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24 जुलाई 2019

केंद्रीय पूल में दलहन का रिकॉर्ड 40 लाख टन का स्टॉक, यह सूखे से निपटने के लिए काफीः नेफेड

आर एस राणा
नई दिल्ली। मानसून पूरे देश में पहुंच चुका है, इसके बावजूद आधे से ज्यादा हिस्सा सूखे का सामना कर रहा है। दलहन उत्पादन पर इसका असर पड़ने की आशंका हैं। हालांकि केंद्रीय पूल में दलहन का रिकार्ड 40 लाख टन का स्टॉक (15 लाख टन बफर को मिलाकर) है। दलहन, तिलहन और प्याज की खरीद, राज्यों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में सस्ती दालों के आवंटन और गुजरात में मूंगफली खरीद में हुई धांधली जैसे संगीन मसलों पर राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (नेफेड) के प्रबंध निदेशक संजीव कुमार चड्डा से बातचीत के प्रमुख अंश :-
नेफेड ने पास इस समय दलहन और तिलहन के स्टॉक की स्थिति क्या है?
-केंद्रीय पूल में इस समय दालों का रिकॉर्ड 40 लाख टन का स्टॉक है। इसके अलावा केंद्र सरकार के पास दलहन का 15 लाख टन का बफर स्टॉक भी है। नेफेड के पास इस समय 25 लाख टन दलहन का और 15 लाख टन तिलहन का स्टॉक है यह सूखे जैसी आशंका से निपटने के लिए पर्याप्त है। निगम के पास दलहन के कुल स्टॉक में करीब 20 लाख टन चना है। बाकी मूंग, उड़द, मसूर और अरहर का पांच लाख टन का स्टॉक है। तिलहनी फसलों में सरसों का 11 लाख टन एवं अन्य का तिलहनी फसलों का चार लाख टन का स्टॉक है।
रबी सीजन के दलहन और तिलहन की खरीद पूरी हो गई या अभी चल रही है?
-रबी सीजन 2019 के तहत इस समय केवल ओडिशा से समर्थन मूल्य पर खरीद चल रही है। वह भी आखिरी दौर में है। अन्य राज्यों में खरीद बंद हो चुकी है। 
पीएम आशा के तहत रबी 2019 में दलहन और तिलहन की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद कितनी हुई है, और इससे कितने किसानों को लाभ मिला है?
-रबी सीजन 2018-19 में एमएसपी पर नेफेड ने 8,689.97 करोड़ रुपये मूल्य की 19.63 लाख टन दलहन-तिलहन फसलों की खरीद की है। इससे देशभर के 9,32,283 किसानों को लाभ हुआ है। 
राज्य सरकारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए सस्ती दालों का आवंटन करना था। अभी तक कितने राज्यों ने दालों की खरीद की है, और कितनी मात्रा में?
-पीडीएस एवं अन्य कल्याणकारी योजनाओं में आवंटन के लिए राज्यों को बाजार भाव से 15 रुपये प्रति किलो सस्ती दर पर दालें उपलब्ध कराई जा रही हैं। अभी देश के 10 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने 8.48 लाख टन दालों की खरीद की है। इसमें से 7.26 लाख टन दालों की सप्लाई राज्यों को हो चुकी है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, दमन एवं दीव, त्रिपुरा और केरल ही दालों की खरीद कर रहे हैं।
प्याज का 50 लाख टन का बफर स्टॉक बनाना था। इसकी क्या स्थिति है?
-महाराष्ट्र और गुजरात से अभी तक 56,000 टन प्याज की खरीद हुई है। सरकार लगातार प्याज की कीमतों की निगरानी कर रही है। जरूरत पड़ने पर प्याज की आपूर्ति खुले बाजार में सरकारी दुकानों के माध्यम से की जाएगी।
पिछले साल गुजरात में मूंगफली के बोरो में रेत मिला था, उस पर क्या कार्रवाई हुई? ऐसी घटना दोबारा न हो, इसके लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
-राज्यों से जिंसों की खरीद, राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा की जाती है। स्टॉक गोदाम में रखने के बाद उसकी एफएक्यू रसीद नेफेड को दी जाती है। गुजरात में भी यही हुआ था। मूंगफली की खरीद राज्य की एजेंसियों द्वारा की गई थी, तथा धांधली भी राज्य की एजेंसियों ने ही की। जो एजेंसिया खरीद में शामिल थीं, उन्हें ब्लैक लिस्ट कर दिया गया है साथ ही खरीद नियमों को और कड़ा किया गया है, ताकि भविष्य में इस तरह की घटना दोबारा न हो।
हरियाणा में चालू रबी सीजन में सरसों की खरीद हैफेड ने आढ़तियों के माध्यम से की, जबकि नेफेड सीधे खरीद करती है। ऐसे में आढ़तियों को कमीशन देने से नेफेड ने मना कर दिया था। इस मामले में क्या हुआ है?
-यह मामला निपट गया है, किसानों को समर्थन मूल्य पर की खरीद गई सरसों का भुगतान करना था, इसलिए खरीद की राशि का भुगतान हैफेड को कर दिया गया है। रही बात कमीशन की, तो इस पर फैसला कृषि मंत्रालय को करना है।..... आर एस राणा

मोदी सरकार ने गन्ना किसानों को दिया झटका, नहीं बढ़ाया एफआरपी

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों को झटका देते हुए पहली अक्टूबर 2019 से शुरू होने वाले पेराई सीजन 2019-20 के लिए गन्ने के उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में बढ़ोतरी नहीं करने का फैसला किया है जिससे देश के लाखों किसानों को मायूसी होगी। सरकार ने पेराई सीजन 2019-20 के लिए गन्ने के एफआरपी को पिछले साल के 275 रुपये प्रति क्विंटल पर ही स्थिर रखने का फैसला किया है।

दूसरी तरफ, चीनी मिलों को फायदा पहुंचाने के लिए बफर स्टॉक को 30 लाख टन से बढ़ाकर 40 लाख टन करने का फैसला किया गया है। इस पर 1,674 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है। यह रकम केंद्र सरकार चीनी मिलों को सब्सिडी के रुप में देगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में 10 फीसदी रिकवरी के आधार पर गन्ने का एफआरपी 275 रुपये प्रति क्विंटल पर ही स्थिर रखने का फैसला किया गया। बकाया भुगतान नहीं होने के कारण गन्ना किसान पहले ही मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। पिछले पेराई सीजन में केंद्र सरकार ने गन्ने के एफआरपी में 20 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 275 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था। उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में राज्य सरकारें राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) तय करती हैं।

बफर स्टॉक को बढ़ाकर 40 लाख टन किया

सीसीईए ने 1 अगस्त 2019 से 31 जुलाई 2020 तक एक वर्ष की अवधि के लिए चीनी के बफर स्टॉक को 30 लाख टन बढ़ाकर 40 लाख टन करने का फैसला किया। बाजार की मांग और उपलब्धता को देखते हुए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए इस चीनी का उपयोग किया जा सकेगा।

खाद, डीजल और कीटनाशाक हुए महंगे

उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के देहराचक गांव के गन्ना किसान जोगिंद्र आर्य ने कहा कि पिछले एक साल में खाद, डीजल और कीटनाशकों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई है जबकि केंद्र सरकार ने गन्ने के एफआरपी को पूर्वस्तर पर ही रखा है,​ जिससे हमें घाटा उठाना पड़ेगा। एक तो चीनी मिलें बकाया का भुगतान नहीं कर रही हैं, दूसरा लागत भी बढ़ गई है।

चालू पेराई सीजन का ही 15,222 करोड़ रुपये बकाया

पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) के लिए चीनी मिलों पर किसानों का 15,222 करोड़ रुपये बकाया है। गन्ना (नियंत्रण) आदेश 1966 के तहत चीनी मिलों को गन्ना की खरीद के 14 दिनों के अंदर किसानों को भुगतान करना होता है। यदि मिलें 14 दिनों में भुगतान नहीं कर पाती हैं तो उन्हें किसानों को बकाया पर 15 फीसदी ब्याज का भुगतान भी करना होगा।

सबसे ज्यादा बकाया उत्तर प्रदेश की मिलों पर

चालू पेराई सीजन में 17 जुलाई 2019 तक बकाया में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर किसानों का 9,746 करोड़ रुपये, महाराष्ट्र की चीनी मिलों पर 826 करोड़ रुपये, गुजरात की चीनी मिलों पर 896 करोड़ रुपये, कर्नाटक की चीनी मिलों पर 598 करोड़ रुपये, बिहार की चीनी मिलों पर 856 करोड़ रुपये, पंजाब की चीनी मिलों पर 902 करोड़ रुपये, उत्तराखंड की चीनी मिलों पर 339 करोड़ रुपये और आंध्र प्रदेश की चीनी मिलों पर 236 करोड़ रुपये, तेलंगाना की चीनी मिलों पर 120 करोड़ रुपये बकाया है। इसके अलावा तमिलनाडु की चीनी मिलों पर 348 करोड़ रुपये, छत्तीसगढ़ की चीनी मिलों पर 100 करोड़ रुपये और ओडिशा की चीनी मिलों पर 75 करोड़ रुपये किसानों का बकाया है।

भाजपा सरकार ने गन्ना किसानों के साथ किया धोखा

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह ने कहा कि सरकार ने गन्ने के एफआरपी में बढ़ोतरी नहीं करके गन्ना किसानों के साथ धोखा किया है। उत्तर प्रदेश में राज्य के गन्ना मंत्री ने विधानसभा में बताया था कि गन्ने की उत्पादन लागत 290 रुपये प्रति क्विंटल है, अत: डेढ़ गुना के आधार पर गन्ने का एफआरपी 435 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए। ऐसे में सरकार स्वामीनाथन रिपोर्ट के बजाए मोदी सरकार के आधार पर ही गन्ने का एफआरपी तय कर दे। उन्होंने बताया कि गन्ना किसानों पर तीन तरह की मार पड़ रही है, एक तो बकाया भुगतान नहीं मिल रहा, दूसरा किसानों की आरसी कट रही है। उपर से सरकार ने एफआरपी नहीं बढ़ाने का फैसला किया है।........... आर एस राणा 

20 जुलाई 2019

देशभर के 62 फीसदी हिस्से में बारिश सामान्य से कम, खरीफ की बुआई 42 लाख हेक्टेयर कम

आर एस राणा
नई दिल्ली। मानसूनी सीजन के पौने दो महीने बीतने को है जबकि देश के लगभग 62 फीसदी हिस्से में बारिश सामान्य से कम हुई है जिसका असर खरीफ फसलों की बुवाई पर पड़ा है। चालू खरीफ में फसलों की बुआई 41.66 लाख हेक्टेयर में पिछड़ कर 567.37 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 609.03 लाख हेक्टयेर में हो चुकी थी। इस दौरान दलहन के साथ धान की रोपाई में सबसे ज्यादा कमी दर्ज की गई है। पहली जून से 19 जुलाई तक देशभर में बारिश सामान्य से 18 फीसदी कम हुई है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार देशभर में मानसून पहुंचने के बावजूद बारिश नहीं हो रही है। 12 जुलाई के बाद से फिर से मानसून कमजोर हुआ है। 12 जुलाई तक देशभर में सामान्य से 12 फीसदी कम बारिश हुई थी जबकि चालू पहली जून से 19 जुलाई तक देशभर में मानसूनी बारिश सामान्य से 18 फीसदी कम दर्ज की गई। इस दौरान सामान्यत: 337.4 मिलीमीटर बारिश होती है जबकि चालू खरीफ में 277.9 मिलीमीटर ही बारिश हुई है। देशभर के 36 सब डिवीजनों में से 21 में बारिश सामान्य से कम हुई है।
दालों के साथ ही धान की रोपाई कम
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में दालों की बुआई घटकर 62.19 लाख हेक्टेयर में ही पाई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 11.79 लाख हेक्टेयर कम है। पिछले साल इस समय तक देशभर में 73.98 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हो चुकी थी। खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 139.61 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 154.16 लाख हेक्टेयर में रोपाई हो चुकी थी।
मोटे अनाज में मक्का, बाजरा और ज्वार की बुआई घटी
मोटे अनाजों की बुआई पिछले साल के 110.01 लाख हेक्टेयर की तुलना में चालू खरीफ में अभी तक केवल 101.85 लाख हेक्टेयर में ही हुई है। मोटे अनाजों में मक्का की बुआई चालू खरीफ में अभी तक केवल 55.11 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 55.50 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। बाजरा की बुआई भी चालू खरीफ में घटकर 34.55 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 39.13 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई है। ज्वार की बुआई भी पिछले साल के 11.87 लाख हेक्टेयर से घटकर चालू सीजन में 9.27 लाख हेक्टेयर में ही हुई है।
सोयाबीन की बुवाई कम, मूंगफली की ज्यादा
तिलहन की बुआई चालू खरीफ में अभी तक केवल 110.54 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 118.97 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। तिलहन में सोयाबीन की बुआई पिछले साल के 89.71 लाख हेक्टेयर से घटकर 79.82 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है। मूंगफली की बुआई जरुर चालू खरीफ में बढ़कर 24.01 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 22.65 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। कपास की बुआई भी चालू खरीफ में पिछले साल के 92.70 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 96.35 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। गन्ने की बुआई चालू खरीफ में 50.01 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 52.04 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।............  आर एस राणा

कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए अनुदान और आवंटन जोड़ने पर मुख्यमंत्रियों का जोर

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार को कृषि क्षेत्र में सुधार के साथ राज्यों को वित्त आयोग द्वारा किए गए अनुदान और आवंटन को जोड़ना चाहिए। गुरुवार को इसे लेकर 'भारतीय कृषि के परिवर्तन के लिए मुख्यमंत्रियों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति' की पहली बैठक में चर्चा की गई।
बैठक के बारे में जानकारी देते हुए समिति के संयोजक और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि कृषि और वाणिज्य मंत्रालयों के बीच अधिक समन्वय होना चाहिए क्योंकि एक उत्पादन के साथ काम करता है, जबकि दूसरा मार्केटिंग के साथ।
सभी राज्यों को होना होगा शामिल
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के अनुदान और वित्त आयोग के धन आवंटन को राज्यों में किए गए कृषि सुधारों के साथ जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्यों में एक साथ सुधार सुनिश्चित करना आवश्यक है। फडणवीस ने आगे कहा कि जब तक सभी राज्य इसमें शामिल नहीं होते हैं, तब तक देश में कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव नहीं आएगा।
कमलनाथ ने आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) 1955 को खत्म करने की मांग की
समिति के कुछ सदस्यों ने खाद्य क्षेत्र में आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए), 1955 की उपयोगिता पर भी सवाल उठाये हैं। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) 1955 को खत्म करना चाहते थे। नीति आयोग की भारतीय कृषि में बदलाव के लिए गठित मुख्यमंत्रियों की इस बैठक में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हिस्सा लिया।
किसानों की आय बढ़ाना है मुख्य मकसद
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इस समिति के सदस्य हैं जबकि नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद इस समिति में बतौर सदस्य-सचिव शामिल हुए। मुख्यमंत्रियों की इस बैठक में किसानों की आय बढ़ाने, कृषि कल्याण की योजनाओं और सुझावों पर चर्चा हुई। बैठक के बाद महाराष्ट्र सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि राज्यों में नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट के जरिए एक गतिशील इलेक्ट्रॉनिक मंच प्रदान करने और कृषि में निवेश बढ़ाने पर चर्चा हुई।
कई राज्यों के मुख्यमंत्री हुए शामिल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से कृषि पर गठित मुख्यमंत्रियों की पहली बैठक गुरुवार को नीति आयोग में हुई। बैठक में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने भाग लिया।........... आर एस राणा

पोल्ट्री फीड निर्माताओं की मांग से गेहूं की कीमतों में आई तेजी

आर एस राणा
नई दिल्ली। मक्का की कमी होने के कारण पोल्ट्री फीड निर्माता गेहूं की खरीद कर रहे हैं, साथ ही सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं के बिक्री भाव 55 रुपये बढ़ा दिए हैं, जिस कारण सप्ताहभर में ही गेहूं की कीमतों में करीब 100 से 125 रुपये की तेजी आ चुकी है। शुक्रवार को दिल्ली में गेहूं के भाव 2,100 से 2,125 और बंगलुरु में 2,400 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
बंगलुरु के गेहूं कारोबारी नवीन गुप्ता ने बताया कि गेहूं में पोल्ट्री फीड निर्माताओं की मांग बढ़ी है साथ ही सरकार ने ओएमएसएस के गेहूं के बिक्री भाव जुलाई से सितंबर की अवधि के लिए 55 रुपये बढ़ाकर 2,135 रुपये प्रति क्विंटल कर दिए हैं जिस कारण घरेलू मंडियों में गेहूं के भाव बढ़े है। एफसीआई अप्रैल से जून के दौरान गेहूं की बिक्री ओएमएसएस के माध्यम से 2,080 रुपये प्रति क्विंटल एक्स लुधियाना की दर पर कर रही थी। एफसीआई हर तीमाही में गेहूं के भाव में 55 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी करेगी। उन्होंने बताया कि शुक्रवार को बंगलुरु पहुंच गेहूं के भाव 2,400 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। सप्ताहभर में इनकी कीमतों में 125 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आई है। उन्होंने बताया कि गेहूं के भाव में तेजी तो आई है लेकिन अभी भी आयात पड़ते नहीं लगेंगे, क्योंकि गेहूं पर 40 फीसदी आयात शुल्क है।
उत्पादक राज्यों में मक्का का स्टॉक कम
आंध्रप्रदेश की निजामाबाद मंडी के मक्का कारोबारी पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि दक्षिण भारत के राज्यों में मक्का का स्टॉक कम है, जिस कारण मक्का की कीमतें बढ़कर उत्पादक मंडियों में 2,300 से 2,350 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं। इसीलिए पोल्ट्री फीड निर्माता गेहूं की खरीद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि चालू खरीफ में भी दक्षिण भारत के प्रमुख उत्पादक राज्यों कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना में बारिश सामान्य से कम हुई है जिस कारण खरीफ में भी बुआई पिछे चल रही है। वैसे भी खरीफ की मक्का की आवक अक्टूबर के बाद ही मंडियों में बनेगी।
सरकार ने पांच लाख टन मक्का आयात की दी हुई है मंजूरी
केंद्र सरकार ने हाल ही में पोल्ट्री उद्योग की मांग को पूरा करने के लिए 15 फीसदी शुल्क पर चार लाख टन मक्का आयात की अनुमति दी थी, जबकि इसके पहले भी एक लाख टन आयात  की अनुमति दी हुई है। हालांकि अभी आयातित मक्का अभी भारत नहीं पहुंची हैं। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में रबी सीजन में मक्का का उत्पादन घटकर 70.19 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी में 80.63 लाख टन का उत्पादन हुआ था। देश में खरीफ में मक्का का ज्यादा उत्पादन होता है। फसल सीजन 2018-19 में खरीफ और रबी सीजन को मिलाकर कुल उत्पादन 278.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 287.5 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
गेहूं का रिकार्ड उत्पादन अनुमान
मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में देश में गेहूं का रिकार्ड 10.12 करोड़ टन उत्पादन होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल 9.71 करोड़ टन उत्पादन हुआ था। पहली जूलाई को केंद्रीय पूल में 458.31 लाख टन गेहूं का स्टॉक है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 418.01 लाख टन से ज्यादा है।.......... आर एस राणा

देश के आधे हिस्से में मानसूनी बारिश सामान्य से कम, दलहन उत्पादन में कमी की आशंका

आर एस राणा
नई दिल्ली। जुलाई आधे से ज्यादा बीतने के बावजूद भी देश के करीब 50 फीसदी हिस्से में बारिश सामान्य से कम हुई है जिस कारण दलहन फसलों की बुआई 25 फीसदी से ज्यादा पिछे चल रही है। खरीफ दलहन उत्पादक राज्यों में बारिश कम हुई है, इससे दालों के उत्पादन में कमी आने की आशंका है जिस कारण आयात पर निर्भर बढ़ जायेगी।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार चालू मानसूनी सीजन में पहली जून से 17 जुलाई तक देशभर के 51 फीसदी हिस्से में बारिश सामान्य से कम हुई है। देश के 36 सब डिवीजनों में से 19 में बारिश सामान्य से कम दर्ज की गई। खरीफ दलहन के प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में सामान्य से 36 फीसदी कम और विदर्भ में भी 36 फीसदी कम, दक्षिण कर्नाटक में 23 फीसदी कम, तेलंगाना में 37 फीसदी कम, पूर्वी मध्य प्रदेश में 16 फीसदी ककम, पश्चिम राजस्थान में 49 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 20 फीसदी के साथ ही ओडिशा में बारिश सामान्य से 26 फीसदी कम हुई है। देशभर में इस दौरान बारिश सामान्य से 16 फीसदी कम हुई है। सामान्यत: पहली जून से 17 जुलाई तक 318.4 मिलीमिटर बारिश होती है जबकि चालू सीजन में 268.8 फीसदी बारिश ही हुई है।
आगे भी मानूसन कमजोर रहा तो आयात कोटे में जा सकती है बढ़ोतरी
पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने आउटलुक को बताया कि जिन राज्यों में दालों का उत्पादन ज्यादा होता है उन राज्यों में बारिश सामान्य से कम हुई है। हालांकि केंद्रीय पूल में दालों का करीब 38 लाख टन का स्टॉक है, लेकिन आगे भी बारिश में कमी रही तो सरकार को आयात का कोटा बढ़ाना पड़ सकता है, साथ ही आयात शुल्क में कमी कर सकती है। केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए उड़द और मूंग के आयात का कोटा डेढ़-डेढ़ लाख टन ओर अरहर के आयात का कोटा 4 लाख टन तथा मटर के आयात का कोटा 2 लाख टन का तय किया हुआ है। चना के आयात पर शुल्क 60 फीसदी और मटर के आयात पर 30 फीसदी है।
खरीफ में दालों की बुवाई 25 फीसदी से ज्यादा पिछड़ी
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में दालों की बुआई 12 जुलाई तक 25.23 फीसदी पिछड़ कर 34.22 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई  45.73 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। महाराष्ट्र में चालू खरीफ में दालों की बुआई 5.61 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 7.46 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। इसी तरह से कर्नाटक में दालों की बुआई घटकर 5.42 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 9.45 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। मध्य प्रदेश में दालों की बुवाई पिछड़कर 4.94 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 8.54 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। राजस्थान में दालों की बुआई पिछले साल के 11.41 लाख हेक्टयेर से घटकर चालू सीजन में अभी तक केवल 10.60 हेक्टेयर में ही हुई है। छत्तीसगढ़ और ओडिशों में दालों की बुआई शुरूआती चरण में ही है।
अरहर, उड़द के साथ मूंग की बुवाई भी कम
खरीफ की प्रमुख दलहन अरहर की बुवाई चालू सीजन में घटकर 12.44 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 15.89 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। पिछले साल अरहर के उत्पादन में कमी आई थी, जिस कारण सरकार ने अरहर के आयात का कोटा बढ़ाया है। मूंग और उड़द की बुआई चालू खरीफ में 10.58 और 8.59 लाख हेक्टेयर ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 13.92 और 11.56 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। अन्य दालों की बुवाई भी पिछले साल के 4.14 लाख हेक्टयेर से घटकर 2.51 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है।
पिछले साल भी खरीफ में उत्पादन में आई थी कमी
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में खरीफ में दालों का उत्पादन घटकर 85.2 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल 93.1 लाख टन का उत्पादन हुआ था। दालों का कुल उत्पादन फसल सीजन 2018-19 में घटकर  232.2 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 254.2 लाख टन का रिकार्ड उत्पादन हुआ था।
आयात में आई कमी
वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान दालों का आयात घटकर 21.03 लाख टन का ही हुआ है जबकि वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान 56.07 लाख टन का आयात हुआ था। वित्त वर्ष 2016-17 में देश में रिकार्ड 66.09 लाख टन का आयात हुआ था।..........  आर एस राणा

केंद्र प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में करेगी बदलाव, सांसदों से मांगे सुझाव

