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25 सितंबर 2012

जानिए क्या है एफडीआई के नफे-नुकसान

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने रिटेल में एफडीआई को किसानों के हित में न कहते हुए इसका विरोध करने की बात कही है। उनका तर्क है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नीयत साफ न होने की वजह से किसानों के उत्पादों के सही दाम नहीं मिल पाएंगे। निष्कर्ष निकालने से पहले एफडीआई के बारे में जानना बहुत जरूरी है। आइए आपको समझाते हैं कि क्या है एफडीआई और इसके नफे-नुकसान का गणित। ये है एफडीआई सामान्य शब्दों में किसी एक देश की कंपनी का दूसरे देश में किया गया निवेश, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई कहलाता है। ऐसे निवेश से निवेशकों को दूसरे देश की उस कंपनी के प्रबंधन में कुछ हिस्सा हासिल हो जाता है जिसमें उसका पैसा लगता है। आमतौर पर माना यह जाता है कि किसी निवेश को एफडीआई का दर्जा दिलाने के लिए कम-से-कम कंपनी में विदेशी निवेशक को 10 फीसदी शेयर खरीदना पड़ता है। इसके साथ उसे निवेश वाली कंपनी में मताधिकार भी हासिल करना पड़ता है। एफडीआई का स्ट्रक्चर इनवार्ड एफडीआई में विदेशी निवेशक भारत में कंपनी शुरू कर यहां के बाजार में प्रवेश कर सकता है। इसके लिए वह किसी भारतीय कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम बना सकता है या पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी यानी सब्सिडियरी शुरू कर सकता है। अगर वह ऐसा नहीं करना चाहता तो यहां इकाई का विदेशी कंपनी का दर्जा बरकरार रखते हुए भारत में संपर्क, परियोजना या शाखा कार्यालय खोल सकता है। आमतौर पर यह भी उम्मीद की जाती है कि एफडीआई निवेशक का दीर्घावधि निवेश होगा। इसमें उनका वित्त के अलावा दूसरी तरह का भी योगदान होगा। किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत स्थित किसी कंपनी में अपनी शाखा, प्रतिनिधि कार्यालय या सहायक कंपनी द्वारा निवेश करने को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) कहते हैं। रिटेल का मतलब क्या होता है? रिटेल स्टोर वह है, जहां से तैयार चीजें सीधे कन्ज़यूमर तक पहुंचती हैं। सिंगल ब्रैंड रिटेल स्टोर का मतलब क्या होता है? ऐसा स्टोर जहां... - इंटरनेशनल लेवल पर स्थापित एक ब्रैंड का एक ही प्रॉडक्ट बेचा जाएगा। - एक ही कंपनी के मल्टीप्रॉडक्ट भी एक स्टोर में नहीं बेचे जा सकते। - तैयार चीजें ही बिकेंगी। उसमें कोई बदलाव कर नए सिरे से बेचने की इजाजत नहीं है। मल्टीब्रैंड रिटेल स्टोर का मतलब क्या होता है? -मल्टीब्रैंड रिटेल स्टोर उसे कहेंगे, जिसमें एक छत के नीचे आपको कई ब्रैंड के प्रॉडक्ट मिल जाते हैं। कह सकते हैं कि