कुल पेज दृश्य

30 मई 2015

सुस्ती के बाद प्याज निर्यात ने फिर पकड़ी रफ्तार

सुस्ती के बाद पिछले दो महीने में प्याज के निर्यात में 25 प्रतिशत तेजी दर्ज हुई है। पश्चिम एशिया और श्रीलंका के बाजारों में प्याज कारोबार में प्रतिस्पद्र्धा कम रहने से प्याज का निर्यात उछला है। पिछले चार महीनों से भारत से इसका निर्यात कमजोर रहा था।
दिसंबर 2014 और मार्च 2015 के बीच भारत के प्याज निर्यातकों को पाकिस्तान से कड़ी चुनौती मिल रही थी क्योंकि वहां से आने वाला प्याज गुणवत्ता और कीमत दोनों मामलों में बेहतर था।
दरअसल पश्चिम एशिया में पाकिस्तान से निर्यात होने वाले प्याज की कीमतें भी भारत से आने वाले वाले प्याज के मुकाबले 100 डॉलर कम हुआ करती थीं। इतना ही नहीं, यहां के बाजारों में पाकिस्तान से आने वाले प्याज की गुणवत्ता भी भारत के मुकाबले कहीं अधिक होती थी। दिसंबर और फरवरी-मार्च में बेमौसम बारिश की वजह से भारत में प्याज की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई थी।
प्याज का निर्यात बढऩे के साथ ही बेंचमार्क लासलगांव बाजार में कीमतें मंगलवार को प्रति क्विंटल 1175 रुपये हो गई, जो 2 मई को 1,000 रुपये प्रति क्विंटल थीं। समीक्षाधीन अवधि के दौरान ही प्याज की आवक भी बढ़ी और यह 10,000 टन से बढ़कर 13,000 टन हो गई है। इस महीने अब तक निर्यात कीमतें भी 25-50 डॉलर बढ़कर 375 डॉलर हो गई हैं।
हॉर्टिकल्चर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजित शाह कहते हैं, 'अब पाकिस्तान में प्याज का भंडारण कम हो गया है। लिहाजा विदेशी आयातकों के पास अब भारत से प्याज मंगाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं रह गया है। हालांकि गुणवत्ता मानक स्तर से कम रहने के बावजूद भारत से निर्यात होने वाले प्याज स्वीकार हो रहे हैं।'
एनएचआरडीएफ द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार पिछले साल अप्रैल-मई के दौरान भारत से कुल 265,066 टन प्याज का निर्यात हुआ था। शाह ने कहा कि इस साल निर्यात में 20-25 प्रतिशत तेजी आई है। हालांकि पूर्व के चार महीनों के दौरान भारत से प्याज का निर्यात कमजोर रहा। (BS Hindi)

कम बारिश में कहीं सूख न जाए तिलों का तेल!

सिंचाई के लिए पानी की कमी की वजह से गर्मियों में तिल उत्पादक गुजरात में पिछले साल के मुकाबले 70 फीसदी उपज घट सकती है। शेलैक ऐंड फॉरेस्ट प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (शेफेक्सिल) ने 23 अप्रैल से 2 मई, 2015 के एक सर्वे कराया। इसके मुताबिक गर्मियों में तिल का उत्पादन राज्य में 35,216 टन हो सकता है जबकि पिछले साल राज्य में 1,13,190 टन तिल का उत्पादन हुआ था। 

रिपोर्ट के अनुसार मुख्य रूप से पानी की कमी के कारण तिल के रकबे में गिरावट आई है। बेमौसम बारिश ने भी जिंस के उत्पादन पर बुरा असर डाला और इस वजह से इस साल उत्पादन घटा। हालांकि भारतीय तिलहन एवं उत्पाद निर्यात संवर्धन परिषद (आईओपीईपीसी) के सर्वेक्षण मुताबिक तिल का उत्पादन 63,383 टन रहेगा जो पिछले साल के मुकाबले 51 फीसदी कम है।

रबी के सीजन में गुजरात मूंगफली और तिल का बड़ा उत्पादन करता है। गुजरात राज्य कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक तिल की बुआई इस साल 68,300 हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल 1,25,800 हेक्टेयर क्षेत्र में की गई थी। तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक राज्य सरकार ने गर्मियों के लिए 33,000 टन तिल उत्पादन का अनुमान लगाया है। कारोबारी यह भी मानते हैं कि गर्मियों में तिल उत्पादन 35,000 टन से अधिक नहीं होगा। शेफेक्सिल सर्वे में कहा गया है कि बनासकांठा, सुरेंद्रनगर, मोरबी, राजकोट, पोरबंदर और कच्छ जिले में रकबे में भारी गिरावट आई है। रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में रकबा घटकर 72,983 हेक्टेयर रह गया जबकि उत्पादन 48 फीसदी घटकर 483 किलो प्रति हेक्टेयर रह गया। उत्पादन वर्ष 2014 में 987 किलो हेक्टेयर था। दूसरी तरफ आईओपीईपीसी के सर्वेक्षण के मुताबिक उत्पादन 928 किलो प्रति हेक्टेयर रहने का अनुमान है।

बुआई की शुरुआत साल के आखिर में हुई थी और देरी से बुआई का एक प्रमुख कारण खेतों की कमी थी क्योंकि पुरानी फसलें लगी हुई थीं। खराब मौसम के कारण राजकोट, जूनागढ़, मोरबी और जामनगर जिलों में फसल खराब हुई। सर्वे के मुताबिक बेमौसम बारिश से  बीमारियां बढ़ गईं और कीटों का हमला भी हुआ। गुजरात के प्रमुख निर्यातक मनोज सोनपाल ने कहा, 'तिल का बाजार मुश्किल होगा क्योंकि खरीफ की फसल लगभग पूरी तरह बाजार में आ चुकी है और गर्मियों की फसल पर बुरा प्रभाव पडऩे का अनुमान है जिससे कीमतों पर असर पडऩे लगा है।' (BS Hindi)

मसालों का निर्यात मूल्य के हिसाब से 21 फीसदी बढ़ा


नई दिल्ली। चालू वित वर्ष 2015-16 के पहले महीने अप्रैल में मसालों के निर्यात में मूल्य के हिसाब से 21.15 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल 1,438.78 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार पिछले वित वर्ष 2014-15 के अप्रैल महीने में 1,187.64 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ था।

ओएमएसएस के तहत 1,550 रुपये की दर से गेहूं बेचेगी सरकार


पहली जून से ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री षुरु, भाव में तेजी संभव
आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं का बिक्री भाव 1,550 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। ओएमएसएस के तहत पुराने गेहूं के साथ ही नए गेहूं की बिक्री भी पहली जून से षुरु होगी, इससे उत्पादक मंडियों में गेहूं की कीमतों में 50 से 75 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ओएमएसएस के तहत पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेष से गेहूं की बिक्री पहली जून से षुरु की जायेगी, फ्लोर मिलें चालू रबी विपणन सीजन 2015-16 के साथ ही पिछले रबी विपणन सीजन 2014-15 का गेहूं भी खरीद सकती है। उन्होंने बताया कि गेहूं का बिक्री भाव (नई और पुराने सीजन का गेहूं) का 1,550 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। परिवहन लागत फ्लोर मिलों को स्वयं वहन करनी होगी।
उन्होंने बताया कि अभी तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 267 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है जोकि पिछले विपणन सीजन की समान अवधि के 262 लाख टन से ज्यादा है। उन्होंने बताया कि एक मई 2015 के आधार पर केंद्रीय पूल में गेहूं का 341.27 लाख टन गेहूं का स्टॉक था जबकि मई महीने में हुई खरीद के बाद केंद्रीय पूल में गेहूं के स्टॉक में बढ़ोतरी हुई है। इस समय उत्पादक मंडियों में गेहूं की दैनिक आवक कम हो गई है इसलिए एफसीआई की खरीद भी पहले की तुलना में कम हो गई है।
श्री बालाजी फुड प्रोडेक्ट प्राईवेट लिमिटेड के प्रबंधक संदीप गुप्ता ने बताया कि एफसीआई की खरीद कम होने से उत्पादक मंडियों में गेहूं की कीमतों में गिरावट बनी हुई थी लेकिन एफसीआई द्वारा ओएमएसएस के तहत गेहूं का बिक्री भाव बढ़ा देने से उत्पादक मंडियों में गेहूं की कीमतों में 50 से 75 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि मार्च में एफसीआई ओएमएसएस के तहत 1,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की बिकवाली कर रही थी। हालांकि उत्पादक राज्यों में अभी गेहूं का स्टॉक बचा हुआ है ऐसे में फ्लोर मिलों की ओएमएसएस के तहत अभी गेहूं खरीद अभी षुरु होने की संभावना नहीं है। दिल्ली के लारेंस रोड़ पर षुक्रवार को गेहूं का भाव 1,480 से 1,510 रुपये प्रति क्विंटल रहा।.....आर एस राणा

ईलायची की पैदावार बढ़ने के बावजूद ज्यादा मंदे की उम्मीद कम


मध्य जून तक नीलामी केंद्रों पर बढ़ेगी नई फसल की दैनिक आवक
आर एस राणा
नई दिल्ली। उत्पादक राज्यों में इलायची की नई फसल की आवक मध्य जून के बाद बढ़ जायेगी। चालू सीजन में अनुकूल मौसम से देष में इलायची की पैदावार बढ़कर 24 से 25 हजार टन होने का अनुमान है। इलायची में इस समय निर्यातकों की मांग अच्छी है जबकि ग्वाटेमाला में बढ़िया क्वालिटी का स्टॉक कम है। इसलिए नई फसल की आवक बनने पर घरेलू बाजार में इलायची की कीमतों में 25 से 50 रुपये प्रति किलो की गिरावट तो आ सकती है लेकिन भारी गिरावट की उम्मीद नहीं है। नीलामी केंद्र पर षनिवार को 57,714 किलो इलायची की आवक हुई तथा भाव 663 से 923 रुपये प्रति किलो रहे।
इलायची की निर्यातक फर्म के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नीलामी केंद्रों पर नई इलायची की 2-4 लॉट की आवक तो षुरु हो गई है लेकिन क्वालिटी हल्की आ रही है। मध्य जून तक बढ़िया क्वालिटी की आवक बन जायेगी तथा चालू सीजन में इलायची की पैदावार बढ़कर 24 से 25 हजार टन होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि विष्व बाजार में भारतीय इलायची के भाव 13.50 डॉलर से 15.50 डॉलर प्रति किलो चल रहे है। हालांकि ग्वाटेमाला की इलायची के भाव 9 से 13 डॉलर प्रति किलो है लेकिन ग्वाटेमाला के पास बोल्ड क्वालिटी का स्टॉक कम है। ऐसे में जून के आखिर तक निर्यातकों की मांग बढ़ने की उम्मीद है जिससे बढ़िया क्वालिटी की इलायची के भाव में सुधार आयेगा। उन्होंने बताया कि वित वर्ष 2014-15 में मार्च 2015 तक देष से कुल 3,500-4,000 टन इलायची का निर्यात होने का अनुमान है।
कुमली मंडी के इलायची कारोबारी अरुण अग्रवाल ने बताया कि नीलामी केंद्रों पर 8 एम एम की क्वालिटी की इलायची के भाव 890 से 920 रुपये और बोल्ड क्वालिटी की इलायची के भाव 980 से 1,020 रुपये प्रति किलो है। नई फसल की बढ़िया क्वालिटी की आवक बनने के बाद पुरानी इलायची की कीमतों में हल्की गिरावट आ सकती है क्योंकि उत्पादक राज्यों में पुरानी इलायची का स्टॉक बचा हुआ है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार फसल सीजन 2014-15 में देष में इलायची की पैदावार 21,000 हजार होने का अनुमान है जबोकि पिछले साल के बराबर ही है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसान वित वर्ष 2014-15 के पहले नो महीनों अप्रैल से दिसंबर के दौरान 3,210 टन इलायची का निर्यात हो चुका है तथा विष्व बाजार में इस समय भारतीय इलायची का औसत भाव 13.85 डॉलर प्रति किलो है जबकि पिछले साल इस समय भाव 18.18 डॉलर प्रति किलो था

ग्वार गम उत्पादों का निर्यात मूल्य में 50 फीसदी घटा


आर एस राणा
नई दिल्ली। ग्वार गम उत्पादों के निर्यात में चालू वित वर्ष 2015-16 के पहले महीने अप्रैल में 50.25 फीसदी की भारी गिरावट आई है। इसलिए ग्वार और ग्वार गम की कीमतों में तेजी स्थिर नहीं रह पाई। षनिवार को जोधुपर मंडी में ग्वार के भाव घटकर 4,800 रुपये और ग्वार गम के भाव 11,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अप्रैल 2015 में ग्वार गम उत्पादों का निर्यात मूल्य के हिसाब से घटकर 373.02 करोड़ रुपये का रह गया जबकि पिछले वित वर्ष में अप्रैल महीने में 749.84 करोड़ रुपये मूल्य का निर्यात हुआ था।
ग्वार के थोक कारोबारी विपिन अग्रवाल ने बताया कि ग्वार गम उत्पादों की निर्यात मांग कमजोर बनी हुई है इसलिए ग्वार और ग्वार गम की तेजी मंडियों में स्थिर नहीं रह पाई। पिछले सप्ताह उत्पादक मंडियों में ग्वार के भाव बढ़कर 5,100 रुपये और ग्वार गम के 12,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गए थे लेकिन षनिवार को जोधपुर मंडी में ग्वार के भाव घटकर 4,800 रुपये और ग्वार गम के भाव घटकर 11,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
ग्वार व्यापारी सुरेंद्र सिघंल ने बताया कि ग्वार की कीमतों में तेजी-मंदी मानसून पर निर्भर करेगी। भारतीय मौसम विभाग ने पहले सामान्य से कम बारिष होने के साथ मानसून लेट होने की भविष्यवाणी की थी जबकि अब उम्मीद है मानसूनी बारिष केरल में षनिवार को पहुचंने की उम्मीद है इसलिए मिलों के साथ ही स्टॉकिस्टों की मांग में कमी आई है। उन्होंने बताया कि ग्वार गम पाउडर की निर्यात मांग भी कमजोर बनी हुई है। उत्पादक मंडियों में ग्वार की दैनिक आवक 20 से 22 हजार क्विंटल की हो रही है।.....आर एस राणा

28 मई 2015

गन्ना किसानों के 75 फीसदी बकाए का भुगतान 15 जुलाई तक : उच्च न्यायालय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि 15 जुलाई तक राज्य के गन्ना किसानों के 75 फीसदी बकाए का भुगतान हो और जो मिलें इस आदेश के अनुपालन में नाकाम हों उनके निदेशकों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। यह आदेश राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन द्वारा उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादकों की मुश्किलों पर अदालत का ध्यान आकर्षित करने के संबंध में दायर जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डी वाय चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति मनोज गुप्ता ने पारित किया। अदालत ने इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख 28 जुलाई तय की और कहा कि तीन किस्तों में किसानों को 75 फीसदी बकाए का भुगतान करना होगा।
अदालत ने कहा कि गन्ना किसानों के 25 फीसदी बकाए का भुगतान 15 जून तक जबकि अन्य 25 फीसदी का 30 जून और शेष 25 फीसदी का भुगतान 15 जुलाई तक हो। अदालत ने कहा कि किसानों का सहकारी चीनी मिलों पर 985.34 करोड़ रुपये जबकि सहकारी चीनी निगमों पर 23.91 करोड़ रुपये और निजी चीनी मिलों पर 8,682.91 करोड़ रुपये का बकाया है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को सुनवाई की अगली तारीख पर उसके आदेश के मुताबिक किसानों को बकाए के भुगतान का ब्योरा सौंपने का भी निर्देश दिया। BS Hindi