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) को किसानों के लिए ज्यादा लाभकारी बनाने के लिए सांसदों से सुझाव मांगे हैं। कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को प्रभावी एवं लाभप्रद बनाने के लिए कुछ बदलाव करने जा रही है।
लोकसभा में किसान कल्याण अनुदानों की मांग पर चर्चा का जवाब देते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों को मजबूत सुरक्षा कवच प्रदान करना हमारी सरकार का लक्ष्य है। सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को और प्रभावी एवं लाभप्रद बनाना चाहती है। हालांकि इस योजना में क्या बदलाव या सुधार हो सकता है, इसकी जानकारी सरकार ने अभी नहीं दी है। उन्होंने आगे बताया कि पीएम फसल बीमा योजना का पहले भी पुनर्गठन किया गया और यह प्रयास किया गया कि किसानों को कम प्रीमियम देना पड़े।
फसल बीमा योजना अभी पूर्ण नहीं
कृषि मंत्री ने कहा कि मैं और प्रधानमंत्री दोनों इस बीमा योजना को अभी पूर्ण नहीं मानते हैं। कई सदस्यों ने इस योजना के बारे में सुझाव दिए हैं। इस फसल योजना को और उपयोगी और लाभप्रद बनाया जाए, इस बारे में संसद सदस्य दो-चार दिनों में सुझाव दे सकते हैं। हम दखेंगे कि इस योजना को और सरल एवं प्रभावी कैसे बनाया जा सकता है। उन्होंने दावा किया कि 2014 से पहले की अवधि की तुलना में मोदी सरकार के पांच वर्षो के कार्यकाल में इस योजना के तहत अधिक किसानों को फसल बीमा योजना का लाभ मिला है और अधिक राशि जारी की गई है।
पांच वर्षो में किसानों को बड़े पैमाने पर ऋण दिये गए
किसानों को ऋण के संबंध में विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि पिछले पांच वर्षो में किसानों को बड़े पैमाने पर ऋण दिये गए हैं। स्वामीनाथन आयोग के सुझावों को सरकार ने लागू किया है। कृषि मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार ने स्वामिनाथन समिति के सुझाव के आधार पर किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने का निर्णय किया। 2014 के बाद समर्थन मूल्य के आधार पर फसलों की सर्वाधिक खरीद की गई। मंत्री ने कहा कि हमें रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करना होगा और इस उद्देश्य के लिये जैविक खेती और शून्य बजट कृषि की ओर बढ़ना होगा। भारत सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है।
किसानों का खेती की तरफ आकर्षण बढ़ा
उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षो में कृषि क्षेत्र का सम्मान बढ़ा है और किसानों का खेती की तरफ आकर्षण बढ़ा है साथ ही खेती में प्रौद्योगिकी का उपयोग हो रहा है। मंत्री के जवाब के बाद आरएसपी के एन के प्रेमचंदन ने अपना कटौती प्रस्ताव वापस ले लिया और सदन ने मंत्रालय से संबंधित अनुदान मांगों को ध्वनिमत से पारित कर दिया।...........  आर एस राणा

महगांई का डर, केंद्र ने राज्यों से दलहन और प्याज की जरुरत बताने को कहा

आर एस राणा
नई दिल्ली। आधा जुलाई बीतने के बाद भी देश के करीब 15 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों में बारिश सामान्य से कम होने के कारण केंद्र सरकार को महगांई का डर सताने लगा है। इसलिए केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि अपनी जरुरत के हिसाब दलहन खासकर के अरहर और प्याज लेने के लिए पहले ही बता दे। राज्यों को केंद्र सरकार इनकी सप्लाई बफर स्टॉक से करेगी।
खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सरकार अरहर और प्याज की कीमतों को लेकर सतर्क है, इसीलिए केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वो अपनी जरुरत पहले ही बता दे, ताकि उसके अनुरूप राज्यों को सप्लाई की जा सके। उन्होंने बताया कि राज्य सरकारों से महीने की खपत के हिसाब से ब्यौरा देने को कहा गया है। उन्होंने बताया कि दलहन के साथ ही प्याज की बिक्री केंद्रीय भंडार, सफल एवं मदर डेयरी के आउटलेट के जरिए की जायेगी।
उत्पादक मंडियों में बिक रहे हैं नीचे भाव पर
केंद्रीय पूल में 52,000 टन प्याज और करीब 39 लाख टन दालों का स्टॉक है, जिसमें अरहर का स्टॉक करीब 10 लाख टन का है। महाराष्ट्र की मालेगांव मंडी में बुधवार को प्याज का भाव 425 से 1,132 रुपये प्रति क्विंटल और दिल्ली की आजादपुर मंडी में 600 से 1,750 रुपये प्रति क्विंटल रहा। खुदरा में प्याज 30 से 35 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है। दलहन में अरहर दाल के भाव खुदरा में 95 से 100 रुपये प्रति किलो है जबकि उत्पादक मंडियों में अरहर 5,300 से 5,500 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,800 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
प्याज का उत्पादन अनुमान ज्यादा, अरहर का कम
कृषि मंत्रालय के आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में प्याज का उत्पादन 1.5 फीसदी बढ़कर 2.36 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 2.32 करोड़ टन का हुआ था। हालांकि चालू फसल सीजन में अरहर के उत्पादन में कमी आने का अनुमान है। मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार अरहर का उत्पादन घटकर 35 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 42.9 लाख टन का हुआ था। हालांकि केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 में अरहर के आयात की मात्रा को 2 दो लाख टन से बढ़ाकर 4 लाख टन कर रखा है, इसके साथ ही करीब पौने दो लाख टन अरहर का आयात मौजाम्बिक से केंद्र सरकार द्वारा किए गए अनुबंध के आधार पर होगा।.......... आर एस राणा

बारिश सामान्य से कम होने के बाद भी खरीफ में खाद्यान्न उत्पादन स्थिर रहने का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में चालू खरीफ में मानसूनी बारिश सामान्य से कम होने के बावजूद भी खाद्यान्न उत्पादन पिछले साल के लगभग बराबर ही होने की उम्मीद है क्योंकि धान और अन्य फसलों की बुअवई में अब भी समय बचा है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि खरीफ की फसलों की बुआई करीब-करीब पिछले साल के बराबर ही हो जायेगी। उन्होंने कहा कि धान की रोपाई अगस्त अंत तक की जा सकती है। इसलिए अभी पर्याप्त समय है। चालू खरीफ सीजन में पहली जून से 16 जुलाई तक देशभर में मानसूनी बारिश सामान्य से 14 फीसदी कम हुई है। इस दौरान सामान्यत: 308.4 मिलीमिटर बारिश होती है, जबकि चालू सीजन में केवल 265.9 मिलीमीटर ही बारिश हुई है।
पिछले साल दलहन और मोटे अनाजों के उत्पादन में आई कमी
महापात्रा ने कहा कि मौसम विभाग ने अगस्त और सितंबर में अच्छे मानसून की उम्मीद जताई है। उन्होंने कहा कि जिन क्षेत्रों में बारिश में 50 फीसदी से अधिक की कमी दर्ज की गई है उनमें उत्पादन पर असर पड़ सकता है लेकिन इसकी भरपाई उन क्षेत्रों से हो जाएगी जहां अच्छी बारिश के कारण उत्पादन में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि आगामी महीनों में बारिश का होना काफी महत्वपूर्ण होगा। दलहन और मोटे अनाज के उत्पादन में गिरावट के चलते देश का खाद्यान्न उत्पादन गिरकर फसल वर्ष 2018-19 (जुलाई-जून) में 28.33 करोड़ टन रहने का अनुमान है। हालांकि, इस दौरान देश में चावल और गेहूं की रिकार्ड उत्पादन हुआ है।
पानी की कमी और उपज का सही दाम नहीं मिलना चुनौती
इस अवसर पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि क्षेत्र की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने में सफल रहा है। हालांकि उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र को पानी की कमी तथा उपज का सही दाम नहीं मिलने के रूप में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। तोमर ने युवाओं के कृषि क्षेत्र में नहीं आने को लेकर चिंता व्यक्त की और इस प्रवृत्ति को बदलने पर जोर दिया। उन्होंने पिछले पांच साल के दौरान कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिये सरकार द्वारा उठाये गये कदमों का उल्लेख किया। उन्होंने किसानों को सालभर में छह हजार रुपये की नकद राशि का हस्तांतरण और फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागत के डेढ़ गुणा तय करने जैसे कदमों का जिक्र किया।.....  आर एस राणा

अधूरी तैयारी से शुरू की गई पीएम-किसान योजना की पहली दो किस्तों में आठ लाख ट्रांजेक्शन हुई फेल

आर एस राणा
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले आधी-अधूरी तैयारियों के साथ शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना की पहली दो किस्तों में 8 लाख ट्रांजेक्शन फेल हो गई, साथ ही बैंक खाते एवं अन्य कमियों के कारण लाखों आवेदन राज्य सरकारों को वापिस भेजे गए हैं। कई ऐसे लोगों के खातों में भी रकम पहुंच गई जिनका खेती-किसानी से कोई लेना-देना नहीं है। इसीलिए सरकार ने तीसरी किस्त देने से पहले आधार को अनिवार्य कर दिया है।
पहली किस्त में 6.68 और दूसरी में 1.32 लाख ट्रांजेक्शन फेल
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पीएम-किसान योजना के तहत जारी की गई पहली किस्त में से 6.68 लाख और दूसरी किस्त जारी करने के समय 1.32 लाख ट्रांजेक्शन फेल हो गई थी। उन्होंने बताया कि इन किसानों के खाते में पैसा भेजा तो गया, लेकिन तकनीकी कारणों से वह पैसा खाते में जमा नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि पीएम-किसान योजना के तहत पहली किस्त 3.56 करोड़ और दूसरी किस्त 3.10 करोड़ किसानों को मिली है। पीएम-किसान योजना के दायरे में आने वाले करीब 13.79 करोड़ किसानों की पहचान की जा चुकी है।
अगस्त में तीसरी किस्त हो सकती है जारी
उन्होंने बताया कि राज्यों द्वारा भेजे गए डाटा में खामिया था, जिस कारण लाखों किसानों का डेटा दूरस्त करने के लिए राज्य को वापिस भेजा गया है। उन्होंने बताया कि तीसरी किस्त का भुगतान करने के पहले सभी पात्र लाभार्थियों के आधार कार्ड, बैंक खाते, नाम, आईएफएसओ कोड, मोबाइल नम्बर आदि की जांच की जा रही है जिससे कि तीसरी किस्त में ट्रांजेक्शन फेल ना हो, साथ ही पात्र किसानों को ही राशि मिले। उन्होंने बताया कि पहली दो किस्तों में कई ऐसे लोगों के खाते में भी पीएम-किसान योजना की राशि पहुंच गई, जोकि पात्र नहीं थे। इसलिए इस बार जांच के बाद ही राशि जारी की जायेगी। राज्य सरकार से जुलाई अंत तक लाभार्थियों की लिस्ट अपलोड करने को कहा है ताकि अगस्त में तीसरी किस्त का भुगतान किया जा सके।
उत्तर प्रदेश के सबसे ज्यादा किसानों को मिला है लाभ
उन्होंने बताया कि पहली किस्त का लाभ आंघ्रप्रदेश के 34.43 लाख किसानों को, असम के 12.51 लाख, बिहार के 8.38 लाख, छत्तीसगढ़ के 3.41 लाख, गुजरात के 28.41 लाख, हरियाणा के 9.82 लाख, हिमाचल प्रदेश के 5.40 लाख, जम्मू-कश्मीर के 5.41 लाख, झारखंड के 5.44 लाख तथा कर्नाटक के 7.67 लाख एवं केरल के 11.41 लाख किसानों को मिला है। इसके अलावा पहली किस्त महाराष्ट्र के 22.87 लाख, मध्य प्रदेश के 9,304, ओडिशा के 9.71 लाख, पंजाब के 12.89, राजस्थान के 15.83 लाख, तमिलनाडु के 21.95 लाख, तेलंगाना के 22.16 लाख, उत्तर प्रदेश के 1.11 करोड़ और उत्तराखंड के 3.99 तथा त्रिपुरा के 1.51 लाख किसानों को मिला है। दूसरी किस्त का लाभ सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के 1.08 करोड़ किसानों को मिला है।
अंतरिम बजट में सरकार ने की थी घोषणा
अंतरिम बजट 2019-20 में, केंद्र सरकार ने पीएम-किसान योजना की घोषणा की थी जिसके तहत दो हेक्टेयर तक की खेती योग्य भूमि वाले छोटे और सीमांत किसानों को 6,000 रुपये प्रति वर्ष तीन किस्तों में दिए जाने हैं। नई सरकार के गठन के बाद केंद्र सरकार ने इस योजना में दो हेक्टेयर भूमि की अनिवार्यता को हटा दिया। जिससे इसका दायरा बढ़ गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 फरवरी 2019 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 1.01 करोड़ किसानों को पहली किस्त हस्तांतरित करते हुए इस योजना की औपचारिक शुरुआत की थी।...... आर एस राणा