आसपास मौजूद किराना दुकान का ही यह सुधरा हुआ रूप होगा। मल्टीब्रैंड रिटेल स्टोर में काम करने वाली बड़ी कंपनियां कौन-कौन सी हैं? - वॉलमार्ट, टिस्को, केयरफोर जैसी बड़ी कंपनियों के स्टोर दुनिया भर में फैले हुए हैं। मल्टीब्रैंड रीटेल में एफडीआई के क्या फायदे हैं? - इससे भारत में पूंजी का प्रवाह तेज होगा और मुल्क की इकॉनमी मजबूत होगी। - इससे लगभग 1.5 करोड़ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होंगी। - किसानों को बेहतर मुनाफा मिलेगा। उन्हें बिचौलिये से छुटकारा मिल जाएगा। उनसे माल सीधा खरीदा जाएगा, जिसके बदले उन्हें सही कीमत मिलेगी। - ग्राहकों के पास सस्ती दरों पर प्रॉडक्ट खरीदने के कई विकल्प होंगे। कॉम्पिटिशन से कन्ज़यूमर को फायदा मिलेगा। एफडीआई के नुकसान में दिए जाने वाले तर्क - देसी बाजार पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगा। छोटे और मंझोले दुकानदार कॉपिटिशन में नहीं टिक पाएंगे। उनका रोजगार ठप हो जाएगा। - देसी बाजार से जुड़े लाखों लोगों से रोजगार छीन लिया जाएगा। - भारत से कमाई कर विदेशी कंपनियां अपना मुनाफा तो कमाएंगी, देश को आमदनी नहीं होगी। भारतीय इकॉनमी में रिटेल इंडस्ट्री की क्या अहमियत है? - देश में असंगठित रीटेल इंडस्ट्री कुल जीडीपी का 14 फीसदी और कुल रोजगार का 7 फीसदी कवर करता है। रिटेल में एफडीआई यह हो सकता है फायदा - एफडीआई से अगले तीन साल में रिटेल सेक्टर में एक करोड़ नई नौकरियां मिलने की संभावना है। - ऐसा माना जा रहा है कि किसानों को बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी और अपने सामान की सही कीमत भी। - सरकार मानती है कि रिटेल में एफडीआई से लोगों को कम दामों पर मिलेगा बेहतर सामान। - शर्त के अनुसार विदेशी कंपनियां कम से कम 30 फीसदी सामान भारतीय बाजार से ही लेगी। इससे लोगों की आय बढ़ेगी और औद्योगिक विकास दर में भी सुधार होगा। - बड़े शहरों में ही खुलेगी संगठित क्षेत्र की शॉप्स। सस्ता मिलेगा छोटे दुकानदारों को सामान। रिटेल में एफडीआई से यह होगा नुकसान - विरोधियों का मानना है कि विदेशी कंपनियां सस्ता सामान बेचकर लुभाएंगी। देशी दुकानदार नहीं कर पाएंगे मुकाबला। - रिटेल में विदेशी निवेश से छोटी दुकानें खत्म हो जाएगी और लोगों के समक्ष रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा। - छोटे दुकानदारों का धंधा ठप हो जाएगा और किसानों को भी उनकी उपज का वाजिब मूल्य नहीं मिलेगा। - विदेशी कंपनियां 70 प्रतिशत सामान अपने बाजार से ही खरीदेगी और ऐसे में घरेलू बाजार से नौकरी छिनेगी। - बड़ी विदेशी कंपनियां बाजार का विस्तार नहीं करेंगी बल्कि मौजूदा कंपनियों का अधिग्रहण कर बाजार पर ही काबिज हो जाएंगी। (Amar Ujala)