सोने को बाजार में लाने के लिए एनसीडीईएक्स ने वायदा अनुबंध शुरू किए

आम परिवारों के पास रखे सोने को बाजार में आकर्षित करने के उद्देश्य से नेशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) ने गुरुवार को 'गोल्ड नाउ' के नाम से वायदा कारोबार अनुबंध शुरू किए। ये अनुबंध सोने की एक किलो व 100 ग्राम छड़ों में किए जा सकेंगे जिनमें पुनर्चक्रित सोना शामिल है। एनएसडीईएक्स का कहना है कि सोने के इन नए वायदा अनुबंधों से भारतीय स्वर्ण रिफाइनरी उद्योग को नया बल मिलेगा। साथ ही यह सरकार की प्रस्तावित स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (जीएमएस) तथा 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम का पूरक साबित होगा।
एनसीडीईएक्स के प्रबंध निदेशक समीर शाह ने बताया, 'हमने दो अनुबंध शुरू किए हैं जिसमें 100 ग्राम व एक किलो छड़ अनुबंध शामिल है। हम 5 ग्राम, 10 ग्राम व 50 ग्राम सिक्कों में भी अनुबंध अगले 6 महीने में शुरू करने की मंशा रखते हैं।' 'गोल्ड नाउ' अनुबंधों के तहत लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन द्वारा प्रमाणित  आयातित सोने तथा घरेलू रिफाइनरियों के पुनर्चक्रित 'इंडिया गोल्ड' में कारोबार किया जा सकेगा। इन अनुबंधों के तहत क्रेताओं को सोने की आपूर्ति 6 केंद्रों-दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई, कोच्चि, हैदराबाद व चेन्नई से की जाएगी। (BS Hindi)

सीसीआई कीमतें घटाकर कपास की बिक्री नहीं करेगी



सप्ताहभर में केवल 50 हजार गांठ कपास की ही हुई है बिक्री

आर एस राणा

नई दिल्ली। कॉटन कारर्पोरेषन ऑफ इंडिया (सीसीआई) द्वारा बेची जा रही ई-निलामी में कपास की बिक्री में कमी आई है लेकिन सीसीआई ने कीमतें घटाकर कपास की बिक्री नहीं करेगी। सीसीआई के पास इस समय करीब 77 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास का स्टॉक बचा हुआ है।

सीसीआई के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पिछले एक सप्ताह से कपास की बिक्री में भारी कमी आई है। सप्ताहभर में निगम केवल 50 हजार गांठ की ही बिक्री कर पाया है लेकिन इसके बावजूद भी हम कपास की बिक्री मार्किट से नीचे भाव पर नहीं करेंगे। उन्होंने बताया कि अगर भाव कम रहते हैं तो हम स्टॉक को अगले साल के लिए रखेंगे। अहमदाबाद में षंकर-6 किस्म की कपास का भाव 35,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) चल रहा है। उन्होंने बताया कि घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में ज्यादा तेजी-मंदी की संभावना नहीं है। कपास के दाम उत्पादक मंडियों में 800 से 1,000 रुपये प्रति गांठ की तेजी-मंदी के आधार पर रहने का अनुमान है।

उन्होंने बताया कि निगम ने चालू सीजन में न्यूनमत समर्थन मूल्य पर 89 लाख गांठ कपास की खरीद की है जिसमें से अभी तक लगभग 12 लाख गांठ की बिक्री कर चुकी है। विष्व बाजार में कीमतों में आए सुधार से कपास के निर्यात में पहले की तुलना में सुधार आया है लेकिन निगम कपास का निर्यात भी अभी नहीं करेगी। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में अभी तक करीब 45 लाख गांठ कपास का निर्यात ही हुआ है जोकि पिछले साल की तुलना में काफी कम है। विष्व बाजार में कपास का दाम सुधरकर 71.25 सेंट प्रति पाउंड हो गया है।

कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2014-15 में कपास की पैदावार 353.28 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल पैदावार 359.02 लाख गांठ की हुई थी। कॉटन एडवाइजरी बोर्ड (सीएबी) के अनुसार फसल सीजन 2014-15 में कपास की पैदावार 384.50 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल पैदावार 407.25 लाख गांठ की पैदावार हुई थी। सीएबी के अनुसार 30 अप्रैल तक उत्पादक मंडियों में 345.50 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी थी।.......आर एस राणा

चावल का निर्यात बढ़ने के बावजूद धान की कीमतों में गिरावट जारी


चालू महीने में धान की कीमतों में 200 रुपये की की आ चुकी है गिरावट
आर एस राणा
नई दिल्ली। भले ही देष से चावल का रिकार्ड निर्यात हुआ हो लेकिन धान की कीमतों में  गिरावट का दौर रुक नहीं रहा है। उत्पादक मंडियों में चालू महीने में ही धान की कीमतों में करीब 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आकर करनाल मंडी में पूसा-1121 धान की कीमतें 2,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गई। चावल की कीमतों में भी इस दौरान करीब 350 से 400 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है।
चावल के थोक कारोबारी रामनिवास खुरानियां ने बताया कि धान की कीमतों में लगातार गिरावट बनी हुई है। चावल की बिक्री काफी कम है जबकि चावल मिलों के पास धान का स्टॉक ज्यादा है। पूसा-1121 बासमती चावल सेला की कीमतें घटकर उत्पादक मंडियों में 4,100 से 4,300 रुपये प्रति क्विंटल रह गई। चालू महीने में इसकी कीमतों में करीब 400 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है। जबकि पूसा-1121 धान के भाव धटकर 2,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। पूसा-1509 धान की कीमतें घटकर 1,900 से 2,000 रुपये और सेला चावल की कीमतें घटकर 3,800 से 3,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
धान के थोक कारोबारी राजेष गुप्ता ने बताया कि नरेला मंडी में पूसा 1121 धान का भाव 2,250 रुपये और पूसा-1,509 का घटकर 1,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। डीपी धान का भाव 1,800 रुपये, सुगंधा धान का भाव 1,450 रुपये और षरबती धान का 1,400 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। उन्होंने बताया कि इस समय मांग काफी कमजोर बनी हुई है जबकि स्टॉक ज्यादा होने से बिकवाली पहले की तुलना में बढ़ी है।
एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वित वर्ष 2014-15 में देष से 119.2 लाख टन चावल का निर्यात हुआ है इसमें गैर बासमती चावल 82.2 लाख टन और बासमती चावल 37 लाख टन है। पिछले साल देष से कुल 108.90 लाख टन चावल का निर्यात हुआ था इसमें गैर बासमती चावल 71.4 लाख टन और बासमती चावल 37 लाख था।...आर एस राणा

27 मई 2015

दलहन की पैदावार बढ़ाने के लिए 216 करोड़ का आवंटन एनएफएसएम के तहत


फसल सीजन 2015-16 के लिए एनएफएसएम के तहत 564 करोड़ राज्यों को मिलेंगे
आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार दलहन पर आयात की निर्भरता कम करने के लिए सक्रिय हो गई है। फसल सीजन 2015-16 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत कुल 563.89 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है इसमें दलहन की पैदावार बढ़ाने के लिए राज्यों को 215.96 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार दलहन उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है इसलिए फसल सीजन 2015-16 में दलहन पैदावार बढ़ाने के लिए सबसे ज्यादा आवंटन किया गया है। दलहन की पैदावार बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र को फसल सीजन 2015-16 में 92.22 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश को 54.67 करोड़ रुपये, असम को 22.92 करोड़ रुपये, उड़ीसा को 20.73 करोड़ रुपये तथा नागालैंड को 6.66 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
उन्होंने बताया कि एनएफएसएम के तहत चावल की पैदावार बढ़ाने के लिए 188.54 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इसमें असम को 51.85 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश को 35.31 करोड़ रुपये, पश्चिमी बंगाल को 24.20 करोड़ रुपये और त्रिपुरा को 6.88 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। उन्होंने बताया कि गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए फसल सीजन 2015-16 में एनएफएसएम के तहत 87.24 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है इसमें उत्तर प्रदेश को 46.61 करोड़ रुपये, पंजाब को 23.86 करोड़ रुपये और हिमाचल को 5.34 करोड़ रुपये का आवंटन किया जायेगा।
उन्होंने बताया कि सरकार एनएफएसएम के तहत मोटे अनाज, कपास, जूट और गन्ने की पैदावार बढ़ाने पर जोर देगी। फसल सीजन 2015-16 के लिए एनएफएसएम के तहत मोटे अनाजों की पैदावार बढ़ाने के लिए 49.15 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इसके तहत सबसे ज्यादा आवंटन महाराष्ट्र को 12.58 करोड़ रुपये और नागालैंड को 7.71 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
कपास की पैदावार बढ़ाने के लिए एनएफएसएम के तहत 8.36 करोड़ रुपये और जूट की पैदावार बढ़ाने के लिए 7.93 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इसी तरह से गन्ने की पैदावार बढ़ाने के लिए 6.71 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।....आर एस राणा

South Indian Millers Imported 1751 T Wheat At $298.91 CIF Basis Tuticorin

          

South Indian Millers imported 1751.34 metric tonne of wheat from Australia during the week ended 24th May,2015 at Average CIF $298.91 per tonne  at Tuticorin port.The highest and the lowest CIF value was recorded at $301 and $296 per tonne.More import is expected this week and volume may be higher.

India Exports 2582 Tonne Wheat At $278.52 Per Tonne Last Week

          

Indian wheat exporters managed to export2581.86 tonne wheat during the week ended24th May,2015.The export volume has come down from last week as prices of milling wheat in domestic market firmed up. Average FOB quote for exported quantity is $278.52 per tonne.The highest and the lowest quotes were registered at $339.65 and $24.96 per tonne.Due to highjer price gap Indian exporters are unable to ship more quantity. 

पैदावार कम होने के बावजूद एमएसपी से नीचे मक्का के दाम


निर्यात पड़ते नहीं होने के साथ ही घरेलू मांग कम होने से और मंदे की आशंका
आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी में मक्का की पैदावार घटकर 64.8 लाख टन होने का अनुमान है इसके बावजूद भी उत्पादक मंडियों में मक्का की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बनी हुई है। उत्पादक मंडियों में मक्का के भाव 1,080 से 1,250 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि केंद्र सरकार ने मक्का का एमएसपी 1,310 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। विश्व बाजार में मक्का की कीमतें नीचे होने के कारण निर्यात पड़ते नहीं लग रहे हैं जबकि घरेलू बाजार में पोल्ट्र फीड के साथ ही स्टार्च मिलों की मांग कमजोर है जिससे मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट आने की आशंका है।
गोपाल ट्रेडिंग कंपनी के प्रबंधक राजेश अग्रवाल ने बताया कि बिहार की मंडियों में मक्का की दैनिक आवक बढ़कर करीब 1.5 लाख क्विंटल की हो गई लेकिन खपत राज्यों की मांग काफी कमजोर है जिससे भाव में मंदा बना हुआ है। बिहार की उत्पादक मंडियों में मक्का के भाव 1,080 से 1,150 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। पंजाब और हरियाणा पहुंच बिहार से मक्का के सौदे 1,325 से 1,330 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हो रहे हैं।
मक्का के थोक कारोबारी पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि विदेशी बाजार में दाम कम होने के कारण भारत से निर्यात पड़ते नहीं लग रहे हैं जबकि पोल्ट्री उद्योग की स्थिति भी खराब है। इसीलिए पैदावार कम होने के बावजूद भी मक्का की कीमतों में गिरावट बनी हुई है। विदेशी बाजार में मक्का के भाव 236 से 241 डॉलर प्रति टन (एफओबी) है। दिल्ली में मक्का के भाव घटकर 1,275 से 1,280 रुपये प्रति क्विंटल रहे गए। चालू सप्ताह में इसकी कीमतों में 20 से 25 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। आगामी दिनों में दैनिक आवक और बढ़ेगी जिससे मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट आने की आशंका है। आध्रप्रदेश की निजामाबाद मंडी में मक्का के भाव 1,250 रुपये और कर्नाटक की दावणगिरी मंडी में 1,280 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में मक्का की पैदावार घटकर 64.8 लाख टन होने का अनमान है जबकि पिछले साल पैदावार 71.1 लाख टन की हुई थी। रबी और खरीफ को मिलाकर मक्का की पैदावार 227.4 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 242.6 लाख टन की पैदावार हुई थी।.......आर एस राणा

25 मई 2015

कपास की दैनिक आवक 4.41 फीसदी घटकर 348.3 लाख गांठ


आर एस राणा
नई दिल्ली। पैदावार में आई कमी का असर कपास की दैनिक आवकों पर देखा जा रहा है। चालू फसल सीजन 2014-15 में अभी तक उत्पादक मंडियों में कपास की दैनिक आवक 4.41 फीसदी घटकर 348.3 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) की ही हुई है। उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के साथ ही गुजरात में कपास की दैनिक आवक में कमी आई है।
कॉटन कार्पोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार प्रमुख उत्पादक राज्यों की मंडियों में चालू सीजन में अभी तक 348.3 लाख गांठ कपास की आवक ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 364.4 लाख गांठ की आवक हुई थी। कॉटन एडवाईजरी बोर्ड (सीएबी) के अनुसार फसल सीजन 2014-15 में कपास की पैदावार घटकर 390 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल पैदावार 398 लाख गांठ की पैदावार हुई थी। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार कपास की पैदावार घटकर 353.28 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल पैदावार 359.02 लाख गांठ की पैदावार हुई थी।
उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास की दैनिक आवक घटकर 47.5 लाख गांठ की हुई है जबकि पिछले साल 55.9 लाख गांठ की आवक हुई थी। इन राज्यों में कपास की पैदावार 5 फीसदी घटकर 56 लाख गांठ होने का अनुमान है। प्रमुख कपास उत्पादक राज्य गुजरात में कपास की दैनिक आवक 11 फीसदी घटकर 93.9 लाख गांठ की हुई है। मानसूनी बारिश कम होने के कारण गुजरात में कपास की पैदावार घटकर 100.8 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल पैदावार 124 लाख गांठ की हुई थी।
महाराष्ट्र में कपास की दैनिक आवक घटकर 70.2 लाख गांठ की हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक आवक 74 लाख गांठ की हुई थी। दक्षिण भारत के राज्यों आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में कपास की आवक बढ़कर अभी तक 80.9 लाख गांठ की हो चुकी हैं जबकि पिछले साल इस समय तक 74.8 लाख गांठ की आवक हुई थी। तेलंगाना की हिस्सेदारी इसमें 55.2 लाख गांठ है। कर्नाटका में भी चालू सीजन में कपास की दैनिक आवक बढ़कर 29.6 लाख गांठ की हुई है जबकि पिछले साल इसकी आवक 23.1 लाख गांठ की हुई थी।......आर एस राणा

कपास खरीद में सीसीआई को 25,00 करोड़ का घाटा होने की आंशका-संतोष कुमार गंगवार

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू कपास सीजन 2014-15 में कॉटन कार्पोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) को कपास की खरीद से 2,500 करोड़ रुपये का घाटा होगा। वस्त्र राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष कुमार गंगवार ने बताया कि चालू सीजन में सीसीआई ने 87 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर की है।
उन्होंने बताया कि सीसीआई ने चालू खरीद सीजन में एमएसपी पर 87 लाख गांठ कपास की खरीद है जिसमें 18,000 करोड़ रुपये की लागत आई है। उन्होंने बताया कि सीसीआई ई-निलामी के माध्यम से कपास की बिक्री घरेलू बाजार में कर रही है तथा सीसीआई द्वारा कपास की बिकवाली बाजार से उंचे भाव पर की जा रही है इसलिए सीसीआई को घाटा पहले से कुछ कम होगा। पहले अनुमान था कि सीसीआई को 4,000 करोड़ रुपये का घाटा होगा। सीसीआई ई-निलामी के माध्यम से अभी तक घरेलू बाजार में 12 लाख गांठ कपास की बिकवाली कर चुकी है। .....आर एस राणा

