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10 सितंबर 2012

कैसे बहाई कुरियन ने दूध की नदियां?

वर्गीज़ कुरियन के जाने से एक युग खत्म हो गया है.ये सिर्फ डेयरी की ही बात नही थी, उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि अगर एक छोटा किसान जिसके बारे में हम ये सोचते हैं कि वो बेरोजगार है अगर उस पर भरोसा किया जाए तो वो किस तरह न सिर्फ अपने लिए बल्कि देश में खुशहाली ला सकता है. इसके लिए संगठन और प्रबंधन की जरुरत है. और ये कोई मामूली बात नही थी जब मैं 35 साल के था तो वर्गीज कुरियन सन् 2000 में खेती की कार्ययोजना के बारे में एक मॉडल पर काम कर रहे थे. उस ज़माने में डेयरी सिर्फ बडे़- बड़े फार्म हाउस में ही चलाई जा सकती थी. हमारे यहाँ एक दूधवाला कहता था कि डेयरी तो किसान के साथ भी मिलकर चलाई जा सकती है. तो कोई इस बात को मानने को तैयार नही था, लेकिन वर्गीज कुरियन ने न सिर्फ इसे संभव कर दिखाया बल्कि दुनिया को भी मानने पर मजबूर कर दिया कि डेयरी ऐसे भी चलाई जा सकती है. उन्होंने ज्ञान और प्रबंधन पर आधारित संस्थाओं का विकास किया. वर्गीज कुरियन के सामने उस समय बड़ी चुनौंतियाँ थी क्योंकि भारत में डेयरी के क्षेत्र में कोई सर्वमान्य मॉडल नही था. आणंद में एक डेयरी थी जो कि फेल हो चुकी थी और इसकी वजह ये थी कि खरीदने वाला सस्ता दूध चाहता था और किसान कम दामों पर दूध बेचना नही चाहते थे. लेकिन वर्गीज कुरियन के दिमाग में एक बात आई और उन्होंने उसे छोड़ा नही डटे रहे, आखिरकार उन्हें सफलता भी मिली . आणंद में त्रिकमदास पटेल के साथ वो काम कर रहे थे. गुजरात में पुरानी सहकारी संस्थाओं की एक परंपरा थी. तो उन्होंने किसानों को इस योजना से जोड़ा, मुश्किलें भी आती रहीं लेकिन वर्गीज़ कुरियन उसका सामना करते रहे. कोई काम छोटा नहीं एक बार की बात है कि एक जगह निर्माण कार्य चल रहा था, वहाँ पर एक क्रेन गिर रही थी तो कुरियन उस पर चढ़ गए उसे सीधा करने के लिए. इस दौरान उनकी जांघ में घाव भी हो गया. कहने का मतलब ये है कि वो किसी भी काम को छोटा नही समझते थे और उसे पूरी तरह से निभाते थे. किभी भी सहकारी संस्थान को अगर नियम के हिसाब से चलाया जाए तो वो कभी घाटे में नही आ सकता. अगर हर साल लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव हों, कंपनी के लेखे जोखे का ऑडिट हो तो सब ठीक है. वर्गीज कुरियन ने किसानों की ताकत के समझ लिया था कि जो श्रम किसान और उसका परिवार करता है तो इसमें परिवार यानि महिलाओं का श्रम तो मुफ्त में मिल जाता है. अगर किसी और जगह उनसे काम कराया जाता तो इसके पैसे देने पड़ते. इस तरह से किसान परिवार एक मजबूत संगठन बन जाता है, उन्होंने भी यही किया सबको जोड़ दिया और नतीजा अमूल डेयरी के रुप में सबके सामने है.(बीबीसी संवाददाता मोहन लाल शर्मा से बातचीत पर आधारित)

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