इस साल कम रहेगा खाद्यान्न का उत्पादन

अगस्त और सितंबर के दौरान मॉनसून में तेजी आने के बावजूद 2012-13 सत्र के लिए देश के खरीफ खाद्यान्न उत्पादन में 9.8 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है। इससे मुद्रास्फीति में नरमी आने की उम्मीद घट गई हैं। 2012-13 सत्र के लिए खरीफ उत्पादन 11.78 करोड़ टन रहने का अनुमान है जबकि पिछले साल की समान अवधि में उत्पादन करीब 13 करोड़ टन था। आज जारी 2012-13 के खरीफ उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार अरहर और सोयाबीन को छोड़ दिया जाए, तो प्रत्येक खरीफ फसल के उत्पादन में गिरावट आएगी। इसकी वजह असमान बारिश बताई गई है। हालांकि अधिकारियों ने उम्मीद जताई कि खरीफ उत्पादन में आई गिरावट की भरपाई रबी फसल के ज्यादा उत्पादन से हो जाएगी। अगस्त और सितंबर में हुई भारी बारिश के कारण रबी उत्पादन में तेजी आने के अनुमान जताए जा रहे हैं। अनुमान के अनुसार चावल का उत्पादन 6.48 फीसदी घटकर 8.56 करोड़ टन रहने की आशंका है जबकि मोटे अनाज का उत्पादन 18.28 फीसदी की गिरावट के साथ 2.63 करोड़ टन रह सकता है। खरीफ सत्र में दलहन का उत्पादन 14.61 फीसदी घटकर 52.6 लाख टन रहने का अनुमान है जबकि 9.62 फीसदी की गिरावट के साथ तिलहन का उत्पादन 1.89 करोड़ करोड़ टन रहने की आशंका है। केयर रेटिंग एजेंसी के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, 'अगले कुछ महीनों तक खाद्य मुद्रास्फीति 9-10 फीसदी के स्तर पर बरकरार रहेगी क्योंकि खरीफ फसल के आने से कुछ जिंसों के दाम में गिरावट आने की उम्मीद नहीं है।' अगस्त में थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई 9.14 फीसदी रही, जो जुलाई में 10.06 फीसदी थी। आंकड़े जारी करने के बाद कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा, 'बारिश में देरी होने के कारण मॉनसून केा लेकर अनिश्चितता थी। इसलिए हमारे अनुमान पिछले साल के मुकाबले कम हो सकते हैं लेकिन ये उम्मीद से ज्यादा हैं।' उन्होंने कहा, 'खरीफ सत्र में खाद्यान्न में जो भी कमी आई है उसकी भरपाई रबी सत्र में कर ली जाएगी।' आंकड़ों के अनुसार कपास का उत्पादन 5.1 फीसदी घटकर 3.34 करोड़ गांठ और गन्ने का उत्पादन 6.2 फीसदी घटकर 33.53 करोड़ टन रहने का अनुमान है। जूट का उत्पादन भी 8.13 फीसदी गिरकर 1.06 करोड़ गांठ रहने की आशंका है। विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे ज्यादा चिंता की बात दलहन और तिलहन के उत्पादन में आने वाली गिरावट है क्योंकि इससे आयात पर निर्भरता बढ़ जाएगी। भारत हर साल खाद्य तेल खपत का 50 फीसदी से ज्यादा आयात करता है जबकि दलहन का आयात 15 से 20 लाख टन रहता है। खरीफ की बुआई लगभग समाप्त हो चुकी है और अगले महीने से इसकी कटाई शुरू हो जाएगी। (BS Hindi)

22 सितंबर 2012

अच्छी बारिश से जलाशयों में बढ़ा पानी

देश के उत्तरी, मध्य और पश्चिमी इलाके में अच्छी बारिश के चलते प्रमुख जलाशयों का जलस्तर बढ़ा है। केंद्रीय जल आयोग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश के प्रमुख 84 जलाशयों में पानी का स्तर करीब-करीब पिछले साल जितना हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे अगले रबी सीजन में काफी मदद मिलेगी क्योंकि सिंचाई के लिए पर्याप्त जल रहेगा। साल 2011 में दक्षिण पश्चिम मॉनसून सामान्य से थोड़ा बेहतर रहा था, हालांकि 2012 में इसके दोहराव की संभावना काफी कम है क्योंकि शुरुआती दिनों में कम बारिश हुई थी। हालांकि ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि अगस्त के बाद अच्छी बारिश से स्थिति सामान्य हो गई है। आंकड़ों से पता चलता है कि जलाशयों में 114.8 अरब घनमीटर पानी है, जो पिछले साल के जलस्तर का 87 फीसदी है और 10 साल के जलस्तर के औसत का 108 फीसदी। जुलाई के आखिर में जलस्तर गिरकर पिछले साल के 16 फीसदी के आसपास आ गया था। हालांकि तब से इसमें सुधार हुआ है क्योंकि ज्यादातर इलाकों में बारिश की स्थिति सुधरी है। 20 सितंबर तक दक्षिण पश्चिम मॉनसून की बारिश सामान्य के मुकाबले महज 5 फीसदी कम रही है, जो जुलाई के आखिर में करीब 20 फीसदी कम थी। 19 सितंबर को समाप्त हफ्ते में देश में औसत के मुकाबले 44 फीसदी ज्यादा बारिश हुई। बारिश तब सामान्य मानी जाती है जब यह लंबी अवधि के औसत की 96 से 104 फीसदी होती है। लंबी अवधि का औसत पिछले 50 साल में चार महीने की मॉनसून अवधि में होने वाली बारिश का औसत है। (BS Hindi)