23 मई 2015

स्टॉकिस्टों की सक्रियता से ग्वार की कीमतों में तेजी की आषंका


ग्वार गम के निर्यात में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई
आर एस राणा
नई दिल्ली। खरीफ में मानसून कमजोर रहने की आषंका से ग्वार गम में स्टॉकिस्टों की सक्रियता तो बनी हुई है लेकिन ग्वार गम पाउडर की निर्यात मांग बढ़ नहीं रही है। जिससे ग्वार और ग्वार गम की कीमतों में तेजी-मंदी बनी हुई है। जून महीने में ग्वार गम पाउडर में निर्यात मांग बढ़ने की संभावना है जिससे ग्वार की कीमतें तेज हो सकती है। वित वर्ष 2014-15 में ग्वार गम पाउडर के निर्यात में 10 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 6.65 लाख टन का हुआ है।
ग्वार गम की निर्यातक फर्म के अधिकारी ने बताया कि चालू खरीफ में अल-नीनो के असर से मानसूनी बारिष सामान्य से कम होने की आषंका है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) भी कमजोर मानसून की भविष्यवाणी कर चुका है। इसलिए ग्वार में स्टॉकिस्टों की सक्रियता बनी हुई है। उन्होंने बताया कि ग्वार गम पाउडर में निर्यात मांग इस समय कम है जिससे ग्वार की कीमतें में आई तेजी स्थिर नहीं रह पा रही है। उन्होंने बताया कि आयातक देषों की पुचपरख पहले की तुलना में बढ़ी है तथा उम्मीद है जून से ग्वार गम पाउडर के निर्यात सौदों में तेजी आयेगी। ऐसे में आगामी दिनों में ग्वार की कीमतों में तेजी ही आने का अनुमान है।
ग्वार कारोबारी संजय सिघंला ने बताया कि ग्वार का स्टॉक किसानों के साथ ही बड़े स्टॉकिस्टों के पास ज्यादा है इसीलिए भाव में गिरावट आते ही ग्वार की आवक कम हो जाती है। षनिवार को जोधपुर मंडी में ग्वार के भाव 4,800 से 4,900 रुपये और ग्वार गम के भाव 11,600 से 11,700 रुपये प्रति क्विंटल रहे। उन्होंने बताया कि ग्वार गम पाउडर के निर्यात सौदे 2,000 डॉलर प्रति टन की दर से हो रहे हैं। षनिवार को उत्पादक मंडियों में ग्वार की दैनिक आवक घटकर 14,000 से 15,000 क्विंटल की रही।
एपीडा के अनुसार वित वर्ष 2014-15 में ग्वार गम उत्पादों का निर्यात बढ़कर 6.65 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित वर्ष की समान अवधि में 6.06 लाख का हुआ था। हालांकि मूल्य के हिसाब इस दौरान ग्वार गम उत्पादों के निर्यात में 19.22 फीसदी की गिरावट आई है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार वित वर्ष 2014-15 में ग्वार गम उत्पादों का निर्यात मूल्य के हिसाब से घटकर 9,479.91 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 11,735.39 करोड़ रुपये का हुआ था।......आर एस राणा

गिरते रुपये से जगी कॉफी निर्यातकों की आस

पिछले कुछ हफ्तों से डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा में आई गिरावट ने देसी कॉफी निर्यातकों की उम्मीद बढ़ा दी है जो इस साल की शुरुआत से ही मंदे कारोबार का सामना कर रहे थे। अरेबिका बीन के निर्यात में 1 जनवरी से विभिन्न कारणों की वजह से करीब 40 फीसदी की गिरावट आई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें फिलहाल 130-140 सेंट प्रति पाउंड है, अक्टूबर में कीमतें 180 सेंट प्रति पाउंड थी, इस लिहाज से कीमतों में 27 फीसदी की गिरावट आई है। इसके अलावा भारतीय निर्यातकों द्वारा अरेबिका बींस के लिए वसूले जाने वाले अधिक प्रीमियम की वजह से 1 जनवरी और 14 मई के बीच निर्यात में गिरावट आई है।

मध्य जनवरी से अब तक भारतीय रुपये में 3 फीसदी की गिरावट आई है और रुपया डॉलर के मुकाबले 63.68 के स्तर पर पहुंच गया है इसलिए निर्यातकों को उम्मीद बंधी है। हालांकि कॉफी की कीमतें फिलहाल निचले स्तर पर हैं लेकिन निर्यातकों का कहना है कि वे तेजी से भरपाई कर सकते हैं। कॉफी निर्यातक संघ के अध्यक्ष रमेश राजा ने कहा, 'रुपये की गिरावट से निर्यातकों को हमेशा मदद मिलती है। लेकिन इस बार यह गिरावट बड़ा प्रभाव डालने के लिए काफी नहीं है क्योंकि निर्यातकों ने 62.50 रुपये के स्तर पर करार किए हैं इसलिए अगर वे इस दर पर ऑर्डर बुक कर देते हैं तो मौजूदा गिरावट का फायदा उठा सकते हैं। इसका मतलब है कि हमें इसका लाभ उठाने के लिए कुछ और हफ्तों तक इंतजार करना होगा।' उन्होंने कहा कि फिलहाल पूरे यूरोप में छुट्टिïयों का दौर चल रहा है और उपभोग कम होने के कारण कॉफी खरीदार तुरंत मोलभाव नहीं करेंगे। उन्होंने कहा, 'हालांकि हमें उम्मीद है कि अगर रुपये का मौजूदा स्तर बरकरार रहा या फिर रुपये में और भी गिरावट आई तो काफी निर्यात में तेजी आ सकती है।'  (BS Hindi)

Summer Groundnut Outturn to Fall by 52% in Gujarat - IOPEC

The groundnut outturn in Gujarat is projected lower by 52% in a recent survey by the Indian Oilseeds & Produce Export Promotion Council (IOPEPC). The survey was jointly conducted with the Junagadh Agricultural University as Gujarat is the largest producer of groundnut during summer.
IOPEPC production estimates are higher than the trader’s projection. Groundnut output this summer is estimated to be about 91,966 tonnes as against 193,258 tonnes in 2014 by IOPEC which was projected around 75,000-78,000 tonnes this season by trade participants.
The covered area under groundnut crop was lower by 45% cent during summer 2015 at 49,300 hectares compared to 89,500 hectares in 2014.
Further, yield output was hit due to lower than the needed irrigation by several farmers in the region.
IOPEC also found that the farmers were unable to get the quality seed for planting this season and had to go for GG2 and J11 varieties. The recommended ones are TG-37 and TPG41.
The demand for india’s groundnut is growing overseas. India exported around 646,114 tonnes of groundnut from April 2014 to February 2015 which was 509,515 tonnes in the same period 2013-14.

22 मई 2015

तेल में निर्यात मांग बढ़ने से केस्टरसीड में तेजी की संभावना


उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक घटी
आर एस राणा
नई दिल्ली। केस्टर तेल में इस समय निर्यात मांग अच्छी बनी हुई है जबकि उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक कम होने लगी है। ऐसे में उम्मीद है कि आगामी दिनों में इसकी मौजूदा कीमतों में 10 से 12 फीसदी की तेजी आने की संभावना है। गुजरात की मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक घटकर 75 से 80 हजार बोरी (एक बोरी-75 किलो) की रह गई।
एस सी केमिकल के निदेषक कुषल राज पारिख ने बताया कि केस्टर तेल के निर्यात सौदे अच्छे हो रहे है जबकि प्लांटों के पास स्टॉक कम है। केस्टर तेल के निर्यात सौदे 1,265 डॉलर प्रति टन की दर से चीन के लिए सीएंडएफ के आधार पर हो रहे है। उन्होंने बताया कि उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक घट रही है जिससे मौजूदा कीमतों में तेजी की संभावना है। उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड के भाव 3,800 से 3,825 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।
जयंत एग्रो आर्गेनिक लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वित वर्ष 2014-15 में केस्टर तेल का निर्यात 4.59 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 4.72 लाख टन का हुआ था। उन्होंने बताया कि मार्च-अप्रैल में निर्यात में तेजी आई है। मार्च 2015 में केस्टर तेल का निर्यात बढ़कर 59,294 टन का हुआ है जबकि पिछले साल मार्च महीने में 35,773 टन का निर्यात ही हुआ था। इस समय भी निर्यात मांग अच्छी बनी हुई है जिससे केस्टर तेल की कीमतों में भी तेजी आने की संभावना है।
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2014-15 में केस्टर सीड का उत्पादन 18.24 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 17.27 लाख टन का उत्पादन हुआ था। उद्योग का मानना है कि केस्टर सीड की पैदावार पिछले साल से कम रहेगी। उद्योग के अनुसार वर्ष 2014-15 में केस्टर सीड की पैदावार 11 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 11.30 लाख टन की पैदावार हुई थी।....आर एस राणा

सामान्य से कम बारिष की आषंका से केंद्र सरकार हुई सक्रिय


खरीफ की तैयारियों के लिए 18 राज्यों के कृषि अधिकारियों की बुलाई बैठक
आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू खरीफ में सामान्य से कम बारिष होने की आषंका से केंद्र सरकार सक्रिय हो गई है। खरीफ फसलों की बुवाई से पहले ही तैयारियों के लिए कृषि मंत्रालय ने 18 राज्यों के कृषि अधिकारियों की बैठक बुलाई है। बैठक दिल्ली में 2 से 3 जून को होगी जिसमें बीज, खाद, सिचांई और बिजली की उपलब्धता पर विचार-विमार्ष होगा।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी)  ने चालू खरीफ में सामान्य से कम बारिष होने की आषंका जताई है। इसकी तैयारियों के लिए मंत्रालय ने 18 राज्यों के कृषि अधिकारियों की बैठक बुलाई है। बैठक में सभी राज्यों के कृषि अधिकारी अपने राज्य में बीज, खाद, सिचांई और बिजली की स्थिति से अवगत करायेंगे। उन्होंने बताया कि कृषि सचिव की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में भारतीय मौसम विभाग के महानिदेषक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उपमहानिदेषक भी मौजूद रहेंगे।
उन्होंने बताया कि मानसून कमजोर रहने वाले राज्यों में कम पानी में उगने वाले उन्नत बीज उपलब्ध कराये जायेंगे। खरीफ फसलों के लिए राज्यों के हिसाब से आकस्मिक योजना तैयार की जायेगी। राज्य के कृषि अधिकारियों से अपने राज्य के हिसाब से बोई जाने वाली फसलों, प्रमाणिक बीजों की उपलब्धता, सिचांई की स्थिति तथा किसानों को बिजली सप्लाई के बारे में पूरी रिपोर्ट देनी होगी। कृषि मंत्रालय राज्यों के हिसाब से आकस्मिक योजना तैयार करेगा जिससे की बारिष कम होने की स्थिति में भी खाद्यान्न की पैदावार ज्यादा प्रभावित नहीं हो।
मानसून विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार अल नीनो के प्रभाव से इस साल मानसून सामान्य से कमजोर रहेगा। पिछले साल भी देष में 12 फीसदी बारिष सामान्य से कम हुई थी जिससे अनाज, कपास और तिलहन तथा दलहन उत्पादन प्रभावित हुआ था। वर्ष 2014-15 में देष मे खाद्यान्न की पैदावार घटकर 25.11 करोड़ टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 26.50 करोड़ टन से कम है। इससे पहले भी फसल वर्ष 2009-10 में देष के कई जिलों में सुखे जैसे हालात बनने से खाद्यान्न पैदावार में भारी गिरावट आई थी। वर्ष 2009-10 में देष में खाद्यान्न का उत्पादन घटकर 21.81 करोड़ टन का ही हुआ था जबकि वर्ष 2008-09 में 23.44 करोड़ टन खाद्यान्न की पैदावार हुई थी।.....आर एस राणा
उन्होंने बताया कि दो और जून को दिल्ली में होने वाली बैठक में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेष, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, झारखंड, पष्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़, असम, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटका, आंध्रप्रदेष, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेष के कृषि निदेषकों को आमंत्रित किया गया है।

Maharashtra Govt Urges Seed Companies To Reduce Bt Cotton Seed Prices

Maharashtra government has urged cotton seed companies to reduce the price of Bt cotton seeds by Rs 100 per bag from Rs 930 per bag of 450 gram seeds to Rs 830 to combat the rural distress caused by the drought and then unseasonal rains. The state government may convert the same into legal decision with the provision of punishment if the seed companies do not follow the rule. However the seed companies have informed the state government about their inability to reduce the price of seed following the increase in cost of production.

21 मई 2015

मूंगफली दाने के निर्यात में 39 फीसदी की बढ़ोतरी


रबी में पैदावार कम होने के अनुमान से भाव में तेजी की संभावना
आर एस राणा
नई दिल्ली। मूंगफली दाने के निर्यात में मात्रा के हिसाब से 39 फीसदी और मूल्य के हिसाब से 46.67 फीसदी की भारी बढ़ोतरी हुई है। खरीफ मूंगफली की आवक उत्पादक मंडियों में कम हो रही है जबकि रबी मूंगफली की खपत दाने में ज्यादा होती है। रबी में मूंगफली की पैदावार भी कम होने का अनुमान है इसलिए मौजूदा कीमतों में तेजी की ही संभावना है। राजकोट में मूंगफली के भाव 4,450 से 4,550 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।
एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वित वर्ष 2014-15 में मात्रा के हिसाब से मूंगफली दाने के निर्यात में 39 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 7.08 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले वित वर्ष 2013-14 में मूंगफली दाने का निर्यात 5.09 लाख टन का हुआ था। उन्होंने बताया कि विष्व बाजार में मूंगफली दाने की निर्यात मांग इस समय अच्छी बनी हुई है तथा अप्रैल से षुरू हुए निए वित वर्ष में इसमें और भी बढ़ोतरी होने का अनुमान है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार वित वर्ष 2014-15 में मूल्य के हिसाब से मूंगफली दाने के निर्यात में 46.67 फीसदी की भारी बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया कि इस दौरान मूंगफली दाने का निर्यात मूल्य के हिसाब से बढ़कर 4,675.38 करोड़ रुपये का हो गया जबकि पिछले वित वर्ष में इसका निर्यात 3,187.66 करोड़ रुपये का हुआ था।
मूंगफली कारोबारी समीर भाई षाह ने बताया कि उत्पादक मंडियों में खरीफ की मूंगफली की आवक काफी कम हो गई है जबकि इस समय तेल में मांग अच्छी है। रबी की मूंगफली की खपत दाने में ज्यादा होती है। वैसे भी रबी में मूंगफली की पैदावार कम होने का अनुमान है इसलिए आगामी दिनों में मूंगफली की कीमतों में तेजी आने का अनुमान है। उत्पादक मंडियों में मूंगफली के भाव 4,400 से 4,550 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि राजकोट में मूंगफली तेल का भाव 1,020 रुपये प्रति 10 किलो है।
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2014-15 में रबी में मूंगफली की पैदावार घटकर 15.91 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसकी पैदावार 16.56 लाख टन की हुई थी। खरीफ में भी पैदावार में भारी कमी आई थी। खरीफ में पैदावार केवल 50.57 लाख टन की ही हुई थी जबकि पिछले साल खरीफ में 80.58 लाख टन का उत्पादन हुआ था।.....आर एस राणा

कमोडिटी बाजारः सोने-चांदी में क्या करें

एफओएमसी की पिछली बैठक के मिनट्स के बाद सोने को फिर से सपोर्ट मिला है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना 1210 डॉलर के पार चला गया है। वहीं घरेलू बाजार में मजबूत रुपये के बावजूद सोने में मजबूती कायम है। चांदी में भी तेजी आई है। फिलहाल एमसीएक्स पर सोना 27300 रुपये के आसपास कारोबार कर रहा है, जबकि चांदी 39350 रुपये पर पहुंच गई है।

