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31 अगस्त 2012

तेल व दालों पर स्टॉक लिमिट एक साल और

आर.एस. राणा नई दिल्ल अगली 30 सितंबर को खत्म हो रही है मौजूदा स्टॉक लिमिट महीनेभर में दलहन और खाद्य तेलों की कीमतों में आई तेजी को देखते हुए सरकार सतर्क हो गई है। बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने दलहन, खाद्य तेल और तिलहनों पर स्टॉक लिमिट की अवधि को एक साल के लिए बढ़ाने की सिफारिश की है। वर्तमान में दलहन, खाद्य तेलों और तिलहनों पर स्टॉक लिमिट की अवधि 30 सितंबर 2012 को समाप्त हो रही है। उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि खरीफ में दलहन और तिलहनों के बुवाई क्षेत्रफल में कमी आई है जिसका असर कीमतों पर पड़ रहा है। इसीलिए उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने दलहन, खाद्य तेल और तिलहनों पर स्टॉक लिमिट की अवधि को एक साल के लिए बढ़ाने की सिफारिश की है। दलहन, खाद्य तेल और तिलहनों पर स्टॉक लिमिट की अवधि 30 सितंबर 2012 को समाप्त हो रही है, इसे बढ़ाकर 30 सितंबर 2013 तक करने की योजना है। उन्होंने बताया कि स्टॉक लिमिट लगने से स्टॉकिस्ट तय मात्रा से ज्यादा स्टॉक नहीं कर पाएंगे। इससे घरेलू बाजार में आपूर्ति बराबर बनी रहेगी। इससे कीमतों पर काबू पाने में मदद मिलेगी। दिल्ली फुटकर बाजार में चना दाल का भाव बढ़कर 71 से 76 रुपये, अरहर दाल का भाव 81 से 90 रुपये, उड़द दाल का 75 से 80 रुपये और मसूर दाल का 66 से 70 रुपये प्रति किलो हो गया है। महीने भर से इनकी कीमतों में 5 से 15 रुपये प्रति किलो की तेजी आ चुकी है। इस दौरान दिल्ली बाजार में खाद्य तेलों में सरसों तेल का भाव बढ़कर 105 रुपये, मूंगफली तेल का 166 रुपये, रिफाइंड सोया तेल का 95 रुपये और सनफ्लावर तेल का 107 रुपये प्रति किलो हो गया है। खाद्य तेलों की कीमतों में भी महीने भर में करीब 10 से 15 रुपये प्रति किलो की तेजी आई है। कृषि मंत्रालय के अनुसार मानसूनी वर्षा कम होने से चालू खरीफ में दलहन की बुवाई में 11.5 फीसदी की और तिलहनों की बुवाई में 3.3 फीसदी की कमी आई है। चालू खरीफ में दलहन की बुवाई अभी तक 88.30 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 99.78 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी। तिलहनों की बुवाई चालू खरीफ में 164.29 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 169.94 लाख हैक्टेयर में हुई थी। (Business Bhaskar....R S Rana)

चीनी निर्यात में डिफॉल्टर हो सकते हैं निर्यातक

30,000 रुपये प्रति टन चीनी के घरेलू भाव थे निर्यात सौदों के समय 35,000 रुपये प्रति टन भाव होने के बाद निर्यात में बेरुखी भारतीय बाजारों में चीनी के दाम बढऩे के बाद पांच लाख टन से ज्यादा चीनी निर्यात में निर्यातक डिफॉल्टर हो सकते हैं। कारोबारी सूत्रों ने कहा है कि घरेलू बाजार में चीनी महंगी होने के बाद निर्यातक सौदे रद्द कर रहे हैं क्योंकि खरीदारों को ब्राजील और थाईलैंड में सस्ती चीनी मिल रही है। मुंबई में एक ग्लोबल ट्रेडिंग कंपनी के डीलर ने बताया कि अप्रैल से मध्य जुलाई तक बड़ी मात्रा में भारतीय चीनी निर्यात के सौदे हुए थे। उस दौर में घरेलू बाजार में चीनी के दाम करीब 30,000 रुपये (539.5 डॉलर) प्रति टन थे। उस समय निर्यातकों को करीब 2,000 से 2500 रुपये प्रति टन मुनाफा मिल रहा था। लेकिन आज के हालात में निर्यात करने का कोई तुक नहीं है क्योंकि घरेलू बाजार में मिलें 35,000 रुपये प्रति टन के भाव पर चीनी बेच रही हैं। ऐसे में निर्यात कम भाव पर चीनी निर्यात करने की इच्छुक नहीं है। डॉलर में चीनी का घरेलू भाव करीब 629.50 डॉलर प्रति टन बैठ रहा है। मौजूदा सीजन 2011-12 में भारत से 32 लाख टन चीनी का निर्यात हो चुका है। पिछले साल 26 लाख टन निर्यात हुआ था। बदलते हालात में आयातक भी भारत से चीनी खरीद के इच्छुक नहीं है क्योंकि उन्हें थाईलैंड और ब्राजील से बेहतर क्वालिटी की सस्ती चीनी मिल रही है। लंदन के लिफ्फे एक्सचेंज में व्हाइट शुगर करीब 556 डॉलर प्रति टन के भाव पर बिक रही है। मुंबई के एक डीलर ने बताया कि महाराष्ट्र की एक चीनी मिल ने हाल में 27,000 टन चीनी निर्यात का सौदा रद्द किया है। निर्यात सौदा रद्द करने पर सरकार निर्यातकों पर जुर्माना लगाती है ताकि वे वायदा सौदे न करें। लेकिन बाजार के मौजूदा हालात निर्यातकों को सौदे रद्द करने से रोक नहीं सकते हैं। एक डीलर ने यह भी कहा कि सरकार अभी तो कुछ नहीं करेगी लेकिन दो-तीन माह बाद निर्यात शर्तों में रियायत दे सकती है। इस साल मानसून कमजोर रहने के कारण सरकार चीनी उत्पादन को लेकर आश्वस्त नहीं है। अगर निर्यात कम होता है तो यह सरकार के लिए अच्छा होगा क्योंकि इससे घरेलू बाजार में सुलभता बढ़ेगी और भाव पर अंकुश लगेगा। (Business Bahskar)

सोने की हॉलमार्किंग अनिवार्य हो : कैग

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने सरकार को सोने के आभूषणों की हॉलमार्किंग अनिवार्य करने का सुझाव दिया है। कैग का मानना है कि इससे उपभोक्ताओं को ऐसे ज्वैलर्स के चंगुल में फंसने से बचाया जा सकेगा, जो मिलावटी आभूषण बेचते हैं। फिलहाल सोने की हॉलमार्किंग स्वैच्छिक है। यह इस बहुमूल्य धातु की शुद्धता का प्रमाण होता है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाला भारतीय मानक ब्यूरो हॉलमार्किंग के लिए अधिकृत विभाग है। संसद में पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय तथा बीआईएस को सोने के आभूषणों की हॉलमार्किंग को अनिवार्य करने पर विचार करना चाहिए, जिससे उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण किया जा सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी हॉलमार्किंग अनिवार्य नहीं है, ऐसे में बहुत से ज्वैलर्स हैं, जो बीआईएस की स्वैच्छिक हॉलमार्किंग योजना के दायरे में नहीं आते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि हॉलमार्किंग को अनिवार्य प्रमाणन के तहत लाने के लिए बीआईएस कानून में संशोधन नहीं किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बीआईएस का यह जवाब संतोषजनक नहीं है कि सोने की हॉलमार्किंग को अनिवार्य बनाने के लिए कानून में संशोधन का मामला उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के दायरे में आता है। इसमें कहा गया है, 'चूंकि बीआईएस देश का राष्ट्रीय मानक निकाय है और उसे उपभोक्ताओं का गुणवत्ता की गारंटी सुनिश्चित करना है।' जनवरी में मंत्रिमंडल ने बीआईएस विधेयक को मंजूरी दी थी। इसके तहत सोना सहित कई अन्य उत्पादों पर हॉलमार्किंग को अनिवार्य किया जाना है। यह विधेयक अभी संसद में पेश नहीं किया गया है। (BS Hindi)

आवश्यक वस्तुओं के भाव पर मंत्रालय की नजर

पैदावार में कमी और आवक में देरी के चलते आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में आ रही उछाल को रोकने के लिए खाद्य मंत्रालय ने कई कदम उठाने का प्रस्ताव रखा है। पहला, मंत्रालय का कहना है कि अक्टूबर से दालों और खाद्य तेलों पर स्टॉक की सीमा का विस्तार एक और वर्ष के लिए कर दिया जाना चाहिए। मौजूदा समय में यह प्रस्ताव अंतिम मंजूरी के चरण में है। हालांकि अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि स्टॉक सीमा का ऐलान सब्सिडी योजना में सुधार के साथ किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि स्टॉक सीमा का विस्तार चावल पर भी किया जा सकता है, जिसे पिछले साल छह राज्यों पर लगाया गया था। दूसरी ओर मंत्रालय ने बाजार में चीनी की कीमतों पर लगाम कसने के लिए इसकी अतिरिक्त मात्रा बाजार में उतारने की योजना बनाई है। यह मात्रा गैर-लेवी चीनी की श्रेणी में होगी और 10 फीसदी लेवी कोटे का वितरण नहीं किया जाएगा। वैश्विक व घरेलू बाजार में कीमतों के अंतर से चीनी निर्यात वस्तुत: बंद हो गया है। देसी बाजार में चीनी 33-34 रुपये प्रति किलोग्राम पर बिक रहा है। इसके अतिरिक्त पीडीएस के तहत दालों व खाद्य तेलों का वितरण पूरी तरह सब्सिडी वाली कीमतों पर करने की योजना है। मौजूदा समय में दो योजनाएं हैं, जिसके तहत इन दोनों जिंसों की खरीद होती है। एक के तहत नैशनल कोऑपरेटिव कंज्ूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड दालों व खाद्य तेलों का वितरण पीडीएस के जरिए सब्सिडी वाली कीमतों पर करता है। एनसीसीएफ को खरीद लागत के 25 फीसदी की दर से भुगतान मिलता है। एक और योजना है जहां नेफेड दालों की खरीद व वितरण करता है, लेकिन इसे खरीद लागत का 15 फीसदी हिस्सा मिलता है। अधिकारियों ने कहा कि किसी भी योजना में एजेंसियां खरीद व वितरण की लागत हासिल कर पाती हैं, ऐसे में मंत्रालय व नेफेड इसे सुनिश्चित करना चाहता है। शुरू में बारिश के असमान वितरण के चलते दलहन व तिलहन की ज्यादातर फसल में या तो कमी है या फिर इसकी आवक देर से होगी। दोनों ही मामलों में कीमतों के मजबूत रहने की संभावना है। सरकार दालों व तेल के आयात के लिए प्रावधान कर चुकी है। मॉनसून सीजन में दलहन का रकबा भी पिछले साल के मुकाबले घटा है, साथ ही तिलहन का भी। पिछले तीन साल से भारत ने औसतन 25-35 लाख टन दाल और 80-90 लाख टन खाद्य तेल का आयात का है। (BS Hindi)

घटा सोने का आयात

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सोने का आयात 18.4 फीसद घट गया है। इससे 71,912 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत हुई है। वाणिज्य राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिंया ने राज्यसभा को एक लिखित जवाब में यह जानकारी दी है। हालांकि, उन्होंने अप्रैल-जून में इसमें कमी का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया है। सिंधिया ने अपने जवाब में कहा है कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में पीली धातु की ऊंची कीमत के चलते मांग घटी है। साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी और इसके आयात पर सीमा शुल्क बढ़ाए जाने का भी असर हुआ है। माना जा रहा है कि इससे सरकार को थोड़ी राहत मिलेगी क्योंकि इसके आयात पर काफी विदेशी मुद्रा खर्च की जाती है। पिछले कई सालों से सोने के लगातार बढ़ते आयात के चलते व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है। उधर, लोकसभा में वित्त राज्य मंत्री एसएस पलानिमणिक्कम ने एक अन्य सवाल के लिखित जवाब में बताया कि वित्त वर्ष 2011-12 में 1067 टन सोने का आयात किया गया। 2010-11 में 969 टन और 2009-10 में 850 टन सोना विदेश से आया था। उन्होंने बताया कि देश में सालाना सिर्फ दो टन सोने का उत्पादन होता है। (Dainik Bhaskar)

सोने पर हॉलमार्किंग अनिवार्य करे सरकार: कैग

बेईमान ज्वैलर्स से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने सरकार से सोने के गहनों पर हॉलमार्किंग अनिवार्य करने की सलाह दी है। फिलहाल सोने की हॉलमार्किंग स्वैच्छिक है। हॉलमार्किंग सोने के गहनों की शुद्धता प्रमाण है और इसकी प्रशासकीय इकाई भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) है। बृहस्पतिवार को संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय और भारतीय मानक ब्यूरो को ग्राहकों के हितों को ध्यान में रखते हुए सोने के गहनों की हॉलमार्किंग अनिवार्य करने पर विचार करना चाहिए। बीआईएस की स्वैच्छिक हॉलमार्किंग योजना के अंतर्गत सुनारों और ज्वैलर्स की सीमित पहुंच के चलते ग्राहकों को अशुद्ध सोने की गहनों की खरीदारी का जोखिम उठाना पड़ता है। हॉलमार्किंग प्रमाणन को अनिवार्य बनाने के लिए बीआईएस अधिनियम में संशोधन नहीं किया गया। कैग ने कहा कि बीआईएस का यह जवाब स्वीकार्य योग्य नहीं है। बीआईएस का कहना है कि सोने की हॉलमार्किंग अनिवार्य करने के लिए उसके अधिकार में बढ़ोतरी की आवश्यकता है। इसके लिए कानून में संशोधन करना होगा, जो अधिकार उपभोक्ता मंत्रालय के पास है। कैग ने कहा है कि बीआईएस के राष्ट्रीय मानक इकाई है और इसके पास ग्राहकों को उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने का अधिकार है। मालूम हो कि, जनवरी में कैबिनेट ने बीआईएस संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है। इसे अभी संसद में पेश किया जाना बाकी है। इस संशोधन विधेयक का उद्देश्य हॉलमार्किंग को अनिवार्य किए जाने के साथ सोने सहित कई उत्पादों पर इसके अंतर्गत लाना है। (amar Ujala)

30 अगस्त 2012

बारिश के लिहाज से बेहतर अगस्त

अगस्त में अच्छी बारिश से न केवल दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून सीजन 2012 के दौरान बारिश में कमी का अंतर घटा है, बल्कि अगस्त पिछले चार सूखे वर्षों में सबसे बेहतर रहा है। इससे उम्मीद बंधी है कि अगर यह रुझान सितंबर में जारी रहता है तो धान और अन्य खरीफ फसलों के उत्पादन में काफी सुधार आएगा। सितंबर चार महीनों के मॉनसून सीजन का आखिरी महीना होता है। सीआईआई के एक कार्यक्रम से इतर कृषि सचिव आशीष बहुगुणा ने संवाददाताओं से कहा, 'मुझे नहीं लगता कि सितंबर की बारिश अल नीनो से प्रभावित होगी। चाहे अलनीनो की वजह से तापमान में बढ़ोतरी हो, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इससे मॉनसून पर असर पड़ेगा। यह विश्व के अन्य हिस्सों को प्रभावित कर सकता है।' उन्होंने यह भी कहा कि आमतौर पर सितंबर के पहले सप्ताह से शुरू होने वाली दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून की वापसी में इस साल देरी हो सकती है, क्योंकि इस साल मॉनसून करीब 4-5 दिन देरी से आया था। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने अनुमान लगाया है कि अल नीनो की वजह से सितंबर में बारिश अगस्त से कम रह सकती है। अल नीनो के कारण सामान्य से कम बारिश होती है। आईएमडी के अधिकारियों ने कहा कि आज तक देश में अगस्त महीने में सामान्य से करीब 1 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। इस सप्ताह के अंत तक भारतीय मौसम विभाग के सितंबर के पूर्वानुमान जारी करने की संभावना है। आईएमडी के दीर्घकालीन पूर्वानुमान विभाग के निदेशक डी एस पाई ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'आमतौर पर हमारे यहां अगस्त में करीब 26.13 सेंटीमीटर बारिश होती है, लेकिन इस साल बुधवार तक यह सामान्य से 1 फीसदी अधिक रही है।' उन्होंने कहा कि अगस्त में देशभर में कुल बारिश 261.3 मिलीमीटर के स्तर को छू सकती है, क्योंकि महीने के समाप्त होने में अभी कुछ दिन शेष हैं। पिछले साल सूखे वर्षों 2009, 2004, 2002 और 1987 में अगस्त के दौरान बारिश सामान्य से करीब 20.2 फीसदी कम रही। वर्ष 2004 के दौरान सामान्य से 4.3 फीसदी कम, 2002 में 12.9 फीसदी कम और 1987 में 3.7 कम रही। एक अन्य अधिकारी ने कहा, 'जिन वर्षों में कुल बारिश कमजोर रही, उसके लिहाज से अगस्त सबसे बेहतर रहा है।' मौसम विभाग के विश्लेषकों के मुताबिक भारतीय मौसम विभाग एक वर्ष को सूखा तब घोषित करता है, जब चार महीने के दक्षिणी पश्चिम मॉनसून के अंत में कुल बारिश में 10 फीसदी से ज्यादा कमी रहती है और देश का 20-40 फीसदी हिस्सा सूखे की स्थिति में होता है। जुलाई के अंत तक देश में बारिश की कमी करीब 20 फीसदी थी। (BS Hindi)

मॉनसून पर नहीं पड़ेगा अल-नीनो का असर

अगस्त में अच्छी बारिश से न केवल दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून के दौरान बारिश में कमी का अंतर घटा है, बल्कि अगस्त पिछले चार सूखे वर्षों में सबसे बेहतर रहा है। इससे उम्मीद बंधी है कि अगर यह रुझान सितंबर में जारी रहता है तो धान और अन्य खरीफ फसलों के उत्पादन में काफी सुधार आएगा। सितंबर चार महीनों के मॉनसून सीजन का आखिरी महीना होता है। कृषि सचिव आशीष बहुगुणा ने संवाददाताओं से कहा, 'मुझे नहीं लगता कि सितंबर की बारिश अल नीनो से प्रभावित होगी।' उन्होंने यह भी कहा कि आमतौर पर सितंबर के पहले सप्ताह से शुरू होने वाली दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून की वापसी में इस साल देरी हो सकती है, क्योंकि इस साल मॉनसून करीब 4-5 दिन देरी से आया था। आईएमडी के अधिकारियों ने कहा कि आज तक देश में अगस्त महीने में सामान्य से करीब 1 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। (BS Hindi)