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने शून्य शुल्क पर मक्का आयात करने की मांगी अनुमति

आर एस राणा
नई दिल्ली। तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार से राज्य के मुर्गीपालकों के लिए शून्य शुल्क पर मक्का के आयात की अनुमति मांगी है। दक्षिण भारत के राज्यों में फाल आर्मी वर्म कीट के प्रकोप से मक्का की फसल को नुकसान हुआ था जिसकी वजह से उपलब्धता कम है।
राज्य के मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है कि तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में फाल आर्मी वर्म कीट के प्रकोप से मक्का की फसल को भारी नुकसान हुआ था जिस कारण पोल्ट्री किसानों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने लिखा है कि सरकार शून्य शुल्क पर मक्का के आयात की अनुमति दे।
तमिलनाडु में अगले पांच महीनों में 20 लाख टन की होगी जरुरत
उन्होंने पत्र में लिखा है कि मक्का की कीमतें तेज होने के कारण मूर्गी और अंडे की कीमतों में भी तेजी आई है, अत: कीमतों को काबू में रखने के लिए आयात की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने 15 फीसदी आयात शुल्क की दर से एक लाख टन मक्का के आयात की अनुमति दी है, यह मात्रा पर्याप्त नहीं है क्योंकि तमिलनाडु में अगले पांच महीनों में मांग और आपूर्ति का अंतर 10 लाख टन है। तमिलनाडु एक प्रमुख पोल्ट्री उत्पादक राज्य है, यहां के पश्चिम भाग में नमक्कल बेल्ड अंडे का प्रमुख आपूर्ति केंद्र है। राज्य में मक्का की उलब्धता कम होने के कारण पोल्ट्री किसानों को उंचे दामों पर खरीद करनी पड़ रही है।
केंद्र सरकार दे चुकी है पांच लाख टन मक्का आयात की अनुमति
केंद्र सरकार ने हाल ही में चार लाख टन मक्का का आयात करने की अनुमति दी गई थी, इसका आयात 15 फीसदी शुल्क पर किया जाना है, साथ ही आयात केवल पोल्ट्री कंपनियों द्वारा ही किया जायेगा। डीजीएफटी के अनुसार व्यापार के लिए मक्का का आयात नहीं किया जायेगा। आयात करने के लिए कपंनियों को 31 अगस्त 2019 तक आवेदन करना होगा। इससे पहले जून 2019 में केंद्र सरकार ने एक लाख टन मक्का के आयात की अनुमति दी थी। सरकार ने कहा था कि अनुसार कर्नाटक सरकार की मुर्गी दाना मक्का की मांग को देखते हुए आयात कोटा बढ़ाये जाने की मांग की थी।
रबी में उत्पादन अनुमान कम
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में रबी सीजन में मक्का का उत्पादन घटकर 70.19 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी में 80.63 लाख टन का उत्पादन हुआ था। देश में खरीफ में मक्का का ज्यादा उत्पादन होता है। फसल सीजन 2018-19 में खरीफ और रबी सीजन को मिलाकर कुल उत्पादन 278.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 287.5 लाख टन का उत्पादन हुआ था।.......  आर एस राणा

जून में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 6 फीसदी बढ़ा, तिलहन की कीमतों पर दबाव

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कम करने की बात करती है जबकि इनका आयात लगातार बढ़ रहा है। खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात जून में 6 फीसदी बढ़ा है, जबकि चालू तेल वर्ष 2018-19 (नवंबर से अक्टूबर) के पहले आठ महीनों नवंबर-18 से जून-19 के दौरान इनके आयात में दो फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। आयात ज्यादा होने से उत्पादक मंडियों में सरसों 3,800 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है जबकि सरकार ने समर्थन मूल्य 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बीवी मेहता ने बताया कि विश्व बाजार में पिछले सालभर में पॉम तेल में 14 से 21 फीसदी की जबकि साफ्ट तेलों की कीमतों में 3 से 5 फीसदी की गिरावट आई है। इसीलिए पॉम तेल का आयात ज्यादा मात्रा में हुआ है। जून में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात बढ़कर 11,05,293 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले साल जून में इनका आयात 10,42,003 टन का ही हुआ था। इस दौरान खाद्य तेलों का आयात बढ़कर 10,71,279 टन का हुआ है जबकि पिछले साल जून में खाद्य तेलों का आयात 10,07,563 टन का हुआ था।
खाद्य एवं अखाद्य तेलों आयात हुआ ज्यादा
एसईए के अनुसार चालू तेल वर्ष 2018-19 के पहले आठ महीनों नवंबर-18 से जून-19 के दौरान खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात बढ़कर 98,68,971 टन का हो चुका है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 96,46,538 टन का हुआ था। इस दौरान खाद्य तेलों का आयात 94,55,895 टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में खाद्य तेलों का आयात 94,00,776 टन का हुआ था। अखाद्य तेलों का आयात चालू तेल वर्ष के पहले 8 महीनों में 4,13,076 टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 2,45,762 टन का हुआ था।
जून में घरेलू बाजार में कीमतों में आई गिरावट
एसईए के अनुसार घरेलू बाजार में मई के मुकाबले जून में आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट भी आई है। जून में आरबीडी पामोलीन का भाव भारतीय बंदरगाह पर घटकर औसतन: 539 डॉलर प्रति टन रह गया जबकि मई में इसका भाव 543 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रुड पॉम तेल का भाव भी जून में घटकर 492 डॉलर प्रति टन रह गया जबकि मई में इसका भाव 498 डॉलर प्रति टन था।...... आर एस राणा

14 जुलाई 2019

देश के 15 राज्यों में मानसूनी बारिश कम, अलनीनो कमजोर होने से आगे सुधार आने का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। लगभग आधा जुलाई बीतने का है तथा अभी भी देश के 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बारिश सामान्य से कम हुई है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार पहली जून से 13 जुलाई तक देशभर में सामान्य से 12 फीसदी बारिश कम दर्ज की गई जिसका असर खरीफ फसलों की बुआई पर भी पड़ा है। इस दौरान पूरे देश में 246.3 मिलीमीटर बारिश ही हुई है जबकि सामान्यत: 279.8 मिलीमीटर होती है। अलीनानो कमजोर हुआ है जिससे आगे बारिश में सुधार आने का अनुमान है।
आईएमडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अल-नीनो कमजोर हो रहा है इसलिए उम्‍मीद है कि आगे मानसून अच्छा रहेगा। आने वाले दिनों में मानसूनी बारिश में सुधार आ सकता है। उन्होंने बताया कि बारिश की कमी जून के अंत में 33 फीसदी थी जोकि 13 जुलाई तक घटकर 12 फीसदी रह गई है। उन्होंने बताया कि समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आए बदलाव के लिए उत्तरदायी समुद्री घटना को अलनीनो कहा जाता है।
कई राज्यों के किसानों को मानसूनी बारिश का इंतजार
आईएमडी के अनुसार पहली जून से 13 जुलाई तक दिल्ली में मानसूनी बारिश सामान्य से 90 फीसदी कम, हरियाणा में 57 फीसदी, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में क्रमश: 32 और 36 फीसदी, उत्तराखंड में 38 फीसदी, गुजरात में 33 फीसदी, आंध्रप्रदेश में 38 फीसदी, तेलंगाना और तमिलनाडु में क्रमश: 33 और 39 फसीदी कम हुई है। केरल में चालू मानसूनी सीजन में सामान्य से 46 फीसदी, झारखंड में 32 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 35 फीसदी तथा मणिपुर में 57 फीसदी कम दर्ज की गई है। इन राज्यों के किसानों को मानसून की अच्छी बारिश का अभी भी इंतजार है।
मौसम की निजी जानकारी देने वाली कंपनी स्काई मेट के अनुसार पंजाब के उत्तरी भागों से उत्तरी हरियाणा, उत्तर प्रदेश के तराई इलाकों और बिहार से होते हुए अरुणाचल प्रदेश तक एक ट्रफ रेखा फैली हुई है। इसी ट्रफ का एक अन्य हिस्सा, उत्तर-पश्चिमी बिहार से झारखंड और पश्चिम बंगाल होते हुए दक्षिणी बांग्लादेश तक फैला हुआ है। इस सिस्टम के कारण पूर्वी उत्तर प्रदेश और इससे लगे बिहार पर एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र बना हुआ है।
अगले 24 घंटों का मौसम पूर्वानुमान
अगले 24 घंटों के दौरान उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों के तराई के इलाकों में बारिश की कमी होने के आसार हैं। हालांकि इन इलाकों में मध्यम से भारी बारिश जारी रह सकती है। बिहार में भारी से अति भारी बारिश जारी रहने की संभावना है। इसके कारण बिहार के दक्षिण-पूर्वी और तराई के इलाकों में बाढ़ जैसी स्थितियां बनी हुई हैं।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल के मध्य भागों, दक्षिण-कोंकण, उत्तरी कर्नाटक के तटीय इलाकों और उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के एक-दो स्थानों में भी भारी बारिश होने के आसार हैं। केरल, दक्षिणी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के तटों और तेलंगाना के पूर्वी हिस्सों समेत दक्षिणी जम्मू-कश्मीर तथा उत्तरी पंजाब के कुछ स्थानों में मध्यम बारिश हो सकती है। पंजाब के अन्य इलाकों, उत्तरी हरियाणा, उत्तर-पश्चिमी और मध्य उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तरी ओडिशा, गुजरात, दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक और तमिलनाडु के कुछ स्थानों में हल्की बारिश जारी रह सकती है। राजस्थान, उत्तरी मध्य प्रदेश और इससे सटे उत्तर प्रदेश में मौसम शुष्क बना रहेगा।
बीते 24 घंटों उत्तरी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हुई भारी बारिश
बीते 24 घंटों के दौरान पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तरी बिहार, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल, सिक्किम, दक्षिणी महाराष्ट्र और उत्तरी कर्नाटक समेत पूर्वोत्तर राज्यों में भारी भारी बारिश देखने को मिली है।हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य उत्तर प्रदेश और उत्तरी उत्तर प्रदेश के तराई भागों, दक्षिणी गुजरात के तटीय इलाकों समेत उत्तरी झारखंड, मध्य पश्चिम बंगाल, मध्य महाराष्ट्र और आंतरिक दक्षिणी आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों और उत्तरी तमिलनाडु से सटे हुए इलाकों में मध्यम से भारी बारिश हुई है।
इसके अलावा ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, उत्तरी कर्नाटक, केरल और आंतरिक तमिलनाडु के कुछ स्थानों में हल्की बारिश देखने को मिली है। राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, कच्छ और पश्चिमी मध्य प्रदेश में मौसम शुष्क रहा।.............. आर एस राणा

उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर 9,200 करोड़ से ज्यादा है गन्ना किसानों का बकाया