दरअसल एफओएमसी के कई सदस्यों ने माना है कि यूएस इकोनॉमी की रफ्तार अभी बेहद धीमी है और फिलहाल ब्याज दरें बढ़ने से वहां जोखिम बढ़ सकती है। हालांकि कल फेड चेयरमैन का भाषण है जिसपर बाजार की नजर है। इस बीच एनसीडीईएक्स जोकि एग्री कमोडिटी का बड़ा एक्सचेंज है आज से सोने का नया वायदा लॉन्च किया है। एक्सचेंज का दावा है कि प्रीमियम में पोलिंग सिस्टम लाने से इस वायदा में बेहद पारदर्शी तरीके से कारोबार हो सकेगा।

कल की गिरावट के बाद कच्चे तेल में आज रिकवरी आई है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में हल्की बढ़त है। एमसीएक्स पर कच्चा तेल 0.5 फीसदी की उछाल के साथ 3790 रुपये पर कारोबार कर रहा है। नैचुरल गैस भी आज मजबूत है। एमसीएक्स पर नैचुरल गैस करीब 0.5 फीसदी बढ़कर 186.8 रुपये पर कारोबार कर रहा है।

चीन में राहत पैकेज की उम्मीद से बेस मेटल्स में तेजी आई है। यहां तक की मजबूत रुपये के बावजूद एमसीएक्स पर सभी मेटल बढ़त के साथ कारोबार कर रहे हैं। कॉपर करीब 0.75 फीसदी की बढ़त के साथ 403.5 रुपये पर कारोबार कर रहा है। निकेल करीब 1 फीसदी की मजबूती के साथ 840 रुपये के ऊपर पहुंच गया है। एल्युमिनियम में 0.6 फीसदी, लेड में 1.25 फीसदी और जिंक में 0.8 फीसदी की तेजी आई है।

आनंदराठी कमोडिटीज की निवेश सलाह

सोना एमसीएक्स (जून वायदा) : खरीदें - 27240, स्टॉपलॉस - 27100 और लक्ष्य - 27420

कच्चा तेल एमसीएक्स (जून वायदा) : खरीदें - 3740, स्टॉपलॉस - 3680 और लक्ष्य - 3840

कॉपर एमसीएक्स (जून वायदा) : खरीदें - 400, स्टॉपलॉस - 397 और लक्ष्य - 405

मॉनसून के आने से पहले उत्तर भारत समेत पश्चिम और मध्य भारत में भीषण गर्मी पड़ रही है। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक पंजाब, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तेलंगाना में समान्य से पांच डिग्री ऊपर तक तापमान पहुंच गया है। वहीं कल महाराष्ट्र के चंद्रपुर में सबसे ज्यादा तापमान रिकॉर्ड किया गया। यहां गर्मी 47 डिग्री के पार पहुंच गई है।

हालांकि मौसम विभाग ने उम्मीद जताई है कि अगले 48 घंटों में कई इलाकों में तेज हवाओं के साथ हल्की बूंदाबांदी हो सकती है। वहीं पूर्वोत्तर के ज्यादातर इलाकों में तेज बारिश होने का अनुमान है।

पल-पल बदलते मौसम के रुख का कमोडिटी बाजार पर बड़ा असर दिख रहा है। कल की गिरावट के बाद सोयबीन में आज फिर से तेजी लौटी है। चने की शुरुआती गिरावट भी खत्म हो गई है। जीरा भी अब बढ़त पर कारोबार कर रहा है। दरअसल महाराष्ट्र और गुजरात समेत उत्तर और मध्य भारत में मॉनसून के आने से पहले प्रचंड गर्मी पड़ रही है। ऐसे में मंडियों में आवक पर असर पड़ा है।...... स्रोत : CNBC-Awaaz

निष्क्रिय एक्सचेंजों को भेजा जाएगा नोटिस

वायदा बाजार नियामक (एफएमसी) ने कमोडिटी एक्सचेंजों के लिए एक परिपत्र जारी किया है। परिपत्र के अनुसार अगर एक्सचेंजों ने सदस्यों की रकम वापस करने के लिए कारोबार को एक साल से निलंबित किया हुआ है तो उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा कि उस कारोबार के लिए उनकी मान्यता क्यों न रद्द कर दी जाए। जिन मान्यता प्राप्त कमोडिटी एक्सचेंजों को ये नोटिस जारी किए जाएंगे उनमें इंडियाबुल्स और एमएमटीसी द्वारा संचालित आई-सैक्स और तीन अन्य क्षेत्रीय एक्सचेंजों को इन्हें भेजा जाएगा, जहां कम से कम पिछले 12 महीनों के दौरान कोई कारोबार नहीं हुआ।

हालांकि एक नीति के तौर पर एफएमसी ने निर्णय किया है कि कारोबार के बंद होने के बाद ग्राहकों द्वारा एक्सचेंजों में जमा कराए गए व्यापारिक मार्जिन धन को 15 दिनों के भीतर उन्हें वापस कर दिया जाना चाहिए और एक्सचेंजों को शिकायतें, व्यापार/निपटान संबंधी मसले या एक्सचेंजों के परिचालन से जुड़ा कोई और मामला 60 दिनों के भीतर सुलझाना होगा। एक्सचेंजों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि व्यापार निलंबित होने के छह महीनों के दरमियान व्यापार संबंधी सभी शिकायतों का निपटान होना चाहिए। कारोबार के निलंबित होने की अवधि के छह महीनों के दरमियान एक्सचेंजों को कारोबार से जुड़ी नकदी और गैर नकदी तत्त्वों को लौटाना होगा। इसके साथ ही सदस्यों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके ऊपर किसी और तरह का बकाया नहीं है, वहीं एफएमसी ने एक्सचेंजों के सामने भी फिर से कारोबार शुरू करने की गुंजाइश छोड़ी है लेकिन अगर एक्सचेंज में 12 महीनों तक कारोबार नहीं होगा तो फिर नियामक ऐसे एक्सचेंजों को कारण बताओ नोटिस जारी करेगा। नई नीति प्रभाव में आ गई है और आई-सैक्स ऐसा पहला एक्सचेंज होगा, जिसे नोटिस जारी किया जाएगा। (BS Hindi)

20 मई 2015

चावल निर्यात में लगातार तीसरे साल भारत नंबर वन


आर एस राणा
नई दिल्ली। दूनिया में चावल निर्यात के मामले में देष लगातार तीसरे साल नबंर वन रहा है। वित वर्ष 2014-15 में भारत ने 119.2 लाख टन चावल का निर्यात किया है। मूल्य के हिसाब से इस दौरान भारत ने 47,834.71 करोड़ रुपये का चावल निर्यात किया है।
एपिडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वित वर्ष 2014-15 में ईरान द्वारा बासमती चावल का आयात परमिट के आधार पर करने के कारण कुछ गिरावट जरूर आई लेकिन कुल चावल के मामले में हम लगातार तीसरे साल दूनिया में नंबर वन रहे हैं। उन्होंने बताया कि वित वर्ष 2014-15 में हमने कुल 119.2 लाख टन चावल का निर्यात किया है इसमें 82.2 लाख टन गैर-बासमती चावल है और 37 लाख टन बासमती चावल है। उन्होंने बताया कि ईरान को छोड़ अन्य खाड़ी देषों की आयात मांग चावल में इस दौरान बढ़ी है, साथ ही यूरोप, यूएस, दक्षिण पूर्व एषियाई देष, बंगलादेष और अफ्रीकी देषों की आयात मांग अच्छी रही।
वणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वित वर्ष 2014-15 में देष से मूल्य के हिसाब से 47,834.71 करोड़ रुपये का चावल का निर्यात हुआ है। इसमें बासमती चावल की हिस्सेदारी 27,598.71 करोड़ रुपये की है जबकि इस दौरान 20,336 करोड़ रुपये का गैर-बासमती चावल का निर्यात किया गया है। वित वर्ष 2013-14 में देष से 47,087.03 करोड रुपये मूल्य का चावल का निर्यात हुआ था। इस दौरान बासमती चावल का निर्यात मूल्य के आधार पर 29,291.82 करोड़ रुपये और गैर बासमती चावल का निर्यात 17,795.21 करोड़ रुपये का था।
वित वर्ष 2013-14 में देष से 108.90 लाख टन चावल का निर्यात हुआ था इसमें 71.4 लाख टन गैर-बासमती और 37.5 लाख टन बासमती चावल था। भारत ने गैर-बासमती चावल के निर्यात पर से सितंबर 2011 में प्रतिबंध हटाया था। इससे पहले केंद्र सरकार घरेलू स्तर पर कीमतों में आई तेजी को देखते हुए 2007 में गैर-बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी।
मालूम हो कि वर्ष 2010 तक थाइलैंड विष्व में चावल के निर्यात में पहले नबंर में मौजूद था तथा थाइलैंड सालाना 100 लाख टन के करीब चावल का निर्यात करता था। वर्ष 2014 में थाइलैंड ने 109.6 लाख टन चावल का निर्यात किया है जबकि वियतनाम ने 64 लाख टन चावल का निर्यात किया है।.....आर एस राणा

Ukraine Wheat Crop Size May Touch 22MMT In 2015

An agro consultancy service of Ukraine has revised its wheat production estimate up to 22 MMT for 2015.Previously this consultancy firm had projected 21 MMT wheat production.Better weather condition throughout the growing season and rains at regular intervals helped to attain better yield.However, it is lower than2014 crop size when the country had produced 24.1 million tonne wheat.

Japan Invites tenders To Buy 1.17 lakh Tonne Wheat

Japan has invited tender to buy a total of 116,905 tonnes of food quality wheat from the U.S, Canada and Australia in a regular tender.Japan keeps a tight grip on imports of the country's second most important staple after rice and buys the majority of the grain for milling via tender.It may buySemi white and hard red varieties from USand Standard white from Australia,Red Spring from Canada,having minimum protein content of 12.5 percent..Shipment  time is 20th June to 21st July.

जून में समीक्षा करेगा जीसीएमएमएफ

पश्चिमी भारत में दूध की कीमतें लंबे समय तक स्थिर बने रहने के बाद बढऩे की संभावना है। इसमें महाराष्ट्र और राजस्थान के हिस्से शामिल हैं। हालांकि गुजरात, दिल्ली और दक्षिण भारत में दूध की आपूर्ति करने वाली कंपनियों ने स्पष्टï किया कि देश में स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) की अतिरिक्त मात्रा उपलब्ध होने से फिलहाल कीमतें बढ़ाने की उनकी कोई योजना नहीं है। देश की सबसे बड़ी डेयरी कंपनी गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) करीब पंद्रह दिन बाद जून में स्थिति की समीक्षा करेगी।
 
अप्रैल में मुंबई शहर के आसपास असंगठित क्षेत्र के दूध उत्पादकों ने दाम बढ़ा दिए, इसके बाद इस क्षेत्र की दो सहकारी डेयरियों महानंद और कोल्हापुर जिला सहकारी दूध उत्पादक संघ लिमिटेड (जो गोकुल ब्रांड के तहत दूध और दुग्ध उत्पादों की बिक्री करता है) ने खुदरा विक्रेताओं के दबाव में 1-2 रुपये प्रति लीटर इजाफा किया। महानंद डेयरी के महाप्रबंधक (मार्केटिंग) वी के अग्निहोत्री ने इस बात की पुष्टिï की और कहा कि कीमतों में बढ़ोतरी खुदरा विक्रेताओं के मार्जिन में इजाफा करने के लिए की गई।
 
हालांकि राजस्थान कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन खरीद कीमतें बढ़ाने के बारे में विचार कर रहा है ताकि किसान डेयरी से जुडऩे के लिए प्रेरित हों, साथ ही उपभोक्ताओं पर भी इस बढ़ोतरी का बोझ डाला जाएगा। फेडरेशन सारस ब्रांड के तहत दूध बेचता है। फेडरेशन के चेयरमैन जोग एस बलोत ने बताया, 'हमारी खरीद गर्मियों के महीने में 36 लाख लीटर प्रतिदिन से घटकर 26 लाख लीटर प्रतिदिन रह जाती है। किसानों को डेयरी से जुडऩे के प्रति आकर्षित करने के लिए हम अब खरीद कीमत बढ़ाने की योजना बना रहे हैं।' पूरे राजस्थान की डेयरियों में कीमत 510-570 रुपये प्रति किलोग्राम वसा है। बलोत का दावा है कि 21 मई से इसे 550 रुपये प्रति किलोग्राम वसा तक बढ़ाया जा सकता है। इससे फेडरेशन द्वारा खुदरा कीमतों में तेजी देखने को मिल सकती है और डबल टोंड दूध के लिए कीमत 34 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ सकती है जो फिलहाल 32 रुपये प्रति लीटर है। बलोत ने स्पष्टï किया कि इससे खुदरा मार्जिन में इजाफा नहीं किया जा सकता बल्कि बढ़ती हुई लागत को कम करने में मदद मिलेगी। तमिलनाडु के हटसन एग्रो के प्रबंध निदेशक आर जी चंद्रमोहन ने बताया कि उनकी आने वाले महीनों में कीमत बढ़ाने की कोई योजना नहीं है। उन्होंने बताया, 'भारत में एसएमपी का पर्याप्त स्टॉक है। इसलिए तात् ौकालिक रूप से कीमत बढ़ाने की जरूरत नहीं है। महानंद और गोकुल तकनीकी कारणों से ऐसा कर रहे हैं।' 
 
हालांकि देश का सबसे बड़े सहकारी जीसीएमएमएफ के पास भी खुदरा विक्रेताओं का मार्जिन बढ़ाने की कोई योजना नहीं है। जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक आर एस सोढ़ी ने कहा, 'हम पूरे भारत में एक समान मार्जिन बरकरार रखते हैं और कुछ खास क्षेत्रों में मार्जिन नहीं बढ़ा सकते हैं। हमने पिछले 12-13 महीनों में कीमतें नहीं बढ़ाईं और अब तक कीमत बढ़ाने की कोई योजना नहीं है।' हालांकि उन्होंने कहा कि जीसीएमएमएफ जून में स्थिति की समीक्षा कर सकता है।
 
अब जीसीएमएमएफ के उत्पादन में 20-25 फीसदी गिरावट आई है। चंद्रमोगन के मुताबिक देश में अभी भी 80,000 टन एसएमपी का भंडार है जिसे आसानी से दूध में परिवर्तित किया जा सकता है। ठीक इसी समय मूल्यवर्धित उत्पादों की मांग बढ़ जाती है और एसएमपी के स्टॉक का एक हिस्सा मांग को पूरा करने में खर्च होता है और इससे स्टॉक कम हो जाता है। उन्होंने बताया कि अंतरराष्टï्रीय बाजार में एसएमपी की कीमत 172 रुपये प्रति किलोग्राम है।  (BS Hindi)

कमजोर मांग का असर स्थानीय रबर बाजार पर

कम मांग और वैश्विक बाजार में कम कीमतों की वजह से प्राकृतिक रबर के बाजार उतार-चढ़ाव का सामना कर रहे हैं। स्थानीय बाजार गिरावट का सामना कर रहे हैं और बेंचमार्क ग्रेड आरएसएस-4 की कीमत 124-124.5 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास है। अंतरराष्टï्रीय स्तर की कम कीमतें भी इस्तेमाल करने वाले रबर के उद्योगों को आकर्षित नहीं कर पा रही हैं और इसलिए कीमतें अभी भी निचले स्तर पर बनी हुई हैं।
 
बाजार में हस्तक्षेप करने का केरल सरकार का बहुप्रतीक्षित कार्यक्रम अभी भी शुरू नहीं हुआ है। इससे भी रबर उत्पादकों की उम्मीदों को झटका लगा है। राज्य सरकार ने मार्च में 300 करोड़ रुपये की रबर खरीद योजना की घोषणा की थी लेकिन इस योजना की शुरुआत होनी अभी भी बाकी है। वैश्विक बाजार आज 117 रुपये प्रति किग्रा तक गिर गया और एसएमआर-20 ग्रेड 95 रुपये प्रति किग्रा की दर पर उपलब्ध है। अन्य बाजारों में कम कीमत होने की वजह से भारत की ओर आने की आयात में इजाफा हुआ जिससे देसी बाजार पर बुरा असर पड़ा। आयात शुल्क में इजाफा होने से देश में होने वाले आयात पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अप्रैल में 37,250 टन रबर देश में लाया गया जबकि पिछले साल के समान महीने में 29,140 टन रबर का आयात हुआ था। इससे पता चलता है कि अंतरराष्टï्रीय बाजार में कीमत चढऩे से भारत में अधिक आयात हो रहा है। 
 
