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24 दिसंबर 2012

दूसरे राज्यों से कपास खरीद रही हैं गुजरात की मिलें

इस साल कपास का उत्पादन अनुमान से कम रहने के चलते गुजरात की जिनिंग मिलें कच्चे माल के लिए दूसरे राज्यों पर आश्रित होने के लिए बाध्य हो गई हैं। इस समय जिनिंग के लिए उपलब्ध कपास में करीब 50 फीसदी हिस्सा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और दूसरे उत्पादक राज्यों से आ रहा है। सौराष्ट्र जिनर्स एसोसिएशन के सचिव आनंद पोपट ने कहा, 'हर साल दूसरे राज्यों से सिर्फ 20-25 फीसदी कपास ही कताई के लिए गुजरात आता है क्योंकि हमारे पास बड़ी संख्या में प्रसंस्करण इकाइयां हैं। लेकिन इस साल स्थितियां अलग हैं क्योंकि हमारे यहां उत्पादन घटा है और ज्यादातर कताई मिलें दूसरे राज्यों से 50 फीसदी से ज्यादा कच्चा माल मंगवाने को बाध्य हुई हैं।' पोपट के मुताबिक मुख्य रूप से सौराष्ट्र के किसान कपास बेचने से परहेज कर रहे हैं क्योंकि वे इसकी ज्यादा कीमतें चाहते हैं। दूसरी ओर अन्य राज्यों में ज्यादा उत्पादन के चलते कपास की कीमतें कम हैं। गुजरात में रोजाना औसतन करीब 40,000 गांठ कपास की आवक होती है। इसमें से करीब 20,000-22,000 गांठ कपास की आवक इस साल महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और राजस्थान से हो रही है जबकि पिछले साल इन राज्यों से करीब 8,000 गांठ कपास की आïवक हुई थी। यहां कपास की कीमतें 850-900 रुपये प्रति 20 किलोग्राम हैं। अहमदाबाद के कारोबारी और निर्यातक अरुणभाई दलाल ने कहा, 'फिलहाल गुजरात के किसान बहुत ज्यादा कपास नहीं बेच रहे हैं क्योंकि उन्होंने पिछले साल इसका भाव 951-1000 रुपये प्रति 20 किलोग्राम देखा है। जब एक बार कीमतें इस स्तर पर पहुंच जाएंगी तो किसान कपास की बिक्री में इजाफा करेंगे। लेकिन फिलहाल यह वास्तविकता है कि हम महाराष्ट्र और आंध्र पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं।' दलाल के मुताबिक गुजरात में अब तक करीब 18-19 लाख गांठ कपास की आवक हुई है और इसमें से 7-8 लाख गांठ कपास की आवक दूसरे राज्यों से हुई है। मिलों की तरफ से बेहतर मांग के चलते इस हफ्ते कपास की कीमतें बढ़ी हैं। बाजार के सूत्रों के मुताबिक, मांग में और इजाफा होगा क्योंकि सूती धागे की निर्यात मांग अच्छी है। साल 2012-13 में गुजरात में 70-75 लाख गांठ कपास उत्पादन की संभावना है जबकि पिछले साल 120 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। इसमें से सौराष्ट्र का उत्पादन इस साल शायद ही 30-35 लाख गांठ को पार कर पाएगा और यह उत्पादन पिछले साल के मुकाबले करीब 50 फीसदी कम है। मौजूदा वित्त वर्ष में धागा निर्माताओं को निर्यात में 20 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद है, लिहाजा उन्होंने कपास की खरीदारी की है और इसी वजह से स्थानीय बाजार में कीमतें बढ़ी। किसान कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया से कपास की खरीदारी की मांग कर रहे हैं ताकि समर्थन मूल्य को सहारा मिल सके। कपास के बाजार में फिलहाल बहुत ज्यादा तेजी नहीं है। (BS Hindi)

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