और चढऩे लगीं चीनी की कीमतें

महाराष्ट्र और कर्नाटक में बारिश की कमी से काफी गन्ना सूख चुका है, जो मवेशियों के चारे में इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में रिकॉर्ड बुआई के बावजूद अगले चीनी वर्ष में उत्पादन घटने का खटका है। इससे चीनी के दाम चढऩे लगे हैं। बारिश में कमी के कारण पिछले महीने ही चीनी चढ़ गई थी, लेकिन सरकार ने उसके कान उमेठ दिए थे। कारोबारियों के मुताबिक सितंबर के अंत में त्योहारों के लिए चीनी की खरीद होने लगेगी, जिससे उसकी कीमत बढ़ सकती है। कमोडिटीइनसाइटडॉटकॉम के वरिष्ठ जिंस विश्लेषक प्रशांत कपूर कहते हैं कि महाराष्ट्र में सूखा गन्ना भी 2,500 से 3,000 रुपये प्रति टन बिक रहा है और 2.5 करोड़ टन गन्ना चारे में जा सकता है। इसलिए वहां चीन उत्पादन घटना तय है। कर्नाटक में सूखे के कारण चीनी का उत्पादन कम होगा, इसलिए इसकी कीमतें बढ़ सकती हैं। चीनी विक्रेता कंपनी एसएनबी एंटरप्राइजेज के सुधीर भालोटिया ने बताया कि 30 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक होने की खबर है और अगले चीनी वर्ष में भी उत्पादन 260 लाख टन से घटकर 235 लाख टन रह सकता है। खाद्य मंत्री के वी थॉमस भी ऐसी आशंका जता चुके हैं। इसलिए पिछले दो दिन में उत्तर प्रदेश में चीनी का एक्स फैक्टरी भाव 50-60 रुपये बढ़कर 3,450 से 3,530 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। दिल्ली पहुंच भाव भी चढ़कर 3,600 से 3,650 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। महाराष्ट्र में भी चीनी तेज होकर 3,300 से 3,375 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। इंडियाबुल्स के सह उपाध्यक्ष (शोध) बदरुद्दीन कहते हैं कि त्योहारी खरीद शुरू होने से चीनी के दाम आगे बढ़ सकते हैं। (BS Hindi)

गन्ना पेराई में होगी देरी

आधिकारिक रूप से यह खुलासा कर दिया गया है कि गन्ने की कम उपलब्धता की वजह से महाराष्ट्र में पेराई सीजन 2012-13 1 अक्टूबर के बजाय 1 नवंबर से शुरू होगा। राज्य में कम बारिश और 2.5 करोड़ टन गन्ने का चारे के रूप में इस्तेमाल होने से इसकी उपलब्धता घटी है। राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की अध्यक्षता वाले एक मंत्री समूह ने इस बारे में बुधवार को अपनी स्वीकृति दे दी। यह भी फैसला किया गया है कि सरकार अक्टूबर की शुरुआत में इस बात की समीक्षा करेगी कि राज्य के हिस्सों में बारिश के जोर पकडऩे की स्थिति को देखते हुए पेराई सीजन जल्दी यानि 15 अक्टूबर से शुरू किया जाए या नहीं। राष्ट्रीय उत्पादन में 30 फीसदी से ज्यादा योगदान देने वाला राज्य 2012-13 के दौरान 62 लाख टन चीनी उत्पादन के लिए 5.5 करोड़ टन गन्ने की ही पेराई कर पाएगा। रिकवरी केवल 11.30 फीसदी रहने का अनुमान है। राज्य सरकार के एक अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'राज्य के ज्यादातर गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में अपर्याप्त बारिश हुई है और खेतों में खड़े हुए गन्ने का चारे के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। इसकी वजह से चीनी मिलों के अधिकार क्षेत्र में गन्ने की कम उपलब्धता होगी और निकटवर्ती क्षेेत्रों से भी गन्ना खरीदना उनके लिए मुश्किल होगा। सरकार ने उन मिलों को पेराई लाइसेंस नहीं देने का निर्णय लिया है, जहां गन्ने की उपलब्धता 50 फीसदी से कम है।' अधिकारी के मुताबिक उत्पादन गिरकर 60 लाख टन से नीचे आ सकता है। अधिकारी ने कहा कि राज्य में 2011-12 के दौरान 7.71 करोड़ टन गन्ने की खरीद की गई थी, जिससे 89.9 लाख टन चीनी उत्पादित हुई। इसकी रिकवरी 11.67 फीसदी रही थी। पिछले सीजन के दौरान 120 सहकारी मिलों सहित करीब 162 मिलों ने पेराई की थी। हालांकि इस साल यह संख्या पर्याप्त गन्ना न मिलने की वजह से घट सकती है। गन्ना उत्पादकों को पहले अग्रिम के भुगतान के बारे में मंत्री समूह ने बुधवार को हुई बैठक में कोई निर्णय नहीं लिया। हालांकि राज्य के चीनी आयुक्त कार्यालय द्वारा पहले ही मिलों को यह निर्देश जारी किया जा चुका है कि पहला अग्रिम उचित और लाभकारी कीमत से कम नहीं होना चाहिए। (BS Hindi)

मंत्री ने उर्वरक कंपनियों के खिलाफ खोला मोर्चा

एनबीएस पॉलिसी का नाजायज फायदा उठाकर कंपनियों ने दाम कई गुना बढ़ाए, एनबीएस नीति में प्राइस डिकंट्रोल का मतलब यह नहीं है कि कंपनियां मनमाने तरीके से गरीब किसानों से उर्वरकों की ऊंची कीमत वसूलकर मोटा मुनाफा कमाएं। - श्रीकांत जेना, उर्वरक राज्य मंत्री कॉरपोरेट मनमानी रुपये की गिरावट के बहाने डीएपी व एमओपी की कीमत में नाजायज वृद्धि गरीब किसानों के लिए कीमत बढ़ाकर हो रही है भारी मुनाफाखोरी कीमत में 4,000 से 6,000 रुपये प्रति टन का मुनाफा लेना जायज नहीं डिकंट्रोल का मतलब कीमत निर्धारण में कंपनियों की मनमानी नहीं फर्टिलाइजर मंत्री ने अपने ही सेक्टर की कंपनियों के बारे में पीएम से की शिकायत उर्वरक राज्य मंत्री श्रीकांत जेना ने फर्टिलाइजर कंपनियों द्वारा पोटाश व फॉस्फेट आधारित उर्वरकों की कीमतों में नाजायज बढ़ोतरी करके मुनाफा कमाने के बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से शिकायत की है। उन्होंने इस संबंध में प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। पहली बार अपने सेक्टर के बारे में ही किसी मंत्री ने इस तरह की शिकायत की है। फर्टिलाइजर सेक्टर के प्रभारी होने के नाते जेना को इस क्षेत्र की कंपनियों की देखरेख करनी होती है लेकिन उन्होंने शिकायत की है कि सरकार द्वारा घोषित न्यूट्रिएंट बेस्ड सब्सिडी (एनबीएस) स्कीम में गैर-यूरिया उर्वरकों की कंपनियां मुनाफाखोरी के लिए इस स्कीम का दुरुपयोग कर रही हैं। फॉस्फेटिक व पोटाशिक (पीएंडके) उर्वरकों जैसे डीएपी और एमओपी को एनबीएस नीति के तहत लाया गया है। सरकार ने अप्रैल 2010 में इन उर्वरकों का उत्पादन करने वाली कंपनियों को अपने स्तर पर मूल्य तय करने का अधिकार दे दिया था। इस साल अप्रैल से पहले डीएपी के भाव 18,200 रुपये प्रति टन थे। अब इसके भाव बढ़कर 25,440 रुपये प्रति टन हो गए हैं। वर्ष 2011 की दूसरी छमाही में डीएपी के भाव 17,200 रुपये प्रति टन थे, जबकि एक साल पहले इसके दाम 9,920 रुपये प्रति टन के स्तर पर थे। इसी तरह एमओपी के दाम 2010 में 4,440 रुपये प्रति टन थे। कंपनियों ने इसकी कीमत बढ़ाकर 2011 में 11,300 रुपये प्रति टन कर दिए। मौजूदा वर्ष में इसके भाव 12,200 रुपये से 23,100 रुपये प्रति टन के बीच रहे। पिछले 4 अगस्त को जेना ने प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में कहा है कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के एक्सचेंज रेट में भारी उथल-पुथल का फायदा उठाकर कंपनियां इन दोनों किस्मों के उर्वरकों की बिक्री अनुचित रूप से अत्यधिक ऊंची कीमत पर कर रही हैं और इससे मोटा मुनाफा कमा रही हैं। कंपनियां असामान्य रूप से 4,000 से 6,000 रुपये प्रति टन का मुनाफा ले रही हैं। उन्होंने कहा कि पहले डीएपी का फुटकर मूल्य 18,200 रुपये प्रति टन होता था, अब इसकी कीमत बढ़कर 26,000 रुपये प्रति हो गया है। (Business Bhaskar)

विश्व बाजार में निचला स्तर छूकर चीनी के दाम बढ़े

20.35 सेंट प्रति पाउंड हो गई रॉ शुगर आईसीई में 563.80 डॉलर प्रति टन पर व्हाइट शुगर लिफ्फे में आईसीई एक्सचेंज रॉ शुगर के दाम बुधवार को सुधर गए। मंगलवार को रॉ शुगर के दाम ब्राजील में पैदावार अच्छी रहने की संभावना से 11 सप्ताह के निचले स्तर पर रह गई थी। आईसीई एक्सचेंज में अक्टूबर डिलीवरी रॉ शुगर 2.22 सेंट (1.1 फीसदी) बढ़कर 20.35 सेंट प्रति पाउंड हो गई। मंगलवार को इसके दाम गिरकर 19.45 सेंट प्रति पाउंड रह गए थे। पिछले 6 जून के बाद का यह सबसे निचला मूल्य स्तर था। दूसरी ओर लिफ्फे एक्सचेंज में अक्टूबर डिलीवरी व्हाइट शुगर 3.90 डॉलर (0.7 फीसदी) बढ़कर 563.80 डॉलर प्रति टन हो गई। मंगलवार को इसका भाव अगस्त 2010 के बाद के निचले स्तर 544.50 डॉलर प्रति टन रह गया था। हालांकि बाद में लिफ्फे में व्हाइट शुगर के दाम सुधर गए। विश्लेषकों के अनुसार बुधवार को निचले मूल्य स्तर पर निवेशकों की खरीद में दिलचस्पी बढऩे के कारण चीनी के मूल्य में तेजी का रुख दर्ज किया गया। (Business Bhaskar)

विदेशी बाजार में सोया मील आयात के कई बड़े सौदे

610 डॉलर प्रति टन के भाव पर सौदे हुए हैं भारतीय सोया मील के। अगली फसल का पहला सौदा 25 हजार टन सोया मील के लिए हुआ है। थाईलैंड और वियतनाम ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में दो माह के अंतराल के बाद आक्रामक तरीके से सोया मील की खरीद दुबारा शुरू कर दी है। कारोबारियों के अनुसार थाईलैंड की फीड मिलों ने हाल में 10 लाख टन सोया मील खरीद के सौदे किए हैं जबकि वियतनाम ने दो लाख टन के आयात सौदे किए हैं। अमेरिका में भीषण के कारण पिछले जून से शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड में सोयाबीन के मूल्य में जोरदार तेजी के बाद इन दोनों ही प्रमुख आयातक देशों ने खरीद करीब बंद क दी थी। फुकेट में हो रही रीजनल ग्रेन कांफ्रेंस में भाग लेने आए तीन व्यापारियों ने संवाददाताओं को बताया कि भारत ने नई फसल की सोयाबीन से तैयार होने वाली सोया मील की बिक्री का पहला सौदा किया है। 25 हजार टन सोया मील निर्यात के लिए यूरोप के एक खरीदार से सौदा हुआ है। थाईलैंड की मिलों ने सीबॉट के भाव पर 30 से 50 डॉलर प्रति टन प्रीमियम पर सोया मील आयात के सौदे किए हैं। ये सौदे दक्षिण अमेरिकी देशों के साथ किए गए हैं। जबकि भारतीय सोया मील के सौदे 610 डॉलर प्रति टन के भाव पर हुए हैं। एक इंटरनेशनल ट्रेडिंग कंपनी के अधिकारी ने बताया कि शुरू में कुछ बड़े आयातकों ने प्राइवेट टेंडर के जरिये सोया मील की खरीद की थी। लेकिन इसके बाद व्यापारिक गतिविधियां तेज हो गईं क्योंकि छोटी मिलें भी खरीद के लिए आगे आ गईं। अधिकारी के अनुसार सोया मील की मांग बढऩे लगी है। (Business Bhaskar)

सरकार भी उठाएगी गेहूं में तेजी का फायदा

आर.एस. राणा नई दिल्ल क्या है योजना सितंबर से ओएमएसएस के तहत भाव में बढ़ोतरी करने का फैसला एमएसपी में परिवहन लागत जोड़कर गेहूं की बिक्री करेगी सरकार ओएमएसएस के तहत दाम में बढ़ोतरी का फैसला गेहूं की कीमतों में आई तेजी का फायदा अब सरकार भी उठाएगी। खाद्य मंत्रालय ने सितंबर से खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं के बिक्री भाव में बढ़ोतरी करने का फैसला किया है। सितंबर से ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में परिवहन लागत जोड़कर किए जाने की योजना है। ऐसे में दिल्ली की फ्लोर मिलों के लिए निविदा भरने का न्यूनतम भाव 1,330 रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगा। वर्तमान में दिल्ली में निविदा भरने का न्यूनतम भाव 1,285 रुपये प्रति क्विंटल है। दिल्ली के लारेंस रोड पर गेहूं का भाव 1,650-1,680 रुपये प्रति क्विंटल है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सितंबर से ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री एमएसपी 1,285 रुपये प्रति क्विंटल में परिवहन लागत (लुधियाना से राज्य की राजधानी के आधार पर) जोड़कर की जाएगी। ऐसे में दिल्ली में गेहूं का बिक्री भाव 1,330 रुपये और बंगलुरू में 1,529 रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगा। उन्होंने बताया कि दिल्ली में इस समय गेहूं का बिक्री भाव 1,285 रुपये प्रति क्विंटल है। हाल ही एफसीआई द्वारा मांगी गई निविदा में सबसे ऊंची बोली 1,681 रुपये प्रति क्विंटल की मिली है। अन्य राज्यों पंजाब में एफसीआई को गेहूं की बिक्री के लिए निविदा में भाव 1,451 रुपये, हरियाणा में 1,588 रुपये, राजस्थान में 1,650 रुपये, मध्य प्रदेश में 1,650 रुपये तथा उत्तर प्रदेश में 1,550 रुपये प्रति क्विंटल का मिला है। सूत्रों के अनुसार चंडीगढ़ की फ्लोर मिलों ने निविदा का भाव 1,286 रुपये प्रति क्विंटल कोट किया था लेकिन एफसीआई ने निविदा को ही निरस्त कर दिया है तथा अब नए सिरे से निविदा मांगी जाएगी। उन्होंने बताया कि ओएमएसएस के तहत और 10 लाख टन गेहूं का आवंटन किया जाएगा जिसमें से सितंबर-अक्टूबर के लिए क्रमश: पांच-पांच लाख टन का आवंटन होगा। केंद्र सरकार ने 19 जून को देशभर की फ्लोर मिलों को ओएमएसएस के तहत 30 लाख टन गेहूं बेचने का फैसला किया था। इसके अलावा तीन लाख टन गेहूं पहले किए गए आवंटन में से बचा हुआ है। इसके तहत 13 लाख टन गेहूं का आंवटन जून से अगस्त के दौरान किया जा चुका है। बाकि बचे हुए 10 लाख टन गेहूं का आवंटन नवंबर-दिसंबर में किए जाने की योजना है। केंद्रीय पूल में पहली अगस्त को 761.49 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूद था जिसमें से 475.26 लाख गेहूं और 285.03 लाख टन चावल है। कृषि मंत्रालय के चौथे आरंभिक अनुमान के अनुसार 2011-12 में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 939 लाख टन होने का अनुमान है।a (Business Bhaskar....R S Rana)

28 अगस्त 2012

वैश्विक मांग के बीच चमका सोना

दमदार वैश्विक मांग के बीच भारत में सोने की कीमत नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने को तैयार हैं। विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की सरकारें ताजा प्रोत्साहन पैकेज की चिंताओं के बीच महंगाई से निपटने के लिए सोने को सबसे सुरक्षित मान रही हैं। इस तरह वैश्विक बाजार में भी सोने की मांग में तेजी आई है। स्कॉटियामोकाटा के प्रबंध निदेशक रंजन वेंकटेश ने कहा, 'सोना पहले ही 1640 डॉलर के प्रतिरोध स्तर को पार कर चुका है और लंदन में इसकी कीमत प्रति औंस 1660 से 1670 डॉलर के बीच पहुंच चुकी है। ऐसी संभावनाएं हैं कि कीमतें और ऊपर चढ़कर जल्द ही प्रति औंस 1700 डॉलर के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर सकती हैं जिसका मतलब भारत में प्रति 10 ग्राम सोने की कीमत 32,000 रुपये तक पहुंच जाएगी।' इस बीच ब्लूमबर्ग सर्वे के अनुमान के मुताबिक मौजूदा साल के अंत तक सोने की कीमत प्रति औंस 1800 डॉलर तक पहुंच जाएगी, यानी कि मौजूदा स्तर से 15 फीसदी का इजाफा। सोमवार को सोने की कीमत में लगातार छठे दिन बढ़ोतरी दर्ज की गई और मुंबई के जवेरी बाजार में सोना प्रति 10 ग्राम 50 रुपये की तेजी के साथ 30,920 रुपये पर पहुंच गया। पिछले एक हफ्ते में सोने की कीमत 3 फीसदी तक बढ़ चुकी है। वहीं इस महीने अब तक इसकी कीमत में 3.5 फीसदी यानी 2000 रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की जा चुकी है। बार्कलेज कैपिटल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 'पिछले एक हफ्ते के दौरान सोने में तेजी यूरो के मजबूत होने और अगस्त एफओएमसी बैठक के ब्योरे की वजह से भी आई है। हालांकि अर्थशास्त्रियों का मानना है कि फेडरल रिजर्व अर्थव्यवस्था में और नकदी डालने से परहेज करेगा ऐसे में सोने के निवेशक कदम आगे बढ़ाने लगे हैं। अगस्त में गोल्ड ईटीपी तकरीबन 40 टन ऊपर हैं।' सोना प्रति औंस 1640 डॉलर के महत्त्वपूर्ण स्तर को पार कर चुका है मगर यहां इसे व्यापक सहारे की जरूरत होगी। डॉलर ने सोने की राह में रुकावटें खड़ी की हैं और विदेशी एक्सचेंज के रणनीतिकार अब भी यूरो के कमजोर होने की उम्मीद कर रहे हैं। सोने की खपत के लिहाज से मजबूत सीजन की शुरुआत हो चुकी है पर फिलहाल देश में सोने की मांग कमजोर ही है। स्थानीय बाजार में सोने की कीमतें रिकॉर्ड स्तर के आसपास हैं। बार्कलेज के विश्लेषकों का मानना है कि सितंबर का महीना सोने की कीमत के लिए महत्त्वपूर्ण रहेगा क्योंकि अगले हफ्ते जैकसन होल का भाषण आना है और एफओएमसी की बैठक भी है। साथ ही इसी मौसम में भारत में सोने की सर्वाधित खपत भी होती है। इस बीच रुपये में जारी लगातार कमजोरी की वजह से भी सोना महंगा हुआ है। डॉलर के मुकाबले रुपया 55.71 के स्तर पर पहुंच गया। बंबई बुलियन एसोसएशन के अध्यक्ष पृथ्वीराज कोठारी ने कहा कि इस साल रुपये में 20 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है और इस तरह सोना महंगा होता गया है। इस बीच ग्राहकों को रिझाने के लिए मुंबई में डीलरों ने प्रति 10 ग्राम सोने पर 10 डॉलर या 560 रुपये की छूट देनी शुरू कर दी है। (BS Hindi)

