साल के 17.41 लाख हेक्टेयर से घटकर चालू सीजन में 14.97 लाख हेक्टेयर में ही हुई है।
सोयाबीन और कपास की बुआई बढ़ी, मूंगफली की घटी
तिलहन की बुआई चालू खरीफ में 167.89 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 167.55 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। खरीफ तिलहन की प्रमुख फसल सोयाबीन की बुआई पिछले साल के 111.50 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 112.51 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। मूंगफली की बुआई चालू खरीफ में घटकर 36.03 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 37.55 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। कपास की बुआई चालू खरीफ में पिछले साल के 116.85 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 123.54 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। गन्ने की बुआई चालू खरीफ में 52.37 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 55.47 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।.......... आर एस राणा

23 अगस्त 2019

रुपये के मुकाबले डॉलर की मजबूती से खाद्य तेल और कपास का आयात होगा महंगा

आर एस राणा
नई दिल्ली। एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये का मूल्य शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में 72 रुपये को पार कर गया। डॉलर की मजबूती से खाद्य तेलों के साथ ही कपास का आयात महंगा होगा, हालांकि कपास की आने वाली नई फसल के लिए अच्छा है, इससे नए सीजन में कपास निर्यात की संभावना बढ़ जायेगी।
महीने भर में रुपये के मुकाबले डॉलर 4.14 फीसदी बढ़ चुका है। 25 जुलाई को रुपये के मुकाबले डॉलर 69.16 के स्तर पर था। साल 2019 में पहली बार एक डॉलर का मूल्य 72 रुपये के पार चला गया है। शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 22 पैसे गिरा और 72.03 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया। यह डॉलर के मुकाबले रुपये का 9 महीने का निचला स्तर है।
आयातित खाद्य तेलों 3 से 4 फीसदी होंगे महंगे
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बीवी मेहता ने बताया कि डॉलर की मजबूत से खाद्य तेलों का आयात 3 से 4 फीसदी महंगा हो जायेगा। उन्होंने बताया कि चालू तेल वर्ष 2018-19 (नवंबर-18 से अक्टूबर-19) के अगस्त से अक्टूबर तक करीब 36 से 40 लाख टन खाद्य तेलों का आयात होने का अनुमान है। इनकी अनुमानित कीमत करीब 24,000 से 25,000 करोड़ रुपये बैठेगी, अत: इसमें 3 से 4 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान है। उन्होंने बताया कि चालू तेल वर्ष में खाद्य तेलों का करीब 150 लाख टन का आयात होने का अनुमान है। हालांकि मलेशिया और इंडोनेशिया में पॉम तेल का स्टॉक ज्यादा है, साथ ही घरेलू घरेलू बाजार में भी तिलहन खासकर के सरसों का बकाया स्टॉक ज्यादा है। इसलिए घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में ज्यादा तेजी की संभावना नहीं है।
खाद्य तेलों का आयात 5 फीसदी हो चुका है ज्यादा
उन्होंने बताया कि चालू तेल वर्ष के पहले 9 महीनों नवंबर-18 से जुलाई-19 के दौरान 108.03 लाख टन खाद्य तेलों एवं 4,771,195 टन अखाद्य तेलों का आयात हो चुका है जोकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 5 फीसदी ज्यादा है। उन्होंने बताया कि कुल खपत के करीब 70 फीसदी खाद्य तेलों का आयात किया जा रहा है। आयातित आरबीडी पॉमोलीन का भाव जुलाई में भारतीय बंदरगाह पर 532 और क्रुड पाम तेल का 490 डॉलर प्रति टन रहा। 
कपास की कीमतों में सप्ताहभर में 1,000 रुपये की आई तेजी
नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि रुपये के मुकाबले डॉलर की मजबूती से कपास का आयात महंगा हुआ है। इससे घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में सप्ताहभर में ही करीब 1,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) की तेजी आकर शुक्रवार को अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव 43,000 रुपये प्रति कैंडी हो गया। कपास का भाव अक्टूबर महीने का न्यूयार्क वायदा में 58.87 सेंट प्रति पाउंड है जबकि 5 अगस्त को इसका भाव 58.50 सेंट प्रति पाउंड था। उन्होंने बताया कि डॉलर की मजबूती से कपास की आने वाली फसल को फायदा होगा, तथा निर्यात पड़ते अच्छे लगेंगे। उन्होंने बताया कि चालू फसल सीजन में 46 लाख गांठ कपास (एक गांठ-170 किलोग्राम) का निर्यात ही हुआ है।........... आर एस राणा

पहली तिमाही में दलहन आयात में 57 फीसदी की भारी बढ़ोतरी

आर एस राणा
नई दिल्ली। आयात की मात्रा तय करने के साथ ही आयात शुल्क में बढ़ोतरी करने के बावजूद दालों का आयात घटने के बजाए बढ़ रहा है, जिसका खामियाजा दाल उगाने वाले किसानों पर पड़ रहा है। किसानों को दालें उत्पादक मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे दाम पर बेचनी पड़ रही है।
चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून के दौरान दालों का आयात 57 फीसदी बढ़कर 5.61 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 3.57 लाख टन का ही हुआ था। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार मूल्य के हिसाब से दलहन आयात चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 74 फीसदी बढ़कर 1,681.90 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष 2018-19 की समान अवधि में इनका आयात केवल 969 करोड़ रुपये का ही हुआ था।
पहली तिमाही में ही मटर का आयात तय मात्रा से ज्यादा
केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए मटर के आयात की 2 लाख टन की मात्रा तय कर रखी है। सूत्रों के चालू वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों में ही 2 लाख टन से ज्यादा मटर का आयात हो चुका है। दलहन कारोबारी राधाकिशन गुप्ता ने बताया कि कई आयातकों ने मद्रास हाई कोर्ट से स्टे ले लिया था, जिस कारण आयात तय मात्रा से ज्यादा हो चुका है। उन्होंने बताया कि मटर के साथ मसूर का आयात ज्यादा मात्रा में हुआ है। मसूर पर 30 फीसदी आयात शुल्क होने के बावजूद भी कनाडा की मसूर मुंबई बंदरगाह पहुंच 4,000 से 4,050 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच है। केंद्र सरकार ने मसूर का समर्थन मूल्य 4,475 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए उड़द और मूंग के डेढ़-डेढ़ लाख टन आयात की अनुमति दी हुई है जबकि अरहर के आयात की मात्रा 4 लाख टन है, इसके साथ ही मोजाम्बिक से सार्वजनिक कंपनियों के माध्यम से 1.75 लाख टन के अरहर के आयात की अनुमति दी हुई है। चना के आयात पर 60 फीसदी और मसूर के आयात पर 30 फीसदी आयात शुल्क है।
मसूर और मटर का ज्यादा हो रहा है आयात
कर्नाटक की गुलबर्गा मंडी के दलहन कारोबारी सीएस नादर ने बताया कि इस समय मसूर और मटर का आयात ज्यादा मात्रा में हो रहा है। उन्होंने बताया कि  आयातित अरहर के भाव 715 डॉलर प्रति भारतीय बंदरगाह पर हैं, महीनेभर में इनकी कीमतों में 60 से 65 डॉलर प्रति टन की गिरावट आ चुकी है। आयातित उड़द के भाव भारतीय बंदरगाह पर 535 डॉलर प्रति टन है। आयातित मूंग के भाव भारतीय बंदरगाह पर 830 से 860 डॉलर प्रति टन हैं। उन्होंने बताया कि घरेलू मंडियों में अरहर के भाव 5,600 से 5,700 रुपये और उड़द के भाव 4,600 से 5,200 रुपये प्रति क्विंटल है। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए अरहर का एमएसपी 5,800 रुपये और उड़द का 5,700 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
दलहन उत्पादन में आई कमी
पिछले साल देश में दालों का रिकार्ड उत्पादन हुआ था, जिससे आयात में तो कमी आई थी, लेकिन किसानों को दालें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे भाव पर बेचनी पड़ी थी, जिस कारण किसानों ने दलहन की बुआई कम की जिसका असर उत्पादन पर पड़ा है। फसल सीजन 2018-19 में दालों का उत्पादन घटकर 234 लाख टन ही होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 254.2 लाख टन से 7.94 फीसदी कम है। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना का उत्पादन पिछले साल के 113.8 लाख टन से घटकर 101.3 लाख टन ही होने का अनुमान है। इसी तरह से खरीफ दलहन की प्रमुख फसल अरहर का उत्पादन पिछले साल के 42.9 लाख टन से घटकर 35.9 लाख टन ही होने का अनुमान है। उड़द और मूंग का उत्पादन 32.6 और 23.5 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इनका उत्पादन क्रमश: 34.9 और 20.2 लाख टन का हुआ था। मसूर का उत्पादन पिछले साल के 16.2 लाख टन से घटकर 15.6 लाख टन ही होने का अनुमान है।............  आर एस राणा