आयात शुल्क में बढ़ोतरी आयातकों के लिए कोई समस्या नहीं है क्योंकि कीमतों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। इससे शुल्क  में होने वाले इजाफे का प्रभाव खत्म हो गया। कोच्चि के एक जाने माने कारोबारी एन राधाकृष्णन ने कहा कि शुल्क में बढ़ोतरी से आयात में इजाफा नहीं होगा। बढ़े हुए शुल्क पर भी आयात स्थानीय बाजार से खरीदारी करने के मुकाबले सस्ता है। ( BS Hindi)

स्विटजरलैंड ने हटाया आम आयात से प्रतिबंध

स्विटजरलैंड ने करीब एक साल पहले भारत से आम आयात पर लगाया गया प्रतिबंध हटाने की घोषणा की है। इस सूचना की पुष्टिï करते हुए एपीडा के एक अधिकारी ने कहा, 'यह प्रतिबंध पिछले सीजन के आखिर तक था जिसे इस सीजन में आम निर्यात शुरू होने के साथ ही हटा लिया गया है।'
हालांकि स्विटजरलैंड भारत से आम कुछ लाख डॉलरों के आम का ही आयात करता है और भारत के आम निर्यात बाजार में उसकी हिस्सेदारी भी मामूली है। लेकिन प्रतिबंध हटाया जाना भारतीय आम निर्यातकों के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे यूरोप के अन्य देशों में आम निर्यात करने का रास्ता खुलेगा। (BS Hindi)

गुजरात के किसान सीधे बेचेंगे फल और सब्जियां

गुजरात सरकार ने फलों व सब्जियों को एपीएमसी कानून से बाहर कर दिया है। इससे राज्य के किसान अपने उत्पाद सीधे बाजार में बेच सकेंगे। अभी तक किसानों के लिए फल व सब्जियों की बिक्री अनिवार्य रूप से कृषि उपज मंडी समितियों (एपीएमसी) के जरिए करना जरूरी था। एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि राज्य के कृषि विभाग ने इस बारे में सार्वजनिक अधिसूचना जारी करते हुए फल व सब्जियों को एपीएमसी कानून से बाहर कर दिया है। इससे किसानों को अपनी उपज के लिए अधिक मूल्य मिल सकेगा और साथ ही सरकार को मूल्य नियंत्रण में मदद मिलेगी। BS Hindi

19 मई 2015

धनिये में महंगाई की रिकॉर्ड दौड़

वक्त से थोड़ा पहले ही मॉनसून आने की खबर के बावजूद कृषि जिंसों से महंगाई कम होने का नाम नहीं ले रही है। मॉनसूनी फुहारों के साथ कृषि उत्पादों की कीमतें भी ठंडी होने लगेंगी लेकिन उत्पादन कम होने की बढ़ती आशंका के चलते धनिया महंगाई का नया रिकॉर्ड बनाने के रास्ते पर अग्रसर दिख रही है। वायदा बाजार में धनिया 12,000 रुपये प्रति क्ंिवटल के पार पहुंच चुकी है जबकि हाजिर बाजार में 9,000 रुपये के ऊपर खड़ी है। करीब ढाई महीने में धनिये की कीमतें दोगुनी हो गई हैं।

पिछले ढाई महीनों में सबसे ज्यादा धनिये की कीमतें बढ़ी हैं। वायदा बाजार में धनिये की कीमतें हर दिन तेजी से बढ़ रही हैं। सोमवार को ये 12,000 रुपये प्रति क्ंिवटल के पार पहुंच गईं। एनसीडीईएक्स पर धनिये के सभी अनुबंधों में करीब 6 फीसदी की भारी तेजी देखने को मिली। धनिया अगस्त अनुबंध 685 रुपये बढ़कर 12,115 रुपये और सितंबर 702 रुपये बढ़कर 12,412 रुपये प्रति क्ंिवटल पर पहुंच गया जबकि जून अनुबंध 660 रुपये उछल कर 11,660 रुपये और जुलाई 675 रुपये बढ़कर 11,940 रुपये प्रति क्ंिवटल हो गया। वायदा बाजार में मार्च की शुरुआत में धनिये की कीमतें 6,240 रुपये बोली जा रही थीं जबकि हाजिर बाजार में 5,500 रुपये प्रति क्ंिवटल थीं जो इस समय 9,000 रुपये प्रति क्ंिवटल के पार पहुंच चुकी हैं।

हाजिर और वायदा की कीमतों में भारी अंतर की वजह मंडियों में आ रही खराब गुणवत्ता वाली धनिया को बताया जा रहा है। ऐंजल ब्रोकिंग के एग्री कमोडिटी विशेषज्ञ रितेश कुमार साहू कहते हैं कि धनिये की फसल पहले से ही कम थी, इसके बाद बारिश के कारण फसल खराब हुई, जिसके कारण कीमतें बढ़ रही हैं। मसाला मिल मालिकों की तरफ से धनिये की बेहतरीन मांग आ रही है। मांग में तेजी को देखते हुए कहा जा सकता है कि धनिये की कीमतें अब तक के सारे रिकॉर्ड तोडऩे की राह पर चल चुकी है। एनसीएमएल की इंडिया कमोडिटी इयर बुक 2015 के अनुसार पिछले कुछ सालों से धनिये की पैदावार पूरी तरह से अस्थिर है। दो से चार लाख टन के बीच पैदावार हो रही है। उत्पादन कम होने की सबसे बड़ी वजह किसानों का दूसरी फसल अपनाना है। राजस्थान में किसान धनिये की जगह चने को ज्यादा प्राथमिकता देने लगे हैं।

इस साल धनिया 13,500 रुपये प्रति क्ंिवटल तक जा सकती है जो अब तक रिकॉर्ड होगा। वायदा बाजार में 21 नवंबर 2014 को धनिया 13,345 रुपये प्रति क्ंिवटल तक पहुंच चुकी है। मसाला कारोबारियों का कहना है कि फसल सीजन शुरू होते ही देश के ज्यादातर हिस्सों में बारिश होने से धनिये की फसल को भारी नुकसान हुआ है। बारिश ऐसे समय में हुई जब ज्यादातर हिस्सों में फसल पूरी तरह तैयार थी जिसके कारण भारी नुकसान हुआ है। दरअसल बारिश होने के कारण फसल में कीड़े भी लग गए थे। दक्षिण भारत के प्रमुख मसाला उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश में माहू नामक रोग ने धनिये की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाया। हालांकि फसल खराब होने के आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं लेकिन कारोबारियों का कहना है कि इस बार करीब 50 फीसदी फसल खराब हो गई है, जिसके कारण कीमतों में तेजी आना शुरू हुई। कमोडिटी रिपोर्ट के अनुसार उत्तर भारत में धनिये की मांग बढऩे की वजह से राजस्थान की मंडियों में धनिया तेज हुई है जबकि दक्षिण भारत में खड़ी फसल में रोग लगने से कीमतें बढ़ी हैं।

बारिश के बाद किसानों और कारोबारियों की तरफ से आवक तो बढ़ी थी लेकिन धनिये की गुणवत्ता खराब दिख रही है। धनिये का रंग हरे के जगह काला हो गया है। इसके बावजूद कीमतें ऊपर जा रही हैं क्योंकि मांग के मुताबिक आवक कमजोर है क्योंकि स्टॉकिस्टों और मिल मालिकों की तरफ से मांग बहुत ज्यादा है। चालू साल में 130-135 लाख बोरी (एक बोरी में 40 किलोग्राम) पैदावार होने का अनुमान है। मार्च-अप्रैल में बारिश होने के कारण राजस्थान में धनिये की फसल 45 फीसदी खराब हो गई है जिससे उत्पादन करीब आधा रहने का अनुमान लगाया जा रहा है, जबकि मध्य प्रदेश में भी उत्पादन 5 फीसदी कम होने की बात कही जा रही है। गुजरात में भी धनिये की फसल खराब होने के कारण उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 5 फीसदी कम होने की खबर आ रही है। (BS Hindi)

विश्व बाजार में कीमतें कम होने से गेहूं का आयात बढ़ा

विश्व बाजार में कीमतें कम होने से गेहूं का आयात बढ़ा
आस्ट्रेलिया और यूक्रेन से 6.5 लाख टन के हो चुके हैं आयात सौदे
आर एस राणा
नई दिल्ली। विदेशी बाजार में गेहूं की कीमतें कम होने से आयात बढ़ रहा है। चालू सीजन में अभी तक दक्षिण भारत की कंपनियां करीब 6.5 लाख टन गेहूं के आयात सौदे कर चुकी हैं। आस्ट्रेलियन गेहूं का भाव भारतीय बंदरगाह पर पहुंच गत सप्ताह 268.9 डॉलर प्रति टन था।
बंगलुरू स्थित ग्रेन आयात-निर्यात फर्म के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि विदेशी बाजार में उपलब्धता ज्यादा होने से गेहूं की कीमतें नीचे बनी हुई है जिसकी वजह से आयात बढ़ रहा है। चाल सीजन में अभी तक भारतीय कंपनियां आस्ट्रेलिया और यूक्रेन से करीब 6.5 लाख टन गेहूं के आयात सौदे कर चुकी है। हाल ही में 1,000 टन गेहूं के आयात सौदे आस्ट्रेलिया से तथा 600 टन के आयात सौदे यूक्रेन से हुए है। आस्ट्रेलिया से आयातित गेहूं का भाव तुतीकोरन बंदरगाह पहुंच 268.9 डॉलर प्रति टन है। उन्होंने बताया कि रुस के साथ यूक्रेन में गेहूं की नई फसल की आवक हो रही है जबकि जून महीने में अमेरिका की फसल आ जायेगी। ऐसे में विदेशी बाजार में गेहूं की कीमतों में तेजी की संभावना भी नहीं है।
गेहूं के थोक कारोबारी संजय गुप्ता ने बताया कि विदेशी बाजार में गेहूं के भाव पिछले साल की तुलना में 30 से 32 फीसदी नीचे हैैं। शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबॉट) में मई महीने के वायदा अनुबंध में गेहूं के दाम 176 डॉलर प्रति टन है जबकि पिछले साल इसके भाव 257.18 डॉलर प्रति टन थे। विदेशी बाजार में आस्ट्रेलियन गेहूं का भाव 237 डॉलर, यूक्रेन के गेहूं का भाव 195 डॉलर और रुस के गेहूं का भाव 193.5 डॉलर प्रति टन है।
पंजाब और हरियाणा की मंडियों में गेहूं के भाव 1,450 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे है जबकि उत्तर प्रदेश की मंडियों में भाव 1,375 से 1,450 रुपये प्रति क्विंटल हैं। चालू रबी विपणन सीजन 2015-16 में गेहूं की सरकारी खरीद 256.26 लाख टन की हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी खरीद 253.10 लाख टन की हुई थी। चालू सीजन में केंद्र सरकार ने गेहूं की खरीद का लक्ष्य 300 लाख टन का रखा है जबकि पिछले साल 280 लाख टन की खरीद हुई थी।
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2014-15 में गेहूं का उत्पादन घटकर 907.8 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसकी पैदावार 958.5 लाख टन की हुई थी। .......आर एस राणा

18 मई 2015

चीनी उत्पादन 278 लाख टन से ज्यादा

चीनी उत्पादन 278 लाख टन से ज्यादा
आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू पेराई सीजन 2014-15 (अक्टूबर से सितंबर) में 15 मई तक चीनी का उत्पादन बढ़कर 278.48 लाख टन का हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 38.45 लाख टन ज्यादा है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन बढ़कर 104.37 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 77.20 लाख टन ही चीनी का उत्पादन हुआ था। उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 70.80 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 65.08 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में अभी तक 48.78 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 41.19 लाख टन चीनी का उत्पादन ही हुआ था।
चीनी का उत्पादन सालाना खपत से ज्यादा होने के कारण घरेलू बाजार में चीनी के दाम नीचे बने हुए है जिसकी वजह चीनी मिलों को घाटा उठाना पड़ रहा है तथा किसानों को भुगतान नहीं हो पा रहा है। चालू पेराई सीजन में चीनी मिलों पर किसानों का करीब 21,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया हो चुका है। केंद्र सरकार चीनी मिलों को राहत देने के लिए 14 लाख टन रॉ-शुगर के निर्यात पर 4,000 रुपये प्रति टन की दर से सब्सिडी दे रही है लेकिन विश्व बाजार में चीनी के दाम नीचे होने के कारण चालू पेराई सीजन में चीनी मिलेें अभी तक केवल 4.6 लाख टन रॉ-शुगर का ही निर्यात कर पाई हैं।.....आर एस राणा

गेहूं की सरकारी खरीद पिछले से बढ़ी

गेहूं की सरकारी खरीद पिछले से बढ़ी
पंजाब, राजस्थान में खरीद घटी, हरियाणा, मध्य प्रदेश और यूपी में बढ़ी
आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी विपणन सीजन 2015-16 में गेहूं की सरकारी खरीद पिछले साल से ज्यादा हुई है। भातरीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने चालू रबी विपणन सीजन में अभी तक 254.21 लाख टन गेहूं की खरीद कर चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 251.55 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी।
एफसीआई के अनुसार चालू रबी विपणन सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर पंजाब और राजस्थान से खरीद में कमी आई है जबकि हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान से खरीद ज्यादा हुई है। पंजाब से अभी तक 96.97 लाख टन गेहूं की ही खरीद हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 105.10 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी। इसी तरह से राजस्थान से केवल 10.28 लाख टन गेहूं की ही खरीद हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 14.66 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी।
अन्य राज्यो में हरियाणा से एमएसपी पर अभी तक 67.55 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक हरियाणा से केवल 64.14 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया था। मध्य प्रदेश से चालू सीजन में 67.06 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 64.77 लाख टन गेहूं की ही खरीद हुई थी। उत्तर प्रदेश से चालू सीजन में गेहूं की खरीद बढ़कर 11.67 लाख टन की हो चुकी है जबकि पिछले साल उत्तर प्रदेश से इस समय तक केवल 2.82 लाख टन गेहूं की ही खरीद हुई थी।
मार्च और अप्रैल महीने में हुई बेमौसम बारिश ओलावृष्टि से गेहूं की फसल को नुकसान हुआ है तथा कृषि मंत्रालय ने गेहूं के उत्पादन अनुमान में भी कटौती की है। मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में गेहूं की पैदावार घटकर 907 लाख टन होने का अनुमान है जबकि दूसरे आरंभिक अनुमान में 957 लाख टन गेहूं उत्पादन का अनुमान था। केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन में गेहूं की खरीद का लक्ष्य 300 लाख टन का रखा है जबकि पिछले साल 280 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी।......आर एस राणा

DAC Revises Cotton Production Estimates

Department of Agriculture and Co-operation (DAC), Ministry of Agriculture (MoA) has revised the cotton production estimates up for season 2014-15 at 353.28 lakh bales in its third advance estimates against the target of 350 lakh bales and 351.52 lakh bales which was estimated in second advance estimates. The final estimate of cotton production for season 2013-14, as estimated by DAC was 359.02 lakh bales.

South Indian Millers Import Wheat From Australia,Russia At $291.93 Per Tonne

South Indian  millers have imported 4307 tonne Australian and Russian wheat last week at Tutikorean port at an average CIF price of$296.36 and $269.93 per tonne.Around 3243 tonne Australian and 1064 tonne Russian wheat have been imported last week.More wheat shipment is expected in May.As per market sources deals for  6 lakh tonne wheat import has been struck so far from Australia and Russia.

CBOT Wheat Trades Under Pressure On Russian Move

 CBOT wheat decreased on Russia announcement ofending wheat export tax.Russia has removed a duty on wheat export. The decision will allow Russia to export up to an additional one million tons of wheat by June 30.It will putpressure on global wheat prices, including Russian wheat.New crop in US too is due in mid June.Export sales are lower.