आर एस राणा
नई दिल्ली। पेराई सीजन समाप्त हुए लगभग महीनाभर बीतने के बावजूद भी उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया 9,216 करोड़ रुपये बचा हुआ है। सबसे ज्यादा बकाया राज्य की 92 प्राइवेट चीनी पर करीब 8,734 करोड़ रुपये है। गन्ने का बकाया भुगतान होने के कारण किसानों को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
यूपी शुगर मिल्स एसोसिएशन के अनुसार राज्य की चीनी मिलों ने पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान 33,036 करोड़ रुपये का गन्ना किसानों से खरीदा है जिसमें से 12 जुलाई तक भुगतान केवल 23,819 करोड़ रुपये का ही किया है। अत: राज्य की चीनी मिलों पर चालू पेराई सीजन का किसानों का बकाया 9,216 करोड़ रुपये बचा हुआ है जबकि इसके पेराई सीजन 2017-18 का भी 46.23 करोड़ रुपये और पेराई सीजन 2016-17 का 22.29 करोड़ रुपये अभी भी चीनी मिलों पर बकाया है।
बकाया भुगतान नहीं होने से किसान परेशान
राज्य में चालू पेराई सीजन में 119 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी जिनमें से 92 प्राइवेट चीनी मिलों पर किसानों का बकाया 8,734 करोड़ रुपये और राज्य की 24 को-ऑपरेटिव चीनी मिलों पर 435 करोड़ रुपये और तीन कॉरपोरेशन मिलों पर बकाया की राशि 46 करोड़ रुपये है। उत्तर प्रदेश के अमरोह जिले के देहराचक गांव के गन्ना किसान जोगिंद्र आर्य ने आउटलुक को बताया कि वेव शुगर मिल ने मार्च के बाद से किसानों को भुगतान नहीं किया है जबकि मिल ने 15 मई तक गन्ने की खरीद की थी। मेरा अपना चीनी मिल पर 75,000 रुपये बकाया है। बकाया नहीं मिलने के कारण बच्चे के स्कूल में एडमिशन नहीं करा पा रहे हैं, साथ ही खरीफ फसलों की बुवाई के लिए बीज, खाद भी नहीं खरीद पा रहे हैं। जिस कारण भारी आर्थिक परेशानी उठानी पड़ रही है।
गन्ने की बुवाई ज्यादा
चालू पेराई सीजन में राज्य में चीनी का 118.23 लाख टन का उत्पादन हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 120.50 लाख टन का हुआ था। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू सीजन में उत्तर प्रदेश में गन्ने की बुआई 23.24 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 22.92 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी।..............   आर एस राणा

कमजोर मानसून से खरीफ फसलों की बुआई 8.61 फीसदी पिछड़ी, दलहन पर असर ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। आधा जुलाई बीतने को है लेकिन देश के कई राज्यों में मानसूनी बारिश सामान्य से कम होने के कारण खरीफ फसलों की बुआई 8.61 फीसदी पिछड़ कर 413.34 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 452.30 लाख हेक्टयेर में हो चुकी थी। दलहन की बुआई में सबसे ज्यादा 25.16 फीसदी की कमी आई है। पहली जून से 12 जुलाई तक देशभर में बारिश सामान्य से 12 फीसदी कम हुई है तथा आगे भी बारिश कम हुई तो इसका असर महंगाई पर भी पड़ने की आशंका है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार चालू मानसूनी सीजन में पहली जून से 12 जुलाई तक देशभर में मानसूनी बारिश सामान्य से 12 फीसदी कम दर्ज की गई। इस दौरान सामान्यत: 270.09 मिलीमीटर बारिश होती है जबकि चालू खरीफ में 239.2 मिलीमीटर ही बारिश हुई है। इस दौरान आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और गुजरात के साथ ही हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में बारिश कम होने के कारण इन राज्यों के किसानों की चिंता बढ़ गई है।
दलहन उत्पादक राज्यों में हुई है सामान्य से कम बारिश
पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने कहा कि जिन राज्यों में दालों का उत्पादन ज्यादा होता है उन राज्यों में बारिश सामान्य से कम हुई है। गुजरात में भी बारिश सामान्य से कम हुई है जिसका असर मूंगफली की बुआई पर पड़ेगा। मोटे अनाजों में मक्का का उत्पादन भी प्रभावित होने की आशंका है। उन्होंने कहा कि आगामी दिनों में भी बारिश कम हुई तो फिर दलहन, तिलहन के साथ ही मोटे अनाजों खासकर के मक्का के उत्पादन पर असर पड़ेगा, जिस कारण खाद्य तेलों के साथ ही दालों के आयात पर निर्भरता बढ़ेगी। इसका असर आगे महंगाई पर भी पड़ने की आशंका है।
15 जुलाई के बाद भी कम हुई बारिश तो उत्पादन पर पड़ेगा असर
काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट में प्रोफेसर और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व चेयरमैन डॉ. टी हक ने कहा कि खरीफ फसलों की बुआई अभी तो पिछे चल रही है लेकिन उत्पादन का अनुमान लगाना अभी जल्द—बाजी होगा। कई राज्यों में बारिश अच्छी हो रही है तथा 15 जुलाई तक कुछ और राज्यों में भी बारिश होने का अनुमान है। हां अगर 15 जुलाई के बाद मानसूनी बारिश कम होती है, तो फिर फसलों के उत्पादन पर असर पड़ सकता है।
दलहन के साथ धान की रोपाई कम
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में दालों की बुआई घटकर 34.22 लाख हेक्टेयर में ही पाई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 25.16 फीसदी पिछे है। पिछले साल इस समय तक देशभर में 45.73 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हो चुकी थी। खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 97.77 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 109.88 लाख हेक्टेयर में रोपाई हो चुकी थी।
मोटे अनाज की बुआई घटी
मोटे अनाजों की बुआई पिछले साल के 76.22 लाख हेक्टेयर की तुलना में चालू खरीफ में अभी तक केवल 71.17 लाख हेक्टेयर में ही हुई है। मोटे अनाजों में मक्का की बुआई चालू खरीफ में अभी तक केवल 40.47 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 41.59 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। बाजरा की बुआई भी चालू खरीफ में घटकर 23.05 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 24.45 लाख हेक्टेयर में ही बुवाई हो पाई है।
गन्ने की बुआई कम, कपास की थोड़ी बढ़ी
तिलहन की बुआई चालू खरीफ में अभी तक केवल 75.68 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 83.78 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। तिलहन में सोयाबीन की बुआई पिछले साल के 64.08 लाख हेक्टेयर से घटकर 51.94 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है।  कपास की बुआई जरुर चालू खरीफ में पिछले साल के 77.50 लाख हेक्टेयर से थोड़ी सुधरकर 77.71 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। गन्ने की बुआई चालू खरीफ में 49.98 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 52.04 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।.............  आर एस राणा

उद्योग ने एक बार फिर घटाया कपास उत्पादन अनुमान, छटी बार की कटौती

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू फसल सीजन में उद्योग पहली अक्टूबर 2018 से अभी तक छह बार कपास उत्पादन अनुमान में कटौती कर चुका है। ताजा अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में कपास का उत्पादन घटकर 312 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) ही होने का अनुमान है जबकि इससे पहले 315 लाख गांठ का अनुमान था। पिछले साल देश में 365 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था।
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अध्यक्ष अतुल एस. गणात्रा के अनुसार पानी की कमी के कारण कई राज्यों में कपास की तीसरी और चौथी पिकिंग नहीं हो पाई थी जिस कारण चालू सीजन में उत्पादन में कमी आई है।
उद्योग ने अभी तक 36 लाख गांठ की उत्पादन में की है कमी
सीएआई ने कपास सीजन के आरंभ में अक्टूबर 2018 में 348 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान जारी किया था, उसके बाद से अभी इसमें पांच बार में 36 लाख गांठ की कटौती की जा चुकी है। उद्योग के नए अनुमान के अनुसार प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में 71 लाख गांठ कपास का उत्पादन ही होने का अनुमान है पिछले साल महाराष्ट्र में 83 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। इसके अलावा तेलंगाना में 35.50 लाख गांठ, आंध्रप्रदेश में 12 और मध्य प्रदेश में 23.18 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान है। पिछले साल इन राज्यों में क्रमश: 51.50, 18.50 और 21.50 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। गुजरात में कपास का उत्पादन 86 लाख गांठ और उत्तर भारत के राज्यों में 59 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है।
जून अंत तक 303.56 लाख गांठ का हो चुका है आयात
पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू सीजन में 30 जून तक उत्पादक मंडियों में 303.56 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है। चालू सीजन में उत्पादन में कमी आने का असर निर्यात पर भी पड़ेगा। चालू सीजन में निर्यात घटकर 46 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 69 लाख गांठ कपास का निर्यात हुआ था। उद्योग के अनुसार चालू सीजन में कपास का कुल आयात बढ़कर 31 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 15 लाख गांठ का ही आयात हुआ था। पहली अक्टूबर 2018 से 30 जून 2019 तक 11.28 लाख गांठ कपास का आयात हो चुका है तथा निर्यात 44.10 लाख गांठ का हुआ है।
नए सीजन के समय बकाया होगा कम
उद्योग के अनुसार चालू सीजन के अंत में 30 सितंबर 2019 को घरेलू मंडियों में कपास का बकाया स्टॉक घटकर केवल 15 लाख गांठ ही बचने का अनुमान है जबकि पिछले साल नई फसल की आवक के समय बकाया स्टॉक 28 लाख गांठ का था।....आर एस राणा

गुजरात में मानसूनी बारिश 28 फीसदी कम, तिलहन के साथ ही कपास की बुआई बढ़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। मानसूनी बारिश सामान्य से कम होने के बाद भी गुजरात में चालू खरीफ में तिलहन के साथ ही कपास की बुआई में भारी बढ़ोतरी हुई है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार राज्य में पहली जून से 10 जुलाई तक सामान्य से 28 फीसदी बारिश कम हुई है। इस दौरान 143 मिलीमीटर बारिश ही हुई है जबकि सामान्यत: 197.2 मिलीमीटर होती है।
राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार आठ जुलाई तक 39.80 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बुआई हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 23.67 लाख हेक्टयेर से ज्यादा है। राज्य में खरीफ की प्रमुख फसलों मूंगफली के साथ ही कपास की बुआई में पिछले साल की तुलना में भारी बढ़ोतरी हुई है।
मूंगफली के साथ ही कपास की बुवाई में भारी बढ़ोतरी
मूंगफली की बुआई चालू खरीफ में बढ़कर राज्य में 11.85 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में केवल 5.17 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। मूंगफली की बुआई खरीफ सीजन में औसतन 15.70 लाख हेक्टेयर में होती है। इसी तरह से कपास की बुआई चालू खरीफ में बढ़कर 18.76 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल समय तक राज्य में केवल 11.44 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। कपास की बुआई राज्य में 25.86 लाख हेक्टेयर में होती है।
तिलहनों फसलों की बुवाई ज्यादा
तिलहनी फसलों की कुल बुआई 12.77 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 5.87 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है। धान के साथ ही मोटे अनाजों की बुआई चालू खरीफ में राज्य में 3.23 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 3.02 लाख हेक्टयेर में ही बुआई हो पाई थी। मक्का की बुआई राज्य में 1.92 लाख हेक्टेयर में हुई है जोकि पिछले साल के 1.69 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है। बाजरा की बुआई 61,579 हेक्टेयर और धान की रोपाई 61,057 हेक्टेयर में हो चुकी है।..... आर एस राणा

