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28 फ़रवरी 2013

Budget: Farm credit enhanced by Rs 1.25 lakh crore for FY'14

New Delhi, Feb 28. Finance Minister P Chidambaram today announced a sharp increase of Rs 1.25 lakh crore in agriculture credit target to Rs 7 lakh crore for next fiscal and allocated additional Rs 10,000 crore in subsidy for implementing the Food Security Bill. He also allocated 22 per cent more funds to Agriculture Ministry at Rs 27,049 crore for the 2013-14 fiscal, of which Rs 3,415 crore has been earmarked for farm research. Chidambaram announced extension of interest-subvention on crop loans to private sector banks and commercial banks. "Agricultural credit is a driver of agricultural production. We will exceed the target of Rs 5,75,000 crore fixed for 2012-13. For 2013-14, I propose to increase the target to Rs 7,00,000 crore," Chidambaram said while presenting the Budget for the 2013-14 fiscal in the Lok Sabha. The interest-subvention for short-term crop loan will be continued and farmers who repay loan on time will be able to get credit at 4 per cent interest per annum, he added. "So far, the scheme has been applied to loans extended by public sector banks, Regional Rural Banks and cooperative banks, I propose to extend the scheme to crop loans borrowed from private sector banks and scheduled commercial banks in respect to loans given within the service area of the branch concern," the Minister said. Looking at the success of the scheme -- Bringing Green Revolution in the Eastern India, Chidambaram allocated Rs 1,000 crore for the next fiscal. Another Rs 500 crore was allocated for crop diversification in states covered during the Green Revolution such as Punjab and Haryana, which are facing stagnation in farm yields. On proposed Food law, the Minister said: "I sincerely hope Parliament will pass the Bill as early as possible. Over and above the normal provision for food subsidy, I have set apart Rs 10,000 crore towards the incremental costs that is likely under the Act." PTI

कृषि के लिए 1.25 लाख करोड़ रुपये अधिक कर्ज

वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 2013-14 का बजट पेश करते हुए कृषि ऋण के लक्ष्य में 1.25 लाख करोड़ रुपये की भारी बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव किया. सरकार ने अगले वित्त वर्ष में 7 लाख करोड़ रुपये का कृषि ऋण देने का लक्ष्य रखा है. इसके साथ ही खाद्य सुरक्षा विधेयक के क्रियान्वयन के लिए 10,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी के आवंटन का भी प्रस्ताव किया गया है. वित्त वर्ष 2013-14 के लिए कृषि मंत्रालय का आवंटन 22 फीसद बढ़ाकर 27,049 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है. इसमें 3,415 करोड़ रुपये की राशि कृषि अनुसंधान के लिए होगी. चिदंबरम ने फसल ऋण पर ब्याज छूट का दायर निजी और वाणिज्यिक बैंकों तक बढ़ाने की भी घोषणा की. लोकसभा में 2013-14 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘कृषि उत्पादन में सबसे महत्वपूर्ण योगदान कृषि ऋण का होता है. 2012-13 में हम 5,75,000 करोड़ रुपये के कृषि ऋण वितरण का लक्ष्य पार कर जाएंगे. 2013-14 के लिए मैं इन लक्ष्य को बढ़ाकर 7,00,000 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव करता हूं.’’ उन्होंने कहा कि लघु अवधि के फसली रिण के लिए ब्याज छूट योजना जारी रहेगी. समय पर ऋण का भुगतान करने वाले किसानों को सालाना 4 फीसद के ब्याज पर ऋण मिलेगा. वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा, ‘‘अभी तक यह योजना सरकारी, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों में लागू थी. अब इसके दायरे में निजी क्षेत्र के बैंक और वाणिज्यिक बैंक भी आएंगे, जो संबंधित शाखा के सेवा क्षेत्र में दिए गए रिण पर लागू होगा.’’ पूर्वी भारत में हरित क्रांति लाने की योजना की सफलता को देखते हुए चिदंबरम ने अगले वित्त वर्ष के लिए इस योजना के तहत 1,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है. पंजाब और हरियाणा जैसे हरित क्रांति के दायरे में आने वाले राज्यों को फसल विविधीकरण के लिए 500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया गया है. प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून पर वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘मैं उम्मीद करता हूं कि संसद इस विधेयक को जल्द से जल्द पारित करेगी. खाद्य सब्सिडी के लिए सामान्य प्रावधान के अलावा मैं इस कानून के क्रियान्वयन पर अतिरिक्त खर्च के लिए 10,000 करोड़ रुपये का प्रावधान करता हूं.’’ कृषि ऋण बढ़ाने का का प्रस्ताव वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने गुरुवार को लोकसभा में वर्ष 2013-14 का आम बजट पेश करते हुये बताया कि कृषि ऋण उत्पादन की प्रमुख शक्ति है, इसलिए उन्होंने वर्ष 2012-13 के लिए निर्धारित 5,75,000 करोड़ रुपये के लक्ष्य को बढ़ाकर सात लाख करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव किया है. उन्होंने बताया कि लघु अवधि के लिए फसली ऋणों के लिए ब्याज माफी योजना जारी रहेगी. समय पर ऋणों का भुगतान करने वाले किसानों को प्रति वर्ष सात प्रतिशत की दर से रिण प्रदान किये जाएंगे. अभी तक यह योजना सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको तथा सहकारी बैंकों द्वारा दिये गये रिणों पर लागू है. उन्होंने निजी क्षेत्र के अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिये गये फसल ऋणों के लिए भी इस फायदे को देने का प्रस्ताव किया है. कृषि अनुसंधान के लिए 3,415 करोड़ रुपये वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने बजट पेश करते हुये बताया कि कृषि और संबद्ध क्षेत्र में औसत वृद्धि दर 11वीं योजना के दौरान 3.6 प्रतिशत रही. वर्ष 2012-13 के कुल खाद्यान्य उत्पादन 25 करोड़ टन से अधिक होगा. कृषि उत्पाद के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाये गये हैं, जिससे किसानों ने अधिक उत्पादन किया है. आज देश दाल और जूट के क्षेत्र में वि का सबसे बड़ा उत्पादक है. अप्रैल से दिसंबर 2012 तक देश का कृषि निर्यात 1,38,403 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य का हुआ है. उन्होंने कृषि मंत्रालय को 27,049 करोड़ रुपये आबंटित करने का प्रस्ताव किया है, जो चालू वर्ष के संशोधित अनुमान से 22 प्रतिशत अधिक है. वित्तमंत्री ने यह भी जानकारी दी कि इस राशि में से 3,415 करोड़ रुपये कृषि अनुसंधान के लिए दिये जाएंगे.

0.01% transaction tax on non-agri futures trade

New Delhi, Feb 28. In a major set back to commodity exchanges, Finance Minister Chidambarm today proposed a transaction tax of 0.01 per cent on non-agri futures traded on the bourses. The commodity transaction tax (CTT), which is in similar lines of Securities Transaction tax (STT), would work out to Rs 10 for transaction worth Rs one lakh. "There is no distinction between derivative trading in the securities markets and derivative trading in commodities markets. Only the underlying asset is different. It is the time to introduce commodity transaction tax in a limited way," Chidambaram said while presenting Budget for the 2013-14 fiscal in the Lok Sabha. "Hence, I propose to levy CTT on non-agricultural commodities futures contracts at the same rate as in equity futures, that is at 0.01 per cent from the price of the trade," he said. However, Chidambaram said trading in commodity derivatives would not be considered as speculative transaction and hence CTT would be allowed as deduction if the income from such transaction forms part of the business income. Reacting to the development, the country's largest commodity bourse MCX Managing Director and Chief Executive Officer Shreekant Javalgekar said, "CTT on selected items is not good. It will increase the hedging cost by 310 per cent. It will reduce our global competitiveness." He said the government has "targeted small segments and not currency futures." Much of non-agricultural items such as gold and silver are traded on the MCX. It may be recalled that Chidambaram had announced CTT of 0.017 per cent while presenting the 2008-09 Budget. However, the proposal was not operationalised due to apprehensions aired by then Consumer Affairs Minister Sharad Pawar and PMEAC. Amid speculation that the Finance Minister would impose CTT in the 2013-14 Budget to curb gold demand in view of high current account deficit, commodity exchanges and brokerage firms had made several representations opposing such a tax saying it will adversely impact the nascent market. "With the imposition of CTT, the turnover will come down. It will negatively impact the market, especially MCX where maximum of non-agricultural commodities are traded," brokerage firm SMC Comtrade Chairman and Manging Director D K Aggarwal told PTI. However, he said that the Finance Minister has provided some respite to traders by treating CTT not as speculative trade but as business profit/loss. The turnover from futures trade in farm items contributed only 13 per cent of the total Rs 144.17 lakh crore during first 10 months of the current fiscal. The remaining 87 per cent business came from bullion, metals and energy items.

27 फ़रवरी 2013

अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद, आर्थिक उपायों से घटेगी गरीबी

सरकार ने अर्थव्यवस्था में छाई आर्थिक मंदी के खत्म होने की उम्मीद जताते हुए आगामी वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.1 से 6.7 प्रतिशत रहने अनुमान व्यक्त किया है और कहा है कि आर्थिक उपायों के कारण देश में गरीबी घट रही है। लोकसभा में आज वित्त वर्ष 2012.13 के आर्थिक सर्वेक्षण को पेश करते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आशा जताई कि देश मंदी केदौर से जल्दी ही बाहर निकलेगा और आगामी वित्त वर्ष में 2012.13 के पांच प्रतिशत की तुलना में 6.1 से 6.7 प्रतिशत की रफ्तार से दौडेगा। सर्वेक्षण में महंगाई के नरम पडने से ब्याज दरो में कटौती के साथ साथ वित्तीय घाटे को काबू में रखने के लिए डीजल और पेट्रोल की कीमतों को बढाने पर जोर दिया गया है। चिदंबरम ने कहा कि देश ने वैश्विक वित्तीय संकट की चुनौती का डटकर मुकाबला किया और सरकार के उपायो के चलते अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर लौटने की तरफ अग्रसर है। वर्ष 2009-10 में हमारी अर्थव्यवस्था क्रमश: 8.6 प्रतिशत और 9.3 प्रतिशत की दर से बढ़ी, किन्तु के बाद दो वर्षों में बाहरी एवं घरेलू कारको से अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में रही। चालू वित्त वर्ष के दौरान इसके पिछले एक दशक के न्यूनतम स्तर पांच प्रतिशत पर आने का अनुमान है। वित्त मंत्री ने उम्मीद जताई कि इस वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार होगा।सरकार के उपायों क चलते 2013-14 के दौरान घरेलू अर्थव्यवस्था में सुधार लाने में मदद मिलेगी। सर्वेक्षण में महंगाई को नीचे लाने की उम्मीद जताते हुए कहा गया है कि सरकार की प्राथमिकता इसे काबू में रखने की रहेगी। लोकसभा में आज पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2012-13 में देश में गरीबी घटने का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों की संख्या 2004-05 के 37.2 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2009-10 में 29.8 प्रतिशत रह गई है। इसी अवधि में गरीबों की संख्या में पांच करोड 24 लाख की कमी आई है। देश इस समय गांवों में गरीबों की संख्या चार करोड 81 लाख और शहरों में 41 लाख है। हालांकि सर्वेक्षण में स्वीकार किया गया है कि गरीबी मापने के तरीकों में कुछ मतभेद हैं। सरकार ने कहा है कि आर्थिक उपायों से व्यापार जगत में उत्साह और उम्मीदें बढ़ी है। औद्योगिक उत्पादन में सालाना वृद्धि के ताजा आंकड़ो में इसका संकेत मिलता है कि मौजूदा वित्त वर्ष में भी औद्योगिक क्षेत्र में बढोतरी तीन प्रतिशत के आस पास रह सकती है। हालांकि ढांचागत सुविधा और उर्जा की कमी, भारतीय निर्यात की मांग मे कमी और निवेश मे कमी औद्योगिक विकास के मार्ग में बाधक दिख रही है। गौरतलब है कि आर्थिक सर्वे सरकारी एजेंसियों द्वारा तैयार की गई देश की आर्थिक स्थिति की व्यापक वार्षिक समीक्षा रिपोर्ट होती है। 2012-13 का आर्थिक सर्वे रघुराम राजन द्वारा तैयार की गया है, जो पिछले वर्ष वित्त विभाग में प्रमुख सलाहकार के रूप में नियुक्त किए गए थे। इससे पहले राजन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में प्रमुख अर्थशास्त्री के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। (Hindustan)

पूर्वोत्तर में हरित क्रांति के लिए बजट आवंटन बढ़ेगा

आर एस राणा नई दिल्ली | Feb 26, 2013, 21:25PM IST पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में हरित क्रांति लाने की पहल के तहत चालू वित्त वर्ष 2013-14 के आम बजट में आवंटित राशि में 500 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी कर कुल आवंटन 1,500 करोड़ रुपये किए जाने की संभावना है। वित्त वर्ष 2012-13 के बजट में इस योजना हेतु आवंटन में 400 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की गई थी। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि देश के पूर्वोत्तर राज्यों में कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी की संभावनाएं अन्य भागों की तुलना में ज्यादा हैं। इन राज्यों में खाद्यान्न उत्पादन खासकर के चावल उत्पादन में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप ही देश में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन संभव हो पाया है। वर्ष 2011-12 में देश में खाद्यान्न का 25.93 करोड़ टन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। देश के खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी का श्रेय पूर्वी भारत के राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को जाता है। उन्होंने बताया कि पूर्वोत्तर भारत में हरित क्रांति के लिए केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2012-13 के बजट में 400 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी कर कुल आवंटन 1,000 करोड़ रुपये का किया था। इन राज्यों में प्रति हैक्टेयर उत्पादकता में और भी बढ़ोतरी की संभावनाएं है। इसीलिए चालू वित्त वर्ष 2013-14 के बजट में इस योजना हेतु आवंटन में 5,00 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी कर कुल आवंटन 1,500 करोड़ रुपये का किए जाने की संभावना है। इससे प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल में अतिरिक्त खाद्यान्न की आवश्यकता की पूर्ति करने में भी मदद मिलेगी। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं में इस समय सालाना करीब 550 लाख टन खाद्यान्न का आवंटन होता है जबकि खाद्य सुरक्षा बिल लागू होने के बाद 650 लाख टन से ज्यादा खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2011-12 के देश में खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन 25.93 करोड़ टन का हुआ है। इस दौरान देश में गेहूं का रिकॉर्ड 948 लाख टन का उत्पादन हुआ था। इसके अलावा इस दौरान चावल का भी 10.53 करोड़ टन का बंपर उत्पादन हुआ है। हालांकि कृषि मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी किए गए वर्ष 2012-13 के दूसरे खाद्यान्न उत्पादन में वर्ष 2011-12 की तुलना में 3.5 फीसदी की कमी आने का अनुमान है लेकिन तीसरे, चौथे और अंतिम अनुमान तक इसमें सुधार की संभावना है। कृषि मंत्रालय के अनुसार दूसरे अग्रिम अनुमान में वर्ष 2012-13 में खाद्यान्न उत्पादन 25.01 करोड़ टन होने का अनुमान है। (Business Bhaskar....R S Rana)

चार प्रतिशत वृद्धि दर के लिये कृषि क्षेत्र में तत्काल सुधार की जरूरत: समीक्षा

नयी दिल्ली। किसानों को खेती-बाड़ी की ओर प्रेरित करने तथा बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराने के लिये कृषि उत्पादन में वृद्धि तथा बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निजी निवेश की जरूरत है और इसके लिये कृषि क्षेत्र में तत्काल सुधार की आवश्यकता है। पिछले पांच साल में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 4 प्रतिशत के लक्ष्य से कम रहने को ध्यान में रखते हुए आर्थिक समीक्षा में यह बात कही गयी है। संसद में आज पेश 2012-13 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 11वीं पंचवर्षीय योजना :2007-12: के दौरान कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत रही जो 4 प्रतिशत के लक्ष्य से कम है। हालांकि यह नौवीं तथा 10वीं योजना में क्रमश: 2.5 प्रतिशत तथा 2.4 प्रतिशत वृद्धि की तुलना में अधिक है। समीक्षा के अनुसार कृषि क्षेत्र में पिछले कुछ साल में व्यापक सुधार हुआ है लेकिन इसके बावजूद देश ऐसी जगह पर है जहां कृषि के क्षेत्र में सतत वृद्धि के लिये दक्षता तथा उत्पादकता बढ़ाने को लेकर और सुधार की तत्काल जरूरत है। इसमें कहा गया है कि बाजार की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए स्थिर नीतियों, बुनियादी ढांचा में निजी निवेश बढ़ाये जाने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली :पीडीएस: में सुधार, खाद्य कीमत तथा भंडारण प्रबंधन में सुधार तथा प्रत्याशित व्यापार नीति अपनाये जाने की जरूरत है। समीक्षा के अनुसार इन कदमों के साथ कौशल विकास तथा बेहतर शोध एवं विकास और रिण तथा बीजों की आपूर्ति में सुधार की दिशा में पहल करने की जरूरत है। देश के समक्ष बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती है। इसको देखते हुए कृषि क्षेत्र की बाधाओं तथा चुनौतियों को दूर करने की जरूरत है ताकि कृषक समुदाय को और उपज के लिये प्रेरित किया जा सके और 12वीं योजना में 4 प्रतिशत वृद्धि के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। (भाषा) (Jansatta)

