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31 मार्च 2015

चीनी का बकाया स्टॉक 20 फीसदी कम रहेगा-कृशि मंत्रालय


बड़े उपभोक्ताओं की मांग से कीमतों में सुधार आने का अनुमान
आर एस राणा
नई दिल्ली। उद्योग भले ही चीनी के बकाया बंपर स्टॉक की बात कर रहा हो लेकिन कृशि मंत्रालय का मानना है कि चालू पेराई सीजन के आखिर सितंबर-2015 में चीनी का बकाया स्टॉक पिछले साल की तुलना में 20 फीसदी घटकर 57.81 लाख टन ही रहने का अनुमान है। गर्मियों का सीजन षुरू हो गया है तथा आगामी दिनों में चीनी में बड़े उपभोक्ताओं की मांग बढ़ेगी, जिससे चीनी की मौजूदा कीमतों में 100 से 150 रूपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है।
कृशि मंत्रालय के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू सीजन के आखिर में चीनी का बकाया स्टॉक 57.81 लाख टन बचने का अनुमान है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 72.13 लाख टन से कम है। उन्होंने बताया कि चालू पेराई सीजन 2014-15 (अक्टूबर से सितंबर) में 250.46 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में 245.54 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। चालू पेराई सीजन में अक्टूबर से जनवरी-2015 तक 5.7 लाख टन चीनी का निर्यात हुआ है तथा कुल निर्यात 25.16 लाख टन होने का अनुमान है। पिछले पेराई सीजन में 27.03 लाख टन चीनी का निर्यात हुआ था।
उन्होंने बताया कि चालू पेराई सीजन में देष में 248 लाख टन चीनी की खपत होने का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में 243 लाख टन चीनी की खपत हुई थी। चालू पेराई सीजन में जनवरी-2015 तक 4.9 लाख टन चीनी का आयात भी हो चुका है तथा कुल आयात 8.38 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 6.09 लाख टन की तुलना में ज्यादा है।
इंडियन षुगर मिल्स एसोसिएषन (इस्मा) के अनुसार गन्ने में रिकवरी की दर पिछले साल से ज्यादा आने के कारण चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन बढ़ा है। चालू पेराई सीजन 2014-15 में 15 मार्च 2015 तक 221.8 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 193.8 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
चीनी के थोक कारोबारी सुधीर भालोठिया ने बताया कि उत्तर प्रदेष में चीनी के एक्स फैक्ट्ी भाव 2,475 से 2,550 रूपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि दिल्ली में चीनी की कीमतें 2,750 रूपये प्रति क्विंटल है। मुंबई में चीनी के दाम 2,350 रूपये प्रति क्विंटल है। उन्होंने बताया कि गर्मियों का सीजन षुरू हो गया है जिससे आगामी दिनों में बड़े उपभोक्ताओं की मांग बढ़ेगी। ऐसे में चीनी की मौजूदा कीमतों में 100 से 150 रूपये प्रति क्विंटल की तेजी आने का अनुमान है।.......आर एस राणा

गैर-उत्पादक राज्यों को ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री रहेगी जारी


सरकार ने एक्स लुधियाना गेहूं की कीमतें 1,550 रूपये तय की
आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों से गैर-उत्पादक राज्यों की रोलर फ्लोर मिलों को खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं की बिक्री मार्च के बाद भी जारी रहेगी। फ्लोर मिलों को एक्स लुधियाना 1,550 रूपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद करनी होगी।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि मार्च के बाद भी गेहूं के गैर उत्पादक राज्यों की रोलर फ्लोर मिलें ओएमएसएस के तहत खरीद जारी रख सकती है। उन्होंने बताया कि गैर-उत्पादक राज्यों की फ्लोर मिलों को एक्स लुधियाना 1,550 रूपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद करनी होगी तथा परिवहन लागत स्वयं वहन करनी होगी। अभी तक पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेष से ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री 1,500 रूपये प्रति क्विंटल (पुराना गेहूं) और 1,570 रूपये प्रति क्विंटल की दर से नए गेहूं की बिक्री की जा रही थी।
उन्होंने बताया कि पहली अप्रैल से गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद षुरू हो जाती है ऐसे में रिसाइक्लिंग होने की आषंका के कारण गेहूं की बिक्री ओएमएसएस के तहत बंद कर दी जाती थी। अप्रैल से गैर-उत्पादक राज्यों की फ्लोर मिलें 1,550 रूपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं खरीद सकती है जबकि चालू रबी विपणन सीजन 2015-16 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं का एमएसपी 1,450 रूपये प्रति क्विंटल तय किया है। ऐसे में रिसाइक्लिंग होने की संभावना नहीं है।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू सीजन में ओएमएसएस के तहत अभी तक कुल 42 लाख टन गेहूं की ही बिक्री हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 58 लाख टन गेहूं की बिक्री हुई थी। केंद्र सरकार ने ओएमएसएस के तहत 100 लाख टन गेहूं का आवंटन किया था। ओएमएसएस के तहत अभी तक हुई कुल बिक्री में मध्य प्रदेष से 12.12 लाख टन, पंजाब से 6.39 लाख टन, कर्नाटक से 5.84 लाख टन, हरियाणा से 4.87 लाख टन, दिल्ली से 4 लाख टन, तमिलनाडु से 1.45 लाख टन, पष्चिमी बंगाल से 1.33 लाख टन, असम से 1.39 लाख टन और जम्मू-कष्मीर से 1.70 लाख टन गेहूं बिका ळें
गेहूं के थोक कारोबारी संजय गुप्ता ने बताया कि मध्य प्रदेष से दिल्ली में नए गेहूं की आवक हो रही है। मध्य प्रदेष के नए गेहूं का भाव यहां 1,550 से 1,560 रूपये प्रति क्विंटल चल रहा है। पुराने गेहूं के सौदे 1,650-1,660 रूपये प्रति क्विंटल में हो रहे है। उत्तर प्रदेष से अप्रैल के प्रथम पखवाड़े में गेहूं की आवक बढ़ने का अनुमान है। ऐसे में आगामी दिनों में गेहूं की मौजूदा कीमतों में 100 से 150 रूपये प्रति क्विवंटल की गिरावट आने की संभावना है।........आर एस राणा

दार्जिलिंग के चाय निर्यातक गुजर रहे हैं मुश्किल दौर से

विश्व की सबसे पसंदीदा चाय दार्जिलिंग को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। विदेशी खरीदार मुद्रा विनिमय में नुकसान की भरपाई से इनकार कर रहे हैं। पिछले साल इस समय यूरो 80 से 84 रुपये था और इस समय यह करीब 68 रुपये पर है। लेकिन चाय की यूरो कीमत उसी स्तर पर है, लेकिन रुपये के लिहाज से इससे विक्रेताओं को नुकसान हो रहा है। दार्जिलिंग के चाय उत्पादकों के लिए यह बड़ा नुकसान है, क्योंकि 90 फीसदी चाय का निर्यात होता है और वर्ष के सीजन की 100 फीसदी चाय का निर्यात होता है।
गुडरिक समूह के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी ए एन सिंह ने हाल में कहा था, 'विदेशी खरीदार पिछले साल से महज 10  फीसदी ज्यादा दाम देने को तैयार हैं।' दार्जिलिंग समेत उत्तरी भारत से चाय निर्यात वर्ष 2014 में 2,77.31 करोड़ रुपये रहा। इस आमदनी में दार्जिलिंग का अहम योगदान होता है, क्योंकि इस चाय की कीमत ऊंची होती है। हालांकि दार्जिलिंग में महज 1 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन होता है। विदेशी मुद्रा नुकसान के अलावा उद्योग को अन्य दिक्कतों से भी जूझना पड़ रहा है, जिसमें एक प्रमुख चुनौती मजदूरी की ज्यादा लागत है। अप्रैल से दैनिक मजदूरी बढ़कर 122.50 रुपये हो जाएगी। चमोंग समूह के चेयरमैन अशोक लोहिया ने कहा, 'वर्ष के पहले सीजन में करीब 95 फीसदी उत्पादन अप्रैल में होता है।'
इसके अलावा दार्जिलिंग में मजदूरी तराई और डूआर्स की तुलना में 5 रुपये ज्यादा है। पश्चिम बंगाल के साथ त्रिपक्षीय समझौते में यह तय किया गया था। हालांकि बड़ी समस्या यह है कि ज्यादा मजदूरी के बावजूद चाय तुड़ाई के लिए पर्याप्त श्रमिक उपलब्ध नहीं हैं। दार्जिलिंग के कई इलाकों में कम बारिश से उद्योग के शुद्ध मुनाफे पर दबाव बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, 'यह चाय ईस्टर से पहले यूरोपीय बाजारों को आपूर्ति की जानी है। हमें जल्द चाय का निर्यात करना होगा, लेकिन उत्पादन ज्यादा नहीं हुआ है।' अपर्याप्त बारिश उद्योग के लिए चिंता का विषय है। हाल में इंडियन टी एसोसिएशन द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक चाचर में बारिश पिछले साल से भी 59 फीसदी कम रहने का अनुमान है, जबकि पिछले साल कम बारिश का वर्ष था। अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2015 में जनवरी से मार्च के मध्य तक उत्पादन पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 58.5 लाख किलोग्राम घटेगा। (BS Hindi)

बुखारियों के निर्माण में निजी निवेश

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) निजी मालभाड़ा टर्मिनलों के पास अनाज भंडारण के लिए बुखारियां बनाने की निजी कंपनियों को मंजूरी दे सकता है, बशर्ते निजी कंपनियों के पास जमीन उपलब्ध हो। निगम ऐसी बुखारियों के लिए गारंटीशुदा क्षमता सुनिश्चित करेगा और निवेशकों को एक तय दर पर किराया चुकाएगा। अधिकारी ने कहा कि निगम ने यह घोषणा बुखारियों के जरिये 2 करोड़ टन भंडारण क्षमता सृजन के अपने राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत निवेशकों के साथ बैठक में की। इस समय निगम की भंडारण क्षमता 7.11 करोड़ टन है। इसमें बुखारियों की भंडारण क्षमता महज 55 लाख टन है, जिनका संचालन अदाणी एग्रो लॉजिस्टिक लिमिटेड कर रही है।
बुखारियों के निर्माण और विकास की खातिर निजी निवेश आकर्षित करने के लिए निगम ने पहले ही दो योजनाएं चला रखी हैं और निजी मालभाड़ा टर्मिनलों के पास बुखारियों के निर्माण की तीसरी योजना पर विचार किया जा रहा है। पहली योजना में 20 फीसदी वाइबिलिटी गैप फंडिंग का प्रावधान है, जबकि दूसरी बिना वाइबिलिटी गैप फंडिंग के पीपीपी मॉडल पर आधारित है। बिना वाइबिलिटी गैप फंडिंग योजना आमतौर पर उन इलाकों में चलाई जाती है, जहां एफसीआई के पास खुद की जमीन नहीं है। अधिकारियों ने कहा कि निगम द्वारा किए गए प्रारंभिक आकलन के मुताबिक रेल साइडिंग पर 87 डिपो हैं, इसलिए 25,000 टन से ज्यादा क्षमता की बुखारियां विकसित की जा सकती हैं। इसके अलावा 56 अन्य ऐसी जगह हैं, जहां 50,000 टन से ज्यादा क्षमता की बुखारियों का निर्माण किया जा सकता है।
निगम में बुखारी खंड के कार्यकारी निदेशक अभिषेक सिंह ने सम्मेलन में कहा, 'एफसीआई ने बुखारियों के जरिये अपनी भंडारण सुविधाओं को उन्नत बनाने की योजना बनाई है और अपनी जमीन एवं निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता से पीपीपी मॉडल के जरिये लागत को कम से कम करेगा।' उन्होंने कहा कि पूंजीगत लागत के हिसाब से बुखारियों के निर्माण में लागत 5,900 रुपये प्रति टन आती है, जबकि परंपरागत गोदामों के निर्माण पर 6,750 रुपये प्रति टन लागत आती है।
इसके अलावा परंपरागत गोदामों की तुलना में बुखारियों में अनाज की बरबादी बहुत कम होती है। अपने बुखारी विकास कार्यक्रम के के जरिये निगम ने कवर्ड एरिया प्लिंथ (सीएपी) में खाद्यान्न का भंडारण पूरी तरह बंद करने की योजना बनाई है। सीएपी में खाद्यान्न को पक्के ऊंचे स्थान रखकर इसे प्लास्टिक की सीटों से ढंका जाता है। अपनी रणनीति के तहत निगम ने पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश जैसे खरीद राज्यों में बड़ी बुखारियों के निर्माण, मंडियों में छोटी बुखारियां और महाराष्ट्र जैसे उपभोक्ता राज्यों में मध्यम आकार की बुखारियां बनाने की योजना बनाई है। (BS Hindi)

बेमौसम बारिश से गेहूं उत्पादन 2 फीसदी घटेगा

बेमौसम बारिश के कारण भारत का गेहूं उत्पादन पिछले वर्ष 2013-14 के रिकॉर्ड उत्पादन 9.58 करोड़ टन के मुकाबले चालू फसल वर्ष में 2 फीसदी घटने के आसार हैं। एक सरकारी शोध संस्थान ने यह जानकारी दी है। इसने कहा है कि इस समय गेहूं पक चुका है और ताजा बारिश से पंजाब और हरियाणा में गेहूं की फसल को नुकसान हुआ है। पंजाब और हरियाणा गेहूं के दो प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। बारिश से नमी का स्तर बढ़ेगा, गुणवत्ता प्रभावित होगी और कटाई में 10 से 15 दिनों की देर होगी।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण करीब 62 लाख हेक्टेयर में गेहूं की फसल प्रभावित हुई है। करनाल स्थित गेहूं अनुसंधान निदेशालय की प्रमुख इंदु शर्मा ने कहा, 'फसल में नुकसान के स्तर को देखते हुए ऐसे आसार हैं कि इस साल कुल उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 2 प्रतिशत घटेगा।' देर से बोई गई गेहूं की फसल से अब भी उम्मीद है। शर्मा ने कहा कि अगर देर से बोई फसल के कारण उपज बेहतर रहती है और प्रतिकूल मौसम से निष्प्रभावी रहती है तो गेहूं उत्पादन लगभग पिछले साल के स्तर पर ही बना रह सकता है।' उन्होंने कहा कि गेहूं बुआई का कुल रकबा करीब 2.8 करोड़ हेक्टेयर है, जिसमें करीब 15 प्रतिशत फसल की बुआई देर से हुई है। शर्मा ने कहा कि ताजा बारिश का दौर खड़ी गेहूं फसल के लिए अच्छा नहीं है।
उन्होंने कहा, 'बारिश के कारण उपज अधिक प्रभावित नहीं होगी, क्योंकि बड़ क्षेत्रों में  फसल पक चुकी है। लेकिन इसके कारण (नमी बढऩे से) गेहूं की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।' उन्होंने कहा कि किसानों को यह देखना और सुनिश्चित करना होगा कि खेत में पानी जमा न हो। बारिश के कारण पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेहूं की कटाई में 10 से 15 दिनों की देर हो सकती है। (BS Hindi)

कमोडिटी बाजारः सोने-चांदी में क्या करें

सोने में पिछले हफ्ते की तेजी अब बिल्कुल खत्म हो गई है। सोने के लिए ये लगातार दूसरा महीना गिरावट भरा साबित होने जा रहा है। इस महीने सोने में करीब 2 फीसदी की गिरावट आ चुकी है, जबकि इस तिमाही के दौरान सोने ने कोई रिटर्न नहीं दिया है। वहीं वित्त वर्ष 2015 में सोने का दाम करीब 10 फीसदी गिर गया है। फिलहाल एमसीएक्स पर सोना 0.1 फीसदी की कमजोरी के साथ 26235 रुपये पर कारोबार कर रहा है।

गिरावट चांदी में भी आई है और आज एमसीएक्स पर 0.5 फीसदी से ज्यादा टूटकर 37230 रुपये के नीचे आ गई है। दरअसल अमेरिका में इस साल ब्याज दरें बढ़ने की उम्मीद है। ऐसे में डॉलर लगाजार मजबूत रहा है जिससे सोने पर दबाव बढ़ता जा रहा है। इस हफ्ते अमेरिका में नॉन फार्म पेरोल के आंकड़े आएंगे।

ईरान को लेकर पश्चिमी देशों में सहमति से पहले कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में दबाव में आ गया है। हालांकि घरेलू बाजार में हल्की बढ़त है। लेकिन आज कच्चे तेल पर अमेरिकी पेट्रोलियम इंस्टीट्यूट की इन्वेंट्री रिपोर्ट भी आने वाली है। फिलहाल एमसीएक्स पर कच्चा तेल सपाट होकर 3020 रुपये के आसपास नजर आ रहा है। दिन के कारोबार में कच्चा तेल 3030 रुपये के ऊपर गया था। वहीं नैचुरल गैस में गिरावट का रुख है। एमसीएक्स पर नैचुरल गैस 0.5 फीसदी गिरकर 166 रुपये के नीचे आ गया है।

टैक्स रिफॉर्म पर मलेशिया के रुख से निकेल में कल की गिरावट आज भी जारी है। हालांकि बेहद सपाट कारोबार हो रहा है। वहीं पूरे बेस मेटल्स में सुस्ती छाई हुई है। दरअसल कल मलेशिया में टैक्स रिफॉर्म की खबर के बाद से लंदन मेटल एक्सचेंज पर निकेल का दाम पिछले 10 साल के निचले स्तर पर लुढ़क गया था।