दस साल में केवल चार मेगा फूड पार्क ही पूरी तरह से तैयार, 12 में ऑपरेशनल कार्य शुरू

आर एस राणा
नई दिल्ली। जल्‍द खराब होने वाले खाद्य पदार्थों की बर्बादी में कमी लाने एवं उनका मूल्‍यवर्द्धन करने के लिए देश में 10 साल पहले शुरू की गई मेगा फूड पार्क परियोजनाओं की रफ्तार बेहद सुस्‍त है। प्रस्तावित 42 मेगा फूड पार्कों में से अभी तक केवल 4 फूड पार्क ही पूरी तरह से तैयार हुए है, जबकि 12 मेगा फूड पार्को में ऑपरेशनल कार्य तो शुरू हो चुका है लेकिन ये अभी तक पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाए हैं।
मेगा फूड पार्क बनाने की रफ्तार सुस्त 
खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि देशभर में फूड प्रोसेसिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 42 मेगा फूड पार्क को मंजूरी दी हुई है जिसमें से 16 फूड पार्को में काम तो चालू हो गया है लेकिन इनमें से केवल चार मेगा फूड पार्क ही तैयार हुए हैं। उन्होंने बताया कि जो पूरी तरह से तैयार हो चुके हैं, उनमें से एक फूड पार्क उत्तराखंड में पंतजलि फूड एवं हर्बल पार्क प्रा. लिमिटेड है, दूसरा मध्य प्रदेश में इंडस मेगा फूड पार्क प्रा. लिमिटेड है। इसके अलावा एक कर्नाटक में और एक आंध्रप्रदेश में है।
12 मेगा फूड पार्को में ऑपरेशनल कार्य शुरू
उन्होंने बताया कि जो 12 मेगा फूड पार्को में ऑपरेशनल कार्य शुरू हुआ है, उनमें एक पश्चिम बंगाल में, एक उत्तराखंड में, एक त्रिपुरा में, एक राजस्थान में, एक पंजाब में, एक ओडिशा में, दो महाराष्ट्र में, एक हिमाचल प्रदेश में, एक गुजरात में, एक असम में और एक आंध्रप्रदेश में है। उन्होंने बताया कि करीब तीन से चार मेगा फूड पार्को में ऑपरेशनल कार्य चालू साल के अंत तक शुरू होने की उम्मीद है। यूपीए सरकार ने वर्ष 2008-2009 में देशभर में 42 मेगा फूड पार्क शुरू करने की घोषणा की थी।
फूड पार्क की स्‍थापना के पीछे सबसे बड़ा रोड़ा जमीन की अनिवार्यता
सूत्रों के अनुसार मेगा फूड पार्क की स्‍थापना के पीछे सबसे बड़ा रोड़ा जमीन की अनिवार्यता और लागत अधिक होना था। यूपीए सरकार के समय एक फूड पार्क के लिए 50 एकड़ जमीन की अनिवायर्ता थी, जिसे एनडीए सरकार ने घटाकर 25 एकड़ कर दिया। साथ ही निजी कंपनियों के साथ ही राज्य सरकारों को भी इसमें शामिल किया गया। उसके बाद से इनके निर्माण में तेजी आई है। वर्ष 2008 से वर्ष 2014 तक केवल 2 मेगा फूड पार्क ही चालू हुए थे जबकि इस समय 16 फूड पार्क चालू हो चुके हैं, इनमें से 12 में ऑपरेशनल कार्य शुरू हो चुका है तथा चार पूरी तरह से कार्य कर रहे हैं। चालू साल के अंत तक करीब 3 से 4 चार और मेगा फूड पार्को में ऑपरेशनल कार्य शुरू हो जायेगा।
केंद्र सरकार मेगा फूड पार्क के निर्माण में 50 करोड़ रुपये तक दे रही है वित्तीय सहायता 
मेगा फूड पार्को से जहां किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलने में मदद मिलेगी, वहीं जल्द खराब होने वाले खाद्य पदार्थों की बर्बादी में भी कमी आयेगी। कृषि उपज का मूल्यवर्धन होगा, साथ ही इनसे ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर सृजित होंगे। देश में कुल खाद्य उत्पादों का सिर्फ 2 पर्सेंट ही प्रोसेस्ड हो पाता है। अत: इसमें सबसे अहम रोल मेगा फूड पार्को का होगा। मेगा फूड पार्क की स्‍थापना के लिए केंद्र सरकार की तरफ से 50 करोड़ रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जाती है। खेत से लेकर बाजार तक की मूल्‍य श्रृंखला में खाद्य प्रसंस्‍करण हेतु आधुनिक बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है।........  आर एस राणा

दिल्ली में सरकार 23.90 रुपये प्रति किलो की दर से बेचेगी प्याज

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार दिल्ली में सरकारी दुकानों के माध्यम से ग्रेड ए की प्याज की बिक्री 23.90 रुपये प्रति किलो की दर से करेगी। सरकार ने सरकारी दुकानों पर प्याज सप्लाई भी दोगुनी करने का फैसला किया है।
उपभोक्ता मामलों के सचिव अविनाश कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में बुधवार को दिल्ली में हुई उच्चस्तरीय बैठक में यह निर्णया लिया गया। बैठक में सफल के माध्यम से प्याज की खुदरा बिक्री 23.90 रुपये प्रति किलो से करने का फैसला किया गया साथ ही सफल को खुदरा बिक्री के निए प्याज का उठाव दोगुना करने के भी निर्देश दिए गए। नेफेड और एनसीसीएफ भी प्याज की बिक्री इसी भाव करेंगी।
न्यूनतम निर्यात मूल्य लगाने पर विचार
सरकार प्याज की जमाखोरी करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने और न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाने पर विचार कर रही है। बैठक में सम्बद्ध पक्षों के अलावा नेफेड के प्रबंध निदेशक, एनसीसीएफ के प्रबंध निदेशक तथा सफल के प्रतिनिधि और अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। केंद्र सरकार ने प्याज का 50 हजार टन का बफर स्टॉक बनाने का फैसला किया था, जबकि नेफेड ने चालू फसल सीजन 2018-19 में 56 हजार टन प्याज की खरीद महाराष्ट्र और गुजरात की मंडियों से की थी।  
कर्नाटक में बाढ़ से प्याज को नुकसान की आशंका
आजादपुर मंडी में प्याज कारोबारी राजेंद्र शर्मा ने बताया कि कर्नाटक में बाढ़ से प्याज की फसल को नुकसान होने की आशंका के कारण महीनेभर में प्याज की कीमतों में 8 से 10 रुपये प्रति किलो की तेजी आई है। मंगलवार को आजारपुर मंडी में प्याज का भाव 8.50 से 22.50 रुपये प्रति किलो हो गया। महाराष्ट्र की पीलगांव मंडी में मंगलवार को प्याज का भाव 14 से 24 रुपये और लासलगांव मंडी में 9 से 23.71 रुपये प्रति किलो रहा जबकि 22 जुलाई को पीलगांव मंडी में प्याज का भाव 6 से 14.30 रुपये और लासलगांव मंडी में 6.10 से 13.10 रुपये प्रति किलो था। 
उत्पादन अनुमान ज्यादा
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में  प्याज का उत्पादन 1.5 फीसदी बढ़कर 2.36 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 2.32 करोड़ टन का हुआ था। ......... आर एस राणा