Urgent farm reforms must for achieving 4% growth: Survey

New Delhi, Feb 27. With agriculture growth rate falling short of the 4 per cent target in last five years, the sector needs urgent reforms to boost crop yields and private investment in infrastructure so as to motivate farmers and feed the growing population, the Economic Survey said today. The farm sector achieved 3.6 per cent growth during the 11th Five year Plan (2007-12), falling short of the 4 per cent growth target, although it was much higher than growth of 2.5 and 2.4 per cent during 9th and 10th Plans, it added. The agriculture sector is broadly a story of success in the past few years, "yet, India is at a juncture where further reforms are urgently required to achieve greater efficiency and productivity in agriculture for sustaining growth", the Survey said. There is need for stable policies where markets play an appropriate role, private investment in infrastructure is stepped up, the public distribution system (PDS) is revamped, food price and food stock management improves, and a predictable trade policy is adopted for agriculture, it added. These initiatives need to be coupled with skills development and better research and development (R&D) along with improved delivery of credit and seeds. Stating that the country faces the stiff challenge of feeding its growing population, the Survey said that there are constraints and challenges that need to be addressed so that the farming community is motivated to produce more and the target of 4 per cent agri-growth is met in the 12th Plan. "Improvement in yields holds the key for India to remain self-sufficient in foodgrains and also make a place for itself in many agricultural crops and products in the international market," the Survey noted. The Survey also called for "urgent attention" for efficient management of food stocks, timely offloading of stocks, and a stable and predictable trade policy. "...this policy of stocking foodgrains well above the buffer norms comes under criticism on the grounds of hoarding and creating artificial shortages in the market, thereby jacking up the prices of essential commodities," it noticed. Noting that declining per capita availability of foodgrains has been a major concern, the report said steps need to be taken to improve nutritional security, that includes adequate supply of foodgrains and protein-rich items. To improve agri-marketing, the Survey suggested reforms to encourage private sector to develop market linkages. "Recently, the government allowed FDI in retail, which has been supported by many farmer organisations as well, and it can pave the way for investment in new technology and marketing of agricultural produce in India," the report said. The report also stressed on substantial increase in funds for farm research to address the challenge of producing more with limited resources by adopting a more sustainable agricultural practice in the backdrop of climate change. "Climate change can have serious implications for our agriculture sector and create greater instability in food production," it said, suggesting changes in crop insurance. Measures need to be taken to promote the use of quality seeds, cultivation of drought-resistant varieties of crops, judicious use of available water, balanced use of fertilisers, farm mechanisation to improve efficiency levels, and wider use of irrigation facilities. That apart, the Survey emphasised the need to put in place a strategy for farm development in the eastern and north -eastern regions amid saturation in crop yields in Green Revolution belt especially in Punjab and Haryana. It also called for strengthening farm statistics for agricultural development planning and policy making.

26 फ़रवरी 2013

Gold, silver bounce back on firm global cues

New Delhi, Feb 26. Gold and silver bounced back in the national capital today on brisk buying by stockists, driven by a firming global trend. While gold rebounded by Rs 280 to Rs 30,180 per ten grams, silver surged by Rs 1,700 to Rs 55,450 per kg. Traders said brisk buying by stockists in tandem with a firming global trend mainly influenced the sentiment. Gold in global markets advanced 0.3 per cent to USD 1,598.55 an ounce while silver was up by 0.2 per cent to USD 29.07 an ounce in Singapore. In addition, shifting of funds from weakening equity to rising bullion also supported the uptrend. On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent purity rebounded by Rs 280 each to Rs 30,180 and Rs 29,980 per ten grams, respectively. It had lost Rs 160 yesterday. Sovereign remained steady at Rs 25,300 per piece of eight gram in limited deals. In line with a general firm trend, silver ready staged a strong come back and spurted by Rs 1,700 to Rs 55,450 per kg, after losing Rs 1,450 in the previous session. However, silver weekly-based delivery plunged by Rs 1,350 to Rs 53,850 per kg on lack of speculators support. On the other hand, silver coins zoomed up by Rs 3,000 to Rs 82,000 for buying and Rs 83,000 for selling of 100 pieces.

निर्यात में बढ़ेगी कृषि क्षेत्र की भूमिका

वाणिज्य संवाददाता नई दिल्ली, 5 जनवरी। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम का कहना है कि समावेशी विकास के लिए कृषि और इससे जुड़े क्षेत्र बहुत मायने रखते हैं। घरेलू मांग की पूर्ति करने के अलावा निर्यात के लिहाज से भी कृषि उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता है। 2012-13 के बजट से पहले कृषि से जुड़े विभिन्न पक्षों के प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श के दौरान वित्त मंत्री ने कृषि क्षेत्र से जुड़ी मांगों पर ध्यान दिए जाने का भरोसा जताया। किसान संगठनों की ओर से भी चावल, गेहूं, चीनी और कपास के निर्यात को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। बैठक में शामिल हुए भारतीय किसान संघों के परिसंघ (सीआईएफए) के महासचिव चेंगल रेड्डी ने बताया कि आगामी बजट में कृषि क्षेत्र से जुड़ी कई मांगें वित्त मंत्री के सामने रखी गईं। इसमें किसानों के लिए पेंशन, मनरेगा को कृषि कार्यों से जोडऩे, कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ाने के साथ-साथ चावल, कपास, चीनी और गेहूं के निर्यात को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया गया। वित्त मंत्री ने कृषि क्षेत्र के विकास के लिए सभी जरूर कदम उठाने का आश्वासन दिया है। (Mahanagar Times)

कृषि क्षेत्र में अनुसंधान, भंडारण और परिवहन पर दिया जाए ध्यान'

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि खेती-बाड़ी को फायदेमंद बनाने के लिए बजट में सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल पर जहां गांवों में भंडारण और बेहतर परिवहन सुविधाओं के विकास पर विशेष जोर देने की जरूरत है। फसलों की उपज अधिक लेने के लिए अनुसंधान पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। इस सप्ताह बजट की संभावनाओं पर बचचीत में विशेषज्ञों ने कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति ऊंची है। इससे निपटने के लिए उपज बढ़ाने तथा किसानों को दलहन, तिलहन और सब्जियों की खेती की ओर आकर्षित करने के उपायों की जरूरत है। अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री योगेन्द्र के अलघ ने कहा कृषि गतिविधियों की तरफ लोगों को आकर्षित करने के लिए जरूरी है कि खेती-बाड़ी को लाभप्रद बनाया जाए। इसके लिये गांवों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर आधारित भंडारगह, परिवहन जैसी आधारभूत सुविधाओं के विकास पर विशेष जोर देने की जरूरत है। बेंगलूर स्थित इंस्टीटयूट ऑफ सोशल एंड इकनोमिक चेंज में कषि विकास एवं ग्रामीण परिवर्तन केन्द्र (एडीआरटीसी) के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार ने भी गांवों में भंडारण, परिवहन जैसी ढांचागत सुविधाओं पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा, इनके अभाव में खासकर जल्दी खराब होने वाली फसलों के मामले में विविधीकरण सीमित होता है। वहीं दूसरी तरफ इन खाद्य पदार्थों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इससे छोटे एवं सीमांत किसानों को फायदा होगा क्योंकि उनके पास परिवार स्तर पर अधिशेष श्रम है जिससे वे इन फसलों के मामले में ज्यादा प्रतिस्पर्धी स्थिति में हैं। प्रमोद कुमार ने कहा कि जब तक बिजली, सड़क सार्वजनिक ढांचागत सुविधाओं का विकास नहीं होता गांवों एवं कस्बों में कोई भी उद्यमी भंडारण सुविधा एवं गोदामों में निवेश नहीं करेगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब तक गांवों में 24 घंटे बिजली नहीं दी जाती कोई भी उद्यमी ग्रामीण क्षेत्रों में गोदामों में निवेश नहीं करेगा क्योंकि डीजल आधारित जनरेटर से वे अपने कारोबार को ज्यादा दिन तक लाभदायक नहीं बनाए रख सकते। खाद्य वस्तुओं की ऊंची कीमत के मद्देनजर बजट से उम्मीद के बारे में पूछे जाने पर वाई के अलघ ने कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति दलहन, खाद्य तेल, फल, सब्जी एवं दूध के मामले में ज्यादा है। इससे निपटने के लिए इनकी उपज बढ़ाने तथा किसानों को इसकी खेती के लिये आकर्षित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दलहन के मामले में अल्पकालीन रणनीति के तहत उन पिछड़े क्षेत्रों में दलहन उत्पादकों को लाभदायक कीमत देने की जरूरत है जहां उनका अधिक उत्पादन किया जा सकता है। फिलहाल दलहान जैसी फसलों के संदर्भ में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कागजों पर है। साथ ही आई शक्ति दाल जैसी पहल को आगे बढ़ाने के लिए पीपीपी माडल की जरूरत है, लेकिन बजटीय समर्थन के बिना यह संभव नहीं है और यही स्थिति तिलहन में अपनाये जाने की जरूरत है। टाटा समूह की कंपनी ने 2010 में दाल के क्षेत्र में कदम रखा था। पीपीपी माडल के तहत पंजाब और तमिलनाडु में शुरू की गयी अधिक दाल उपजाओ योजना के तहत कंपनी ने दाल की खरीद और बिक्री के क्षेत्र में कदम रखा था। कुमार ने कहा कि हालांकि खाद्य वस्तुओं की कीमत ऊंची है लेकिन लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं मिलता और इसका फायदा व्यापारी उठा लेते हैं। इसका कारण किसान और उपभोक्ताओं के बीच बिचौलियों की एक पूरी श्रृंखला का होना है। इसे दूर करने की जरूरत है। कृषि शोध के बारे में अलघ ने कहा कि उत्पादन और उपज बढाने के लिये शोध पर ध्यान देने की जरूरत है। अगर दलहन का उदाहरण लिया जाए तो जो हमारे पास जो बेहतर बीज है, उससे हम करीब डेढ टन प्रति हेक्टेयर उपज ले सकते हैं जबकि आस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में करीब ढाई टन प्रति हेक्टेयर उपज ली जाती है और फलत: वे भारत को निर्यात करते हैं। उन्होंने कहा कि 12वीं योजना के दस्तावेज में कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र यह काम करेगा जो सही नहीं है। हमें आईसीएआर की अगुवाई में रणनीतिक योजना की जरूरत है। लेकिन यह पीपीपी माडल के अंतर्गत होना चाहिए। कुमार ने कहा कि किसानों खासकर छोटे एवं मझोले किसानों को कम-से-कम सिंचाई के लिए सस्ता डीजल की व्यवस्था करने की जरूरत है। साथ ही किसान काल सेंटर जैसी सुविधाओं का भी विस्तार किये जाने की आवश्यकता है ताकि छोटे एवं मझोले किसानों तक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी की पहुंच हो सके और वे उसे जान सके। उन्होंने कहा कि देश में 60 प्रतिशत से अधिक भूमि गैर-सिंचित है। इनके विकास के लिये वाटरशेड तथा शुष्क भूमि में खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है। (hindustan Hindi)

कृषि क्षेत्र में भी पीपीपी को मिले बढ़ावा

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि खेती-बाड़ी को फायदेमंद बनाने के लिए बजट में सार्वजनिक-निजी भागीदारी माडल पर गांवों में भंडारण और बेहतर परिवहन सुविधाओं के विकास पर विशेष जोर देने की जरूरत है. साथ ही फसलों की उपज अधिक लेने के लिए अनुसंधान पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. इस सप्ताह पेश होने वाले आम बजट की संभावनाओं पर बचचीत में विशेषज्ञों ने कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति ऊंची है. इससे निपटने के लिए उपज बढ़ाने तथा किसानों को दलहन, तिलहन और सब्जियों की खेती की ओर आकर्षित करने के उपायों की जरूरत है. अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री योगेन्द्र के. अलघ ने कहा, 'कृषि गतिविधियों की तरफ लोगों को आकर्षित करने के लिए जरूरी है कि खेती-बाड़ी को लाभप्रद बनाया जाए. इसके लिए गांवों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर आधारित भंडारगृह, परिवहन जैसी आधारभूत सुविधाओं के विकास पर विशेष जोर देने की जरूरत है.' बेंगलूर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एंड इकनोमिक चेंज में कृषि विकास एवं ग्रामीण परिवर्तन केन्द्र (एडीआरटीसी) के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार ने भी गांवों में भंडारण, परिवहन जैसी ढांचागत सुविधाओं पर विशेष जोर दिया. उन्होंने कहा, 'इनके अभाव में खासकर जल्दी खराब होने वाली फसलों के मामले में विविधीकरण सीमित होता है. वहीं दूसरी तरफ इन खाद्य पदार्थो की मांग तेजी से बढ़ रही है.' इससे छोटे एवं सीमांत किसानों को फायदा होगा क्योंकि उनके पास परिवार स्तर पर अधिशेष श्रम है जिससे वे इन फसलों के मामले में ज्यादा प्रतिस्पर्धी स्थिति में हैं. प्रमोद कुमार ने कहा कि जब तक बिजली, सड़क सार्वजनिक ढांचागत सुविधाओं का विकास नहीं होता गांवों एवं कस्बों में कोई भी उद्यमी भंडारण सुविधा एवं गोदामों में निवेश नहीं करेगा. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब तक गांवों में 24 घंटे बिजली नहीं दी जाती कोई भी उद्यमी ग्रामीण क्षेत्रों में गोदामों में निवेश नहीं करेगा क्योंकि डीजल आधारित जनरेटर से वे अपने कारोबार को ज्यादा दिन तक लाभदायक नहीं बनाए रख सकते. (Samay Live)

22 फ़रवरी 2013

मंूगफली निर्यातकों ने बनाया नया संघ

मूंगफली और उसके उत्पादों के नए निर्यात नियमों को लेकर शुरू हुआ विरोध तूल पकड़ रहा है। मूंगफली निर्यातकों, प्रसंस्करण कंपनियों, किसानों और आपूर्तिकर्ताओं ने भारतीय मूंगफली संघ (आईपीए) बनाने की घोषणा की है। यह संघ कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के नए नियमों का कानूनी विरोध करने के साथ-साथ मूंगफली उद्योग के अन्य मसले भी उठाएगा। एफ्लाटॉक्सिन के नियंत्रण के जरिये एपीडा ने मूंगफली और मूंगफली उत्पादों के निर्यात के लिए नए नियम जारी किए हैं और 9 जनवरी को तीसरे संशोधन के मुताबिक सभी मूंगफली प्रसंस्करण इकाइयों के लिए केंद्रीय संस्था से पंजीकृत होना जरूरी कर दिया है। संघ के संस्थापक और चेन्नई की एग्रोक्रॉप्स एक्जिम के निदेशक श्रवणन एल कहते हैं, 'मूंगफली उद्योग के दिग्गज और कई अपंजीकृत संघ नई संस्था के बैनर तले आ गए हैं। पंजीकरण की प्रक्रिया बुधवार से शुरू हुई और अब तक करीब 700 लोग सदस्य बन चुके हैं। अकेले गुजरात से ही 300 लोगों ने सदस्यता ली है।Ó उन्होंने कहा, 'यह संघ एपीडा और आईओपीईपीसी के खिलाफ कानूनी लड़ाई आगे बढ़ाएगा।Ó 1 फरवरी को मद्रास उच्च न्यायालय ने मूंगफली और इसके उत्पादों के निर्यात संबंधी एपीडा के नए नियमों पर अंतरिम रोक लगा दी थी। एग्रोक्रॉप्स की याचिका पर अदालत ने यह आदेश दिया है। (BS Hindi)