एमसीएक्स पर निकेल सपाट होकर 810 रुपये के आसपास नजर आ रहा है, जबकि कॉपर 0.1 फीसदी की मामूली कमजोरी के साथ 385 रुपये के नीचे कारोबार कर रहा है। एल्युमिनियम की चाल सपाट है, तो लेड और जिंक में 0.1 फीसदी की गिरावट आई है।

राजस्थान और मध्यप्रदेश में गेहूं की कीमतें बढ़ने लगी हैं। एफसीआई की खरीद शुरू होने से गेहूं को सपोर्ट मिला है। वहीं यूपी और राजस्थान के कुछ इलाकों में फिर से बारिश से क्वालिटी खराब होने का खतरा और बढ़ गया है। अच्छी क्वालिटी का लोकवन गेहूं करीब 20 रुपये ऊपर चल रहा है। वहीं दिल्ली की मंडी में मिल क्वालिटी गेहूं का दाम 1650 रुपये के पार चला गया है।

मोतीलाल ओसवाल कमोडिटीज की निवेश सलाह

सोना एमसीएक्स (जून वायदा) : खरीदें - 26310, स्टॉपलॉस - 26100 और लक्ष्य - 26680

चांदी एमसीएक्स (मई वायदा) : बेचें - 37400, स्टॉपलॉस - 37750 और लक्ष्य - 36550

कॉपर एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : बेचें - 386, स्टॉपलॉस - 389 और लक्ष्य - 378

निकेल एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : खरीदें - 805, स्टॉपलॉस - 792 और लक्ष्य - 825

लेड एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : खरीदें - 114, स्टॉपलॉस - 113 और लक्ष्य - 115.6

जिंक एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : बेचें - 132.3, स्टॉपलॉस - 133.6 और लक्ष्य - 130.3

एल्युमिनियम एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : बेचें - 113, स्टॉपलॉस - 114.2 और लक्ष्य - 111.2

कच्चा तेल एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : खरीदें - 3010, स्टॉपलॉस - 2960 और लक्ष्य - 3095

नैचुरल गैस एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : बेचें - 168.7, स्टॉपलॉस - 170.1 और लक्ष्य - 163


एग्री पर मोतीलाल ओसवाल कमोडिटीज की निवेश सलाह

चना एनसीडीईएक्स (अप्रैल वायदा) : खरीदें - 3600, स्टॉपलॉस - 3560 और लक्ष्य - 3665

सोयाबीन एनसीडीईएक्स (अप्रैल वायदा) : खरीदें - 3430, स्टॉपलॉस - 3380 और लक्ष्य - 3510

सरसों एनसीडीईएक्स (अप्रैल वायदा) : खरीदें - 3415, स्टॉपलॉस - 3370 और लक्ष्य - 3485.... स्रोत : CNBC-Awaaz

30 मार्च 2015

उत्तर प्रदेष में 31 चीनी मिलें कर चुकी है गन्ने की पेराई बंद


आर एस राणा
नई दिल्ली। चीनी की कीमतें कम होने के कारण मिलें समय से पहले ही पेराई बंद करने लगी है। उत्तर प्रदेष में चालू गन्ना पेराई सीजन-2014-15 (अक्टूबर से सितंबर) में अभी तक 31 चीनी मिलें पेराई बंद कर चुकी है जबकि अभी इन क्षेत्रों में गन्ना काफी मात्रा में खड़ा हुआ है। इसका असर गन्ना किसानों पर पड़ रहा है, मिलें बंद होने की स्थिति में किसानों को कोल्हू संचालकों को कम कीमत पर गन्ना बेचने की मजबूरी बन गई है।
यूपी षुगर मिल्स एसोसिषन (यूपीएसएमए) के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू सीजन में चीनी के दाम एक्स पैक्ट्ी घटकर 2,450 से 2,550 रूपये प्रति क्विंटल रह गए है जिससे चीनी मिलों को घाटा उठाना पड़ रहा है। इसलिए राज्य में चीनी मिलें समय से पहले ही पेराई बंद कर रही है। राज्य में अभी तक 31 चीनी मिलें पेराई बंद कर चुकी हैं। बंद हो चुकी मिलों में मध्य यूपी की 15 मिलें, ईस्ट यूपी की 13 और वेस्ट यूपी की 3 मिलों में पेराई बंद हो चुकी है। चालू सीजन में राज्य में 118 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी। सहारनपुर के चीनी के थोक कारोबारी संजय गुप्ता ने बताया कि जिन क्षेत्रों में चीनी मिलों ने गन्ने की पेराई बंद की है वहां अभी काफी मात्रा में गन्ना बचा हुआ है। मिलें बंद होने से किसान गन्ने की बिकवाली कोल्हू संचालकों को कम भाव पर करने को मजबूर है।
यूपीएसएमए के अनुसार गन्ने में रिकवरी की दर ज्यादा आने से चालू सीजन में राज्य में 61.17 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 55.31 लाख टन से 10.60 फीसदी ज्यादा है। चालू पेराई सीजन में गन्ने में औसतन 9.47 फीसदी की रिकवरी आ रही है जबकि पिछले पेराई सीजन में 9.18 फीसदी की रिकवरी की दर आई थी।
उत्तर प्रदेष की चीनी मिलों पर चालू पेराई सीजन में किसानों का 5,467.10 करोड़ रूप्ये का बकाया हो चुका है। चीनी के दाम कम होने के कारण बकाया की राषि आगामी दिनों में और भी बढ़ने की आषंका है।....आर एस राणा

कमोडिटी बाजारः क्रूड में गिरावट, क्या करें

कच्चे तेल में आज भारी गिरावट आई है। एमसीएक्स पर कच्चा तेल 4 फीसदी फिसलकर 3030 रुपये के नीचे आ गया है। दरअसल अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड में गिरावट बढ़ गई है। नायमैक्स पर भाव करीब 1.5 फीसदी गिरकर 48 डॉलर तक आ गया है। वहीं ब्रेंट 56 डॉलर के भी नीचे का स्तर छू चुका है। न्युक्लियर प्रोग्राम को लेकर दुनिया के छे बड़ी शक्तिओं और ईरान के बीच गतिरोध खत्म होने की उम्मीद से क्रूड पर दबाव बढ़ गया है। माना ये जा रहा है कि ऐसे में क्रूड की सप्लाई बढ़ सकती है।

सोने और चांदी में भी गिरावट बढ़ गई है। घरेलू बाजार में सोना 0.5 फीसदी की कमजोरी के साथ 26400 रुपये के आसपास कारोबार कर रहा है। वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना 1195 डॉलर के नीचे है। चांदी में सोने से ज्यादा गिरावट आई है। एमसीएक्स पर चांदी 1 फीसदी से ज्यादा टूटकर 38000 रुपये के नीचे आ गई है। दरअसल फेड चेयरमैन ने इस साल के अंत से अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने का संकेत दिया है, ऐसे में डॉलर मजबूत हुआ है।

बेस मेटल्स में भी गिरावट देखने को मिली है, लेकिन कॉपर में थोड़ी रिकवरी आई है। फिलहाल एमसीएक्स पर कॉपर 0.1 फीसदी की मामूली बढ़त के साथ 385 रुपये के ऊपर कारोबार कर रहा है। हालांकि निकेल 0.6 फीसदी की कमजोरी के साथ 825 रुपये पर आ गया है। एल्युमिनियम की चाल सपाट है, तो लेड में 0.25 फीसदी और जिंक में 0.3 फीसदी की कमजोरी आई है।

हल्दी में तेज गिरावट आई है। एनसीडीईएक्स पर हल्दी 0.3 फीसदी की कमजोरी के साथ 7550 रुपये पर आ गया है। दरअसल पिछले हफ्ते हाजिर में हल्दी की जोरदार आवक हुई थी। एरोड में आवक की आधी हल्दी ही बिक सकी है। इस पूरे हफ्ते के दौरान तमिलनाडू की मंडियां बंद रहेंगी।

मेंथा तेल की शुरुआती गिरावट कम हो गई है। शुरुआती कारोबार में मेंथा तेल का दाम 810 रुपये तक गिर गया था। हालांकि, फिलहाल एमसीएक्स पर मेंथा तेल 0.3 फीसदी की कमजोरी के साथ 816 रुपये के आसपास कारोबार कर रहा है। दरअसल इस साल मेंथा की बुआई में कमी का अनुमान है जिससे दबाव दिख रहा है।

निर्मल बंग कमोडिटीज की निवेश सलाह

सोना एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : बेचें - 26480, स्टॉपलॉस - 26590 और लक्ष्य - 26200

कॉपर एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : बेचें - 385.5, स्टॉपलॉस - 387.5 और लक्ष्य - 379

इंडियानिवेश कमोडिटीज की निवेश सलाह

मेंथा तेल एमसीएक्स (मई वायदा) : खरीदें - 812, स्टॉपलॉस - 804 और लक्ष्य - 828... स्रोत : CNBC-Awaaz

राज्य कृषि जिंसों की खरीद के लिए ई-नीलामी को दें वरीयता : केंद्र

केंद्र सरकार की योजना है कि देश की हजारों मंडियों (एपीएमसी) को जोड़कर कृषि उपजों का एक राष्ट्रीय साझा बाजार बनाए जाए। इसके लिए पहली पहल करते हुए केंद्र ने राज्यों को लिखा है कि कृषि जिंसों की खरीद के लिए, जहां तक संभव हो, ई-नीलामी को वरीयता दी जाए।
इस पहल की शुरुआत बजट के कुछ दिनों पहले की गई थी। यह कृषि जिंसों के लिए एक साझा बाजार बनाने की योजना का हिस्सा है, जिसमें कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) द्वारा संचालित सभी थोक मंडियों को जोड़ा जाएगा। वर्ष 2014-15 के आर्थिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2,777 प्रमुख मंडियां हैं और इन मंडियों के नियंत्रण वाली उप-मंडियों की संख्या 4,843 है। केंद्र सरकार की योजना एक बाजार बनाने के लिए इन मंडियों को जोडऩे की है, क्योंकि इस समय किसान के लिए इन मंडियों को बिक्री करना जरूरी है और मंडियों द्वारा 10 से 14 फीसदी तक शुल्क वसूला जाता है।
इस परियोजना के लिए माना जा रहा है कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करेगी, क्योंकि राज्यों के एपीएमसी अधिनियम में संशोधन और निजी मंडियों और बाजारों की स्थापना की खातिर रास्ता साफ करने के लिए केंद्र और राज्यों में सहयोग आवश्यक होगा। कुछ राज्यों ने फलों एवं सब्जियों को एपीएमसी अधिनियम से बाहर कर दिया है। हालांकि यह काफी नहीं है और इसलिए राज्यों से ई-नीलामी को अपनाने का सुझाव दिया गया है। 6-7 राज्य पहले ही सार्वजनिक वितरण के लिए चीनी की खरीद एनसीडीईएक्स ई-मार्केट द्वारा मुहैया कराई गई ई-नीलामी सुविधाओं के जरिये करने लगे हैं। एनसीडीईएक्स ई-मार्केट प्रमुख कृषि केंद्रित एक्सचेंज एनसीडीईएक्स की सब्सिडियरी है।
केंद्र ने एनसीडीईएक्स के मंडी आधुनिकीकरण कार्यक्रम की प्रशंसा की है। इस कार्यक्रम के तहत कर्नाटक की सभी एपीएमसी को इलेक्ट्रॉनिक रूप से जोड़ दिया गया है और किसानों को इस साझा प्लेटफॉर्म पर कारोबार होने वाली जिंसों की एक राज्य कीमत मिलती है। किसान ज्यादा कीमत देने वाले को अपनी उपज बेच सकते हैं। आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि कर्नाटक में 155 मुख्य मंडियों में से 51 को और 354 उप-मंडियों को जोड़ दिया गया है। राज्य सरकार और एनसीडीईएक्स स्पॉट एक्सचेंज द्वारा बनाया गया एक संयुक्त उपक्रम राष्ट्रीय ई-मार्केट सर्विसेज लिमिटेड (आरईएमएस) स्वचालित नीलामी और इसके बाद की सुविधाएं (वजन, इनवॉइस बनाना, बाजार फीस संग्रहण, अकाउंटिंग) और बाजारो में जांच-परख सुविधाएं मुहैया कराता है। इसके अलावा यह गोदाम आधारित उपज की बिक्री, जिंसों के लिए वित्त पोषण और तकनीक के आधार कीमत मुहैया कराने में मदद करता है।
एनसीडीईएक्स मंडी आधुनिकीकरण कार्यक्रम (एमएमपी) और संयुक्त बाजार प्लेटफॉर्म को लागू करता है। एमएमपी कार्यक्रम मंडीवार लागू किया जाता है, जबकि यूएमपी के तहत एक कारोबार के लिए राज्य में सभी मंडियों को जोड़ा जाता है। हालांकि यूएमपी राज्य लाइसेंस के तहत लागू किया जाता है, लेकिन केंद्र सरकार की योजना देश में सभी एपीएमसी को संयुक्त करना है। एनसीडीईएक्स ने कर्नाटक के अलावा तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में मंडियों का एकीकरण करना शुरू कर दिया है और पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित बहुत से प्रमुख राज्य एनसीडीईएक्स ई-मार्केट लिमिटेड (एनईएमएल) के साथ बातचीत कर रहे हैं।
एनसीडीईएक्स ने विभिन्न कृषि जिंसों में फॉरवर्ड ट्रेडिंग शुरू की है, जिनमें अरंडी, जीरा, मक्का और चीनी का कारोबार हो रहा है। (BS Hindi)

जल्द खराब होने वाली जिंसों के लिए विशेष जिंस बाजार '

घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्याज और सब्जियों जैसी जल्द खराब होने वाली जिंसों की खातिर संभावनाएं विकसित करने के लिए मंत्रालय ने विशेष जिंस बाजार स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है, जिनमें जल्द खराब होने वाली सब्जियों के लिए प्रसंस्करण इकाइयां लगी होंगी। इन जिंस बाजारों का विकास राज्य एपीएमसी करेंगी, जिन्हें कृषि मंत्रालय विशेष प्रोत्साहन एवं सब्सिडी मुहैया कराएगा।
प्याज एवं लहसुन बाजार विकसित करने की पृष्ठभूमि में यह बातचीत महाराष्ट्र, केंद्र सरकार और राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एïवं विकास प्रतिष्ठान के बीच हुई है। अधिकारियों का यह मानना है कि केवल कच्चे प्याज के उत्पादन और निर्यात पर निर्भरता और इसका मूल्य संवर्धन या प्रसंस्करण नहीं करने से किसानों और कारोबारियों को फायदा नहीं मिल रहा है। इस जिंस का पूरा कारोबारी मॉडल जलवायु की स्थितियों पर निर्भर है। अगर जल्द खराब होने वाली जिंसों को प्रसंस्कृत जिंसों में बदला जाए तो  यह न केवल किसानों और कारोबारियों के लिए बल्कि भारत और विदेशी उपभोक्ताओं के लिए भी फायदेमंद होगा। इसमें निर्यात की भारी संभावनाएं पैदा होंगी और ये जिंस सभी सीजनों में उपलब्ध होंगी। इसके अलावा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) से प्याज का न्यूनतम समर्थन मूल्य सुझाने का प्रस्ताव रखा गया है, ताकि किसानों को होने वाले नुकसान पर नियंत्रण लगाया जा सके। वहीं प्याज के लिए निर्यात नीति भी तय करने का प्रस्ताव है। मंत्रालय विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के समक्ष यह प्रस्ताव रख सकता है कि वह प्याज के मुक्त निर्यात को मंजूरी दे और निर्यात के लिए निर्यातक एजेंसियों की जरूरत समाप्त करे। अधिकारियों के मुताबिक निर्यात नीति को प्याज निर्यात पर समय-समय पर रोक लगाने, एमईपी तय करने और इसे समय-समय पर बदलने जैसे प्रावधानों से मुक्त रखा जाना चाहिए। एपीएमसी की मदद से जल्द खराब होने वाली जिंसों के लिए प्रसंस्करण इकाइयां लगाने के प्रस्ताव की परीक्षण के तौर पर प्याज से शुरुआत हो सकती है। इसके बाद अन्य जिंसों जैसे मिर्च, शिमला मिर्च और लहसुन आदि के लिए प्रसंस्करण इकाइयां लगाई जा सकती है।
केंद्र सरकार ने जल्द खराब होने वाली सब्जियों के प्रसंस्करण की खातिर प्रसंस्करण इकाइयां लगाने के लिए सब्सिडी देने की संभावना पर विचार करने पर सहमति जताई है। जल्द खराब होने वाली जिंसों के ठीक बने रहने की अवधि बढ़ाने के लिए मंत्रालय इरैडिटेशन तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दे रहा है। इस तकनीक का इस्तेमाल सबसे पहले प्याज में किया जाएगा।  इरैडिटेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें खाद्य सामग्री को ऊर्जा के एक स्रोत के संपर्क में लाया जाता है, जिसे खाद्य सामग्री संरक्षित रह सके। इससे खाद्य सामग्री से होने वाली बीमारी का जोखिम घटता है, तेजी से फैलने वाले कीटों के प्रसार पर रोक लगती है और खाद्य सामग्री में अंकुरण या पकाव देरी से होता है। यह प्रकाश रेडियोएक्टिव पदार्थ से निकला जा सकता है या बिजली के रूप में पैदा किया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इरैडिटेशन से खाद्य पदार्थ रेडियोएक्टिव नहीं बनता है और खाद्य सामग्री के इरैडिटेशन को 60 देशों में मंजूरी मिली हुई है। पूरे विश्व में हर साल करीब 5 लाख टन खाद्य सामग्री का प्रसंस्करण होता है। भारत में लासलगांव में इरैडिटेशन संयंत्र हैं, जिसका इस्तेमाल इसके लिए किया जा सकता है। दरअसल मंत्रालय ने विभिन्न जगहों पर किसानों के खेतों में बड़े पैमाने पर की जाने वाली प्रदर्शनियों के लिए सब्सिडी मुहैया कराने पर सहमति जताई है, ताकि इरेडिएट किए हुए और बिना किए हुए प्याज में नुकसान का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। अधिकारियों के मुताबिक यह परियोजना आगामी खरीफ सीजन के अंत में और रबी सीजन में शुरू हो सकती है। (BS Hindi)