किसान पेंशन स्कीम का प्रीमियम पीएम-किसान सम्मान निधि की राशि से काटने की तैयारी

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार किसानों को पेंशन देने के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम के तहत मिलने वाली किस्तों में से प्रीमियम की राशि काटने की तैयारी कर रही है। इससे सरकारी खजाने में ही पैसा रहेगा, साथ ही पेंशन लेने वाले किसानों की संख्या में भी बढ़ोतरी होने का अनुमान है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार केंद्र सरकार के पास प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम के लाभार्थियों का 8 करोड़ से ज्यादा डाटाबेज आ चुका है, इन सभी किसानों को प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना के तहत पेंशन योजना से जुड़ने के लिए संदेश भेजे जा रहे हैं। जिन किसानों का रजिस्ट्रेशन पीएम-किसान स्कीम में रजिस्ट्रेशन हो चुका है वे किसान अंशदान करने का विकल्‍प चुन सकते हैं, इस तरह उसे सीधे अपनी जेब से पैसा नहीं देना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि देशभर में 14.5 करोड़ किसान है, जिसमें से करीब 12 करोड़ किसान प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना के तहत पेंशन योजना के दायरे में आयेंगे।
पीएम-किसान पेंशन योजना है ऐच्छिक
उन्होंने बताया कि पीएम-किसान पेंशन योजना ऐच्छिक है, इसलिए जो किसान प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम से प्रीमियम का भुगतान करना चाहते हैं, उन्हें शपथ पत्र और आधार कार्ड देना अनिवार्य होगा। पीएम-किसान स्कीम में जिन किसानों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है उनकी पेंशन स्कीम का प्रीमियम किसान सम्मान निधि के पैसे में से कट जाएगा, यानी उस किसान को पैसे का भुगतान अपनी जेब से नहीं देना होगा। उन्होंने बताया कि पीएम-केएमवाई का प्रारंभिक नामांकन का काम ‘साझा सेवा केंद्र’ (सीएससी) के माध्यम से किया जा रहा है। नामांकन के लिए किसानों को कोई शुल्क नहीं देना पड़ेगा। संबंधित किसान द्वारा उसके खातों में जमा रकम पर बाद में कोई विवाद खड़ा होता है तो उसका समाधान करने का काम एलआईसी (एलआईसी) का होगा।
पेंशन लेने के लिए पात्र किसानों को हर महीने 55 से 200 रुपये का देना होगा प्रीमियम
पेंशन लेने के लिए 18 से 40 वर्ष के किसानों को 55 रुपये से 200 रुपये का प्रीमियम हर महीने देना होगा। किसानों के योगदान के बराबर ही केंद्र सरकार भी अपनी ओर से योगदान देगी। प्रीमियम की राशि किसानों की उम्र के आधार पर निर्भर करेगी। इस योजना में शामिल किसानों को 60 साल की आयु पूरी होने पर 3,000 रुपये की मासिक पेंशन दी जायेगी। उन्होंने बताया कि किसान की मृत्यु होने की स्थिति में आश्रित को 1,500 रुपये की मासिक पेंशन मिलेगी।
पीएम-किसान सम्मान निधि योजना में 8 करोड़ किसानों का हो चुका है रजिस्ट्रेशन
पीएम-किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत 24 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से की थी। इस योजना के तहत किसानों को साल में तीन किस्तों में 6,000 रुपये दिए जाने हैं। पीएम-किसान सम्मान निधि योजना के तहत देशभर के 8 करोड़ किसानों का रजिट्रेशन हो चुका है तथा पात्र 6.25 करोड़ किसानों को पहली और 3.81 करोड़ किसानों को दूसरी किस्त मिल चुकी है।............  आर एस राणा

20 अगस्त 2019

दलहन उत्पादन में 8 फीसदी कमी की आशंका, आयात पर बढ़ेगी निर्भरता

आर एस राणा
नई दिल्ली। पिछले साल देश में दालों का रिकार्ड उत्पादन हुआ था, जिससे आयात में तो कमी आई लेकिन किसानों को दालें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे भाव पर बेचनी पड़ी थी, जिस कारण किसानों ने दलहन की बुआई कम की जिसका असर उत्पादन पर पड़ा है। फसल सीजन 2018-19 में खाद्यान्न का उत्पादन 28.49 करोड़ टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के लगभग बराबर ही है, लेकिन दालों के उत्पादन में 7.94 फीसदी की कमी आने का अनुमान है। ऐसे में दालों के आयात में बढ़ोतरी होने की आशंका है।
कृषि मंत्रालय के चौथे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में खाद्यान्न का उत्पादन 28.49 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल देश में 29.50 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ था। गेहूं और चावल का तो रिकार्ड उत्पादन होने का अनुमान है लेकिन दालों के उत्पादन में कमी आने की आशंका है।
दालों के उत्पादन में आई कमी
मंत्रालय के अनुसार दालों का उत्पादन चालू फसल सीजन में 234 लाख टन ही होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 254.2 लाख टन से 7.94 फीसदी कम है। दालों की सालाना खपत 240 से 245 लाख टन होती है इसलिए दालों के आयात पर निर्भरता बढ़ने की संभावना है। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना का उत्पादन पिछले साल के 113.8 लाख टन से घटकर 101.3 लाख टन ही होने का अनुमान है। इसी तरह से खरीफ दलहन की प्रमुख फसल अरहर का उत्पादन पिछले साल के 42.9 लाख टन से घटकर 35.9 लाख टन ही होने का अनुमान है। उड़द और मूंग का उत्पादन 32.6 और 23.5 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इनका उत्पादन क्रमश: 34.9 और 20.2 लाख टन का हुआ था। मसूर का उत्पादन पिछले साल के 16.2 लाख टन से घटकर 15.6 लाख टन ही होने का अनुमान है।
गेहूं और चावल का रिकार्ड उत्पादन अनुमान
मंत्रालय के अनुसार चावल का उत्पादन चौथे आरंभिक अनुमान के अनुसार रिकार्ड 11.64 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में इसका उत्पादन 11.27 करोड़ टन का ही हुआ था। इसी तरह से गेहूं का उत्पादन फसल सीजन 2018-19 में रिकार्ड 10.21 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल इसका उत्पादन केवल 9.98 करोड़ टन का ही हुआ था।
मक्का, बाजरा, ज्वार और जौ के उत्पादन अनुमान में कमी
मोटे अनाजों में मक्का का उत्पादन घटकर 272.3 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल मक्का का 287.5 लाख टन का उत्पादन हुआ था। बाजरा का उत्पादन भी पिछले साल के 92.1 लाख टन से घटकर 86.1 लाख टन ही होने का अनुमान है। ज्वार का उत्पादन भी चालू फसल सीजन 2018-19 में घटकर 37.6 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 48 लाख टन का हुआ था। जौ का उत्पादन भी पिछले साल के 17.8 लाख टन से घटकर 17.5 लाख टन ही होने का अनुमान है।
सोयाबीन और सरसों का उत्पादन ज्यादा, मूंगफली का कम
मंत्रालय के चौथे आरंभिक अनुमान के अनुसार तिलहन का उत्पादन फसल सीजन 2018-19 में बढ़कर 322.57 लाख टन होने का अनुमान जबकि इसके पिछले साल इनका उत्पादन 314.59 लाख टन का ही हुआ था। खरीफ तिलहन की प्रमुख फसल सोयाबीन का उत्पादन चालू फसल सीजन में बढ़कर 137.86 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 109.33 लाख टन का ही हुआ था। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों का उत्पादन भी पिछले साल के 84.30 लाख टन से बढ़कर 93.39 लाख टन होने का अनुमान है। हालांकि मूंगफली का उत्पादन फसल सीजन 2018-19 में घटकर 66.95 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल इसका उत्पादन 92.53 लाख टन का हुआ था। केस्टर सीड का उत्पादन भी पिछले साल के 15.68 लाख टन से घटकर 12.15 लाख टन ही होने का अनुमान है।
कपास और जूट के उत्पादन अनुमान में कमी
कपास का उत्पादन फसल सीजन 2018-19 में 12.50 फीसदी घटकर 287.08 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 328.05 लाख टन गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। जूट का उत्पादन भी पिछले साल के 95.91 लाख गांठ (एक गांठ-180 किलोग्राम) से घटकर 93.49 लाख गांठ ही होने का अनुमान है। गन्ने का उत्पादन फसल सीजन 2018-19 में 4,001.57 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन केवल 3,799.05 लाख टन का ही हुआ था।......... आर एस राणा

