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04 मार्च 2015

चीनी निर्यात सब्सिडी जल्द देगी सरकार

मुंबई

खाद्य मंत्रालय पेराई सीजन 2013-14 के दौरान हुए कच्ची चीनी के निर्यात की सब्सिडी का भुगतान दो सप्ताह में करने जा रहा है। इससे चालू सीजन में कच्ची चीनी के निर्यात का रास्ता साफ हो गया है। सरकार ने 3,300 रुपये प्रति टन की सब्सिडी की घोषणा की थी, ताकि मिलों को अतिरिक्त स्टॉक का निर्यात करने में मदद मिले। लेकिन वैश्विक बाजारों में चीनी की कीमतें लगातार गिरने से मिलें पेराई सीजन 2013-14 के दौरान केवल 7.5 लाख टन चीनी का ही निर्यात कर सकीं। इस समय मिलों को प्रत्येक एक किलोग्राम चीनी के उत्पादन पर 6 से 6.50  रुपये का घाटा हो रहा है, जिससे मिलों पर किसानों के गन्ने की बकाया राशि बढ़ती जा रही है। इसलिए सरकार द्वारा सब्सिडी की थोड़ी राशि जारी करने से भी मिलों को बड़ी राहत मिलेगी।

खाद्य मंत्रालय के साथ बातचीत करने वाले उद्योग के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने कहा, 'सरकार सब्सिडी की राशि दो सप्ताह में जारी करेगी।' उद्योग के सूत्रों के मुताबिक कुछ मिलों ने सब्सिडी प्राप्त करने के लिए सही तरीके से दावा नहीं किया था, इसलिए सब्सिडी की राशि रुकी हुई थी। लेकिन अब सरकार ने करीब 247 करोड़ रुपये जारी करने का फैसला किया है। इस राशि में से 136-138 करोड़ रुपये महाराष्ट्र की मिलों को मिलेंगे। हालांकि अब तक भुगतान जारी न होने की वजह से मिलें नए चीनी निर्यात को लेकर चिंतित थीं।

महाराष्ट्र स्टेट फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज के प्रबंध निदेशक संजीव बाबर ने कहा, 'कई महीने पहले आवेदन करने के बावजूद सरकार ने अब तक पिछले साल की सब्सिडी का भुगतान नहीं किया है। इसके लिए हमें कहा गया कि कुछ मिलों के आवेदन दस्तावेज अपूर्ण हैं। हमने ऐसे आवेदनों की जानकारी देने के लिए खाद्य मंत्रालय को पत्र लिखा था। लेकिन मंत्रालय ने अभी तक कोई जबाव नहीं दिया है।'

हालांकि सब्सिडी योजना को सितंबर 2014 तक बढ़ा दिया गया था। लेकिन वैश्विक बाजारों में चीनी के दाम लगातार गिरने से मिलें इसका फायदा नहीं उठा पाईं। हालांकि मिलों के पास 75 लाख टन चीनी का सरप्लस था। सरकार ने फरवरी, 2015 की शुरुआत में निर्यात सब्सिडी की राशि बढ़ाकर 4,000 रुपये प्रति टन और निर्यात सीमा 14 लाख टन तय की गई थी। हालांकि सब्सिडी भुगतान की अधिसूचना अभी जारी नहीं हुई है, इसलिए महाराष्ट्र की चीनी मिलें निर्यात को लेकर चिंतित हैं।

निर्यात ऑर्डरों के अनुबंध के लिए मिलों को कम से कम 15 दिन चाहिए। उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अधिसूचना जारी करने में देरी और पिछले सीजन के भुगतान पर अनिश्चितता के चलते 14 टन कच्ची चीनी का निर्यात मुश्किल है। बाबर ने कहा, 'सरकार ने वर्ष 2006-07 में प्राथमिक (पहले आओ पहले पाओ) आधार पर निर्यात सब्सिडी की घोषणा की थी, जिसके तहत 9 चीनी मिलों ने ज्यादातर निर्यात किया। लेकिन सरकार ने उसके लिए भी भुगतान जारी नहीं किया था। मिलों ने इस संबंध में बंबई उच्च न्यायालय में शिकायत दर्ज कराई थी और यह मामला अभी लंबित है।'

चीनी उत्पादन 4 माह में 14 फीसदी बढ़ा

देश में चीनी का उत्पादन चालू पेराई सत्र (नवंबर 2014 से अक्टूबर 2015) के पहले चार महीनों में 14 फीसदी बढ़ा है। इस उद्योग की शीर्ष संस्था भारतीय चीनी मिल संघ ने एक बयान में यह बात कही है। देश में चल रहीं 511 मिलों ने नवंबर 2014 से फरवरी 2015 के बीच 194 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है। यह पिछले साल की इसी अवधि में 455 मिलों द्वारा उत्पादित 170.4 लाख टन चीनी से 23.6 लाख टन ज्यादा है।

उत्तर प्रदेश की मिलों ने फरवरी, 2015 के अंत तक 49.6 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है, जो पिछले साल की इसी अवधि में 43.4 लाख टन था। राज्य में चल रहीं 118 मिलों में से 3 ने चालू सत्र की पेराई बंद करने की घोषणा कर दी है। आलोच्य अवधि में महाराष्ट्र में 177 चीनी मिलों ने 74 लाख टन चीनी का उत्पादन किया, जो पिछले साल 129 मिलों द्वारा उत्पादित 57.5 लाख टन चीनी से 29 फीसदी अधिक है। चीनी के बढ़ते उत्पादन से मिलों की दिक्कतें और बढ़ गई हैं। उन पर गन्ने का बकाया बढ़कर 14,500 करोड़ रुपये हो गया है, जो पिछले साल मार्च में 13,000 करोड़ रुपये के सर्वोच्च स्तर से काफी अधिक है। देश में इस साल 260 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है, जबकि पिछले साल उत्पादन  244 लाख टन रहा था। (BS Hindi)

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