अगले साल रिकॉर्ड स्तर पर होंगी खाद्य कीमतें

कृषि जिंसों की बढ़ती कीमतों के चलते खाद्य पदार्थों की कीमतें साल 2013 में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने की संभावना है। साल 2008 में खाद्य पदार्थ के तौर पर इस्तेमाल होने वाले अनाज की किल्लत हुई थी, लेकिन इस साल किल्लत से चारे वाली फसलें प्रभावित होंगी और इस तरह से पशुओं के प्रोटीन और डेयरी उद्योग पर इसके गंभीर असर हो सकते हैं। राबोबैंक के वैश्विक प्रमुख (कृषि जिंस बाजार विश्लेषक) ल्यूक शैंंडलर ने कहा कि गरीब उपभोक्ताओं पर इस साल कम असर होगा क्योंकि खरीदार पशुओं के प्रोटीन की बजाय खाद्य के तौर पर इस्तेमाल होने वाले अनाज मसलन गेहूं व चावल का रुख कर सकते हैं। ये जिंस फिलहाल साल 2008 के उच्चस्तर के मुकाबले करीब 30 फीसदी सस्ते हैं। पशुओं के प्रोटीन व डेयरी उद्योग में उत्पादन की लंबी प्रक्रिया के चलते अनाज की किल्लत का असर ज्यादा रहेगा और खाद्य पदार्थों की कीमतों पर असर डालेगा। हालांकि ऐसे देशों के बजट में खाद्य पदार्थों का अनुपात काफी कम है, ऐसे में साल 2008 के किल्लत के दौर में जिस तरह का असंतोष देखा गया था, वैसा इस वक्त नहीं होने के आसार हैं। राबोबैंक का अनुमान है कि खाद्य व कृषि संगठन का खाद्य कीमत सूचकांक जून 2013 के आखिर तक 15 फीसदी बढ़ेगा। राबोबैंक का अनुमान है कि खास तौर से अनाज व तिलहन की कीमतें उच्च स्तर पर रहेंगी, कम से कम 12 महीने तक। खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतें घटती विकास दर, तेल की कम कीमतें, उपभोक्ताओं के कमजोर विश्वास और डॉलर में नरमी से प्रभावित होंगी। हालांकि नीतियों में सरकारी हस्तक्षेप इस मुद्दे को गरमा सकता है। साल 2012-13 में निर्यात पाबंदी और स्टॉक के भंडारण की संभावना है क्योंकि बढ़ती कीमतों से घरेलू उपभोक्ताओं को बचाने के लिए सरकारें इस तरह का कदम उठा सकती हैं। सरकारी हस्तक्षेप से विश्व में जिंसों और खाद्य पदार्थों की कीमतें और ऊपर जा सकती हैं। स्थानीय तौर पर अनाज का भंडारण करना वैश्विक बाजार के लिए ठीक नहीं होगा। (BS Hindi)