केंद्र सरकार ने पैराग्वे से 30 हजार टन सस्ते सोया तेल के आयात की दी अनुमति

आर एस राणा
नई दिल्ली। सस्ते खाद्य तेलों के आयात से केंद्र सरकार किसको फायदा पहुंचाना चाहती है। सरकार ने पैराग्वे से 10 फीसदी के आयात शुल्क पर 30 हजार सोया तेल के आयात की मंजूरी दी है, जबकि सोया तेल के आयात पर 35 फीसदी आयात शुल्क है।
विदेश व्यापार महानिदेशलय (डीजीएफटी) द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार पैराग्वे से 10 फीसदी के आयात शुल्क पर 30 हजार सोया तेल का आयात किया जायेगा। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सोपा) के उपाध्यक्ष नरेश गोयनका ने बताया कि सोया तेल के आयात पर 35 फीसदी आयात शुल्क है जबकि सरकार ने पैराग्वे से 10 फीसदी के आयात शुल्क पर आयात को मंजूरी दी है। इसका असर घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और तिलहन की कीमतों पर पड़ेगा।
उत्पादक मंडियों में तिलहन के भाव एमएसपी से नीचे
सस्ते आयात के कारण उत्पादक राज्यों की मंडियों में तिलहन के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बने हुए हैं। उत्पादक मंडियों में सोयाबीन के भाव 3,650 से 3,700 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि केंद्र सरकार ने सोयाबीन का एमएसपी 3,710 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। इसी तरह से सरसों के भाव उत्पादक मंडियों में 3,800 से 3,900 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि सरसों का एमएसपी 4,200 रुपये प्रति क्विंटल है।
जुलाई में 26 फीसदी ज्यादा हुआ था खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात
उद्योग के अनुसार खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात जुलाई में 26 फीसदी बढ़कर 14,12,001 टन का हुआ है जबकि पिछले साल जुलाई में आयात 11,19,538 टन का हुआ था। चालू तेल वर्ष 2018-19 (नवंबर-18 से अक्टूबर-19) के पहले 9 महीनों नवंबर से जुलाई के दौरान खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 5 फीसदी बढ़कर 112,80,972 टन का हुआ है जबकि इसके पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 107,66,076 टन का ही हुआ था। चालू तेल वर्ष के पहले 9 महीनों में 108,03,777 टन का खाद्य तेलों का और 4,77,195 टन का अखाद्य तेलों का आयात हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष में 104,54,489 टन खाद्य तेलों का तथा 3,11,587 टन अखाद्य तेलों का आयात हुआ था।........... आर एस राणा

कर्नाटक में बाढ़ से 22 जिलों में 6.9 लाख हेक्टेयर में फसलों का नुकसान

आर एस राणा
नई दिल्ली। मानसून बारिश सामान्य से ज्यादा होने के कारण कर्नाटक के 22 जिलों के 103 तालूका में 6.9 लाख हेक्टेयर में खरीफ के साथ ही सब्जियों और बागवानी फसलों को नुकसान हुआ है। प्रभावित जिलों में बाढ़ की स्थिति में पहले की तुलना में सुधार तो हुआ है, लेकिन पानी अभी भी भरा हुआ है।
कर्नाटक के कृषि निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आउलुक को बताया कि राज्य के 22 जिलों के 103 तालूका में बाढ़ से खरीफ के साथ सब्जियों और बागवानी फसलों का नुकसान हुआ है। उन्होंने बताया कि अभी तक के आंकलन के अनुसार 6.09 लाख हेक्टेयर में अरहर, मक्का, गन्ना के साथ ही मोटे अनाज और तिलहन की फसलों को नुकसान हुआ है, इसके साथ सब्जियों और बागवानी की फसलों को भी नुकसान है। उन्होंने बताया कि प्रभावित 103 तालूका में बाढ़ की स्थिति में पहले की तुलना में सुधार तो हुआ है लेकिन पानी अभी भी भरा हुआ है। अत: कुल नुकसान का आकलन स्थिति सामान्य होने के बाद ही चलेगा। 
अरहर, मक्का के साथ ही गन्ने और तिलहन की फसले प्रभावित
उन्होंने बताया कि चालू खरीफ में राज्य में दलहन की बुआई 14.75 लाख हेक्टेयर में हुई है जिसमें सबसे ज्यादा अरहर की बुआई 10.85 लाख हेक्टेयर में हुई है। अरहर की फसल में पानी खड़ा रहने से फसल जल्दी खराब होती है, इसलिए अरहर की फसल पर बाढ़ प्रभावित जिलों में ज्यादा असर पड़ने की आशंका है। उन्होंने बताया कि मोटे अनाजों में मक्का और रागी तथा तिलहन की फसलों में मूंग और सोयाबीन के अलावा गन्ने की फसल को भी नुकसान की आशंका है। उन्होंने बताया कि जून और जुलाई में राज्य में बारिश सामान्य से कम हुई थी, जिससे राज्य के कई जिलों में सूखे जैसी स्थिति थी, लेकिन अगस्त में बारिश सामान्य से ज्यादा हुई है। उन्होंने बताया कि नुकसान की भरपाई के लिए बीमा एजेंसियों के साथ कृषि मंत्रालय के अधिकारी सर्वे कर रहे हैं तथा जल्द ही प्रभावित किसानों को नुकसान की भरपाई की जायेगी।   
राज्य के कई जिलों में सामान्य से ज्यादा हुई है बारिश
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार एन आई कर्नाटक में अगस्त के पहले दो सप्ताह में सामान्य से 40 फीसदी और एस आई कर्नाटक में 21 फीसदी बारिश ज्यादा हुआ है। राज्य के बेलगांम में चालू खरीफ में बारिश सामान्य से 119 फीसदी ज्यादा, धारवाड़ में 65 फीसदी ज्यादा और गडग में 66 फीसदी ज्यादा तथा गुलबर्गा में 70 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। मौसम विभाग के अनुसार सोमवार को राज्य के गडग और गुलबर्गा में क्रमश: 1,225 और 213 फीसदी सामान्य से ज्यादा बारिश दर्ज की गई। राज्य के मैसूर में चालू खरीफ में सामान्य से 98 फीसदी, मांडया में सामान्य से 58 फीसदी, दावणगेरे में 42 फीसदी तथा चिकमंगलूर में सामान्य से 24 फीसदी और चामराजनगर में 23 फीसदी बारिश ज्यादा हुई है।
अगले 24 घंटों के दौरान दक्षिणी आंतरिक कर्नाटक में बारिश का अनुमान 
आईएमडी के अनुसार अगले 24 घंटों के दौरान दक्षिणी आंतरिक कर्नाटक में मध्य से भारी बारिश होने का अनुमान है जबकि तटीय कर्नाटक में भी इस दौरान दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सक्रिय रहेगा जिससे हल्की से मध्यम बारिश देखने को मिल सकती है। आईएमडी के अनुसार राज्य पिछले 24 घंटों के दौरान राज्य के चित्रदुर्ग, दावणगेरे, कोलार, मांडया और मैसूर में तेज बारिश हुई।...... आर एस राणा

कृषि जिंसों की उत्पादकता, मार्किटिंग और निर्यात को बढ़ाने से ही किसानों की आय बढ़ेगी-फडणवीस