डेयरियों के मार्जिन पर दबाव

निर्यात मांग में सुस्ती के कारण दूध की कीमतों में स्थिरता बने रहने से डेयरी कंपनियों के मार्जिन पर दबाव पडऩे का अनुमान है। गर्मियों के महीनों में रहने वाली सुस्ती के कारण किसान खरीद मूल्य में 3 से 4 फीसदी की गिरावट की उम्मीद कर रहे हैं। गर्मियों में आम तौर पर उत्पादन में कमी देखने को मिलती है।
देश भर की डेयरियों का दावा है कि फिलहाल किसानों को दी जाने वाली कीमतों में बढ़ोतरी की कोई खास संभावना नहीं है, क्योंकि बीते साल की तुलना में इस साल मार्जिन 30-40 फीसदी नीचे चल रहा है।
दिल्ली की स्टर्लिंग ऐग्रो के प्रबंध निदेशक कुलदीप सलूजा ने कहा, 'उत्तरी पट्टी में कुछ डेयरियों के मार्जिन में 40 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिली है। निर्यात अनुमान को देखते हुए स्टर्लिंग एग्रो का मार्जिन इस वित्त वर्ष के दौरान 30 फीसदी तक गिरा है, जिसके अगले छह महीनों के दौरान बढ़ोतरी की उम्मीद कम है। मार्जिन में बढ़ोतरी के लिए भारतीय डेयरियों के लिए यह सबसे खराब साल रहने जा रहा है।'
रेटिंग कंपनी इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के मुताबिक डेयरी कंपनियां बीते पांच साल से लगभग स्थिर 5 से 8 फीसदी के मार्जिन के साथ परिचालन कर रही हैं। रेटिंग कंपनी ने एक रिपोर्ट में कहा, 'मुख्य रूप से दूध का कारोबार करने वाली कंपनियों की तुलना में मूल्य वर्धित दुग्ध उत्पादों के क्षेत्र में परिचालन करने वाली कंपनियां बेहतर स्थिति में हैं।' हात्सुन एग्रो के प्रबंध निदेशक आर जी चंद्रमोगन भी स्वीकार करते हैं कि मार्जिन पर खासा दबाव है और वित्त वर्ष 15 में बमुश्किल ही मुनाफा हुआ है। कम मुनाफे के पीछे वजह कच्चे माल की लागत है, जिसका एक डेयरी के कुल खर्च में 70-80 फीसदी योगदान होता है और किसानों के लिए हाल के वर्षों में खरीद मूल्य में खासा इजाफा हुआ है, जिसका मार्जिन पर खासा असर पड़ा है। गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) जिसके पास अमूल ब्रांड का स्वामित्व है, के प्रबंध निदेशक आर एस सोढी ने कहा कि दुग्ध सहकारी संगठन मार्जिन के सिद्धांत पर काम नहीं करते हैं, क्योंकि ऊंची कीमतों का लाभ उत्पादकों तक पहुंचाया जाता है। हालांकि सोढी मानते हैं कि इस साल खरीद मूल्य में 3-4 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी की संभावना नहीं है, क्योंकि उत्पादन स्थिर बना हुआ है। इंडिया रेटिंग्स की रिपोर्ट में भी कहा गया, 'दुग्ध सहकारी संस्थाएं किसानों को अधिक से अधिक फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से काम करती हैं। हमें उम्मीद है कि सहकारी संगठन वित्त वर्ष 16 में भी 5 फीसदी से कम (कर मार्जिन बाद मुनाफा) मार्जिन दर्ज करती रहेंगी।' अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतों में कमजोरी के चलते निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद काफी कम है और डेयरियों के पास कम से कम 50,000 टन स्किम्ड मिल्क पाउडर का भंडार मौजूद है।
जीसीएमएमएफ डेयरियों के फैट की कीमत लगभग 550 रुपये प्रति किलोग्राम है और उत्तर भारत में भैंस के दूध की कीमत 34 रुपये प्रति किलोग्राम और गाय के दूध की कीमत 29 रुपये प्रति किलोग्राम है।
कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (नंदिनी ब्रांड) और राजस्थान कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन (सारस ब्रांड) के अधिकारियों ने कहा कि अभी तक उत्पादन अच्छा रहा है।इंडिया रेटिंग्स को डेयरी क्षेत्र का आकार सालाना आधार पर 15.6 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद है। वित्त वर्ष 14 में उत्पादन 13.8 करोड़ टन रहा था और वित्त वर्ष 16 में इसके 15.1 करोड़ टन रहने का अनुमान है।
देश में लगभग 7 करोड़ ग्रामीण परिवार दुग्ध उत्पादन से जुड़े हुए हैं। ये परिवार दूध की लगभग 45 फीसदी पैदावार की खपत खुद ही करते हैं। बाकी 55 फीसदी में से 34.5 फीसदी शहरी बाजार में खुले रूप में बेचा जाता है और शेष दूध प्रसंस्कृत उत्पाद बनाने के काम आता है। सिर्फ 25 फीसदी दूध और दुग्ध उत्पाद भारतीय बाजारों में बेचे जाते हैं। BS Hindi

मानसून सामान्य रहने की उम्मीद से ग्वार और ग्वार गम में तेजी के आसार कम


जुन-जुलाई में ग्वार गम पाउडर का निर्यात बढ़ने की संभावना
आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू सीजन में ग्वार और ग्वार गम की कीमतों न्यूनतम स्तर पर चल रही है तथा चालू खरीफ में मानसून सामान्य रहने की संभावना जताई जा रही है। षनिवार को जोधपुर में ग्वार के भाव 3,700 से 3,800 रूपये और ग्वार गम के भाव 8,600 रूपये प्रति क्विंटल रहे। चालू वित्त वर्श में मात्रा के हिसाब से तो ग्वार गम पाउडर के निर्यात में तेजी आई है लेकिन मूल्य के हिसाब से गिरावट आई है। जून-जुलाई में ग्वार उत्पादों की निर्यात मांग तो बढ़ेगी, जिससे मौजूदा कीमतों में सुधार तो आने का अनुमान है लेकिन भारी तेजी की संभावना नहीं है।
टकूराम गम एंड केमिकल प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर विपिन अग्रवाल ने बताया कि इस समय विष्व बाजार से ग्वार उत्पादों की मांग काफी कमजोर है जबकि प्लांटों के साथ ही स्टॉकिस्टों के पास ग्वार का स्टॉक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। घरेलू मंडियों में जैसे ही ग्वार की कीमतों में 100-200 रूपये प्रति क्विंटल की तेजी आती है, ग्वार सीड की दैनिक आवक मंडियों में बढ़ जाती है जिससे तेजी स्थिर नहीं रह पाती। चालू खरीफ में मानसून सामान्य रहने का अनुमान है ऐसे में नए सीजन में ग्वार सीड की बुवाई अच्छी रहेगी। उधर जून-जुलाई के बाद विष्व बाजार से ग्वार उत्पादों की आयात मांग बढ़ेगी, जिससे भाव में सुधार आने का ही अनुमान है। उन्होंने बताया इस समय ग्वार गम पाडर की कीमतें 1,400 डॉलर प्रति टन चल रही हैं।
एपीडा के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू वित वर्श 2014-15 के पहले दस महीनों (अप्रैल से जनवरी) के दौरान ग्वार गम के निर्यात में 25 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल 6 लाख टन का निर्यात हो चुका है जबकि जबकि पिछले साल की समान अवधि में 4.80 लाख टन का हुआ था। वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार मूल्य के हिसाब से चालू वित वर्श के पहले नो महीनों में ग्वार गम के निर्यात में 12.44 फीसदी की कमी आकर 8,765.69 करोड़ रूपये मूल्य का निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित वर्श की समान अवधि में 10,010.97 करोड़ रूपये मूल्य का ग्वार गम का निर्यात हुआ था।
हरियाणा ग्वार गम एंड केमिकल के डायरेक्टर सुरेंद्र सिंघल ने बताया कि क्रूड तेल के दाम नीचे ही बने हुए है जिसकी वजह से विष्व बाजार से आयात मांग कम आ रही है। उन्होंने बताया कि मई के बाद निर्यात मांग बढ़ने का अनुमान है तथा तब तक स्टॉक भी कम जो जायेगा, जिससे मौजूदा भाव में सुधार आने का अनुमान है।....आर एस राणा

28 मार्च 2015

Castor Oil Demand May Increase By 15 % In 2015



Indication of higher demand for castor oil started  emerging on ground level with increased enquiry from major importers like China,EU and US.More dip in seed price is unlikely and seed market is expected to stablize around Rs 3350 to Rs 3500 per qtl,despite expectation of higher arrivals.Notably, oil export decreased by 7.22 percent from 4.60 to 4.29 lakh tonne in 2014 ownig to higher prices and sluggish demand from overseas buyers.
 
Market experts have started pridicting considerable rise in castor oil export this year.It may increase by 15 percent from 4.29 lakh tonne to over 5 lakh tonne in 2015.Castor oil and its derivatives have many applications inagriculture, cosmetics, electronics & telecommunications, food, lubricants, paints, inks and adhesives, paper, perfumeries, pharmaceuticals, plastics and rubber and textile chemicals.
 
As crop size is slightly higher(2 lakh tonne) than last year,seed may get support at price front in the second half of the year.Total availability of seed including carryout  would be around 19 lakh tonne this year while consumption is expected at 14 lakh tonne for next year.On paper it looks comfortable right now.However,stock holding would create short supply like condition June onward.So price would follow the similar trend we have witnessed last year.The bottom side would be Rs 3300-3400 while the top level might be 4500/4600 by the end of October -Nov.2015. 
 
Market expert says that China has covered 85 percent of its annual need(1.8 lakh tonne),EU and US too have covered 80 percent of their need so far.EU and US annual need is expected to be 1.20 and 0.60 lakh tonne respectivey. Demand from other countries  is likely to improve in the month of April as buyers are waiting for higher arrivals.Farmers are receiving  much lower price and if the similar trend continues that may reduce their castor acreage this year starting from July. ...agriwatch

India Summer Pulses 2015-16 Sowing Progress till Mar. 27.




Following is the state-wise summer pulses sowing progress till Mar.27:

11.33 Lakh Ha. Rabi Pulses Area Affected .

According to the Ministry of Agriculture, the estimated crop loss which was earlier quoted to be 181 lakh hectare by the State Governments has now been reduced to 106 lakh hectare. The Government of India has directed the State Governments to quickly do a final assessment. The State-wise revised damaged area under rabi pulses crops during end of February to till date due to heavy rainfall, hailstorms, thunderstorm and strong wind are as follows:

agriwatch

आवक में तेजी से हल्दी के दाम 15 फीसदी गिरे

हल्दी की कीमतों में गिरावट तेज होती जा रही है। आवक बढऩे के कारण हल्दी के दाम गिरकर चार महीने के निचले स्तर पर आ गए हैं। पिछले एक माह में इसकी कीमतें 15 फीसदी से ज्यादा गिरी हैं। मंडी में पुराना स्टॉक मौजूद होने और नई आवक रफ्तार पकडऩे की वजह से कीमतें अभी और नीचे आएंगी।
पिछले साल सबसे अच्छा रिटर्न देने वाली हल्दी इस समय निवेशकों को पसंद नहीं आ रही है। कमजोर मांग और आवक अधिक होने से हल्दी वायदा और हाजिर दोनों जगह गिर रही है। एनसीडीईएक्स में हल्दी अप्रैल अनुबंध की कीमत टूटकर 7,530 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गई है। हालांकि कारोबार बंद होने के समय एनसीडीईएक्स अप्रैल अनुबंध 7,558 रुपये पर बंद हुआ। वायदा बाजार में हल्दी की मौजूदा कीमत दिसंबर 2014 के दूसरे सप्ताह में थी। वायदा की तरह हाजिर बाजार में भी कीमतें लगातार गिर रही हैं। इरोड मंडी में हल्दी 6,000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गई है। कीमतें गिरने की वजह से किसान परेशान हैं, क्योंकि उनकी लागत 6,000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है।
देश की सबसे बड़ी हल्दी मंडी इरोड में आवक तेजी से बढ़ी है। एक सप्ताह पहले तक इरोड में हल्दी की औसत आवक 5,000 बोरी थी, जो इस समय बढ़कर 8,000  बोरी (एक बोरी में 70 किलोग्राम) हो गई है। आवक बढऩे से हाजिर बाजार में हल्दी की औसत कीमत 7,700 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। हल्दी कारोबारियों के अनुसार इरोड में अभी भी अच्छी गुणवत्ता वाली हल्दी 8,000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। लेकिन यह भी सही है कि थोड़ी भी खराब हल्दी को 6,000 रुपये प्रति क्विंटल में भी खरीदार मिलना मुश्किल है। हाजिर बाजार में कीमतें टूटने का असर वायदा बाजार पर भी देखने को मिल रहा है।
वायदा और हाजिर बाजार में हल्दी की कीमतें हर दिन 200-300 रुपये प्रति क्विंटल टूट रही हैं। ऐंजल कमोडिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक हल्दी की आवक अभी तेज रहेगी। ऐसे में कीमतें और प्रभावित होंगी। वायदा बाजार में हल्दी की कीमतें कमजोर होने के कारण हाजिर बाजार में भी कारोबारी हल्दी पर हाथ नहीं लगाना चाह रहे हैं। लगातार सस्ती होती हल्दी पर इरोड टरमरिक मर्चेंट्स एसोसिएशन के सदस्यों का कहना है कि इरोड मंडी में कारोबारियों के पास अभी पुराना स्टॉक है और नए माल की आवक बढ़ गई है। ऐसे में स्टॉकिस्ट माल खरीदना नहीं चाह रहे हैं और बाजार में फिलहाल बहुत ज्यादा मांग नहीं है। इस वजह से कीमतें गिर रही हैं। हल्दी कारोबारी प्रवीण शाह कहते हैं कि अगले एक महीने तक हल्दी की कीमतें चोट खाती रहेंगी और ये टूटकर 5,000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ सकती हैं। (BS Hindi)

27 मार्च 2015

स्टॉक कम होने से मूंगफली तेल की कीमतों में तेजी की उम्मीद


आर एस राणा
नई दिल्ली। उत्पादक राज्यों में हाजिर स्टॉक कम होने से मूंगफली सीड और तेल की कीमतों में तेजी आने का अनुमान है। राजकोट मंडी में षुक्रवार को मूंगफली सीड की कीमतें बढ़कर 4,400 से 4,500 रूपये प्रति क्विंटल हो गई जबकि तेल के दाम बढ़कर 1,000 रूपये प्रति 10 किलो हो गए। चालू वित्त वर्श के पहले दस महीनों में मूंगफली दाने के निर्यात में 46 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जबकि चालू सीजन में मूंगफली की कुल पैदावार में कमी आई है।
श्री राज मोती इंडस्ट्ीज के प्रबंधक समीर षाह ने बताया कि चालू सीजन में मूंगफली की कुल पैदावार में कमी आई थी जिससे इस समय उत्पादक राज्यों में स्टॉक सीमित मात्रा में बचा हुआ है। हालांकि मूंगफली दाने के निर्यात सौदो में पहले की तुलना में कमी आई है लेकिन हाजिर स्टॉक कम होने के कारण मूंगफली सीड और दाने की कीमतों में तेजी बननी षुरू हो गई है। उत्पादक राज्यों की मंडियों में इस समय दैनिक आवक सीमित मात्रा में ही हो रही है जबकि स्टॉकिस्ट नीचे भाव में बिकवाल नहीं है।
एपिडा के अनुसार चालू वित वर्श 2014-15 के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान मूंगफली दाने के निर्यात में 46 फीसदी की भारी बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 5.93 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्श की समान अवधि में इसका निर्यात 4.07 लाख टन का हुआ था। वणिज्य मंत्रालय के अनुसार चालू वित वर्श 2014-15 के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान मूंगफली दाने के निर्यात में मूल्य के हिसाब से 45.89 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल 3,830.480 करोड़ रूपये मूल्य का निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित वर्श की समान अवधि में मूंगफली दाने का निर्यात 2,625.54 करोड़ रूपये का हुआ था।
मूंगफली के थोक कारोबारी दयालाल ने बताया कि चालू सीजन में मूंगफली की कुल पैदावार में कमी आई थी जबकि दाने के निर्यात में भारी बढ़ोतरी हुई है। इस समय मूंगफली का स्टॉक मजबूत हाथों में जिसकी वजह से बिकवाली कम आ रही है। हालांकि घरेलू बाजार में आयातित खाद्य तेलों का स्टॉक ज्यादा है तथा कीमतें भी नीचे बनी हुई हैं लेकिन मूंगफली तेल के दाम आगे तेज ही रहने की संभावना है।
कृशि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार मूंगफली की पैदावार 74.68 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 97.14 लाख टन का उत्पादन हुआ था।.....आर एस राणा


