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30 अप्रैल 2013

मॉनसून अच्छा तो कीमतों को झटका

इस साल सामान्य मॉनसून के अनुमान के बाद वायदा बाजारों में कृषि जिंसों की कीमतें कमजोर पड़ी हैं। पहले एक निजी एजेंसी और पिछले सप्ताह भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के बेहतर मॉनसून के अनुमान के बाद से प्रमुख कृषि जिंसों का संकेतक एनसीडीईएक्स का धान्य सूचकांक 2 फीसदी लुढ़क चुका है। पिछले साल सामान्य बारिश नहीं हुई थी और कुछ राज्यों में सूखा भी पड़ा था। इससे बुआई में देरी हुई और उत्पादन में गिरावट आई। अगर इस साल मॉनसून सामान्य रहा तो फसलों की स्थिति बेहतर रह सकती है। इसी कारण कीमतों पर असर पड़ रहा है। भारतीय मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि इस साल चार महीनों का दक्षिण-पश्चिम मॉनसून लंबी अवधि के औसत (एलपीए) का 98 फीसदी रहेगा। एलपीए की 96 से 104 फीसदी के बीच होने वाली बारिश को सामान्य माना जाता है। मौसम विभाग ने यह भी कहा है कि देश के तटवर्ती हिस्सों में बारिश सामान्य रहेगी। इन तटवर्ती इलाकों में महाराष्ट्र और गुजरात के सूखा प्रभावित क्षेत्र शामिल हैं। रेलिगेयर कमोडिटीज के एक विश्लेषक ने कहा, 'भारतीय मौसम विभाग का अनुमान न केवल आश्चर्य है बल्कि यह ऊंची कीमत और महंगाई से जूझ रहे लोगों के लिए राहत लेकर आया है। पिछले कुछ सप्ताहों में हमने देखा है कि ज्यादातर कृषि जिंसों की कीमतें हाजिर और वायदा बाजार में कम हो रही हैं।Ó पूर्वानुमानों के बाद एनसीडीईएक्स का धान्य सूचकांक 19 अप्रैल को 2421 अंक से गिरकर आज 2,360 अंक पर आ गया। सबसे ज्यादा गिरावट हल्दी, चना, जीरे और मिर्च में आई है। वायदा में आलू और कपास की कीमतें भी नरम पड़ी हैं, लेकिन बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग ने आलू पर अतिरिक्त मार्जिन लगा दिया है, जबकि अमेरिका में कपास की कीमतों में गिरावट के बाद घरेलू स्तर पर इसकी कीमतें लुढ़की हैं। केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'आईएमडी ने कोई राइडर या अल नीनो या ला नीनो जैसे जोखिमों की संभावना नहीं जताई है और इसलिए वास्तव में यह बहुत अच्छी खबर है।Ó कीमतों की चाल इस पर निर्भर करेगी कि बुआई कैसी रहती है और बाजार में नई फसल की आवक तक प्रत्येक जिंस की स्टॉक पॉजिशन किस तरह खत्म होती है। हालांकि ये बहुत जल्दी के पूर्वानुमान हैं और हाल के वर्षों में मॉनसून के बदलते रुझान को देखते हुए कुछ भी हो सकता है। रेलिगेयर के विश्लेषक ने कहा, 'शुरुआती संकेत न केवल भारतीय कृषि क्षेत्र बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक हैं।Ó कम बारिश के कारण 2012-13 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर बहुत कम 1.80 फीसदी रही है। इससे पिछले साल पूरी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पर असर पड़ा और मुद्रास्फीति दोहरे अंकों में पहुंच गई। इस साल जून में समय से बारिश आने से सभी को राहत मिलेगी। पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढऩे से आमतौर पर कृषि जिंसों की कीमतें भी बढ़ती हैं। खरीफ फसलों की बेहतर बुआई से खाद्यान्न और दलहन का बेहतर उत्पादन होगा, जिससे इनकी कीमतों में कमी आएगी। (BS Hindi)

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