South Korean Mills Buy Australian Wheat

Two South Korean flour mills have purchased 94,000 tonnes of Australian-origin milling wheat through tenders.  Daehan Flour Mill has bought 45,000 tonnes and  mill bought 49,000 tonnes.Daehan's purchase comprised 40,100 tonnes of standard white wheat of 10.3 percent to 11 percent protein content bought at $242 a tonne fob and 4,900 tonnes of hard wheat of a minimum 11.5 percent protein bought at $246 a tonne fob.Shipment due month is October.

मॉनसून की दस्तक, एग्री कमोडिटी में तेजी

19 मई तक मॉनसून के अंडमान पहुंचने की उम्मीद थी, लेकिन इससे दो दिन पहले यानि 17 मई को ही ये वहां दस्तक दे चुका है। पिछले 48 घंटों से दक्षिण भारत के कई इलाकों में प्री-मॉनसून तेज बारिश हो रही है।


मौसम विभाग के मुताबिक तटीय केरल, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में 24 घंटे में तेज बारिश हो सकती है। इस महीने के अंत तक यानि 30 मई तक मॉनसून के केरल पहुंचने की उम्मीद है। हालांकि मौसम की जानकारी देने वाली कंपनी स्काईमेट के मुताबिक मॉनसून 29 मई को ही दस्तक दे देगा। साथ मॉनसून 10 जून तक हैदराबाद और 11 जून तक कोलकाता और मुंबई तक आने की उम्मीद है।


मॉनसून वक्त से पहले चल रहा है और ये 17 जून तक पटना पहुंच सकता है। साथ ही भोपाल में 20 जून और लखनऊ में 24 जून तक मॉनसून के पहुंचने की उम्मीद है। दिल्ली में मॉनसून 30 जून को दस्तक देगा और 5 जुलाई तक ये राजस्थान तक मौजूदगी दर्ज करा देगा।


वक्त से मॉनसून को आने के बावजूद एग्री कमोडिटी में जोरदार तेजी आई है। एनसीडीईएक्स पर चने का दाम 3 फीसदी बढ़कर 4700 रुपये के करीब पहुंच गया है। सोयाबीन और सरसों में भी 1 फीसदी ऊपर कारोबार हो रहा है। वहीं धनिया में 5 फीसदी की तेजी आई है और इसका दाम 11275 रुपये पर पहुंच गया है। गौर करने वाली बात ये है कि इस साल सोयाबीन और खरीफ दलहन की बुआई बढ़ने का अनुमान है।


निर्मल बंग कमोडिटीज के कुणाल शाह का कहना है कि बारिश के साथ ही एग्री कमोडिटी में गिरावट आएगी। कुणाल शाह ने सोयाबीन के अक्टूबर वायदा में खरीदारी की सलाह दी है, जबकि चने में मौजूदा स्तरों पर खरीदारी नहीं करने के लिए कहा है।


इंडियानिवेश कमोडिटीज की निवेश सलाह


चना एनसीडीईएक्स (जून वायदा) : खरीदें - 4740, स्टॉपलॉस - 4680 और लक्ष्य - 4840


धनिया एनसीडीईएक्स (जून वायदा) : खरीदें - 11350, स्टॉपलॉस - 10900 और लक्ष्य - 12200


उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का दाम 3 महीने की ऊंचाई पर पहुंच गया है। लेकिन चांदी में सोने से ज्यादा तेजी आई है। घरेलू बाजार में चांदी का दाम 40000 रुपये के पार जा चुका है। वहीं एमसीएक्स पर सोना 0.5 फीसदी की मजबूती के साथ 27600 रुपये के ऊपर कारोबार कर रहा है।


कच्चे तेल में भी तेजी आई है। घरेलू बाजार में क्रूड का दाम 0.5 फीसदी बढ़कर 3880 रुपये पर पहुंच गया है। दरअसल अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़त पर कारोबार हो रहा है जिसका फायदा घरेलू बाजार में मिला है। हालांकि एमसीएक्स पर नैचुरल गैस 0.25 फीसदी गिरकर 192 रुपये के नीचे आ गया है।


मेटल्स में भी तेजी देखने को मिल रही है। एमसीएक्स पर कॉपर 0.5 फीसदी की बढ़त के साथ 414 रुपये पर कारोबार कर रहा है। निकेल का दाम 881.5 रुपये पर पहुंच गया है, जबकि एल्युमिनियम में 0.4 फीसदी की तेजी आई है। लेड 1 फीसदी की उछाल के साथ 126.6 रुपये पर पहुंच गया है और जिंक 0.75 फीसदी तक बढ़ा है।


निर्मल बंग कमोडिटीज की निवेश सलाह


सोना एमसीएक्स (जून वायदा) : खरीदें - 27500, स्टॉपलॉस - 27410 और लक्ष्य - 27770


चांदी एमसीएक्स (जुलाई वायदा) : खरीदें - 40100, स्टॉपलॉस - 39700 और लक्ष्य - 40700....स्रोत : CNBC-Awaaz

कमोडिटी एक्सचेंजों का कारोबार बढ़ा

पिछले दो साल में पहली बार कमोडिटी एक्सचेंजों के कारोबार में 17 फीसदी की बढ़त देखने को मिली है। एफएमसी के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2016 के पहले महीने में करीब 5.5 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हुआ है जबकि पिछले साल इस अवधि में 4.5 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था। हालांकि सोने और चांदी के वॉल्यूम में अभी भी 5 फीसदी की गिरावट है जबकि एनर्जी, बेस मेटल्स और एग्री का वॉल्यूम 50-20 फीसदी तक बढ़ गया है।

सोने के प्रति उदार रही मोदी सरकार

एक साल पहले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बनी सरकार ने सोने के प्रति नरम रुख अपनाया और अब सरकार की कोशिश भारतीयों के सोना रखने के तरीके में बदलाव लाने की है। हालांकि एक साल का समय काफी कम होता है और सरकार को अपना एजेंडा पूरी तरह लागू करने के लिए काफी कुछ करना बाकी है। इनमें से कितनी कोशिशें सफल होंगी यह तो वक्त बताएगा क्योंकि यह बात सफलता को लागू करने के तरीकों पर निर्भर करती है। दरअसल साल की शुरुआत उदार दृष्टिïकोण के साथ हुई। सरकार ने शपथ लेने से ठीक एक दिन पहले बड़े आयातकों को सोने का आयात करने की अनुमति दे दी जो बाद में विवादित विषय बन गया लेकिन धीरे-धीरे सरकार ने इस क्षेत्र में उदारता लाने की कोशिशें कीं।

सोने के प्रति उदार रवैये से आयात और आयात खर्च में पिछले एक साल के दौरान महत्त्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई है। साल के दौरान सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमत 5.56 फीसदी घटकर 1,224 डॉलर प्रति औंस हो जाएगी जबकि मुंबई में कीमत 7.39 फीसदी घटकर 27,550 रुपये प्रति 10 ग्राम रही। पूर्व में बाजार में भौतिक डिलिवरी पर 180 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच चुका प्रीमियम लगभग खत्म हो चुका है। वर्ष 2013-14 में सोने का आयात 638 टन तक पहुंच चुका था और वर्ष 2014-15 में यह 50 फीसदी तक बढ़कर 967 टन के करीब पहुंच गया और आयात खर्च एक साल 28.7 अरब डॉलर से बढ़कर 34.4 अरब डॉलर तक हो गया।   इंडियन बुलियन ऐंड ज्वैलर्स एसोसिएशन (आईबीजेए) के अध्यक्ष मोहित कंबोज ने कहा, 'नई सरकार ने सोने के प्रति नकारात्मक रुख नहीं अपनाया।' 80:20 योजना के तहत आयातित सोने का 20 फीसदी वापस निर्यात करने की योजना का उद्देश्य चालू खाते के घाटे को कम करना था, सरकार ने इसे खत्म कर दिया। यहां तक कि सरकार इस क्षेत्र में कौशल विकास और मेक इन इंडिया को बढ़ावा दे रही है। बैंकों को भी आभूषण विक्रेताओं को सोने का ऋण देने की अनुमति दे दी गई। हालांकि बैंकों का रवैया अभी भी इस क्षेत्र के प्रति नकारात्मक है जिसे बदला जाना चाहिए।

अब वित्त मंत्रालय ने दो योजनाओं का प्रस्ताव दिया है जिनका लक्ष्य सोने को रखने के भारतीयों के तरीकों को बदलना और भारतीय घरों और मंदिरों में बेकार पड़े सोने का इस्तेमाल बढ़ाना है। सोना जुटाने की योजना और गोल्ड सॉवरिन बॉन्ड का प्रस्ताव बजट में पेश किया गया था और फिलहाल इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। बॉन्ड भौतिक रूप में सोना खरीदे बगैर प्रतिफल देने के लिए है जबकि सोने के नकदीकरण की योजना बेकार पड़े सोने का इस्तेमाल उत्पादक गतिविधियों के लिए करना और उन लोगों को उचित प्रतिफल देने के लिए लाई जा रही है जिनके पास सोना है। दोनों योजनाओं में सोने की कीमतों पर मिलने वाले प्रतिफल के अलावा ब्याज दरें भी तय की गई हैं। अनुमान के मुताबिक करीब 22,000 टन सोना जिसकी कीमत 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक है, भारतीय परिवारों के पास बेकार पड़ा है। अगर इस प्रयास में सफलता मिलती है तो बगैर किसी नियंत्रण के सोना आयात करने की जरूरत कम हो जाएगी। हालांकि सरकार ने सोने के आयात पर 10 फीसदी का शुल्क बरकरार रखा और वर्ष 2014-15 में 3.4 अरब डॉलर जुटाए। इसकी वजह से तस्करी बढ़ रही है और काले धन का बाजार फलफूल रहा है। विश्व स्वर्ण परिषद, भारत के प्रबंध निदेशक सोमसुंदरम पीआर ने कहा, 'आयात पर नियंत्रण हटाने के कारण गैर आधिकारिक आयात घटने की उम्मीद है, खासतौर पर मंदी के सीजन में लेकिन चैनल अभी भी खुला हुआ हो।' 

सोने के बाजार पर नजर रखने वाले दिग्गज कारोबारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'सोने का बड़े पैमाने पर धन जुटाने के लिए किया जा सकता है, आज भी गैर मानकीकृत सोना आयातित किया जाता है जब पूरी दुनिया इसके खिलाफ है।' गैर मानकीकृत सोने का इस्तेमाल तस्करी के लिए किया जाता है। सरकारी एजेंसी के एक अधिकारी ने कहा, 'अगर सारा कारोबार खातों में दर्ज हो जाए तो आयात परेशान नहीं करेंगे क्योंकि कर राजस्व बढ़ेगा।' दूसरे शब्दों में कारोबार को संगठित करने की जरूरत है तो बहुत बड़ा होने के बावजूद असंगठित है। मोहित कंबोज का कहना है कि वे महाराष्टï्र सरकार और एमआईडीसी के साथ मुंबई के बाहरी इलाके में एक ज्वैलरी पार्क बनाने के लिए बातचीत कर रहे थे जहां कौशल विकास और निर्यात के लिए विनिर्माण को बढ़ावा दिया जाएगा। (BS Hindi)

बारिश की मार से सरसों गरम

पिछले महीने देश के अधिकांश तिलहन उत्पादक राज्यों में हुई बारिश का असर सरसों की कीमतों और उत्पादन दोनों पर पडऩे लगा है। मंडियों में आवक कमजोर होने के कारण पिछले एक महीने में सरसों की कीमतों में करीब 20 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। फसल खराब होने की वजह से इस साल सरसों का उत्पादन करीब 5 फीसदी कम रहने की आशंका जताई जा रही है। उत्पादन कम होने की गहराती आशंका की वजह से आने वाले महीनों में सरसों की कीमतें और बढ़ सकती हैं। बाजार में सरसों की आवक मार्च महीने में जोर पर रहती है। आवक ज्यादा होने के कारण हर साल मार्च-अप्रैल में सरसों की कीमतें दबाव में रहती हैं लेकिन इस बार बेमौसम बारिश की मार से फसल खराब होने के कारण मार्च से कीमतें बढऩा शुरू हो गईं।

पिछले करीब डेढ़ महीने से सरसों के भाव लगातार मजबूत हो रहे हैं। हाजिर बाजार में आवक कमजोर होने के कारण सरसों की कीमतें बढ़कर 4,500 रुपये प्रति क्ंिवटल के पार पहुंच गईं जबकि मार्च महीने की शुरुआत में हाजिर बाजार में सरसों के दाम 3,000 रुपये प्रति क्ंिवटल के आसपास थे। हाजिर बाजार में कीमतें बढऩे का असर वायदा बाजार में भी देखने को मिल रहा है। एनसीडीईएक्स में सरसों के सभी अनुबंधों की कीमतें 4,000 रुपये प्रति क्ंिवटल के पार पहुंच चुकी हैं। मई महीने के अनुबंध के दाम पिछले एक महीने में 600 रुपये बढ़कर  4,000 रुपये प्रति क्ंिवटल के पार पहुंच गए हैं। 

मंडियों में सरसों की फसल आने का समय होने के बावजूद कीमतें बढऩे की वजह पर एडमिसी कमोडिटी प्राइवेट लिमिडेट के तुषार चौहान कहते हैं कि दरअसल बेमौसम बारिश के कारण फसल खराब होने की खबर कीमतों को हवा दे रही है। किसानों को भी लग रहा है कि आने वाले समय में कीमतें और ऊपर जाएंगी इसलिए वे भी फिलहाल माल रोक रहे हैं। मंडियों में स्टॉकिस्ट सक्रिय हैं जिससे मांग बढ़ी है जबकि आवक कमजोर है, इसलिए कीमतें बढ़ रही हैं। तिलहन कारोबारियों का कहना है कि सरसों का स्टॉक बढ़ाने की वजह से कीमतें बढ़ी हैं। सरसों का उत्पादन कम होने के कारण आयात निर्भरता बढ़ेगी जो खाद्य तेल की कीमतें खौलाने का काम करेगी। 

कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम फसल उत्पादन अनुमान के अनुसार वर्ष 2014-15 में सरसों का उत्पादन 6.52 फीसदी घटकर  73.3 लाख टन होने की संभावना है, जबकि पिछले साल देश में 78.77 लाख टन उत्पादन हुआ था।  अमेरिकन कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार फसल वर्ष 2014-15 के दौरान भारत में सरसों का उत्पादन 71 लाख टन रहेगा जबकि पिछले साल सरसों का उत्पादन 73 लाख टन था। सरसों के उत्पादन के बारे में अलग-अलग संस्थाओं की अलग अलग रिपोर्ट आ रही हैं। कारोबारी संगठन 14 फीसदी तक उत्पादन कम होने का दावा कर रहे हैं। कारोबारी संगठनों के अनुसार देश में सरसों का उत्पादन सरकारी आंकड़ों से बहुत कम रहेगा। कारोबारियों का कहना है कि इस बार देश में सरसों का उत्पादन 55 लाख टन के करीब रहने का अनुमान है। (BS Hindi)

कपड़ा और परिधान निर्यात वृद्घि की सुस्त रफ्तार

दुनिया भर में कम होती मांग और घटती प्रतिस्पर्धा का असर वर्ष 2014-15 में कपड़ा और परिधान क्षेत्र के निर्यात पर पड़ सकता है। उद्योगों के सूत्रों का कहना है यह गिरावट पांच फीसदी तक हो सकती है। हालांकि अकेले परिधानों के निर्यात पर गौर करें तो इस क्षेत्र में 10-13 फीसदी वृद्घि दर्ज की गई, लेकिन यह पिछले कुछ सालों के दौरान यह वृद्घि की रफ्तार का न्यूनतम स्तर है। केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर बिज़नेस स्टैंडर्ड रिसर्च ब्यूरो का कहना है कि अप्रैल, 2014 से जनवरी, 2015 के बीच 10 महीनों के दौरान कपड़ा निर्यात करीब 4 फीसदी बढ़कर 34 अरब डॉलर हो गया। व्यापक तौर पर देखें तो इसका मतलब है कि पूरे साल 41 अरब डॉलर का निर्यात हो सकता है।