बदल जाएगी कमोडिटी मार्केट की तस्वीर

इस साल बजट में जो सबसे बड़ा ऐलान हुआ है वह है एफएमसी का सेबी के साथ मर्जर यानी विलय। ये सिर्फ दो संस्थाओं का मर्जर नहीं है। इसके जरिए देश में एक बहुत बड़ा बदलाव होने जा रहा है। इस फैसले से जिस तरीके से इस देश में एग्रीकल्चर चलता है, जिस तरीके इस देश में कैपिटल मार्केट चलता है, उसमें आगे चल कर बड़ा बदलाव होने वाला है। इसी मुद्दे पर वायदा बाजार आयोग यानि एफएमसी के चेयरमैन रमेश अभिषेक ने सीएनबीसी आवाज़ के प्रधान संपादक संजय पुगलिया के साथ हुई खास मुलाकात में अपनी राय रखी।

रमेश अभिषेक ने कहा कि सेबी के साथ एफएमसी के मर्जर के बाद कमोडिटी मार्केट के ढ़ांचे में बड़े बदलाव होंगे। ये मर्जर वित्त वर्ष 2016 तक पूरा हो जाने की उम्मीद है। रमेश अभिषेक ने बताया कि मर्जर के एक साल बाद तक एफएमसी के नियम लागू रहेंगे। और 1 साल बाद सेबी वेयर हाउसिंग पर अपने नए नियम जारी करेगी।

रमेश अभिषेक ने कहा कि इस मर्जर के बाद कमोडिटी डेरीवेटिव्स, सिक्युरिटीज के परिभाषा में शामिल हो जाएंगे। कमोडिटी डेरीवेटिव्स के सिक्युरिटीज के परिभाषा में शामिल होने के बाद इनको लॉन्च करने का फैसला सेबी के हाथों में होगा। उन्होंने बताया की सेबी में विलय के बाद एफएमसी पूरी तरह से भंग हो जाएगी।

रमेश अभिषेक का मानना है कि कमोडिटी के लिए नेशनल मार्केट बनाने के लिए ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्म की जरूरत है। ऑनलाइन ट्रेडिंग के जरिए किसान अपनी फसल की प्राइस डिस्कवरी कर सकेंगे। ऑनलाइन ट्रेडिंग से किसानों को वित्तीय फैसले लेने में आसानी होगी।

रमेश अभिषेक के मुताबिक देश में कमोडिटी मार्केट में भरोसा बढ़ाने के लिए वेयर हाउसिंग सिस्टम  को दुरुस्त करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पिछले 2 सालों के दौरान वेयर हाउसिंग सिस्टम को दुरुस्त किए जाने के लिए काफी काम किया गया है। पिछले साल वेयर हाउसिंग के लिए नए नियम बनाये गए थे जो कि 1 साल तक लागू रहेंगे। विलय के 1 साल पूरे होने के बाद सेबी वेयर हाउसिंग पर अपने नियम और कंट्रोल बना पाएगा।

रमेश अभिषेक ने कहा कि जीएसटी लागू होने से काफी फायदा होगा। उन्होंने कहा कि जीएसटी लागू होने के बाद देश में गुड्स की आवाजाही काफी आसान हो जाएगी। इससे देश में कमोडिटी का नेशनल मार्केट बनाने में मदद मिलेगी।

रमेश अभिषेक ने कहा कि एग्री में ज्यादातर वही लोग ट्रेड करते हैं जो फिडिकल मार्केट में कारोबार करते हैं। उन्होंने कहा कि एग्री कमोडिटीज का कारोबार बढ़ाने के लिए नान-एग्री या बुलियन मार्केट की तरह डिलिवरी शुरू होनी चाहिए।

रमेश अभिषेक के मुताबिक एफआईआई को कमोडिटी ट्रेडिंग की मंजूरी देने से बाजार की गहराई बढ़ेगी लेकिन इससे साथ जुड़े रिस्क को भी ध्यान में रखना होगा। उन्होंने कहा कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए रेग्यूलेटर एफआईआई को कमोडिटी ट्रेडिंग की मंजूरी देने के पहले कड़ा अध्ययन करेगा।

रमेश अभिषेक ने कहा कि एफटीएल-एनएसईएल मामले में टिप्पणी करना उचित नहीं होगा, इसका फैसला सरकार के हाथ में है। उन्होंने कहा कि एनएसईएल मामले में कानूनी प्रक्रिया में जितना समय लगता है, वो तो लगेगा ही, फैसला कब तक आएगा इस पर कुछ कहना मुश्किल है। उन्होंने आगे कहा कि एनएसईएल मामले में महाराष्ट्र की एजेंसियों को जांच करनी है। रमेश अभिषेक ने बताया कि एनएसईएल मामले में अब तक निवेशकों को करीब 370 करोड़ रुपये मिल चुके हैं। .... स्रोत : CNBC-Awaaz

अफ्रीका को चावल निर्यात के लिए विशेष योजना बनाएगा वाणिज्य मंत्रालय

अफ्रीका को कृषि उत्पादों विशेषकर चावल के निर्यात में गिरावट से चिंतित वाणिज्य मंत्रालय बासमती व गैर-बासमती चावल का निर्यात बढ़ाने के लिए विशेष कार्य योजना बनाने पर विचार कर रहा है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार हाल ही में एक बैठक में वाणिज्य सचिव राजीव खेर ने कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकार (एपीडा) से कहा कि वह अफ्रीकी देशों को चावल के लिए विशेष निर्यात नीति बनाने पर विचार करे। अधिकारी ने कहा कि मंत्रालय का एक प्रतिनिधि मंडल भी कुछ अफ्रीकी देशों की यात्रा पर जा सकता है ताकि वहां संभावित आयातकों के साथ बैठक कर अफ्रीका को चावल का निर्यात बढ़ाया जा सके। अधिकारी ने कहा, 'अफ्रीका देशों से चावल की ऊंची मांग अपेक्षित है और भारत इस संभावना का दोहन कर सकता है।' उल्लेखनीय है कि फरवरी में चावल, चाय, कॉफी, मोटे अनाज, ऑयलमील, फल व सब्जियों सहित अनेक कृषि उत्पादों के निर्यात में गिरावट आई थी। (BS Hindi)

सोने की कीमत में 102 रुपये की गिरावट

कमजोर वैश्विक रुख के बीच सटोरियों की मुनाफावसूली से वायदा कारोबार में शुक्रवार को सोने की कीमत 0.38 प्रतिशत की गिरावट के साथ 26,948 रुपये प्रति 10 ग्राम रह गई। एमसीएक्स में सोने के जून डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 102 रुपये अथवा 0.38 प्रतिशत की गिरावट के साथ 26,948 रुपये प्रति 10 ग्राम रह गई जिसमें 115 लॉट के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार सोने के अप्रैल महीने में डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत भी 96 रुपये अथवा 0.36 प्रतिशत की गिरावट के साथ 26,705 रुपये प्रति 10 ग्राम रह गई जिसमें 436 लॉट के लिए कारोबार हुआ। बाजार विश्लेषकों ने सोना वायदा कीमतों में गिरावट का श्रेय कमजोर वैश्विक रुख और मौजूदा स्तर पर सटोरियों की मुनाफावसूली को दिया। इस बीच सिंगापुर में आज सोने की कीमत 0.4 प्रतिशत की गिरावट के साथ 1,200.10 डॉलर प्रति औंस रह गई। (BS Hindi)

चांदी की कीमतों में गिरावट

मौजूदा स्तर पर मुनाफावसूली और विदेशों में कमजोरी के रुख के कारण वायदा कारोबार में शुक्रवार को चांदी की कीमत 197 रुपये की गिरावट के साथ  38,900 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई। एमसीएक्स में चांदी के जुलाई डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 197 रुपये अथवा 0.50 प्रतिशत की गिरावट के साथ 38,900 रुपये प्रति किलो ग्राम रह गई जिसमें मात्र 3 लॉट के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार चांदी के मई डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 171 रुपये अथवा 0.44 प्रतिशत की गिरावट के साथ  38,442 रुपये प्रति किलो ग्राम रह गई जिसमें 478 लॉट के लिए कारोबार हुआ। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सिंगापुर में चांदी की कीमत 0.4 प्रतिशत की गिरावट के साथ 17.05 डॉलर प्रति औंस रह गई। बाजार विश्लेषकों ने कहा कि कारोबारियों की मुनाफावसूली के अलावा वैश्विक बाजारों में कमजोरी के रुख के कारण यहां वायदा कारोबार में चांदी कीमतों में गिरावट आई है। (BS Hindi)

दैनिक आवक कम होने से गुड़ की कीमतों में आई तेजी


चालू सीजन में गुड़ का स्टॉक पिछले साल से रहेगा कम
आर एस राणा
नई दिल्ली। उत्पादक मंडियों में गुड़ की दैनिक आवक घटने से पिछले दो दिनों में कीमतों में 30 से 40 रूपये प्रति मन (एक मन-40 किलो) की तेजी आकर षुक्रवार को मुज्जफरनगर मंडी में भाव 870 से 940 रूपये प्रति मन हो गए। चीनी के दाम कम होने के कारण चालू सीजन में मिलें गन्ने की पेराई समय से पहले बंद कर रही है जबकि अभी गन्ना काफी बचा हुआ है। ऐसे में आगामी दिनों में कोल्हू संचालकों को गन्ना ज्यादा मिलेगा तथा मई के दूसरे सप्ताह तक ही गुड़ स्टॉक में जायेगा। ऐसे में आगामी दिनों में गुड़ की दैनिक आवक बढ़ेगी जिससे भाव में गिरावट बनने की संभावना है।
थोक कारोबारियों ने बताया कि पिछले दो दिनों से गुड़ की दैनिक आवक कम हो गई है जिससे भाव में तेजी आई है। गुरूवार को मुज्जफ्रनगर मंडी में केवल 5,000 मन की आवक ही हुई। मंडी में गुरूवार को गुड़ चाकू का भाव बढ़कर 870 से 940 रूपये, गुड लड्डू का भाव 870-900 रूपये और रसकट का भाव 885 रूपये प्र्रति 40 किलो हो गया। उन्होंने बताया कि चीनी की कीमतें कम होने के कारण राज्य में चीनी मिलें समय से पहले ही गन्ने की पेराई बंद कर रही है जबकि इस समय गन्ना काफी बचा हुआ है। ऐसे में मिलें बंद होने से कोल्हू संचालकों को ज्यादा गन्ना मिलेगा, जबकि मई के दूसरे सप्ताह के बाद स्टॉक में जाने लायक गुड़ नहीं बनेगा। इसलिए मई के आखिर में गुड़ की कीमतों में गिरावट ही आने का अनुमान है।
फैडरेषन ऑफ गुड़ ट्ेडर्स के अध्यक्ष अरूण खंडेलवाल ने बताया कि चालू सीजन में अभी तक केवल 5.5 लाख कट्टे (एक कट्टा-40 किलो) का ही स्टॉक हुआ है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 34,000 कट्टे कम है। उन्होंने बताया कि पिछले साल कुल 11 लाख कट्टों का स्टॉक हुआ था लेकिन चालू सीजन में स्टॉक पिछले साल की तुलना में कम रहेगा।
व्यापारिक सूत्रों का कहना है कि चीनी की कीमतों में पिछले दो दिनों में तेजी आने का असर भी गुड़ की कीमतों पर पड़ा है। हालांकि खपत राज्यों की मांग कमजोर ही बनी हुई है जिससे मौजूदा कीमतों में ज्यादा तेजी की उम्मीद नहीं है। गुरूवार को दिल्ली में गुड़ चाकू के भाव 2,400 से 2,500 रूपये और गुड़ पेड़ी के 2,500 से 2,600 रूपये प्रति क्विंटल हो गए।.......आर एस राणा

26 मार्च 2015

नए वित्त वर्श में बासमती चावल का निर्यात ईरान की मांग पर करेगा निर्भर


चालू वित्त वर्श में 8 फीसदी गिरावट आने का अनुमान
आर एस राणा
नई दिल्ली। अप्रैल से षुरू होने वाले नए वित्त वर्श 2015-16 में बासमती चावल की निर्यात मांग काफी हद तक ईरान की आयात मांग पर निर्भर करेगी। अप्रैल के प्रथम पखवाड़े में ये पता चलेगा कि ईरान भारत से बासमती चावल के आयात पर लगाया हुआ प्रतिबंध हटाता है या नहीं। चालू वित्त वर्श 2014-15 में ईरान द्वारा केवल परमिट के आधार पर बासमती चावल के आयात सौदे करने से भारत से बासमती चावल के कुल निर्यात में 8 फीसदी की कमी आने की संभावना है।
ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट एसोसिएषन के अध्यक्ष एम पी जिंदल ने बताया कि ईरान भारत से बासमती चावल के निर्यात पर लगी रोक को हटाता है या नहीं, इस बारे में अप्रैल के प्रथम पखवाड़े में ही पता चलेगा। उन्होंने बताया कि ईरान भारत से बासमती चावल का सालाना करीब 14 लाख टन का आयात करता था लेकिन चालू वित्त वर्श में सीधे तौर पर आयात पर रोक लगा दी थी, तथा केवल जिन आयातकों ने परमिट ले रखे थे वहीं आयात कर रहे थे। इसलिए ईरान को भारत से कुल बासमती चावल का निर्यात घटकर 7 से 8 लाख टन का ही हुआ है।
उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्श 2014-15 में भारत से बासमती चावल के निर्यात में 8 फीसदी की गिरावट आने की आषंका है। पिछले वित वर्श में 37.5 लाख टन बासमती चावल का निर्यात हुआ था। एपिडा के अनुसार चालू वित्त वर्श के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान बासमती चावल का निर्यात घटकर 29.22 लाख टन ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्श की समान अवधि में इसका निर्यात 30.86 लाख टन का हुआ था। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्श के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान बासमती चावल के निर्यात में मूल्य के हिसाब से 3.28 फीसदी की कमी आकर कुल 22,740.11 करोड़ रूपये मूल्य का निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्श की समान अवधि में 23,510.21 करोड़ रूपये मूल्य का निर्यात हुआ था।
जिंदल ने बताया कि चालू फसल सीजन में बासमती चावल की पैदावार करीब 25 फीसदी ज्यादा हुई थी जबकि निर्यात कम रहा। इसलिए घरेलू बाजार में बासमती चावल और धान की कीमतों में गिरावट आई है। उन्होंने बताया कि खरीफ में मानसून सामान्य रहने का अनुमान है। ऐसे में अभी बासमती चावल की कीमतों में तेजी की संभावना भी नहीं है। उत्पादक मंडियों में 1121 बासमती चावल सेला का भाव घटकर 4,500 से 4,600 रूपये और सुगंधा चावल का 3,100 से 3,200 रूपये चल रहा है।.....आर एस राणा

सोने की कीमत में गिरावट

विदेशों में कमजोरी के रुख के अनुरूप कारोबारियों द्वारा अपने सौदों का आकार कम करने से वायदा कारोबार में बुधवार को सोने की कीमत 0.33 प्रतिशत की गिरावट के साथ 26,264 रुपये प्रति 10 ग्राम रह गई। एमसीएक्स में सोने के अप्रैल डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 87 रुपये अथवा 0.33 प्रतिशत की गिरावट के साथ 26,264 रुपए प्रति 10 ग्राम रह गई जिसमें 187 लॉट के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार सोने के जून महीने में डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत भी 81 रुपये अथवा 0.31 प्रतिशत की गिरावट के साथ 26,461 रुपये प्रति 10 ग्राम रह गई जिसमें 15 लॉट के लिए कारोबार हुआ। बाजार विश्लेषकों ने कहा कि अमेरिकी ब्याज दर में वृद्धि की संभावना बढऩे के बीच वैश्विक बाजार में सोने की कीमत दो सप्ताह के उच्च स्तर से नीचे आने के कारण विदेशों में कमजोरी के रुख से सोना वायदा कीमतों में गिरावट आई। वैश्विक स्तर पर सिंगापुर में सोने की कीमत 0.4 प्रतिशत की गिरावट के साथ 1,188.55 डॉलर प्रति औंस रह गई। (BS Hindi)

चांदी की कीमत में 0.29 प्रतिशत की गिरावट

विदेशों में कमजोरी के रुख के बीच सटोरियों द्वारा अपने सौदों के आकार को कम करने से वायदा कारोबार में बुधवार को चांदी की कीमत 0.29 प्रतिशत की गिरावट के साथ 37,880 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई। एमसीएक्स में चांदी के मई डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 111 रुपये अथवा 0.29 प्रतिशत की गिरावट के साथ 37,880 रुपये प्रति किलो ग्राम रह गई जिसमें 217 लॉट के लिए कारोबार हुआ। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चांदी की कीमत 0.2 प्रतिशत की गिरावट के साथ 16.93 डॉलर प्रति औंस रह गई। बाजार विश्लेषकों ने कहा कि वैश्विक बाजार में बहुमूल्य धातुओं की कीमतों में कमजोरी के रुख के कारण वायदा कारोबार में चांदी कीमतों में गिरावट आई। (BS Hindi)

