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11 जून 2013

खाद्य सुरक्षा की दिशा में बड़ी छलांग

इतिहास में वर्ष 2012 मध्य प्रदेश के लिए हरित क्रांति के वर्ष के तौर पर याद किया जाएगा। इस दौरान न केवल राज्य सरकार ने कृषि क्षेत्र में 20 फीसदी की विकास दर हासिल की बल्कि किसानों ने राज्य की तरक्की और कृषक समुदाय को आगे बढ़ाने में अपना अमूल्य योगदान किया। गंभीर सिंह और राधा भाई जैसे दो किसानों ने रिकॉर्ड उत्पादन का दावा किया, जबकि एक अन्य किसान से शोधार्थी बने व्यक्ति ने तमाम उपलब्धियों को पीछे छोड़ते हुए नया रिकॉर्ड कायम किया। हालांकि उनकी यह कामयाबी सुर्खियां नहीं बन पाई। मंदसौर के एक छोटे से नगर के किसाना नरेंद्र सिंह सिपानी गेहूं की एक नयी किस्म को लेकर सामने आए जो कि दुनिया की सबसे उत्पादक प्रजाति साबित हो सकती है। किसान नरेंद्र सिंह सिपानी अपना शोध आधारित कृषि फॉर्म चलाते हैं। सिपानी के मुताबिक गेहूं की यह नई प्रजाति प्रति हेक्टेयर 100,000 किलोग्राम का उत्पाद देगी जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। हालांकि उन दोनों किसानों की तरह ही जो कि अब बीते समय के साथ अतीत का हिस्सा बन चुके हैं, राज्य सरकार की तरफ से कोई भी नरेंद्र सिंह सिपानी की मदद में आगे नहीं आया। हालांकि उनके बेहतरीन शोध के लिए कृषि और खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने उन्हें प्लांट जीनोम सेवियर रिवार्ड 2012 से सम्मानित किया। उन्हें यह सम्मान पादप आनुवांशिकी संसाधानों के संरक्षण की दिशा में काम करने के लिए दिया गया जिसे पूरा करने में दो से तीन सालों का समय लग जाता है। सिपानी ने कहा, 'अगर हम इस दिशा में और अधिक काम करते तो हम प्रति हेक्टेयर 12,000 किलोग्राम तक की स्थिति हासिल कर सकते थे और यह खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम की दिशा अहम भूमिका का निवर्हन करेगा।Ó पादप आनुवांशिकी की दिशा में व्यावहारिक तौर पर इस असंभव काम को करने में सिपानी को करीब 17 सालों का समय लगा। उन्होंने एक ही परिवार के दो पौधों के बीच ब्रीडिंग कराई जो कि अपने आप में एक दुर्लभ घटना है। सिपानी ने कहा कि अगर दो पौधे एक दूसरे से काफी अलग नहीं हैं तो उनमें संकरण की प्रक्रिया लगभग असंभव है। सिपानी ने कहा कि उन्होंने इस दिशा में करीब 17 साल पहले शुरुआत की थी ताकि लगभग समान गेहूं की दो नस्लों एस्टिवम और डुरम का संकर नस्ल तैयार किया जा सके। एस्टिवम को रोटी बनाने वाले गेहूं और डुरम को मैक्रोनी बनाने वाले गेहूं या फिर स्थानीय भाषा में इसे कथिया गेहूं कहा जाता है। दोनों प्रजाति में क्रोमोसोम की संख्या असामान्य थी।a (BS Hindi)

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