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26 नवंबर 2012

खाद्य सुरक्षा बिल

केंद्र ने गरीबों को सस्ते अनाज का कानूनी अधिकार दिलाने के उद्देश्य से प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विघेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी। संप्रग की प्रमुख सोनिया गांधी की इस दिली योजना के लागू होने से देश की 63.5 प्रतिशत आबादी को कानूनी तौर पर तय सस्ती दर से अनाज का हक हासिल हो जाएगा। प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की अध्यक्षता में यहां शाम को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस विधेयक के मसौदे को मंजूरी दी गई। कृषिमंत्री शरद पवार द्वारा अनाज की उपलब्धता और सब्सिडी का बोझ ऊंचा होने को लेकर कुछ चिंता जताई थी। अब इस विधेयक को एक दो दिन में संसद के चालू सत्र में पेश किया जा सकता है। इस कानून के लागू होने के बाद सरकार का खाद्य सब्सिडी पर खर्च 27663 करोड़ रुपए बढ़कर 95000 करोड़ रुपए सालाना हो जाएगा। इस पर अमल के लिए खाद्यान्न की जरूरत मौजूदा के 5.5 करोड़ टन से बढ़कर 6.1 करोड़ टन पर पहुंच जाएगी। कांग्रेस ने 2009 के चुनाव घोषणापत्र में इस कानून को लाने का वादा किया था। राष्ट्रपति ने भी जून, 2009 में संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए इसकी घोषणा की थी। देश के ग्रामीण क्षेत्र की तीन चौथाई (75 फीसद आबादी) और शहरी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत आबादी को इस कानून के दायरे में लाया जा रहा है। इस कानून का लाभ पाने वाली ग्रामीण आबादी की कम से कम 46 प्रतिशत आबादी को ‘प्राथमिकता वाले परिवार’ की श्रेणी में रखा जाएगा, जो मौजूदा सार्वजनिक वितरण प्रणाली में ये गरीबी रेखाGet Fabulous Photos of Rekha से नीचे के परिवार कहे जाते हैं। शहरी क्षेत्रों की जो आबादी इसके दायरे में आएगी उसका 28 प्रतिशत प्राथमिकता वाली श्रेणी में होगा। विधेयक के तहत प्राथमिकता वाले परिवारों को प्रति व्यक्ति सात किलो मोटा अनाज, गेहूं या चावल क्रमश: एक, दो और तीन रुपए किलो के भाव पर सुलभ कराया जाएगा। यह राशन की दुकानों के जरिए गरीबों को दिए जाने वाले अनाज की तुलना में काफी सस्ता है। मौजूदा पीडीएस व्यवस्था के तहत सरकार 6.52 करोड़ बीपीएल परिवारों को 35 किलो गेहूं या चावल क्रमश: 4.15 और 5.65 रुपए किलो के मूल्य पर उपलब्ध कराती है। सामान्य श्रेणी के लोगों को कम से कम तीन किलो अनाज सस्ते दाम पर दिया जाएगा, जिसका वितरण मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य के 50 फीसद से अधिक नहीं होगा। वर्तमान में गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) के 11.5 परिवारों को कम से कम 15 किलो गेहूं या चावल क्रमश: 6.10 और 8.30 रुपए किलो के भाव पर उपलब्ध कराया जाता है। यह प्रस्तावित कानून वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह के पास सितंबर, 2009 से है। अनुमान है कि इस कार्यक्रम से सरकारी खजाने पर 3.5 लाख करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ पड़ेगा। सोनिया गांधी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के अध्यक्ष सी. रंगराजन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने भी इस विधेयक पर अपनी सिफारिशें दी थीं। एनएसी ने सिफारिश की थी की कि 2011-12 से पहले चरण के तहत प्राथमिकता और सामान्य परिवारों को मिलाकर कुल आबादी के 72 प्रतिशत हिस्से को सब्सिडी वाले अनाज का कानूनी अधिकार दिया जाए। एनएसी ने दूसरे चरण में 2013-14 तक 75 प्रतिशत आबादी को इसके दारे में लाने का प्रस्ताव किया था। पर विशेषज्ञ समिति का मत था कि यह सुझाव व्यावहारिक नहीं है। समिति ने सुझाव दिया था कि केवल जरूरतमंद परिवारों को दो रुपए किलो के भाव पर गेहूं और तीन रुपए किलो पर चावल का कानूनी अधिकार दिया जाए। बाकी की आवादी के लिए सस्ते कानून की योजना का क्रियान्वयन सरकारी आदेश के तहत रखा जाए। खाद्य मंत्रालय ने इस विधेयक के मसौदे के अंतिम रूप देन से पहले इस पर राज्य सरकारों की भी राय आमंत्रित की थी। इस विधेयक में बेसहारा और बेघर लोगों, भुखमरी और आपदा प्रभावित व्यक्तियों जैसे विशेष समूह के लोगों के लिए भोजन उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इसके अलावा इसमें गरीब गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान काराने वाली माताओं और बच्चों के लिए पौष्टिक आहार की व्यवस्था का प्रावधान है। गर्भवती महिलाओं को लाभ : खाद्य मंत्री केवी थामस ने इससे पहले कहा था कि गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक अधिकार का अधिकार दिलाने के अलावा उन्हें छह माह तक 1000 रुपए प्रति माह की दर से मातृका लाभ भी दिया जाएगा। साथ ही आठवीं कक्षा तक के बच्चों को भी भोजन सुलभ कराने का प्रावधान किया जाएगा। थॉमस ने कल कहा था कि इस प्रस्तावित कानून से सालाना वित्तीय दायित्व 3.50 लाख करोड़ रुपए बनेगा। खाद्य मंत्रालय ने अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए 1,10,600 करोड़ रुपए के निवेश और समन्वित वाल विकास सेवा (आईसीडीएस) के लिए 35000 करोड़ रुपए के प्रावधान का सुझाव दिया है। विशेष समूहों के लिए भोजन की व्यवस्था पर सालाना 8920 करोड़ रुपए और मातृका लाभ योजना पर 14512 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। यह बोझ केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर उठाएंगी। महिलाओं को अधिकार सम्पन्न बनाने के लिए इस योजना के तहत राशन कार्ड परिवार की सबसे बड़ी महिला के दाम जारी करने का प्रस्ताव है। विधेयक में यह महत्वपूर्ण प्रावधान भी किया गया है कि सूखा या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा के कारण अनाज की कमी होने पर संबंधित राज्यों को नकद भुगतान करेगा। व्यक्ति को उसके हक के अनुसार सस्ता अनाज सुलभ न होने की स्थिति में राज्य सरकार पर उसे ‘खाद्य सुरक्षा भत्ता’ देना होगा। शिकायतों के निवारण के लिए जिला शिकायत निवारण अधिकारी, राज्य खाद्य आयुक्त और राष्ट्रीय खाद्य आयुक्त के कार्यालय बनाए जाएंगे। विधेयक के मसौदे में जिला शिकायत निवारण अधिकारी की सिफारिश का अनुपालन न करने वाले सरकारी कर्मचारी पर 5000 तक के अर्थदंड का प्रावधान किया है। (Bhasha)

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