वर्ष 2013-14 में ये बढ़ोतरी 12.4 फीसदी की थी। जून, 2014 में केंद्रीय कपड़ा मंत्री संतोष गंगवार ने कहा था कि वर्ष 2014-15 में इस क्षेत्र का निर्यात 25 फीसदी बढ़कर 50 अरब डॉलर होने की उम्मीद है। विशेषज्ञों ने वृद्घि के कमजोर रहने के कई कारणों का भी जिक्र किया है, उनका मानना है कि मौजूदा स्थिति जस की तस बनी रही तो वर्ष 2015-16 में भी वृद्घि दर कमजोर ही रहेगी। कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के महासचिव डी के नायर ने कहा, 'उद्योग सरकार से कई तरह निर्यात संबंधी प्रोत्साहनों की मांग कर रहा है। अन्य उद्योगों के मुकाबले इस उद्योग में प्रतिस्पर्धा की कमी है। अगले साल तक स्थिति में सुधार करने के लिए सरकार को कपड़ा एवं परिधान निर्यात को बेहतर बनाने के लिए कदम उठाने होंगे।' परिधानों को छोड़कर संपूर्ण मूल्य शृंखला की निर्यात वृद्घि में कमजोरी देखने को मिल रही है। हालांकि परिधान निर्यात 10 फीसदी से भी अधिक दर से बढऩे की उम्मीद है। BS Hindi

बुनियादी ढांचे की कमी से आम निर्यात को नुकसान

आम को पसंद करने वाले ही नहीं बल्कि निर्यातकों की नजर भी इस साल कम उत्पादन की ओर लगी हुई हैं। देश में आम का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले राज्यों में उत्पादन 50 फीसदी कम है जिसकी वजह से देसी बाजार में कीमतें पहले से ही उच्च स्तर पर है और इस वजह से इस वर्ष निर्यात भी कम रहने की आशंका है। पुणे में आयात-निर्यात का काम करने वाला रेनबो इंटरनैशनल मैंगोवाले डॉट कॉम के जरिये ऑनलाइन खुदरा कारोबार भी करता है। कंपनी के प्रबंध निदेशक अभिजित भसाले ने कहा, 'महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक  जैसे प्रमुख आम उत्पादक राज्यों में उत्पादक राज्यों में उत्पादन 50 फीसदी तक कम है। इससे देसी बाजार में आम की उपलब्धता और निर्यात पर सीधा असर पड़ेगा।' वितरकों और कारोबारियों का कहना है कि आंध्र प्रदेश जैसे क्षेत्र पिछले साल अक्टूबर में हुदहुद से बुरी तरह प्रभावित हुए थे और इसके बाद इस साल बेमौसम बारिश से नुकसान हुआ। इस क्षेत्र में सामान्य के मुकाबले 25-30 फीसदी उत्पादन ही हुआ है जो प्रति वर्ष करीब 2,00,000 टन होता है। ठीक इसी तरह गुजरात के निर्यातकों का कहना है कि आमतौर पर अप्रैल के मध्य से ही निर्यात संबंधी पूछताछ शुरू हो जाती है, हालांकि इस साल कुछ निर्यातकों के पास ही निर्यात संबंधी पूछताछ आई है।

तलाला कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) के सचिव हरसुख जरसानिया ने कहा, 'गुजरात के पास एपीडा से मान्यताप्राप्त आम पैकजिंग सुविधा नहीं है। ये भी गुजरात के लिए एक तरह का नुकसान ही है।' गुजरात केसर आम का बड़ा निर्यात है। कारोबारियों का आरोप है कि इस साल आम निर्यात की गुणवत्ता की वजह से लोगों की दिलचस्पी कम है। इस साल जनवरी से अप्रैल के बीच आम की फसल के लिए मौसम अच्छा नहीं रहा। गुजरात के आम उत्पादक क्षेत्र में बेमौसम बारिश की वजह से आम की फसल बुरी तरह बरबाद हुई है। गुजरात के गिर क्षेत्र में आम का कारोबार करने वाले संजय वेकारिया कहते हैं, 'गुणवत्ता इस बार अहम मसला है। निर्यात के लिए उपयुक्त गुणवत्ता की कमी है। हालांकि हम बाजार में नियमित आपूर्ति का इंतजार कर रहे हैं।' 

तलाला एपीएमसी गुजरात में आम की नीलामी की सबसे बड़ी जगह है यहां मुख्य रूप से केसर आम का कारोबार होता है। यहां नीलामी 19 मई से शुरू होने की उम्मीद है जो पिछले साल के मुकाबले करीब 20 दिन देर है। कारोबारियों को उम्मीद है कि केसर आम की कीमत 450 रुपये प्रति 10 किग्रा रहेगी जो पिछले साल के मुकाबले 150 रुपये अधिक है। एपीडा इस मामले को लेकर हो-हल्ला नहीं मचा रही है। एपीडा (पश्चिम) के क्षेत्रीय प्रमुख सुधांशु ने कहा, 'यूरोपीय संघ को किया जाने वाला निर्यात 24 मार्च से शुरू किया गया। यह 3 टन प्रतिदिन के न्यूनतम स्तर पर है। हालांकि हम गोरेगांव में एक नए हॉट वाटर ट्रीटमेंट संयंत्र के शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं जिसे एपीडा शुरू करने जा रहा है। यूरोपीय संघ को किए जाने वाले निर्यात में इसके बाद इजाफा होगा।'

हॉट वाटर ट्रीटमेंट यूरोपीय संघ को निर्यात करने के लिए जरूरी होता है। भसाले का आरोप है कि यूरोपीय संघ ने इस बारे में दिसंबर के आसपास भारतीय सरकार को लिख दिया लेकिन इसके बावजूद इस संबंध में दिशा-निर्देश आने में समय लगा। उन्होंने कहा, 'सरकार ने मार्च के आसपास निर्देश जारी किए और कई निर्यातक इसके लिए तैयार नहीं हैं।'  इसके अलावा पिछले कुछ सालों के दौरान भारत से होने वाले आम के निर्यात में गिरावट आई है। वर्ष 2013-14 में आम का निर्यात 41,280 टन था जबकि 2012-13 में 55,585 टन था।  BS Hindi

हाजिर मांग से चांदी वायदा कीमतों में तेजी

व्यापक तौर पर सटोरियों द्वारा अपने सौदों की कमी को पूरा करने के लिए की गई लिवाली के बाद कारोबारियों ने सटोरिया लिवाली की जिससे वायदा कारोबार में सोमवार को चांदी की कीमत 342 रुपये की तेजी के साथ 40,806 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई। हालांकि विदेशों में चांदी की कीमतों में कमजोरी के रुख ने लाभ को कुछ सीमित कर दिया। एमसीएक्स में चांदी के सितंबर महीने में डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 342 रुपये अथवा 0.85 प्रतिशत की तेजी के साथ 40,806 रुपये प्रति किलो ग्राम हो गई जिसमें 12 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
इसी प्रकार चांदी के जुलाई डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 319 रुपये अथवा 0.80 प्रतिशत की तेजी के साथ 40,270 रुपये प्रति किलो ग्राम हो गई जिसमें 961 लॉट के लिए कारोबार हुआ। बाजार विश्लेषकों ने वायदा कारोबार में चांदी कीमतों में तेजी का श्रेय सटोरियों की कमी को पूरा करने के लिए की गई लिवाली को दिया लेकिन वैश्विक बाजार में चांदी में कमजोरी ने लाभ को सीमित कर दिया। इस बीच सिंगापुर में चांदी की कीमत 0.10 प्रतिशत की गिरावट के साथ 17.48 डॉलर प्रति औंस रह गई। BS Hindi

Sugar Production upto 15th May, 2015

 As on 15th May, 2015, sugar mills have produced 278.48 lac tons of sugar for the current 2014-15 SS, 38.45 lac tons more than the sugar produced by the mills during the corresponding period in 2013-14 SS.    Out of the 532 sugar mills which started operations for the current 2014-15 SS, only 45 are working as of now.  In 2013-14 SS, 27 mills out of 530 operational sugar mills were running as on 15th May.
 ·                  Maharashtra sugar mills have produced 104.37 lac tons of sugar till 15th May, 2015, as against 77.20 lac tons produced during the corresponding date in 2013-14 SS.  As on 15th May, 2015, 11 mills are operational as compared to only 2 in 2013-14 SS on the corresponding date.

 ·                  Sugar mills of Uttar Pradesh have produced 70.80 lac tons of sugar till 15th May, 2015, as compared to 65.08 lac tons produced by these mills in 2013-14 on the corresponding period.  5 sugar mills are still crushing sugarcane for the current 2014-15 SS, as against only 3 in 2013-14 as on 15th May 2014.

 ·                  63 sugar mills of Karnataka which were in operation during 2014-15 SS have produced 48.78 lac tons of sugar till 15th May, 2015, as against 41.19 lac tons produced in 2013-14 SS on the corresponding period.  About 7 sugar mills are still crushing sugarcane for the current season whereas in 2013-14 SS, all the mills had shut their operations as on 15th May, 2014.

 ·                  Sugar mills of Tamil Nadu have produced 9.80 lac tons of sugar till 15th May, 2015, as compared to 11.50 lac tons produced on the corresponding date of 2013-14 SS. 17 sugar mills are still in operation for the current 2014-15 SS as against 19 operated during the corresponding date of 2013-14 SS.

 ·                  Sugar mills of Gujarat have ended their crushing operations and produced 11.36 lac tons of sugar, as compared to 11.75 lac tons produced in 2013-14 SS on the corresponding date. 

 ·                  All sugar mills of Andhra Pradesh and Telangana have completed their crushing and produced 8.83 lac tons of sugar till 15th May 2015, as against 10.01 lac tons produced as on 15th May, 2014. 

 ·                  As per reports submitted by sugar mills, despatches of sugar for domestic consumption during the current season till 30th April, 2015, was almost at the same level of 146 lac tons. 

 ·                  Due to depressed global sugar prices which are not still not viable for export of both raw and export, sugar exports are at a very low pace and so far, mills have exported only 4.6 lac tons of sugar till first week of May, 2015.  Another 2-3 lac tons of sugar may get exported in the remaining period of the season. 

 ·                  Closing stock at the end of the current season is estimated to be at a higher level of around 103 lac tons, the highest in the last six sugar seasons.  Sugar prices in the domestic market is highly depressed and are ruling at Rs. 2600 per quintal in Northern parts of the country and at Rs. 2300 per quintal in Southern and Western parts of the country. 

 ·                  Cane price arrears have crossed Rs. 21,000 crore which is almost 35% of the total cane price payable in the season.  It also means that either 1 out of 3 farmers have not got the payment or the farmer has not got payment for 35% of his produce.  This is the worst ever situation in the history of the Indian sugar sector.  However, despite such huge cane price arrears, area under sugarcane is estimated to remain at the same level and sugarcane availability in the next year seems to be more than the requirement for the fifth year in continuation.

 ·                  Returns to farmers from sugarcane is almost 50% more than the returns from the competing crops like wheat and paddy, cotton, soya etc.  The cane price have gone up by over 50% in the last three years, unmatched by any other crop in the country.  On the other hand, the sugar price have only fallen and are at its lowest in the last 6 years.

 ·                  There is need to adopt rationalized cane pricing policy across the country and check the huge mismatch between sugarcane price and sugar price which is currently distorting the economics of sugarcane and sugar production.

 ·                  The reason for surplus sugar is only because surplus sugarcane is getting produced and the mills are under legal compulsion to crush all the sugarcane, resulting in surplus sugar.  Therefore, either the Government pays the cane price arrears to the farmers directly or assists the industry by buying out 3 million tons of sugar at the FRP based cost of production as well as ensuring that the ex-mill sugar price at least covers the costs of producing sugar.

16 मई 2015

द. पूर्व एशियाई और खाड़ी देश जाएगा यूपी का आम

बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की वजह से कृषि और बागवानी फसलों को हुए भारी नुकसान के बावजूद उत्तर प्रदेश में उपजाया जाने वाला आम खाड़ी देशों और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में दस्तक देने के लिए तैयार है। उत्तर प्रदेश के आम उत्पादक क्षेत्रों में लखनऊ (लखनऊ, मलिहाबाद, बक्शी-का-तालाब), सहारनपुर और संभल-अमरोहा-मुजफ्फरनगर जिले शामिल हैं। लखनऊ क्षेत्र विश्वविख्यात प्रख्यात दशहरी किस्म के आम का उत्पादन करता है और राज्य के सालाना 4-4.2 करोड़ टन के आम उत्पादन में उसका लगभग 30 फीसदी का योगदान है। चूंकि लखनऊ और उसके आसपास के इलाकों में आम की फसल को नुकसान काफी अधिक था, इसलिए निर्यात की खेप में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों की अन्य आम किस्मों जैसे लंगड़ा, चौसा, आम्रपाली, मल्लिका आदि को भी शामिल किया जाएगा।

देर से पकने वाली ये किस्में 20 जून के आसपास टूटने के लिए तैयार हो जाएंगी और लगभग 100 टन आम का निर्यात किए जाने की संभावना है। शहनाज एक्सपोट्ïर्स के प्रमोटर नदीम सिद्दीकी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हम सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, जापान और सिंगापुर के लिए आम का निर्यात करेंगे।' यह फर्म उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी आम निर्यातक है। उन्होंने कहा, 'पहली बार, हम पाकिस्तान से आम निर्यात का मुकाबला करने के लिए सऊदी अरब के लिए दो कंटेनर (लगभग 30 टन) भेज रहे हैं।' बेमौसम बारिश और ओलावृष्टिï की वजह से उत्तर प्रदेश में आम की फसल को 35-40 फीसदी नुकसान पहुंचा। आम के अलावा पूरे राज्य में अन्य रबी फसलों गेहूं और चने को भी नुकसान पहुंचा।

भारत के आम उत्पादक संघ के अध्यक्ष इंसराम अली ने कहा कि अधिक नुकसान की वजह से उत्तर प्रदेश में आम का उत्पादन घट कर 2.5-2.8 करोड़ टन रह जाने की आशंका है। उन्होंने कहा कि यही वजह है कि इस बार लखनऊ क्षेत्र से आम निर्यात की रफ्तार धीमी रहेगी। इसके अलावा आम उत्पादक निर्यातकों के लिए राज्य सरकार के समर्थन के अभाव को लेकर भी चिंतित हैं। हालांकि सरकार 26 रुपये प्रति किलोग्राम की सब्सिडी (ब्रांड प्रमोशन और विमान भाड़े के लिए 13 रुपये शामिल) मुहैया कराती है, लेकिन निर्यातकों का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं हैं। सिद्दीकी ने कहा, 'उत्तर प्रदेश में किसान महाराष्टï्र के विपरीत असंगठित हैं। महाराष्ट्र में आम उत्पादकों को पर्याप्त सरकारी समर्थन एवं रियायतें मिलती हैं।' आम उत्पादक आम-आधारित खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना के लिए रियायत की मांग लंबे समय से करते रहे हैं।  (BS Hindi)

अल नीनो की आशंका से सोयाबीन कीमतों में तेजी

सोयाबीन की कीमतों में तेजी का रुख देखा जा रहा है। मॉनसून पर अल नीनो का प्रभाव पडऩे की आशंका से हाजिर बाजार में एक माह के दौरान सोयाबीन की कीमतें 5 से 6 फीसदी तक चढ़ गई हैं। व्यापारियों का कहना है कि मॉनसून में कम बारिश की आशंका से उत्पादन और आपूर्ति पर असर पड़ सकता है, जिससे कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है। भारतीय मौसम विभाग ने भी अनुमान लगाया है कि मध्य भारत में बारिश अपेक्षाकृत कम रह सकती है, जबकि देश में सोयाबीन का उत्पादन इसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा होता है। भारतीय मौसम विभाग और अमेरिक की एक संस्था ने भी इस साल अल नीनो की आशंका जताई है।

