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08 अक्तूबर 2012

उर्वरक सब्सिडी घटाएगी सरकार

उर्वरक सब्सिडी में कमी लाने और इसके आयात में कटौती के लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से कहा है कि वे आगामी रबी सीजन के लिए उर्वरक की जरूरतों के अनुमान को संशोधित करे। वास्तव में उर्वरक विभाग ने सभी राज्यों के साथ बैठक कर आगामी रबी सीजन के लिए सितंबर में ही उर्वरक की जरूरतों को अंतिम रूप दे दिया था। हालांकि विभिन्न राज्यों में बिना इस्तेमाल के पड़े हुए 25 लाख टन उर्वरक के भंडार को देखते हुए सुझाव दिया गया है कि रबी सीजन की मांग को अंतिम रूप देने और सब्सिडी तय करने से पहले इसकी समीक्षा की जानी चाहिए। केंद्र सरकार को लगता है कि राज्यों ने मांग का अनुमान काफी बढ़ाचढ़ाकर पेश किया है और राज्यों ने बिना इस्तेमाल के पड़े हुए उर्वरक के भंडार व किसानों की कम मांग पर ध्यान नहीं दिया है। अपेक्षाकृत कम कीमत के चलते किसान यूरिया के इस्तेमाल में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं और फॉस्फोरस, पोटाश व दूसरे उïर्वरकों की खरीद नहीं करना चाहते क्योंकि इनकी कीमतें ज्यादा होती हैं। एक अधिकारी ने कहा, देश भर में बारिश के असमान वितरण के चलते उर्वरक की मांग घटी है और किसानों को ज्यादातर फसलों की कीमत गैर-लाभकारी नजर आ रही है। ऐसे में किसान डीएपी या एमओपी की जगह यूरिया के इस्तेमाल को प्राथमिकता दे रहे हैं। देश में सालाना 280-300 लाख टन यूरिया, 100-110 लाख टन डीएपी, 40-50 लाख टन एमओपी, 100 लाख टन एनपीके और 40 लाख टन एसएसपी की जरूरत होती है। उद्योग के सूत्रों ने कहा, किसान खरीफ व रबी सीजन में इस अनुमान का क्रमश: 55 व 45 फीसदी का इस्तेमाल करते हैं। इस अनुमान के आधार पर उïर्वरक विभाग ने कुल मांग को अंतिम रूप दे दिया है और आगामी सीजन में 165 लाख टन यूरिया, 55 लाख टन डीएपी, 25 लाख टन एमओपी और 56 लाख टन एनपीके की मांग का अनुमान है। सूत्रों ने कहा, हालांकि विभिन्न राज्य इन अनुमानों में कटौती करेंगे और नया अनुमान जल्द ही पेश किया जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि उर्वरक का उत्पादन करने वाली कंपनियां राज्यों के सहयोग से सरकार द्वारा तैयार अनुमान के हिसाब से इसका उत्पादन करते हैं। जहां तक सब्सिडी का सवाल है, कंपनियों को सब्सिडी का 85 फीसदी हिस्सा तब हासिल हो जाता है जब वे राज्यों को इसकी आपूर्ति कर देते हैं और सब्सिडी की बाकी रकम उन्हें राज्य की तरफ से वितरण की पुष्टि किए जाने के बाद मिलती है। यूरिया की बाजार कीमतें नियंत्रित हैं, जहां सरकार कीमतों में हो रहे उतारचढ़ाव की भरपाई के लिए फ्लोटिंग सब्सिडी की नीति अपनाती है। साथ ही इसका आयात या उथ्पादन करने वाली कंपनियां सिर्फ तय कीमतों का भुगतान करती हैं। यह उर्वरक के दूसरे प्रकार डीएपी, एमओपी या एनपीके से अलग है, जहां कीमतों का जुड़ाव बाजार से होता है और आयातकों व खुदरा विक्रेताओं की सब्सिडी तय होती है। ऐसे में भारतीय कंपनियों के लिए इनकी कीमतें कम करना मुश्किल होता है क्योंकि वैश्विक कीमतें ऊंची हैं और भारत अपनी गैर-यूरिया जरूरतों का 60-70 फीसदी हिस्सा वैश्विक बाजार से खरीदता है। पिछले साल इसकी कीमतें 650-700 रुपये प्रति बोरी थी, जो अब बढ़कर 1300-1400 रुपये प्रति बोरी हो गई है।हालांकि कम आयात से सब्सिडी में अपने आप कमी आ जाएगी क्योंकि उर्वरकों का उत्पादन सीमित है। भारतीय कंपनियां उर्वरक के उत्पादन के लिए मुख्य रूप से कच्चे माल का आयात करती हैं। (BS HIndi)

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