आवक के दबाव से मक्का में और नरमी के आसार

आर एस राणा नई दिल्ली | Feb 22, 2013, 00:03AM IST पोल्ट्री के साथ ही स्टार्च मिलों की कमजोर मांग से मक्का की कीमतों में गिरावट बनी हुई है। दिसंबर 2012 से अभी तक कीमतों में 150 रुपये की गिरावट आकर दिल्ली में भाव 1,400-1,450 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। अप्रैल में रबी सीजन के मक्का की घरेलू आवक शुरू हो जाएगी जबकि विश्व बाजार में ब्राजील, अर्जेंटीना और दक्षिण अमेरिका की नई फसल आएगी। ऐसे में मक्का की मौजूदा कीमतों में मार्च व अप्रैल के दौरान गिरावट आने के आसार हैं। यूएस ग्रेन काउंसिल में भारतीय प्रतिनिधि अमित सचदेव ने बताया कि पोल्ट्री उद्योग और स्टार्च मिलों की मांग अपेक्षानुसार नहीं आ रही है जबकि निर्यात मांग भी सीमित मात्रा में बनी हुई है। रबी मक्का के बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी से पैदावार ज्यादा होने का अनुमान है। अक्टूबर 2012 से अभी तक करीब 8 लाख टन मक्का के निर्यात सौदे हुए है जिसमें से करीब 4.5 लाख टन की शिपमेंट हुई है। पिछले फसल वर्ष में मक्का का कुल निर्यात 43 लाख टन का निर्यात हुआ था जो चालू साल में घटने का अनुमान है। इंडोनेशिया और मलेशिया के आयातक मक्का के आयात सौदे 290-300 डॉलर प्रति टन के भाव पर कर रहे हैं। ब्राजील, अर्जेंटीना और दक्षिण अमेरिका में मक्का की नई फसल मार्च-अप्रैल में बनेगी, जिससे विश्व बाजार में भी मक्का की कीमतों में तेजी नहीं की संभावना नहीं है। बी एम इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर एम एल अग्रवाल ने बताया कि मक्का की नई फसल की आवक के समय स्टॉकिस्टों की खरीद से दाम तेज हो गए थे। पोल्ट्री उत्पादकों को चालू सीजन में भारी घाटा हुआ है जिसकी वजह से इनकी मांग कमजोर रही है। कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश की मंडियों में दिसंबर 2012 में मक्का के दाम 1,450 रुपये प्रति क्विंटल थे जबकि इस समय भाव घटकर 1,310-1,320 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। काकीनाडा बंदरगाह डिलीवरी मक्का के भाव घटकर इस दौरान 1,450 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। एनसीडीईएक्स पर मार्च महीने के वायदा अनुबंध में निवेशकों की बिकवाली से पहली जनवरी से अभी तक मक्का की कीमतों में 10.4 फीसदी की गिरावट आई है। पहली जनवरी को मार्च महीने के वायदा अनुबंध में मक्का का भाव 1,451 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि गुरुवार को भाव घटकर 1,299 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में मक्का की बुवाई बढ़कर 15.34 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जो पिछले साल के 13.46 लाख हैक्टेयर से ज्यादा है। अभी तक मौसम भी फसल के अनुकूल है। ऐसे में रबी में मक्का की पैदावार बढऩे का अनुमान है। (Business Bhaskar...R S Rana)

Gold, silver rebound on low-level buying, strong global cues

New Delhi, Feb 22. Snapping a three-day losing streak, both the precious metals - gold and silver - rebounded here today on renewed buying at existing low levels amid a firm global trend. While gold gained Rs 280 to Rs 30,000 per 10 grams, silver rose by 450 to Rs 55,000 per kg on increased offtake by jewellery makers and industrial units. The trading sentiment improved as retail customers bought at existing lower levels after previous day's steep fall, traders said. Firm global trend also supported the recovery move in gold and silver prices, they added. In Singapore, gold advanced 0.7 per cent to USD 1,587.35 an ounce and silver by 0.8 per cent to USD 28.89 an ounce. On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent purity rebounded by Rs 280 each to Rs 30,000 and Rs 29,800 per 10 grams, respectively. The metal had lost Rs 695 in last three trading sessions. Sovereigns gained Rs 50 to Rs 25,200 per piece of eight grams. In line with a general firm trend, silver ready recovered by Rs 450 to Rs 55000 per kg and weekly-based delivery by Rs 700 to Rs 54,000 per kg. The white metal had lost Rs 2,300 in the precious three sessions. Silver coins also spurted by Rs 1,000 to Rs 79,000 for buying and Rs 80,000 for selling of 100 pieces.

No proposal to ban onion exports: Govt

New Delhi, Feb 22. The government today said there is no proposal to ban export of onion and its prices in the domestic market are showing a declining trend. "There is no proposal to ban export of onion," Minister of State for Agriculture Tariq Anwar said in a written reply to the Rajaya Sabha. The untimely rains in different onion growing areas, which has affected the crop and its supply chain, has contributed to sharp increase in its prices, he said. A sharp increase in onion prices was seen during three months till January, he added. However, there has been a declining trend in onion prices since the beginning of the current month. The wholesale prices have dropped to Rs 16/kg today in Nasik, Maharashtra, from Rs 25/kg in the beginning of the month, as per the data maintained by government research body NHRDF. Similarly in the national capital, wholesale prices have declined from Rs 25/kg to Rs 17.50/kg in the review period. Prices of vegetables such as onion are governed by market forces of demand and supply, cost of transportation, cost of storage and rising demand among others, Anwar said. Due to tight supply, onion exports have shown a declining trend since November, 2012. The shipments fell by over 40 per cent to 83,044 tonnes in January, as against 1,47,255 tonnes in the year-ago period, according to the NHRDF data. According to the Nasik-based National Horticultural Research and Development Foundation (NHRDF), the area under onion crop is down by 10 per cent from 10.87 lakh hectares this year. But the overall production is expected to be the same at last year's level of 174 lakh tonnes. Maharashtra, Karnataka and Gujarat are the top three onion growing states which have suffered drought.

21 फ़रवरी 2013

India's wheat exports may rise by 23% to 8 mn tonne this yr

New Delhi, Feb 21. India's wheat exports are likely to grow by 23 per cent to 8 million tonne in the marketing year starting April due to strong global prices and surplus domestic supply, according to a report. The country had shipped 6.5 million tonne wheat last year, with maximum stock exported from government godowns. Ban on wheat exports was lifted in September 2011, but shipments took off strongly only after August 2012. "Assuming continued exports of wheat from government stocks and export price parity for Indian wheat vis-a-vis other origins, wheat exports during 2013-14 marketing year are forecast to increase to 8 million tonne," the US Department of Agriculture (USDA) said in its latest report. Of this, 5 million tonne wheat will be from government side, while 3 million tonne will be sourced from open market by private traders, it said. Indian wheat has been very price competitive in the global market, particularly after the government allowed exports of wheat from its godowns in July 2012, it added. According to the USDA, exports of government-held stocks are likely to continue unabated this year due to tight storage facilities, while the government will be under tremendous pressure to clear stock to accommodate the new crop. "The government is likely to continue to liquidate additional wheat stocks in the export market in 2013-14 and possibly 2014-15" also because current international prices are significantly higher than the domestic prices, it said. However, any significant weakening of global wheat prices may adversely affect export prospects, USDA cautioned. Despite the government’s efforts to offload wheat in the domestic and export markets, government-held wheat stocks on February 1, 2013, were estimated at 30.8 million tonne, compared to 23.4 million tonne in the year-ago period. Wheat stocks in government godowns have piled up due to record production in the last two consecutive years. This year too, the country is set for a near-record wheat harvest of 92.3 million tonne on strong planting and favourable growing conditions.

इतना सारा गेहूं कहां रखेगी सरकार!

सरकार ने 2013-14 (अप्रैल-मार्च) के दौरान तकरीबन 4.4 करोड़ टन गेहूं खरीद का जो लक्ष्य रखा है, वह इस साल की खरीद से 15.36 फीसदी अधिक है जिससे भंडारण संबंधी परेशानियां बढ़ सकती हैं। आगामी कुछ महीनों के दौरान देश के खाद्यान्न भंडार में तगड़ा इजाफा होने की संभावना है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक यदि भंडारों में पड़े अनाज को तेजी से नहीं खपाया जाता है तो 1 जून, 2013 तक देश का खाद्यान्न भंडार तकरीबन 9-9.5 करोड़ टन के स्तर पर पहुंच सकता है। इसके अलावा इस साल गेहूं की बंपर पैदावार होने की संभावना है, इसलिए सरकारी खरीद भी बढ़ेगी। उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों और मध्य भारत में जाड़े के मौसम की हालिया बारिश की वजह से भी गेहूं की उपज बढ़ सकती है। इससे देश की भंडारण क्षमता पर अतिरिक्त दबाव बन सकता है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्य स्तरीय एजेंसियों के पास फिलहाल तकरीबन 7.15 करोड़ टन अनाज भंडारण की जगह है, जिसमें से लगभग 1.86 करोड़ टन के लिए ढकी हुई जगह (सीएपी) है। सरकार के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक फसल वर्ष 2012-13 के दौरान करीब 9.23 करोड़ टन गेहूं की पैदावार होने की उम्मीद है, जो पिछले साल के रिकॉर्ड उत्पादन से थोड़ा ही कम है। मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश 75 फीसदी से ज्यादा गेहूं का उत्पादन करते हैं। सरकारी अनुमान दर्शाते हैं कि खरीद में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी मध्य प्रदेश में होगी, जहां अगले फसल सीजन में 1.3 करोड़ टन गेहूं खरीद की तैयारी चल रही है जो मौजूदा सीजन की खरीद से लगभग 53 फीसदी अधिक है। मध्य प्रदेश में यदि वर्ष 2013-14 के लिए गेहूं खरीद लक्ष्य हासिल कर लिया जाता है तो यह हरियाणा को पछाड़ कर पंजाब के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक और सरकारी खरीद वाला राज्य बन जाएगा। उम्मीद जताई जा रही है कि अगले सीजन के दौरान पंजाब में तकरीबन 1.4 करोड़ टन गेहूं की खरीद की जाएगी, जबकि हरियाणा में लगभग 78 लाख टन की। केंद्र सरकार को भारी मात्रा में गेहूं खरीद ऊंची लागत उठानी पड़ेगी क्योंकि केंद्र सरकार की तरफ से निर्धारित 1,350 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 150 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देने की घोषणा की गई है। मध्य प्रदेश में गेहूं की कुल खरीद लागत करीब 1,570 रुपये प्रति क्विंटल के आस-पास रहेगी, इस आधार पर कि राज्य सरकार लगभग 4.7 फीसदी स्थानीय कर लगाती है। प्रख्यात कृषि अर्थशास्त्री एवं कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अध्यक्ष अशोक गुलाटी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'पहली बात तो यह है कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि जब तमाम पूर्वी राज्यों में धान या चावल की बिक्री एमएसपी से 15-20 फीसदी कम भाव पर हो रही है तो ऐसे में खरीद लक्ष्य निर्धारित करने की जरूरत क्या है। जिन इलाकों में बेहतर तरीके से सरकारी खरीद होनी चाहिए, वहां ऐसा नहीं हो पा रहा है, जबकि जिन राज्यों में भारी-भरकम कर लगाए जाते हैं, वहां की सरकारें ज्यादा खरीद करने में दिलचस्पी ले रही हैं जिसके चलते केंद्र सरकार पर अतिरिक्त बोझ बढ़ रहा है।Ó उन्होंने कहा कि देश की खाद्यान्न भंडारण क्षमता में तेजी से तकरीबन 1.8 करोड़ टन इजाफा करने की योजना भी धीमी गति से आगे बढ़ रही है। अब तक महज 30 लाख टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता तैयार की गई है। गुलाटी ने कहा, 'सरकार को फौरन खाद्यान्न के मामले में मौजूदा स्टॉक होल्डिंग सीमा खत्म करनी चाहिए और इस व्यवस्था को कम-से-कम 10 वर्षों के लिए ठंडे बस्ते में डाल देना चाहिए ताकि देश के भंडारण क्षेत्र में निजी निवेशकों का आकर्षण बढ़ाया जा सके। इसके अलावा राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक करके उन्हें खाद्यान्न पर राज्य स्तरीय कर कम करने का निर्देश देना चाहिए और यदि कोई राज्य अनाज पर 5 फीसदी से अधिक स्थानीय कर लगाता है, तो उस राज्य में सरकारी खरीद रोक देनी चाहिए।Ó उन्होंने कहा कि यदि सरकार अगले कुछ हफ्तों में कुछ कड़े कदम नहीं उठाती है तो गंभीर समस्या खड़ी हो सकती है क्योंकि 2013-14 में चावल भंडार भी बढऩे की उम्मीद है क्योंकि निर्यात कम हुआ है। (BS Hindi)

जिंस वायदा में होंगे मार्केट मेकर

प्रमुख जिंसों में सख्त दिशा निर्देशों के साथ अल्गो ट्रेडिंग की अनुमति देने के बाद कमोडिटी डेरिवेटिव बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) अब जिंसों के वायदा कारोबार में मार्केट मेकिंग को हरी झंडी देने की तैयारी में है। कोटक इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज की तरफ से मुंबई में आयोजित वैश्विक वार्षिक निवेशक सम्मेलन में एक सवाल के जवाब में एफएमसी के अध्यक्ष रमेश अभिषेक ने कहा, 'हम कारोबार बढ़ाने के लिए आगामी महीनों में मार्केट मेकिंग की इजाजात दे सकते हैं।Ó मार्केट मेकर्स आम तौर पर दो तरह के भाव बताते हैं, लिवाली और बिकवाली के लिए। ऐसे में यदि बेचने वाले सक्रिय रहते हैं तो ट्रेडरों को सौदे काटने और खरीदने वालों के हावी रहने की स्थिति में ताजा बुकिंग के मौके मिलते हैं। मार्केट मेकर्स को कुछ खास खंडों में कारोबार पैदा करने के लिए एक्सचेंज परोक्ष रुप से भुगतान करते हैं। जून 2011 में पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एक्सचेंजों को गैर-लिक्विड (जिन्हें आसानी से नहीं बेचा जा सकता) प्रतिभूतियों में कारोबार पैदा करने की सुविधा दी थी। एफएमसी के तत्कालीन सदस्य डी एस कलमकार के नेतृत्व वाली समिति ने एक्सचेंजों के साथ परामर्श करने के बाद दो तरह के अनुबंधों में मार्केट मेकर्स को अनुमति देने की सिफारिश की थी। किसी भी एक्सचेंज प्लैटफॉर्म पर एक लॉट ऐसे मौजूदा अनुबंधों का हो जिन्हें आसानी से नकदी में तब्दील नहीं किया जा सकता और उसके बाद ऐसे अनुबंधों का लॉट हो जिनकी लॉन्चिंग की जानी हो। इस कदम से नए और छोटे एक्सचेंजों को जिंस डेरिवेटिव में कारोबार पैदा करने में मदद मिलेगी। बहरहाल, नए एक्सचेंजों ने एफएमसी से सभी लिक्विड और गैर-लिक्विड अनुबंधों में मार्केट मेकिंग की अनुमाति देने की गुजारिश की है, ताकि उन्हें प्रतिस्पद्र्घा का समान मौका मिल सके। एक एक्सचेंज के वरिष्ठï अधिकारी ने कहा कि नियामक को नए एक्सचेंजों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए, सेबी की तरह नए एवं पुराने शेयरों और एक्सचेंजों के बीच कोई अंतर नहीं रखना चाहिए। अमेरिका जैसे विकसित बाजारों में मार्केट मेकर्स ने कॉमेक्स, नैस्डैक और सीएमई पर सक्रिय अनुबंधों में तगड़े तरीके से वॉल्यूम बढ़ाया है। लंदन मेटल एक्सचेंज और चीन में शांघाई फ्यूचर एक्सचेंज ने भी यही तरीका अपनाया है। भारतीय एक्सचेंज फिलहाल बाजार आधारित प्रणाली अपनाते हैं, जिसमें शेयरों की कीमतें बाजार रुझान के हिसाब से तय होती हैं। हालांकि कमोडिटी एक्सचेंजों में कोट-आधारित प्रणाली काम करती है, जिसमें ट्रेडरों को केवल एक तरह का कोट उपलब्ध कराया जाता है, बेचने के लिए या फिर खरीदने के लिए। आम तौर पर तकरीबन आधे दर्जन सक्रिय और सबसे प्रभावी ट्रेडरों की पहचान मार्केट मेकर्स के रूप में की जाती है, जो गैर-लिक्विड अनुबंधों में वॉल्यूम बढ़ाते हैं। एफएमसी ने वैसे 1 जनवरी से अति सूक्ष्म और छोटे अनुबंधों में अल्गो ट्रेडिंग बंद कर दी है, लेकिन प्रमुख जिंसों में तकनीकी तौर पर इस उन्नत ट्रेडिंग के लिए नियम-कायदे बनाए गए हैं। अभिषेक ने कहा कि ये तमाम प्रयास जिंस वायदा बाजार में निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए हैं। (BS Hindi)