नई पहल: किसानों के बैंक खाते में सीधे आयेगी उर्वरक सब्सिडी

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 70,000 करोड़ रुपये से अधिक की उर्वरक सब्सिडी सीधे किसानों के बैंक खातों में डालने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए तीन नई तकनीक आधारित पहल शुरू की गई है। इन पहलों के तहत विभिन्न जगहों पर उर्वरक आपूर्ति, उपलब्धता और जरूरत के ब्योरे की जानकारी देने वाला डैशबोर्ड (सूचना पट), बिक्री केंद्रों (पीओएस) का अत्याधुनिक संस्करण और डेस्कटॉप पीओएस संस्करण की शुरुआत की गई है।
यह प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के दूसरे संस्करण में सरकार का सीधे किसानों के बैंक खातों में उर्वरक सब्सिडी सीधे बैंक खाते में देने का हिस्सा है। उर्वरक डीबीटी का पहला चरण अक्टूबर 2017 में शुरू किया गया। इसके तहत पीओएस मशीनों से प्राप्त खुदरा बिक्री आंकड़ों की जांच के बाद सब्सिडी सीधे कंपनियों को दी जाती थी।
नई पहल से किसानों तक पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी
डीबीटी 2.0 शुरू करने के बाद रयायन और उर्वरक मंत्री डी वी सदानंद गौड़ा ने कहा कि नई पहल से निश्चित रूप से किसानों तक पहुंच बढ़ाने का हमारा प्रयास है, उसमें मदद मिलेगी। इससे उर्वरक क्षेत्र में पारदर्शिता आएगी। उन्होंने कहा कि हम कुछ और पहल की योजना बना रहे हैं। हम किसानों की चिंताओं को दूर करने के लिये कदम उठाएंगे और सुनिश्चित करेंगे कि किसानों की आय दोगुनी हो। उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख एल मंडाविया ने कहा कि आज हम सब्सिडी सीधे किसानों को दे रहे हैं।
डीबीटी के कारण सब्सिडी का दुरूपयोग और उर्वरकों की काला बाजारी रुकेगी
रयायन और उर्वरक मंत्री डी वी सदानंद गौड़ा ने कहा कि सरकार डीबीटी के कारण सब्सिडी दुरूपयोग और उर्वरकों की काला बाजारी को रोकने में सफल हुई है। सदानंद गौड़ा ने कहा कि दूसरे चरण में की गई पहल का उद्देश्य डीबीटी व्यवस्था को और मजबूत बनाना है। उन्होंने कहा कि आने वाले महीनों में कुछ और पहल की जाएंगी। नई पहल के बारे में और जानकारी देते हुए उर्वरक सचिव छबीलेन्द्र राउल ने कहा कि सरकार ने पीओएस साफ्टवेयर संस्करण 3.0 विकसित किया है। इसमें पंजीकरण, लॉग-इन के दौरन आधार आभासीय पहचान विकल्प के साथ विभिन्न भाषा की सुविधा होगी।
2.24 लाख खुदरा उर्वरक दुकानों पर पीओएस लगाये गये
सचिव ने कहा कि इसमें मृदा स्वास्थ्य कार्ड सिफारिश के लिये प्रावधान है। साथ ही किसानों को की गई बिक्री के अंकड़े को भी संग्रह करता है। उन्होंने कहा कि इसमें मिश्रित उर्वरक बनाने वाली कंपनियों के आंकड़े अलग से संग्रह किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि अब तक पीओएस परिचालन में सुधार को लेकर पीओएस साफ्टवेयर के 13 वर्जन जारी किये गये हैं। 2.24 लाख खुदरा उर्वरक दुकानों पर पीओएस लगाये जा चुके हैं। सचिव ने कहा कि पीओएस मीशनों से समस्याओं को दूर करने के लिए डेस्कटॉप पीओएस वर्जन विकसित किया गया है।......  आर एस राणा

केंद्र ने उद्योग की मांग पर चार लाख टन मक्का आयात की दी अनुमति

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने पोल्ट्री उद्योग की मांग को पूरा करने के लिए 15 फीसदी शुल्क पर चार लाख टन मक्का आयात की अनुमति दी है। मक्का का आयात केवल पोल्ट्री और स्टार्च मिलें ही कर पायेंगी, व्यापार के लिए आयात नहीं किया जायेगा।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार मुर्गीदाने के काम आने वाली मक्का का चार लाख टन का आयात करने की अनुमति दी गई है, इसका आयात 15 फीसदी शुल्क पर किया जायेगा, साथ ही आयात केवल पोल्ट्री और स्टार्च कंपनियों द्वारा ही किया जायेगा। डीजीएफटी के अनुसार व्यापार के लिए मक्का का आयात नहीं किया जायेगा। आयात करने के लिए कपंनियों को 31 अगस्त 2019 तक आवेदन करना होगा। इससे पहले जून में डीजीएफटी ने एक लाख टन मक्का के आयात की अनुमति दी थी। डीजीएफटी के अनुसार कर्नाटक सरकार ने मुर्गी दाना मक्का की मांग को देखते हुए मक्का का आयात कोटा बढ़ाये जाने की मांग की थी।
यूक्रेन से मक्का का आयात होने का अनुमान
निजामाबाद मंडी के मक्का कारोबारी पूनमचंद गुप्ता ने बताया कि शिकागो बोर्ड आफ ट्रेड (सीबॉट) में जुलाई महीने की मक्का के भाव 4.31 डॉलर प्रति बुशल और सितंबर महीने  के वायदा में भाव 4.32 डॉलर प्रति बुशल चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि जून में सरकार ने एक लाख टन मक्का के आयात की अनुमति दी थी, लेकिन अभी तक आयातित मक्का भारत नहीं पहुंची है। उन्होनें बताया कि ब्राजील और अमेरिका में जीएम मक्का का उत्पादन होता है, इसलिए आयात यूक्रेन से ही होने का अनुमान है। घरेलू मंडियों में खरीफ मक्का की आवक सितंबर-अक्टूबर में बनेगी, तथा आयातित मक्का भी सितंबर से पहले आने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में इसका असर आगे नई फसल की आवक के समय भाव पर पड़ सकता है।
सितंबर-अक्टूबर में आयेगी नई फसल
दिल्ली के मक्का कारोबारी कमलेश कुमार जैन ने बताया कि पंजाब और हरियाणा पहुंच मक्का के भाव 2,100 से 2,150 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं, तथा इस समय साठी मक्का की आवक ही हो रही है। सितंबर में बिहार की फसल आयेगी, जबकि अक्टूबर में कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और राजस्थान की नई फसल की आवक बनने के बाद ही भाव में गिरावट आने का अनुमान है।
एमएसपी में की 60 रुपये की बढ़ोतरी
केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए मक्का के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 60 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1,760 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
रबी में उत्पादन अनुमान कम
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में रबी सीजन में मक्का का उत्पादन घटकर 70.19 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी में 80.63 लाख टन का उत्पादन हुआ था। देश में खरीफ में मक्का का ज्यादा उत्पादन होता है। फसल सीजन 2018-19 में खरीफ और रबी सीजन को मिलाकर कुल उत्पादन 278.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 287.5 लाख टन का उत्पादन हुआ था।......... आर एस राणा

खरीफ फसलों की बुआई में आई कमी से सरकार चिंतित, राज्यों के संपर्क में

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन में मानसूनी बारिश कम होने के कारण फसलों की बुआई में आई कमी पर सरकार ने चिंता जताई है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि खरीफ फसलों की बुआई में अभी समय बचा है, लेकिन सरकार किसी भी स्थिति से निपेटने के लिए राज्यों के सपंर्क में है।
उन्होंने कहा कि सूखे जैसी स्थिति से संयुक्त प्रयासों से निपटने को केंद्र राज्यों के संपर्क में है। उन्होंने कहा कि खरीफ फसल की बुआई में देरी चिंता का विषय तो है लेकिन किसानों के पास बुआई पूरी करने के लिए अभी समय बचा हुआ है।
आईएमडी ने जुलाई-अगस्त में जताया अच्छी बारिश का अनुमान
मौजूदा खरीफ सत्र 2019-20 में पिछले सप्ताह तक खरीफ बुआई एक साल पहले की तुलना में 27 फीसदी पिछड़ कर 234.33 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंची थी जबकि पिछले साल की समान अवधि में 319.68 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। तोमर ने कहा कि सूखे जैसी स्थिति को लेकर हम राज्यों के संपर्क में हैं। खरीफ फसल की उपज के बारे में पूछे जाने पर तोमर ने कहा कि अभी इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगा। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने जुलाई और अगस्त में अच्छी बारिश का अनुमान लगाया है जिससे बुआई के काम में तेजी आ सकती है।
चालू खरीफ में अभी तक 17 फीसदी बारिश सामान्य से कम
दक्षिण-पश्चिम मानसून के साथ खरीफ फसल की बुआई शुरू होती है। इस साल इसमें देरी हुई जिससे बुआई भी पीछे चल रही है। मौसम विभाग के अनुसार जून में देशभर में मानसूनी बारिश सामान्य से 33 फीसदी कम हुई थी जबकि पहली जून से 9 जुलाई तक देशभर में 17 फीसदी बारिश सामान्य से कम हुई है। खरीफ की मुख्य फसल धान की बुआई पिछले सप्ताह तक 52.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हुई थी, जो एक साल पहले की समान अवधि 68.60 लाख हेक्टेयर कम है। छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, ओड़िशा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश में धान की बुआई पीछे चल रही है।
दलहन के साथ मोटे अनाजों की बुआई भी कम
इसी तरह दलहनों अरहर, उड़द और मूंग की बुआई अभी तक सिर्फ 7.94 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हुई है, जबकि पिछले साल समान अवधि में यह आंकड़ा 27.91 लाख हेक्टेयर था। मोटे अनाजों की बुआई भी पिछले साल के 50.65 लाख हेक्टेयर से घटकर 37.37 लाख हेक्टेयर रह गई है।कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में दलहन की बुआई पीछे है। तिलहनों के मामले में मूंगफली, सूरजमुखी और सोयाबीन की बुआई घटकर 34.02 लाख हेक्टेयर रह गई है। पिछले साल समान अवधि में यह आंकड़ा 59.37 लाख हेक्टेयर था। नकदी फसलों में गन्ने की बुआई 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हुई है जबकि पिछले साल समान अवधि में यह आंकड़ा 51.41 लाख हेक्टेयर था। कपास की बुआई भी पीछे है तथा अभी तक इसकी बुआई 45.85 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हुई है जबकि पिछले साल समान अवधि में यह आंकड़ा 54.60 लाख हेक्टेयर था।..........  आर एस राणा

पहली तिमाही में डीओसी का निर्यात 24 फीसदी घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। विश्व बाजार में भाव कम होने के कारण चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही अप्रैल से जून के दौरान डीओसी के निर्यात में 24 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 5,71,325 टन का ही हुआ है। जून में इसके निर्यात में सबसे ज्यादा कमी 56 फीसदी की आई है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बीवी मेहता ने बताया कि विश्व बाजार में भाव कम होने के कारण भारत से निर्यात में कमी आई है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में दक्षिण कोरिया की आयात मांग तो 88 फीसदी ज्यादा रही, लेकिन वियतनाम और थाइलैंड की आयात मांग में क्रमश: 49.96 फीसदी और 42.27 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। ताईवान की मांग भी इस दौरान 6.81 फीसदी घटी है।
जून में निर्यात में में आई सबसे ज्यादा गिरावट
एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 के अप्रैल से जून के दौरान देश से केवल 5,71,325 टन डीओसी का ही निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2018-19 की समान अवधि में 7,51,158 टन डीओसी का निर्यात हुआ था। जून महीने में डीओसी के निर्यात में सबसे ज्यादा 56 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 1,14,972 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल जून में इनका निर्यात 2,63,163 टन का हुआ था। जून में सोया डीओसी के साथ ही सरसों डीओसी और केस्टर डीओसी के निर्यात में भी कमी आई है।
सोया डीओसी के भाव घटे, सरसों और केस्टर डीओसी के बढ़े
सोया डीओसी का भाव भारतीय बंदरगाह पर जून में घटकर 445 डॉलर प्रति टन रह गया जबकि अप्रैल में इसका औसत भाव 460 डॉलर प्रति टन था। सरसों डीओसी का भाव अप्रैल के 220 डॉलर प्रति टन से बढ़कर जून में औसत भाव 221 डॉलर प्रति टन हो गया। केस्टर डीओसी का भाव अप्रैल के औसत भाव 77 डॉलर प्रति टन से बढ़कर जून में 109 डॉलर प्रति टन हो गया।....... आर एस राणा

पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में बारिश की कमी से धान किसानों की लागत बढ़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। जुलाई का पहला सप्ताह बीतने के बावजूद भी उत्तर भारत के प्रमुख धान उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा के साथ ही उत्तर प्रदेश में मानसूनी बारिश कम होने से धान किसानों को ट्यूबवैलों से रोपाई करनी पड़ रही है जिससे उनकी लागत बढ़ गई है। पहली जून से 7 जुलाई तक हरियाणा में मानसूनी बारिश सामान्य से 55 फीसदी, पंजाब में 50 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 42 फीसदी कम हुई है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में मानसून पहुंच चुका है लेकिन इन राज्यों में चालू सीजन में मानसूनी बारिश अभी तक सामान्य से कम हुई है। पंजाब में पहली जून से 7 जुलाई तक सामान्यत: 80 मिलीमीटर बारिश होती है जबकि चालू सीजन में अभी तक केवल 40.2 मिलीमीटर बारिश ही हुई है, इसी तरह से हरियाणा में इस दौरान 70.6 मिलीमीटर बारिश होती है जबकि अभी तक हुई है केवल 31.4 मिलीमीटर ही। इसी तरह से चालू मानसूनी सीजन में उत्तर प्रदेश में पहली जून से 7 जुलाई तक 80 मिलीमीटर बारिश ही हुई है जबकि सामान्य इस दौरान राज्य में 138.5 मिलीमीटर बारिश होती है।
बारिश नहीं होने से ट्यूबवैल चलाकर कर रहे हैं किसान धान की रोपाई
हरियाणा के सोनीपत जिले के गोहाना के किसान राजेश कुमार ने बताया कि जून के अंत तक बारिश हो जाती है, जिससे धान की रोपाई भी शुरू हो जाती है लेकिन इस बार जुलाई का पहला सप्ताह बीच चुका है लेकिन बारिश नहीं हुई है। पांच एकड़ में पूसा-1,121 की रोपाई के लिए धान की पौध तैयार कर रखी है, लेकिन बारिश नहीं होने के कारण अभी तक ट्यूबवैल से दो एकड़ में ही रोपाई की है। धान के खेत में पानी ज्यादा चाहिए, इसलिए ट्यूबवैल लगातार चलाना पड़ रहा है, जिससे डीजल खर्च बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के किसान जोगिंद्र आर्य ने बताया कि अभी बारिश नाममात्र की ही हुई है जबकि धान की नर्सरी तैयार हो चुकी है ऐसे में बारिश नहीं के कारण ट्यूबवैल से सिंचाई कर रोपाई की जा रही है।
हरियाणा और उत्तर प्रदेश में रोपाई पिछड़ी
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में हरियाणा में धान की रोपाई अभी तक केवल 2.51 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 4.71 लाख हेक्टेयर में रोपाई हो चुकी थी। उत्तर प्रदेश में भी चालू सीजन में धान की रोपाई 3.15 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 7.10 हेक्टेयर में हो चुकी थी। पंजाब में जरुर चालू सीजन में धान की रोपाई बढ़कर 21.07 लाख हेक्टेयर में हुई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 19.06 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है। ........ आर एस राणा

07 जुलाई 2019

मानसूनी बारिश 26 फीसदी कम, खरीफ फसलों की बुवाई 36 फीसदी घटी

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू खरीफ मानसूनी बारिश देशभर में अभी तक 26 फीसदी कम होने के कारण चालू खरीफ में फसलों की बुआई 36.42 फीसदी पिछे चल रही है। कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ की प्रमुख फसल धान के साथ ही दलहन, तिलहन, मोटे अनाज और कपास की बुआई में कमी आई है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार चालू खरीफ सीजन में मानसूनी बारिश पहली जून से 5 जुलाई तक देशभर में सामान्य से 26 फीसदी कम हुई है। इस दौरान देशभर में 208.2 मिलीमीटर बारिश होती है जबकि चालू सीजन में अभी तक केवल 153.8 मिलीमीटर ही बारिश हुई है। देश के कई राज्यों में प्री-मानसून की बारिश भी कम हुई है, अत: मानसून की बारिश भी कम होने के कारण किसान खरीफ फसलों की बुआई नहीं कर पा रहे हैं। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में अभी तक 234.33 लाख हेक्टयेर में ही खरीफ फसलों की बुआई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 319.68 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।
धान के साथ ही मोटे अनाज की बुवाई घटी
खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 52.47 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 68.60 लाख हेक्टेयर में रोपाई हो चुकी थी। दालों की बुआई चालू खरीफ में अभी तक केवल 7.94 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 27.91 लाख हेक्टेयर में खरीफ दालों की बुआई हो चुकी थी। मोटे अनाजों की बुआई पिछले साल के 50.65 लाख हेक्टेयर की तुलना में चालू खरीफ में अभी तक केवल 37.27 लाख हेक्टेयर में ही हुई है। मोटे अनाजों में मक्का की बुआई चालू खरीफ में अभी तक केवल 21.06 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 30.96 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
कपास के साथ ही गन्ने की बुआई कम
तिलहन की बुआई चालू खरीफ में अभी तक केवल 34.02 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 59.37 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। कपास की बुआई भी चालू खरीफ में पिछले साल के 54.60 लाख हेक्टेयर से घटकर केवल 45.85 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है। गन्ने की बुआई चालू खरीफ में 49.98 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 51.41 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।....   आर एस राणा

बजट से किसान संगठन निराश, बोले उनके लिए कुछ नहीं

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्त वर्ष 2019-20 के आम बजट में खेती एवं किसानों को ज्यादा तरजीह नहीं दिए जाने से किसानों को निराशा हाथ लगी है। आम बजट में कोल्ड स्टोर, खाद्य प्रसंस्करण, सिंचाई योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, कृषि ऋण, सूखा के साथ जैविक खेती के बारे में कुछ नहीं किया गया है। वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा कि जीरो बजट खेती पर जोर दिया जाएगा, खेती के बुनियादी तरीकों पर लौटना इसका उद्देश्य है और इसी से किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य पूरा होगा लेकिन इससे कैसे किसानों की आय बढ़ेगी, इस बारे में कुछ नहीं कहा है।
सरकार किसानों के बजाए उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है
राष्ट्रीय मजदूर किसान संगठन के संयोजक वीएम सिंह ने आउटलुक से कहा कि देश की 65 फीसदी आबादी कृषि से जुड़ी हुई है, लेकिन सरकार ने आम बजट में किसानों के लिए कोई घोषणा नहीं की, इससे साफ है कि सरकार किसानों के बजाए उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है। आधा देश सूखे से जूझ रहा है, लेकिन सूखे से निपटने के लिए सरकार ने बजट में कोई घोषणा नहीं की। किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है, किसानों को अपनी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है, गन्ना किसानों को समय पर भुगतान नहीं हो रहा है। आम बजट में किसानों की आय बढ़ाने के लिए, खेती की उत्पादकता कैसे बढ़े इसके लिए कुछ नहीं किया है। इसलिए यह बजट किसानों के लिए निराशाजक है।
उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री ने बजट भाषण के आरंभ में कहां कि गांव, गरीब और किसान हमारे लिए अहम हैं लेकिन दो घंटे के भाषण हम यही सोचते रहे कि हमारा नंबर कब आयेगा। सरकार किसानों की आय बढ़ाने की बात तो करती है लेकिन अभी तक स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू नहीं किया गया है। अगर स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर दिए जाएं तो किसानों को 12 से 20 हजार रुपये प्रति एकड़ का लाभ होगा। इसी तरह से गन्ना किसानों को लागत का डेढ़ गुना दाम दिया जाए, तो प्रति एकड़ 44,000 रुपये अधिक मिलेंग। सरकार किसानों को सालाना 6,000 रुपये देने की बात करती है, लेकिन हम सरकार से मांग करते हैं हमें हमारा हक दिया जाए।
कोल्ड स्टोर के साथ ही खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बजट में कुछ नहीं
स्वाभिमान शेतकरी संगठन के नेता एवं पूर्व लोकसभा सांसद राजू शेट्टी ने कहा कि बजट से किसानों में बेहद निराशा है। उन्होंने कहा कि किसानों की माली हालत में सुधार लाने के लिए कोल्ड स्टोर के साथ ही खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बजट में कुछ नहीं किया है। कृषि के अलावा टेक्सटाइल एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें रोजगार के अनेकों अवसर हैं, लेकिन इसके लिए भी आम बजट में कोई घोषणा नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि सरकार ने डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने की बात तो की है, लेकिन इसके लिए क्या योजना है इसके बारे में कुछ नहीं बताया है। उन्होंने कहा कि मनरेगा में लोगों को काम नहीं मिल रहा है, किसानों को दूध का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है साथ ही किसानों को अपनी फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे दाम पर बेचनी पड़ रही है। इसलिए सरकार के इस बजट में किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
 जीरो बजट फार्मिंग की बात की लेकिन ये जीरो बजट स्पीच
स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव ने कहा कि बजट में ना खाता न बही, जो निर्मला कहें वो सही। जीरो बजट फार्मिंग की बात की लेकिन ये जीरो बजट स्पीच है। किसानों को उम्मीद थी लेकिन, सूखे का जिक्र नहीं। बटाईदार, ठेके पर खेती करने वालों का कोई जिक्र नहीं। उन्होंने कहा कि मोदीजी को झोली भर के वोट देने वाले किसान ने बजट सुनना शुरू करते हुए गुनगुनाया, आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे लेकिन बजट स्पीच के अंत में उसने निराश होकर बोला कि आज की रात बचेंगे तो सहर (सुबह) देखेंगे।
न तो फसल के सही दाम की बात, न ही फसल बीमा में देरी की बात
मध्य प्रदेश के आम किसान यूनियन के प्रमुख केदार सिरोही ने कहा कि आज वित्त मंत्री ने बजट में कहा है की "जीरो बजट खेती करो और किसानी खेती की सब दिक्कतों से निजात पाओ"! न तो फसल के सही दाम की बात, न ही फसल बीमा में देरी की बात, न ही गांव में शिक्षा के लिए पैसा, न ही ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में नौकरी के लिए निवेश की बात, न ही फसली कर्ज की बात।        
आर एस राणा

आर्थिक सर्वेक्षण में खेती के लिए भूजल स्तर में सुधार लाने की जरुरत पर जोर

आर एस राणा
नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली आर्थिक समीक्षा 2018-19 में खेती के लिए भूजल स्तर पर में सुधार लाने पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय प्राथमिकता ‘भूमि की उत्पादकता’ से ‘सिंचाई जल उत्पादकता’ की तरफ जाने की होनी चाहिए। नीतियों में सुधार करते हुए किसानों को इसके लिए संवेदनशील बनाना होगा और जल के इस्तेमाल में सुधार राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए। कृषि, वानिकी और मात्स्यिकी क्षेत्र के लिए विकास दर 2.9 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। आर्थिक समीक्षा में 2018-19 में खाद्यान्न उत्पादन 28.34 करोड़ टन रहने का अनुमान है।
केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को संसद में आर्थिक समीक्षा 2018-19 पेश करते हुए कहां कि जलस्तर में लगातार आ रही गिरावट खेती के लिहाज से खतरनाक है। एशियन वाटर डेवलेपमेंट आउटलुक 2016 के मुताबिक, करीब 89 फीसदी भू-जल का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जाता है। सिंचाई के मौजूदा चलन की वजह से भू-जल निरंतर नीचे की तरफ खिसकता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय है।
सिंचाई के लिए होता है 89 फीसदी भू-जल का इस्तेमाल
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि सिंचाई के लिए 89 फीसदी भू-जल का इस्तेमाल किया जाता है। देश में धान और गन्ना की फसल उपलब्ध जल का 60 फीसदी से अधिक उपयोग सिंचाई के लिए करते हैं, जिससे अन्य फसलों के लिए कम पानी उपलब्ध रहता है। पिछले कुछ वर्षों में कृषि क्षेत्र में कई तरह की समस्याएं उभर कर सामने आई हैं।
जोत छोटी होने के साथ ही जल संसाधनों की कमी
इसमें कहा गया है कि कृषि भूमि के बंटवारे और जल संसाधनों के कम होने से संकट बढ़ा है। अपनाये गये नये प्रभावी संसाधनों और जलवायु के अनुकूल सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से कृषि क्षेत्र स्मार्ट हुआ है। कृषि जोतों के छोटा होने की वजह से भारत ने सीमांत किसानों के लिए उपयुक्त संसाधनों को अपनाने पर जोर दिया गया है। सर्वेक्षण के अनुसार किसानों को पानी के उपयोग के कुशल तरीके अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए नीतियों को तैयार करना होगा, साथ ही जल संकट को कम करने की राष्ट्रीय प्राथमिकता बनानी चाहिए।
जून में बारिश सामान्य से 33 फीसदी कम हुई
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की है। हालांकि, जून के दौरान मानसूनी बारिश सामान्य से 33 फीसदी कम हुई थी जिस कारण खरीफ फसलों की बुआई में कमी आई है। आईएमडी ने कहा है कि जुलाई और अगस्त में बारिश अच्छी होने का अनुमान है। आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, कृषि और संबंधित क्षेत्र में सकल पूंजी निर्माण के प्रतिशत के रूप में सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) में वर्ष 2013-14 में 17.7 फीसदी की बढ़त दिखायी देती है, लेकिन इसके बाद वर्ष 2017-18 में यह घटकर 15.5 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2012-13 के सकल पूंजी निर्माण 2,51,904 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2017-18 में यह 2,73,555 करोड़ हो गई।
कृषि में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका
आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, महिलाएं फसल उत्पादन, पशुपालन, बागवानी, कटाई के बाद के कार्यकलाप कृषि/सामाजिक, वानिकी, मत्स्य पालन इत्यादि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। महिलाओं द्वारा उपयोग में लायी जा रही क्रियाशील जोतों का हिस्सा वर्ष 2005-06 में 11.7 फीसदी से बढ़कर 2015-16 में 13.9 फीसदी हो गई। महिला किसानों द्वारा संचालित सीमांत एवं छोटी जोतों का अंश बढ़कर 27.9 फीसदी हो गया है।     आर एस राणा