आर एस राणा
नई दिल्ली। किसानों की आय बढ़ाने के लिए उत्पादकता, मार्किटिंग और निर्यात को बढ़ाना जरुरी है। साथ ही कृषि में नई तकनीक के साथ फूड प्रोसेसिंग को बढ़ावा देने के अलावा आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) में भी बदलाव की जरुरत है। भारतीय कृषि में परिवर्तन के लिए मुख्यमंत्रियों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति' की दूसरी बैठक मुंबई की आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता करते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा तिलहन में जीएम फसलों की खेती के लिए राज्यों से सुझाव मांगे हैं।
बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि किसानों को फसलों के उचित दाम मिले इसके लिए सभी राज्यों में वन मार्किट कैसे बने, और फिर इसकों केसे विश्व स्तर पर जोड़ा जाए। इस पर बैठक में चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) में बदलाव किया जाए या फिर इसे पूरी से समाप्त किया जाए, इस पर भी चर्चा हुई।
एग्री उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने की जरुरत
उन्होंने कहा कि एग्री उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने की जरुरत है। साथ ही आर्गेनिक कृषि उत्पादों के निर्यात की काफी संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि एग्रीकल्चर में नई टेक्नॉलाजी अपनाई जाए, साथ ही किसानों को उच्च उत्पादकता वाले बीज उपलब्ध कराए जाए। खासकर के तिलहन की फसलों में आज भी हम कुल खपत का करीब 65 फीसदी आयात करते हैं, अत: तिलहन में जीएम फसलों के उत्पादन पर राज्य सरकार से सलाह मांगी गई है तथा अगली बैठक में इस पर विचार किया जायेगा। 
फूड प्रोसेसिंग की ग्रोथ, एग्रीकल्चर से ज्यादा होनी चाहिए
उन्होंने बताया कि नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने फूड प्रोसेसिंग को बढ़ावा देने की बात कही है। उन्होंने कहा कि जब तक फूड प्रोसेसिंग की ग्रोथ, एग्रीकल्चर से ज्यादा नहीं होगी तब तक किसानों की आय को नहीं बढ़ा पायेंगे। उन्होंने बताया कि हमारी फूड प्रोसेसिंग की ग्रोथ केवल एक फीसदी है, अत: इसके बढ़ाकर छह से सात फीसदी करने की जरुरत है। इससे किसानों को अपनी फसलों का उचित मूल्य मिल सकेगा। उन्होंने कहां कि बैठक में सबसे ज्यादा जोर कृषि जिंसों की उत्पादकता, मार्किटंग और निर्यात में बढ़ोतरी पर रहा।
किसानों की आय बढ़ाना है मुख्य मकसद
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इस समिति के सदस्य हैं जबकि नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद इस समिति में बतौर सदस्य-सचिव शामिल हुए। मुख्यमंत्रियों की इस बैठक में किसानों की आय बढ़ाने, कृषि कल्याण की योजनाओं और सुझावों पर चर्चा हुई। बैठक के बाद महाराष्ट्र सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि राज्यों में नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट के जरिए एक गतिशील इलेक्ट्रॉनिक मंच प्रदान करने और कृषि में निवेश बढ़ाने पर चर्चा हुई।
कई राज्यों के मुख्यमंत्री हुए शामिल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से कृषि पर गठित मुख्यमंत्रियों की दूसरी बैठक शुक्रवार को नीति आयोग मुंबई में हुई जबकि पहली बैठक, 18 जुलाई को दिल्ली में हुई थी। बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमल नाथ, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के अलावा पंजाब वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल, उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप साही के अलावा ओडिशा के कृषि मंत्री अरुण कुमार साहू ने भाग लिया। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने विडियों कांफ्रेसिंग के माध्यम से भाग लिया।......... आर एस राणा

महाराष्ट्र में बाढ़ से 4.20 लाख हेक्टेयर में 3,500 करोड़ के नुकसान की आशंका

आर एस राणा
नई दिल्ली। पश्चिम महाराष्ट्र में बाढ़ से 4.20 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों को नुकसान होने की आशंका है। राज्य सरकार के अनुसार बाढ़ से करीब 3,500 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है, जिससे राज्य के करीब 10.50 लाख किसान प्रभावित हुए हैं।
राज्य सरकार के कृषि निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आउटलुक को बताया कि बाढ़ से सबसे गन्ना, धान, मक्का, के साथ ही ज्वार और बाजरा के अलावा सब्जियों के साथ ही बागवानी फसलों को भी नुकसान हुआ है। उन्होंने बताया कि बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित कोल्हापुर, सांगली और सतारा में गन्ने के साथ ही अंगूर का उत्पादन ज्यादा होता है इसलिए गन्ने के साथ ही अंगूर की फसल को ज्यादा नुकसान हुआ है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में अंगूर की फसल में बीमारी लगने का डर है, इसलिए प्रभावित क्षेत्रों में किसानों को इसके लिए जागरुक किया जा रहा है। चालू खरीफ में राज्य में गन्ने की बुआई घटकर पहले ही 8.40 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 11 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी।                         
बाढ़ से राज्य के 10.50 लाख किसान प्रभावित
उन्होंने बताया कि मंत्रालय के आरंभिक अनुमान के अनुसार खरीफ फसलों को करीब 3,500 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान है। पहले की तुलना में बाढ़ की स्थिति में सुधार तो हुआ है लेकिन अभी भी कई क्षेत्रों में बाढ़ का पानी भरा हुआ है। अत: स्थिति सामान्य होने के बाद नुकसान का आंकड़ा बढ़ भी सकता है। उन्होंने बताया कि बीमा कंपनियों ने फसलों को हुए नुकसान का आकलन करना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि बाढ़ से कोल्हापुर, सांगली, सतारा, ठाणे, पुणे, नासिक, पालघर, रत्नागिरि, रायगढ़ और सिंधुदुर्ग जिलों में 10.50 लाख किसानों की फसलें प्रभावित हुई है।
मध्य महाराष्ट्र में औसत से 70 फीसदी ज्यादा हुई बारिश
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार अगस्त में राज्य में बारिश सामान्य से 32 फीसदी ज्यादा हुई है, इस दौरान सामान्यत: 685.8 मिलीमीटर बारिश होती है, जबकि पहली अगस्त से 14 अगस्त तक राज्य में 902.3 फीसदी बारिश हुई है। मध्य महाराष्ट्र में इस दौरान बारिश सामान्य से 70 फीसदी ज्यादा हुई है। मध्य महाराष्ट्र पहली अगस्त से 14 अगस्त तक सामान्यत: 503.6 फीसदी बारिश होती है जबकि चालू खरीफ में 857.5 फीसदी बारिश हुई है। हालांकि मराठवाड़ा में अभी भी बारिश सामान्य से 20 फीसदी कम हुई है। 
राज्य सरकार ने केंद्र से मांगे 6,813 करोड़ रुपये
महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र से बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए 6,813 करोड़ रुपये मांगे हैं। इनमें से 2,088 करोड़ रुपये फसलों के नुकसान की भरपाई के लिए किसानों को देने के लिए मांगे गए हैं। राज्य सरकार ने आपदा का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों की एक उपसमिति बनाने का भी फैसला किया है। यह उपसमिति मदद नियमावली तय करेगी। इसकी बैठक सप्ताह में एक बार होगी। ..... आर एस राणा

मानूसनी बारिश में सुधार के बावजूद धान, दलहन की बुआई पिछे

आर एस राणा
नई दिल्ली। अगस्त में मानसूनी बारिश अच्छी होने के बाद भी खरीफ की प्रमुख धान और दलहन की बुआई पिछड़ी है। चालू खरीफ में धान की रोपाई 12.28 फीसदी पिछड़ कर अभी तक केवल 301.40 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 338.43 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। देशभर में खरीफ फसलों की बुआई 4.34 फीसदी पिछड़ कर 926.13 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 966.39 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई हो चुकी थी।
मौसम विभाग के अनुसार चालू मानसूनी सीजन में पहली जून से 16 अगस्त तक देशभर में बारिश सामान्य से दो फीसदी कम हुई है। हालांकि जून और जुलाई में बारिश सामान्य से कम हुई थी लेकिन अगस्त में बारिश की स्थिति में सुधार आया है। पहली जून से 16 अगस्त तक सामान्यत: 604.8 मिलीमीटर बारिश होती है जबकि चालू खरीफ में 595.7 मिलीमीटर ही बारिश हुई है।
दलहन की बुआई 3.63 फीसदी पिछे
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में दालों की बुआई घटकर 120.94 लाख हेक्टेयर में ही पाई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 3.63 फीसदी घटी है। पिछले साल इस समय तक देशभर में 125.24 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हो चुकी थी। खरीफ दलहन की प्रमुख फसल अरहर की बुआई में सुधार आया है, इसकी बुआई 42.17 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस सयम तक 42.14 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मूंग की बुआई चालू खरीफ में 29.03 और उड़द की 33.80 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 32.34 और 36.04 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
मोटे अनाजों की बुआई में हुआ सुधार
मोटे अनाजों की बुआई पिछले साल के 159.94 लाख हेक्टेयर की तुलना में चालू खरीफ में अभी तक 159.46 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। मोटे अनाजों में मक्का की बुआई चालू खरीफ में सुधरकर 73.61 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 73.05 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। बाजरा की बुआई चालू खरीफ में बढ़कर 63.37 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 60.51 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी है। ज्वार की बुआई भी पिछले साल के 17.81 लाख हेक्टेयर से घटकर चालू सीजन में 14.58 लाख हेक्टेयर में ही हुई है।
सोयाबीन, कपास की बुआई बढ़ी, मूंगफली की कम
तिलहन की बुआई चालू खरीफ में अभी तक केवल 163.62 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 164.86 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। तिलहन में सोयाबीन की बुआई पिछले साल के 110.95 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 111.47 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। मूंगफली की बुआई चालू खरीफ में घटकर 35 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 36.16 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। कपास की बुआई चालू खरीफ में पिछले साल के 115.17 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 121.58 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। गन्ने की बुआई चालू खरीफ में 52.30 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 55.45 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।...... आर एस राणा