सीएसीपी ने की लेवी चीनी दायित्व समाप्त करने की वकालत

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने लेवी चीनी के दायित्व को समाप्त करने की मांग की है और सलाह दी है कि सरकार इसके बजाय पीडीएस के लिए मिलों से बाजार कीमत पर चीनी की खरीदारी करे। सीएसीपी ने अक्टूबर से शुरू होने वाले साल 2012-13 के विपणन सीजन के लिए गन्ने के उचित व लाभकारी मूल्य में 17 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी की सिफारिश करते हुए इस तरह की सलाह दी है। पिछले महीने केंद्रीय कैबिनेट ने इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया और साल 2012-13 के लिए गन्ने की एफआरपी अब 170 रुपये प्रति क्विंटल होगी। अपनी सिफारिशों के साथ सरकार को सौंपी विस्तृत रिपोर्ट में सीएसीपी अध्यक्ष अशोक गुलाटी ने कहा है कि जब चीनी मिलें लेवी का दायित्व पूरा करने के लिए बाजार कीमत से कम पर इसकी आपूर्ति करती हैं तो किसानों को गन्ने का उचित भुगतान करने की उसकी क्षमता प्रभावित होती है। नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के प्रबंध निदेशक विनय कुमार ने कहा - 'हमने हमेशा सुझाव दिया है कि लेवी के दायित्व को समाप्त कर दिया जाए।' भारत में सरकार करीब 28 लाख टन चीनी की आपूर्ति गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों और सेना के जवानों को बाजार से कम कीमत पर करती है। इसकी आपूर्ति के लिए सरकार मिलों से बाजार कीमत से कम पर चीनी की खरीदारी करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस पर सब्सिडी का खर्च करीब 7,000 रुपये प्रति टन बैठता है और पीडीएस के जरिए 27 लाख टन चीनी के वितरण (सेना के खरीद संगठन को होने वाली आपूर्ति को छोड़कर) पर कुल 1900 करोड़ रुपये खर्च होता है। इसका भार सबसे पहले चीनी उद्योग उठाता है और फिर किसानों को उठाना पड़ता है क्योंकि लेवी चीनी के दायित्व पूरा करने के चलते मिलें किसानों को ऊंची कीमतें नहीं दे सकतीं। आयोग ने कहा, अगर केंद्र सरकार के लिए यह संभव न हो तो इसका वैकल्पिक रास्ता है, पीडीएस के लिए वितरण के लिए चीनी की खरीदारी करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया जाए और फिर उन्हें उत्पादक राज्य से उपभोक्ता राज्य तक दूरी के हिसाब से तय सब्सिडी दी जाए। आयोग का यह भी कहना है कि एफसीआई मुश्किल वाले इलाकों में सेवा जारी रख सकता है, अगर संबंधित राज्य सरकारें ऐसी इच्छा व्यक्त करे और दूसरी जिंसों की खरीद की तरह सेना के जवान चीनी की खरीदारी बाजार से कर सकते हैं। आयोग ने चेताया है कि अगर खुले बाजार और पीडीएस में चीनी की कीमतों का अंतर 5-7 रुपये से ज्यादा होगा तो इसमें गड़बड़ी का खतरा है। आयोग ने इसके अलावा 20 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक बनाने की वकालत की है और निर्यात व आयात कर का इस्तेमाल चीनी की कीमतों में हो रहे उतारचढ़ाव पर लगाम कसने के लिए करने की बात कही है। (BS Hindi)

गेहूं की किल्लत से जूझ रही हैं आटा मिलें

साल 2011-12 में गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद देश भर की रोलर फ्लोर मिलें पिछले कुछ महीने से गेहूं की भारी किल्लत का सामना कर रही हैं। मिलें फिलहाल दोहरी समस्याओं से जूझ रही हैं - देसी बाजार में इसकी कीमतें काफी ऊंची हैं और भारतीय खाद्य निगम की निविदा में देरी हो रही है। गेहूं की कीमतें बढ़ रही हैं और मिलें किल्लत का सामना कर रही हैं, बावजूद इसके कि एफसीआई के पास 502 लाख टन गेहूं का भंडार है। उत्तर भारत के खुले बाजार में गेहूं की कीमतें जहां 1650 रुपये प्रति क्विंटल दायरे में है, वहीं कर्नाटक व तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में यह 2000 रुपये प्रति क्विंटल। ज्यादातर उत्तरी राज्यों में गेहूं 1700 रुपये प्रति क्विंटल पर उपलब्ध है। मालभाड़े की अतिरिक्त लागत के चलते दक्षिणी राज्यों में यह और भी महंगा यानी 2000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास पहुंच जाता है। दिल्ली के बाजार में गेहूं दो महीने पहले महज 1200 रुपये प्रति क्विंटल पर था। कीमतों में तेजी के चलते जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग ने गेहूं वायदा पर 10 फीसदी स्पेशल मार्जिन लगा दिया है। देसी बाजार में गेहूं की कीमतें तब बढऩी शुरू हुई जब पिछले साल नवंबर में सरकार ने निर्यात की अनुमति दी। अमेरिका में सूखे के परिणामस्वरूप देश के निजी कारोबारी निर्यात के लिए उत्साहित हुए और अब तक उन्होंने करीब 20 लाख टन गेहूं की निर्यात किया है। उद्योग के सूत्रों के मुताबिक, निजी कारोबारी निर्यात बाजार में 1750 रुपये प्रति क्विंटल का भाव हासिल कर रहे हैं (जबकि लागत करीब 1600 रुपये प्रति क्विंटल है) और गुजरात के कांडला बंदरगाह से बड़ी मात्रा में गेहूं का निर्यात हुआ। रोलर फ्लोर मिलें एफसीआई की निविदा के जरिए 1170-1185 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर गेहूं प्राप्त कर रहे हैं। निविदा व्यवस्था के जरिए एक फ्लोर मिल हर हफ्ते अधिकतम 3000 टन गेहूं प्राप्त कर सकता है, लेकिन इसकी पर्याप्त मात्रा उपलब्ध नहीं है। रोलर फ्लोर मिलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष आदी नारायण गुप्ता के मुताबिक, गेहूं का आवंटन क्षमता और पिछले तीन साल मेंं मिलों के प्रदर्शन के आधार पर होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर गेहूं का अबाधित निर्यात होता रहा तो गेहूं की कीमतें और बढ़ सकती हैं। मिलों को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए मंडी आने को बाध्य होना पड़ा है और इस वजह से खुले बाजार में भी दबाव बढ़ गया है। कर्नाटक में स्थिति और भी खराब है क्योंकि मिलों को अगस्त महीने के लिए स्टॉक आवंटित नहीं हुआ है। जुलाई के आखिरी हफ्ते से एफसीआई ने कर्नाटक के लिए निविदा रोक दी है। राज्य में संचालित 56 मिलें बंद होने के कगार पर हैं क्योंकि न तो वह ऊंची कीमतों पर खुले बाजार से गेहूं खरीद सकती हैं, न ही एफसीआई से क्योंकि मौजूदा समय में निविदा जारी नहीं हुई है। कर्नाटक रोलर फ्लोर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एम के गोपाल कृष्ण ने कहा - खुले बाजार में गेहूं नहीं है क्योंकि निजी कारोबारियों ने अपने स्टॉक के निर्यात को प्राथमिकता दे रहे हैं। चूंकि एफसीआई ने अगस्त में निविदा जारी नहीं की है, लिहाजा हमारे पास स्टॉक नहीं है और अगर एफसीआई तत्काल निविदा जारी नहीं करता है तो हम अपना कामकाज बंद कर देंगे। जुलाई से सितंबर के लिए एफसीआई ने कर्नाटक के लिए 2.30 लाख टन गेहूं आवंटित किया था। हालांकि जुलाई में उन्हें सिर्फ 1.30 लाख टन गेहूं मिला है जबकि बाकी स्टॉक एफसीआई के पास ही है। उन्होंने कहा कि एफसीआई निविदा की आधार कीमत 1285 रुपये प्रति क्विंटल करने की खातिर केंद्र सरकार की मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहा है। जब तक उसे आधार कीमत में बढ़ोतरी की इजाजत नहीं मिलती, अगस्त व सितंबर के लिए वे निविदा जारी नहीं करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि पंजाब की मिलों ने सरकार से निविदा की व्यवस्था समाप्त करने की मांग की है। सरकार के पास गेहूं का बड़ा भंडार है और इसे खुले बाजार में उतारा जाना चाहिए। गोपाल कृष्ण ने कहा - निजी कारोबारियों की तरफ से हो रहे गेहूं निर्यात पर सरकार को पाबंदी लगा देनी चाहिए और एफसीआई को सीधा निर्देश देना चाहिए कि वह सितंबर से ऊंची कीमत पर ही रही, थोक उपभोक्ताओं के लिए गेहूं जारी करे। (BS Hindi)

नहीं बढ़ेगा गेहूं का समर्थन मूल्य

नई दिल्ली। महंगाई रोकने में नाकाम रही सरकारी नीतियों का खामियाजा अब किसानों को भुगतना पड़ सकता है। अभी तक गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में आंख मूंद कर बढ़ोतरी कर रही सरकार ने किसानों को इस वर्ष ठेंगा दिखाने का मन बना लिया है। वजह यह बताई जा रही है कि समर्थन मूल्य बढ़ाने से ही खाद्यान्न की कीमतें आसमान छू रही हैं। खरीद की गारंटी और आकर्षक मूल्य मिलने से किसानों ने विपरीत परिस्थितियों में भी गेहूं की बंपर पैदावार की है। इसका इतना उत्पादन हुआ कि रखने की जगह कम पड़ने लगी है। मगर किसानों को दिया जा रहा समर्थन मूल्य का प्रोत्साहन ही अब सरकार को बोझ लगने लगा है। यही वजह है कि कृषि लागत व मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने आगामी रबी सीजन के लिए गेहूं के एमएसपी में किसी वृद्धि की सिफारिश नहीं की है। सरकार का एक बड़ा तबका खाद्यान्न की महंगाई के लिए एमएसपी में वृद्धि को जिम्मेदार मानता रहा है। वित्त मंत्रालय के साथ साथ खाद्य मंत्रालय भी इसके खिलाफ रहा है। पिछले पांच साल (2007-12) में गेहूं का एमएसपी 750 रुपये प्रति क्िवटल से बढ़ाकर 1285 रुपये कर दिया गया। सरकार के इसी प्रोत्साहन के चलते किसानों ने गेहूं का उत्पादन 7.85 करोड़ टन से बढ़ाकर 9.30 करोड़ टन तक पहुंचा दिया। इससे जहां खाद्य सुरक्षा को बल मिला है, वहीं सरकार सबके लिए रियायती अनाज देने वाले खाद्य सुरक्षा विधेयक लाने की मंशा पाले बैठी है। सूत्रों के मुताबिक सीएसीपी की ताजा सिफारिश में गेहूं के मौजूदा एमएसपी 1285 रुपये प्रति क्विंटल की दर को दुहरा दिया गया है। इसमें कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय गेहूं की लागत मूल्य अधिक होने की वजह से निर्यात करना संभव नहीं हो पा रहा है। एमएसपी में साल दर साल वृद्धि करने से ही खाद्य सब्सिडी 75 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। (Dainik Jagran)

27 अगस्त 2012

बढ़ती मांग से चने में तेजी के आसार

हाजिर बाजार में चने की मांग लगातार बढ़ रही है और चालू सत्र में इसकी फसल कमजोर है। इस कारण देश की प्रमुख मंडियों में चने की आपूर्ति घट रही है, जिससे जल्द ही इसके भाव चढ़ सकते हैं। हालांकि पिछले कुछ समय से चने की कीमतें स्थिर थीं, लेकिन आपूर्ति कमजोर रहने के कारण अब इसमें इजाफा होने लगा है। इसके हाजिर भाव 5,000 रुपये प्रति क्विंटल और वायदा भाव 4,285 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। पिछले एक महीने में ज्यादातर कृषि जिंसों की कीमतें गिरी हैं, लेकिन इसी दौरान चने के हाजिर और वायदा भाव 4 फीसदी उछले हैं। कारोबारियों के मुताबिक मिलों की ओर से खरीदारी बढऩे और राजस्थान तथा गुजरात से आवक कम होने के कारण चना महंगा हो रहा है। कृषि मंत्रालय के बुआई के आंकड़े बता रहे हैं कि इस साल चने का उत्पादन कम रह सकता है। इसी वजह से चना सटोरियों का लाड़ला बन गया है। सरकार के चौथे अग्रिल फसल अनुमान के मुताबिक 75.8 लाख टन चना उत्पादन की उम्मीद है, जबकि पिछले साल देश में 82.2 लाख टन चने का उत्पादन हुआ था। मंत्रालय के ताजा आंकड़े खरीफ के चालू सत्र में दलहन फसलों के रकबे में 21.5 फीसदी कमी बता रहे हैं। अभी तक 85.32 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहन फसलों की बुआई हुई है, जबकि पिछले साल 17 अगस्त तक आंकड़ा 97.38 लाख हेक्टेयर था। बाजार विशेषज्ञ भी चने की मजबूती की बात कह रहे हैं। ऐंजल कमोडिटीज की वेदिका नार्वेकर कहती हैं कि चने की कीमतों में गिरावट तो आ ही नहीं सकती क्योंकि उत्पादन कम होगा। कुछ दिन तक उन्हें चने में तेजी के आसार दिख रहे हैं और आगे खरीफ के उत्पादन आंकड़े ही इसकी चाल तय करेंगे। कोटक कमोडिटी के फैयाज हुदायनी के मुताबिक भी चने की कीमतें बढऩा तय है क्योंकि बाजार में मांग ज्यादा है और आवक कम। (BS Hindi)

अब सितंबर की बारिश पर टिकी नजरें

जून और जुलाई में दक्षिण पश्चिम मॉनसून की बारिश में कमी और अगस्त में सामान्य के करीब रहने के बाद सितंबर की बारिश (चार महीने के मॉनसून सीजन का आखिरी महीना) का महत्व काफी ज्यादा बढ़ गया है। आमतौर पर सितंबर के दौरान बारिश की तीव्रता घट जाती है और इस महीने में सीजन की कुल बारिश का महज 10-20 फीसदी होता है। हालांकि कुछ वर्षों में इस पैटर्न के अपवाद भी देखने को मिले हैं। सितंबर की बारिश रबी की बुआई के लिए अहम है क्योंकि मॉनसून सीजन के आखिर में अच्छी बारिश रबी फसलों के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी छोड़ जाती है। साथ ही यह देश के जलाशयों के लिए महत्वपूर्ण है, जो रबी सीजन (अक्टूबर-नवंबर से फरवरी) के दौरान उत्तर भारत में न सिर्फ सिंचाई के लिए बल्कि पेयजल और बिजली उत्पादन के लिए भी अहम है। असल में साल 2009 के सूखे के दौरान सितंबर की बारिश अगस्त के मुकाबले बेहतर रही थी, जिसने खरीफ की पैदावार में हुए नुकसान की काफी हद तक भरपाई में मदद की थी। साथ ही रबी की पैदावार भी बेहतर रही थी। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक, साल 2009 के दौरान सितंबर में सामान्य के मुकाबले 20.2 फीसदी कम बारिश हुई थी, जो अगस्त में सामान्य के मुकाबले 26.5 फीसदी कम बारिश से बेहतर थी। वास्तव में, पिछले 10 में से 5 सालों में सितंबर की बारिश अगस्त के मुकाबले ज्यादा रही है। हालांकि 2002 इसका अपवाद रहा है, क्योंकि उस साल सूखा पड़ा था। अगर मौसम विभाग और वैश्विक स्तर पर मॉनसून की भविष्यवाणी करने वालों पर भरोसा करें तो इस साल सितंबर में कम बारिश होगी और अल नीनो के चलते इसकी तीव्रता में भी कमी आएगी। अगर ऐसा हुआ तो रबी की बुआई पर असर पड़ सकता है। मौसम विभाग के अधिकारी डी एस पई ने कहा कि अब तक हमें लगता है कि सितंबर की बारिश अगस्त के मुकाबले कम रहेगी। फिर भी अगस्त की अच्छी बारिश ने उत्तर पश्चिम व पश्चिमी इलाकों में सूखे जैसी स्थिति को दूर कर दिया है। अगस्त की बारिश से साल 2012 के मॉनसून सीजन में बारिश में कमी सामान्य के मुकाबले महज 14 फीसदी रह गई है। अगस्त की शुरुआत में यह कमी 20 फीसदी से ज्यादा थी। सबसे ज्यादा गिरावट उत्तर पश्चिम भारत में देखी गई है, जहां जुलाई में बारिश में कुल कमी सामान्य के मुकाबले 50 फीसदी थी, जो अब घटकर 17 फीसदी रह गई है। विशेषज्ञों को लगता है कि अगर बारिश का मौजूदा दौर आगे भी जारी रहता है तो सामान्य के मुकाबले बारिश में कुल कमी अगस्त के अंत तक महज 10 फीसदी रह जाएगी। इस बारिश से देश के प्रमुख जलाशयों के जलस्तर में भी सुधार आया है और केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक जलाशयों का जलस्तर उनकी पूर्ण क्षमता का करीब 57 फीसदी है। मौसम विभाग ने कहा है कि पूर्व, उत्तर-पश्चिम, पश्चिम और मध्य भारत में इस हफ्ते भी भारी बारिश जारी रहेगी। (BS Hindi)

जूट बोरियों की कीमतें संशोधित करने का प्रस्ताव खारिज

जूट आयुक्त ने बोरियों की कीमतों में संशोधन की लंबे समय से चली आ रही उद्योग की मांग खारिज कर दी है। जूट बोरियों की कीमतें फिलहाल 55,979 रुपये प्रति टन है और इसका निर्धारण टैरिफ कमीशन के 2001 के फॉर्मूले पर हुआ है। जूट आयुक्त कार्यालय के मुताबिक जूट की बोरियों की मौजूदा कीमतें लाभकारी हैं और टैरिफ आयोग का साल 2011 का कीमत फॉर्मूला वैध है। मौजूदा व्यवस्था के तहत टैरिफ कमीशन से कीमत-फॉर्मूले में संशोधन का प्रस्ताव मिलने के बाद केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय इसकी सिफारिश आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी को कर सकता है। जूट आयुक्त कार्यालय के मुताबिक इस समय कीमतों में संशोधन की कोई दरकार नहीं है। इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन के चेयरमैन मनीष पोद्दार ने कहा - 'टैरिफ कमीशन नया अध्ययन करा रहा है। जब यह पूरा हो जाएगा, तब सिफारिशें केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय को सौंप दी जाएगी और मंत्रालय जूट की बोरियों की कीमतें संशोधित करने पर विचार करेगा। हालांकि वह दो बार पहले ही कीमतों में संशोधन का प्रस्ताव ठुकरा चुका है।' जूट उद्योग का कहना है कि कीमतों के पुराने फॉर्मूले के चलते उसे प्रति टन 4500-5000 रुपये का नुकसान हो रहा है। उद्योग यह मानने को तैयार नहीं है कि कम मानव दिवस (मैन डेज) के चलते वेतन व मजदूरी की लागत में आई कमी से उत्पादन लागत घटी है और बोरियों को कारोबार लाभकारी हो गया है। जूट आयुक्त कार्यालय के अनुमान के मुताबिक मजदूरी की लागत 1596 रुपये प्रति टन घटी है और जूट की बोरियों की मौजूदा कीमतें लाभकारी हैं। इस कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार एक टन जूट की बोरियों के उत्पादन में 38.32 मानव दिवस की दरकार होती है। कीमतों का आकलन जूट मैन्युफैक्चरर्स डेवलपमेंट काउंसिल के उत्पादकता मानकों पर आधारित है, जिसने अनुमान लगाया था कि एक टन जूट की बोरियों के उत्पादन में 42.9 मानव दिवस की दरकार होती है। इसके अतिरिक्त, 13 जूट मिलों के आंकड़ों से पता चलता है कि एक टन जूट बोरियों के उत्पादन में औसतन 40 लोग की दरकार होती है। उद्योग हालांकि टैरिफ कमीशन के 2001 के अप्रचलित कीमत फॉर्मूले पर टिका हुआ है। यहां यह बताना जरूरी है कि 9 फरवरी 2011 को केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय ने जूट आयुक्त कार्यालय को निर्देश दिया था कि वह 2001 के टैरिफ कमीशन रिपोर्ट के नियत कीमत अवयव का दोबारा आकलन करे और इसे महंगाई के साथ जोड़े। केंद्र सरकार ने टैरिफ कमीशन की साल 2009 में सौंपी गई संशोधित रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया था क्योंकि तब उसने पाया था कि यह कथित तौर पर सही नहीं है। टैरिफ कमीशन के साल 2009 के कीमत फॉर्मूले को लागू नहीं करने पर उद्योग का एक वर्ग पहले ही सरकार के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा चुका है। (BS Hindi)

