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26 अक्तूबर 2012

चीनी पर आयात शुल्क बढ़ाने की वकालत

मौजूदा पेराई सीजन में कच्ची चीनी का आयात और सफेद चीनी के निर्यात के विरोध के मसले पर निजी व सहकारी चीनी मिलों के सुर एक जैसे हैं। हालांकि आयात शुल्क के मामले में उनके बीच मतभेद है। निजी चीनी मिलों के संगठन भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने केंद्र सरकार से चीनी पर आयात शुल्क मौजूदा 10 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी करने का अनुरोध किया है। दूसरी ओर, फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज इन महाराष्ट्र (170 सहकारी मिलों की अग्रणी संस्था) ने 10 फीसदी आयात शुल्क लगाने की सिफारिश की है, लेकिन यह भी मांग की है कि कच्ची चीनी का आयात और फिर इसके बराबर सफेद चीनी का निर्यात करने वाली मिलों से 10 फीसदी लेवी चीनी वसूली जानी चाहिए। इस चीनी का वितरण जन वितरण प्रणाली के तहत होता है। इसके अलावा फेडरेशन ने कहा है कि इन चीनी मिलों को उत्पाद कर से छूट नहीं मिलनी चाहिए। 22 अक्टूबर को इस्मा के अध्यक्ष गौतम गोयल ने केंद्र सरकार को विस्तार से बताया था कि भारतीय चीनी के लिए वैश्विक बाजार अनुपयुक्त है, लिहाजा आयात से देश में चीनी की उपलब्धता बढ़ जाएगी और इस चीनी के लिए बाहर कोई बाजार नहीं मिलेगा। इससे चीनी मिलों का वित्तीय बोझ बढ़ेगा और इससे गन्ने का बकाया बढ़ जाएगा। यह असर वैसे समय में नजर आएगा जब 2013-14 के कटाई सीजन में गन्ने का रकबा घटेगा और चीनी की उपलब्धता भी अचानक कम हो जाएगी। इस्मा ने कहा, साल 2013-14 से देश शुद्ध आयातक बनने पर बाध्य हो जाएगा। फेडरेशन के चेयरमैन विजयसिंह मोहिते पाटिल ने कहा, आयात की दरकार नहीं है क्योंकि इससे देसी बाजार में चीनी की कीमतें कम हो जाएंगी, खास तौर से महाराष्ट्र में, जहां अपर्याप्त गन्ने के चलते चीनी का उत्पादन घटेगा। मौजूदा समय में चीनी की एक्स-मिल कीमतें 3220-3250 रुपये प्रति क्विंटल के दायरे में है जबकि वैश्विक कीमतें 3050-3100 रुपये प्रति क्विंटल है। कच्ची व सफेद चीनी के आयात पर सरकार को 10 फीसदी आयात शुल्क समाप्त नहीं करना चाहिए। लेकिन ऐसे समय में उन मिलों से लेवी चीनी का दायित्व पूरा करने और उत्पाद कर का भुगतान करने के लिए कहा जाना चाहिए। सहकारी चीनी उद्योग का नजरिया मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण व सहकारिता मंत्री हर्षवर्धन पाटिल ने साझा किया, जिन्होंने संकेत दिया कि गन्ने की कमी के चलते महाराष्ट्र में चीनी का उत्पादन 40 फीसदी घटेगा। दूसरी ओर, इस्मा ने कहा कि 65 लाख टन के ओपनिंग स्टॉक और घरेलू जरूरतें पूरी करने के बाद करीब 15 लाख टन का भंडार रहने के बाद भारत इस सीजन में 20 लाख टन चीनी का निर्यात आसानी से कर सकता है। ऐसा नहीं है कि आयातित कच्ची चीनी से तैयार सफेद चीनी देश में गन्ने से तैयार चीनी के मुकाबले सस्ती है। अगर ऐसा होता है तो गन्ना खरीद के मामले में स्पष्ट तौर पर यह हतोत्साहित करने वाला कदम होगा और अगर यह खरीदा जाता है तो आयातित कच्ची चीनी सस्ती होने के कारण इसे बेचना काफी मुश्किल होगा। अनुपयुक्त निर्यात बाजार के चलते मिलों के पास चीनी का बड़ा स्टॉक जमा हो जाएगा और किसानों को समय पर भुगतान नहीं हो पाएगा। इस्मा ने कहा, इसके चलते गन्ने का बकाया बढ़ेगा और गन्ने का रकबा भी 2013-14 के सीजन में दूसरी फसलों में चला जाएगा। (BS Hindi)

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