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28 जनवरी 2013

सीटीटी लगने से कमोडिटी हेजिंग लागत में होगी बढ़ोतरी

बिजनेस भास्कर नई दिल्ली | Jan 28, 2013, 00:00AM IST देशभर के शीर्ष औद्योगिक संगठन आए सीटीटी के विरोध में खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय के साथ ही देशभर के लगभग 36 शीर्ष औद्योगिक संगठन आगामी केंद्रीय बजट 2013-14 में केंद्र सरकार के जिंस वायदा कारोबार पर ट्रांजेक्शन टैक्स (सीटीटी) लगाने के संभावित कदम के विरोध में एकजुट हो गए हैं। औद्योगिक संगठनों का मानना है सीटीटी लगने से किसानों को फसलों के वाजिब दाम मिलने में परेशानी होगी। साथ ही जिंसों के वायदा कारोबार में लेन-देन लागत की बढ़ जाएगी, जिससे अवैध कारोबार को बढ़ावा मिलेगा। खाद्य एवं उपभोक्ता मामले राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के. वी. थॉमस ने वित्तमंत्री को पत्र लिखकर कमोडिटी के वायदा कारोबार पर सीटीटी नहीं लगाने की मांग की है। पत्र में लिखा है कि जिंस वायदा हेजिंग करने वालों के लिए लाभदायक है। बिना हेजिंग के बाजार में इतना कारोबार नहीं होगा। सीटीटी से जिंस वायदा बाजार के विकास की रफ्तार रुक जाएगी। पत्र में लिखा गया है कि आर्थिक सुधारों के दौर में सीटीटी लगाने से बाजार का प्रवाह प्रभावित होगा। पहली बार कमोडिटी सौदों पर सीटीटी का प्रस्ताव 2008-2009 के बजट में किया गया था। लेकिन उस वक्त प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के दखल के बाद वित्त मंत्री ने इस प्रस्ताव को वापस ले लिया था। भारतीय औद्योगिक परिसंघ (सीसीआई) ने बजट पूर्व सुझावों में वित्त मंत्रालय को लिखे पत्र में जिंस वायदा कारोबार में सीटीटी नहीं लगाने की मांग की है। सीसीआई ने तर्क दिया है कि सीटीटी लगने से न केवल जिंस कारोबार के लेन-देन की लागत बढ़ जायेगी, बल्कि जोखिम प्रबंधन लागत भी बढ़ेगी और इससे वास्तविक कारोबारी विमुख हो जाएंगे। इससे अवैध कारोबार को बढ़ावा मिलेगा। एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने सीटीटी घटाने और प्रतिभूतियों पर स्टांप शुल्क को तर्कसंगत बनाकर ब्रोकर समुदाय को बचाने का सुझाव दिया है। इसका कहना है कि सीटीटी खरीददार और विक्रेता दोनों पर लगता है, इसके कारण पहले से ही घट रहे जिंस वायदा के कुल कारोबार में और भी कमी आएगी। वर्ष 2012-13 में जहां शेयर बाजारों का कारोबार बढ़ा है, वहीं जिंस वायदा का कारोबार कम हुआ है। फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की ) का कहना है कि सूचीबद्ध प्रतिभूतियों से प्राप्त होने वाले लाभ पर लगने वाला कर सरकार को समाप्त करना चाहिए। यह लाभ चाहे पूंजी लाभ हो या कारोबारी आय। इससे पूंजी बाजार में भागीदारी के लिए निवेशकों को प्रोत्साहन मिलेगा। इंडियन वनस्पति प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (आईवीपीए) का कहना है कि जिंस वायदा कारोबार के बढऩे से किसानों को अपनी फसल के वाजिब दाम मिलने लगे हैं। ऐसे में अगर सरकार ने जिंस वायदा कारोबार पर सीटीटी लागू कर दिया तो कारोबारी इससे विमुख हो जाएगा, जिसका सीधा असर फसलों की कीमतों पर पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से भी पता चलता है कि लेन-देन पर कर लगाने या बढ़ाने से कारोबार कम होता है। (Business Bhaskar)

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