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28 फ़रवरी 2015

खत्म नहीं हो रहा ग्वार का गम

ग्वार की कीमतों में गिरावट का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। विदेशी मांग न होने के कारण निर्यातक ग्वार गम मिलों से उठाने को तैयार नहीं है और मिल मालिक मंडियों में ग्वार सीड पर हाथ ही नहीं लगा रहे हैं। मांग न होने के कारण ग्वार सीड की कीमतें गिरकर 3,500 रुपये प्रति क्ंिवटल और ग्वार गम की कीमतें 8,000 रुपये प्रति क्विंटल के करीब पहुंच गईं। कीमतें गिरने की प्रमुख वजह तेल उत्पादक देशों से मांग न होना बताया जा रहा है। हालांकि बाजार केजानकार पूरी तरह इससे सहमत नहीं हैं।

ग्वार उत्पादक प्रमुख राज्य राजस्थान की मंडियों में ग्वार सीड की कीमत गिरकर 3,500 रुपये प्रति क्ंिवटल पहुंच गईं तो तीन साल पहले वाला लखटकिया ग्वार गम 8,000 रुपये प्रति क्ंिवटल पर आ गया। हाजिर बाजार में ग्वार पिछले चार साल के निचले स्तर पर पहुंच चुका है। हाजिर बाजार में ग्वार 28 जून 2011 और ग्वार गम 17 मार्च 2011 को इस स्तर पर था। हाजिर बाजार में हो रही गिरावट का असर वायदा बाजार में भी पड़ रहा है।

एनसीडीईएक्स में ग्वार गम 8,300 रुपये और ग्वार सीड 3,522 रुपये पर पहुंच गया। ग्वार की कीमतों में लगातार गिरावट के कारण कोई भी कारोबारी ग्वार में फिलहाल हाथ नहीं लगा रहा है जिसके कारण आढ़तियों के यहां भारी मात्रा में स्टॉक जमा हो चुका है। ग्वार मिल मालिक अपनी मिलों में काम पहले ही बंद कर चुके हैं। उनका कहना है कि उनका जो माल तैयार है जब तक वह नहीं उठता है तब तक वह पेराई नहीं चालू करेंगे। ऐसे में किसानों के पास माल रोकने के अलावा कोई चारा नहीं है। बीकानेर मंडी में माल बेचने वाले किसान अशोक पूनमिया कहते हैं कि दरअसल इस समय ग्वार का कोई दाम ही नहीं है, कारोबारी जो दाम दे दे वही पर्याप्त है।

वायदा कारोबार में प्रमुख कृषि जिंस होने के बावजूद ग्वार की कोई भी आधिकारिक जानकारी प्राप्त करना मुश्किल है। बीकानेर उद्योग मंडल के प्रवक्ता पुखराज चोपड़ा कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट की वजह से ग्वार की मांग लगभग खत्म हो गई है। ग्वार की निर्यात मांग न के बराबर होने के कारण कीमतें लगातार गिर रही हैं। कीमतों में गिरावट चलते ग्वार किसानों, मिल मालिकों और कारोबारियों को भारी नुकसान हुआ है। ऐसे में सरकार ग्वार उद्योग और किसानों को बचाने के लिए दखल दे और सरकार ग्वार कमिश्नरी बनाए जो कीमतों के गिरने पर किसानों की मदद करे।

दूसरी तरफ कुछ लोगों का तर्क है कि यह सही है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिर गई हैं लेकिन तेल का उत्पादन कम नहीं हुआ है यानी ग्वार का उपयोग भी कम नहीं होना चाहिए। ऐसे में दो बातें हैं, या तो तेल उत्पादक कंपनियों ने ग्वार का विकल्प तलाश लिया है या फिर बड़े ग्वार निर्यातकों के साथ मिलकर कीमतों को इस स्तर पर ले जाया गया है। कमोडिटी बाजार के जानकार बृजेश सिंह कहते हैं दरअसल ग्वार के सही आंकड़े उपलब्ध नहीं होते हैं जिसके कारण इस पर कुछ भी बोलना भी मुश्किल होता है। ग्वार की विडंबना ही है कि प्रमुख जिंस होने के बावजूद इसके उत्पादन और मांग के सही और अधिकारिक आंकड़े मिलना मुश्किल होते हैं।

कमोडिटी एक्सचेंजों में ट्रेडिंग होने के बावजूद इनके पास ग्वार की कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। देश की प्रमुख कमोडिटी ब्रोकिंग एजेंसियों के जानकारों का कहना है कि 2012 तक ग्वार पर रिपोर्ट तैयार की जाती थी लेकिन इसके बाद ग्वार की अनियंत्रित तेजी और सटोरियों के खेल को रोकने के लिए वायदा बाजार आयोग ने नियम काफी सख्त कर दिये। इसके साथ ही आयोग ने कमोडिटी एजेंसियों को भी निशाने पर लेना शुरु कर दिया, कानूनी पचड़े से बाहर रहने के लिए एजेंसियों ने ग्वार पर बोलना और लिखना बंद कर दिया। इससे ग्वार का वायदा कारोबार हो तो रहा है लेकिन निवेशकों को इसकी कोई भी जानकारी नहीं है। ऐसे में सटोरियों के लिए ग्वार की कीमतों में सट्टेबाजी का रास्ता भी साफ हो गया है।  (BS Hindi)

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