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13 जून 2013

जीएम फसलों पर अनुसंधान रोकना उचित नहीं : वैज्ञानिक

बढ़ती आबादी की खाद्यान्न जरूरतें जीएम फसलों से ही पूरी होगी देश की बढ़ती आबादी को भविष्य में खाद्यान्न नसीब हो सके, इसके लिए जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसलें एक उम्मीद की किरण है। नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस के प्रेसिडेंट प्रो. आर बी सिंह का दावा है कि जब बड़ी आबादी वाले तमाम विकासशील देश जीएम फसलों पर अनुसंधान कर रहे हैं, तब भारत में भी इसे रोकना उचित नहीं है। सिंह का दावा है कि बढ़ती आबादी की खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करने के लिए जीएम फसलों को अपनाया जाना जरूरी है। विश्व में अभी तक एक भी प्रमाणिक या फिर वैज्ञानिक रिपोर्ट नहीं आई है, जिसमें जीएम फसलों से मनुष्य, जानवर या फिर पर्यावरण को नुकसान होने की बात पता चली हो। उन्होंने कहा कि हर नई चीज से भयभीत होना अनेक लोगों की आदत का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इस बुनियाद पर प्रयोग, परीक्षण और प्रगति को रोक देना कतई वांछित नहीं है। जब बड़ी आबादी वाले तमाम विकासशील देश जीएम फसलों पर अनुसंधान कर रहे हैं तब भारत में भी उसे रोकना उचित नहीं होगा। उन्होंने बताया कि जीएम फसलों से सुरक्षा को जो खतरा बताया जाता है, उस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि अगर परीक्षण ही रुक गए, तो फसलों की सुरक्षा से जुड़े प्रयोगों पर भी विराम लग जाएगा। ऐसे में वह समय आ ही नहीं पाएगा, जब जीएम फसलों को सुरक्षित मानकर उनकी खेती की जाए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईएआरआई) में जेनेटिक्स डिवीजन के हेड के. वी. प्रभू ने बताया कि बीजों में वैज्ञानिक ढंग से सुधार की लंबी परंपरा रही है, जिससे पैदावार बढ़ाने में लगातार मदद मिली है। देश की हरित क्रांति में संकर बीजों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह तकनीक अब और आगे बढ़ी है, इसके उपयोग में सतर्कता जरूरी है लेकिन इनसे मुंह मोड़ लेना बुद्धिमानी नहीं है। देश में बीटी कपास की फसल से किसानों की आय में बढ़ोतरी हुई है तथा घरेलू बाजार में बिनौला तेल का खाने और बिनौला खली का पशुचारे में उपयोग भी हो रहा है। उन्होंने बताया कि विश्व में जीएम फसलों में सबसे ज्यादा मक्का और सोयाबीन उगाया जाता है, जिन्हें सीधे खाया जाता है। सोयाबीन का उपयोग खाने का तेल निकालने के लिए किया जाता है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

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