'पैन' अनिवार्य बनाए जाने के खिलाफ व्यापारियों का प्रदर्शन

एक लाख रुपये से अधिक का सोना खरीदने पर स्थाई खाता संख्या (पैन) दर्ज करना अनिवार्य करने के बजट प्रस्ताव को लेकर सर्राफा व्यापारियों के विरोध स्वरूप बुधवार को राष्ट्रीय राजधानी में सर्राफा बाजार बंद रहे। सर्राफा व्यापारियों के अनुसार एक लाख रुपये से अधिक का सोना खरीदने के लिए 'पैन संख्या' दर्ज कराना अनिवार्य बनाया जाना सर्राफा उद्योग के लिए नुकसानदायक कदम है। इससे उनका व्यवसाय काफी कम हो जाएगा। सर्राफा व्यापारी वर्ष 2015-16 के 28 फरवरी को पेश केंद्रीय आम बजट में किए गए संबंधित प्रस्ताव को वापस लेने के लिए जोर दे रहे हैं। कल के कारोबार में सोना 100 रुपये की तेजी के साथ 26,550 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ था जबकि चांदी 200 रुपये की तेजी के साथ  37,800 रुपये प्रति किलोग्राम पर बंद हुआ था। (BS Hindi)

बारिश का रबी फसलों पर असर

देश के उत्तरी, मध्य एवं पश्चिमी हिस्से में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टिï के कारण मार्च के पहले पखवाड़े में रबी के रकबे पर काफी बुरा असर पड़ा है। खासतौर पर गेहूं का रकबा बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इसका सीधा मतलब है कि करीब 65,000 करोड़ रुपये की गेहूं की फसल बरबाद हो सकती है।
सरकार के शुरुआती अनुमानों के मुताबिक 1.8-1.82 करोड़ हेक्टेयर रबी की फसलें इससे प्रभावित होंगी। यानी देश में कुल 6.2 करोड़ हेक्टेयर में होने वाली फसल की बुआई का करीब 30 फीसदी हिस्सा प्रभावित हो सकता है। अधिकारियों का कहना है कि करीब 1.21 करोड़ हेक्टेयर में खड़ी गेहूं की फसल पर इस बेमौसम बारिश और ओलावृष्टिï का सीधा असर हुआ है। अनुमान के मुताबिक वर्ष 2014-15 में गेहूं की बुआई 3.063 करोड़ हेक्टेयर में की गई थी, इसमें से करीब 40 फीसदी रकबा प्रभावित हुआ है।
गेहूं की औसत खुदरा कीमत करीब 17 रुपये प्रति किलोग्राम है, इस लिहाज से जोखिम में आई फसल की कीमत करीब 65,000 करोड़ रुपये है। इस अनुमान के लिए यह माना गया कि वर्ष 2014-15 में उत्पादन केंद्र के दूसरे अग्रिम अनुमान 9.576 करोड़ टन के मुताबिक ही रहेगा। उत्पादन पर कुदरत के इस कहर के असर की वास्तविकता तो अगले महीने शुरू हो रही कटाई के बाद ही पता चलेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल का उत्पादन दूसरे अग्रिम अनुमान से करीब 30 फीसदी कम रह सकता है। 
किसान जागृति मंच के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश योजना आयोग के सदस्य सुधीर पंवार कहते हैं, 'संभव है कि नुकसान और इसके असर से जुड़े अनुमान सच हों लेकिन मेरा विश्लेषण यह कहता है कि पूरे देश में गेहूं की करीब आधी फसल बरबाद हो गई है। खुदरा महंगाई पर पडऩे वाले असर का अनुमान अभी नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि गेहूं एक वैश्विक जिंस है और सरकार के पास भरपूर भंडार भी उपलब्ध है।'
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में खाद्य वस्तुओं का भारांश करीब 45 फीसदी है। सीपीआई आधारित महंगाई की दर जनवरी के 5.19 फीसदी से बढ़कर फरवरी 5.37 फीसदी हो गई। राष्टï्रीय राजधानी और अन्यत्र प्रमुख थोक बाजारों में हरी सब्जियों और अंगूर जैसे फलों की कीमतें 20-30 फीसदी तक चढ़ गईं।
पंवार ने कहा कि सरकार को तत्काल प्रभावित हुए किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा करनी चाहिए और उन्हें नकद मुआवजा भी देना चाहिए।  पिछले हफ्ते कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने अपने अन्य अधिकारियों के साथ बेमौसम बारिश से प्रभावित इलाकों का दौरा किया। एक निजी चैनल को दिए गए साक्षात्कार में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि बेमौसम हुई बारिश का असर खाद्यान्नों की कीमत पर पड़ सकता है।  भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक इस महीने के पहले पंद्रह दिनों के दौरान देश में करीब 49.2 मिलीमीटर बारिश हुई है जो औसत से तीन गुना ज्यादा है। (BS Hindi)

आभूषणों में बढ़ी प्लैटिनम की मांग

प्लैटिनम की कीमतें कई वर्षों के निचले स्तर पर हैं। लेकिन अब मांग में सुधार आ रहा है और भारत प्लैटिनम के एक प्रमुख बाजार के रूप में उभर रहा है। इस सख्त कीमती धातु के आभूषणों की लोकप्रियता बढ़ रही है। साथ ही इसके औद्योगिक उपयोग में भी इजाफा हो रहा है।  बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ एक ई-मेल साक्षात्कार में वल्र्ड प्लैटिनम इन्वेस्मेंट काउंसिल (डब्ल्यूपीआईसी) के अनुसंधान निदेशक ट्रेवर रेमंड ने कहा, 'प्लैटिनम आभूषणों की मांग के लिहाज से भारत एक अहम बाजार बनता जा रहा है। प्लैटिनम की मांग के दो क्षेत्रों में से एक आभूषण है। वर्ष 2014 में प्लैटिनम की मांग में आभूषण क्षेत्र का योगदान 38 फीसदी रहा। वर्ष 2014 के दौरान भारत में प्लैटिनम के आभूषणों की मांग 35 किलो औंस बढ़कर 175 किलो औंस (5.6 टन) होने का अनुमान है और हमें उम्मीद है कि वृद्धि का यह रुझान वर्ष 2015 में भी जारी रहेगा।' सफेद धातु होने की वजह से आभूषणों में प्लैटिनम की ज्यादातर मांग डिजाइनिंग के लिए आती है, लेकिन पिछले कुछ समय से प्लैटिनम आभूषणों का रुझान बढ़ता जा रहा है। 
वर्ष 2015 में भारत में आभूषणों की मांग 15 फीसदी बढ़कर 200 किलो औंस होने का अनुमान है। कहा जा रहा है कि भारत की प्लैटिनम मांग 12 से 15 टन के बीच होगी। हालांकि आधिकारिक आयात करीब 3 टन रहने का अनुमान है और शेष मांग रिसाइक्लिंग के जरिये पूरी होगी, क्योंकि आमतौर वाहन क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाली प्लैटिनम का फिर से उपयोग होता है।
हालांकि वर्ष 2014 में भारत के वाहन क्षेत्र में प्लैटिनम की मांग 160 किलो औंस के स्तर पर सपाट रही है। उन्होंने कहा, 'हमें उम्मीद है कि यह वर्ष 2015 में तेजी पकड़ेगी, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि लगातार बढ़ रही है।' वाहनों प्रदूषण के नियंत्रण के लिए भारत स्टेज 4 शुरू करने से प्लैटिनम की मांग और बढ़ेगी। डब्ल्यूपीआईसी के मुताबिक इस समय भारत में प्लैटिनम की खपत वाले दो सबसे बड़े क्षेत्र आभूषण (वर्ष 2014 में 175 किलो औंस) और वाहन (वर्ष 2014 में 160 किलो औंस) हैं। रेमंड ने कहा कि प्लैटिनम की मांग में वृद्धि के लिए अच्छा बाजार है। इसकी वजह वहां अनुकूल आर्थिक स्थितियां होना और प्लैटिनम आभूषण में लोगों की रुचि बढऩा है। इस समय प्लैटिनम सोने की कीमतों से नीचे है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव 1,162 डॉलर प्रति औंस है, जबकि प्लैटिनम 1,126 डॉलर प्रति औंस है। कमजोर मांग के चलते सोने की कीमतों पर दबाव है। हालांकि प्लैटिनम के लिए कीमतों का रुझान मजबूत है। 
थॉमसन रॉयटर्स के एशिया जीएफएमएस के प्रबंधक (कीमती धातु मांग) कैमरन एलेक्जेंडर ने कहा, 'हमारा अनुमान है कि वर्ष 2015 में प्लैटिनम की कीमतें बढ़कर 1,300 से 1,350 डॉलर प्रति औंस के दायरे में रहेंगी। पिछले साल खानों से उत्पादन में भारी गिरावट रही थी, लेकिन हमारा अुमान है कि इस साल खानों से उत्पादन सुधरेगा। वहीं औद्योगिक मांग भी सुधर रही है।' रेमंड के मुताबिक , 'वैश्विक स्तर पर प्लैटिनम में पहले ही 10 अरब डॉलर का निवेश हो चुका है।' (BS Hindi)

कमोडिटी बाजारः कच्चे तेल में उबाल, क्या करें

कच्चे तेल में जोरदार तेजी आई है। एमसीएक्स पर क्रूड का दाम करीब 4.5 फीसदी उछल गया है। घरेलू बाजार में कच्चे तेल का दाम 3230 रुपये पर पहुंच गया है। अंतराष्ट्रीय बाजार में आई जोरदार तेजी का असर घरेलू कारोबार पर पड़ा है। दरअसल सऊदी अरब ने यमन पर हवाई हमला बोल दिया है। ऐसे में खाड़ी देशों में एक बार फिर जियोपॉलिटिकल टेंशन का खतरा बढ़ गया है। इसके अलावा नैचुरल गैस करीब 1 फीसदी बढ़कर 175 रुपये के ऊपर कारोबार कर रहा है।

सोने का दाम 3 हफ्ते की ऊंचाई पर पहुंच गया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना 1200 डॉलर के पास है। वहीं घरेलू बाजार में सोना 26600 रुपये के ऊपर है। डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी से घरेलू कीमतों को दोहरा सपोर्ट मिला है। एमसीएक्स पर चांदी 0.8 फीसदी बढ़कर 38500 रुपये के आसपास कारोबार कर रही है।

बेस मेटल्स में भी आज तेजी आई है। घरेलू बाजार में कॉपर 0.75 फीसदी की मजबूती के साथ 390 रुपये के ऊपर कारोबार कर रहा है। चिली में कॉपर की खदान में काम रुकने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों को सपोर्ट मिला है। वहीं घरेलू बाजार में कमजोर रुपये से भी सपोर्ट है। निकेल करीब 1.5 फीसदी की उछाल के साथ 865 रुपये के ऊपर पहुंच गया है। एल्युमिनियम में 0.7 फीसदी, लेड में 0.6 फीसदी और जिंक में 0.7 फीसदी की मजबूती आई है।

आलू पूरी तरह से जमीन पर आ गया है। देश की कई मंडियों में आलू का भाव 3 रुपये किलो के भी नीचे गिर गया है। खास करके पश्चिम बंगाल के वर्धमान में आलू का दाम 2.5 रुपये किलो तक गिर गया है। किसान परेशान हैं, क्योंकि देश भर के ज्यादातर कोल्ड स्टोर भर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के गोदामों पर हाउस फुल के बोर्ड लग चुके हैं जबकि गोदाम में आलू रखने के लिए किसानों की कतार लगी हुई है।

ट्रेड स्विफ्ट कमोडिटीज की निवेश सलाह

निकेल एमसीएक्स (मार्च वायदा) : खरीदें - 865, स्टॉपलॉस - 852 और लक्ष्य - 880

एल्युमिनियम एमसीएक्स (मार्च वायदा) : खरीदें - 111, स्टॉपलॉस - 110 और लक्ष्य - 113.... स्रोत : CNBC-Awaaz

25 मार्च 2015

षून्य षुल्क पर दलहन आयात की अवधी छह महीने बढ़ायेगी सरकार


आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी में पैदावार में कमी आने की संभावना से घरेलू बाजार में दालों की कीमतों में तेजी बनी हुई है। इसे देखते हुए केंद्र सरकार षून्य षुल्क पर दलहन आयात की अवधि को छह महीने बढ़ाने की योजना बना रही है। षून्य षुल्क पर दलहन आयात की समय सीमा 31 मार्च 2015 को समाप्त हो रही है तथा इसे बढ़ाकर 30 सितंबर 2015 करने की योजना है।
उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि पैदावार कम होने से घरेलू मंडियों में दलहन की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से उंची बनी हुई है। ऐसे में अगर आयातित दालों पर षुल्क लगा दिया गया तो घरेलू बाजार में दालों की कीमतों में और तेजी आ जायेगी, जिसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। इसलिए दालों के आयात पर षुल्क लगाने की आवष्यकता नहीं है।
कृशि मंत्रालय के अनुसार वर्श 2014-15 में दालों की बुुवाई में आई कमी से पैदावार घटकर 184.3 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 197.8 लाख टन की पैदावार हुई थी। चालू वित्त वर्श 2014-15 के पहले 9 महीनों (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान 36.63 लाख टन दालों का आयात हो चुका है जबकि वित्त वर्श 2013-14 में कुल आयात 36.54 लाख टन का ही हुआ था। चालू वित्त वर्श में दलहन का कुल आयात बढ़कर 40 लाख टन से भी ज्यादा ही होने का अनुमान है।
उत्पादक मंडियों में चने की कीमतें 3,450 से 3,500 रूपये प्रति क्विंटल चल रही है जबकि चने का एमएसपी 3,175 रूपये प्रति क्विंटल है। इसी तरह से मसूर का भाव 6,500-6,600 रूपये प्रति क्विंटल है जबकि इसका एमएसपी 3,075 रूपये प्रति क्विंटल है। अरहर का भाव उत्पादक मंडियों में 5,300-5,400 रूपये प्रति क्विंटल है जबकि एमएसपी 4,350 रूपये प्रति क्विंटल, मूंग का भाव मंडियों में 7,500-7,600 रूपये प्रति क्विंटल तथा एमएसपी 4,650 रूपये और उड़द का भाव मंडियों में 5,700-5,800 रूपये प्रति क्विंटल तथा उड़द का एमएसपी 4,350 रूपये प्रति क्विंटल है।......आर एस राणा

मार्च के बाद भी एफसीआई गेहूं की बिक्री रख सकती है जारी


मध्य प्रदेष से नए गेहूं की दिल्ली में आवक षुरू
आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) मार्च के बाद भी गैर-उत्पादक राज्यों में खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं की बिक्री जारी रखने के पक्ष में है। इसके लिए खाद्य मंत्रालय से अनुमति मांगी गई है जिस पर मंत्रालय विचार कर रहा है। मध्य प्रदेष से दिल्ली में नए गेहूं की आवक षुरू हो गई है तथा चालू सप्ताह के आखिर तक उत्तर प्रदेष से भी नए गेहूं की आवक षुरू हो जायेगी। ऐसे में आगामी दिनों में गेहूं की कीमतों में 100-150 रूपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने का अनुमान है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि मार्च के बाद भी गेहूं के गैर उत्पादक राज्यों में ओएमएसएस के तहत गेहूं बेचने की एफसीआई ने अनुमति मांगी है। उन्होंने बताया कि आमतौर पर एमएसपी पर गेहूं की खरीद के समय मार्च के बाद अप्रैल से जून तक गेहूं की सरकारी बिक्री बंद कर दी जाती थी। ऐसा गेहूं की रिसाइक्लिंग रोकने के लिए किया जाता है। चालू रबी विपणन सीजन में रिसाइक्लिंग की संभावना नहीं है इसलिए खाद्य मंत्रालय भी इसके पक्ष में है।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू सीजन में ओएमएसएस के तहत अभी तक कुल 42 लाख टन गेहूं की ही बिक्री हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 58 लाख टन गेहूं की बिक्री हुई थी। केंद्र सरकार ने ओएमएसएस के तहत 100 लाख टन गेहूं का आवंटन किया था। ओएमएसएस के तहत अभी तक हुई कुल बिक्री में मध्य प्रदेष से 12.12 लाख टन, पंजाब से 6.39 लाख टन, कर्नाटक से 5.84 लाख टन, हरियाणा से 4.87 लाख टन, दिल्ली से 4 लाख टन, तमिलनाडु से 1.45 लाख टन, पष्चिमी बंगाल से 1.33 लाख टन, असम से 1.39 लाख टन और जम्मू-कष्मीर से 1.70 लाख टन गेहूं बिका है।
श्रीबाला जी फूड प्रोडेक्टस के प्रबंधक संदीप बंसल ने बताया कि मध्य प्रदेष से दिल्ली में नए गेहूं की आवक षुरू हो गई है। इसमें कुछ गेहूं लस्टरलोस आ रहा है। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेष का नया गेहूं बुधवार को दिल्ली में 1,580 रूपये प्रति क्विंल में बिका जबकि पुराने गेहूं के सौदे 1,650-1,660 रूपये प्रति क्विंटल में हो रहे है। उत्तर प्रदेष से नए गेहूं की आवक चालू सप्ताह के आखिर तक षुरू होने का अनुमान है। केंद्र सरकार ने चालू रबी में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,450 रूपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। ऐसे में आगामी दिनों में गेहूं की कीमतों में 100 से 150 रूपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की संभावना है।.....आर एस राणा