इंदौर मंडी में मिल आपूर्ति वाले सोयाबीन के लिए 3725 से 3800 रुपये क्विंटल की बोली लगाई गई, जबकि एक माह पहले कीमतें 35,000 से 3650 रुपये प्रति क्विंटल थी। मंडी में सोयाबीन के व्यापारी हितेश अग्रवाल ने कहा, 'पिछले 15 दिनों से बाजार में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है और कीमतें 4100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं। हालांकि अब यह 3500 रुपये क्विंटल के आसपास चल रही हैं।'  (BS Hindi)

सोना और चांदी उच्च स्तर पर

वैश्विक रुझानों की वजह से घरेलू बाजार में भी सोने-चांदी की कीमतों में चमक बढ़ गई। सोने की कीमतें तीन महीने के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गईं जबकि औद्योगिक मांग बढऩे के कारण चांदी की कीमतें पिछले चार महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं। चांदी 40,000 रुपये प्रति किलोग्राम को पार कर गई। हालांकि सोना तीन महीने के उच्चतम स्तर को छूने के बाद दबाव में आ गया। सराफा बाजार में लगातार तीसरे दिन सोने की चमक बढ़ती नजर आई। हालांकि बाजार में मुनाफावसूली के चलते शाम तक सोना दबाव में आ गया। हाजिर बाजार में सोना 110 रुपये की गिरावट के साथ 27,550 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। वायदा बाजार में भी सोना गिरावट के साथ 27,760 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। सोने की कीमतों में गिरावट की वजह डॉलर में गिरावट को माना जा रहा है। अमेरिका के खराब आंकड़ों से डॉलर में भारी गिरावट आई है और यह करीब चार महीने के निम्रतम स्तर तक लुढ़क गया। एसपीडीआर गोल्ड की होल्डिंग भी चार महीने के निम्रतम स्तर पर पहुंच गई। 

सोने की कीमतें भले ही दबाव में हों लेकिन चांदी की कीमतों में तेज बढ़ोतरी देखने को  मिल रही है। घरेलू हाजिर बाजार में चांदी 40,000 रुपये प्रति किलोग्राम को छूने के बाद 39,750 रुपये प्रति किलोग्राम पर बंद हुई। वायदा बाजार में चांदी चार महीने के उच्चतम स्तर को पार करते हुए 41,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई। इस साल जनवरी के बाद पहली बार चांदी ने 40,000 रुपये प्रति किलोग्राम के मनोवैज्ञानिक आंकड़े को पार किया है। मार्च महीने में चांदी के  दाम गिरकर 35,650 रुपये तक पहुंच गए थे। 18 मार्च से अभी तक चांदी के दाम में 15 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है। घरेलू बाजार में कीमतें बढऩे की सबसे प्रमुख वजह वैश्विक बाजार में चांदी का मजबूत होना है। वैश्विक बाजार में चांदी की कीमतें बढ़कर 17.44 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गईं जो तीन दिन पहले 16.30 डॉलर प्रति औंस थी। जबकि वैश्विक बाजार में दो महीने पहले चांदी की कीमतें 15.30 डॉलर औंस बोली जा रही थी।
 
सराफा कारोबारियों का कहना है कि ऊंची कीमतों पर मुनाफावसूली किये जाने और वैश्विक बाजार में कमजोरी के रुख के कारण घरेलू बाजार में सोने की कीमतों में गिरावट आई। जबकि चांदी की घरेलू मांग बढऩे के कारण कीमतों में तेजी देखने को मिल रही है। चांदी 40,000 के मनोवैज्ञानिक आंकड़े को पार कर चुकी है इसलिए इसमें भी हल्की गिरावट हो सकती है क्योंकि इस स्तर पर निवेशक मुनाफवसूली कर सकते हैं। एसएमसी कमोडिटी रिपोर्ट के मुताबिक सोने-चांदी की कीमतों में अभी और मजबूती देखने को मिलेगी। अमेरिकी उत्पादक मूल्य के आंकड़ों के निराशाजनक रहने के बाद ब्याज दरों में बढ़ोतरी की संभावना पर रोक लगा दिये जाने की आशंका के कारण सोने की कीमतें तीन महीने के उच्चतम स्तर पहुंच गई, अप्रैल में अमेरिकी उत्पादक मूल्य इंडेक्स में गिरावट आई है। अमेरिकी मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी नहीं होने से फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में बढ़ोतरी में विलंब कर सकता है जिससे सोने की कीमतों को मदद मिल सकती है। BS Hindi)

भारत में सोने की मांग बढ़ी

सोने के प्रति भारतीयों की दीवानगी एक बार फिर दुनिया में सबसे ज्यादा साबित हुई। वर्ष 2015 की पहली तिमाही में वैश्विक स्तर पर जहां सोने की मांग कम हुई है, वहीं भारत में इसकी कुल मांग 15 फीसदी बढ़ी है। देश में आभूषणों की चाहत में 22 फीसदी का इजाफा हुआ है, हालांकि सोने में निवेशकों की दिलचस्पी कम हुई है। निवेश में 6 फीसदी की कमी देखी गई है। भारत में सोने की कुल मांग जनवरी से मार्च की तिमाही के दौरान 15 फीसदी बढ़कर 191.7 टन हो गई जबकि 2014 की पहली तिमाही में सोने की कुल मांग 167.1 टन थी। विश्व स्वर्ण परिषद (डब्ल्यूजीसी) के मुताबिक सकारात्मक रुझान और अनुकूल नीतिगत बदलाव और कीमतों में कमी के कारण भारत में सोने की मांग बढ़ी है। मूल्य के लिहाज से 2015 की पहली तिमाही में सोने की मांग 9 प्रतिशत बढ़कर 46,730.6 करोड़ रुपये हो गई, जबकि 2014 की पहली तिमाही के दौरान 42,898.6 करोड़ रुपये थी। देश में सबसे ज्यादा आभूषणों की मांग में इजाफा हुआ है। आभूषणों की कुल मांग पहली तिमाही के दौरान 22 प्रतिशत बढ़कर 150.8 टन हो गई जो पिछले साल की पहली तिमाही में 123.5 टन थी। मूल्य के लिहाज से आभूषण की मांग 16 प्रतिशत बढ़कर  36,761.4 करोड़ रुपये हो गई, जबकि पिछले साल 31,706.4 करोड़ रुपये थी। हालांकि निवेश मांग में कमी देखने को मिली। कुल निवेश मांग 6 फीसदी कम होकर 40.9 टन रह गई जो पिछले साल 43.6 टन थी। मूल्य के लिहाज से निवेश की मांग 11 फीसदी घटकर 9,969.3 करोड़ रुपये रही जो 2014 की पहली तिमाही में 11,192.2 करोड़ रुपये थी।

डब्ल्यूजीसी के प्रबंध निदेशक  पीआर सोमसुंदरम के अनुसार भारत में सोने की मंाग 2015 की पहली तिमाही के दौरान 15 प्रतिशत अधिक रही, हालांकि यह 5 फीसदी के औसत से अभी भी कम है। इससे पिछले साल की इसी अवधि में सोने की मांग कम रहने के कारण का संकेत मिलता है जो सख्त सोना आयात नीति, कमजोर आर्थिक रुझान और आम चुनाव के दौरान व्यापार की अनिश्चितता के कारण हुआ। सोमसुंदरम के अनुसार आने वाली तिमाहियां पहली तिमाही से बेहतर रहने की उम्मीद है जिसे भारत में सोने की मांग के लिहाज से अच्छा नहीं माना जा रहा। इस साल आयात मांग बढ़ोतरी के अनुरूप बढ़ सकती है जो इस साल 10-15 प्रतिशत बढऩे की उम्मीद है। सोने की वैश्विक मांग भारत के विपरीत कम रही। डब्ल्यूजीसी की रिपोर्ट के मुताबिक सोने की कुल मांग पहली तिमाही में 1 फीसदी घटकर 1,079 टन रही जो पिछले साल की इसी तिमाही में 1,089.9 टन थी। सोने की कुल मांग में जेवरात की प्रमुख भूमिका होती है जिसकी मांग इस साल पहली तिमाही में 3 फीसदी घटकर  601 टन रह गई। (BS Hindi)

14 मई 2015

वेजिटैबल तेलों के आयात में 33 फीसदी की भारी बढ़ोतरी

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष-2015-16 के पहले महीने अप्रैल में वेजिटैबल तेलों के आयात में 33 फीसदी की भारी बढ़ोतरी होकर कुल आयात 1,097,679 टन का हो चुका है। विदेशी बाजार में वेजिटैबल तेलों की कीमतों में आई गिरावट से आयात में बढ़ोतरी हुई है।
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार अप्रैल महीने में 1,097,679 टन वेजिटैबल तेलों का आयात हुआ है जबकि पिछले साल अप्रैल महीने में 832,760 टन तेलों का आयात हुआ था। चालू तेल वर्ष 2014-15 के पहले छह महीनों नवंबर-14 से अप्रैल-15 के दौरान वेजिटैबल तेलों के आयात में 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान 6,461,862 टन वेजिटैबल तेलों का आयात हो चुका है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में 5,164,991 टन तेलों का आयात हुआ था।
भारतीय बंदरगाह पर आरबीडी पामोलीन के भाव अप्रैल 2015 में घटकर 647 डॉलर प्रति टन रह गए जबकि मार्च-2015 में इसके भाव 661 डॉलर प्रति टन थे। इसी तरह से इस दौरान क्रुड पाम तेल के भाव 650 डॉलर प्रति टन से घटकर 638 डॉलर प्रति टन रह गए। क्रुड सोयाबीन तेल के भाव इस दौरान भारतीय बंदरगाह पर 767 डॉलर प्रति टन से घटकर 752 डॉलर प्रति टन रह गए।.....आर एस राणा 

मक्का की कीमतों में 10 से 15 रुपये प्रति क्विंटल का सुधार

मक्का की कीमतों में 10 से 15 रुपये प्रति क्विंटल का सुधार आया है। लारेंस रोड मंडी में मक्का के भाव 1,280-1,290 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। बिहार की गुलाबबाग मंडी में मक्का के भाव 1,110 से 1,115 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। बिहार से पंजाब और हरियाणा पहुंच मक्का के सौदे 1,331 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हो रहे हैं। आंध्रप्रदेश की मंडियों में मक्का के भाव 1,200 से 1,225 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। आंध्रप्रदेश में मक्का की खरीद सरकारी एजेंसियां 1,310 रुपये प्रति क्विंटल पर कर रही है। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी सीजन में मक्का की पैदावार घटकर 64.8 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 71.1 लाख टन की पैदावार हुई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि विश्व बाजार में मक्का की कीमतें नीचे बनी हुई है जिसकी वजह भारत से निर्यात पड़ते नहीं लग रहे हैं। घरेलू मंडियों में रबी मक्का की आवक बढ़ रही है जबकि मुर्गी दाने के साथ ही स्टार्च मिलों की मांग कमजोर बनी हुई है। हालांकि नीचे भाव में बिकवाली आने से मक्का की कीमतों में हल्का सुधार आया है लेकिन घरेलू मांग कमजोर होने के साथ ही निर्यात नहीं होने से मक्का की कीमतों में हल्का सुधार तो आ सकता है लेकिन तेजी की संभावना कम है।

सोयाबीन की कीमतों में पिछले तीन दिनों में 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट

सोयाबीन की कीमतों में पिछले तीन दिनों में 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है। इंदौर मंडी में सोयाबीन के भाव घटकर 3,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गए जबकि मध्य प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन के भाव घटकर 3,700 से 3,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। महाराष्ट्र की लातूर मंडी में सोयाबीन के भाव घटकर 3,920 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। एनसीडीईएक्स के अनुसार इंदौर मंडी में सोयाबीन के भाव 3,926 रुपये प्रति क्विंटल रहे। सोयाबीन की कीमतों में आई गिरावट से सोयाखली के भाव भी घटकर 36,500 से 37,000 रुपये प्रति टन रह गए। विदेशी बाजार में सोया खली की कीमतें कम होने के कारण भारत से निर्यात में सीमित मात्रा का ही हो रहा है जिससे उत्पादक मंडियों में सोयाबीन की कीमतों में गिरावट आई है। चालू वित वर्ष 2015-16 के पहले महीने अप्रैल में सोया खली का निर्यात घटकर 18,017 टन का हुआ है जबकि पिछले वित वर्ष 2014-15 के अप्रैल महीने में 89,883 टन सोया खली का निर्यात हुआ था।  कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2014-15 में सोयाबीन की पैदावार 107.05 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले वर्ष सोयाबीन की पैदावार 118.61 लाख टन की हुई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि उत्पादक मंडियों में सोयाबीन का स्टॉक अभी बचा हुआ है जबकि सोया खली में निर्यात मांग कमजोर है। सोयाबीन की कीमतों में एकतरफा तेजी आई थी जिसकी वजह से भाव में गिरावट आई है।

बासमती चावल के निर्यात में 50 हजार टन की गिरावट आई

बासमती चावल के निर्यात में 50 हजार टन की गिरावट आई
ईरान को निर्यात घटने की भरपाई के लिए, निर्यातक तलाश रहे हैं नए विकल्प
आर एस राणा
नई दिल्ली। वित वर्ष 2014-15 में बासमती चावल के निर्यात में 50 हजार टन की गिरावट आकर कुल निर्यात 37 लाख टन का हुआ है। ईरान भारत से बासमती चावल का आयात परमिट के आधार पर कर रहा है जिसकी वजह से बासमती चावल के निर्यात में कमी आई है। निर्यातक ईरान की भरपाई के लिए नए देशों में बासमती चावल के निर्यात की संभावनाए तलाश रहे हैं।
एपिडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वित वर्ष 2014-15 में बासमती चावल का निर्यात घटकर 37 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित वर्ष में 37.5 लाख टन का निर्यात हुआ था। उन्होंने बताया कि ईरान भारत से बासमती चावल का निर्यात परमिट के आधार पर कर रहा है तथा ईरान ने बासमती चावल के आयात पर 45 फीसदी का आयात शुल्क भी लगा रखा है। नए वित वर्ष में भी ईरान परमिट के आधार पर ही बासमती चावल का आयात करेगा। उन्होंने बताया कि पिछले पांच सात से ईरान भारत से बड़ी मात्रा में बासमती चावल का आयात कर रहा था तथा पिछले वित्त वर्ष 2013-14 में ईरान ने 14 लाख टन बासमती चावल का आयात किया था। उन्होंने बताया कि वित वर्ष 2014-15 में करीब 2.5 लाख टन बासमती चावल का निर्यात नए देशों को किया गया है।
वाणिज्य एंव उद्योग मंत्रालय के अनुसार वित वर्ष 2014-15 में मूल्य के हिसाब से बासमती चावल के निर्यात में 5.78 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान मूल्य के हिसाब से बासमती चावल का निर्यात 27,598.71 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित वर्ष में 29,291.82 करोड़ रुपये का हुआ था।
बासमती चावल की निर्यातक फर्म के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पिछले खरीफ सीजन में बासमती चावल की पैदावार ज्यादा हुई थी जबकि निर्यात में कमी आई है। इसी वजह से घरेलू बाजार में बासमती चावल की कीमतों में गिरावट बनी हुई है। उन्होंने बताया कि ईरान की भरपाई के लिए हम अन्य देशों में बासमती चावल के निर्यात की संभावनाए तलाश रहे हैं। उत्पादक मंडियों में पूसा-1,121 बासमती चावल सेला काभाव 4,700 से 4,800 रुपये प्रति क्विंटल और पूसा-1,509 बासमती चावल सेला का भाव 4,000 से 4,200 रुपये प्रति क्विंटल बने हुए हैं। प्रीमियम बासमती चावल सेला के भाव 5,900 से 6,000 रुपये प्रति क्विंटल है।......आर एस राणा