हल्दी के न्यूनतम दाम तय करने पर होगा विचार

केंद्र सरकार ने कहा है कि वह हल्दी के न्यूनतम दाम तय करने पर विचार करेगी। हल्दी के दामों में भारी गिरावट के चलते उत्पादकों को हो रही दिक्कतों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री चरण दास महंत कहा कि हल्दी उत्पादकों की तरफ से एक याचिका दी गई है जिसमें हल्दी के दामों को न्यूनतम 9 हजार रुपये प्रति क्विंटल तय करने की अपील की गई है। इस बारे में जल्दी ही कृषि मंत्री शरद सकारात्मक जवाब देंगे। उन्होंने कहा कि वे हल्दी उत्पादकों की चिंता से अवगत हैं और इस बारे में मसाला बोर्ड, कृषि विभाग सहित रिसर्च संस्थानों के विशेषज्ञों से हल्दी के दामों के बारे में चर्चा भी कर चुके हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार एक ऐसी संस्था बनाने पर विचार कर रही है जो किसानों की समस्याओं का स्थाई रूप से समाधान करने में सहायक हो। दो साल पहले हल्दी के दाम 17 हजार रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गए थे जो जून से पहले गिरकर 3.5 हजार रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गए थे और अब 6.4 हजार रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर चल रहे हैं। हाल ही में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने मंत्री को एक याचिका दी थी जिसमें कहा गया था कि हल्दी के दाम 9 हजार रुपये प्रति क्विंटल से कम तर्कसंगत नहीं हैं। एमडीएमके के महासचिव वाइको ने कहा कि इस मामले में किसानों को एकजुटता दिखाने की जरूरत है क्योंकि वर्तमान कीमतें सही नहीं हैं और इससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। हालांकि फेडरेशन की तरफ से किसानों से अपील की जा रही है कि वे 9 रुपये प्रति क्विंटल के कम दामों में अपनी फसल को ना बेचे। (Business Bhaskar)

मांग घट जाने से काली मिर्च में गिरावट

ऊंचे भाव में मांग घटने से कालीमिर्च की कीमतों में गिरावट आई है। पिछले दस दिनों में घरेलू बाजार में कालीमिर्च की कीमतों में 2,300 रुपये की गिरावट आकर एमजी-वन क्वालिटी के भाव 40,700 रुपये और अगर्नाब्ल्ड के 39,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। अक्टूबर-नवंबर महीने में नई फसल की आवक शुरू हो जायेगी तथा नई फसल की पैदावार भी बढऩे का अनुमान है इसीलिए कीमतों में नरमी जारी रहने की संभावना है। केदारनाथ एंड संस के डायरेक्टर अजय अग्रवाल ने बताया की ऊंचे भाव में कालीमिर्च में मांग घटी है। महीनेभर बाद नई फसल की आवक शुरू हो जायेगी तथा नई फसल का उत्पादन भी पिछले साल के 45,000 टन से बढ़कर 50,000 टन होने का अनुमान है। कीमतों में आई तेजी को देखते हुए वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने जिंस एक्सचेंजों पर दिसंबर-जनवरी महीने के नये वायद अनुबंध जारी नहीं करने का फैसला लिया है। इसीलिए कीमतों में गिरावट आई है। कोच्चि में एमजी-वन कालीमिर्च का भाव घटकर 40,700 रुपये प्रति क्विंटल रह गया जबकि 14 अगस्त को इसका भाव 43,000 रुपये प्रति क्विंटल था। कालीमिर्च निर्यातक अनीश रावथर ने बताया कि भारतीय कालीमिर्च एमजी-वन का भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार में 6,840 डॉलर प्रति टन है जोकि पिछले महीने 7,150 डॉलर प्रति टन रहा था। उधर वियतनाम, ब्राजील और इंडोनेशिया की कालीमिर्च के दाम 6,000 से 6,150 डॉलर प्रति टन है। वियतनाम में करीब 55,000 से 60,000 टन का स्टॉक बचा हुआ है जबकि इंडोनेशिया और ब्राजील में नई फसल की आवक बनी हुई है। अत: भारत के मुकाबले अन्य देशों की कालीमिर्च के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम होने के कारण भारत से निर्यात मांग कमजोर बनी हुई है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2012-13 के अप्रैल महीने में कालीमिर्च का निर्यात 1,200 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 2,288 टन का निर्यात हुआ था। नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर सितंबर महीने के वायदा अनुबंध में कालीमिर्च की कीमतों में पिछले दस दिनों में 6.5 फीसदी की गिरावट आकर शनिवार को भाव 41,250 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। जबकि 14 अगस्त को इसका भाव 44,155 रुपये प्रति क्विंटल था। (Business Bhaskar....R S Rana)

बेहतर बारिश ने दी पैदावार को नई जान

बेहतर हालात धान, मोटे अनाज, सोयाबीन और गन्ने की फसल को फायदा गुजरात, कर्नाटक और महराष्ट्र में कम बारिश से मूंगफली और दलहन पर असर मौसम का साथ रहा तो धान का उत्पादन पिछले साल के स्तर पर तिलहन और दलहन की फसल पर नकारात्मक असर पडऩे की आशंका अगस्त महीने में मानसून में हुए सुधार से खरीफ फसलों का उत्पादन अनुमान बढ़ेगा। इस दौरान मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में हुई बारिश से धान, मोटे अनाज, सोयाबीन और गन्ने की फसल को ज्यादा फायदा होगा। हालांकि गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र में बारिश की कमी का असर मूंगफली और दलहन की फसलों पर पडऩे से इनका उत्पादन घटने की आशंका है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पहली जून से 15 जुलाई के दौरान जहां देशभर में मानसूनी वर्षा सामान्य से 22 फीसदी कम थी वहीं अगस्त में यह घटकर 14 फीसदी रह गई है। इस दौरान पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मानसून की सक्रियता बढऩे से खरीफ फसलों को फायदा हुआ है। हालांकि गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में मानसूनी वर्षा कम हुई है। गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ में सामान्य से 81 फीसदी और गुजरात रीजन में 47 फीसदी, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में 41 फीसदी और उत्तर-पूर्वी कर्नाटक में 37 फीसदी कम बारिश हुई है। कटक स्थित केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र ने बताया कि धान की रोपाई करीब 75 फीसदी हो चुकी है। हाल ही में हुई बारिश से बचे हुए क्षेत्रफल में भी रोपाई हो जाएगी। किसान 105-110 दिन में पकने वाली फसलों की रोपाई कर रहे हैं। इनके बीज भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। लिहाजा पकाई तक मौसम अनुकूल रहा तो चालू खरीफ में चावल का उत्पादन पिछले साल के लगभग बराबर ही हो जाएगी। पिछले साल खरीफ सीजन में 915.3 लाख टन चावल की पैदावार हुई थी। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अगस्त महीने में मानसून सुधरा है, जिससे फसलों का उत्पादन अनुमान पहले से बढ़ेगा। हालांकि दलहन और तिलहन की फसलों के उत्पादन में कमी आने की आशंका है। खरीफ में दलहन के प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के कई जिलों में सूखे जैसे हालात है जबकि राजस्थान में बारिश देर से शुरू हुई है। गुजरात में बारिश की कमी का असर मूंगफली और कपास की फसल पर पड़ेगा। कृषि मंत्रालय की ओर से जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार दलहन की बुवाई में 11.5 फीसदी की कमी आकर कुल बुवाई 88.30 लाख हेक्टेयर में, मोटे अनाजों की बुवाई में 12.9 फीसदी की कमी आकर 165.34 लाख हेक्टेयर में और धान की रोपाई में 3.7 फीसदी की कमी आकर कुल रोपाई 329.19 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है। तिलहनों की बुवाई में भी 3.3 फीसदी और कपास की बुवाई में 5.2 फीसदी की कमी आई है। (Business Bhaskar....R S Rana)

24 अगस्त 2012

चंचल मॉनसून ने रोका कपास उपज का आकलन

पश्चिम भारत के प्रमुख कपास उत्पादक इलाकों में सूखे को देखते हुए कपास सलाहकार बोर्ड ने गुरुवार को साल 2012-13 के लिए कपास उत्पादन अनुमान जाहिर करने से परहेज किया। कपास का कुल रकबा घटकर 110.3 लाख हेक्टेयर रह जाने का अनुमान है। बैठक के बाद कपड़ा आयुक्त ए बी जोशी ने कहा - अगले सीजन के लिए उत्पादन अनुमान पर हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए। सीएबी के मुताबिक, सबसे बड़े उत्पादक राज्य गुजरात में कमजोर मॉनसून के चलते कपास के रकबे में गिरावट आई है। जोशी ने कहा कि सौराष्ट्र इलाके में कम बारिश हुई है, साथ ही अब वहां और बुआई नहीं होगी। महाराष्ट्र के 100 तालुकों में सूखा घोषित किया गया है, लेकिन जलगांव प्रभावित नहीं हुआ है, वहीं विदर्भ में फसल बेहतर है। यहां कपास का कुल रकबा पिछले साल के बराबर रहने की संभावना है। कपास वर्ष 2011-12 के लिए देश में 353 लाख गांठ कपास उत्पादन की संभावना है जबकि इससे पूर्व वर्ष में 347 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। इस कपास वर्ष में 127 लाख गांठ कपास के निर्यात का अनुमान है जबकि पिछले साल 76 लाख गांठ कपास का निर्यात हुआ था। अब तक 126 लाख गांठ का निर्यात हो चुका है। चूंकि सीएबी ने उत्पादन का अनुमान जाहिर नहीं किया, लिहाजा इसने निर्यात का अनुमान जाहिर करने से भी परहेज किया। सूत्रों का कहना है कि अगर अनुमान के मुताबिक उत्पादन में बड़ी गिरावट आती है तो कपास को ओजीएल से बाहर किया जा सकता है। मौजूदा कपास वर्ष में देश में कपास का आयात 140 फीसदी ज्यादा रहने की संभावना है। इस साल कीमतों में अंतर के चलते भारत ने गैर-पारंपरिक किस्म की कपास का आयात किया है। जोशी ने कहा कि वैश्विक बाजार के मुकाबले भारत में कीमतें चार से छह सेंट ज्यादा है। उन्होंने यह भी कहा कि अगले कुछ महीने तक आयात जारी रहेगा। उधर रॉयटर्स ने कहा है कि चीन ने कपड़ा मिलों के लिए 4 लाख टन और कपास आयात का अतिरिक्त कोटा आवंटित किया है ताकि मिलों को वैश्विक स्तर पर और ज्यादा सस्ती आपूर्ति का फायदा मिले। (BS Hindi)

रत्न से हटेगा आयात शुल्क!

सरकार विभिन्न किस्म के रत्नों पर लगे 2 फीसदी आयात शुल्क को वापस ले सकती है। बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने हीरे की तरह ही रंगीन रत्नों पर भी आयात शुल्क लगाने का प्रस्ताव किया था। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा, 'मैं रत्नों पर 2 फीसदी आयात शुल्क लगाने के पक्ष में नहीं हूं और इसे हटाने के लिए वित्त मंत्री से बात की जाएगी।।' उन्होंने कहा कि हीरे के आभूषणों के प्रसंस्करण और निर्यात का कारोबार सालाना 42 अरब डॉलर का है जबकि फैशन एक्सेसरीज (रत्नों) की हिस्सेदारी बहुत कम है। हालांकि देश में इसके काफी ग्राहक हैं और निर्यात की भी अपार संभावनाएं हैं। ऐसे में हमें इस क्षेत्र पर ध्यान देने की जरूरत है। 2011-12 के बजट में विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) में परिचालन करने वाली इकाइयों के मुनाफे पर 18.5 फीसदी न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) लगाने का प्रस्ताव किया गया है जिससे इस क्षेत्र की इकाइयों पर असर पडऩे की आशंका है। ऐसे में सरकार अन्य मंत्रालयों के साथ बातचीत कर मैट को भी वापस लेने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि हीरा उद्योग को अपना कारोबार बढ़ाने के लिए तकनीक का उन्नयन करना चाहिए। (BS HIndi)

श्रीलंका का चाय उत्पादन घटने का अनुमान

श्रीलंका के चाय उत्पादन में लगातार छठे माह जुलाई में भी गिरावट दर्ज की गई। श्रीलंका के टी बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक सूखे के हालात पैदा होने के कारण चाय का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। जुलाई में चाय का उत्पादन 4.2 फीसदी घटकर 241.1 लाख किलो रह गया। जबकि पिछले साल जुलाई में 251.7 लाख किलो चाय का उत्पादन हुआ था। मौजूदा वर्ष में कुल उत्पादन पिछले साल के मुकाबले कम रह सकता है। चालू वर्ष के पहले सात महीनों में चाय का कुल उत्पादन 3.9 फीसदी घटकर 1881.6 लाख किलो रह गया। पिछले साल समान अवधि में 1958.3 लाख किलो चाय का उत्पादन हुआ था। चाय ब्रोकरेज फर्म एशिया सियाका के प्रमुख अनिल कुक ने कहा कि पिछले अप्रैल से श्रीलंका में पर्याप्त बारिश नहीं हुई है, इस वजह से चाय के उत्पादन में कमी आ रही है। चाय उत्पादन की लागत की लागत में भी बढ़ोतरी हुई है। इस वजह से सूखे के हालात के चलते कुछ छोटे उत्पादकों ने उत्पादन बंद कर दिया है। श्रीलंका से निर्यात होने वाली वस्तुओं में चाय सबसे ऊपर आती है। चालू वर्ष में वहां कुल 3250 लाख किलो चाय का उत्पादन होने की संभावना है। जबकि 3300 लाख किलो चाय के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था। सूखे के कारण चाय के उत्पादन में गिरावट आ रही है। पिछले साल श्रीलंका में कुल 3283.7 लाख किलो चाय का उत्पादन हुआ था। वर्ष 2010 में 3314.3 लाख किलो चाय का उत्पादन हुआ था। (Business Bhaskar)

भारत में ऑर्गनिक फूड बाजार की वृद्धि दर 22%

देश में ऑर्गनिक फूड का बाजार में हर साल करीब 20-22 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। यस बैंक के फूड एंड एग्री बिजनेस प्रमुख गिरीश ऐवाली ने कहा है कि मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढऩे और रसायन मुक्त खाद्य वस्तुओं के प्रति जागरूकता बढऩे की वजह से प्राकृतिक तरीके से उगाए गए ऑर्गनिक फूड की मांग तेजी से बढ़ रही है। यस बैंक ने भारत ऑर्गेनिक फूड बाजार के बारे में यहां एक कांफ्रेंस में रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर ऑर्गनिक फूड का बाजार 2015 में बढ़कर 104.5 अरब डॉलर का हो जाएगा। वर्ष 2010 में यह बाजार 57.2 अरब डॉलर का था। विश्व स्तर पर इस बाजार की विकास दर करीब 12.8 फीसदी है। ऑर्गनिक फूड का सबसे बड़ा बाजार यूरोप में है। यूरोप में वर्ष 2010 में 27.8 अरब डॉलर के ऑर्गनिक की बिक्री हुई। एशिया-पैसेफिक क्षेत्र में यह बाजार 3.5 अरब डॉलर का है। इसकी विकास दर 16.2 फीसदी है। भारत में ऑर्गनिक फूड का कुल बाजार (निर्यात को मिलाकर) करीब 1,000 करोड़ रुपये का होने का अनुमान है। (Business Bhaskar)

सोना 31,000 की गोल्डन ऊंचाई पर

सोने में अभी और तेजी का रुख दिख रहा है। हाजिर में सोने का भाव और चढ़कर 1695 डॉलर प्रति औंस को भी छू सकता है। -नितिन नचनानी रिसर्च एनालिस्ट, जियोजीत कॉमट्रेड लिमिटेड अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतों में आई जोरदार तेजी से गुरुवार को घरेलू बाजार में इसके दाम ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गए। दिल्ली सराफा बाजार में सोने का भाव 290 रुपये चढ़कर 31,035 रुपये प्रति दस ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। चांदी की कीमतों में भी इस दौरान 1,000 रुपये की तेजी आकर भाव 57,000 रुपये प्रति किलो हो गए। दिल्ली बुलियन वेलफेयर ज्वैलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष वी के गोयल ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतों में भारी तेजी बनी हुई है। इसका असर घरेलू बाजार में सोने की कीमतों पर पड़ रहा है। हालांकि, भाव ऊंचे होने के कारण घरेलू बाजार में गहनों की मांग कमजोर है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुरुवार को सोने का भाव बढ़कर 1,662 डॉलर प्रति औंस हो गया। महज पिछले दस दिनों में इसकी कीमतों में करीब 62 डॉलर प्रति औंस की तेजी आ चुकी है। उधर, मुंबई में भी सोने का भाव गुुरुवार को बढ़कर 31,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के पार चला गया। आगामी त्योहारी और शादी-विवाह सीजन को ध्यान में रखकर स्टॉकिस्टों द्वारा सोने की खूब खरीदारी किए जाने से ही इसमें जोरदार तेजी संभव हो पाई। विदेशी सराफा बाजारों में सोने के चढ़ते भाव का भी यहां असर दिखा। अमेरिका में फेडरल रिजर्व द्वारा एक और स्टिमुलस पैकेज की घोषणा किए जाने की उम्मीद में सोना विदेशी बाजारों में अच्छा-खासा चढ़ गया। (Business Bhaskar....R S Rana)

