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22 नवंबर 2012

गेहूं उत्पादन में आएगी गिरावट!

देश में रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं का उत्पादन 2012-13 में मामूली घटने का अनुमान है। इसकी वजह किसानों पर गेहूं उपजाने की बढ़ती लागत का दबाव है। इससे गेहूं का रकबा स्थिर है, जिससे उत्पादकता पर भी असर पड़ सकता है। बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत करते हुए गेहूं शोध संस्थान, करनाल की निदेशक इंदू शर्मा ने कहा, 'इस सीजन में गेहूं का रकबा संभवतया स्थिर रहेगा और उत्पादन पिछले साल की तुलना में मामूली घटने की संभावना है। पिछले साल गेहूं का अनुमानित रकबा 29.9 लाख हेक्टेयर था और गेहूं के स्थिर न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी (1,285 रुपये प्रति क्विंटल) को देखते हुए रकबे में बढ़ोतरी की कोई संभावना नहीं है।' शर्मा ने कहा कि गेहूं की उत्पादकता उस समय अधिक होती है, जब लंबे समय तक कड़ी सर्दी पड़ती है। तापमान में मामूली उतार-चढ़ाव से भी उत्पादन में कमी आ सकती है। वहीं, डीएपी (डाई अमोनियम फॉस्फेट) की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इसकी कीमत पिछले साल 470 रुपये प्रति 50 किलोग्राम थी, जो इस साल बढ़कर 1,200 रुपये प्रति 50 किलोग्राम हो गई है। इससे भी किसान गेहूं का रकबा बढ़ानेे को निरुत्साहित हो रहे हैं। मॉनसून के देर तक सक्रिय रहने से धान की कटाई में देरी हुई है। इससे कुछ क्षेत्रों में गेहूं की बुआई में देरी हुई है। देश में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य हैं। विभिन्न राज्यों के किसानों से मिलीं सूचनाओं से पता चलता है कि बुआई में 5 से लेकर 20 दिन तक की देरी हुई है। शर्मा ने कहा कि रबी सीजन 2011-12 अपवादस्वरूप अच्छा वर्ष रहा, जिसमें गेहूं की कटाई तक मौसम ठंडा बना रहा। इसके नतीजतन उत्पादन में 7.5 फीसदी बढ़ोतरी हुई, जो अप्रत्याशित थी। साथ ही, 12 वर्षों में पहली बार गेहूं उत्पादन में इतनी बढ़ोतरी हुई। उन्होंने कहा कि गेहूं के एमएसपी के फैसले का अगले सीजन पर असर पड़ेगा, क्योंकि इस सीजन के लिए तो किसान बीज और अन्य इनपुट्स खरीद चुके हैं और करीब 80 फीसदी बुआई हो चुकी है। इस सीजन में गेहूं की कीमतें खुले बाजार में एमएसपी से 20 फीसदी ज्यादा हैं और इनके कटाई तक इन्हीं स्तरों पर बने रहने की संभावना है। इससे गेहूं उत्पादक किसानों को थोड़ी राहत मिलेगी। हालांकि पंजाब और हरियाणा में किसान मुख्य रूप से सरकारी खरीद पर ही निर्भर हैं। पंजाब और हरियाणा के विभिन्न जिलों के किसानों ने बताया कि उन्हें गेहूं के स्थान पर कोई वैकल्पिक फसल ढूंढनी होगी। क्योंकि इसमें कीटनाशकों की बहुत अधिक जरूरत पड़ती है और कीटनाशकों की बढ़ती कीमत की वजह से गेहूं की खेती उनके लिए फायदेमंद नहीं है। लेकिन गेहूं का सुनिश्चित बाजार होने की वजह से वे इसकी खेती नहीं छोड़ पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस साल उत्पादकता पिछले साल से कम रहने की संभावना है, क्योंकि ग्लोबल वॉर्मिंग का कृषि उत्पादकता पर असर पड़ रहा है। तापमान में उतार-चढ़ाव के प्रति गेहूं काफी संवेदनशील होता है और पिछले साल की तुलना में तापमान में मामूली बढ़ोतरी से भी उत्पादन पर असर पड़ सकता है। (BS Hindi)

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