गैर-बासमती चावल का निर्यात 92 लाख टन के पार

गैर-बासमती चावल का निर्यात बढ़कर 92.84 लाख टन हो गया है। वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार अप्रैल से दिसंबर 2012 के दौरान गैर-बासमती चावल के निर्यात में मूल्य के आधार पर 150.62 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल 10,931.72 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गैर-बासमती चावल में निर्यात मांग अच्छी बनी हुई है। सरकार ने 9 सितंबर 2011 को गैर-बासमती चावल के निर्यात पर लगी रोक को हटाया था। अत: 9 सितंबर 2011 से 24 जनवरी 2013 तक 92.84 लाख टन गैर-बासमती चावल का निर्यात हो चुका है। वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार मूल्य के आधार पर अप्रैल से दिसंबर 2012 के दौरान गैर-बासमती चावल का निर्यात बढ़कर 10,931.72 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 4,361.78 करोड़ रुपये का हुआ था। बासमती चावल का निर्यात मूल्य के आधार पर अप्रैल से दिसंबर 2012 के दौरान 18 फीसदी बढ़कर 12,929.71 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि अप्रैल से दिसंबर 2011 के दौरान 10,927.70 करोड़ रुपये का बासमती चावल का निर्यात हुआ था। खुरानिया एग्रो के प्रबंधक रामविलास खुरानिया ने बताया कि निर्यातकों की मांग बढऩे से घरेलू बाजार में गैर-बासमती चावल की कीमतों में पिछले दो-तीन महीनों में 150 से 250 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आई है। दिल्ली बाजार में परमल रॉ चावल का दाम बढ़कर 2,150-2,250 रुपये, परमल वंड चावल का दाम 2,425-2,475 रुपये, सेला का दाम 3,500 से 3,600 रुपये और आईआर-8 चावल का दाम 1,750-1,800 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। (Business Bhaskar)

पैदावार गिरने पर भी केस्टर में नरमी

चालू सीजन में केस्टर की पैदावार 7.3 फीसदी घटकर कुल उत्पादन 15 लाख टन होने का अनुमान है लेकिन उत्पादक राज्यों में 4 से 5 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है जिससे कुल उपलब्धता करीब 19-20 लाख टन की बैठेगी। जनवरी महीने में केस्टर तेल के निर्यात में करीब 10 फीसदी की कमी आई है जबकि मार्च-अप्रैल में दैनिक आवक बढ़ जायेगी। ऐसे में मौजूदा कीमतों में 200-300 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। एस सी केमिकल के प्रबंधक कुशल राज पारिख ने बताया कि चालू सीजन में केस्टर सीड की पैदावार घटकर 15 लाख टन होने का अनुमान है लेकिन उत्पादक राज्यों में 4 से 5 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है। ऐसे में कुल पैदावार करीब 20 लाख टन की बैठेगी। मार्च-अप्रैल में उत्पादक राज्यों की मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक बढऩे की संभावना है जिससे मौजूदा कीमतों में गिरावट बन सकती है। सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार 2011-12 में केस्टर सीड का उत्पादन 16.19 लाख टन होने का हुआ था। पारिख ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में केस्टर तेल का भाव 740-750 डॉलर प्रति टन रह गया। जुलाई-अगस्त 2012 में इसका भाव 1,600-1,620 डॉलर प्रति के उच्च स्तर पर पहुंच गया था। उन्होंने बताया कि जनवरी में केस्टर तेल के निर्यात में भी कमी आई है लेकिन फरवरी में निर्यात बढऩे की संभावना है। एसईए के अनुसार जनवरी में केस्टर तेल का निर्यात घटकर 20,909 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल जनवरी में 23,232 टन का निर्यात हुआ था। वित्त वर्ष 2011-12 में केस्टर तेल का कुल निर्यात 404,489 का हुआ था। नेमस्त ट्रेड प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंधक प्रकाश भाई ने बताया कि उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक 50,000- 60,000 बोरी (एक बोरी-75 किलो) की हो रही है जबकि मार्च-अप्रैल में दैनिक आवक बढ़कर 80,000-90,000 हजार बोरी की हो जायेगी। उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड का दाम 3,500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है जबकि केस्टर तेल का भाव 748 रुपये प्रति 10 किलो है। दैनिक आवक बढऩे पर अप्रैल-मई में केस्टर सीड की मौजूदा कीमतों में मंदा ही आने की संभावना है। एनसीडीईएक्स पर मार्च महीने के वायदा अनुबंध में केस्टर सीड की कीमतों में 15 जनवरी से अभी तक 6.4 फीसदी की गिरावट आई है। मार्च महीने के वायदा अनुबंध का भाव 15 जनवरी को 3,832 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि बुधवार को भाव घटकर 3,586 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। (Business Bhaskar....R S Rana)

Gold dips below Rs 30k mark;down by Rs 480 on weak global cues

New Delhi, Feb 21. Gold prices today fell below the Rs 30,000-level for the first time in seven months here due to hectic selling by stockists triggered by a global meltdown. The precious metal tumbled by Rs 480 to Rs 29,720 per 10 grams, a level last seen on July 21, 2012. Gold had lost Rs 215 in last two days. Silver followed suit and dropped by Rs 1,250 to Rs 54,550 per kg, in continuation to a loss of Rs 1,050 in last two sessions, on poor offtake by industrial units and coin makers. Bullion merchants said selling pressure gathered momentum as gold slumping to the lowest level since July in overseas markets, after minutes from a Federal Reserve meeting showed a debate over the risks and benefits of more stimulus. In Singapore, gold fell by 0.6 per cent to USD 1,555.55 an ounce, the lowest since July 12 and silver by 0.3 per cent to USD 28.47 an ounce in Singapore. In addition, sluggish domestic demand on ending of marriage season and investors selling to pay losses in equity markets, further dampened the sentiment, they said. A weak signals from futures markets on speculators reducing their exposure to bullion on falling commodities and lower Indian rupee also influenced the trading sentiment. On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent purity tumbled by Rs 480 each to Rs 29,720 and Rs 29,520 per 10 grams, respectively. Sovereigns fell by Rs 150 to Rs 25,150 per piece of eight grams. Similarly, silver ready plunged by Rs 1,250 to Rs 54,550 per kg and weekly-based delivery by Rs 1,800 to Rs 53,300 per kg. Silver coins also dropped by Rs 1,000 to Rs 78,000 for buying and Rs 79,000 for selling of 100 pieces.

20 फ़रवरी 2013

12 Greenpeace activists held for trespassing into FCI godown

New Delhi, Feb 20. Twelve Greenpeace India activists were today detained for allegedly trespassing into an FCI godown here, police said today. Greenpeace activists were protesting against the position taken by Agriculture Minister Sharad Pawar, who has been in support of research in genetically modified (GM) crops. "12 persons were taken into custody and booked under Section 448/34 of the IPC, which deals with trespass. All the 12 are being released on bail," a senior police official said. The activists trespassed into a Food Corporation of India (FCI) godown located at Mayapuri area, he said. Condemning the detention, social activist Aruna Roy said in a statement issued by the Greenpeace India the detention was one more in a series of actions taken to suppress dissent. "They were in fact protesting against the Minister's attempt to trivialise the issue of food security by asserting that the controversial GM technology would, in fact, offer security of food production," she said. Greenpeace India also sought intervention of the Envirnoment Minister so that the Agriculture Ministry does not mislead the debate on food security. FCI is a nodal agency that procures, stores and distributes foodgrains through ration shops on behalf of the government.

Gold, silver fall on sluggish demand

New Delhi, Feb 20. Both the precious metals, gold and silver, fell for the second straight session today on sustained selling by stockists on sluggish demand amid a weakening global trend. While gold fell further by Rs 200 to Rs 30,200 per 10 grams, silver by Rs 900 to Rs 55,800 per kg on reduced offtake by jewellers and industrial units. Traders said sustained selling by stockists on sluggish demand mainly kept pressure on both gold and silver prices. They said a weak global trend on concern that the Federal Reserve will signal plans to end its third round of stimulus measures, easing demand for the precious metal as an inflation hedge also influenced the sentiment. Gold in New York, which normally sets the price trend on the domestic front, fell by USD 5.20 to USD 1,604.60 an ounce and silver by 1.80 per cent to USD 29.44 an ounce last night. On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent purity fell further by Rs 200 each to Rs 30,200 and Rs 30,000 per 10 grams, respectively. It had shed Rs 15 in yesterday. Sovereigns followed suit and declined by Rs 100 to Rs 25,200 per piece of eight grams. In a similar fashion, silver ready dropped by Rs 900 to Rs 55,800 per kg and weekly-based delivery by Rs 1140 to Rs 55,100 per kg. The white metal had lost Rs 150 in the previous session. However, silver coins continued to be asked around previous level of Rs 79,000 for buying and Rs 80,000 for selling of 100 pieces.

Gold trades near 6-mth low on signs of economic improvement

London, Feb 20. Gold today traded little changed near a six-month low as investors weighed signs of economic improvement against stronger physical bullion demand, before the US central bank releases minutes of its latest meeting. The gold was little changed at USD 1,605.29 an ounce. The five-day drop through yesterday was the longest run since January 2011, and prices reached USD 1,598.23 on February 15, the lowest since August 15. However, silver gained 0.4 per cent to USD 29.57 an ounce. The Federal Reserve will publish minutes of its January 29-30 policy meeting today and Labor Department data on producer prices today and on consumer costs tomorrow will show inflation is in check. Global equities reached the highest since June 2008 today. There's "strong" physical gold-buying interest from China, Australia and New Zealand Banking Group said.

अब उतरने लगे प्याज के छिल्के

हालिया हफ्तों के दौरान तगड़ी उछाल के बाद अब थोक बाजार में प्याज के भाव में नरमी के संकेत मिलने लगे हैं। महाराष्टï्र के लासलगांव में सोमवार को प्याज का भाव औसतन 1,175 रुपये प्रति क्विंटल रहा, जो 30 जनवरी को 2,150 रुपये प्रति क्विंटल था। इस जिंस का भाव अब लगभग उसी स्तर पर आ गया है, जिस पर जनवरी के शुरुआती सप्ताह में था। पिछले महीने की शुरुआत में प्याज करीब 1,100 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था। पिछले महीने प्याज की कीमतों में उछाल बाजार में नई फसल की आवक में देरी की वजह से आई थी। ऐसी खबरें भी आईं थी कि कुछ प्याज उत्पादक इलाकों की फसल को क्षति पहुंची है। लेकिन अब लगता है कि हालात सामान्य होते जा रहे हैं और प्याज की ऊंची कीमतें मांग में सुस्ती की वजह बन गई हैं। नासिक के एक प्याज व्यापारी ने कहा, 'घरेलू व्यापारियों और निर्यातकों के कम उठाव की वजह से पिछले हफ्ते प्याज की कीमतों में गिरावट आई। महाराष्टï्र और गुजरात के ज्यादातर बाजारों में इस जिंस की आवक भी बढ़ी है।Ó इस साल 31 जनवरी को देश के थोक बाजार में प्याज का भाव 2,331 रुपये प्रति क्विंटल के उच्च स्तर पर चला गया था। इस कारण उपभोक्ताओं के बीच हंगामा मच गया था। बाजार के व्यापारियों के मुताबिक आवक बढऩे और मांग घटने से प्याज के भावों में गिरावट का रुझान है। लासलगांव बाजार में मंगलवार को प्याज की आवक 15,775 क्विंटल रही, जबकि गुजरात के महुआ बाजार में जिंस की आवक बढ़कर 46,084 क्विंटल तक पहुंच गई। महुआ बाजार में प्याज का भाव 1,050 रुपये प्रति क्विंटल रहा, जो जनवरी के आखिरी सप्ताह में 1,800 रुपये प्रति क्विंटल के उच्च स्तर से करीब 700-800 रुपये कम है। महाराष्टï्र एपीएमसी के सूत्रों के मुताबिक इस रबी मौसम के दौरान प्याज के रकबे में 10 से 15 फीसदी कमी की आशंका है। वर्ष 2011-12 में इस जिंस का उत्पादन 56.3 लाख टन रहा था, जो इस साल 45 लाख टन रहने की संभावना है, यानी उत्पादन करीब 20 फीसदी कम रह सकता है। महाराष्टï्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड (एमएसएएमबी) नासिक के एक अधिकारी ने कहा, 'प्याज उत्पादन के मामले में पिछला साल खास था। लेकिन इस साल कम खेती की वजह से महाराष्टï्र में इस जिंस का उत्पादन लगभग 45 लाख टन रहेगा, जो पिछले तीन वर्षों के औसत के करीब है।Ó राष्टï्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) ने फसल उत्पादन संबंधी शुरुआती अनुमान में कहा था कि वर्ष 2012-13 के दौरान 1.66 करोड़ टन प्याज की पैदावार होगी, जबकि पिछले साल 1.75 करोड़ टन प्याज का उत्पादन हुआ था। इस जिंस की ज्यादातर पैदावार घरेलू बाजार में खप गई थी, जबकि 8-10 फीसदी का निर्यात किया गया था। नेफेड की शाखा एनएचआरडीएफ के निदेशक आर पी गुप्ता ने कहा, 'शुरुआती अनुमान दर्शाते हैं कि इस साल प्याज की पैदावार कम रहेगी। देश के कुछ हिस्सों में सूखे जैसी स्थिति के कारण रबी मौसम में पैदा होने वाले प्याज की फसल कमजोर रहेगी। हमारा मानना है कि प्याज की पैदावार करीब 1.66 करोड़ टन रहेगी। फिर भी, कुछ इलाकों में इसकी फसल अब भी लगाई जा रही है, इसलिए इसे उत्पादन का अंतिम आंकड़ा नहीं माना जा सकता।Ó गुजरात के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वहां प्याज के रकबे में 71 फीसदी ज्यादा गिरावट आई है। इस साल रबी मौसम में प्याज की खेती केवल 17,500 हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल इस फसल का रकबा 61,300 हेक्टेयर रहा था। इस साल महाराष्टï्र और कर्नाटक में भी फसल का रकबा घटा है। महाराष्टï्र में पिछले साल 3,82,000 हेक्टेयर में प्याज की खेती की गई थी, जबकि कर्नाटक में इस फसल का रकबा 1,77,200 हेक्टेयर रहा था। (BS Hindi)