14 अगस्त 2019

कपास का निर्यात तय लक्ष्य से 4 लाख गांठ घटने की आशंका, उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। विश्व बाजार में कीमतें कम होने के कारण चालू फसल सीजन में कपास का निर्यात तय लक्ष्य 50 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) से घटकर 46 लाख गांठ का ही होने का अनुमान है। चालू खरीफ में कपास के बुआई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है तथा अभी तक मौसम भी फसल के अनुकूल है, इसलिए पहली अक्टूबर 2019 से शुरू होने वाले सीजन में कपास का उत्पादन पिछले साल से ज्यादा ही होने का अनुमान है।
काटन एडवाईजरी बोर्ड (सीएबी) ने पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू फसल सीजन में 50 लाख गांठ कपास के निर्यात का लक्ष्य तय किया था, जबकि 31 जुलाई तक 44.50 लाख गांठ का ही निर्यात हुआ है। सीएबी के अनुसार चालू सीजन में कुल निर्यात 46 लाख गांठ का ही होने का अनुमान है। विश्व बाजार में कपास सस्ती है, इसलिए चालू सीजन में कपास का आयात बढ़कर 31 लाख गांठ होने का अनुमान है। 
आयातित कपास है सस्ती
कपास की निर्यातक फर्म के सी टी एंड एसोसिएट के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि चालू खरीफ में कपास की बुआई में बढ़ोतरी हुई है, तथा मौसम भी फसल के अनुकूल है। अत: आगे भी मौसम ठीक रहा तो चालू सीजन में उत्पादन पिछले साल से ज्यादा ही होगा। उन्होंने बताया कि अहमदाबाद में गुरूवार को शंकर-6 किस्म की कपास का भाव 41,500 से 42,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) रहा। ब्राजील से आयातित कपास के भाव भारतीय बंदरगाह पर 38,000 से 39,000 प्रति कैंडी हैं। घरेलू मंडियों में कपास की नई फसल की आवक सितंबर में बनेगी, तथा अक्टूबर-नवंबर में आवक बढ़ेगी जिससे मौजूदा कीमतों में मंदा तो आयेगा, लेकिन कॉटन कार्पोरेशन आफ इंडिया (सीसीआई) न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद कैसी करेगी। इस पर भी तेजी-मंदी निर्भर करेगी।
चालू सीजन में उत्पादन में आई कमी
कॉटन एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (सीएआई) के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में कपास का उत्पादन घटकर 312 लाख गांठ का हुआ है, जबकि इसके पिछले साल 365 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। जुलाई अंत तक उत्पादक मंडियों में 305.52 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है जोकि कुल उत्पादन का 98 फीसदी है। सीसीआई के पास इस समय कपास का करीब 9.5 से 10 लाख गांठ का बकाया स्टॉक है। 
महाराष्ट्र में बुआई ज्यादा, गुजरात में कम
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में कपास की बुआई बढ़कर 118.73 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 112.60 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। महाराष्ट्र में चालू खरीफ में कपास की बुआई बढ़कर 42.81 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में केवल 39.69 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। हालांकि गुजरात में चालू खरीफ में कपास की बुआई पिछले साल के 26.58 लाख हेक्टेयर से घटकर 24.69 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई है। अन्य राज्यों में तेलंगाना में 17.24 लाख हेक्टयेर में, आंध्रप्रदेश में 4.10 लाख हेक्टेयर में, हरियाणा में 6.76 लाख हेक्टेयर में, कर्नाटक 4.46 लाख हेक्टेयर में, मध्य प्रदेश 6.10 लाख हेक्टयेर में, पंजाब में 4.02 और राजस्थान में 6.44 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है।...... आर एस राणा

राजस्थान और मध्य प्रदेश में तेज बारिश का अनुमान, देशभर में बारिश का आंकड़ा हुआ सामान्य

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार अगले 24 घंटों के दौरान राजस्थान के पूर्वी हिस्से, पश्चिमी मध्य प्रदेश, उत्तरी केरल और उससे सटे तटीय कर्नाटक के कई हिस्सों में मध्यम से भारी बारिश की संभावना है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से, पूर्वी बिहार, कोंकण व गोवा और उत्तर-पूर्वी गुजरात में भी इस दौरान हल्की से मध्यम बारिश के साथ एक-दो स्थानों पर तेज बारिश भी देखी जा सकती है। देशभर में बारिश का आंकड़ा सामान्य हो गया है। 
मौसम की जानकारी देने वाली निजी एजेंसी स्काईमेट के अनुसार मानसून की अक्षीय रेखा इस समय पंजाब से हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तरी तथा पूर्वी मध्य प्रदेश, उत्तरी छत्तीसगढ़, झारखंड और गंगीय पश्चिम बंगाल होते हुए उत्तर-पूर्वी बंगाल की खाड़ी तक फैली हुई है। अगले 24 घंटों के दौरान देश के बाकी हिस्सों में अलग-अलग स्थानों पर हल्की बारिश के साथ एक-दो स्थानों पर मध्यम बारिश होने की भी उम्मीद है।
पिछले 24 घंटों में हुई कई राज्यों में हुई तेज बारिश
पिछले 24 घंटों के दौरान, लक्षद्वीप समूह, विदर्भ के हिस्से और पूर्वी मध्य प्रदेश के हिस्सों में मध्यम से भारी वर्षा के साथ एक-दो स्थानों पर अति भारी बारिश दर्ज की गई। केरल, तटीय कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, ओडिशा के हिस्से, झारखंड, दक्षिणी बिहार, मध्य प्रदेश के बाकी हिस्से, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हल्की से मध्यम बारिश के साथ एक-दो स्थानों पर भारी बारिश भी देखी गई। इसके अलावा, राजस्थान के पूर्वी हिस्से, दिल्ली तथा हरियाणा और पंजाब के हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश हुई । इस बीच, पश्चिमी राजस्थान का मौसम पूरी तरह से शुष्क रहा जबकि, देश के बाकी हिस्सों में अलग-अलग स्थानों पर हल्की बारिश के साथ कहीं-कहीं भारी बारिश देखने को मिली।
जून और जुलाई में सामान्य से कम हुई थी बारिश
मौसम विभाग के अनुसार मानसून शुरूआती दो महीनों जून और जुलाई में कमजोर रहा था, लेकिन अगस्त में कई राज्यों में ज्यादा बारिश हुई। जून में मानसूनी बारिश सामान्य से 33 फीसदी कमी थी, जबकि जुलाई में यह आंकड़ा 9 फीसदी कम था। अगस्त के शुरुआती दो हफ्तों में यह फर्क खत्म हो गया। हालांकि अभी भी देश के 18 फीसदी क्षेत्रफल में बारिश सामान्य से कम है। पहली जून से 13 अगस्त तक देशभर में 567.6 मिलीमीटर बारिश हुई है जबकि इस दौरान सामान्यत: 569.2 मिलीमीटर बारिश होती है।
56 फीसदी क्षेत्रफल में हुई है सामान्य बारिश
आईएमडी के अनुसार देश के 36 सब डिवीजनों में से 56 फीसदी में चालू खरीफ में अभी तक मानसूनी बारिश सामान्य हुई है जबकि 22 फीसदी में सामान्य से ज्यादा हुई है। चार फीसदी क्षेत्रफल में बारिश बहुत ज्यादा हुई है लेकिन 18 फीसदी क्षेत्रफल अभी भी ऐसा है जिसमें बारिश सामान्य से कम हुई है। कई राज्यों कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश आदि के कई जिलों में भारी बारिश से बाढ़ जैसे हालाता बने हुए हैं, जिससे लाखों हेक्टेयर में खरीफ फसलों को भी नुकसान की आशंका है। 
मध्य महाराष्ट्र में बारिश सामान्य से 72 फीसदी ज्यादा
सबसे ज्यादा बारिश वाले सब डिवीजनों की बात करें तो इसमें मध्य महाराष्ट्र, गुजरात रीजन, सौराष्ट्र और कच्छ, पश्चिम मध्य प्रदेश, पूर्वी राजस्थान और कर्नाटक हैं। मध्य महाराष्ट्र में चालू सीजन में सामान्य से 72 फीसदी 856 मिलीमीटर बारिश हुई है, जबकि सामान्यत: यहां 497.4 मिलीमीटर बारिश होती है। इसी तरह से गुजरात रीजन में सामान्य से 22 फीसदी, गुजरात और कच्छ में 24 फीसदी, एन आई कर्नाटक में 41 फीसदी और एस आई कर्नाटक में 21 फीसदी बारिश सामान्य से ज्यादा हुई है। कम वर्षा वाले राज्यों की बात करें तो हरियाणा में बारिश का आंकड़ा सामान्य से 36 फीसदी और झारखंड में 34 फीसदी कम है। हिमाचल प्रदेश में भी अभी तक सामान्य से 25 फीसदी कम और मराठवाड़ा में 20 फीसदी बारिश सामान्य से कम दर्ज की गई।.......... आर एस राणा