सीसीआई एमएसपी पर 86 लाख गांठ कपास की कर चुकी है खरीद


उत्पादन, निर्यात और आयात आलकलन हेतु सीएबी की बैठक 31 मार्च को
आर एस राणा
नई दिल्ली। कॉटन कार्पोरेषन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने चालू फसल सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अभी तक 86 लाख लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास की खरीद की है। घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में सुधार आया है इसलिए सीसीआई बिकवाली धीमी गति से ही करती रहेगी। चालू सीजन में कपास की पैदावार, निर्यात और आयात की समीक्षा के लिए कॉटन एडवाईजरी बोर्ड (सीएबी) ने 31 मार्च को बैठक अधिकारियों की बुलाई है।
सीसीआई के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू सीजन में निगम अभी तक एमएसपी पर 86 लाख गांठ कपास की खरीद कर चुकी है। उत्पादक राज्यों में कपास की कीमतों में सुधार आया है इसलिए निगम की खरीद की गति भी पहले की तुलना में कम हुई है। उन्होंने बताया कि घरेलू मंडियों में कपास के दामों में सुधार बना रहे, इसलिए निगम बिकवाली भी सीमित मात्रा में ही करेती रहेगी। उत्पादक मंडियों में कपास की दैनिक आवक भी घटकर 80 से 90 हजार गांठ की रह गई है।
नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिषन के अध्यक्ष राकेष राठी ने बताया कि उत्पादक मंडियों में कपास की दैनिक आवक घटी है जबकि विष्व बाजार में भाव सुधरने से निर्यात पड़ते भी लग रहे है हालांकि निर्यात मांग कमजोर ही है। अहमदाबाद में षंकर-6 किस्म की कपास के भाव मंगलवार को 31,800 से 32,200 रूपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) हो गए। उन्होंने बताया कि आगामी दिनों में सीसीआई की बिक्री के आधार पर ही मार्किट में तेजी-मंदी आयेगी। विष्व बाजार में कॉटन के दाम सुधरकर 70-71 सेंट प्रति पाउंड चल रहे हैं।
कॉटन एडवाईजरी बोर्ड के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू सीजन में कपास की पैदावार, निर्यात और आयात के अनुमान के आंकलन के लिए 31 मार्च  2015 को बैठक बुलाई है। इसमें चालू सीजन में पैदावार के सही आंकड़ो का पता चलेगा। कॉटन एसोसिएषन ऑफ इंडिया (सीएआई) के अग्रिम अनुमान के अनुसार पहली अक्टूबर-2014 से षुरू हुए चालू फसल सीजन में देष में 397 लाख गांठ कपास उत्पादन का अनुमान है जोकि पिछले साल के 407 लाख गांठ से कम है।.......आर एस राणा

24 मार्च 2015

डीओसी और तेलों की मांग के अभाव में और टूटेगा सोयाबीन


आर एस राणा
नई दिल्ली। सोया खली में निर्यात मांग तो कमजोर है ही साथ ही खाद्य तेलों में भी उठाव कमजोर है। ऐसे में सोयाबीन की कीमतों में और भी 150 से 200 रूपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की संभावना है। उत्पादक मंडियों में सोमवार को सोयाबीन के प्लांट डिलीवरी भाव 3,450 से 3,550 रूपये प्रति क्विंटल रहे।
सोयाबीन प्रोससर्स एसोषिएषन ऑफ इंडिया (सोपा) के प्रवक्ता राजेष अग्रवाल ने बताया कि सोया खली में निर्यात मांग काफी कमजोर है जबकि उपलब्धता ज्यादा होने से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें भी नीचे बनी हुई है। कांडला बदरगाह पर सोया खली की कीमतें 28,800 से 29,000 रूपये प्रति टन चल रही है जबकि सोयाबीन के प्लांट डिलीवरी भाव 3,450 से 3,550 रूपये प्रति क्विंटल है। चालू फसल सीजन में अभी तक केवल 40 से 45 फीसदी माल की ही क्रेसिंग हो पाई है। ऐसे में स्टॉकिस्टों और उत्पादकों के पास अभी करीब 60 से 65 फीसदी सोयाबीन की उपलब्धता बनी हुई है। विष्व बाजार में अभी सोया खली की कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है। ऐसे में घरेलू बाजार में सोयाबीन की मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है।
साल्वेंट एक्सट्ेक्टर्स एसोसिएषन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू वित्त वर्श 2014-15 के पहले दस महीनों (अप्रैल से जनवरी) के दौरान सोया खली के निर्यात में 44 फीसदी की भारी गिरावट आकर कुल 549,162 टन का ही निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 2,375,231 टन सोया खली का निर्यात हुआ था। सोया खली की कीमतें 460 डॉलर प्रति टन भारतीय बंदरगाह पर है जबकि मई 2014 में इसकी कीमतें 710 डॉलर प्रति टन थी।
व्यापारिक सूत्रों का कहना है कि सोयाबीन तेल और सोया खली में उठाव नहीं होने से छोटे प्लांट बंदी के कगार पर पहुंच गए हैं। उत्पादक राज्यों में सोयाबीन का बकाया स्टॉक ज्यादा मात्रा में बचा हुआ है जबकि प्लांट जरूरत के हिसाब से ही खरीददारी कर रहे है। उन्होंने बताया कि आगामी सीजन में मानसून भी सामान्य रहने का अनुमान है। ऐसे में आगामी दिनों में दैनिक आवक बढ़ने से सोयाबीन की कीमतों में गिरावट की संभावना है।
कृशि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार सोयाबीन की पैदावार 116.41 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्श 2013-14 में इसकी पैदावार 118.61 लाख टन की हुई थी।.........आर एस राणा

प्रधानमंत्री के मन की बात से किसानों में नहीं जगी आषा की किरण

आर एस राणा
नई दिल्ली। प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के मुद्दे पर रेडियों के माध्यम से किसानों से मन की बात तो की लेकिन उनकी बाते सुनकर देष के ज्यादातर किसानों को निराषा ही हुई है।
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के प्रवक्ता अध्यक्ष राकेष टिकैत के बताया कि किसानों को उम्मीद थी कि सरकार गठन के दस माह बाद आखिर प्रधानमंत्री को देष के किसान की याद तो आई लेकिन मोदी ने किसानों से किए गए वायदे, कि किसानों को फसलों की लागत का 50 फीसदी जोड़कर लाभकारी मूल्य देना, किसानों को आपदा से हुए नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा राषि का एलान करना, किसानों की आमदनी सुनिष्चित करना, किसानों की बढ़ रही आत्महत्या रोकने जैसे गंभीर मुद्दो पर प्रधानमंत्री कोई ठोस जानकारी नहीं दी, लेकिन केवल भूमि अधिग्रहण बिल पर ही अपनी सफाई देते नजर आए।
उन्होंने कहा कि इससे किसानों में भारी निराषा हुई है, प्रधानमंत्री ने इतने बड़े मंच से देष के किसानों को गुमराह किया है। भूमि अधिग्रहण बिल पर भी मोदी ने किसानों को गुमराह करते हुए कहा कि हमारी सरकार ने बिल में बदलाव कर 13 दूसरे कानून जिनके अंतर्गत भी जमीन का अधिग्रहण होता है, उनको भी इस कानून की परिधि में लाया गया है, यह बात प्रधानमंत्री ने गलत कही है, क्योंकि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में स्पश्ट लिखा था कि दूसरे कानून भी एक साल के अंदर इसकी परिधि में आ जायेंगे। पहले कानून में सभी प्रभावितों को नौकरी का प्रावधान था लेकिन भाजपा ने इसे बदलकर केवल खेती मजदूर परिवार कर दिया। मुआवजे की राषि में भी कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। भाकियू का दावा है कि चार गुणा राषि मिलेगी, इसमें भी बड़ा खेल है क्योंकि सर्किल रेट, वास्तविक मूल्य से काफी कम हैं। अतः देष के किसान प्रधानमंत्री से अपील करते हैं कि उनको भी अपने मन की बात कहने का मौका दिया जाना चाहिए।......आर एस राणा

पंजाब में जूट बोरो की खरीद का मामला वित्त मंत्रालय के पाले में


राज्य सरकार के पास जूट बोरो की खरीद के लिए नहीं है पैसे
आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में पंजाब में गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद षुरू होने से पहले ही अड़चने आनी षुरू हो गई है। राज्य में पहली अप्रैल से गेहूं की एमएसपी पर खरीद षुरू होनी है लेकिन बोरों की खरीद के लिए राज्य सरकार के पास पैसा ही नहीं है। फरवरी में जूट के बोरो की खरीद के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने राज्य सरकार को 300 करोड़ रूपये दिए थे लेकिन मार्च में बोरो की खरीद राज्य सरकार को स्वयं करनी थी। राज्य सरकार ने मार्च में भी बोरो की खरीद से हाथ खड़े कर दिए हैं इसलिए बोरो की खरीद का मामला वित्त मंत्रालय के पास पहुंच गया है। 24 मार्च को वित्त मंत्रालय के वरिश्ठ अधिकारियों के साथ खाद्य मंत्रालय के वरिश्ठ अधिकारी इसका हल निकालने की कोषिष करेंगे।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि पंजाब सरकार ने बोरो की खरीद के लिए पैसे नहीं होने की बात कही थी, इसका हल निकलाने के लिए खाद्य मंत्रालय ने फरवरी में बोरो की खरीद के लिए एफसीआई से 300 करोड़ रूपये का प्रबंध करवाया था तथा मार्च महीने में राज्य सरकार को स्वयं बोरो की खरीद करनी थी। राज्य सरकार ने मार्च में भी बोरो की खरीद के लिए पैसे नहीं होने की बात कही है, इसलिए पैसे का इंतजाम करने के लिए वित्त मंत्रालय से मदद मांगी गई है। इस संबंध में 24 मार्च को वित्त मंत्रालय के अधिकारियों संग बैठक होगी। बैठक के बाद ही साफ होगा कि पैसे का इंतजाम केंद्र सरकार करेगी, या फिर राज्य सरकार को स्वयं करना होगा।
रबी विपणन सीजन 2014-15 में पंजाब से एमएसपी पर 116.41 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी जबकि चालू रबी विपणन सीजन 2015-16 में भी राज्य से 120 लाख टन से ज्यादा गेहूं की खरीद होने का अनुमान है।...आर एस राणा

कमोडिटी बाजारः कैसा है एग्री मार्केट का हाल

पिछले हफ्ते तक पूरे एग्री कमोडिटी मार्केट में बेमौसम बारिश को लेकर कई तरह के डर बने हुए थे, लेकिन अब मौसम साफ हो चुका है। उत्तर भारत में मौसम के साफ होने का सबसे बड़ा असर मंडियों में आवक पर पड़ा है। इस हफ्ते के शुरुआत से ही राजस्थान की मंडियों में सरसों की आवक 60 हजार बोरी के पार चली गई है जिसका असर इसकी कीमतों पर दिखा है।

कल अलवर में सरसों का दाम करीब 200 रुपये गिर गया था। आज भी वहां कीमतों पर आवक का दबाव है। इसका असर सरसों के वायदा पर भी दिख रहा है। अगले महीने से गेहूं की भी आवक बढ़ने की उम्मीद है। ऐसे में गेहूं वायदा करीब 1.5 फीसदी गिर गया है। साथ ही जौ में भी बिकवाली हावी है।

खाने के तेलों में आज गिरावट आई है। वायदा में सोया तेल और क्रूड पाम तेल का दाम करीब 0.5 फीसदी गिर गया है। एनसीडीईएक्स पर सोया तेल 0.4 फीसदी की कमजोरी के साथ 590 रुपये के नीचे कारोबार कर रहा है। वहीं एमसीएक्स पर क्रूड पाम तेल 0.5 फीसदी फिसलकर 440 रुपये के नीचे कारोबार कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सुस्ती और रुपये में रिकवरी से घरेलू बाजार में दोहरा दबाव है।

अमेरिकी पेट्रोलियम इंस्टीट्यूट का आज इन्वेंट्री डेटा आने वाला है और इससे पहले कच्चे तेल में फिर से उठापटक बढ़ गई है। कल की तेजी के बाद जहां अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेज गिरावट आई थी। वहीं घरेलू बाजार में आज ये हल्की बढ़त के साथ कारोबार कर रहा है। गौर करने वाली बात ये है कि इस बार भी अमेरिका में कच्चे तेल के भंडार में रिकॉर्ड बढ़त की संभावना है। एमसीएक्स पर कच्चा तेल 0.5 फीसदी की बढ़त के साथ 2950 रुपये के आसपास कारोबार कर रहा है। वहीं नैचुरल गैस में तेजी देखी जा रही है। एमसीएक्स पर नैचुरल गैस 1 फीसदी से ज्यादा बढ़कर 172.4 रुपये पर पहुंच गया है।

सोने और चांदी में भी कल की तेजी खत्म हो गई है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में दबाव है। गौर करने वाली बात ये है कि कल डॉलर में गिरावट से अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना दो हफ्ते की ऊंचाई पर पहुंच गया था। चांदी भी 17 डॉलर के बेहद करीब पहुंच गई थी। हालांकि निवेश मांग में अभी किसी तरह की बढ़ोतरी देखने को नहीं मिली है। फिलहाल एमसीएक्स पर सोना 0.2 फीसदी गिरकर 26150 रुपये के आसपास कारोबार कर रहा है, जबकि चांदी भी 0.2 फीसदी की कमजोरी के साथ 37700 रुपये के आसपास कारोबार कर रही है।

डॉलर के मुकाबले रुपये में आई मजबूती से बेस मेटल्स पर भी दबाव दिख रहा है। कॉपर हालांकि संभलने की कोशिश में है। लेकिन जिंक का दाम करीब 1 फीसदी गिर गया है। वहीं निकेल और एल्युमीनियम पर भी दबाव है। गौर करने वाली बात ये है कि कल लंदन मेटल एक्सचेंज पर कॉपर का दाम पिछले 2.5 महीने के ऊपरी स्तर पर चला गया था।

मोतीलाल ओसवाल कमोडिटीज की निवेश सलाह

सोना एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : खरीदें - 26025, स्टॉपलॉस - 25895 और लक्ष्य - 26335

चांदी एमसीएक्स (मई वायदा) : खरीदें - 37435, स्टॉपलॉस - 37070 और लक्ष्य - 38145

कच्चा तेल एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : खरीदें - 2875, स्टॉपलॉस - 2825 और लक्ष्य - 2985

नैचुरल गैस एमसीएक्स (मार्च वायदा) : बेचें - 174.8, स्टॉपलॉस - 178.1 और लक्ष्य - 168.5

कॉपर एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) : बेचें - 387.35, स्टॉपलॉस - 389.75 और लक्ष्य - 381.40

जिंक एमसीएक्स (मार्च वायदा) : खरीदें - 127.55, स्टॉपलॉस - 126.55 और लक्ष्य - 129.70

लेड एमसीएक्स (मार्च वायदा) : बेचें - 115.20, स्टॉपलॉस - 116.25 और लक्ष्य - 113.20

निकेल एमसीएक्स (मार्च वायदा) : खरीदें - 868, स्टॉपलॉस - 856 और लक्ष्य - 895


एग्री कमोडिटी पर मोतीलाल ओसवाल कमोडिटीज की निवेश सलाह

सोयाबीन एनसीडीईएक्स (अप्रैल वायदा) : खरीदें - 3350, स्टॉपलॉस - 3310 और लक्ष्य - 3410

सोया तेल एनसीडीईएक्स (अप्रैल वायदा) : बेचें - 592, स्टॉपलॉस - 602 और लक्ष्य - 576

सरसों एनसीडीईएक्स (अप्रैल वायदा) : खरीदें - 3365, स्टॉपलॉस - 3320 और लक्ष्य - 3460

चना एनसीडीईएक्स (अप्रैल वायदा) : बेचें - 3655, स्टॉपलॉस - 3695 और लक्ष्य - 3565

स्टेवैन डॉट कॉम की निवेश सलाह

सोया तेल एनसीडीईएक्स (जून वायदा) : खरीदें - 556, स्टॉपलॉस - 548 और लक्ष्य - 580....स्रोत : CNBC-Awaaz

23 मार्च 2015

मक्का की नई फसल की आवक में देरी, कीमतों में तेजी


आर एस राणा
नई दिल्ली। मक्का की नई फसल की आवक में 15 दिन की देरी होने के कारण कीमतों में तेजी बनी हुई है। सोमवार को पंजाब, हरियाणा पहुंच मक्का के भाव बढ़कर 1,640 से 1,650 रूपये प्रति क्विंटल हो गए। रबी मक्का की आवक मध्य अप्रैल से षुरू होगी, तथा इस समय मंडियों में मक्का षार्टेज बनी हुई है ऐसे में मौजूदा कीमतों में अभी तेजी ही बनी रहने की संभावना है।
मक्का के थोक कारोबारी पवन गुप्ता ने बताया कि बिहार में मक्का की नई फसल की आवक 10 अप्रैल के बाद ही बनेगी, जबकि इस समय मंडियों में पुराना स्टॉक नहीं है। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में बिहार में मक्का की बुवाई में भी कमी आई है जिससे पैदावार पिछले साल के कम ही रहने की आषंका है। रबी सीजन में मक्का की सबसे ज्यादा पैदावार बिहार में होती है। निजामाबाद के थोक कारोबारी पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि आंध्रप्रदेष में नई मक्का की आवक 15 अप्रैल के बाद ही बनेगी।
मक्का व्यापारी राजेष अग्रवाल ने बताया कि महाराश्ट, आंध्रप्रदेष, मध्य प्रदेष के अलावा राजस्थान में मक्का का स्टॉक सीमित मात्रा में ही बचा हुआ है जिससे कीमतों में तेजी बनी हुई है। दिल्ली में सोमवार को मक्का के भाव बढ़कर 1,600 रूपये और पंजाब, हरियाणा पहुंच 1,640-1,650 रूपये प्रति क्विंटल की दर से सौदे हो रहे हैं। नई फसल की आवक में दस-पंद्रह दिनों की देरी है तथा हाजिर में मालों की षार्टेज है इसलिए मौजूदा कीमतों में अभी तेजी जारी रह सकती है।
कृशि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में मक्का की पैदावार घटकर 65.1 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी में 71.1 लाख टन की पैदावार हुई थी। मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में मक्का की बुवाई 13.37 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 15.53 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी। .......आर एस राणा

