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08 जनवरी 2014

धानुका एग्रीटेक लिमिटेड

नाम : आर.जी. अग्रवाल पद : ग्रुप चेयरमैन, धानुका एग्रीटेक लिमिटेड शिक्षा : श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली से 1968 में स्नातक जिम्मेदारियां : क्रॉप केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के चार साल तक चेयरमैन रहे। हरियाणा पेस्टीसाइड्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के प्रेसीडेंट रहे। पुरस्कार : एग्रीकल्चर लीडरशिप अवार्ड-2009 उपलब्धियां : 1980 में गुडग़ांव स्थित बीमारू कंपनी नॉर्दन मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड को खरीदकर कारोबार की शुरुआत की। वर्ष 1960 में स्थापित इसी कंपनी ने गैमक्सीन नामक पहले बीएचसी पेस्टीसाइड का फॉर्मूलेशन किया था। घरेलू पेस्टीसाइड कंपनियों में अहम मानी जाने वाली धानुका एग्रीटेक लिमिटेड को अपने कारोबार मे चालू साल में 25 फीसदी बढ़ोतरी की उम्मीद है। इस साल अक्तूबर तक कंपनी का कारोबार 31 फीसदी की दर से बढ़ा है। इसके साथ ही कंपनी साणंद स्थित अपने संयंत्र का विस्तार भी कर रही है। देश में आनुवांशिकीय रूप से परिवर्तित (जीएम) फसलों के बढ़ावे के बावजूद कंपनी अपने कारोबार में लगातार बढ़ोतरी देख रही है। पेस्टीसाइड की जगह आने वाले दिनों में हर्बीसाइड का कारोबार बढऩे की कंपनी को अधिक उम्मीद है। इन सभी मुद्दों पर बिजनेस भास्कर ने धानुका एग्रीटेक लिमिटेड के ग्रुप चेयरमैन आर.जी. अग्रवाल के साथ विस्तार से बातचीत की। जीएम फसलों के बढऩे से पेस्टीसाइड के कारोबार पर क्या कोई प्रतिकूल असर पड़ा है? मुझे ऐसा नहीं लगता है क्योंकि जीएम फसलों में किसी एक बीमारी की रोकथाम के लिए ही जीन डाला जाता है। ऐसे में दूसरी बिमारियों के लिए पेस्टीसाइड की जरूरत पड़ती है। साथ ही अभी तक केवल कपास में ही जीएम प्रजातियां आई हैं। उसमें भी बालवार्म बीमारी के लिए जीएम तकनीक का उपयोग किया गया है। यह बात सही है कि इसमें पेस्टीसाइड का उपयोग घटा है लेकिन दूसरी फसलों में बढ़ा है। चालू साल में बेहतर बिक्री इसे साबित करती है। चालू साल में धानुका एग्रीटेक का कारोबार कितना बढ़ा है? चालू साल में अक्तूबर तक हमारा कारोबार 31 फीसदी की दर से बढ़ा है। चालू साल में हम 25 फीसदी की बढ़ोतरी का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। किस उत्पाद की बिक्री अधिक तेजी से बढ़ रही है? आने वाले दिनों में विडीसाइज का जमाना है क्योंकि खेती के लिए लगातार मजदूरों की किल्लत बढ़ती जा रही है। ऐसे में किसानों को विडीसाइड का उपयोग ही बेहतर दिख रहा है। कम खर्चें में फसलों से खरतपतार को नष्ट करने का यह आसान तरीका है। इसके लिए हमारा जापान की निसान केमिकल्स के साथ गठजोड़ है। उसकी तकनीक और कच्चे माल से तैयार हमारे उत्पाद बेहतर परिणाम दे रहे हैं। वैसे भी दुनिया के विकसित देशों में जहां हर्बीसाइड की पेस्टीसाइड उपयोग में 50 फीसदी हिस्सेदारी है। हमारे यहां यह अभी कुल बिक्री का 18 फीसदी ही है। कंपनी की क्षमता विस्तार की क्या योजना है? हम गुजरात के साणंद में अपने संयंत्र की क्षमता में विस्तार करेंगे। यहां हमारे पास 15 एकड़ जमीन है। तीन साल पहले हमने उधमपुर में संयंत्र स्थापित किया था। इसके अलावा सोहना और गुडग़ांव में हमारे संयंत्र हैं। हमारा चार जापानी कंपनियों मिस्तुसई, निसान, हुक्को और सुमित्मों के साथ गठबंधन है। वहां से हम कच्चा माल आयात करते हैं। आपकी प्रतिस्पर्धा किससे है? हमारे लिए बड़ी प्रतिस्पर्धी कंपनियां विदेशी ही हैं। जिसमें डव केमिकल्स, डूपांट, सिंजेंटा और एफएमसी मुख्य हैं। लेकिन मेरा मानना है कि हम बहुत प्रतिस्पर्धी कीमत पर अपने उत्पाद बेचते हैं। देश में पेस्टीसाइड कारोबार की क्या स्थिति है? देश का पेस्टीसाइड कारोबार इस समय 8,000 करोड़ रुपये के स्तर पर है। इसमें से 50 फीसदी घरेलू खपत में और शेष निर्यात में जाता है। लेकिन, इस क्षेत्र में ग्रे-मार्केट हमारी सबसे बड़ी चिंता है। ग्रे-मार्केट में तकरीबन 3-4 हजार करोड़ रुपये का उत्पादन हो रहा है। इससे सरकार व किसानों के साथ ही उद्योग को भी नुकसान हो रहा है। सरकारी एजेंसियों को इस ओर खास ध्यान देने की जरूरत है। (Business Bahskar)

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