शुल्क छूट दे सरकार: टायर उद्योग

मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान टायर उद्योग की तरक्की पर इनपुट लागत के भारी दबाव का तगड़ा असर हुआ है टायर उद्योग ने ऐसे कच्चे माल के आयात पर लगने वाले शुल्क में पूरी छूट की मांग उठाई है, जिनका उत्पादन घरेलू स्तर पर नहीं होता। इसके साथ-साथ उद्योग ने ऐसे कच्चे माल पर आयात शुल्क में कटौती की भी गुजारिश की है, जिसका घरेलू उत्पादन मांग के मुकाबले बहुत कम है। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटमा) के नवनिर्वाचित अध्यक्ष अनंत गोयनका ने आम बजट से पहले वित्त मंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि कच्चे माल के आयात पर भारी शुल्क की वजह से यह उद्योग प्रतिस्पद्र्घा में पिछड़ रहा है। यह सब ऐसे समय हो रहा है, जब अर्थव्यवस्था के साथ-साथ वाहन उद्योग में मंदी की वजह से टायर उद्योग चुनौतीपूर्ण माहौल का सामना कर रहा है। टायर उद्योग कच्चे माल के प्रति संवेदनशील होता है और कुल कारोबार का 70 फीसदी कच्चे माल में खप जाता है। गोयनका ने कहा कि इस वित्त वर्ष के दौरान टायर उद्योग की तरक्की पर इनपुट लागत के दबाव का तगड़ा असर हुआ है। प्राकृतिक रबर की कीमतों में हालिया गिरावट से थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन दूसरे कच्चे माल की लागत बढऩा वास्तविक खतरा है। नायलॉन टायर कॉर्ड, रबर केमिकल्स, स्टील टायर कॉर्ड, पॉलिएस्टर टायर कॉर्ड और पॉली ब्यूटाडाइन रबर (पीबीआर) जैसे प्रमुख कच्चे माल का घरेलू उत्पादन खपत के मुकाबले 38 से लेकर 70 फीसदी तक कम है। घरेलू बाजार में इन चीजों की भारी कमी होते हुए भी इनमें से कई के आयात पर 10 फीसदी शुल्क लगता है। एसोसिएशन ने इस तरह के कच्चे माल पर आयात शुल्क आधा करने का अनुरोध किया है। जिन कच्चे माल का घरेलू उत्पादन बिलकुल नहीं होता, उनमें स्टिरीन ब्यूटाडाइन रबर (टायर ग्रेड) नाम का कृत्रिम उत्पाद, ब्यूटाइल रबर और एथिलीन प्रॉपीलीन डाइन मोनोमर (ईपीडीएम) रबर शामिल है। एसोसिएशन ने इस तरह के कच्चे माल के आयात पर शुल्क छूट की मांग उठाई है। एटमा का कहना है कि भारत के मुकाबले चीन में टायर उद्योग के ज्यादातर कच्चे माल के आयात पर बहुत कम शुल्क लगता है। इस वजह से चीनी टायर कंपनियां इस क्षेत्र की भारतीय कंपनियों की तुलना में ज्यादा प्रतिस्पद्र्घी होती हैं, खास तौर पर समान विदेशी बाजारों में। (BS Hindi)

अगले सीजन में 7.5 लाख टन गेहूं निर्यात के सौदे

वैश्विक बाजार में ऊंचे भाव का फायदा उठाने के लिए निर्यातक नए सीजन में गेहूं निर्यात के बड़े सौदे कर रहे हैं। कारोबारी सूत्रों के अनुसार अगले सीजन के लिए निर्यातक करीब 7.5 लाख टन गेहूं निर्यात के सौदे कर चुके हैं। नए सीजन के गेहूं की कटाई अगले महीने मार्च में शुरू हो जाएगी। प्राइवेट ट्रेडर नए सीजन में करीब 5 से 7.5 लाख टन तक गेहूं निर्यात के सौदे कर चुके हैं। ये सौदे 295-300 डॉलर प्रति टन (एफओबी) के भाव पर हुए हैं। प्राइवेट ट्रेडर नए सीजन के सौदे करने में मशगूल है जबकि सरकार अपने गोदाम खाली करने के लिए उन्हें निर्यात की अनुमति देने पर अभी विचार ही कर रही है। सरकार गोदाम खाली करने के लिए निर्यात के लिए व्यापारियों को गेहूं देने पर विचार कर रही है। व्यापारियों ने गेहूं निर्यात के लिए ये सौदे अप्रैल से जून के लिए किए हैं। एक सूत्र के अनुसार 80 फीसदी सौदे दक्षिणी कोरिया, ताईवान, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम को गेहूं सप्लाई के लिए हुए हैं। वैश्विक स्तर पर फीड ग्रेड के गेहूं का करीब 300-400 लाख टन का कारोबार होता है जबकि कुल गेहूं कारोबार 1400 लाख टन के करीब है। इन निर्यात में सौदे से जुड़े एक अन्य सूत्र के अनुसार अभी भारतीय गेहूं निर्यात करने के लिए सुनहरा मौका है। अंतरराष्ट्रीय गेहूं बाजार में जून व जुलाई में बदलाव आएगा, जब काला सागर क्षेत्र का गेहूं पककर तैयार होगा। इस समय फीड ग्रेड गेहूं के सप्लायरों में भारत अकेला है। बेहतर क्वालिटी का ऑस्ट्रेलिया का गेहूं करीब 50 डॉलर प्रति टन महंगा है। काला सागर क्षेत्र से सप्लाई शुरू होने के बाद भारतीय निर्यातकों को गेहूं के दाम घटाने पड़ेंगे। (Business bhaskar) >

देशभर में 440 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद

राज्यों की भूमिका मध्य प्रदेश में गेहूं खरीद 53 फीसदी बढ़कर 130 लाख टन संभव 150 रुपये प्रति क्विंटल बोसन देने से बंपर खरीद होने के आसार पंजाब में खरीद 128.34 लाख टन से बढ़कर 140 लाख टन होगी हरियाणा में खरीद घटकर 78 लाख टन होने का अनुमान नए सीजन में 15% ज्यादा गेहूं की खरीद का अनुमान रबी विपणन सीजन 2013-14 में गेहूं की सरकारी खरीद में 15.3 फीसदी का इजाफा होने का अनुमान है। खाद्य मंत्रालय के अनुसार पहली अप्रैल से शुरू होने वाले रबी विपणन सीजन में 440.06 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य है। हालांकि केंद्रीय पूल में खाद्यान्न के मौजूदा स्टॉक और भंडारण की स्थिति को देखते हुए समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने वाले गेहूं के भंडारण के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार रबी विपणन सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 440.06 लाख टन गेहूं की खरीद होने का अनुमान है जो पिछले विपणन सीजन के 381.48 लाख टन से 15.3 फीसदी ज्यादा है। गेहूं की खरीद में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी मध्य प्रदेश में 53 फीसदी होने की संभावना है। विपणन सीजन 2012-13 में मध्य प्रदेश से 84.93 लाख टन गेहूं समर्थन मूल्य पर खरीदा गया था जबकि नए विपणन सीजन में खरीद 130 लाख टन की होने का अनुमान है। मध्य प्रदेश सरकार रबी विपणन सीजन 2013-14 में गेहूं की खरीद पर किसानों को 150 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस देगी जिससे गेहूं की खरीद में भारी बढ़ोतरी की संभावना है। केंद्र सरकार ने रबी विपणन सीजन 2013-14 के लिए गेहूं का एमएसपी 1,350 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि मध्य प्रदेश के गेहूं किसानों से 1,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद की जायेगी। पहली अप्रैल से शुरू होने वाले रबी विपणन सीजन में पंजाब में गेहूं की खरीद 128.34 लाख टन से बढ़कर 140 लाख टन, राजस्थान में 19.64 लाख टन से बढ़कर 25 लाख टन और बिहार से 7.72 लाख टन से बढ़कर 15 लाख टन होने का अनुमान है। गेहूं के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गेहूं की खरीद में मामूली कमी आकर 50 लाख टन होने का अनुमान है जबकि विपणन सीजन 2012-13 में 50.63 लाख टन की खरीद हुई थी। हरियाणा में खरीद पिछले साल के 86.65 लाख टन से घटकर 78 लाख टन होने का अनुमान है। केंद्रीय पूल में पहली फरवरी को 661.93 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूद है जिसमें 308.09 लाख टन गेहूं और 353.84 लाख टन चावल है। एफसीआई और राज्य सरकार की एजेंसियों को मिलाकर कुल खाद्यान्न भंडारण क्षमता 710 लाख टन है जबकि खरीफ चावल की खरीद पहले से जारी है। ऐसे में पहली अप्रैल से शुरू होने वाले रबी विपणन सीजन में समर्थन मूल्य पर खरीद जाने वाले गेहूं के भंडारण के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ेगी। (Business Bhaskar)

19 फ़रवरी 2013

Govt revises Food bill, sends to Law Min for vetting

New Delhi, Feb 19. Government has revised the Food bill and now proposes to give legal right to over 5 kg of foodgrains at Rs 1-3 per kg per month to about 70 per cent of the population as suggested by the Parliamentary panel, Food Minister K V Thomas said here today. A revised bill has been sent to the Law Ministry for vetting, after which it will be moved to the Cabinet, he said. In the original bill, introduced in December 2011 in the Lok Sabha, the government had proposed giving 7 kg of wheat (Rs 2/kg) and rice (Rs 3/kg) per month per person to 'priority households', while at least 3 kg of foodgrain at half of the government fixed support price was proposed for the 'general' households. "We have accepted most of the recommendations of the Parliamentary panel. The revised bill has been sent to the Law ministry for vetting. After we receive its comments, we will place the Bill before the Cabinet," Thomas told. The Minister said the government would not withdraw the existing bill and rather move amendments to incorporate changes as suggested by the panel and some states. "We have accepted panel's recommendation to do away with priority and general classifications of beneficiaries and provide uniform allocation of 5 kg foodgrains (per person) at fixed rates to 67-70 per cent of the country's population," Thomas said. The Minister said that 2.43 crore poorest of poor families under the Anthodaya Anna Yojana (AAY) would continue to get supply of 35 kg foodgrains per month per family. According to sources, the Food ministry has revised the Bill after consultation with UPA chairperson Sonia Gandhi, who has strongly favoured higher allocation for AAY people. The Food ministry is working closely with the Planning Commission to finalise the criteria for excluding 30-33 percent of population from the benefits of the Bill, he added. "The Planning Commission's formula for exclusion of population will be given to the states. On that basis, states will be allowed to include or exclude beneficiaries," Thomas said, adding the Centre has taken into account the state governments' views in the revised Bill.

Wheat procurement may go up by 15% to touch record 44 mn tonne

New Delhi, Feb 19 The government's wheat purchase is expected to touch 44 million tonne in the 2013-14 marketing year starting April, surpassing last year's record of 38.1 million tonne, Food Minister K V Thomas said today. This year, wheat procurement is likely to increase by over 15 per cent despite marginal fall in output by 2.6 million tonne to 92.3 million tonne. Procurement of wheat, a major rabi crop, begins from April and continues till June. "We are targeting to procure 44 million tonne of wheat this year, about 5.9 million tonne higher than the last year," Thomas told. These estimates were finalised in a meeting of the State Food Secretaries yesterday, he added. Anticipating higher procurement, Thomas said the government is gearing up to buy wheat at the minimum support price (MSP) of Rs 1,350 per quintal from farmers by increasing purchase centres from Rs 10,000 to 12,000. In order to ensure immediate payments to farmers on delivery of wheat, the Minister said that the states have been asked to make available adequate funds for procurement agencies and farmers should be paid via cheque. In view of problem faced by some states regarding availability of packaging material during last year, states have been asked to ensure adequate availability in advance, he added.

Gold, silver down on sluggish demand

New Delhi, Feb 19. Both the precious metals, gold and silver, fell here today due to sluggish demand and reduced offtake by industrial units and coin makers. While gold fell by Rs 15 to Rs 30,400 per 10 grams, silver lost Rs 150 to Rs 56,700 per kg. Traders said sluggish demand from retailers mainly pulled down gold prices, while reduced offtake by industrial units and coin makers kept pressure on silver prices. Gold of 99.9 and 99.5 per cent purity declined by Rs 15 each to Rs 30,400 and Rs 30,200 per 10 grams, respectively. Sovereigns, however, held steady at Rs 25,300 per piece of eight grams. In line with a general weak trend, silver ready declined by Rs 150 to Rs 56,700 per kg and weekly-based delivery by Rs 160 to Rs 56,240 per kg. Silver coins held steady at Rs 79,000 for buying and Rs 80,000 for selling of 100 pieces.

खुदरा मांग से चमका सोना सोने का आयात कम करने के सरकारी उपाय विफल

सोने के प्रति खुदरा उपभोक्ताओं के तगड़े आकर्षण के चलते बढ़ते चालू खाता घाटे को रोकने के उद्देश्य से सोने का आयात थामने की सरकारी कोशिश अब तक विफल रही है। नतीजतन 2012 की चौथी तिमाही के दौरान देश में सोने की मांग अप्रत्याशित रूप से 41 फीसदी बढ़ गई। विश्व स्वर्ण परिषद (डब्ल्यूजीसी) के आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछली तिमाही के दौरान भारत में सोने की मांग 262 टन रही, जबकि एक साल पहले इसी तिमाही में यहां सोने की मांग 185.5 टन रही थी। सोने के आयात को हतोत्साहित करने के लिए सरकार की तरफ से शुल्क में चार गुनी बढ़ोतरी किए जाने के बावजूद कैलेंडर वर्ष 2012 में इस पीली धातु की आवक 12 फीसदी की मामूली गिरावट के साथ 864.2 टन रही, जबकि एक साल पहले 986.3 टन सोने का आयात हुआ था। श्री गणेश ज्वैलरी हाउस के प्रबंध निदेशक उमेश पारेख ने कहा, 'भारत में सोने की बड़ी मांग खुदरा और शहरी उपभोक्ताओं की तरफ से आती है। जहां शहरी लोग उसी अनुपात में सोने की खरीद बढ़ाते हैं, जिस अनुपात में उनकी आमदनी बढ़ती है, वहीं कृषि जिंसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएएपी) में लगातार इजाफे की वजह से ग्रामीणों के पास भी निवेश करने लायक अतिरिक्त नकदी आ गई है। चूंकि खाने पीने की चीजों और घर की व्यवस्था करने के बाद सोने में ही पैसा लगाया जाता है, इसलिए ग्रामीण आबादी के पास जो अतिरिक्त धन बचता है, उसका निवेश इस पीली धातु में किया जा रहा है।Ó जनवरी, 2011 में जब सोने पर आयात शुल्क 1 फीसदी से भी कम था, उस दौरान सरकार को लगा था कि कर में बढ़ोतरी करने से यह बहुमूल्य धातु महंगी हो जाएगी जिसकी वजह से सोने के प्रति उपभोक्ताओं का आकर्षण कम हो जाएगा। यही सोचकर सरकार ने 17 जनवरी, 2011 को सोने पर आयात शुल्क दोगुना यानी 2 फीसदी कर दिया, जिसे बाद में बढ़ाकर 4 फीसदी कर दिया गया। बहरहाल, पारेख ने कहा, 'देश में सोने की कुल मांग में खुदरा उपभोक्ताओं की भूमिका तकरीबन 75 फीसदी है और सोने पर आयात शुल्क बढऩे के बावजूद उनके रुझान में कोई बदलाव नहीं आया है।Ó खुदरा उपभोक्ता शादी और इस तरह के अन्य मौकों पर अपने निकट संबंधियों को उपहार में देने के लिए सोने के जेवर खरीदते हैं। विशेष रूप से शादी के मौके पर बच्चों को उपहार में सोने के जेवरात देना जरूरी माना जाता है। इसके अलावा युवा और उत्साही निवेशक भविष्य की सुरक्षा के लिए सोने के सिक्के खरीदते हैं। जाहिरा तौर पर वर्ष 2012 की चौथी तिमाही के दौरान देश में सोने से बने जेवरों की मांग 34.8 फीसदी बढ़कर 153 टन रही, जबकि वर्ष 2011 की इसी तिमाही में सोने की मांग 113.5 टन रही थी। इसी अवधि में हालांकि निवेश के लिए सोने की मांग भी 51 फीसदी से अधिक बढ़कर 108.9 टन रही, जबकि एक साल पहले इसी अवधि में निवेश के लिए 72 टन सोने की मांग रही थी। देश के सबसे बड़े ब्रांडेड जेवर निर्माता एवं खुदरा कारोबार करने वाली कंपनी गीतांजलि ग्रुप के प्रबंध निदेशक मेहुल चोकसी ने कहा, 'भारतीय उपभोक्ता मुद्रास्फीति बढऩे से सुरक्षा के लिए सोना खरीदते हैं। चूंकि औसत भारतीय परिवार के लिए महंगाई बड़ी समस्या है, लिहाजा वे सोने में पैसा लगाते हैं।Ó चोकसी के मुताबिक देश में सोने की तगड़ी मांग बनी रहेगी क्योंकि शादी जैसे मौकों के लिए इसकी खरीदारी अनिवार्य होती है। (BS Hindi)

