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18 नवंबर 2015

फसल संरक्षण होगी दूसरी हरित क्रांति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता


फसल संरक्षण करने वाले केमिकल फसल के नुकसान को कम कर उत्पादन में 25-50% वृद्धि ला सकते हैं फिक्की रिपोर्ट
नई दिल्ली, 18 नवंबर 2015:  बढ़ती जनसंख्या के साथ ही भारत में भोजन के उपभोग के तरीकों में भी बदलाव देखा जा रहा है। खेती योग्य भूमि के कम होने और परजीवियों के कारण फसल का नुकसान भविष्य के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के मार्ग में एक महत्वपूर्ण चुनौती के रुप में खड़े हैं।
 भारत एक ओर मूल्य के लिहाज़ से अपने कुल खाद्य उत्पादन का करीब 40% जैसा बड़ा हिस्सा बर्बाद करता है और दूसरी ओर 2020 तक भारत में कृषि कामगारों की संख्या करीब 50% घटने का अनुमान है। इस कारण,  भविष्य में देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत में दूसरी हरित क्रांति शुरु करने का लगातार दबाव है।
 इस संबंध में फिक्की और टाटा स्ट्रैटजिक मैनेजमेंट ग्रुप (टीएसएमजी) ने अशरिंग इन दि सेकण्ड ग्रीन रिवोल्यूशन- रोल ऑफ क्रॉप प्रोटेक्शन केमिकल्सरिपोर्ट को जारी किया है। इस रिपोर्ट को 18 नवंबर 2015 को फेडरेशन हाऊस, नई दिल्ली में आयोजित फिक्की की नेशनल कांफ्रेंस ऑन एग्रोकेमिकल्स में जारी किया गया।
 हालांकि,  संकर बीजों (हाईब्रिड सीड्स) और  फसल संरक्षण केमिकल आदि के कारण प्रति हेक्टेयर कृषि उत्पादन दोगुना हो चुका है, फिर भी खेती के क्षेत्र में उत्पादकता को बढ़ाने की बड़ी चुनौतियां अब भी मौजूद हैं। वैश्विक फसल का करीब 25% परजीवी हमलों, खरपतवार और बीमारियों के कारण नष्ट हो जाता है जो कि खेती के लिए शुभ संकेत नहीं है।  अधिक उपज और उत्पादकता में वृद्धि के लिए फसल संरक्षण केमिकल्स (एग्रोकेमिकल्स) बेहद महत्वपूर्ण हो जाएंगे।  रिपोर्ट के अनुसार,  भावी दूसरी हरित क्रांति की एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता फसल सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित होना होगा।
 अमेरिका, जापान और चीन के बाद वैश्विक रुप से भारत चौथा सबसे बड़ा फसल संरक्षण केमिकल उत्पादक है। भारतीय फसल संरक्षण रसायन उद्योग वित्त वर्ष 2014 में 4.25 बिलियन अमरीकी डॉलर का होने का अनुमान था और 12% की वार्षिक चक्रवृद्धि वृद्धि दर (सीएजीआर) से वित्त वर्ष 2019 में इसके 7.5 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।  भारत के फसल संरक्षण उद्योग का 50% निर्यात केंद्रित है और 16% वार्षिक चक्रवृद्धि वृद्धि दर (सीएजीआर) के साथ वित्त वर्ष 2019 तक इसके 4.2 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है जो भारत के फसल संरक्षण उद्योग का 60% है। दूसरी ओर घरेलू बाज़ार 8% सीएजीआर से बढ़कर वित्त वर्ष 2019 तक 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहने का अनुमान है,  हालांकि यह मुख्य रुप से मानसून पर निर्भर रहता है।
 फसल संरक्षण केमिकल के उपयोग से परजीवियों से होने वाले नुकसान को कम करते हुए फसल उत्पादकता 25-50% तक बढ़ाई जा सकती है। अनुमान के अनुसार पूरी दुनिया का 25% कृषि उत्पाद फसल कटाई के बाद होने वाले परजीवी हमलों से नष्ट हो जाता है। मुख्य फसलों पर हमले करने वाले कुल परजीवियों की संख्या 1940 से अब तक काफी बढ़ चुकी है। उदाहरण के लिए धान के लिए नुकसानदायक परजीवियों की संख्या 10 से बढ़कर 17 हो चुकी है जबकि गेहूं के परजीवी 2 से बढ़कर 19 हो चुके हैं। यह एग्रोकेमिकल्स के उपयोग के महत्व को रेखांकित करता है।
 आगामी वर्षों में कीटनाशकों के सुरक्षित और विवेकपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एग्रोकेमिकल्स उत्पादकों, शिक्षा क्षेत्र,  सरकार और नियामक संस्थाओं, किसान संघों  और किसानों के एक सहयोगात्मक मंच के विकास की आवश्यकता होगी। सरकार व  फसल संरक्षण केमिकल उत्पादकों के लिए महत्वपूर्ण है कि वह कीटनाशकों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए किसानों को शिक्षित करने और नए अनुसंधानों व विकास के लिए उन किसानों  के साथ मिलकर काम करें। ग्रीन केमिस्ट्री (हरित रसायन) पर ध्यान स्थिरता के मूल सिद्धांत के साथ नए उत्पाद तैयार करने में सहायक होगा।
 सरकार को देश में उच्च खाद्य उत्पादन और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिकता के आधार पर नकली कीटनाशकों के खतरे को रोकने पर भी ध्यान देना होगा।
 

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