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18 फ़रवरी 2013

चमकता सोना, रिटर्र्न सलोना

गांव हो या शहर, देश में कम ही लोग ऐसे होंगे जो महज बेचने के मकसद से सोना खरीदते होंगे। यह कहना है एक वित्तीय कंपनी के प्रमुख का जो देश भर में सोना बेचती है। इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि विश्व में सबसे अधिक सोना भारत में ही है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार वर्ष 2011 में भारत में 18,000 टन सोना था। विशेषज्ञों के अनुसार अगर मंदिरों और निजी लॉकरों में रखे निष्क्रिय सोने को भी शामिल किया जाए तो यह आंक ड़ा काफी बड़ा हो जाएगा। आखिर इस पीली धातु के प्रति लोगों के आकर्षण का कारण क्या है? किसी के लिए इसकी आभूषण के लिहाज से कीमत है। मगर ज्यादातर परिवारों के लिए यह एक पारिवारिक विरासत है जहां एक पीढ़ी दूसरी को सोना सौंपती है। शादी या किसी भी सामाजिक समारोह में सोना उपहार में, भले ही कम मात्रा में ही सही, देने का चलन है। दूसरी तरफ सोना गिरवी रखना या इसे बेचना अशुभ माना जाता है। बाजार में तमाम तरह की समस्याओं के बावजूद सोने की चमक बढ़ती जा रही है। अगर आप आभूषण बनाने के लिए सोना खरीद रहे हैं तो उसकी गढ़ाई पर खर्च आता है। कई मामलों में तो यह 10-15 प्रतिशत तक हो जाता है। बेचते समय इस गढ़ाई का पैसा नहीं मिलता। बैंक सोना बेच तो सकते हैं लेकिन इसे वापस खरीद नहीं सकते। अगर कोई बैंक या किसी सुनार से सोने का सिक्का खरीदता है तो शायद ही दूसरा सुनार इसे बाजार मूल्य पर खरीदेगा। आम तौर पर इसके 5 से 10 प्रतिशत कम पैसे मिलते हैं। इसके अलावा दीर्घावधि पूंजीगत कर लाभ से बचने के लिए सोना तीन साल तक अपने पास रखना होता है। हालांकि अगर आप गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में निवेश करते हैं तो एक साल बाद ही आपको दीर्घावधि पूंजीगत कर लाभ का फायदा मिल सकता है। इसके विपरीत विकसित देशों में सोना हमेशा निवेश का एक साधन रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की सोने पर गठित समिति के अध्यक्ष यू बी राव कहते हैं, 'आभूषण या गहने के रूप में सोना अपेक्षाकृत कम कैरेट का होता है। जिनके पास निवेश के लिए सोना होता है, वह अधिक कैरेट वाला होता है। Ó निवेश सलाहकार गुल टेकचंदानी शहरी निवेशकों में सोने के बढ़ते आकर्षण का कारण बताते हैं। वह कहते हैं, 'महंगाई की ऊंची दर और रुपये में गिरावट के चलते सोना सुरक्षित निवेश का साधन बन गया है, खासकर उन अमीर निवेशकों के लिए जिनकी आय 10 लाख डॉलर या 5 करोड़ रुपये से अधिक है। लेकिन अब महंगाई घटना शुरू हो गई है और रुपया 58 के स्तर से सुधरकर 53-54 के स्तर तक आ गया है, लिहाजा अब यह उतना अर्थपूर्ण नहीं रह गया है।Ó टेकचंदानी के अनुसार ज्यादातर निवेशक सोने को लेकर आक्रामक थे क्योंकि पिछले नौ साल में सोने ने शानदार प्रतिफल दिया है। 2000 के बाद से भारत में सोने ने 16 प्रतिशत प्रतिफल दिया है जबकि इसकी तुलना में सेंसेक्स ने 11 फीसदी ही प्रतिफल दिया है। वर्ष 2012 में इसने महज 10 फीसदी रिटर्न दिया जबकि इसके मुकाबले बैंक जमाओं और शेयरों ने बेहतर रिटर्न दिया है। जानकारों की नजर में भारत में करदाताओं की संख्या कम होना भी एक बड़ा मसला है। दूसरे सलाहकार ने कहा, 'भारत में मात्र 3-4 प्रतिशत लोग ही कर देते हैं। वे अपना कालाधन सोने में तब्दील कर लेते हैं।