सीटीटी से सिमटेगा जिंस वायदा

शेयर बाजारों में लेनदेन पर कर लगाने से घरेलू बाजार का कारोबार विदेशी बाजारों में चला गया है। प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) लगने के बाद सिंगापुर के एसजीएक्स में सूचीबद्घ निफ्टी वायदा के कारोबार में कई गुनी वृद्घि हुई, जबकि नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में इसका कारोबार काफी गिर गया। इससे सरकार को साफ संकेत मिलना चाहिए जो कथित तौर पर जिंसों के लेनदेन पर सीटीटी लगाने का मन बना रही है। देश के शेयर बाजार प्रतिभागी एसटीटी की मुखालफत करते हुए इसे हटाने की मांग कर रहे हैं। वर्ष 2011-12 के दौरान एनएसई ने विदेशी एक्सचेंजों को निफ्टी में ट्रेडिंग का लाइसेंस देकर शुल्क के रूप में 8.19 करोड़ रुपये की कमाई की है। एक्सचेंज ने अपनी सालाना रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। इसका यह मतलब हुआ कि एनएसई ने घरेलू बाजार का कारोबार विदेशी बाजारों में स्थानांतरित होने से हुए घाटे की आंशिक भरपाई तो कर ही ली है। बहरहाल, सिंगापुर निफ्टी में कारोबारी मात्रा बढऩे की कुछ अन्य वजहें भी हैं। सिंगापुर का बाजार खुलने के साथ ही एसजीएक्स निफ्टी में कारोबार शुरू हो जाता है। इस कारण गैर-भारतीय टाइम जोन में कारोबार करने वाले विदेशी निवेशकों को कारोबार के लिए ज्यादा समय मिल जाता है। एसजीएक्स निफ्टी विदेशी निवेशकों (एफआईआई) को डॉलर-रुपये में कारोबार की सहूलियत भी देता है, जिसकी अनुमति भारतीय बाजार में नहीं है। एसजीएक्स निफ्टी के भाव डॉलर में होते हैं और निवेशकों को एसजीएक्स निफ्टी एवं भारत के निफ्टी में एक साथ पोजीशन लेने का मौका मिलता है, लिहाजा वे डॉलर-रुपये में सौदे कर सकते हैं क्योंकि निफ्टी का घरेलू ट्रेडिंग रुपये में होती है। इन वजहों से भी पिछले 5 वर्षों में एसजीएक्स निफ्टी का कारोबार दोगुना से ज्यादा बढ़ गया, जबकि इसी अवधि के दौरान भारत में ज्यादा लेनदेन कर की वजह से एनएसई पर निफ्टी का वायदा कारोबार दो तिहाई घट गया। सरकार ने डिलिवरी पर 0.125 फीसदी और इंट्राडे इक्विटी कारोबार पर 0.025 फीसदी एसटीटी लगाया है, जो वित्त वर्ष 2005-06 से लागू है। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के अध्यक्ष रमेश अभिषेक ने कहा, 'यदि सरकार जिंस वायदा के सौदों पर एसटीटी की तरह सीटीटी लगाती है, तो इस खंड का कारोबार अवैध बाजार या विदेशी बाजारों में चला जाएगा क्योंकि इस कर से सौदों और जोखिम घटाने (हेजिंग) की लागत बढ़ जाएगी।Ó व्यापारियों का मानना है कि मौजूदा सौदों के इतर जो कारोबार बढ़ रहा है, वह एसजीक्स की तरफ जाता जा रहा है, जहां 20 आधार अंक की मामूली दर से एसटीटी लगाया जाता है। भारत में हालांकि कुल लेनदेन शुल्क 0.469 फीसदी बैठता है, जिसका 26.64 फीसदी एसटीटी है। इस साल घरेलू जिंस वायदा बाजार का कारोबार हर हाल में मंदा रहा है। पिछले तीन वित्त वर्षों से यह कारोबार 50 फीसदी की दर से बढ़ा था, लेकिन मौजूदा वित्त वर्ष में अब तक का रोजाना कारोबार 4.23 फीसदी गिरा है। ऐसे में यदि सीटीटी लगाया जाता है तो कारोबार का आकार और घट जाएगा। आनंद राठी कमोडिटीज की कार्यकारी निदेशक प्रीति गुप्ता ने कहा, 'एसटीटी की वजह से भारत में जो इक्विटी वॉल्यूम का नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई होनी बाकी है क्योंकि एसजीएक्स निफ्टी जैसे विकल्प केवल एफआईआई के लिए हैं, जहां सौदों की लागत बहुत कम है।Ó बहरहाल, एफएमसी ने वित्त मंत्री से कमोडिटी पर सीटीटी न लगाने की गुजारिश की है क्योंकि फिलहाल यह बाजार परिपक्व नहीं हैं। अभिषेक ने कहा, 'हमारा रुख नहीं बदला है। देश का जिंस वायदा बाजार सीटीटी के लिए तैयार नहीं है।Ó लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई), न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज (नाइमेक्स), शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज (सीएमई) और बर्सा मलेशिया अपने-अपने प्लैटफॉर्म पर भारतीय कॉरपोरेट के हेजिंग बिजनेस को हड़पने के लिए ऐड़ी-चोटी एक कर रहे हैं। ऐसे में यदि सीटीटी लगाया जाता है कि इन विदेशी एक्सचेंजों का मकसद कामयाब हो जाएगा। (BS Hindi)

सोने के आयात पर शुल्क और बढऩे की संभावना

सरकार का रुख सोने का आयात किसी भी तरह घटाया जाए ड्यूटी बढ़ाकर आयात नियंत्रित करना प्रभावी उपाय सोने के आयात की सीमा भी तय होने के आसार सरकार आयातकों की संख्या में भी कर सकती है कटौती सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एमएमटीसी के अधिकारियों ने दिए संकेत अगले वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान करेंट एकाउंट डेफिसिट (सीएडी) पर नियंत्रण करने के लिए सरकार सोने के आयात पर शुल्क और बढ़ा सकती है या फिर सोने के आयात की सीमा तय कर सकती है। यह संकेत सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े सोना आयातक एमएमटीसी के शीर्ष अधिकारी ने दिया है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा सोना आयातक देश है। सोने के भारी आयात के चलते देश का सीएडी तेजी से बढ़ रहा है। चालू वित्त वर्ष 2012-13 में जुलाई-सितंबर तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के मुकाबले सीएडी 5.4 फीसदी तक पहुंच गया है। सरकार ने सोने के आयात पर अंकुश लगाने के लिए 21 जनवरी को शुल्क दो फीसदी बढ़ाकर 6 फीसदी कर दिया था। उसने यह भी कहा कि अगर अगले वित्त वर्ष 2013-14 के बजट की घोषणा के समय तक सोने के आयात में कमी नहीं आई तो वह आयातित सोने की सीमा तय कर सकती है या फिर सोना आयात करने के लिए अधिकृत कंपनियों की संख्या घटा सकती है। एमएमटीसी के अधिकार ने कहा कि हमारे पोर्टफोलियो में सोने का आयात घटने से हम चिंतित हैं। लेकिन सरकार ही सोने का आयात घटाना चाहती है। इस वित्त वर्ष में एमएमटीसी का सोना आयात घटकर करीब 30-40 फीसदी रहने का अनुमान है जबकि पिछले वित्त वर्ष में कंपनी ने कुल 160 लाख टन सोने का आयात किया था। बांबे बुलियन एसोसिएशन के अनुसार पिछले जनवरी माह में भारत का कुल सोना आयात बढ़कर 100 टन हो गया। पिछले 18 माह में सोने के आयात का यह रिकॉर्ड था। दरअसल आयात शुल्क बढऩे की संभावना के चलते हुए ज्वैलर्स ने स्टॉक करने के लिए बड़ी मात्रा में सोने की खरीद की। सोना आयात करने वाले एक प्राइवेट बैंक के डीलर ने कहा कि आयात शुल्क में और बढ़ोतरी होने की संभावना है। सोने को लेकर सरकार के रुख को देखते हुए चालू वर्ष 2013 के दौरान इसके मूल्य में करीब दो फीसदी की गिरावट आ चुकी है। एक कारोबारी ने कहा कि ड्यूटी बढऩे के बावजूद घरेलू बाजार में सोने के दाम घटे हैं क्योंकि विदेशी बाजार में भी नरमी रही। सरकार सोने के प्रति खरीदारों का आकर्षण खत्म करना चाहती है। (Business Bhaskar)

लेवी चीनी खत्म करने पर मंत्रालयों में बनी सहमति

फायदा - चीनी उद्योग को हर साल 3,000 करोड़ रुपये का लाभ मिलेगा बेचारा उपभोक्ता आम उपभोक्ता पर आर्थिक बोझ डालने पर बनी सहमति चीनी पर फिलहाल 71 पैसे प्रति किलो लगती है ड्यूटी ड्यूटी बढ़ाकर 1.50 रुपये प्रति किलो करने का प्रस्ताव उपभोक्ताओं के लिए खुले बाजार में चीनी महंगी होगी लेवी चीनी हटाकर उत्पादन शुल्क बढ़ाने के खाद्य मंत्रालय के प्रस्ताव पर कृषि मंत्रालय राजी : पवार शुगर उद्योग के डिकंट्रोल की तरफ एक कदम और आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने लेवी चीनी की बाध्यता समाप्त करने का फैसला किया है। लेवी चीनी समाप्त होने से पडऩे वाले आर्थिक बोझ की भरपाई एक्साइज डयूटी बढ़ाकर करने का प्रस्ताव है जिसका कृषि मंत्रालय भी समर्थन कर रहा है। लेकिन इससे खुले बाजार में चीनी की कीमत बढ़ेगी। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार ने लेवी चीनी से उद्योग को राहत देने के लिए आम उपभोक्ता पर बोझ डालने की तैयारी की है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की 84वीं सालाना आम बैठक के मौके पर केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने संवाददाताओं से कहा कि उद्योग से लेवी चीनी की बाध्यता समाप्त करने के खाद्य मंत्रालय के प्रस्ताव का हम समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि लेवी चीनी की भरपाई के लिए एक्साइज डयूटी को 0.71 रुपये प्रति किलो से बढ़ाकर 1.50 रुपये प्रति किलो करने का प्रस्ताव है। लेवी चीनी की खरीद भाव 19.04 रुपये प्रति किलो है जबकि पीडीएस में इसका आवंटन 13.50 रुपये प्रति किलो की दर से किया जाता है। चीनी मिलों को कुल उत्पादन का 10 फीसदी लेवी में देना अनिवार्य है। हर साल करीब 27 लाख टन चीनी की आवश्यकता लेवी में होती है। इसके समाप्त होने से उद्योग को करीब 3,000 करोड़ रुपये का फायदा होगा। लेकिन इतना ही वित्तीय भार आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा क्योंकि उन्हें चीनी के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। आगामी बजट में किसानों के ऋण माफी पर उन्होंने कहा कि इस बारे में उनकी वित्त मंत्री से कोई बात नहीं हुई है। महाराष्ट्र में सूखे पर उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में सूखे की स्थिति गंभीर है तथा पीने के पानी की भी समस्या है। इसके लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन किया है जिसकी रिपोर्ट आने के बाद ही सहायता राशि की घोषणा की जाएगी। प्राकृतिक संसाधनों में आ रही कमी के बीच कृषि मंत्री ने एक बार फिर जेनेटिकली मॉडीफाइड (जीएम) फसलों के परीक्षण का समर्थन किया और कहा कि वैज्ञानिकों को इस अधिकार से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस संबंध में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा गया है और विचार के लिए वैज्ञानिकों का एक दल भेजने के लिए कहा है। कुछ राज्यों ने उनके सुझाव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया जाहिर की है लेकिन बिहार ने इसका विरोध किया है। पवार ने कहा कि कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा में निवेश का स्तर बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। शहरीकरण से कृषि भूमि में कमी और जलस्तर में गिरावट की चुनौतियों के बावजूद देश की 1.2 अरब से ज्यादा आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि उत्पादकता बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों की असली प्रयोगशाला किसान के खेत हैं। दलहनी और तिलहनी फसलों का उत्पादन मांग के मुकाबले कम है इस पर और अधिक बल देने की जरूरत है (Business Bhaskar)

18 फ़रवरी 2013

चीनी उद्योग से अगले 15 दिनों में हटेगा नियंत्रण

नई दिल्ली - केंद्र सरकार 80,000 करोड़ रुपये के चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने के बारे में अगले 15 दिनों में फैसला कर लेगी। लेवी चीनी की बाध्यता के साथ ही खुले बाजार में बेची जाने वाली चीनी की मात्रा तय करने पर सरकार अपना नियंत्रण समाप्त कर सकती है। एसोचैम की ओर से यहां एक आयोजन में खाद्य एवं उपभोक्ता मामला राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के वी थॉमस ने कहा कि इस वर्ष चीनी उत्पादन की स्थिति बेहतर है। सरकार रंगराजन समिति की सिफारिशों पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रही है। मेरा मानना है कि अगले पंद्रह दिनों में हम लेवी चीनी, खुले बाजार में बेचे जाने वाले कोटे और अन्य मसलों के बारे में कोई फैसला करने में सक्षम होंगे। पिछले वर्ष अक्टूबर महीने में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन की अध्यक्षता में गठित समिति ने लेवी चीनी और कोटे सिस्टम को तुरंत समाप्त करने की सिफारिश की थी। बाकी नियंत्रणों को भी समाप्त करने की सिफारिश की गई थी। खाद्य मंत्रालय रंगराजन समिति की सिफारिशों पर विभिन्न मंत्रालयों के दृष्टिकोण से अवगत होना चाहता है। (Business Bhaskar)