ग्वार कीमतें 10 वर्षों में सबसे कम

ग्वार गम की कीमतें गिर रही हैं, जिससे पिछले तीन महीनों में बहुत सी प्रसंस्करण इकाइयां बंद हो गई हैं। ग्वार की कीमतें 10 वर्षों में सबसे कम हो गई हैं। इस वजह से किसान भी आगामी सीजन में ग्वार की बुआई को लेकर उत्साहित नहीं हैं, जिससे रकबे में 20 से 30 फीसदी गिरावट आने के आसार हैं। इस समय ग्वार का भाव 3,500 से 3,700 रुपये प्रति क्विंटल है। इससे पहले इस स्तर पर ग्वार वर्ष 2004 में था।
वहीं ग्वार गम की कीमतें 8,500 से 8,700 रुपये प्रति क्विंटल हैं, जो एक साल पहले 14,000 रुपये प्रति क्विंटल थीं। ग्वार गम की कीमतें अब तक के सर्वोच्च स्तर पर मार्च 2012 में थीं। उस समय इसके दाम 90,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे। चालू वित्त वर्ष में ग्वार गम का निर्यात घटकर आधा रह गया है। वित्त वर्ष 2015 में अप्रैल से जनवरी के दौरान निर्यात गिरकर 6 लाख टन रहा है। ज्यादातर गिरावट पिछले कुछ महीनों के दौरान आई हैै। आने वाले महीनों में निर्यात में और तेजी से गिरावट आने की आशंका है।
ग्वार गम के एक विश्लेषक गणेश प्रजापत के मुताबिक बाजार में नया ग्वार गम जून तक आने की संभावना है, इसलिए ग्वार की कीमतें और गिरकर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ सकती हैं। 95 फीसदी ग्वार की कटाई सितंबर-अक्टूबर के आसपास होती है। मई के आसपास बहुत कम ग्वार की कटाई होती है। वर्ष 2005 में अमेरिका में शेल गैस उत्खनन के लिए आवश्यक सामग्री के अन्य सस्ते विकल्प के रूप में ग्वार गम की खोज की गई थी। शेल गैस के उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ ग्वार गम की मांग भी बढ़ी। हालांकि कच्चे तेल की गिरती कीमतों से शेल गैस उत्पादन घटाया गया है, जिससे ग्वार गम की मांग में भारी गिरावट आई है।
घरेलू खाद्य प्रसंस्करण और कपड़ा उद्योग में ग्वार गम की मांग की बदौलत कुछ प्रसंस्करण इकाइयां चल पा रही हैं। हालांकि बहुत सी या तो बंद हो गई हैं या परिचालन बंद करने जा रही हैं।
वसुंधरा गम्स ऐंड केमिकल्स के मालिक सुमन जैन ने कहा, 'ग्वार गम बाजार बदहाल है और 90 फीसदी इकाइयां बंद पड़ी हैं। ग्वार की दैनिक आवक 20,000 टन से घटकर करीब 400 से 500 टन रह गई है। इसके नतीजतन किसान इस सीजन में ग्वार बोने के इच्छुक नहीं हैं।'
एग्रीवॉच के सर्वे के मुताबिक इस साल ग्वार का कुल रकबा 20 फीसदी घटने के आसार हैं। वर्ष 2014 में ग्वार का कुल उत्पादन 34 लाख टन या 3.4 करोड़ बोरी रहने का अनुमान था। एग्रीवॉच के वरिष्ठ शोध विश्लेषक चंद्रमोहन जैन ने कहा, 'हमने गुजरात में एक छोटा सर्वे किया है, जिसमें यह सामने आया है कि किसान इन कीमत स्तरों पर ग्वार बोने के इच्छुक नहीं हैं। उन्हें मूंग दाल जैसी फसलें ज्यादा फायदेमंद नजर आ रही हैं। इसके नतीजतन हमारा अनुमान है कि ग्वार के रकबे में कम से कम 20 फीसदी गिरावट आएगी।' (BS Hindi)

दाल की कीमतों में आया तेजी का छौंक

इस साल रकबा कम होने और बेमौसम बारिश व ओलावृष्टिï से फसलों को नुकसान पहुंचने से दहलन के उत्पादन में 8 फीसदी से ज्यादा की कमी आ सकती है। इसका असर अभी से दिखाई देने लगा है। इस महीने अरहर दाल के दाम करीब 15 फीसदी चढ़ चुके हैं और चना, मूंग, उड़द तथा मसूर दाल की कीमतों में भी तेजी का रुख देखा जा रहा है। दालों का उत्पादन कम रहने की आशंका और कीमतों में तेजी पर सरकार की भी नजर है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि सरकार दालों के शुल्क मुक्त आयात की छूट की अवधि बढ़ाने पर विचार कर रही है।
उपभोक्ता मामलों के विभाग के सचिव केशव देसीराजू ने शनिवार को भारतीय दलहन और अनाज संघ (आईपीजीए) के सम्मेलन में कहा था, 'हम दलहनों पर शून्य आयात शुल्क जारी रखने के बारे में विचार कर रहे हैं। इस बारे में फैसला 31 मार्च से पहले ले लिया जाएगा।'
कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक चालू फसल वर्ष 2014-15 में दलहन उत्पादन 184.3 लाख टन रहेगा, जो पिछले फसल वर्ष (जुलाई से जून) के 197.8 लाख टन से 7 फीसदी कम है। इंडिया पल्सेज ऐंड ग्रेन मर्चेंट्स एसोसिएशन (आईपीजीए) के उपाध्यक्ष विमल कोठारी का कहना है कि इस साल कम उत्पादन के कारण आयात पर निर्भरता बढ़ेगी, जिससे दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं। उत्पादन कम रहने की आशंका में मार्च में थोक बाजार में अरहर दाल की औसत कीमत 1,000 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ चुकी है। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार मार्च की शुरुआत में देश भर की थोक मंडियों में अरहर दाल की औसत कीमत 7,000 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो अब 8,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। थोक बाजार में चना दाल की औसत कीमत 100 रुपये बढ़कर 4,500 रुपये प्रति क्विंटल, उड़द दाल 200 रुपये बढ़कर 7,500 रुपये, मसूर दाल 300 रुपये बढ़कर 6,800 रुपये और मूंग दाल की कीमत 9,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई। एनसीडीईएक्स पर अप्रैल में डिलिवरी वाले बेंचमार्क चने का भाव बढ़कर 3,614 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच चुका है, जबकि हाजिर बाजार में चना 3,500 रुपये क्विंटल बिक रहा है। (BS Hindi)

21 मार्च 2015

वनस्पति तेल के आयात में तेजी

चालू तेल वर्ष (नवंबर से अक्टूबर) के दौरान भारत का वनस्पति तेल आयात 8 फीसदी बढ़कर 127 लाख टन के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने की संभावना है। इसकी वजह तिलहन उत्पादक प्रमुख क्षेत्रों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की वजह से रबी सीजन में तिलहन उत्पादन में भारी गिरावट आने के आसार हैं।
नवंबर 2013 से अक्टूबर 2014 के दौरान देश का वनस्पति तेल आयात 116.2 लाख टन रहा था। इस साल नवंबर से फरवरी के दौरान वनस्पति तेल का आयात 23 फीसदी बढ़कर 41.9 लाख टन रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि में 34.2 लाख टन था। फसल के पकने के समय मार्च में कई बार बारिश और ओले गिरने से राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में रेपसीड और सरसों की खड़ी फसल को नुकसान पहुंचने की आशंका है। फसल को नुकसान के वास्तविक अनुमान अभी नहीं आए हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि रबी सीजन में तिलहन का 10-12 उत्पादन घटेगा। गोदरेज इंटरनैशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री ने कहा, 'अभी सरसों की फसल का आकलन करना जल्दबाजी होगी।'
हालांकि मिस्त्री का अनुमान है कि भारत का वनस्पति तेल आयात 125 लाख टन रहेगा, जो इस क्षेत्र की शीर्ष संस्था सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड (कोएट) के ताजा अनुमान से थोड़ा कम है। रबी सीजन में तिलहन उत्पादन के अपने अनुमान की घोषणा करते हुए कोएट ने कहा है कि अक्टूबर 2015 में समाप्त होने वाले चालू वर्ष में भारत का वनस्पति तेल आयात 127 लाख टन रहेगा, जिसमें 125 लाख टन खाद्य तेल और 2 लाख टन अखाद्य तेल शामिल है।
मूंगफली के उत्पादन में 28 फीसदी की भारी भरकम गिरावट से रबी सीजन में तिलहन का कुल उत्पादन इस साल 17 फीसदी गिरकर 76.7 लाख टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल के इसी सीजन में 91.9 लाख टन था। कोएट के मुताबिक बुआई सीजन में मिट्टी में नमी कम होने से इस साल रकबा घटकर 84 लाख हेक्टेयर रहा है, जो पिछले साल 91.4 लाख हेक्टेयर था। कम रकबे के साथ ही कटाई सीजन में फसल खराब होने से तिलहन की उपलब्धता पर बुरा असर पडऩे की आशंका है, जिससे घरेलू स्तर पर वनस्पति तेल का उत्पादन कम रहेगा। इसके नतीजतन वर्ष 2014-15 में खरीफ एवं रबी सीजन की तिलहन फसलों से वनस्पति तेल की कुल उपलब्धता 76.1 लाख टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल 83.8 लाख टन थी। इससे 9.11 फीसदी या 7.6 लाख टन की भारी गिरावट का पता चलता है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने कहा,  'हम सरकार से आग्रह करते हैं कि तिलहनों पर आयात शुल्क वर्तमान 30 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी किया जाए, ताकि घरेलू पेराई बढ़ाई जा सके।' बढ़ती आबादी, कीमतों में नरमी के रुझान और औसत मध्यम वर्ग की तेजी से बढ़ती क्रय शक्ति के कारण देश में वनस्पति तेल की मांग हर साल  9 से 10 लाख टन बढ़ रही है।  इसके अलावा इंडोनेशिया और मलेशिया अपने यहां वनस्पति तेल के भारी स्टॉक को कम करने के लिए भारत को कम कीमतों पर बड़ी मात्रा में निर्यात कर रहे हैं। उन्होंने वनस्पति तेल के निर्यात पर शुल्क घटाकर शून्य कर दिया है। इस साल आयातित वनस्पति तेल पर निर्भरता बढ़कर 62.5 फीसदी होने की संभावना है।' (BS Hindi)

ब्राजील में अच्छे उत्पादन की उम्मीद से कॉफी में गिरावट

कॉफी बीन की कीमतों में पिछले कुछ सप्ताह के दौरान गिरावट से भारतीय कॉफी उत्पादक चिंतित हैं। वर्ष 2015-16 में ब्राजील में उम्मीद से बेहतर फसल रहने की खबरों से कॉफी की कीमतों में गिरावट आई है। अरेबिका की कीमतें 30 फीसदी तक घट गई हैं।
इस समय अरेबिका बीन की कीमतें 125 सेंट प्रति पाउंड हैं, जो अक्टूबर 2014 में 180 सेंट प्रति पाउंड थीं। आईसीओ (अंतरराष्ट्रीय कॉफी संगठन) के कंपोजिट सूचकांक पर 12 मार्च को पिछले करोबारी सत्र में कीमत 127.97 सेंट प्रति पाउंड रही, जो चालू महीने में सबसे कम कीमत है।
लंदन इंटरनैशनल फाइनैंशियल फ्यूचर्स ऐंड ऑप्शंस एक्सचेंज पर फंड और तकनीकी बिकवाली के चलते 12 मार्च को रोबस्टा कॉफी का वायदा गिरकर 13 महीने के निचले स्तर पर आ गया। कॉफी बोर्ड ने कहा कि लिफे का मई रोबस्टा कॉफी वायदा 52 डॉलर या 2.9 फीसदी गिरकर 1,768 डॉलर प्रति टन पर बंद हुआ, जो फरवरी 2014 के बाद सबसे निचला स्तर है।
कॉफी एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश राजा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'पिछले साल ब्राजील में लंबे समय तक सूखे से यह धारणा पैदा हुई कि वहां वर्ष 2015-16 में उत्पादन कम रहेगा। हालांकि जनवरी और फरवरी में वहां अच्छी बारिश से परिदृश्य बदल गया है और ब्राजील में उम्मीद से बेहतर उत्पादन रहने की संभावना है। इससे हर जगह कीमतों में गिरावट आई हैं।'
ब्राजील में मौसम की स्थितियों में सुधार आने से बिकवाली का दबाव बढ़ा है। देश के कॉफी उत्पादन में 70 फीसदी योगदान वाले राज्य कर्नाटक में किसानों से खरीदी जाने वाली कॉफी की कीमतें जनवरी के बाद 20 से 22 फीसदी गिर गई हैं। अरेबिका की कीमतें 11,000 रुपये प्रति बैग (प्रत्येक बैग में 50 किलोग्राम) से घटकर 8,750 रुपये प्रति बैग पर आ गई हैं।
इससे कीमतों में 20 फीसदी गिरावट का पता चलता है। रोबस्टा की कीमतें दिसंबर और जनवरी में 3,500 रुपये प्रति बैग थीं, जो 20 फीसदी गिरकर 2,800 रुपये प्रति बैग पर आ गई हैं। दक्षिणी भारत के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में इस बार की फसल की कटाई चल रही है। (BS Hs Hindi)

20 मार्च 2015

स्टॉकिस्टों की सक्रियता से धनियों के भाव में आई तेजी

दैनिक आवक बढ़ने और मार्च क्लोजिंग के कारण कीमतों में एक बार आ सकती है गिरावट
आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू सीजन में धनिया की पैदावार पिछले साल से ज्यादा होने का अनुमान है लेकिन उत्पादक क्षेत्रों में हाल ही में हुई बारिष से फसल की क्वालिटी प्रभावित हुई है। इसीलिए स्टॉकिस्टों की सक्रियता धनिया में बढ़ गई है जिससे सप्ताहभर में ही कीमतों में 500 से 600 रूपये प्रति क्विंटल की तेजी आकर उत्पादक मंडियों में षुक्रवार बादामी धनिया के भाव बढ़कर 6,000 से 6,500 रूपये प्रति क्विंटल हो गए। मौसम साफ होने से आगामी दिनों में उत्पादक मंडियों में धनिया की आवक बढ़ेगी, जबकि मार्च क्लोजिंग के कारण खरीद कम होगी। ऐसे में मार्च के आखिर में इसकी कीमतों में गिरावट आने की आषंका है।
व्यापारिक सूत्रों के अनुसार उत्पादक मंडियों में धनिया की दैनिक आवक 40 से 45 हजार बोरी (एक बोरी-40 किलो) की हो रही है लेकिन 25 से 30 फीसदी माल हल्की क्वालिटी का आ रहा है। इसीलिए स्टॉकिस्टों की खरीद बढ़ गई है जिससे कीमतों में तेजी आई है। प्रतिकूल मौसम से धनिया की क्वालिटी तो खराब हुई है लेकिन उत्पादन पिछले साल से डेढ़ गुना होने का अनुमान है। पिछले साल 125-130 लाख बोरी धनिया की पैदावार हुई थी। उत्पादक मंडियों में मौसम साफ है इसलिए आगामी दिनों में आवक तो बढ़ेगी ही, साथ ही मार्च क्लोजिंग के कारण व्यापार कम होगा, जिससे मौजूदा कीमतों में एक बार गिरावट बन सकती है।
थोक कारोबारियां का मानना है कि हाल ही में हुई बारिष से धनिया की फसल 25 से 30 फीसदी तक खराब हुई है। पिछले साल व्यापारियों ने उंचा भाव देखा था इसलिए स्टॉकिस्टों के साथ ही बढिया मालों में मसाला निर्माताओं और निर्यातकों की मांग बढ़ी है जिससे कीमतों में तेजी आई है। उत्पादक मंडियों में आगामी दिनों में आवक बढ़ेगी, जिससे मौजूदा कीमतों में 500-600 रूपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। हालाकि मई-जून में कीमतें फिर बढ़ने का अनुमान है। उत्पादक मंडियों में बादामी धनिया का भाव 6,000 से 6,500 रूपये, ईगल ब्रांड का 7,000 से 7,200 रूपये प्रति क्विंटल हो गया।
भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित वर्श 2014-15 की पहली छमाही में धनिया के निर्यात में 14 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 23,000 टन का हुआ है जबकि पिछले वित वर्श की समान अवधि में 20,171 टन धनिया का निर्यात हुआ था। विष्व बाजार में धनिया के भाव 2.09 डॉलर प्रति किलो है। मसाला बोर्ड ने चालू वित वर्श में 45,000 टन धनिया के निर्यात का लक्ष्य तय किया है।........आर एस राणा