दावा किसानों की आमदनी दोगनुी करने का, समर्थन मूल्य बढ़ाया 1.07 से 9.14 फीसदी

आर एस राणा
नई दिल्ली। किसानों की आय वर्ष 2022 तक दोगुनी करने का दावा करने वाली केंद्रीय सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 1.07 फीसदी से 9.14 फीसदी की ही बढ़ोतरी की है। मूंग के समर्थन मूल्य में सबसे कम 1.07 फीसदी की और सबसे ज्यादा सोयाबीन का समर्थन मूल्य 9.14 फीसदी बढ़ाया है। खरीफ की प्रमुख फसल धान का एमएसपी मात्र 3.6 से 3.7 फीसदी और कपास एमएसपी 1.83 से 2.03 फीसदी ही बढ़ाया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए धान के एमएसपी में 65 रुपये और कपास के एमएसपी में 100 से 105 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाने का फैसला किया गया है। अत: कॉमन वेरायटी धान का एमएसपी 1,750 रुपये से बढ़कर 1,815 रुपये और ए-ग्रेड धान का एमएसपी 1,770 रुपये से बढ़ाकर 1,835 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। पिछले खरीफ विपणन सीजन 2018-19 में सरकार ने धान के एमएसपी में 180 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की थी।
कपास के समर्थन मूल्य में 100 से 105 रुपये की बढ़ोतरी
कपास का एमएसपी खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए केंद्र सरकार ने बढ़ाकर मीडियम स्टेपल का 5,255 रुपये और लॉन्ग स्टेपल कपास का 5,550 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। इनके इनके समर्थन मूल्य में 105 से 100 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी ही की है, जबकि पिछले साल कपास के एमएसपी में 1,130 रुपये की प्रति क्विंटल बढ़ाया था।
दलहन के समर्थन मूल्य में मामूली बढ़ोतरी
खरीफ दलहन की प्रमुख फसलों अरहर के एमएसपी में खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए 125 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर समर्थन मूल्य 5,800 रुपये, उड़द के एमएसपी में 100 रुपये की बढ़ोतरी कर समर्थन मूल्य 5,700 रुपये जबकि मूंग के समर्थन मूल्य में 75 रुपये की बढ़ोतरी भाव 7,050 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पिछले खरीफ सीजन में केंद्र सरकार ने मूंग के एमएसपी में 1,400 रुपये, उड़द के एमएसपी में 225 रुपये और उड़द के एमएसपी में 200 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की थी।
सोयाबीन और मूंगफली के एमएसपी में पिछले साल से कम बढ़ोतरी
खरीफ तिलहन की प्रमुख फसल सोयाबीन के एमएसपी में 311 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 3,710 रुपये, मूंगफली के समर्थन मूल्य में 200 रुपये की बढ़ोतरी भाव 5,090 रुपये प्रति क्विंटल तय किए हैं। पिछले खरीफ सीजन में केंद्र सरकार सोयाबीन का समर्थन मूल्य 349 रुपये और मूंगफली का समर्थन मूल्य 440 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया था। सूरजमुखी के समर्थन मूल्य पर 262 रुपये की बढ़ोतरी भाव 5,650 रुपये, तिल के समर्थन मूल्य पर में 236 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 6,485 रुपये और रामतिल के समर्थन मूल्य पर 63 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 5,940 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
ज्वार और रागी का समर्थन मूल्य 120 और 235 रुपये बढ़ाया
मोटे अनाजों में ज्वार मालदंडी के समर्थन मूल्य में 120 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 2,570 रुपये और रागी का समर्थन मूल्य 253 रुपये बढ़ाकर 3,150 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पिछले खरीफ में सरकार ने ज्वार मालदंडी के समर्थन मूल्य पर 725 रुपये और रागी के समर्थन मूल्य में 997 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की थी। ज्वार हाईब्रीड के समर्थन मूल्य में 120 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 2,550 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पिछले साल इसके समर्थन मूल्य में 730 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की थी। मक्का के समर्थन मूल्य में मात्र 60 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1,760 रुपये और बाजरा के समर्थन मूल्य में 50 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 2,000 रुपये प्रति क्विंटल तय किए हैं। पिछले साल सरकार ने मक्का का समर्थन मूल्य 275 रुपये और बाजरा का समर्थन मूल्य 525 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया था।       आर एस राणा

राजस्थान में खरीफ फसलों की बुआई में आई तेजी, कपास के साथ तिलहन की बढ़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई अधिकांश राज्यों में मानसूनी बारिश की कमी से जहां खरीफ फसलों की बुआई पिछे चल रही है वहीं राजस्थान में बुआई बढ़ी है। राज्य में अभी तक 35.24 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बुआई हो चुकी है। कपास के साथ ही तिलहन और मक्का की बुआई में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार चालू मानसूनी सीजन में पहली जून से 2 जुलाई तक राज्य में मानसूनी बारिश सामान्य से 9 फीसदी कम हुई है। राज्य के कृषि निदेशायलय के अनुसार 2 जुलाई तक राज्य में खरीफ फसलों की बुआई बढ़कर 35.24 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में राज्य में 34.68 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। कपास की बुआई चालू खरीफ में बढ़कर 6.17 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 4.43 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी।
सोयाबीन और मूंगफली की बुआई बढ़ी
तिलहन की फसलों की बुआई चालू खरीफ में बढ़कर 8 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में राज्य में केवल 5.52 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। खरीफ तिलहन की प्रमुख फसल सोयाबीन की बुआई 3.77 और मूंगफली की 3.94 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 2.38 और 2.76 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई थी।
दलहन की बुआई पिछड़ी
दलहन की बुआई राज्य में चालू खरीफ में पिछड़ कर अभी तक केवल 2.28 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 5.69 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। खरीफ दलहन की प्रमुख फसल मूंग की बुआई घटकर केवल 1.07 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 3.92 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। खरीफ में मूंग की बुआई राज्य में सामान्यत: 20 लाख हेक्टेयर में होती है।
मक्का की बुआई ज्यादा, बाजरा की कम
अनाजों की बुआई चालू खरीफ में बढ़कर राज्य में 14.62 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में केवल 14.26 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। मक्का की बुआई चालू खरीफ में बढ़कर 6.34 और बाजरा की 6.92 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में राज्य में इनकी बुआई क्रमश: 2.68 और 10.59 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। ......  आर एस राणा

कृषि में बदलाव के लिए केंद्र सरकार ने की उच्च स्तरीय समिति गठित, दो महीने में देगी रिपोर्ट

आर एस राणा
नई दिल्ली। वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य लेकर चल रही केंद्र सरकार ने कृषि में व्यापाक बदलाव लाने के उपाय सुझाने के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गठित समिति के संयोजक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस होंगे तथा समिति दो माह में अपनी रिपोर्ट देगी।
उच्च स्तरीय समिति में नीति आयोग में कृषि मामले देखने वाले सदस्य रमेश चंद बतौर सदस्य-सचिव शामिल होंगे। इसके अलावा कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारास्वामी, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर इस समिति के सदस्य होंगे। समिति अधिसूचना जारी होने के दो माह के भीतर रिपोर्ट देगी।
कृषि क्षेत्र में बदलाव तथा किसानों की आय दोगुनी करने पर रहेगा जोर
पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक में यह समिति गठित करने का निर्णय किया गया था। समिति कृषि क्षेत्र में बदलाव और किसानों की आय दोगुनी करने के मुद्दे पर विचार करेगी और राज्यों द्वारा समयबद्ध ढंग से सुधारों को लागू करने की रूपरेखा सुझायेगी।
आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के प्रावधानों की करेगी समीक्षा
समिति आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) 1955 के विभिन्न प्रावधानों की भी समीक्षा करेगी। साथ ही कृषि विपणन और बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निजी निवेश आकर्षित करने के लिए ईसीए में बदलाव के सुझाव देगी। साथ ही समिति कृषि निर्यात को बढ़ाने, खाद्य प्रसंस्करण में वृद्धि को गति देने, आधुनिक बाजार ढांचागत सुविधा, मूल्य श्रृंखला और लॉजिस्टिक में निवेश आकर्षित करने के बारे में भी सुझाव देगी। इसके अलावा समिति कृषि प्रौद्योगिकी को बेहतर करने और किसानों के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले बीज, कृषि उपकरण आदि की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर भी सुझाव देगी।
एग्री उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के साथ विश्वस्तरीय प्रौद्योगिकी पर देगी सुझाव
इसके अलावा समिति कृषि मार्केटिंग एवं ढांचागत सुविधाओं में निजी निवेश आकर्षित करने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के कुछ प्रावधानों में संशोधन पर भी विचार करेगी। साथ ही यह समिति ई-नाम और ग्राम यानी जीआरएएम जैसी केंद्र प्रायोजित योजनाओं को कृषि में बाजार सुधारों के साथ लिंक करने का तंत्र भी सुझायेगी। समिति कृषि वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए उपाय भी सुझायेगी। इसके अलावा किसानों को विश्वस्तरीय प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने, बीज उपलब्ध कराने के संबंध में भी समिति अपने सुझाव देगी।...........  आर एस राणा

आगामी पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 14 फीसदी घटने की आशंका-उद्योग

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू होने वाले आगामी पेराई सीजन 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान चीनी का उत्पादन घटकर 282 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि चालू पेराई सीजन में 329.50 लाख टन का होने का अनुमान है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन आफ इंडिया (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में गन्ना की बुआई 10 फीसदी घटकर 49.31 हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले फसल सीजन 20118-19 में 55.02 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2018-19 में 30 जून 2019 तक 328.09 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है, माना जा रहा है कि सीजन के आखिर तक 30 सितंबर 2019 तक एक डेढ़ लाख टन और चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है। ऐसे में चालू पेराई सीजन में कुल उत्पादन 329 से 329.50 लाख टन होने का अनुमान है।
उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान
सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ना की बुआई चालू सीजन में थोड़ी घटकर 23.60 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल राज्य में 24.11 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुआई हुई थी। राज्य में गन्ने की बुवाई थोड़ी कम हुई है, लेकिन उच्च उत्पादकता वाली गन्ने की वेरयाटी के कारण चीनी का उत्पादन बढ़कर पेराई सीजन 2019-20 में 120 लाख टन होने का अनुमान है जबकि चालू पेराई सीजन में राज्य में 118.23 लाख टन का उत्पादन हुआ है।
सूखे के कारण महाराष्ट्र में गन्ने की फसल सबसे ज्यादा प्रभावित
चीनी के अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में बारिश से कमी से गन्ने के बुआई क्षेत्रफल में 30 फीसदी की कमी आकर कुल बुआई 8.23 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल राज्य में 11.54 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। राज्य में चीनी का उत्पादन भी आगामी पेराई सीजन 2019-20 में घटकर 70 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि चालू पेराई सीजन में राज्य में 107.19 लाख टन का उत्पादन हुआ है।
कर्नाटक और तमिलनाडु में भी चीनी उत्पादन में कमी का अनुमान
महाराष्ट्र की तरह ही कर्नाटक में पानी की कमी के कारण गन्ने का बुआई क्षेत्रफल घटकर चालू फसल सीजन में 4.20 लाख हेक्टेयर ही रहने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 5.02 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुवाई हुई थी। राज्य में चीनी का उत्पादन चालू पेराई सीजन के 43.65 लाख टन से घटकर आगामी पेराई सीजन में 35 लाख टन ही होने का अनुमान है। अन्य राज्यों में तमिलनाडु में चीनी गन्ने की बुआई पिछले साल के 2.60 लाख हेक्टेयर से घटकर 2.30 लाख हेक्टेयर में ही होने का अनुमान है जिस कारण राज्य में चीनी का उत्पादन आगामी पेराई सीजन में घटकर 7.50 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि चालू पेराई सीजन में राज्य में 8.60 लाख टन का उत्पादन हुआ है। अन्य राज्यों में चीनी का उत्पादन 50 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के लगभग बराबर ही है।          आर एस राणा