चमकता सोना, रिटर्र्न सलोना

गांव हो या शहर, देश में कम ही लोग ऐसे होंगे जो महज बेचने के मकसद से सोना खरीदते होंगे। यह कहना है एक वित्तीय कंपनी के प्रमुख का जो देश भर में सोना बेचती है। इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि विश्व में सबसे अधिक सोना भारत में ही है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार वर्ष 2011 में भारत में 18,000 टन सोना था। विशेषज्ञों के अनुसार अगर मंदिरों और निजी लॉकरों में रखे निष्क्रिय सोने को भी शामिल किया जाए तो यह आंक ड़ा काफी बड़ा हो जाएगा। आखिर इस पीली धातु के प्रति लोगों के आकर्षण का कारण क्या है? किसी के लिए इसकी आभूषण के लिहाज से कीमत है। मगर ज्यादातर परिवारों के लिए यह एक पारिवारिक विरासत है जहां एक पीढ़ी दूसरी को सोना सौंपती है। शादी या किसी भी सामाजिक समारोह में सोना उपहार में, भले ही कम मात्रा में ही सही, देने का चलन है। दूसरी तरफ सोना गिरवी रखना या इसे बेचना अशुभ माना जाता है। बाजार में तमाम तरह की समस्याओं के बावजूद सोने की चमक बढ़ती जा रही है। अगर आप आभूषण बनाने के लिए सोना खरीद रहे हैं तो उसकी गढ़ाई पर खर्च आता है। कई मामलों में तो यह 10-15 प्रतिशत तक हो जाता है। बेचते समय इस गढ़ाई का पैसा नहीं मिलता। बैंक सोना बेच तो सकते हैं लेकिन इसे वापस खरीद नहीं सकते। अगर कोई बैंक या किसी सुनार से सोने का सिक्का खरीदता है तो शायद ही दूसरा सुनार इसे बाजार मूल्य पर खरीदेगा। आम तौर पर इसके 5 से 10 प्रतिशत कम पैसे मिलते हैं। इसके अलावा दीर्घावधि पूंजीगत कर लाभ से बचने के लिए सोना तीन साल तक अपने पास रखना होता है। हालांकि अगर आप गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में निवेश करते हैं तो एक साल बाद ही आपको दीर्घावधि पूंजीगत कर लाभ का फायदा मिल सकता है। इसके विपरीत विकसित देशों में सोना हमेशा निवेश का एक साधन रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की सोने पर गठित समिति के अध्यक्ष यू बी राव कहते हैं, 'आभूषण या गहने के रूप में सोना अपेक्षाकृत कम कैरेट का होता है। जिनके पास निवेश के लिए सोना होता है, वह अधिक कैरेट वाला होता है। Ó निवेश सलाहकार गुल टेकचंदानी शहरी निवेशकों में सोने के बढ़ते आकर्षण का कारण बताते हैं। वह कहते हैं, 'महंगाई की ऊंची दर और रुपये में गिरावट के चलते सोना सुरक्षित निवेश का साधन बन गया है, खासकर उन अमीर निवेशकों के लिए जिनकी आय 10 लाख डॉलर या 5 करोड़ रुपये से अधिक है। लेकिन अब महंगाई घटना शुरू हो गई है और रुपया 58 के स्तर से सुधरकर 53-54 के स्तर तक आ गया है, लिहाजा अब यह उतना अर्थपूर्ण नहीं रह गया है।Ó टेकचंदानी के अनुसार ज्यादातर निवेशक सोने को लेकर आक्रामक थे क्योंकि पिछले नौ साल में सोने ने शानदार प्रतिफल दिया है। 2000 के बाद से भारत में सोने ने 16 प्रतिशत प्रतिफल दिया है जबकि इसकी तुलना में सेंसेक्स ने 11 फीसदी ही प्रतिफल दिया है। वर्ष 2012 में इसने महज 10 फीसदी रिटर्न दिया जबकि इसके मुकाबले बैंक जमाओं और शेयरों ने बेहतर रिटर्न दिया है। जानकारों की नजर में भारत में करदाताओं की संख्या कम होना भी एक बड़ा मसला है। दूसरे सलाहकार ने कहा, 'भारत में मात्र 3-4 प्रतिशत लोग ही कर देते हैं। वे अपना कालाधन सोने में तब्दील कर लेते हैं।Ó वित्त मंत्री पी चिदंबरम और आरबीआई गवर्नर डी सुब्बाराव पहले ही सक्रिय हो गए हैं। सोने के अधिक आयात के कारण चालू खाता घाटा जुलाई-सितंबर में सकल घरेलू उत्पाद का 5.4 प्रतिशत तक जा पहुंचा है। दूसरी तरफ अन्य वित्तीय योजनाओं से अधिक प्रतिफल नहीं मिल रहा है। इसलिए लोग सोने में निवेश कर रहे हैं। चिदंबरम और सुब्बाराव दोनों ही कुछ तरकीबों का इस्तेमाल कर चुके हैं। वित्त मंत्रालय ने सोने पर आयात शुल्क बढ़ाकर 6 प्रतिशत तक कर दिया है जो पिछले साल जनवरी के 1 फीसदी से 5 गुना अधिक है। आरबीआई ने बैंकों से कहा है कि वे गोल्ड लोन कंपनियों को ऋण आवंटन कम करें। लेकिन सोने का भारी भरकम आयात सितंबर तक जारी रहा। दिसंबर तिमाही में तो यह और बढ़ गया। हाल में ही सरकार ने नीति में बदलाव किया है। सरकार गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों (ईटीएफ) को सोने का एक हिस्सा बैंकों के पास जमा करने के लिए कह रही है। गोल्ड ईटीएफ के पास 11,600 करोड़ रुपये मूल्य का सोना (करीब 35-40 टन) जमा है। बैंक इसके बाद इसे आभूषण विक्रेताओं को उधार देंगे। सरकारी नोट के अनुसार सोना रखने के लिए बैंक म्युुचुअल फंडों को कुछ शुल्क अदा करेंगे। इससे सोने पर रिटर्न 50-100 आधार अंक तक बढ़ सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो सोने को वित्तीय योजना के तौर पर पेश किया जा रहा है। आरबीआई की समिति ने भी लगभग ऐसी ही सिफारिश की है। समिति ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सोने की मांग को सोने से जुड़ी वित्तीय योजनाओं में निवेश में परिवर्तित करने पर जोर दिया है। ऐक्सिस ऐसेट मैंनेजमेंट कंपनी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी राजीव आनंद कहते हैं, 'पिछले पांच साल के दौरान काफी रकम ऋण साधनों, रियल एस्टेट और सोने में निवेश हुई है।Ó विदेश से सोने का जितना आयात होता है, उसमें 20-30 प्रतिशत निवेश के मकसद से मंगाया जाता है। सोने से निवेशकों का ध्यान हटाने के लिए ऐसी योजना होनी चाहिए जो सोने की तरह ही प्रतिफल दे। गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड फंड ऑफ फंड्स, ई-गोल्ड और कुछ अन्य योजनाएं इसी तरह के विकल्प हैं। यहां तक की बैंकों की भी गोल्ड डिपॉजिट स्कीम हैं। हालांकि इन उत्पादों का प्रचार-प्रसार सीमित ही रहा है। म्युचुअल फंड गोल्ड ईटीएफ का प्रचार कभी-कभार ही करते हैं जबकि बैंकों सोने के लिए भंडारण क्षमता की कमी का रोना रोते हैं। आरबीआई की समिति ने संशोधित स्वर्ण योजना, स्वर्ण संचय योजना, गोल्ड लिंक्ड खाते और गोल्ड पेंशन योजनाएं शुरू करने के सुझाव दिए हैं। इन वित्तीय योजनाओं को इस तरह बनाया जाए कि समूचे निवेश के लिए भौतिक सोने की जरूरत ही न हो। यह भी सुझाव है कि उन निवेशकों को प्रोत्साहन दिया जाए जो भौतिक सोने के बदले नकद राशि लें। ग्राहकों को अपने बैंक खाते के जरिये ई-गोल्ड खरीदने के लिए बैंकों की भूमिका बढ़ाने का भी प्रस्ताव है। इससे अधिक से अधिक ग्राहक आकर्षित होंगे। इस समय कई ग्राहक इस विकल्प को तरजीह नहीं देते क्योंकि उन्हें कमोडिटी ब्रोकर के साथ अलग से खाता रखना होता है। ईटीएफ के साथ भी यही बात है और उसके लिए लोगों को डीमैट खाता खोलना होता है। सबसे दिलचस्प प्रस्ताव गोल्ड पेंशन योजना का है। इसके तहत लोग अपने घर में रखा सोना बैंक में जमा करेंगे जिसकी वापसी अगले 20-25 साल में मासिक पेंशन योजना के रूप में किस्तों में होगी। यह एक एन्युइटी योजना के तौर पर काम करेगा। ऐक्सिस एमएमसी के आनंद का मानना है कि आने वाले समय में पीली धातु में निवेश करने वाले लोग वित्तीय योजनाओं की ओर झुकेंगे। ऐसा तभी हो सकता है जब सोने का प्रतिफल अन्य साधनों की तुलना में खराब होगा। (BS Hindi)

गेहूं निर्यात और भंडारण स्थान बनाने का होगा सुनहरा मौका

देश में अनाज का लगातार भंडार बढ़ रहा है। इस बीच एक अच्छी खबर आई है। हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गेहूं का निर्यात इस साल जुलाई तक प्रतिस्पर्धी रह सकता है। इससे सरकार के पास अपना अनाज बेचने और भंडारण के लिए जगह बनाने का अच्छा मौका होगा। कमजोर आपूर्ति के चलते मक्के का निर्यात भी वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी रह सकता है। लेकिन कमजोर घरेलू उत्पादन निर्यात में तेजी रोक सकता है। नैशनल कौंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) की तिमाही कृषि परिदृश्य रिपोर्ट के अनुसार अंतरराष्ट्रीय चीनी बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धा पर दबाव रहेगा। इसकी वजह कम वैश्विक उत्पादन, ऊंची घरेलू कीमतें और गन्ने की बढ़ती कीमतें हैं। भारत का खाद्यान्न भंडार 1 फरवरी, 2013 को 6.5 करोड़ टन से ज्यादा अनुमानित है, जो आवश्यक मात्रा से दोगुने से भी ज्यादा है। ज्यादा स्टॉक की वजह पिछले कुछ वर्षों में गेहूं और चावल का लगातार बंपर उत्पादन होना है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक सरकार अपने भंडार को बेचने की योजना बनाएगी, तब 1 जून, 2013 तक खाद्यान्न का स्टॉक 9 करोड़ के स्तर पर पहुंच सकता है। इस वर्ष के लिए गेहूं की खरीद 1 अप्रैल से शुरू होने की संभावना है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'जुलाई-जून के आधार पर गेहूं का निर्यात करीब 70 लाख टन पर पहुंच सकता है।Ó रिपोर्ट के अनुसार भारत का चावल निर्यात 2013 में कमजोर रह सकता है, क्योंकि निर्यात के योग्य घरेलू सरप्लस कम है और थाईलैंड में स्टॉक बढ़ रहा है। स्टॉक बढऩे से थाईलैंड चावल की ज्यादा मात्रा निर्यात के लिए जारी कर सकता है। वह विश्व के सबसे बड़े चावल निर्यातक के अपने दर्जे को पाने के लिए निर्यात को प्रोत्साहित करेगा। थाईलैंड को पीछे छोड़कर 2012 में भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक बना था। इस दौरान देश ने 90 लाख टन चावल का निर्यात किया। रिपोर्ट में कहा गया है, 'नाइजीरिया, ईरान और इंडोनेशिया जैसे प्रमुख आयातक देश शुल्क और गैर-शुल्क अवरोध खड़े कर रहे हैं। उनकी कोशिशचावल उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने की है। इनका असर आगामी वर्षों में भारत के चावल निर्यात पर पड़ सकता है।Ó सरकार के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के लिए मटर का आयात मुश्किल होगा क्योंकि फ्रांस में इसकी मांग बढ़ रही है। भारत को मटर आपूर्ति करने वाला फ्रांस प्रमुख देश है। पिछले साल का कम स्टॉक होने से चने की कीमतों में भी मजबूती रह सकती है। वनस्पति तेल आयात के बारे में रिपोर्ट कहती है कि आयात में बढ़ोतरी जारी रहेगी, क्योंकि मलेशिया और इंडोनेशिया अपने भंडार को खपाने के लिए भारत को बड़ी मात्रा में पाम तेल का निर्यात करते रहेंगेे। इससे कीमतों में गिरावट आ सकती है, लेकिन भारतीय तेल प्रसंस्करण उद्योग को नुकसान पहुंचेगा। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के ताजा आंकड़ों के मुताबिक भारत का खाद्य तेल आयात जनवरी 2013 में पिछले साल जनवरी के मुकाबले 75 फीसदी बढ़कर 11.5 लाख टन पर पहुंच गया है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'भारत और विश्व में उत्पादन का प्रदर्शन विपरीत है (2012-13 के वैश्विक उत्पादन की तुलना में घरेलू उत्पादन गेहूं का ज्यादा है, लेकिन चावल और चीनी के मामले में कम है)। इससे सरकार के समक्ष नीतिगत चुनौतियां और अवसर दोनों ही आएंगे।Ó घरेलू बाजार में कीमतों के रुख पर तिमाही रिपोर्ट में कहा गया है कि थोक मूल्य सूचकांक में फरवरी 2013 तक वर्ष दर वर्ष आधार पर 9.5 फीसदी की बढ़ोतरी जारी रहेगी। उसके बाद इसमें कुछ नरमी आ सकती है। थोक मूल्य सूचकांक में गैर-प्रसंस्कृत और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद शामिल हैं। इसमें कहा गया है कि 2012-13 में खाद्यान्न उत्पादन 24.55 करोड़ टन रहने की संभावना है, जो पिछले साल के रिकॉर्ड उत्पादन 25.74 करोड़ टन से 4.6 फीसदी कम है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'उत्पादन में गिरावट चावल उत्पादन 10.43 करोड़ टन से घटकर 9.9 करोड़ टन रहने और मोटे अनाज का उत्पादन 4.2 करोड़ टन से घटकर 3.7 करोड़ टन रहने के कारण आएगी। (BS Hindi)

निर्यात के लिए प्राइवेट व्यापारियों को भी सरकारी गेहूं देने की तैयारी

दबाव - अगली फसल आने से पहले सरकार पर गोदाम खाली करवाने का दबाव एफसीआरए - जिंस वायदा बाजार को ज्यादा अधिकार देने के लिए सरकार फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट को बजट सत्र में पास कराने की कोशिश होगी। सीटीटी - कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स के प्रस्ताव पर सभी संबंधित पक्षों से राय ली गई है। इन पक्षों के विचारों की जानकारी वित्त मंत्रालय को दी गई है। गेहूं के भारी-भरकम स्टॉक को हल्का करने के लिए सरकार केंद्रीय पूल से प्राइवेट निर्यातकों को भी निर्यात करने के लिए गेहूं देगी। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलात मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के. वी. थॉमस ने बताया है कि जिंस वायदा बाजार को ज्यादा अधिकार देने के लिए सरकार फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) को बजट सत्र में पास कराने की कोशिश करेगी। थॉमस ने एसोचैम द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कहा कि खाद्यान्न की भंडारण समस्या से निपटने के लिए केंद्रीय पूल से प्राइवेट निर्यातकों को गेहूं देने का प्रस्ताव है। इस बारे में संबंधित मंत्रालय से बातचीत चल रही है। हालांकि उन्होंने प्राइवेट निर्यातकों को दिए जाने वाले गेहूं की मात्रा के बारे में नहीं बताया। सूत्रों के अनुसार खाद्य मंत्रालय केंद्रीय पूल से प्राइवेट निर्यातकों को 50 लाख टन गेहूं देने का प्रस्ताव तैयार कर रहा है। इससे केंद्रीय पूल से गेहूं का उठाव बढ़ेगा। वर्तमान में केंद्रीय पूल से सार्वजनिक कंपनियों एसटीसी, एमएमटीसी और पीईसी के माध्यम से गेहूं का निर्यात किया जा रहा है। केंद्रीय पूल में पहली फरवरी को 308.09 लाख टन गेहूं का बंपर स्टॉक बचा हुआ है जबकि पहली अप्रैल से रबी विपणन सीजन 2013-14 की गेहूं की खरीद शुरू हो जाएगा। नए रबी विपणन सीजन में 400 लाख टन से ज्यादा गेहूं की खरीद होने का अनुमान है जबकि पिछले विपणन सीजन में 381.41 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। थॉमस ने कहा कि एफसीआरए बिल को बजट सत्र में संसद में पेश किया जाएगा। एफ सीआरए बिल पास होने से वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के अधिकार बढ़ जाएंगे तथा इससे कमोडिटी मार्केट में ऑप्शन ट्रेडिंग शुरू की जा सकेगी, जिससे जिंस वायदा कारोबार में पारदर्शिता बढ़ेगी। कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (सीटीटी) के बारे में थॉमस ने कहा कि पिछले साल अक्टूबर में सीटीटी का मसला मेरे सामने आया था, उस समय हमने सभी संबंधित पक्षों की राय लेकर वित्त मंत्रालय को भेज दिया था। सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्री को लिखे पत्र में थॉमस ने सीटीटी पर विरोध जताया था। उन्होंने लिखा था कि इस तरह के कदम से कमोडिटी के वायदा कारोबार को नुकसान उठाना पड़ेगा। कमोडिटी वायदा कारोबार में वैसे भी चालू वित्त वर्ष में कारोबार में कमी आई है। सीटीटी लगने से जिंस वायदा कारोबार में और भी कमी की आशंका है। (Business Bhaskar)