सोना 31,000 की गोल्डन ऊंचाई पर

सोने में अभी और तेजी का रुख दिख रहा है। हाजिर में सोने का भाव और चढ़कर 1695 डॉलर प्रति औंस को भी छू सकता है। -नितिन नचनानी रिसर्च एनालिस्ट, जियोजीत कॉमट्रेड लिमिटेड अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतों में आई जोरदार तेजी से गुरुवार को घरेलू बाजार में इसके दाम ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गए। दिल्ली सराफा बाजार में सोने का भाव 290 रुपये चढ़कर 31,035 रुपये प्रति दस ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। चांदी की कीमतों में भी इस दौरान 1,000 रुपये की तेजी आकर भाव 57,000 रुपये प्रति किलो हो गए। दिल्ली बुलियन वेलफेयर ज्वैलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष वी के गोयल ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतों में भारी तेजी बनी हुई है। इसका असर घरेलू बाजार में सोने की कीमतों पर पड़ रहा है। हालांकि, भाव ऊंचे होने के कारण घरेलू बाजार में गहनों की मांग कमजोर है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुरुवार को सोने का भाव बढ़कर 1,662 डॉलर प्रति औंस हो गया। महज पिछले दस दिनों में इसकी कीमतों में करीब 62 डॉलर प्रति औंस की तेजी आ चुकी है। उधर, मुंबई में भी सोने का भाव गुुरुवार को बढ़कर 31,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के पार चला गया। आगामी त्योहारी और शादी-विवाह सीजन को ध्यान में रखकर स्टॉकिस्टों द्वारा सोने की खूब खरीदारी किए जाने से ही इसमें जोरदार तेजी संभव हो पाई। विदेशी सराफा बाजारों में सोने के चढ़ते भाव का भी यहां असर दिखा। अमेरिका में फेडरल रिजर्व द्वारा एक और स्टिमुलस पैकेज की घोषणा किए जाने की उम्मीद में सोना विदेशी बाजारों में अच्छा-खासा चढ़ गया। (Business Bhaskar....R S Rana)

सितंबर में घट सकते हैं गुड़ के दाम

अक्टूबर के पहले सप्ताह में शुरू होगी नए गुड़ की आवक प्रमुख उत्पादक मंडी मुजफ्फरनगर में गुड़ का स्टॉक पिछले साल से 1.5 लाख कट्टे (एक कट्टा-40 किलो) ज्यादा है जबकि अक्टूबर के पहले सप्ताह में नए गुड़ की आवक शुरू हो जाएगी। उत्तर प्रदेश में गन्ने के बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में सितंबर महीने में गुड़ की मौजूदा कीमतों में 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की संभावना है। फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बताया कि मुजफ्फरनगर मंडी में इस समय आठ लाख कट्टे से ज्यादा का स्टॉक बचा हुआ है जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले डेढ़ लाख कट्टा ज्यादा है। मौसम साफ रहा तो पहली अक्टूबर से नए गुड़ की आवक शुरू हो जाएगी तथा उत्तर प्रदेश में गन्ने की बुवाई चालू सीजन में बढ़कर 23 लाख हैक्टेयर में हुई है जो पिछले साल की समान अवधि के 20.75 लाख हैक्टेयर से ज्यादा है। इसीलिए गुड़ की कीमतों में गिरावट बनी हुई है। देशराज राजेंद्र कुमार के पार्टनर देशराज ने बताया कि दिल्ली बाजार में गुड़ चाकू का भाव घटकर गुरुवार को 3,200 से 3,250 रुपये और गुड़ पेड़ी का भाव 3,400 से 3,450 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। चालू महीने में इसकी कीमतों में करीब 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। स्टॉकिस्टों की बिकवाली को देखते हुए मौजूदा कीमतों में आगामी महीने में और भी 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की संभावना है। एनसीडीईएक्स पर सितंबर महीने के वायदा अनुबंध में गुड़ की कीमतों में चालू महीने में 4.9 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। पहली अगस्त को सितंबर महीने के वायदा अनुबंध में गुड़ का भाव 1,244 रुपये प्रति 40 किलो था जबकि गुरुवार को इसका भाव घटकर 1,182 रुपये प्रति 40 किलो रह गया। (Business Bahskar....R S Rana)

सितंबर में होगा 10 लाख टन सरकारी गेहूं का आवंटन

आर. एस. राणा नई दिल्ली सरकारी गेहूं सस्ता - गेहूं की कीमतों में आई तेजी रोकने के लिए सितंबर महीने में ओएमएसएस के तहत 10 लाख टन गेहूं आवंटन की योजना है। गेहूं की बिक्री एमएसपी 1,285 रुपये प्रति क्विंटल में 50 फीसदी परिवहन लागत जोड़कर की जाएगी। खुले बाजार में 1,600 रुपये प्रति क्विंटल की ऊंचाई पर पहुंचा गेहूं गेहूं की कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार सितंबर महीने में खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत 10 लाख टन गेहूं का आवंटन करेगी। फ्लोर मिलों को इसकी बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 50 फीसदी परिवहन लागत जोड़कर तय किए मूल्य पर करने की योजना है। दिल्ली के खुले बाजारों में गेहूं के दाम बढ़कर 1,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि गेहूं की कीमतों में आई तेजी रोकने के लिए सितंबर महीने में ओएमएसएस के तहत 10 लाख टन गेहूं आवंटन की योजना है। ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री एमएसपी 1,285 रुपये प्रति क्विंटल में 50 फीसदी परिवहन लागत जोड़कर करने की योजना है। ऐसे में दिल्ली की फ्लोर मिलों को निविदा भरने का न्यूनतम भाव करीब 1,307 रुपये प्रति क्विंटल होगा। जबकि इस समय बाजार में गेहूं के दाम बढ़कर 1,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं तथा महीने भर में ही इसकी कीमतों में 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। उन्होंने बताया कि सरकार ने 19 जून को देशभर की फ्लोर मिलों को ओएमएसएस के तहत 30 लाख टन गेहूं बेचने का फैसला किया था। इसके तहत 13 लाख टन गेहूं का आवंटन किया जा चुका है। जिसमें से 2.65 लाख टन गेहूं बचा हुआ है। उन्होंने बताया कि 13 लाख टन गेहूं की बिक्री जून से सितंबर के दौरान 1,170 रुपये प्रति क्विंटल की दर करने की योजना थी लेकिन जुलाई के आखिरी सप्ताह में बिक्री रोक दी गई थी। हालांकि इसमें बचे हुए 2.65 लाख टन गेहूं की बिक्री 1,285 रुपये प्रति क्विंटल की दर से करने के आर्डर जारी किए जा चुके हैं। चालू सीजन में फ्लोर मिलों ने गेहूं का स्टॉक सीमित मात्रा में किया था जबकि कुल उत्पादन का लगभग 40 फीसदी गेहूं सरकारी एजेंसियों ने खरीद लिया। रबी विपणन सीजन 2012-13 में सरकारी एजेंसियों ने 380.23 लाख टन गेहूं की खरीद की है जो पिछले साल के 304.51 लाख टन से ज्यादा है। उत्तर प्रदेश को छोड़ अन्य प्रमुख उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में गेहूं का स्टॉक कम होने के कारण तेजी को बल मिला है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों में आई तेजी से ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) में निर्यात पड़ते अच्छे होने के कारण निर्यातकों की खरीद भी बराबर बनी हुई है। केंद्रीय पूल में पहली अगस्त को 475.26 लाख टन गेहूं का बंपर स्टॉक मौजूद है जो तय मानकों बफर स्टॉक के मुकाबले ज्यादा है। कृषि मंत्रालय के चौथे आरंभिक अनुमान के अनुसार रबी 2011-12 में देश में गेहूं की रिकॉर्ड 939 लाख टन का उत्पादन होने का अनुमान है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

23 अगस्त 2012

धान उत्पादक किसानों को बोनस देने की तैयारी

पंजाब व हरियाणा में धान उत्पादक किसानों को मिलेगी राहत चालू खरीफ में मानसूनी वर्षा कम होने से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के धान उत्पादक किसानों की लागत में बढ़ोतरी हुई है इसलिए केंद्र सरकार इन राज्यों के धान किसानों को बोनस के रूप में राहत देने की योजना बना रही है। कृषि मंत्री शरद पवार ने बुधवार को यहां पत्रकारों को बताया कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में मानसूनी वर्षा कम होने से किसानों की लागत में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा कि बारिश कम होने के बावजूद पंजाब और हरियाणा में धान की फसल बेहतर है। महाराष्ट्र में गन्ने की फसल को नुकसान जरूर हुआ है लेकिन उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल ज्यादा होने का अनुमान है। ऐसे में महाराष्ट्र में हुए नुकसान की भरपाई उत्तर प्रदेश में हो जाएगी। उन्होंने कहा कि कपास की फसल सभी उत्पादक राज्यों में अच्छी है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान नेताओं ने बुधवार को केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार से मिलकर धान किसानों को राहत देने की मांग की। भारतीय किसान यूनियन पंजाब के अध्यक्ष अजमेर सिंह लखोवाल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि मानसून की बेरुखी से धान किसानों की लागत में भारी बढ़ोतरी हुई है इसकी भरपाई के लिए कृषि मंत्री ने आश्वासन दिया है। उन्होंने बताया कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को केंद्र सरकार धान की खरीद पर बोनस देने की योजना बना रही है। खरीफ विपणन सीजन के लिए केंद्र सरकार ए-ग्रेड धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,250 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। किसान नेताओं ने कृषि मंत्री से मांग की कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) किसान की लागत में हुई बढ़ोतरी के आधार पर तय करें। (Business Bhaskar......R S Rana)

चीनी, चावल व गेहूं का निर्यात जारी रहेगा

आर. एस. राणा नई दिल्ली आखिर निर्यात क्यों केंद्रीय पूल में गेहूं और चावल का बंपर स्टॉक मौजूद अगस्त में मानसून सुधरने से चावल की पैदावार पिछले साल जैसी गन्ने का रकबा ज्यादा, अच्छे मानसून से उत्पादन बढ़ेगा अगले सप्ताह सभी मंत्रालयों और राज्यों के अधिकारियों के साथ समीक्षा होगी सरकार ने कहा है कि ओपन जरनल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत चीनी, चावल और गेहूं का निर्यात जारी रहेगा। केंद्रीय पूल में गेहूं और चावल का बंपर स्टॉक मौजूद है जबकि चालू महीने में मानसून सुधरने से खरीफ में चावल की पैदावार पिछले साल के बराबर रहने की संभावना है। गन्ने के बुवाई क्षेत्रफल में चार फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और मानसून सुधरने से गन्ने का उत्पादन अनुमान पहले की तुलना में बढ़ेगा। खाद्य राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के. वी. थॉमस ने बिजनेस भास्कर को बताया कि ओजीएल के तहत चीनी, चावल और गेहूं का निर्यात जारी रहेगा। अगले सप्ताह सभी संबंधित मंत्रालयों और राज्यों के अधिकारियों के साथ बैठक कर स्थिति की समीक्षा की जाएगी। उन्होंने कहा कि केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का बंपर स्टॉक मौजूद है जबकि हाल ही में मानसून में हुए सुधार से खरीफ में चावल का उत्पादन पिछले साल के लगभग बराबर ही रहने का अनुमान है। कृषि मंत्रालय के चौथे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 खरीफ में चावल का उत्पादन 915.3 लाख टन होने का अनुमान है। पहली अगस्त को केंद्रीय पूल में 761.49 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूद है इसमें 475.26 लाख टन गेहूं और 285.03 लाख टन चावल है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2011-12 (अक्टूबर से सितंबर) पेराई सीजन में 262 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है तथा अक्टूबर से शुरू होने वाले नए पेराई सीजन में उत्पादन 245 लाख टन होने की संभावना है। हालांकि अगले सप्ताह होने वाली राज्यों के गन्ना आयुक्तों की बैठक के बाद ही उत्पादन का सही अनुमान लग पायेगा। गन्ने की बुवाई में 4 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल बुवाई 52.88 लाख हैक्टेयर में हुई है। वर्ष 2011-12 पेराई सीजन में अभी तक 30 लाख टन चीनी का निर्यात हो चुका है जबकि 40 लाख टन निर्यात होने का अनुमान है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम कम होने से इस समय निर्यात धीमी गति से हो रहा है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों में आई तेजी से निर्यात को बढ़ावा मिल रहा है। पीईसी लिमिटेड को हाल में गेहूं के निर्यात के लिए मांगी गई निविदा में 308 डॉलर प्रति टन की ऊंची बोली मिली थी। उन्होंने कहा कि केंद्रीय पूल में गेहूं का बंपर स्टॉक मौजूद है इसलिए इसका निर्यात ओजीएल में जारी रहेगा। (Business Bhaskar.....R S Rana)

नए उत्पाद पर आभूषण कंपनियों का ध्यान

सोने की कीमतें बुधवार को नई ऊंचाई पर पहुंच गईं, लिहाजा आभूषण बनाने वाली कंपनियां ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कदम उठा रही हैं। इन कदमों में नए उत्पादों और कम वजन वाले आभूषण पेश करना और अपने स्टोर का विस्तार आदि शामिल हैं। बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन के सुरेश हुंडिया ने कहा - अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंजों में तेजी को देखते हुए मुंबई में बुधवार को सोना अब तक के सर्वोच्च स्तर 30,315 रुपये प्रति 10 ग्राम पर खुला, हालांकि ऊंची कीमतों पर मांग काफी कम है। लेकिन मुंबई मेंं सोना स्टैंडर्ड थोड़ा नरम होकर 30,280 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। तनिष्क के उपाध्यक्ष (खुदरा व विपणन) संदीप कुलहल्ली ने कहा - 'ऊंची कीमतों के साथ-साथ दूसरी वजहों से उपभोक्ताओं का रुझान बहुत अच्छा नहीं रहा है, जिससे बिक्री प्रभावित हुई है। सोने की ऊंची कीमतों को देखते हुए कुलहल्ली ने कहा कि इससे निपटने के लिए तनिष्क ने कम वजन वाले आभूषण पेश करने की योजना बनाई है ताकि बिक्री बढ़े। साथ ही कंपनी अभी हीरे के आभूषणों पर 20 फीसदी की छूट दे रही है।' उन्हें उम्मीद है कि दीवाली के दौरान बिक्री बेहतर रहेगी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना इस उम्मीद में आगे बढ़ा कि सरकार अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए कदम उठाएगी। वैश्विक बाजार में सोने का कारोबार 1642 डॉलर प्रति आउंस पर हुआ। ऊंची कीमतों पर बिक्री के दबाव के चलते सोने पर भी दबाव बढ़ा। पोपले ऐंड संस के निदेशक राजीव पोपले ने कहा - 'इस साल बिक्री करीब 15 फीसदी घटी है क्योंकि सोने की कीमतें ऊंची रही हैं।' आभूषण से ज्यादा इस साल निवेश मांग प्रभावित हुई है और निवेशक इससे कुछ समय और दूर रह सकते हैं। हालांकि गीतांजलि जैसी आभूषण निर्माता कंपनी उपभोक्ताओं के सामने और विकल्प पेश कर रही हैं और अपने कारोबार का विस्तार भी कर रही हैं। गीतांजलि जेम्स के अध्यक्ष अभिषेक गुप्ता ने कहा - उद्योग की विकास दर के हिसाब से जहां हमारे पुराने स्टोरों में बिक्री बढ़ी है, वहीं हमने अप्रैल-जून के दौरान कंपनी के स्वामित्व में 8 और स्टोर, 14 फ्रैंचाइची खोले हैं। एक ओर जहां कारोबार के दौरान सोना अब तक के सर्वोच्च स्तर से नीचे आ गया, वहीं मुंबई के बाजार में चांदी मंगलवार के मुकाबले 1.33 फीसदी की तेजी के साथ 56,440 रुपये प्रति किलोग्राम पर रही। (BS Hindi)

यूसीएक्स का आगाज जल्द ही

देश का छठा जिंस वायदा एक्सचेंज यूनिवर्सल कमोडिटी एक्सचेंज (यूसीएक्स) जल्द ही शुरू हो सकता है क्योंकि वायदा बाजार आयोग ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से इसे मंजूरी देने की सिफारिश की है। मौजूदा समय में चालू पांच जिंस एक्सचेंज हैं मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज, नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज, नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज, ऐस डेरिवेटिव ऐंड कमोडिटी एक्सचेंज और इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज। वायदा बाजार आयोग के चेयरमैन रमेश अभिषेक ने कहा - 'हाल में हमने अपनी सिफारिशें उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को भेजी है, जो देश का छठा राष्ट्रीय जिंस वायदा एक्सचेंज होगा।' सूचना प्रौद्योगिकी के केतन सेठ द्वारा प्रवर्तित यूसीएक्स का वायदा बाजार में आगाज काफी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि इस बाजार में नई चीजों के लिए शायद ही कोई जगह बची है। एक ओर जहां एमसीएक्स ने गैर-कृषि जिंसों के कारोबार में अग्रणी स्थान हासिल किया है और इसकी बाजार हिस्सेदारी करीब 85 फीसदी है, वहीं कृषि जिंसों के कारोबार मामले में एनसीडीईएक्स काफी मजबूत है। अहमदाबाद की एनएमसीई ने बागवानी क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल की है। बाकी दो एक्सचेंज ऐस व आईसीएक्स ने भी क्रमश: कृषि व गैर-कृषि जिंसों के कारोबार में जगह बनाई है और अपने लिए नया बाजार बनाया है, जो जिंस वायदा कारोबार के विकास के लिए लाभप्रद साबित हुआ है। नए खिलाडिय़ों के लिए हालांकि नई खोज महत्वपूर्ण होगी, जिसका वादा सेठ कर रहे हैं। लेकिन वह अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं कि कारोबारियों के सामने पेश करने के लिए नया क्या है। सेठ ने कहा - 'हम नई खोज में जुटे हुए हैं और इसके आधार पर हम कारोबारियों को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम होंगे। लेकिन इस बाबत हम अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं।' अंतिम मंजूरी मिलने के बाद सेठ की योजना कम से कम 15-20 जिंसों में वायदा कारोबार तत्काल पेश करने की है, जिसके जल्द मिलने की उम्मीद है। सेठ ने कहा कि पहले दिन से ही हम कई जिंसों में वायदा कारोबार का प्लैटफॉर्म उपलब्ध कराएंगे और इनमें कृषि व गैर-कृषि दोनों शामिल होंगे। नियामक की तरफ से बार-बार कदम उठाए जाने के चलते पिछले कुछ सालों में स्थापित होने के बाद भी मौजूदा खिलाड़ी अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं। अनुबंध की एक्सपायरी के बाद कई अनुबंधों का निपटान नकदी में हुआ है। भारतीय प्लैटफॉर्म पर तांबा, एल्युमीनियम, जस्ता, सीसा और निकल जैसी जिंसों का अनुबंधों का निपटान अब तक नकदी में हुआ है। सार्वजनिक क्षेत्र की आईडीबीआई बैंक, इफ्को, नाबार्ड और रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड इस एक्सचेंज के प्रमुख हिस्सेदार हैं। इस बीच, जिंस ब्रोकरों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए उनके साथ यूसीएक्स 'मॉक ड्रिल' शुरू कर चुका है, हालांकि वास्तविक सदस्यता अभियान शुरू होना अभी बाकी है। सेठ ने कहा कि यूसीएक्स ने शुरुआता में सदस्यों को दिए जाने वाले अब तक रियायत के मसले पर फैसला नहीं लिया है, जैसा कि अन्य एक्सचेंजों ने किया था। उन्होंने हालांकि ऐसी संभावनाओं से इनकार नहीं किया। इंदौर के नैशनल बोर्ड ऑफ ट्रेड ने पहले एफएमसी से अनुरोध किया था कि उसे राष्ट्रीय एक्सचेंज का दर्जा दिया जाए। लेकिन शेयरधारिता, तकनीक, निवेश जैसे विभिन्न मानकों के मामले में जिंस बाजार नियामक के मानदंडों पर उसे खरा उतरना अभी बाकी है। एक अन्य प्रस्ताव इस्पात इंडस्ट्रीज का है, जो फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है। अभिषेक ने कहा कि इस्पात इंडस्ट्रीज से कुछ मसलों पर स्पष्टीकरण मांगा गया है, जिसे कंपनी ने अभी तक नहीं दिया है। (BS Hindi)