भूमि अधिग्रहण बिल पर किसान आर-पार के मूड में


प्रधानमंत्री को खुली बहस के लिए किसानों ने लिखा पत्र
आर एस राणा
नई दिल्ली। भूमि अधिग्रहण बिल-2015 को लेकर किसान अब आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार है। जंतर-मंतर में किसानों के धरने के तीसरे दिन किसान संघो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर खुली बहस कराने का निमंत्रण भेजा है।
भारतीय किसान यूनियन के राश्टीय अध्यक्ष नरेष टिकैत के बताया कि हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर भूमि अधिग्रहण बिल-2015 पर खुली बहस कराने की मांग की है। उन्होंने कहा कि किसान किसी भी कीमत पर इस बिल को लागू नहीं होने देंगे। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा कि भूमि अधिग्रहण बिल-2105 का मसौदा किसानों की हितों की अनदेखी कर रहा है तथा इसकी अच्छाई और बुराई पर बहस होनी चाहिए।
अखिल भारतीय किसान आंदोलन समन्वय समिति के समन्वयक युद्ववीर सिंह ने बताया कि किसान अपना लेकर रहेंगे, तथा पिछले तीन दिनों से देषभर के करीब 20 हजार किसान जंतर-मंतर पर बैठे हुए हैं। हमने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है तथा उम्मीद है प्रधानमंत्री हमारी बात को मानेंगे। धरने के तीसरे दिन आम आदमी पार्टी के सांसद गुरसेवक सिंह किसानों के बीच पहुंचे तथा उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी आपके साथ है। उन्होंने कहा कि सरकारों ने देष के अन्नदाता के साथ कभी न्याय नहीं किया इसलिए आपकी आवाज को मैं संसद में उठाउंगा।....आर एस राणा

व्हाईट षुगर के निर्यात पर इनसेंटिव नहीं देगी केंद्र सरकार


चीनी का बफर स्टॉक बनाने की भी केंद्र की कोई योजना नहीं
आर एस राणा
नई दिल्ली। किसानों के बकाया पैमेट के भुगतान के नाम पर बार-बार केंद्र सरकार से मदद की गुहार लगाने वाले चीनी उद्योग को इस बार कड़वा घूट पीना पड़ सकता है। केंद्र सरकार चीनी मिलों को व्हाईट षुगर के निर्यात पर कोई इनसेंटिव नहीं देगी, साथ ही सरकार की चीनी का बफ्र स्टॉक बनाने की भी कोई योजना नहीं है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिश्ठ अधिकारी ने मार्किट टाईम्स को बताया कि व्हाईट षुगर के निर्यात पर इनसेंटिव नहीं दिया जा सकता, क्योंकि व्हाईट षुगर पर इनसेंटिव देना विष्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के दिषा-निर्देषों का उल्लगंन होगा। इसलिए केंद्र सरकार चीनी मिलों को व्हाईट षुगर के निर्यात पर इनसेंटिव नहीं दे सकती है। हॉ केंद्र सरकार चीनी मिलों को 14 लाख टन रॉ-षुगर के निर्यात पर इनसेंटिव जारी खरेगी, इसकी घोशणा सरकार पहले ही कर चुकी है। चीनी मिलों को 14 लाख टन रॉ-षुगर के निर्यात पर केंद्र सरकार 4,000 प्रति टन की दर से सब्सिडी उपलब्ध करायेगी।
उन्होंने बताया कि चीनी मिलों की चीनी का बफर स्टॉक बनाने की जो मांग है उसको भी नहीं माना जायेगा, क्योंकि चीनी उद्योग को केंद्र सरकार पहले डी-कंट्ोल कर चुकी है। ऐसे में बफ्र स्टॉक बनाने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। मालूम हो कि हर साल किसानों के बकाया भुगतान का हवाला देकर चीनी मिलों केंद्र सरकार से इनसेंटिव के नाम पर मोटी रकम वसूल लेती है। सूत्रों के अनुसार चालू पेराई सीजन में ही चीनी मिलों पर किसानों का 14,500 करोड़ रूपये का बकाया हो चुका है तथा उत्तर प्रदेष और महाराश्ट् में कई चीनी मिलों ने पेराई भी बंद कर दी है।
इंडियन षुगर मिल्स एसोसिएषन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन 2014-15 (अक्टूबर से सितंबर) में 15 मार्च 2015 तक देषभर 221.8 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 28 लाख टन ज्यादा है। पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 193.8 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। चालू पेराई सीजन में इस समय 476 चीनी मिलों में पेराई चल रही है जबकि पिछले साल इस समय केवल 409 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी।
चालू पेराई सीजन में देष में 260 लाख टन चीनी उत्पादन होने का अनुमान है जबकि देष में चीनी की सालाना खपत 225 से 230 लाख टन की ही होती है।.......आर एस राणा

चालू वित्त वर्श में मक्का निर्यात में 14 फीसदी की आई गिरावट


आर एस राणा
नई दिल्ली। विष्व बाजार में दाम कम होने के कारण चालू वित्त वर्श में देष से मक्का के निर्यात में 14 फीसदी की गिरावट आई है। हालांकि उत्पादक राज्यों में मक्का की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी नीचे बनी हुई थी लेकिन अंतरराश्ट्ीय बाजार में कीमतें काफी थी। चालू महीने के आखिर में रबी मक्का की आवक षुरू हो जायेगी, तथा चालू रबी में मक्का की पैदावार कम होने का अनुमान है। इसके बावजूद भी अप्रैल में मक्का के दाम उत्पादक मंडियों में एमएसपी से भी नीचे जाने का अनुमान है।
एपीडा के अनुसार चालू वित्त वर्श 2014-15 के पहले दस महीनों (अप्रैल से जनवरी) के दौरान 31.74 लाख टन मक्का का निर्यात ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्श की समान अवधि में 36.99 लाख टन मक्का का निर्यात हुआ था। 
यू एस ग्रेन काउंसिल के भारत में प्रतिनिधि अमित सचदेव ने बताया कि विष्व बाजार में दाम कम होने के कारण भारत से मक्का के निर्यात में भारी कमी आई है। उन्होंने बताया कि विष्व बाजार में मक्का की उपलब्धता ज्यादा है ऐसे में रबी सीजन में निर्यात में बढ़ोतरी की संभावना नहीं है। विष्व बाजार में मक्का के दाम 178 से 193 डॉलर प्रति टन बने हुए हैं जबकि भारतीय मक्का के दाम 220 डॉलर प्रति हैं।
मक्का के थोक कारोबारी राजेष अग्रवाल ने बताया कि चालू महीने के आखिर तक उत्पादक मंडियों में रबी मक्का की आवक षुरू हो जायेगी तथा अप्रैल में आवकों का दबाव बन जायेगा। उन्होंने बताया कि निर्यात मांग कम रहेगी जिससे आवकों का दबाव बनने के बाद उत्पादक मंडियों में मक्का के दाम घटकर एमएसपी से भी नीचे जाने की उम्मीद है। केंद्र सरकार चालू रबी विपणन सीजन 2014-15 के लिए मक्का का एमएसपी 1,310 रूपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
कृशि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में मक्का की पैदावार घटकर 65.1 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी में 71.1 लाख टन की पैदावार हुई थी। मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में मक्का की बुवाई 13.37 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 15.53 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी।......आर एस राणा

नए सीजन में भी गेहूं निर्यात बढ़ने की संभावना कम


विष्व बाजार में दाम कम होने से चालू वित्त वर्श में 41 फीसदी आई गिरावट
आर एस राणा
नई दिल्ली। विष्व बाजार में गेहूं की कीमतें नीचे होने के कारण भारत से नए रबी विपणन सीजन में भी निर्यात बढ़ने की संभावना न के बराबर है। अमेरिका और आस्ट्ेलिया का गेहूं भारतीय गेहूं के मुकाबले 50-60 डॉलर प्रति टन सस्ता है जबकि मई-जून में यूक्रेन और रूस में नई फसल की आवक होने से विष्व बाजार में प्रतिस्पर्धा और बढ़ जायेगी। चालू वित्त वर्श 2014-15 के पहले दस महीनों (अप्रैल से जनवरी) के दौरान देष से गेहूं के निर्यात में 41 फीसदी की भारी गिरावट आई है।
गेहूं की निर्यातक फर्म के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि विष्व बाजार में इस समय आस्ट्ेलिया और अमेरिकी गेहूं का दाम 230 से 245 डॉलर प्रति टन (एफओबी) है जबकि भारतीय गेहूं का भाव 280 से 300 डॉलर प्रति टन है। अप्रैल में हमारी नई फसल की आवक बनेगी, जबकि मई-जून में रूस और यूक्रेन में नया गेहूं आयेगा। ऐसे में विष्व बाजार में गेहूं की उपलब्धता बराबर बनी रहेगी जिससे विष्व बाजार में गेहूं की कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है। यही कारण है कि नए सीजन में भी भारत से गेहूं का निर्यात बढ़ने की उम्मीद कम है।
एपिडा के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू वित्त वर्श के पहले दस महीनों (अप्रैल से जनवरी) के दौरान गेहूं के निर्यात में 41 फीसदी की गिरावट आकर कुल 28.27 लाख टन का ही निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्श की समान अवधि में 47.99 लाख टन गेहूं का निर्यात हुआ था। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्श के पहले दस महीनों में मूल्य के हिसाब से गेहूं के निर्यात में 39.39 फीसदी की कमी आकर कुल 4,816.70 करोड़ रूपये का निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्श की समान अवधि में 7,947.17 करोड़ रूपये मूल्य का निर्यात हुआ था।
परवीन कामर्षियल कंपनी के प्रबंधक नवीन गुप्ता ने बताया कि गुजरात में नई फसल की आवक हो रही है तथा बंगलुरू पहुंच भाव 1,680 रूपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। कांडला बंदरगाह पर गेहूं के भाव 1,520 से 1,530 रूपये प्रति क्विंटल है।
कृशि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में गेहूं की पैदावार घटकर 957.6 लाख टन होने का अनुमान है जबकि बीते वर्श 958.5 लाख टन की पैदावार हुई थी। जानकारों का मानना है कि चालू रबी में बुवाई में तो कमी आई ही है साथ ही मार्च में हुई भारी बारिष और ओलावृश्टि से गेहूं की फसल का भारी नुकसान हुआ है। ऐसे में पैदावार घटकर 920-930 लाख टन ही होने का अनुमान है।.......आर एस राणा

पांच साल में चीनी के दाम सबसे कम

मिलों में लगातार आवक बढऩे और मांग में कमी के चलते थोक बाजार में चीनी की कीमतों में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है। उत्पादन में बढ़ोतरी की खबरों के साथ थोक बाजार में चीनी के दाम पांच साल के निम्नतम स्तर पर पहुंच गए। हाजिर बाजार में चीनी के दाम गिरकर 2,500 रुपये प्रति क्ंिवटल के करीब और वायदा बाजार में 2,400 रुपये प्रति क्ंिवटल के नीचे चले गए। घरेलू बाजार के साथ वैश्विक बाजार में कमजोर मांग की वजह से चीनी में फिलहाल मिठास आती दिखाई नहीं दे रही है।
मिलों में लगातार बढ़ते स्टॉक और कमजोर मांग से हाजिर बाजार में चीनी के दाम गिरकर 2,511 रुपये प्रति क्ंिवटल पर पहुंच गए। चीनी की ये कीमतें पिछले पांच सालों में सबसे कम है। वायदा बाजार में चीनी के हाल और बुरे दिख रहे हैं। पिछले एक साल में वायदा चीनी के दाम 25 फीसदी गिर चुके हैं। एमसीएक्स में चीनी एम ग्रेड मई अनुबंध में कीमतें गिरकर 2,368 रुपये प्रति क्ंिवटल के निचले स्तर पर पहुंच गईं जबकि कल बंद हो रहे मार्च अनुबंध में कीमतें 3.8 फीसदी गिरकर 2,400 रुपये में बंद हुई। वायदा बाजार में चीनी की कम होती मिठास पर ऐंजल ब्रोकिंग के अनुज गुप्ता कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें कम हैं जो भारतीय निर्यातकों के लिए सही नहीं है। इस कारण निर्यात नहीं हो पा रहा है। घरेलू बाजार में भी मांग कम है। फिलहाल वायदा बाजार में चीनी की कीमतों में बहुत जल्द सुधार होते नहीं दिख रहा है, लेकिन मौजूदा स्तर से नीचे जाना भी मुश्किल है।
चीनी की कीमतों में लगातार और भारी गिरावट की सबसे बड़ी वजह उत्पादन अधिक होना है। देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में 2014-15 में गन्ना उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी बढ़कर 84,261 हजार टन होने का अनुमान है। उत्पादन अधिक होने की वजह राज्य में गन्ने के रकबे में 12 फीसदी की बढ़ोतरी मानी जा रही है। महाराष्ट्र की आर्थिक समीक्षा के मुताबिक राज्य में चालू वित्त वर्ष के दौरान गन्ने का रकबा 1,054 हजार हेक्टेयर बताया जा रहा है जबकि 2013-14 में यह 937 हजार हेक्टेयर था। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के मुताबिक 15 मार्च तक देश में 221.8 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। यह एक साल पहले की समान अवधि में 193.8 लाख टन उत्पादन से 28 लाख टन अधिक है। देश में चीनी सत्र अक्टूबर से सितंबर तक रहता है। सरकार ने चीनी उत्पादन का अनुमान 250 लाख टन से बढ़ाकर 265 लाख टन कर दिया है। सरकार ने 14 लाख टन अधिक उत्पादन का अनुमान रखा था इसलिए 14 लाख टन कच्ची चीनी के निर्यात की अनुमति दी गई थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के दाम कम होने के कारण निर्यात में भी फायदा नहीं है। इस्मा के अविनाश वर्मा के अनुसार वैश्विक बाजार में चीनी सस्ती होने की वजह प्रमुख उत्पादक देश ब्राजील की मुद्रा का डॉलर के मुकाबले कमजोर होना है। ब्राजील की मुद्रा का अवमूल्यन होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी सस्ती हुई है। (BS Hindi)

फेड के संकेत से सोना तेज

अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपने आर्थिक और महंगाई के अनुमानों में कमी करते हुए ब्याज दरें बढ़ाने का संकेत दिया तो कारोबारियों ने राहत की सांस ली और अपनी शॉर्ट पॉजिशन में कटौती के लिए इसेे उपयुक्त माना। कल फेडरल रिजर्व के बयान के बाद सोना मजबूत हुआ और आज एमसीएक्स में भी सुधार देखा गया। एमसीएक्स में कीमतें एक फीसदी बढ़कर 25,884 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गईं। मुंबई के जवेरी बाजार में सोना 190 रुपये चढ़कर 26,140 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ।
अमेरिका ने अभी ब्याज दरें नहीं बढ़ाई हैं, इसलिए लंदन मेटल एक्सचेंज पर धातुओं की कीमतों में 1-2 फीसदी तेजी रही। एमसीएक्स पर तांबा और अन्य धातुओं के वायदा अनुबंधों की कीमतों में 1 से 2 फीसदी तेजी दर्ज की गई। फेडरल रिजर्व ने संकेत दिया है कि अब आगे उसकी नजर नौकरी बाजार पर होगी। फेड ने महंगाई 2 फीसदी और बेरोजगारी 5.2 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी करने का लक्ष्य तय किया है। कॉमट्रेंड्ज रिसर्च के प्रमुख ज्ञानशेखर त्यागराजन ने कहा, 'इसलिए आगे सराफा कारोबारी आर्थिक आंकड़ों पर पूरी नजर रखेंगे, क्योंकि अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी इन आंकड़ों और फेड के फैसले पर निर्भर करेगी।' उनके अनुसार आज सोने की कीमतों में बढ़ोतरी शॉर्ट कवरिंग की वजह से हुई है, क्योंकि मंदडिय़ों ने मुनाफावसूली की है। वह 1,145 डॉलर को मजबूत समर्थन स्तर मानते हैं, जहां से कल सोना चढ़ा था और वह 1,200 डॉलर पर प्रतिरोध स्तर मानते हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका में दरों में बढ़ोतरी लगभग घोषित है और इसलिए सोने की कीमतों में सुधार के साथ ऊंचे स्तरों पर बिकवाली होगी और डॉलर मजबूत होगा। चांदी की कीमतों में भी बढ़ोतरी रही। मुंबई में इसके दाम 650 रुपये चढ़कर 36,300 रुपये प्रति किलोग्राम पर बंद हुए। एलएमई में धातुओं में बढ़ोतरी से संकेत लेते हुए एक समय एमसीएक्स पर तांबा 2.24 फीसदी, एल्युमीनियम 1.3 फीसदी और निकल 1.5 फीसदी तक चढ़ गया। बाद में तांबा बुधवार के बंद स्तर 5,621.50 डॉलर से 1.3 फीसदी चढ़कर 5,745 डॉलर पर बंद हुआ।
रोचक बात यह है कि फेडरल रिजर्व के बयान के बाद कच्चे तेल में गिरावट थम गई। ब्रेंट क्रूड तेल 55 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था, जो बुधवार को 53 डॉलर पर बंद हुआ था। वहीं वेस्ट टेक्सस इंटरमीडियट (डब्ल्यूटीआई) का कारोबार 43 डॉलर प्रति बैरल पर हुआ। नेटिक्सिज कमोडिटीज रिसर्च के अभिषेक देशपांडे ने कहा, 'फेड के फैसले से कच्चे तेल को अस्थायी ही सही, लेकिन कुछ मदद मिली है। लेकिन अत्यधिक आपूर्ति कीमतों पर दबाव बढ़ाएगी। अभी हमारा रुझान ब्रेंट और डब्ल्यूटीआई को लेकर 15 जून तक कमजोर है।' इस बारे में उन्होंने कहा, 'हमारा मानना है कि कच्चे तेल के बढ़ते स्टॉक से दूसरी तिमाही में ब्रेंट पर और दबाव बढ़ेगा और ईरान पर प्रतिबंधों को लेकर किसी सकारात्मक फैसले से ब्रेंट सूचकांक और नीचे फिसलेगा।' (BS Hindi)