नेचुरल रबर में लंबी अवधि का करें निवेश

आर. एस. राणा नई दिल्ली | Feb 16, 2013, 02:30AM IST फायदे की बात एनएमसीई में मार्च महीने के वायदा कारोबार में नेचुरल रबर की कीमतों में महीने भर में 5.9' की गिरावट आई है 15 जनवरी को मार्च महीने के वायदा कारोबार में नेचुरल रबर का दाम 168 रुपये प्रति किलो था जबकि 15 फरवरी को इसका दाम 158 रुपये प्रति किलो रह गया घरेलू बाजार में नेचुरल रबर के दाम न्यूनतम स्तर पर आ गए हैं। जैसे ही टायर उद्योग की मांग निकलेगी कीमतों में 10 से 15 रुपये प्रति किलो की तेजी आएगी ऐसे में वायदा बाजार में लंबी अवधि के निवेशक निवेश करके मुनाफा कमा सकते हैं टायर उद्योग की मांग कमजोर होने से नेचुरल रबर की कीमतों में गिरावट आई है। घरेलू बाजार में अप्रैल 2012 से अभी तक नेचुरल रबर के भाव में 23.2 फीसदी की गिरावट आकर कोट्टायम में शुक्रवार को दाम 152-157 रुपये प्रति किलो रह गए। नीचे दाम पर उत्पादकों की बिकवाली कम है जबकि मार्च आखिर तक उत्पादन का लीन सीजन रहेगा, इसलिए आगामी दिनों में मौजूदा कीमतों में 10 से 15 रुपये प्रति किलो की तेजी आ सकती है। ऐसे में वायदा बाजार में लंबी अवधि के निवेशक खरीद करके मुनाफा कमा सकते हैं। नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड (एनएमसीई) में मार्च महीने के वायदा कारोबार में नेचुरल रबर की कीमतों में महीने भर में 5.9 फीसदी की गिरावट आई है। 15 जनवरी को मार्च महीने के वायदा कारोबार में नेचुरल रबर का दाम 168 रुपये प्रति किलो था जबकि 15 फरवरी को इसका दाम 158 रुपये प्रति किलो रह गया। एग्री विश्लेषक अभय लाखवान ने बताया कि घरेलू बाजार में नेचुरल रबर के दाम न्यूनतम स्तर पर आ गए हैं। जैसे ही टायर उद्योग की मांग निकलेगी कीमतों में 10 से 15 रुपये प्रति किलो की तेजी आएगी। ऐसे में वायदा बाजार में लंबी अवधि के निवेशक निवेश करके मुनाफा कमा सकते हैं। ऑल इंडिया टायर डीलर एसोसिएशन के अध्यक्ष एस पी सिंह ने नेचुरल रबर की कुल खपत में 60 फीसदी हिस्सेदारी टायर उद्योग की है जबकि ट्रक और बस की बिक्री कमजोर बनी हुई है जिसकी वजह से टायर कंपनियों की खरीद नेचुरल रबर में सीमित मात्रा में ही आ रही है। बस और ट्रक टायर की सेल अप्रैल से जनवरी के दौरान 24-25 फीसदी कम हुई है। रबर मर्चेंट एसोसिएशन के सचिव अशोक खुराना ने बताया कि नेचुरल रबर में टायर उद्योग के साथ ही नोन टायर उद्योग की मांग भी कमजोर है। कंपनियों के पास आयात माल का स्टॉक भी बचा हुआ है। लेकिन मार्च तक नेचुरल रबर का उत्पादन कम रहेगा जबकि मार्च से टायर उद्योग की मांग में तेजी आने की संभावना है। ऐसे में नेचुरल रबर की मौजूदा कीमतों में आठ से दस फीसदी का सुधार आ सकता है। उन्होंने बताया कि कोट्टायम में 7 अप्रैल 2012 में नेचुरल रबर का दाम 198-200 रुपये प्रति किलो था जबकि शुक्रवार को भाव घटकर 152-157 रुपये प्रति किलो रह गया। हालांकि बैंकाक में इस दौरान कीमतें नहीं घटी है। अप्रैल महीने में बैंकाक में नेचुरल रबर का भाव 177-178 रुपये प्रति किलो था जबकि शुक्रवार को दाम 176 रुपये प्रति किलो रहा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम भारत के मुकाबले ज्यादा होने से आयात के नए सौदे नहीं होने के कारण भी दाम सुधरने की संभावना है। रबर बोर्ड के अनुसार जनवरी में नेचुरल रबर के उत्पादन में 5 फीसदी की कमी आकर 97,000 टन का उत्पादन ही हुआ है जबकि जनवरी में खपत 9 फीसदी कम होकर 75,000 टन की हुई है। चालू वित्त वर्ष के पहले दस महीनों (अप्रैल से जनवरी) के दौरान नेचुरल रबर का उत्पादन थोड़ा बढ़कर 790,200 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में उत्पादन 784,400 टन का हुआ था है। इस दौरान नेचुरल रबर की खपत 2 फीसदी बढ़कर 817,815 टन की हुई है जबकि पिछले साल अप्रैल से जनवरी के दौरान खपत 801,750 टन की हुई थी। 31 जनवरी 2013 को घरेलू बाजार में नेचुरल रबर का कुल स्टॉक 296,000 टन का है।(Business Bhaskar....R S Rana)

शरद पवार ने चीनी पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने का समर्थन किया

कृषि मंत्रालय ने चीनी पर उत्पाद शुल्क बढ़ाए जाने के प्रस्ताव का समर्थन किया है. इस तरह का प्रस्ताव खाद्य मंत्रालय ने मंत्रिमंडल को भेजा था जिसमें चीनी पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने की बात कही गई है. इसके पीछे यह तर्क दिया गया है कि राशन की दुकानों के लिए केन्द्र सरकार यदि खुले बाजार से चीनी खरीदती है तो उसका वित्तीय बोझ कम किया जा सकेगा. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने अक्तूबर 2012 में दी गई अपनी सिफारिश में चीनी पर जारी दो किस्म के नियंत्रण- पहला चीनी जारी करने की नियंत्रित प्रणाली और लेवी चीनी उत्तरदायित्व - तुरंत खत्म करने का सुझाव दिया था. लेवी चीनी प्रणाली के तहत मिलों को अपने उत्पादन का 10 फीसद हिस्सा केंद्र को राशन की दुकानों से बेचने के लिए कम कीमत पर बेचना होता है जिससे उद्योग को सालाना 3,000 करोड़ रुपए का नुकसान होता है. पवार ने एक समारोह के मौके पर कहा ‘‘खाद्य मंत्रालय ने लेवी चीनी प्रणाली को खत्म करने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सब्सिडीशुदा चीनी की आपूर्ति जारी रखने का प्रस्ताव किया है. फिलहाल सरकार चीनी मिलों से 17 रुपए प्रति किलो की दर पर चीनी खरीदती है और 13.50 रुपए प्रति किलो पर बेचती है. लेवी प्रणाली खत्म होने पर सरकार को खुले बाजार से चीनी खरीदनी होगी.’’ उन्होंने कहा ‘‘वित्तीय बोझ कम करने और सब्सिडी वाली चीनी की आपूर्ति जारी रखने के लिए खाद्य मंत्रालय ने उत्पाद शुल्क बढ़ाने का प्रस्ताव किया है. हमने प्रस्ताव का समर्थन किया है.’’ फिलहाल चीनी पर उत्पाद शुल्क करीब 70 पैसे प्रति किलो है. केंद्र को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सालाना 27 लाख टन चीनी की जरूरत होती है. रंगराजन समिति ने चीनी जारी करने की उस प्रणाली को भी खत्म करने का सुझाव दिया था जिसके तहत केंद्र चीनी का कोटा तय करती है जिसे खुले बाजार में बेचा जा सकता ह (Samay Live)

शरद पवार ने चीनी पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने का समर्थन किया

कृषि मंत्रालय ने चीनी पर उत्पाद शुल्क बढ़ाए जाने के प्रस्ताव का समर्थन किया है. इस तरह का प्रस्ताव खाद्य मंत्रालय ने मंत्रिमंडल को भेजा था जिसमें चीनी पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने की बात कही गई है. इसके पीछे यह तर्क दिया गया है कि राशन की दुकानों के लिए केन्द्र सरकार यदि खुले बाजार से चीनी खरीदती है तो उसका वित्तीय बोझ कम किया जा सकेगा. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने अक्तूबर 2012 में दी गई अपनी सिफारिश में चीनी पर जारी दो किस्म के नियंत्रण- पहला चीनी जारी करने की नियंत्रित प्रणाली और लेवी चीनी उत्तरदायित्व - तुरंत खत्म करने का सुझाव दिया था. लेवी चीनी प्रणाली के तहत मिलों को अपने उत्पादन का 10 फीसद हिस्सा केंद्र को राशन की दुकानों से बेचने के लिए कम कीमत पर बेचना होता है जिससे उद्योग को सालाना 3,000 करोड़ रुपए का नुकसान होता है. पवार ने एक समारोह के मौके पर कहा ‘‘खाद्य मंत्रालय ने लेवी चीनी प्रणाली को खत्म करने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सब्सिडीशुदा चीनी की आपूर्ति जारी रखने का प्रस्ताव किया है. फिलहाल सरकार चीनी मिलों से 17 रुपए प्रति किलो की दर पर चीनी खरीदती है और 13.50 रुपए प्रति किलो पर बेचती है. लेवी प्रणाली खत्म होने पर सरकार को खुले बाजार से चीनी खरीदनी होगी.’’ उन्होंने कहा ‘‘वित्तीय बोझ कम करने और सब्सिडी वाली चीनी की आपूर्ति जारी रखने के लिए खाद्य मंत्रालय ने उत्पाद शुल्क बढ़ाने का प्रस्ताव किया है. हमने प्रस्ताव का समर्थन किया है.’’ फिलहाल चीनी पर उत्पाद शुल्क करीब 70 पैसे प्रति किलो है. केंद्र को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सालाना 27 लाख टन चीनी की जरूरत होती है. रंगराजन समिति ने चीनी जारी करने की उस प्रणाली को भी खत्म करने का सुझाव दिया था जिसके तहत केंद्र चीनी का कोटा तय करती है जिसे खुले बाजार में बेचा जा सकता है. (Samay Live)

पवार ने फिर जीएम फसलों के परीक्षण का समर्थन किया

नयी दिल्ली : प्राकृतिक संसाधनों में आ रही कमी के बीच कृषि मंत्री शरद पवार ने आज एक बार फिर आनुवांशिक रुप से परिवर्धित :जीएम: फसलों के परीक्षण का समर्थन किया और कहा कि वैज्ञानिकों को इस अधिकार से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए. पवार ने कहा कि उन्होंने इस संबंध में राज्य के सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है और विचार के लिए वैज्ञानिकों का एक दल भेजने के लिए कहा है. कुछ राज्यों ने उनके सुझाव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया जाहिर की है लेकिन बिहार जैसे कुछ राज्यों ने इसका विरोध किया है. उनकी टिप्पणी ऐसे समय आयी है जबकि संसदीय समिति ने जीएम फसलों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआई) की 84वीं सालाना आम बैठक को संबोधित करते हुए पवार ने कहा ‘‘जमीन सहित अन्य प्राकृतिक संसाधनों की सीमित उपलब्धता के मद्देनजर 1.2 अरब से ज्यादा आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के वास्ते हमारे समक्ष उत्पादकता बढाने की दिशा में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है.’’ उन्होंने कहा ‘‘हम अपने वैज्ञानिकों के जोश का दमन कर उन्हें जीएम फसलों का परीक्षण करने से नहीं रोक सकते. अनुसंधान की प्रक्रिया नहीं रोकी जानी चाहिए. इसे जोखिम में नहीं डालना चाहिए.’’ फिलहाल, सरकार ने बीटी कपास की वाणिज्यिक खेती को मंजूरी दे दी है जबकि पर्यावरण से जुडे कार्यकर्ताओं की चिंता के मद्देनजर 2010 में बीटी बैंगन पर स्थगन आदेश लागू कर दिया.(Parbhat Khabar)

Pawar favours field trial of GM crops

New Delhi, Feb 18. Amid depleting natural resources, Agriculture Minister Sharad Pawar today again pushed for field trials of genetically modified (GM) crops saying such a right should not be denied to scientists. The Minister said he has already written to all state chief ministers on this issue and also offered to send a team of scientists for further deliberation. While some states have responded positively to his suggestion, some like Bihar have opposed it. His remarks come in the wake of recommendations made recently by the Parliamentary Panel suggested banning all field trial of GM crops. Addressing the 84th annual general meeting of the ICAR, Pawar said: "Constrained by limited availability of natural resources including land, we do not have any option but try to achieve major breakthrough in productivity to ensure food security of 1.2 billion plus population. "We cannot afford to curtail the vigour of our scientific community and deny them the right to conduct field trial (trial of) GM crops... The process of research should not be stopped and it should not be jeopardised," he said. Currently, the government has allowed commercial cultivation of Bt cotton, while it imposed moratorium on Bt brinjal in 2010 due to concerns expressed by green activists. Stressing on public private partnership (PPP) in agriculture research and education, Pawar said Indian Council of Agricultural Research (ICAR) should involve private sector through innovative PPP models to boost investment. As the 12th Five Year Plan gives greater thrust to agriculture, the Minister said the ICAR should gear up to scientific research in critical areas like nanotechnology, farm mechanisation, research consortia platforms for seeds among others. He also emphasised the need to tap potential of north east region besides focusing on improving fodder supply, reducing production cost and improving oilseeds and pulses. The ICAR must prioritise technologies towards the resource poor farmers not only to enable them to take advantage of new technologies which can increase their farm production but also to reduce drudgery in farming, he added. The plan allocation for ICAR, which functions under the Agriculture Ministry, during the 12th plan (2012-17) is estimated at Rs 25,253 crore. The Council is planning to hire 800 scientists this year.

Pawar favours raising sugar excise duty to decontrol industry

New Delhi, Feb 18. Agriculture ministry has favoured the Food Ministry's Cabinet proposal to increase excise duty on sugar to offset the financial burden on the Centre if it decides to buy the sweetener from the open market for ration shops, Agriculture Minister Sharad Pawar said today. In October 2012, the expert panel headed by PMEAC Chairman C Rangarajan had recommended immediate removal of two major controls - regulated release mechanism and levy sugar obligation. Under the levy sugar system, mills are required to sell 10 per cent of their output to the Centre at cheaper rates to run ration shops, costing Rs 3,000 crore to industry annually. "Food Ministry has moved a Cabinet proposal on removal of levy sugar and continue supply of subsided sugar in PDS. Currently, government buys sugar at Rs 17 per kg from millers and sells it at Rs 13.50 per kg in PDS. Once levy system is removed, the government has to buy it at open market price. "To reduce financial burden and continue supply of subsidies sugar, the Food Ministry has proposed increase in excise duty.... We have supported the proposal," Pawar told reporters on the sidelines of a function. At present, the excise duty on sugar is about 70 paise per kg. The Centre requires 27 lakh tonnes of sugar annually for public distribution system (PDS). The Rangarajan panel had also suggested doing away with the regulated release mechanism under which the Centre fixes the sugar quota that can be sold in the open market. Asked about the possibility of any farm loan waiver proposal in the Budget, Pawar said: "I have read about it in newspaper. I don't know. If Finance Ministry is doing something, I don't know. There is no discussion either inter-department nor at cabinet level on this issue". On some states opposing Food bill, he said the Centre should address it as full co-operation of all the state governments is required to implement the food law. "One has to see what Parliamentary panel has recommended. Definitely, we have to go in detail. If we have to implement the food bill, we need full cooperation of all states. If states have serious objection, it is our duty to address them," the Minister said.

15 फ़रवरी 2013

Gold down by Rs 100 on sustained selling, weak global cues

New Delhi, Feb 15. Gold prices fell by Rs 100 to Rs 30,625 per 10 grams here today due to sustained selling by stockists on sluggish demand amid a weakening global trend. However, silver recovered by Rs 100 to Rs 57,100 Rs 57,100 per kg on some low-level buying. The precious metal had lost Rs 1,000 yesterday. Traders said sentiment in gold remained weak as stockists remained sellers on sluggish demand along with a weakening global trend. In Singapore, gold fell 0.3 per cent to USD 1,630.60 an ounce. On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent purity fell by Rs 100 each to Rs 30,625 and Rs 30,425 per 10 grams, respectively. The metal had lost Rs 75 yesterday. Sovereigns followed suit and lost Rs 50 at Rs 25,250 per piece of eight grams. On the other hand, silver ready recovered by Rs 100 to Rs 57,100 per kg and weekly-based delivery by Rs 270 to Rs 57,585 per kg. Meanwhile, silver coins dropped by Rs 1,000 to Rs 79,000 for buying and Rs 80,000 for selling of 100 pieces on poor demand at prevailing higher levels.

FCRA Bill could be passed in Budget session: Thomas

New Delhi, Feb 15. A Bill to develop the commodities futures market could be passed in the forthcoming Budget session of Parliament, Food and Consumer Affairs Minister K V Thomas said here today. "I believe the Forward Contract Regulation Act (FCRA) Bill will be passed in the coming session of Parliament," the Minister said while addressing an Assocham event on the commodity futures market. "There are apprehensions about futures trade that it is leading to price rise in commodities. But a number of studies have indicated there is no evidence to prove it," he added. The FCRA Amendment Bill, 2010 aims at developing the commodities futures market by arming the regulator Forward Markets Commission (FMC) with financial autonomy and facilitating the entry of institutional investors, among others. On reports that government was mulling imposing commodity transaction tax (CTT), the Minister said: "When the issue of CTT came before us in October last year, we immediately discussed it with stakeholders and an independent view has been passed on to the Finance Ministry." "This is a goose (commodity market) that lays the golden eggs. When the issue (CTT) comes, we should not take a partisan view," he said. Thomas had recently written a letter to the Finance Minister saying that any move to impose CTT would affect the nascent market, sources said. Speaking on the occasion, Financial Technologies Director (Research and Strategy) Madhoo Pavaskar said, "The market is gripped with fear of CTT." Financial Technologies is the promoter of leading commodity bourse, MCX. "Introduction of CTT would divert hedgers and speculators to rampant dabba trading. The tax would also impact the volume and liquidity of commodity exchanges," Pavaskar said. While the stock markets are to channelise investments for capital formation, commodity markets are price discovery and risk management platforms, he said, adding that the commodity, before it comes for trading on the exchange platforms, is already taxed heavily. The CTT of 0.017 per cent on commodity derivatives was levied in the 2008-09 Budget, but was not operationalised and was kept in abeyance. The Ministry of Consumer Affairs regulates the commodities market through the FMC. Currently, there are 21 commodity bourses with a combined turnover of Rs 136.51 lakh crore as on January 15 of the current financial year.