यूसीएक्स का आगाज जल्द ही

देश का छठा जिंस वायदा एक्सचेंज यूनिवर्सल कमोडिटी एक्सचेंज (यूसीएक्स) जल्द ही शुरू हो सकता है क्योंकि वायदा बाजार आयोग ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से इसे मंजूरी देने की सिफारिश की है। मौजूदा समय में चालू पांच जिंस एक्सचेंज हैं मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज, नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज, नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज, ऐस डेरिवेटिव ऐंड कमोडिटी एक्सचेंज और इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज। वायदा बाजार आयोग के चेयरमैन रमेश अभिषेक ने कहा - 'हाल में हमने अपनी सिफारिशें उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को भेजी है, जो देश का छठा राष्ट्रीय जिंस वायदा एक्सचेंज होगा।' सूचना प्रौद्योगिकी के केतन सेठ द्वारा प्रवर्तित यूसीएक्स का वायदा बाजार में आगाज काफी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि इस बाजार में नई चीजों के लिए शायद ही कोई जगह बची है। एक ओर जहां एमसीएक्स ने गैर-कृषि जिंसों के कारोबार में अग्रणी स्थान हासिल किया है और इसकी बाजार हिस्सेदारी करीब 85 फीसदी है, वहीं कृषि जिंसों के कारोबार मामले में एनसीडीईएक्स काफी मजबूत है। अहमदाबाद की एनएमसीई ने बागवानी क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल की है। बाकी दो एक्सचेंज ऐस व आईसीएक्स ने भी क्रमश: कृषि व गैर-कृषि जिंसों के कारोबार में जगह बनाई है और अपने लिए नया बाजार बनाया है, जो जिंस वायदा कारोबार के विकास के लिए लाभप्रद साबित हुआ है। नए खिलाडिय़ों के लिए हालांकि नई खोज महत्वपूर्ण होगी, जिसका वादा सेठ कर रहे हैं। लेकिन वह अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं कि कारोबारियों के सामने पेश करने के लिए नया क्या है। सेठ ने कहा - 'हम नई खोज में जुटे हुए हैं और इसके आधार पर हम कारोबारियों को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम होंगे। लेकिन इस बाबत हम अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं।' अंतिम मंजूरी मिलने के बाद सेठ की योजना कम से कम 15-20 जिंसों में वायदा कारोबार तत्काल पेश करने की है, जिसके जल्द मिलने की उम्मीद है। सेठ ने कहा कि पहले दिन से ही हम कई जिंसों में वायदा कारोबार का प्लैटफॉर्म उपलब्ध कराएंगे और इनमें कृषि व गैर-कृषि दोनों शामिल होंगे। नियामक की तरफ से बार-बार कदम उठाए जाने के चलते पिछले कुछ सालों में स्थापित होने के बाद भी मौजूदा खिलाड़ी अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं। अनुबंध की एक्सपायरी के बाद कई अनुबंधों का निपटान नकदी में हुआ है। भारतीय प्लैटफॉर्म पर तांबा, एल्युमीनियम, जस्ता, सीसा और निकल जैसी जिंसों का अनुबंधों का निपटान अब तक नकदी में हुआ है। सार्वजनिक क्षेत्र की आईडीबीआई बैंक, इफ्को, नाबार्ड और रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड इस एक्सचेंज के प्रमुख हिस्सेदार हैं। इस बीच, जिंस ब्रोकरों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए उनके साथ यूसीएक्स 'मॉक ड्रिल' शुरू कर चुका है, हालांकि वास्तविक सदस्यता अभियान शुरू होना अभी बाकी है। सेठ ने कहा कि यूसीएक्स ने शुरुआता में सदस्यों को दिए जाने वाले अब तक रियायत के मसले पर फैसला नहीं लिया है, जैसा कि अन्य एक्सचेंजों ने किया था। उन्होंने हालांकि ऐसी संभावनाओं से इनकार नहीं किया। इंदौर के नैशनल बोर्ड ऑफ ट्रेड ने पहले एफएमसी से अनुरोध किया था कि उसे राष्ट्रीय एक्सचेंज का दर्जा दिया जाए। लेकिन शेयरधारिता, तकनीक, निवेश जैसे विभिन्न मानकों के मामले में जिंस बाजार नियामक के मानदंडों पर उसे खरा उतरना अभी बाकी है। एक अन्य प्रस्ताव इस्पात इंडस्ट्रीज का है, जो फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है। अभिषेक ने कहा कि इस्पात इंडस्ट्रीज से कुछ मसलों पर स्पष्टीकरण मांगा गया है, जिसे कंपनी ने अभी तक नहीं दिया है। (BS Hindi)

जिंस वायदा कारोबार में 20 फीसदी का इजाफा

जिंस वायदा बाजारों में चालू वित्त वर्ष के पहले तीन माह (जनवरी-मार्च 2012) के दौरान कारोबार एक साल पहले की तुलना में 20 प्रतिशत बढ़कर 44.03 लाख करोड़ रुपये रहा। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के अनुसार, सोने और चांदी की अगुवाई में जिंसों के वायदा कारोबार में इजाफा हुआ है। एफएमसी के ताजा बुलेटिन में कहा गया है, 'जनवरी से मार्च के दौरान जिंस बाजारों का कारोबार 44.03 लाख करोड़ रुपये रहा है, जो पिछले साल इसी अवधि में 36.78 लाख करोड़ रुपये रहा था।' इस दौरान सबसे ज्यादा कारोबार सर्राफा में हुआ। तिमाही के दौरान सर्राफा का वायदा कारोबार 21.45 लाख करोड़ रुपये रहा। सर्राफा का कारोबार मुख्य रूप से देश के प्रमुख जिंस एक्सचेंज एमसीएक्स में होता है। समीक्षाधीन अवधि में सोने का वायदा कारोबार 9.29 लाख करोड़ रुपये तथा चांदी का 11.64 लाख करोड़ रुपये रहा। एफएमसी के आंकड़ों के अनुसार, 21 अन्य जिंस एक्सचेंजों में अन्य धातुओं का कारोबार इस अवधि में 8.54 लाख करोड़ रुपये रहा। वहीं कृषि उत्पादों का वायदा कारोबार 7.24 लाख करोड़ रुपये तथा ऊर्जा का 6.80 लाख करोड़ रुपये रहा। जिंस एक्सचेंजों का नियमन करने वाले वायदा बाजार आयोग का कहना है कि पांच राष्ट्रीय स्तर के एक्सचेंजों एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स, एनएमसीई, आईसीईएक्स तथा एस ने इस दौरान कुल 43.87 लाख करोड़ रुपये का कारोबार किया, जबकि शेष 16 एक्सचेंजों का कारोबार 16,000 करोड़ रुपए रहा। नियामक ने कहा कि उसने एक्सचेजों को 2012 के पहले तीन माह में 54 जिंसों (कृषि और गैर कृषि दोनों) के अनुबंधों की अनुमति दी थी। (BS Hindi)

कर्ज में फंसी संपत्तियां बेच सकेगा नेफेड

वित्त मंत्रालय ने कृषि सहकारी संस्था नेफेड को उसकी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की बिक्री करने की अनुमति दे दी है। अनुमति के बाद नेफेड, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों को करीब 1,800 करोड़ रुपये में अपनी परिसंपत्तियों की बिक्री करेगा। देश में यह पहली बार है कि जब कोई सहकारी संस्था अपनी परिसंपत्तियों की बिक्री कर रही है। आमतौर पर बैंकों को एनपीए बेचने की अनुमति दी जाती है। लेकिन एक विशेष मामला मानकर मंत्रालय ने नेफेड को जून में इसकी मंजूरी दी थी, जिससे वह अपनी कार्यशैली को और बेहतर बना सके। राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ के प्रबंध निदेशक राजीव गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'हमें वित्तीय सेवा विभाग से परिसंपत्ति पुनर्निर्माण से जुड़ी कंपनियों को अपने एनपीए बेचने की अनुमति मिल गई है। पिछले हफ्ते हमारे निदेशक मंडल ने इन कंपनियों से निविदाएं मंगाने का फैसला किया।' एआरसीआईएल और रिलायंस एआरसी समेत देश में करीब 14 परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियां मौजूद हैं। 2003 से अब तक नेफेड ने करीब 62 कंपनियों के साथ करार किया है और गठजोड़ कारोबार पर करीब 3,962 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसके लिए नेफेड ने वाणिज्यिक बैंकों से ऋण लिया था। संघ को 2003-04 और 2005-06 के दौरान ऐसे कारोबारों से करीब 88.4 करोड़ रुपये का लाभ हुआ है। नेफेड ने आयात और निर्यात के लिए निजी कंपनियों को अग्रिम राशि भी जारी कर दी है। कई कंपनियों ने न आयात किया और न ही निर्यात और भुगतान करने में भी नाकाम रही हैं। नेफेड अपने 2,900 करोड़ रुपये वसूलने में कामयाब रही जबकि भुगतान नहीं करने वालों के खिलाफ उसने आपराधिक कार्रवाई शुरू कर दी है। 1,800 करोड़ रुपये की बकाया रकम में 1,050 करोड़ मूल रकम और इस पर मिलने वाला 750 करोड़ रुपये का ब्याज शामिल है। हालांकि वित्त वर्ष 2010-11 में नेफेड ने 48 करोड़ रुपये का लाभ कमाया लेकिन ब्याज के तौर पर 170 करोड़ रुपये की देनदारी होने के कारण उसे 108.5 करोड़ रुपये का शुद्घ घाटा हुआ। नेफेड की सालाना ब्याज देनदारी पिछले तीन साल से उसके परिचालन मुनाफे से ज्यादा हो गई है, जिस कारण वह इस ऋण को चुका नहीं पाया है। पिछले साल नेफेड ने बैंकों से ब्याज भुगतान की तिथि बढ़ाने के लिए आवेदन किया था। नेफेड, सरकार की ओर से गैर-अनाज फसल मसलन कपास, तिलहन और दालों की खरीद करता है। बाजार मूल्य के न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम होने पर नेफेड किसानों से इन फसलों की खरीद करता है और बाजार भाव बढऩे पर बेचता है। यह कई कृषि जिंसों में टे्रडिंग भी करता है। हालांकि ब्याज के बढ़ते बोझ के कारण नेफेड के लिए अपने ट्रेडिंग के कारोबार को चालू रखना मुश्किल हो गया है। वित्त वर्ष 2010 में नेफेड ने 6,373 करोड़ रुपये का कारोबार किया था, जो वित्त वर्ष 2011 में घटकर महज 2,008 करोड़ रुपये ही रह गया। एनपीए की बिक्री से मिलने वाली रकम का इस्तेमाल नेफेड अपने ट्रेडिंग कारोबार को बढ़ाने के लिए करेगा। (BS Hindi)

22 अगस्त 2012

सोने के घटे लिवाल, घटेगा आयात

कमजोर मॉनसून, शादी-विवाह की काफी कम मुहूर्त और रिकॉर्ड स्तर के आसपास कीमतों के कारण देश में सोने की अधिकतम मांग के समय सितंबर से दिसंबर के दौरान सोने का आयात 40 फीसदी घटकर 200 टन रह जाने का अनुमान है। बांबे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष पृथ्वीराज कोठारी ने कहा कि बारिश में कमी के चलते किसानों की आय घटने की संभावना है और इस कारण ग्रामीण इलाके में सोने की मांग घटेगी। महज चार वर्षों में देश दूसरी बार सूखे से जूझ रहा है, जिससे खाद्य कीमतें बढ़ सकती हैं और आम लोगों के खर्च करने की ताकत कम हो सकती है। इन वजहों से सोने की मांग भी घट सकती है। अभी भी आधी से ज्यादा आबादी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर आश्रित है। भारतीय उपभोक्ताओं की निवेश और आभूषण मांग साल 2012 की दूसरी तिमाही में 38 फीसदी घटकर 181.3 टन रह गई। आयात शुल्क में बढ़ोतरी और कमजोर रुपये के चलते स्थानीय कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर होने का असर भी मांग पर पड़ा। उधर, वैश्विक तेजी के बीच सतत लिवाली के चलते दिल्ली सर्राफा बाजार में लगातार दूसरे दिन सोने-चांदी में तेजी दर्ज की गई। सोने के भाव 60 रुपये की तेजी के साथ 30,510 रुपये प्रति 10 ग्राम और चांदी के भाव 650 रुपये चढ़कर 55,050 रुपये प्रति किलोग्राम तक जा पहुंचे। चांदी सिक्का के भाव 3,000 रुपये की तेजी के साथ 68,000-69,000 रुपये प्रति सैकड़ा पर बंद हुए। बाजार सूत्रों के अनुसार विदेशों में तेजी के बीच स्टॉकिस्टों और निवेशकों की सतत लिवाली के कारण सोने-चांदी की कीमतों में उछाल आई। डॉलर कमजोर होने के कारण वैश्विक बाजारों में मजबूती का रुख रहा, जिसका असर स्थानीय बाजार धारणा पर पड़ा। (BS Hindi)

उत्पादन बढऩे से केसर सस्ता होने के आसार

पिछली पैदावार बेहतर रहने के अलावा नए सीजन में भी ज्यादा उत्पादन संभव पिछले साल अक्टूबर-नवंबर के फसल कटाई सीजन में कश्मीरी केसर का उत्पादन अच्छा रहने के कारण इसकी कीमतों में गिरावट का रुख है। कारोबारियों का कहना है कि घरेलू बाजार में केसर की आवक का पीक सीजन सितंबर से जनवरी तक होता है। चालू वर्ष में भी अक्टूबर-नवंबर के दौरान नई फसल के बेहतर उत्पादन की संभावना से कीमतों में गिरावट का रुख रह सकता है। पिछले पांच महीनों में घरेलू बाजार में केसर के थोक भाव घटकर 1,25,000 से 1,30,000 रुपये प्रति किलो (125-130 रुपये प्रति ग्राम) रह गया है। कश्मीर के केसर उत्पादकों के मुताबिक इस साल घाटी में बर्फबारी अच्छी रहने के साथ अनुकूल बारिश के कारण आगामी अक्टूबर-नवंबर के दौरान केसर का उत्पादन अच्छा रहने के आसार हैं। इससे कीमतों में गिरावट जारी रह सकती है। यूएसएमएस सैफरान कंपनी (बेबी ब्रांड केसर) के निदेशक अवनीश छाबड़ा ने बताया कि कश्मीर में केसर का उत्पादन बेहतर रहने के कारण इसकी कीमतों में गिरावट का रुख है। उन्होंने बताया कि घरेलू बाजार में कश्मीरी केसर का भाव ईरानी केसर के साथ चलता है। ईरान में सालाना करीब 200 टन केसर का उत्पादन होता है। छाबड़ा ने बताया कि पिछले सीजन में कश्मीर में करीब 10 टन केसर का उत्पादन हुआ है। इस बार भी उत्पादन अच्छा रहने का अनुमान है। सितंबर में केसर की बिक्री का सीजन शुरू होने के बाद 15 सितंबर तक स्थिति स्पष्ट हो सकेगी। जम्मू-कश्मीर केसर उत्पादक संघ के अध्यक्ष जी. एम. पोम्पूरी के मुताबिक अक्टूबर-नवंबर 2011 के सीजन में केसर के उत्पादन में बढ़ोतरी व ईरानी केसर की कीमतों में गिरावट के कारण घरेलू बाजार में भाव कम हो रहे हैं। उन्होंने इस साल घाटी में हुई बर्फबारी के साथ हाल ही में अच्छी बारिश के कारण अगले सीजन (अक्टूबर-नवंबर) में भी केसर का अच्छा उत्पादन बेहतर रहने की संभावना जताई। उन्होंने कहा कि पिछले साल नवंबर-दिसंबर में बर्फबारी के अलावा जुलाई व अगस्त में होने वाली बारिश से केसर की फसल को काफी फायदा हो रहा है। जम्मू-कश्मीर के करीब 226 गांवों में केसर का उत्पादन किया जाता है। पोम्पूरी व किश्तवाड़ में अत्यधिक मात्रा में केसर का उत्पादन होता है। (BS Hindi)

बारिश की कमी से बढऩे लगी कॉटन की कीमतें

मुश्किल कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के हिसाब से चालू खरीफ में देशभर में कपास की बुवाई में 5.6 फीसदी कम गुजरात में कपास की बुवाई 22.42 लाख हैक्टेयर में हुई है जो पिछले साल समान अवधि में 29.05 लाख हैक्टेयर में दर्ज की गई थी इससे घरेलू बाजार में पिछले दो महीनों में कॉटन की कीमतों में 14.3 फीसदी की तेजी दर्ज गुजरात, हरियाणा और पंजाब में चालू खरीफ में मानसूनी वर्षा की कमी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढऩे से कॉटन (जिंड रूई) की कीमतों में तेजी आई है। घरेलू बाजार में पिछले दो महीनों में कॉटन की कीमतों में 14.3 फीसदी की तेजी आकर सोमवार को भाव 37,800 से 38,300 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) हो गए। नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि प्रमुख कॉटन उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, और गुजरात में मानसूनी वर्षा सामान्य से काफी कम हुई है। स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम होने से घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतें बढ़ी हैं। उधर अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कीमतों में सुधार आया है। उन्होंने बताया कि न्यूयार्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में कॉटन की कीमतें 28 जून को 67.70 सेंट प्रति पाउंड थी जबकि 17 अगस्त को बढ़कर 72.37 सेंट प्रति पाउंड हो गई। गुजरात जिनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दलीप पटेल ने बताया कि गुजरात में सूखे जैसे हालात बनने से कॉटन की बुवाई में काफी कमी आई है। राज्य में चालू खरीफ में कपास की बुवाई अभी तक केवल 22.42 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 29.05 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। बारिश नहीं होने से बुवाई हो चुकी फसल को भी नुकसान हो रहा है। इसीलिए मिलों की मांग पहले की तुलना में बढ़ी है जबकि बिकवाली में कमी आई है। अहमदाबाद मंडी में शंकर-6 किस्म की कॉटन का भाव 20 जून को 33,000 से 33,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) था जबकि सोमवार को भाव बढ़कर 37,800 से 38,300 रुपये प्रति कैंडी हो गए। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में देशभर में कपास की बुवाई में 5.6 फीसदी की कमी आई है। अभी तक इसकी बुवाई 110.26 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 116.81 लाख हैक्टेयर में हुई थी। तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 में कपास का उत्पादन 352 लाख गांठ होने का अनुमान है। जबकि वर्ष 2010-11 में 330 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था।(Business Bhaskar.....R S Rana)