जुलाई में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 26 फीसदी बढ़ा, तिलहन की कीमतों पर असर

आर एस राणा
नई दिल्ली। खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात जुलाई में 26 फीसदी बढ़कर 14,12,001 टन का हुआ है जिसका असर घरेलू बाजार में तिलहन की कीमतों पर भी पड़ रहा है। उत्पादक मंडियों में सरसों के भाव 3,775 से 3,800 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि केंद्र सरकार ने सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,620 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के अनुसार जुलाई में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात बढ़कर 14,12,001 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनका आयात 11,19,538 टन का हुआ था। केंद्र सरकार द्वारा पांच महीने पहले मलेशिया से आयातित क्रुड पॉम तेल और रिफाइंड तेल के आयात शुल्क में अंतर कम होने के कारण रिफाइंड तेल के आयात में भारी बढ़ोतरी हुई है, जिसका असर घरेलू बाजार में तिलहन की कीमतों पर तो पड़ा ही है, साथ ही घरेलू उद्योग पर भी इसका असर पड़ रहा है। 
चालू तेल वर्ष के पहले 9 महीनों में आयात 5 फीसदी ज्यादा
एसईए के अनुसार चालू तेल वर्ष 2018-19 (नवंबर-18 से अक्टूबर-19) के पहले 9 महीनों नवंबर से जुलाई के दौरान खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 5 फीसदी बढ़कर 112,80,972 टन का हुआ है जबकि इसके पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 107,66,076 टन का ही हुआ था। चालू तेल वर्ष के पहले 9 महीनों में 108,03,777 टन का खाद्य तेलों का और 4,77,195 टन का अखाद्य तेलों का आयात हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष में 104,54,489 टन खाद्य तेलों का तथा 3,11,587 टन अखाद्य तेलों का आयात हुआ था।
आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट
चालू तेल वर्ष के पहले 9 महीनों अप्रैल से जुलाई के दौरान आरबीडी पॉमोलीन तेल का आयात 40 फीसदी बढ़कर 20,90,381 टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इसका आयात 14,95,674 टन का ही हुआ था। आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में जून के मुकाबले जुलाई में गिरावट दर्ज की गई है। जुलाई में आरबीडी पॉमोलीन का भाव भारतीय बंदरगाह पर घटकर 532 डॉलर प्रति टन रह गया जबकि जून में इसका भाव 539 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रुड पॉम तेल का भाव जून के 492 डॉलर प्रति टन से घटकर जुलाई में 490 डॉलर प्रति टन रह गया।............ आर एस राणा

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में एग्री उत्पादों का निर्यात 10.60 फीसदी की घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। किसानों की आय बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार एग्री उत्पादों का निर्यात बढ़ाना चाह रही है, लेकिन एग्री उत्पादों का निर्यात बढ़ने के बजाए उल्टा घट रहा है। चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही अप्रैल से जून के दौरान एग्री उत्पादों के निर्यात में 10.60 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 28,910 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 32,341 करोड़ रुपये का हुआ था।
एपीडा के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में गैर-बासमती चावल के निर्यात में 43.51 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 11.94 लाख टन का ही हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 21 लाख टन गैर-बासमती चावल का निर्यात हुआ था। बासमती चावल का निर्यात इस दौरान 1.79 फीसदी घटकर 11.56 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में बासमती चावल का 11.73 लाख टन का निर्यात हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में गैर-बासमती चावल का निर्यात 3,379 करोड़ रुपये और बासमती चावल का 8,728 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात क्रमश: 5,982 और 8,610 करोड़ रुपये का हुआ था।  
बीफ के निर्यात में आई कमी, ग्वार गम उत्पादों का भी कम
बीफ का निर्यात चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में घटकर 2,75,398 टन का 5,467 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 2,76,450 टन का 5,636 करोड़ रुपये का हुआ था। ग्वार गम उत्पादों का निर्यात पिछले वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही अप्रैल से जून के 1,35,210 टन से घटकर चालू वित्त वर्ष में 1,27,700 टन का ही हुआ है। मूल्य के हिसाब से इनका निर्यात पिछले वित्त वर्ष के 1,239 करोड़ रुपये से घटकर 1,142 करोड़ रुपये का ही हुआ था।
फलों के निर्यात में सुधार, सब्जियों का घटा
ताजे फलों के निर्यात में जरुर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सुधार हुआ है, लेकिन सब्जियों के निर्यात में कमी आई है। अप्रैल से जून 2019-20 के दौरान फ्रेस फलों का निर्यात मात्रा में 1,99,376 टन का 1,337 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 1,87,246 टन का 1,376 करोड़ रुपये का हुआ था। सब्जियों का निर्यात चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 6,67,249 टन का 1,270 करोड़ रुपये मूल्य का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 7,76,094 टन का 1,337 करोड़ रुपये का हुआ था।
दालों के साथ डेयरी उत्पादों का निर्यात रहा कम
दालों का निर्यात भी चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में घटकर 45,344 टन का 289 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 1,01,678 टन का 629 करोड़ रुपये मूल्य का हुआ था। प्रोसेसस सब्जियों का निर्यात जरुरत चालू वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों में बढ़कर 54,001 टन का 506 करोड़ रुपये मूल्य का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 50,694 टन का 436 करोड़ रुपये मूल्य का हुआ था। डेयरी उत्पादों का निर्यात चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में घटकर 33,911 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 35,698 टन का हुआ था। ..... आर एस राणा

