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04 मार्च 2014

खाद्य तेल आयात बढ़ेगा पर पाम तेल में कमी

दलते समीकरण पाम तेल व सोया तेल के मूल्य में अंतर कम हुआ सोया तेल आयात करने में भारतीय खरीदारों की दिलचस्पी मलेशिया व इंडोनेशिया में सूखे के चलते पाम तेल उच्च स्तर पर इस साल पाम तेल आयात 6 फीसदी कम होने के आसार सोया तेल और पाम तेल के मूल्य में अंतर कम होने की वजह से भारत का पाम तेल आयात घटने की संभावना है। अनुमान है कि अगले अक्टूबर में समाप्त होने वाले मार्केटिंग वर्ष में आयात छह फीसदी कम रह सकता है। भारतीय खरीदार मूल्य में अंतर कम होने के कारण सोया तेल आयात करने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। कारोबारियों का अनुमान है कि 17 माह के उच्चतम स्तर पर पहुंचने मलेशियाई पाम तेल के दाम भारत की मांग कम रहने से सुस्त पड़ सकते हैं। यहां एक इंडस्ट्री कांफ्रेंस के मौके पर एक व्यापारी ने कहा कि क्रूड पाम तेल 940-950 डॉलर प्रति टन (लागत, बीमा व भाड़ा खर्च) पर भारत में सप्लाई करने का ऑफर किया जा रहा है। पाम तेल का भाव सोयाबीन के डिगम तेल के बराबर ही चल रहे हैं। आमतौर पर पाम तेल के दाम सोयाबीन के मुकाबले करीब 100-150 डॉलर प्रति टन कम रहते हैं। लेकिन पिछले एक माह के दौरान पाम तेल के दाम करीब दस फीसदी बढ़ चुके हैं। बुर्शा मलेशिया डेरिवेटिव्स में मई डिलीवरी क्रूड पाम तेल के दाम 2860 रिंगिट का उच्चतम स्तर छू गए। यह स्तर सितंबर 2012 के बाद का सबसे ज्यादा है। बाद में भाव 2836 रिंगिट (870 डॉलर) प्रति टन पर रह गए। पाम तेल में भारी तेजी आने की इस वजह से मूल्य में अंतर काफी कम हो गया है। मुंबई की ब्रोकरेज फर्म सनविन ग्रुप के चीफ एक्जीक्यूटिव संदीप बाजौरिया ने कहा कि इंडोनेशिया और मलेशिया में सूखे के हालात हैं। इससे पाम तेल की तेजी को बढ़ावा मिल रहा है। इस साल भारत का आयात कम रहने की संभावना है। अनुमान है कि अगले अक्टूबर में समाप्त हो रहे मार्केटिंग वर्ष में 78 लाख टन पाम तेल का आयात हो सकता है। जबकि पिछले साल 83 लाख टन आयात रहा था। व्यापारियों के अनुसार इस साल भारत का कुल खाद्य तेल आयात 9 फीसदी बढ़कर 113 लाख टन तक पहुंचने की संभावना है। पिछले साल 104 लाख टन आयात रहा था। सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर बी. वी. मेहता ने कहा कि अगर भारतीय मांग की बात करें तो इसमें हर साल करीब 3-4 फीसदी का इजाफा हो रहा है। पिछले साल भारत के कई क्षेत्रों में आंधी-तूफान के चलते सरसों की पैदावार घट सकता है। इससे सोयाबीन तेल के आयात पर निर्भरता और बढ़ जाएगी। प्रतिकूल मौसम से तिलहन की पैदावा में गिरावट का अनुमान लगाना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि फसल में गिरावट दो लाख से सात लाख टन के बीच रह सकती है। (BS Hindi)

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