सरकारी गेहूं की बिक्री शुरू न होने से भारी तेजी का दौर

सरकारी सुस्ती ओएमएसएस के तहत एफसीआई ने जुलाई के आखिर में बंद की थी बिक्री खाद्य मंत्रालय द्वारा बाकी 2.75 लाख टन गेहूं के बिक्री आर्डर जारी, फिर भी शुरू नहीं हुई बिक्री ओएमएसएस के तहत सितंबर में 10 लाख टन गेहूं की और बिक्री किए जाने की है योजना दिल्ली में गेहूं के भाव 1,520 रुपये और बंगलुरू पहुंच भाव 1,760 रुपये प्रति क्विंटल हुए बाजार में गेहूं की कीमतों में आई 350 रुपये प्रति क्विंटल तक की महंगाई सरकार द्वारा खुला बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं की बिक्री शुरू नहीं करने से कीमतों में 300 से 350 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। दिल्ली में गेहूं के दाम बढ़कर 1,520 रुपये और बंगलुरू पहुंच भाव 1,760 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। खाद्य मंत्रालय ओएमएसएस में पहले से आवंटित 13 लाख टन में से बचे हुए 2.75 लाख टन गेहूं की बिक्री के आर्डर भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को जारी कर चुका है लेकिन एफसीआई ने अभी बिक्री शुरू नहीं की है। श्री बालाजी फूड प्रोड्क्टस के डायरेक्टर संदीप बंसल ने बताया कि ओएमएसएस में गेहूं की बिक्री शुरू नहीं होने के कारण कीमतों में तेजी आई है। सोमवार को दिल्ली थोक बाजार में गेहूं का दाम 1,520 रुपये और उत्तर प्रदेश की मंडियों में 1,475 से 1,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों में गेहूं का स्टॉक नहीं है जबकि फ्लोर मिलों के साथ निर्यातकों की अच्छी मांग बनी हुई है। प्रवीन कॉमर्शियल कंपनी के प्रबंधक नवीन कुमार ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम तेज होने के कारण निर्यातकों को अच्छे पड़ते लग रहे हैं। कांडला पहुंच गेहूं के दाम बढ़कर 1,675 रुपये और बंगलुरू पहुंच 1,760 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। महीने भर में इसके दाम करीब 350 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ चुके हैं। पीईसी लिमिटेड को गत सप्ताह गेहूं निर्यात के लिए सबसे ऊंची बोली 308 डॉलर प्रति टन (एफओबी) की दर से मिली है। सरकार ने 19 जून को देशभर की फ्लोर मिलों को ओएमएसएस के तहत 30 लाख टन गेहूं बेचने का फैसला किया था। इसके तहत 13 लाख टन की बिक्री जून से सितंबर के दौरान करनी थी लेकिन एफसीआई ने जुलाई के आखिर में बिक्री बंद कर दी। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ओएमएसएस के तहत पहले से आवंटित 13 लाख टन में से बचे हुए 2.75 लाख टन गेहूं की बिक्री 1,285 रुपये प्रति क्विंटल की दर से करने के आर्डर जारी किए जा चुके हैं। इसके अलावा सितंबर में इसके तहत और 10 लाख टन गेहूं की बिक्री किए जाने की भी योजना है। एफसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सभी राज्यों में फ्लोर मिलों को नए सिरे से सूचीबद्ध करने के लिए आवेदन मांगे गए है इसीलिए बिक्री में देरी हुई है। चालू सप्ताह में बिक्री शुरू होने की संभावना है। केंद्रीय पूल में पहली अगस्त को गेहूं का 475.26 लाख टन का रिकार्ड स्टॉक मौजूद है। (Business Bhaskar....R S Rana)

20 अगस्त 2012

वायदा कानून में संशोधन मसला संप्रग समिति को

वायदा अनुबंध (विनियमन) संशोधन विधेयक पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस की तरफ से विरोध के बाद उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय इस विधेयक के मसौदे को नवगठित संप्रग समन्वय समिति के सामने रखने की योजना बना रहा है ताकि प्रस्तावित विधेयक पर आमसहमति बनाई जा सके। अधिकारियों ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस के सदस्य और रेल मंत्री मुकुल रॉय ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर केंद्रीय कैबिनेट में इस विधेयक पर तब तक चर्चा नहीं करने को कहा है जब तक कि इसके प्रावधानों पर आमसहमति न बन जाए। अधिकारियों ने कहा कि इसे देखते हुए यह कदम उठाना आवश्यक हो गया है। टीएमसी चाहता है कि जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को ज्यादा अधिकार देने वाले इस विधेयक को कैबिनेट के सामने पेश किए जाने से पहले राज्यों के साथ संपर्क किया जाए। संसद की स्थायी समिति की तरफ से संशोधन के बाद कैबिनेट ने इस विधेयक पर 17 अगस्त को लगातार चौथी बार चर्चा टाल दी जबकि कैबिनेट में इस पर विचार किया जाना था। यह चौथा मौका था जब एफसीआर संशोधन विधेयक कैबिनेट के सामने रखा गया, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के विरोध के चलते पारित नहीं किया जा सका। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा - सभी हितधारकों को यह गलत संदेश प्रेषित करता है। ऐसे में हमने सुझाव दिया है कि इस विधेयक पर सबसे पहले संप्रग समन्वय समिति में चर्चा हो और अगर आमसहमति हो तो इसके बाद ही इसे कैबिनेट के सामने रखा जाना चाहिए। संप्रग समन्वय समिति की बैठक इस महीने हो सकती है और कांग्रेस व सहयोगी पार्टियों के विभिन्न विवादित मसलों पर चर्चा कर सकती है। अधिकारियों ने कहा कि इस बैठक में एफसीआरए विधेयक पर प्रमुखता से चर्चा होने की संभावना है। उन्होंने कहा - टीएमसी का मानना है कि विधेयक के मौजूदा स्वरूप से छोटे व मझोले किसानों के साथ-साथ आम आदमी का हित प्रभावित होगा जबकि बड़े और संपन्न किसानों को फायदा होगा। पार्टी का यह भी मानना है कि सभी आवश्यक वस्तुओं के कारोबार की अनुमति वायदा बाजार मेंं नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि कृषि उत्पादन व विपणन से जुड़ाव नहीं रखने वाले आम लोगों को डेरिवेटिव बाजार से शायद ही कोई लाभ हासिल होगा। इस पत्र में नैशल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में सोया, चाना और गेहूं की कीमतों में उतारचढ़ाव का उदाहरण पेश किया गया है। अधिकारियों ने कहा कि समन्वय समिति के सामने विधेयक पर टीएमसी के एतराज पर चर्चा का मामला भी प्रधानमंत्री को प्रेषित किया जा चुका है। इसके अलावा एफएमसी को ज्यादा अधिकार देने के अलावा इस विधेयक का मकसद संस्थागत निवेशकों को वायदा बाजार में प्रवेश और नए उत्पाद मसलन ऑप्शन आदि की अनुमति देना है। एफसीआरए में संशोधन के जरिए वायदा बाजार में सूचकांक के कारोबार की अनुमति के अलावा वैयक्तिक जिंसों व सूचकांक में ऑप्शन कारोबार की अनुमति देने की बात कही गई है। इस संशोधन को सबसे पहले एक आधिकारिक अध्यादेश के जरिए मंजूरी दी गई थी। हालांकि यह खारिज हो गया क्योंकि वामपंथियों के विरोध के चलते 14वीं लोकसभा में इसे पारित नहीं किया जा सका। इसके बाद कैबिनेट ने इसे सितंबर 2010 में एक बार फिर मंजूरी दी और संसद में इसे पेश किया गया। इसके बाद विधेयक को संसद की स्थायी समिति को सौंप दिया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि इस सुधार का सबसे ज्यादा लाभ कंपनियों को मिलेगा, जो जिंसों का उत्पादन करते हैं या इनका इस्तेमाल कच्चे माल के तौर पर करते हैं क्योंकि ऑप्शन के जरिए उतारचढ़ाव वाले बाजार में उन्हें और सुरक्षा मिलेगी। (BS Hindi)

बारिश में सुधार, पर नुकसान की भरपाई नहीं

जुलाई के आखिर से दक्षिण पश्चिम मॉनसून में काफी ज्यादा बदलाव नजर आया है और अब उत्तर, पश्चिम और दक्षिण भारत के विभिन्न इलाकों में ठीक-ठाक बारिश हो रही है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि दक्षिण पश्चिम मॉनसून की बहाली में देरी से जून व जुलाई में हुए नुकसान की पूरी भरपाई करने में मदद नहीं मिलेगी। इस बारिश से ज्यादा से ज्यादा खड़ी फसल को मदद मिल सकती है, लेकिन यह भी सितंबर की बारिश पर निर्भर करेगा। भारतीय मौसम विभाग ने अपनी आखिरी भविष्यवाणी में कहा था कि अगस्त के मुकाबले सितंबर में कम बारिश होगी। मॉनसून के बहाल होने से हालांकि खरीफ फसलों की बुआई में मजबूती आई है और देश भर में बारिश जहां जुलाई के आखिर में सामान्य से 21 फीसदी कम थी, वहीं 17 अगस्त को यह करीब 16 फीसदी कम रह गई। नैशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चरल इकनॉमिक्स ऐंड पॉलिसी रिसर्च के निदेशक रमेश चंद ने कहा - मुझे लगता है कि शुरुआती दिनों में हुई कम बारिश की भरपाई मौजूदा बारिश से नहीं हो सकती। हम कुछ फसलों के रकबे में इजाफा तो कर सकते हैं, फिर भी वहां नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि साल 2011 के मुकाबले अनाज के उत्पादन में निश्चित तौर पर गिरावट आएगी। बारिश में सुधार से उत्साहित सरकार ने पिछले हफ्ते कहा था कि कुल मिलाकर खाद्यान्न के उत्पादन की स्थिति साल 2009 जैसी खराब नहीं रहेगी, जब देश में सूखा पड़ा था। सरकार ने कहा था कि कुल उत्पादन 21.81 करोड़ टन रहेगा। बारिश की स्थिति में सुधार के चलते पंजाब और हरियाणा में 17 अगस्त तक बारिश में कुल कमी घटकर करीब 65 फीसदी रह गई है जबकि पहले यह 70 फीसदी के उच्चस्तर पर थी। कर्नाटक के आंतरिक इलाके में बारिश में कमी घटकर लंबी अवधि के औसत के मुकाबले करीब 35 फीसदी रह गई जबकि पहले यह कमी 50 फीसदी थी। वहीं राजस्थान के पश्चिमी इलाके में बारिश में कुल कमी करीब 21 फीसदी रह गई। चंद ने कहा शुरुआत में बोई गई दलहन, मोटे अनाज और धान की फसल की परिपक्वता के लिए अब काफी कम समय बचा है, ऐसे में अंतिम उत्पादन पर निश्चित तौर पर इसका असर पड़ेगा। ब्लूमबर्ग न्यूज एजेंसी ने एक रिपोर्ट में कहा है कि देश में चावल का उत्पादन पिछले साल के रिकॉर्ड 920 लाख टन के मुकाबले 50-70 लाख टन घट सकता है, वहीं कुल खाद्यान्न उत्पादन 12 फीसदी तक घट सकता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री वाई के अलघ ने कहा - 90 दिन की फसल में अगर 40-45 दिन ठीक से बारिश नहीं होती है तो अंतिम उत्पादन पर इसका असर आखिर क्यों नहीं पड़ेगा। मुझे लगता है कि मौजूदा समय में हो रही बारिश से पंजाब व हरियाणा के किसानों को फायदा मिलेगा, लेकिन गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में सूखा रहेगा। उन्होंने कहा कि बारिश पर आश्रित पारंपरिक इलाके में अगर अभी से भी सही तरीके से बारिश नहीं होती है तो खरीफ की योजना को अंजाम दे चुके ज्यादातर किसान अब रबी सीजन का इंतजार करेंगे। बारिश में सुधार से देश के 84 जलाशयों के जलस्तर में बढ़ोतरी हुई है। जून के आखिर में जलाशयों में जल का स्तर 16 फीसदी के निचले स्तर पर था, जो अब 51 फीसदी पर पहुंच गया है। धान का रकबा 8 अगस्त तक 264.3 लाख हेक्टेयर पर था, जो अच्छी बारिश के चलते एक हफ्ते में 44 लाख हेक्टेयर बढ़ गया है जबकि मोटे अनाज का रकबा 12 फीसदी बढ़ा है। (BS Hindi)

निर्यातकों को बासमती के निर्यात में उछाल की उम्मीद

चावल के निर्यात में सक्रिय कंपनियां मसलन सतनाम ओवरसीज लिमिटेड (कोहिनूर ब्रांड चावल) और एल टी ओवरसीज (दावत ब्रांड) इस सीजन में बेहतर प्रदर्शन को लेकर आशान्वित हैं। उनका मानना है कि वैश्विक बाजार में ऊंची कीमतें और खरीफ सीजन में धान की बुआई में आई तेजी से निर्यात के लिए चावल की उपलब्धता बेहतर रहेगी। पिछले साल भारत से 32 लाख टन बासमती का निर्यात हुआ था और इस साल 40 लाख टन बासमती के निर्यात का अनुमान है। निर्यात के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले धान के उत्पादन की रणनीति के तहत अमीर चंद एक्सपोट्र्स (एरोप्लेन ब्रांड बासमती चावल के मालिक) ने किसानों के साथ सीधी खरीद की व्यवस्था की है। सतनाम ओवरसीज लिमिटेड (कोहिनूर ब्रांड चावल) के संयुक्त प्रबंध निदेशक सतनाम अरोड़ा ने कहा कि वैश्विक बाजार में बासमती चावल की मांग बढ़ रही है और भारतीय निर्यातक इस साल इसमें बड़ा हिस्सा हासिल करने के बारे में सोच रहे हैं। एल टी ओवरसीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक वी के अरोड़ा ने कहा - 'मुझे नहीं लगता कि बासमती की खेती पर बारिश का बहुत असर पड़ेगा। बासमती की विभिन्न किस्मों की कीमतें 1000 डॉलर से 1500 डॉलर प्रति टन है। पिछले साल यह 800 से 900 डॉलर प्रति टन था। ईरान बड़े आयातक के तौर पर सामने आ रहा है और हम अफ्रीकी महाद्वीप में नए बाजार की तलाश कर रहे हैं। बासमती के ब्रांड के तौर पर दावत का प्रदर्शन बेहतर है और हमें निर्यात में 20 फीसदी की उछाल की उम्मीद है।' अमीर चंद जगदीश कुमार एक्सपोट्र्स लिमिटेड (एरोप्लेन ब्रांड चावल) के चेयरमैन जे के सूरी ने कहा - 'पिछले कुछ सालों में बासमती चावल के प्रति जागरूकता बढ़ी है और इस वजह से मांग में भी उछाल आई है। बासमती के तौर पर पूसा 1121 को स्वीकार किए जाने से बासमती चावल के निर्यात का दायरा बढ़ा है। यहां तक कि अफ्रीकी देश भी अब बासमती चावल की मांग कर रहे हैं।' उन्होंने कहा - छोटे बाजारों के लिए ऑर्गेनिक चावल की खरीद की खातिर हमने किसानों के साथ पुनर्खरीद की व्यवस्था की है। यह कारोबार इस साल बढऩे की संभावना है क्योंकि अफ्रीका में बासमती के नए बाजार उभर रहे हैं और बासमती चावल के कारोबार को बढऩे में ईरान काफी मदद कर रहा है। वैश्विक बाजार में बासमती की कीमतें 800 से 1400 डॉलर प्रति टन है और ये कीमतें बासमती की किस्मों पर निर्भर करती हैं। अत्यधिक आपूर्ति के चलते पिछले साल इसकी कीमतें 800 डॉलर प्रति टन के आसपास थी। मॉनसून में देरी और बारिश में कमी के चलते धान के रकबे में गिरावट की संभावना जताई गई थी, लेकिन सरकारी एजेंसियों के ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि 233.68 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हो चुकी है जबकि इसका सामान्य रकबा 240.89 लाख हेक्टेयर होता है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोट्र्स एसोसिएशन के अध्यक्ष महिंदर पाल जिंदल के मुताबिक, इस साल कम बारिश के बावजूद बासमती चावल की पैदावार प्रभावित नहीं होगी क्योंकि इसकी खेती मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सिंचित कृषि भूमि में होती है। हालांकि गैर-बासमती चावल के उत्पादन में गिरावट आ सकती है। (BS Hindi)

यूरिया समेत कई उर्वरकों का आयात हुआ महंगा

दाम बढऩा तय आयातित रासायनिक उर्वरकों पर शुल्क बढऩे से इनके खुदरा मूल्यों में बढ़ोतरी तय है लेकिन अभी यह तय करना बाकी है कि बढ़े शुल्क का भुगतान सब्सिडी से होगा या किसानों पर डाला जाएगा इसका बोझ रासायनिक उर्वरकों के आयात पर लगाई गई एक फीसदी सीवीडी मुख्य वजह मानसून की बेरुखी की मार झेल रहे किसानों पर एक और बोझ पडऩे वाला है। यह बोझ रासायनिक उर्वरकों की कीमतों में वृद्धि के रूप में पड़ सकता है। दरअसल, केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने यूरिया और जल में घुलनशील रासायनिक उर्वरकों समेत कुछ उर्वरकों पर एक फीसदी एड वोलेरम (मूल्यानुसार) काउंटरवेलिंग ड्यूटी (सीवीडी) लगा दी है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय में राजस्व विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि खेती में खनिज पदार्थों के पूरक के रूप में उपयोग किए जाने वाले म्यूरेट ऑफ पोटाश, अमोनियम फास्फेट, जल में घुलनशील उर्वरक (पोटेशियम नाइट्रेट, कैल्सियम नाइट्रेट, मोनो अमोनियम फास्फेट, मोनो पोटेशियम फास्फेट, एनपीके उर्वरक, पोटेशियम मैग्निशियम सल्फेट आदि), यूरिया, पोटेशियम सल्फेट और डाई अमोनियम फास्फेट पर एक फीसदी काउंटरवेलिंग ड्यूटी (सीवीडी) लगा दी गई है। शुल्क की गणना एड वोलेरम होगी। इस बारे में बीते शुक्रवार को ही अधिसूचना जारी कर दी गई है। मालूम हो कि धान और गन्ना उत्पादन में दुनिया में नंबर वन स्थान पर पहुंच गए भारत में रासायनिक उर्वरकों की खपत तेजी से बढ़ी है, लेकिन उस हिसाब से यहां उर्वरकों का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। भारतीय उर्वरक निगम के सिंदरी, बरौनी, गोरखपुर समेत कई कारखानों के बंद होने से भी आयात पर निर्भरता बढ़ रही है। इस समय देश में इस्तेमाल होने वाले कुल उर्वरकों में यूरिया की हिस्सेदारी 50 फीसदी है, जबकि अन्य उर्वरकों में डीएपी प्रमुख है। इसकी खपत हर वर्ष तकरीबन पांच फीसदी की दर से बढ़ रही है। पिछले वर्ष कुल खपत में से 27 फीसदी यूरिया और 68 फीसदी डीएपी का आयात किया गया था। आयातित रासायनिक उर्वरकों पर शुल्क बढऩे से इनके खुदरा मूल्यों में बढ़ोतरी तय है। हालांकि, अभी सरकार को यह तय करना होगा कि बढ़े शुल्क का भुगतान सब्सिडी से होगा या फिर किसानों के लिए मूल्य बढ़ाया जाएगा। यदि किसानों के लिए मूल्य बढ़ाए जाएंगे तो इसे लागू करना थोड़ा कठोर निर्णय हो जाएगा क्योंकि इस समय मानसून की बेरुखी की वजह से सही तरीके से फसलों की बुवाई नहीं हो पाई है। (Business Bhaskar)