11 अगस्त 2019

जुलाई में डीओसी के निर्यात में 23 फीसदी की भारी गिरावट

आर एस राणा
नई दिल्ली। विश्व बाजार में कीमतें कम होने के कारण जुलाई में डीओसी के निर्यात में 23 फीसदी की भारी गिरावट आकर कुल निर्यात 1,66,301 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल जुलाई में इनका निर्यात 2,15,716 टन का हुआ था। चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले चार महीनों में डीओसी के निर्यात में 12 फीसदी की कमी दर्ज की गई।
साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के अनुसार विश्व बाजार डीओसी की कीमतें नीचे बनी हुई है जबकि घरेलू बाजार में सीड के भाव उंचे होने के कारण निर्यात पड़ते कम लग रहे हैं। जुलाई में सरसों डीओसी के निर्यात में तो बढ़ोतरी हुई है, लेकिन सोयाबीन, केस्टर और राइसब्रान डीओसी के निर्यात में कमी आई है। सरसों डीओसी का निर्यात जुलाई में बढ़कर 93,837 टन का हुआ है जबकि पिछले साल जुलाई में इसका निर्यात केवल 71,064 टन का ही हुआ था। सोया डीओसी का निर्यात जुलाई में घटकर केवल 26,006 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल जुलाई में इसका निर्यात 62,524 टन का हुआ था।
डीओसी का निर्यात पहले चार महीनों में 12 फीसदी घटा
एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले चार महीनों अप्रैल से जुलाई के दौरान डीओसी का निर्यात 12 फीसदी घटकर 8,51,070 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 9,66,874 टन का हुआ था। इस दौरान सोया डीओसी का निर्यात 1,82,631 टन, सरसों डीओसी का निर्यात 3,58,426 टन और केस्टर डीओसी का निर्यात 2,29,820 टन का हुआ है।
सोया डीओसी के भाव कम, सरसों के ज्यादा
भारतीय बंदरगाह पर सोया डीओसी के भाव जुलाई में औसतन 440 डॉलर प्रति टन रहे जबकि पिछले साल जुलाई में इसके भाव 433 डॉलर प्रति टन थे। हालांकि सरसों डीओसी के भाव चालू वित्त वर्ष के जुलाई में 220 डॉलर प्रति टन रहे जबकि पिछले साल जुलाई में इसका भाव 217 डॉलर प्रति टन था। केस्टर डीओसी का भाव पिछले साल के जुलाई के 79 डॉलर से बढ़कर चालू वित्त वर्ष के जुलाई में 118 डॉलर प्रति टन हो गया। एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष में जहां दक्षिण कोरिया और ईरान की डीओसी में आयात मांग ज्यादा रही है, वहीं वियतनाम, थाइलैंड और ताइवान की आयात मांग कम रही है। ...... आर एस राणा

भारतीय चावल निर्यातकों की ईरान में 1,500 करोड़ की पैमेंट फंसी, नए निर्यात सौदों पर असर

आर एस राणा
नई दिल्ली। ईरान में भारतीय चावल के निर्यातकों की करीब 1,500 करोड़ रुपये की राशि फंस गई है, जिसका असर नए निर्यात सौदों पर भी पड़ रहा है। ईरान, भारत से बासमती चावल का सबसे बड़ा आयातक देश है तथा वित्त वर्ष 2018-19 में ईरान ने भारत से 14.83 लाख टन का बासमती चावल का आयात किया था।
ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन (एआईआरईए) के अध्यक्ष वितय सेतिया ने आटलुक को बताया कि पिछले दो महीने से चावल निर्यातकों की पैमेंट नहीं आ रही है जिस कारण पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के निर्यातकों की ईरान में करीब 1,500 करोड़ रुपये की राशि फंस गई है। उन्होंने बताया कि इसके समाधान के लिए हमने ईरान स्थित भारतीय दूतावास को पत्र लिखकर, जल्द ही हल निकालने की मांग की है। उन्होंने बताया की पुरानी पेमेंट फंसने के कारण निर्यातक नए निर्यात सौदे भी नहीं कर रहे हैं। मामला ईरान और भारत सरकार के बीच का है। इसलिए निर्यातक कुछ करने की स्थिति में भी नहीं हैं। उन्होंने बताया कि चावल उत्पादन में चीन के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है लेकिन निर्यात के मामले में भारत विश्व में नम्बर वन है।
कच्चे तेल की एवज में हो रहा था चावल का भुगतान
उन्होंने बताया कि ईरान से पहले चावल का भुगतान डालर में होता था, लेकिन अमेरिका द्वारा ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगा देने के बाद, डॉलर में भुगतान बंद हो गया था। इसके बाद भारत ईरान से कच्चा तेल मंगाता है, उसकी एवज में जो भुगतान होता था, इसमें से चावल निर्यातकों को भुगतान कर दिया जाता था। यह सिस्टम कुछ समय तो ठीक चला, लेकिन दो माह से इसमें दिक्कत आ गई है। ईरान की ओर से इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया जा रहा है। हालांकि ईरान की रकम भारतीय बैंकों में जमा है। बस उन्हें इसे निर्यातकों को देने की इजाजत भर देनी है जिसमें देरी होने से निर्यातकों को परेशानी उठानी पड़ रही है।
वित्त वर्ष 2018-19 में ईरान ने 14.83 लाख टन चावल का किया था आयात
भारत से निर्यात किए गए चावल का भुगतान यहां के बैंक आइडीबीआइ और यूको बैंक के माध्यम से हो रहा था, लेकिन पिछले 55 से 60 दिनों से भुगतान का संकट आया है। ईरान, भारतीय बासमती चावल का सबसे बड़ा आयातक देश है। एपीडा के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में ईरान ने भारत से 14.83 लाख टन 10,790 करोड़ रुपये का बासमती चावल का आयात किया था, जबकि वित्त वर्ष 2018-19 में देश से बासमती चावल का कुल निर्यात 44.14 लाख टन का 32,804 करोड़ रुपये मूल्य का हुआ था।.........  आर एस राणा

03 अगस्त 2019

पेंशन लेने के लिए किसानों को देना होगा प्रीमियम, 15 अगस्त से होगी शुरूआत

आर एस राणा
नई दिल्ली। किसानों को पेंशन लेने के लिए प्रीमियम देना होगा, जिसकी शुरूआत केंद्र सरकार 15 अगस्त से करने जा रही है। प्रधानमंत्री किसान पेंशन योजना के लिए 29 साल के किसान को 100 रुपये महीना प्रीमियम देना होगा, इतना ही प्रीमियम केंद्र सरकार वहन करेगी। कृषि सचिव ने राज्य सरकारों को पत्र लिखकर स्कीम को लागू करने के लिए मैकेनिज्म तैयार करने के निर्देश दिए हैं। योजना के तहत भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) किसानों के पेंशन फंड को मैनेज करेगा। इस पेंशन स्कीम के तहत किसानों को 60 साल की आयु के बाद 3,000 रुपये मासिक बतौर पेंशन देने का प्रा‌वधान किया गया है। 
पहले तीन साल में 5 करोड़ लाभार्थियों को शाामिल करने का लक्ष्य
कृषि मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार किसान—पेंशन स्कीम के ड्राफ्ट को अंतिम रूप दे दिया गया है। वित्त मंत्रालय के साथ ही कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने मिलकर ड्राफ्ट तैयार किया है। इस योजना के तहत पहले तीन साल में 5 करोड़ लाभार्थियों को शाामिल करना है। इससे सरकारी खजाने पर करीब 10,774.5 करोड़ रुपये सालाना खर्च आयेगा।
किसानों को देना होगा आधा प्रीमियम
प्रधानमंत्री-किसान पेंशन योजना के तहत लाभार्थी के योजना से जुड़ने के समय औसत उम्र 29 साल है तो उसे 100 रुपये हर महीने योगदान देना होगा। इसका मतलब है कि अगर लाभार्थी की उम्र 29 से कम है तो उसे योगदान कम देना होगा, वहीं अगर 29 से अधिक उम्र है तो किसान को प्रीमियम भी ज्यादा देना होगा। केंद्र सरकार भी इसमें इतना ही योगदान देगी। किसान पेंशन योजना के लिए 18 से 40 साल तक के किसान आवेदन कर सकेंगे। इस स्कीम में 60 साल की आयु के बाद किसानों को 3,000 रुपये तक प्रति माह पेंशन मिलेगी। किसानों के लिए ये स्कीम पूरी तरह से स्वैच्छिक होगी। प्रीमियम का आधा हिस्सा किसान और आधा हिस्सा सरकार वहन करेगी। अगले हफ्ते से इसके लिए रजिस्ट्रेशन की शुरुआत हो जायेगी।
इसका पूरा खर्च केंद्र सरकार उठायेगी, राज्यों पर नहीं डाली जायेगी जिम्मेदारी
कृषि मंत्रालय के अनुसार इस स्कीम को लागू करने के लिए राज्य सरकारों को पत्र लिखा है। वत्र में राज्यों को कहा गया है कि वे ज्यादा से ज्यादा किसानों को इसका लाभ पहुंचाने के लिए इस स्कीम से जोड़े। केंद्र सरकार इसका पूरा खर्च उठायेगी, तथा राज्य सरकारों पर किसी प्रकार का वित्तीय बोझ नहीं डाला जाएगा। नई योजना के बारे में राज्य के कृषि मंत्रियों के साथ विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चर्चा के दौरान केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जितनी जल्दी हो सके, इसे लागू करने को कहा था।...........  आर एस राणा