Ó वित्त मंत्री पी चिदंबरम और आरबीआई गवर्नर डी सुब्बाराव पहले ही सक्रिय हो गए हैं। सोने के अधिक आयात के कारण चालू खाता घाटा जुलाई-सितंबर में सकल घरेलू उत्पाद का 5.4 प्रतिशत तक जा पहुंचा है। दूसरी तरफ अन्य वित्तीय योजनाओं से अधिक प्रतिफल नहीं मिल रहा है। इसलिए लोग सोने में निवेश कर रहे हैं। चिदंबरम और सुब्बाराव दोनों ही कुछ तरकीबों का इस्तेमाल कर चुके हैं। वित्त मंत्रालय ने सोने पर आयात शुल्क बढ़ाकर 6 प्रतिशत तक कर दिया है जो पिछले साल जनवरी के 1 फीसदी से 5 गुना अधिक है। आरबीआई ने बैंकों से कहा है कि वे गोल्ड लोन कंपनियों को ऋण आवंटन कम करें। लेकिन सोने का भारी भरकम आयात सितंबर तक जारी रहा। दिसंबर तिमाही में तो यह और बढ़ गया। हाल में ही सरकार ने नीति में बदलाव किया है। सरकार गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों (ईटीएफ) को सोने का एक हिस्सा बैंकों के पास जमा करने के लिए कह रही है। गोल्ड ईटीएफ के पास 11,600 करोड़ रुपये मूल्य का सोना (करीब 35-40 टन) जमा है। बैंक इसके बाद इसे आभूषण विक्रेताओं को उधार देंगे। सरकारी नोट के अनुसार सोना रखने के लिए बैंक म्युुचुअल फंडों को कुछ शुल्क अदा करेंगे। इससे सोने पर रिटर्न 50-100 आधार अंक तक बढ़ सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो सोने को वित्तीय योजना के तौर पर पेश किया जा रहा है। आरबीआई की समिति ने भी लगभग ऐसी ही सिफारिश की है। समिति ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सोने की मांग को सोने से जुड़ी वित्तीय योजनाओं में निवेश में परिवर्तित करने पर जोर दिया है। ऐक्सिस ऐसेट मैंनेजमेंट कंपनी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी राजीव आनंद कहते हैं, 'पिछले पांच साल के दौरान काफी रकम ऋण साधनों, रियल एस्टेट और सोने में निवेश हुई है।Ó विदेश से सोने का जितना आयात होता है, उसमें 20-30 प्रतिशत निवेश के मकसद से मंगाया जाता है। सोने से निवेशकों का ध्यान हटाने के लिए ऐसी योजना होनी चाहिए जो सोने की तरह ही प्रतिफल दे। गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड फंड ऑफ फंड्स, ई-गोल्ड और कुछ अन्य योजनाएं इसी तरह के विकल्प हैं। यहां तक की बैंकों की भी गोल्ड डिपॉजिट स्कीम हैं। हालांकि इन उत्पादों का प्रचार-प्रसार सीमित ही रहा है। म्युचुअल फंड गोल्ड ईटीएफ का प्रचार कभी-कभार ही करते हैं जबकि बैंकों सोने के लिए भंडारण क्षमता की कमी का रोना रोते हैं। आरबीआई की समिति ने संशोधित स्वर्ण योजना, स्वर्ण संचय योजना, गोल्ड लिंक्ड खाते और गोल्ड पेंशन योजनाएं शुरू करने के सुझाव दिए हैं। इन वित्तीय योजनाओं को इस तरह बनाया जाए कि समूचे निवेश के लिए भौतिक सोने की जरूरत ही न हो। यह भी सुझाव है कि उन निवेशकों को प्रोत्साहन दिया जाए जो भौतिक सोने के बदले नकद राशि लें। ग्राहकों को अपने बैंक खाते के जरिये ई-गोल्ड खरीदने के लिए बैंकों की भूमिका बढ़ाने का भी प्रस्ताव है। इससे अधिक से अधिक ग्राहक आकर्षित होंगे। इस समय कई ग्राहक इस विकल्प को तरजीह नहीं देते क्योंकि उन्हें कमोडिटी ब्रोकर के साथ अलग से खाता रखना होता है। ईटीएफ के साथ भी यही बात है और उसके लिए लोगों को डीमैट खाता खोलना होता है। सबसे दिलचस्प प्रस्ताव गोल्ड पेंशन योजना का है। इसके तहत लोग अपने घर में रखा सोना बैंक में जमा करेंगे जिसकी वापसी अगले 20-25 साल में मासिक पेंशन योजना के रूप में किस्तों में होगी। यह एक एन्युइटी योजना के तौर पर काम करेगा। ऐक्सिस एमएमसी के आनंद का मानना है कि आने वाले समय में पीली धातु में निवेश करने वाले लोग वित्तीय योजनाओं की ओर झुकेंगे। ऐसा तभी हो सकता है जब सोने का प्रतिफल अन्य साधनों की तुलना में खराब होगा। (BS Hindi)

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