केस्टर सीड वायदा में लगेगा 10% अतिरिक्त मार्जिन

तेजी रोकने के लिए एफएमसी के निर्देश पर अतिरिक्त मार्जिन कल से लगेगा केस्टर सीड के वायदा कारोबार में बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने वायदा अनुबंधों पर 10 फीसदी का अतिरिक्त नकद मार्जिन लगाने के निर्देश दिए हैं। एनसीडीईएक्स में केस्टर सीड के सभी महीनों के वायदा अनुबंधों पर अतिरिक्त मार्जिन 21 अगस्त से प्रभावी हो जाएगा। एफएमसी के सूत्रों के अनुसार जिंस वायदा बाजार में केस्टर सीड की कीमतों को स्थिर रखने के लिए अतिरिक्त मार्जिन लगाने के निर्देश दिए गए हैं। एनसीडीईएक्स में अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में चालू महीने में ही केस्टर सीड की कीमतों में 12.7 फीसदी की तेजी आ चुकी है। पहली अगस्त को एनसीडीईएक्स पर अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में केस्टर सीड का भाव 4,492 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि शनिवार को इसका भाव बढ़कर ऊपर में 5,065 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था। गुजरात में मानसूनी वर्षा कम होने से केस्टर सीड की बुवाई में भारी कमी आई है। जिससे वर्ष 2013 में केस्टर सीड की पैदावार में करीब 40 से 45 फीसदी कमी आने की आशंका है इसीलिए घरेलू बाजार के साथ ही वायदा में कीमतों में तेजी बनी हुई है। सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार 2011-12 में केस्टर सीड का उत्पादन 16.19 लाख टन होने का हुआ है। (Business Bhaskar)

कम बारिश से रबी फसलों का भी उत्पादन घटने की आशंका

रबी पर किंतु-परंतु - अगस्त में बेहतर बारिश हुई है। मानसून की बाकी अवधि में भी अच्छी बारिश हुई रबी की पैदावार में कमी का अंदेशा कम हो जाएगा। लेकिन आगामी डेढ़ महीने में भी मानसूनी वर्षा सामान्य से कम रही तो रबी की प्रमुख फसलों में गेहूं, चना, सरसों और जौ की पैदावार प्रभावित हो सकती है। लगातार तीसरे साल यानि अगले रबी सीजन में गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार की उम्मीद पर मानसून की बेरुखी का ग्रहण लग सकता है। आगामी डेढ़ महीने में भी मानसूनी वर्षा सामान्य से कम रहने से रबी की प्रमुख फसलों गेहूं, चना, सरसों और जौ की पैदावार प्रभावित हो सकती है। पहली जून से 17 अगस्त तक देशभर में सामान्य से 16 फीसदी कम बारिश हुई जबकि गेहूं के प्रमुख उत्पादक राज्यों हरियाणा और पंजाब में स्थिति ज्यादा ही खराब है। हरियाणा में सामान्य से 67 फीसदी और पंजाब में 65 फीसदी कम बारिश हुई है। हालांकि अगस्त में बारिश में सुधार हुआ है और मानसून के बाकी अवधि में अच्छी बारिश हुई रबी की पैदावार में कमी का अंदेशा कम हो जाएगा। करनाल स्थित गेहूं अनुसंधान निदेशालय (डीडब्ल्यूआर) की परियोजना निदेशक डॉ. इंदु शर्मा ने बताया कि मानसून सामान्य से कम रहा तो इसका असर रबी फसलों पर भी पड़ेगा। बारिश कम होने के कारण किसानों ने बासमती धान की खेती में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई। बासमती धान के क्षेत्रों में फसल की कटाई लेट होगी तो रबी की फसलों की बुवाई में भी देरी होगी। हालांकि अभी से अनुमान लगाना जल्दबाजी है क्योंकि मानसून सीजन का डेढ़ महीना बचा हुआ है। अगर इस दौरान मानसूनी बारिश अच्छी हो जाए तो रबी फसलों के उत्पादन में कमी की आशंका घट जाएगी। उन्होंने बताया कि चालू खरीफ में अभी तक हरियाणा और पंजाब में बारिश सामान्य से काफी कम हुई है जो चिंताजनक है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के पूर्व निदेशक और वर्तमान में खाद्य एवं कृषि संगठन के सलाहकार प्रोफेसर आर. बी. सिंह ने कहा कि मानसून की कमी से रबी की प्रमुख फसलों गेहूं, चना, सरसों और जौ की पैदावार प्रभावित होगी। उन्होंने बताया कि चना, सरसों और जौ की बुवाई का ज्यादातर क्षेत्रफल असिंचित है इसलिए इनकी बुवाई ज्यादा प्रभावित होगी। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार जून-जुलाई के मुकाबले अगस्त महीने में बारिश में सुधार हुआ है लेकिन अभी भी सामान्य से कम है। पहली जून से 17 अगस्त तक देशभर में सामान्य से 16 फीसदी कम बारिश हुई है। गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ में 82 फीसदी, हरियाणा में 67 फीसदी, पंजाब में 65 फीसदी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 37 फीसदी, हिमाचल प्रदेश में 39 फीसदी और मराठवाड़ा में 39 फीसदी कम बारिश हुई। ये क्षेत्र कमजोर मानसून से ज्यादा प्रभावित हैं। कृषि मंत्रालय के चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार बीते फसल वर्ष 2011-12 में गेहूं का रिकॉर्ड 939 लाख टन का उत्पादन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2010-11 में भी 868.7 लाख टन का उत्पादन हुआ था। रबी दलहन की प्रमुख फसल चने का उत्पादन चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार 75.8 लाख टन, सरसों का 67.76 लाख टन और जौ का उत्पादन 16.1 लाख टन होने का अनुमान है।( Business Bhaskar....R S Rana)

18 अगस्त 2012

मानसून में सुधार के बावजूद खरीफ फसलों की बुवाई धीमी

पिछले साल से पीछे - दलहन की बुवाई 97.38 लाख हैक्टेयर के मुकाबले 85.32 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है। इसी तरह से मोटे अनाजों की बुवाई 157.97 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 181.67 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों में बाजरा की बुवाई का रकबा 74.40 लाख हैक्टेयर के मुकाबले 53.91 लाख हैक्टेयर है। अभी भी मोटे अनाज, दलहन और धान की रोपाई पिछड़ी, लेकिन अंतर घटा अगस्त महीने में मानसूनी बारिश में हुए सुधार से धान, मोटे अनाज और तिलहनों की बुवाई पहले की तुलना में बढ़ी है लेकिन अभी भी बुवाई पिछले साल के मुकाबले पिछड़ रही है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार अभी भी पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले दलहनों की बुवाई का रकबा 1२.3 फीसदी, मोटे अनाजों का 13 फीसदी और धान की रोपाई 3.5 फीसदी कम है। हालांकि पिछले साल के मुकाबले बुवाई रकबा का अंतर कम हुआ है। जून-जुलाई के साथ ही मध्य अगस्त तक देशभर के कई राज्यों में सामान्य से कम हुई बारिश का असर खरीफ फसलों की बुवाई पर पड़ा है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार पहली जून से 16 अगस्त तक देशभर में सामान्य से 16 फीसदी कम बारिश हुई है। हालांकि जून और जुलाई के मुकाबले अगस्त में मानसूनी वर्षा में कमी का अंतर कम हुआ है। इसके बावजूद मानसून की कमी का सबसे ज्यादा असर मोटे अनाजों और दलहनी फसलों पर पडऩे की आशंका है। चालू खरीफ में दलहन की बुवाई घटकर 85.32 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 97.38 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। इसी तरह से मोटे अनाजों की बुवाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 157.97 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 181.67 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों में बाजरा की बुवाई 53.91 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 74.40 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। मक्का की बुवाई भी पिछले साल के 70.04 लाख हैक्टेयर के मुकाबले 69.44 लाख हैक्टेयर में ही हुई है। मानसूनी वर्षा कम होने से धान की रोपाई भी चालू खरीफ में अभी तक 307.76 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 319.16 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। कपास की बुवाई भी चालू खरीफ में अभी तक 110.26 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 116.81 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। तिलहनों की बुवाई पिछले साल इस समय तक 167.43 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी जबकि चालू खरीफ में इनकी बुवाई अभी तक 160.77 लाख हैक्टेयर में ही हुई है। गन्ना की बुवाई जरूर पिछले साल के 50.59 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 52.88 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। (Business Bhaskar)

कमजोर मानसून से सोने की खपत घटने के आसार

सूखे के कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढऩे के आसार हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में सोने से लेकर ट्रैक्टर तक तमाम गैर आवश्यक वस्तुएं खरीदने के लिए लोगों की क्रय शक्ति प्रभावित होगी। -अजय मित्रा, मैनेजिंग डायरेक्टर (भारत व मध्य-पूर्व), वल्र्ड गोल्ड काउंसिल मौजूदा वर्ष में सोने की मांग घटकर 688-700 टन के बीच रहेगी: डब्ल्यूजीसी चालू वर्ष 2012 की दूसरी छमाही में मानसूनी बारिश की कमी के कारण सोने की खपत में करीब 20 फीसदी की कमी आने का अनुमान है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) का कहना है कि मानसून कमजोर रहने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आमदनी पर प्रतिकूल असर पडऩे से सोने की मांग हल्की पड़ सकती है। सोने की ऊंची कीमत होने से भी इसकी मांग पर असर पडऩे के आसार हैं। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के मैनेजिंग डायरेक्टर (भारत व मध्य-पूर्व) अजय मित्रा ने कहा है कि दूसरी छमाही में मांग घटने के कारण मौजूदा वर्ष में सोने की कुल मांग घटकर 688-700 टन के बीच रहने की संभावना है। पिछले साल 2011 में कुल सोने की मांग 933.4 टन रही थी। उन्होंने कहा कि सोने की मांग पर कमजोर मानसून का असर पड़ सकता है लेकिन सूखे से निपटने के लिए सरकारी उपायों से यह प्रभाव कुछ कम हो सकता है। भारत में चार साल बाद कम बारिश के चलते कई क्षेत्रों में सूखे जैसी स्थिति पैदा हो गई है। इससे पहले 2009 में सूखे के हालात पैदा हुए थे। मित्रा ने कहा कि सूखे के कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढऩे के आसार हैं। इस वजह से आम लोगों की बचत कम हो जाएगी। इससे सोने से लेकर ट्रैक्टर तक तमाम गैर आवश्यक वस्तुएं खरीदने के लिए लोगों की क्रय शक्ति प्रभावित होगी। देश में आधे से ज्यादा आबादी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर निर्भर करती है। डब्ल्यूजीसी के अनुसार चालू वर्ष की दूसरी तिमाही में निवेश और ज्वैलरी के लिए सोने की मांग 38 फीसदी घटकर 181.3 टन रह गई। सरकार द्वारा आयात पर ज्यादा शुल्क लगाए जाने और रुपया कमजोर होने से सोने का भाव रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने से सोने की मांग पर प्रतिकूल असर पड़ा। डब्ल्यूजीसी की रिपोर्ट के अनुसार चालू वर्ष की पहली तिमाही में सोने का आयात 36 फीसदी घटकर 383.2 टन रह गई। इस वजह से भारत को पीछे छोड़कर चीन दुनिया का सबसे बड़ा सोना बाजार बन गया। हालांकि मित्रा ने बताया कि सोने के आयात में गिरावट की रफ्तार धीमी पड़ रही है। सोने के आयात में भारी गिरावट का दौर खत्म हो गया है। जनवरी के बाद से आयात में कमी आ रही है। पिछले जुलाई माह में आयात तुलनात्मक रूप से बेहतर रहा। डब्ल्यूजीसी के अनुसार अब उपभोक्ताओं को सोने के मूल्य में ज्यादा बढ़ोतरी होने की गुंजाइश नहीं दिख रही है। इस वजह से पुराने सोने की सप्लाई बढ़ी है। दूसरी तिमाही में पुराने सोने की आवक बढ़कर 30 टन तक पहुंच गई। पिछले तीन साल में पुराने सोने की यह सप्लाई सबसे ज्यादा रही। मित्रा ने कहा कि अगर सोने की कीमत दूसरी छमाही बढ़ती है तो इसके आयात में गिरावट आने की पूरी गुंजाइश होगी। दूसरी तिमाही में सोने का आयात 56 फीसदी घटकर 131 टन रह गई। (Business Bhaskar)

30 फीसदी घट सकती है आलू की पैदावार

मौसम की बेरुखी से खरीफ में आलू की बुआई कम हुई है और कई इलाकों में सूखे जैसे हालात बनने से इसकी पैदावार 25 से 30 फीसदी घटने की आशंका है। खरीफ का नया आलू आने से आमतौर पर भाव गिरते हैं, लेकिन उत्पादन कम रहने से इस बार आलू सस्ता होने की उम्मीद नहीं है। खरीफ में कर्नाटक, महाराष्ट, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में करीब 20 लाख टन आलू पैदा होता है। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के निदेशक आर पी गुप्ता ने बताया, 'कर्नाटक में सूखे के कारण 25 से 30 फीसदी क्षेत्र में ही आलू लगा है। हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में पिछले साल जितनी ही बुआई हुई है, लेकिन महाराष्ट्र में यह घटी है। कर्नाटक और महाराष्ट्र में बुआई घटने और मौसम प्रतिकूल रहने से खरीफ में इसका उत्पादन 30 फीसदी तक घटने का खटका है।' अखिल भारतीय सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष श्रीराम गधावे के मुताबिक रबी में कम पैदावार के कारण आलू के भाव चढ़ गए हैं और खरीफ में कम बारिश के कारण उत्पादन फिर घटेगा। आजादपुर मंडी के आलू कारोबारी त्रिलोक शर्मा ने कहा कि उत्पादन घटने पर भी आलू का पर्याप्त भंडार है, लेकिन कम उत्पादन का हौवा दिखाकर सटोरिये दाम बढ़ा रहे हैं वरना मंडी में रोजाना 20 ट्रक आलू बिकने से बच ही जाता है और 70 फीसदी आलू अब भी कोल्ड स्टोर में बचा है। कोल्ड स्टोर वाले आलू का थोक भाव मंडी में 1,200 से 1,500 रुपये प्रति क्विंटल है। (BS Hindi)

फसल के आकलन के बाद ही ग्वार वायदा की अनुमति

इस खरीफ सीजन में ग्वार की फसल का आकलन किए बिना वायदा बाजार आयोग शायद ही जिंस एक्सचेंजों को ग्वार वायदा दोबारा शुरू करने की अनुमति देगा। कृषि जिंसों का कारोबार करने वाले दो एक्सचेंज एनसीडीईएक्स और ऐस कमोडिटी एक्सचेंज ग्वार वायदा को दोबारा लॉन्च करने के लिए पहले ही एफएमसी के पास आवेदन जमा कर चुका है। 2 अप्रैल से इस पर रोक लगाए जाने से पहले इन एक्सचेंजों पर ग्वार और ग्वार गम के अनुबंध काफी सक्रिय थे। ग्वार वायदा दोबारा लॉन्च किए जाने में हो रही देरी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों ही एक्सचेंजों पर इन जिंसों के जरिए काफी ज्यादा कारोबार हो रहा था। इसके दोबारा लॉन्च होने से इन एक्सचेंजों पर कारोबार बढ़ सकता है और इनके टर्नओवर में भी मजबूती आ सकती है। एफएमसी के चेयरमैन रमेश अभिषेक ने कहा - 'हमें एक्सचेंजों से ग्वार व ग्वार वायदा दोबारा लॉन्च करने की अनुमति की खातिर आवेदन प्राप्त हुए हैं। लेकिन फसल का आकलन किए बिना हम इसकी अनुमति नहीं देंगे।' नियामक ने कहा कि बहुत ज्यादा सटोरिया गतिविधियोंं के चलते इन जिंसों के वायदा कारोबार पर अस्थायी रोक लगाई गई थी। सटोरिया गतिविधियों के चलते ग्वार व ग्वार गम की कीमतें क्रमश: 3000 रुपये व 1 लाख रुपये प्रति क्विंटल हो गई थी। एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्वार बीन्स की आदर्श कीमतें 10 रुपये प्रति किलोग्राम होनी चाहिए जबकि ग्वार बीज व ग्वार गम का कारोबार क्रमश: 25 व 50 रुपये प्रति किलोग्राम पर होना चाहिए। इस बीच, खाद्य व उपभोक्ता मामलों के मंत्री के वी थॉमस ने एफएमसी से कहा था कि ग्वार की कीमतों में आई उछाल की वह दोबारा जांच करे। मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में एफएमसी ने कहा है कि हमने ग्वार गम की कीमतों को चढ़ाने में 4490 इकाइयों को शामिल पाया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन इकाइयों ने ग्वार गम के कारोबार से 1291 करोड़ रुपये का मुनाफा हासिल किया और कारोबारियों ने अधिकतम कीमत पर बेचने तक इसे अपने पास बनाए रखा। मंत्रालय हालांकि शायद ही इन इकाइयों के खिलाफ किसी तरह का कदम उठाएगा। उपभोक्ता मामलों के सचिव राजीव अग्रवाल ने कहा - मुनाफा कमाना आपराधिक गतिविधि नहीं है, ऐसे में हमें नहीं लगता कि मुनाफा कमाकर इन इकाइयों ने कोई गुनाह किया है। हालांकि समझा जाता है कि एफएमसी अपने स्रोतों से ग्वार की बुआई के आंकड़े इकट्ठा कर रहा है। जोधपुर के ग्वार कारोबारी संजय पेरिवाल ने कहा कि पिछले पखवाड़े मॉनसून में सुधार हुआ है, लिहाजा राजस्थान के किसान ग्वार की बुआई करेंगे। एफएमसी के एक अधिकारी ने कहा कि ग्वार वायदा दोबारा लॉन्च होने में देरी हो सकती है क्योंकि एफएमसी ग्वार के फसल का आकलन कर रहा है, जिसकी बुआई अभी जारी है। जब बुआई पूरी हो जाएगी तब एफएमसी इसका आकलन कर लेगा और फिर इसका वायदा लॉन्च करने की अनुमति दी जा सकती है। यह अनुमति दिसंबर के बाद ही मिल सकती है। दूसरा, मॉनसून में देरी के चलते बाजरे की बुआई का मौका हाथ से निकल गया, ऐसे में किसान उन इलाकों में ग्वार की बुआई कर रहे हैं, जहां बाजरे की बुआई नहीं हो पाई। पेरिवाल ने कहा, इसके परिणामस्वरूप ग्वार का रकबा इस साल दोगुना हो सकता है। कारोबारियों को लगता है कि कम बारिश के बाद भी इस साल ग्वार का उत्पादन कम से कम 50 फीसदी बढ़ेगा। ऐसे में ग्वार का उत्पादन इस साल 19 लाख टन पर पहुंच सकता है जबकि पिछले साल 12.5 लाख टन का उत्पादन हुआ था। (BS Hindi)