एफएमसी ने की मार्जिन में कटौती

वायदा बाजार आयोग ने एक्सचेंजों में कृषि जिंसों पर विशेष मार्जिन में कटौती कर निवेशकों को राहत दी है और इस कदम को वायदा बाजार के लिए बेहतर माना जा रहा है। एफएमसी के फैसले के बाद अब क्लाइंट के पास हेजिंग के लिए ज्यादा रकम उपलब्ध होगी। नियामक ने सरसों पर नकद मार्जिन मौजूदा 15 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया है, वहीं चने के लंबी अवधि के अनुबंध पर 20 फीसदी मार्जिन को घटाकर 10 फीसदी कर दिया है और सभी चालू अनुबंध पर यह 24 सितंबर से लागू होगा। इससे पहले एफएमसी कपास खली से 20 फीसदी, जौ से 10 फीसदी विशेष मार्जिन हटा चुका है। आलू पर भी मार्जिन 30 फीसदी से घटाकर 20 फीसदी कर चुका है। जब कोई क्लाइंट जिंस एक्सचेंज में कारोबार शुरू के लिए पंजीकरण कराता है, तो शुरुआत में 5 से 7.5 फीसदी मार्जिन लगता है, लेकिन सट्टबाजी के चलते दाम बढऩे पर एफएमसी इसमें इजाफा करता रहता है। एफएमसी के वरिष्ठï अधिकारी ने कहा कि मार्जिन का निर्धारण करने का कीमत ही अकेला तरीका नहीं है। जब स्पेशल नकद विशेष मार्जिन लगा था, उस समय दाम अप्रत्याशित रूप से बढ़े थे। अब खरीफ उत्पादन के आंकड़े भी आने वाले है। ऐसे में लंबे समय तक एक जैसी नीति जारी रखने का कोई तुक नहीं है। इसलिए कई कृषि जिंसों पर विशेष मार्जिन घटाने का निर्णय लिया गया है। कमोडिटीइनसाइटडॉटकॉम के वरिष्ठ जिंस विश्लेषक प्रशांत कपूर कहते हैं कि बारिश सुधरने से खरीफ में उत्पादन पहले से ज्यादा होने की उम्मीद है। अच्छी बारिश का फायदा रबी में बोई जाने वाली सरसों व चने की फसल को भी होगा। जून के पहले हफ्ते में खरीफ में बोए जाने वाले कई जिंसों में असामान्य रूप से उतारचढ़ाव देखा गया था, जब भारतीय मौसम विभाग ने इस साल मॉनसून की बारिश में कमी की भविष्यवाणी की थी। बारिश में कमी से तब उत्पादन पर असर पडऩे का अनुमान लगाया गया था। लेकिन मॉनसून में सुधार और एफएमसी की तरफ से कैश मार्जिन लगाए जाने के बाद न सिर्फ उतारचढ़ाव पर लगाम लगा बल्कि कृषि जिंसों की वास्तविक कीमतें भी नजर आने लगी। मॉनसून सुधरने के साथ कृषि जिंसों दाम घटे हैं। नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में बीते दो माह के दौरान सरसों 8.77 फीसदी गिरकर 4,118 रुपये, चना 9.92 फीसदी गिरकर 4,520 रुपये, जौ 24.72 फीसदी गिरकर 1,191 रुपये रह गया है। अधिकारी ने कहा कि बारिश सुधरने से आगे भी वायदा बाजार में सट्टेबाजी की संभावना सीमित है। इंडियाबुल्स कमोडिटी लिमिटेड के सहायक निदेशक (शोध) बदरुद्दीन ने कहा कि विशेष मार्जिन घटने से अब छोटे खरीदारों की दिलचस्पी बढ़ेंगी। उनके मुताबिक आगे त्योहारों को देखते हुए चने के मामले में फंडामेंटल मजबूत होने से इसके दाम 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल चढ़ सकते हैं। सोयाबीन का उत्पादन बढऩे की संभावना से खाद्य तेल में सरसों की मांग बहुत ज्यादा नहीं बढऩे वाली है, ऐसे में इसमें तेजी आना मुश्किल है। ऐंजल कमोडिटी की रिपोर्ट के मुताबिक सरसों के रिकॉर्ड भाव की वजह से वायदा बाजार मेंं रोजाना मात्रा के हिसाब से कारोबार घट रहा है। दो माह पहले के 4 लाख टन के मुकाबले इस समय 1.5-2 लाख टन कारोबार हो रहा है। इस दौरान चने का कारोबार स्थिर बना हुआ है। एमके कॉमट्रेड लिमिटेड के मुख्य संचालन अधिकारी अतुल शाह ने कहा कि नियामक के पास वायदा एक्सचेंजों में दाम नियंत्रित करने केलिए दो विकल्प है। एक क्लाइंट का एक्सपोजर कम करने के मार्जिन बढ़ाया जाए। दूसरा विकल्प पोजीशन लिमिट घटाना है। कृषि जिंसों में उतारचढ़ाव कम हो गया है। इस साल जुलाई की शुरुआत में कई जिंस हर दूसरे दिन अपर व लोअर सर्किट के दायरे में आ रहे थे। अब शायद ही ऐसा देखने को मिल रहा है। ऐसे में वायदा बाजार आयोग ने दोनों ही मकसद हासिल कर लिया है और इस वजह से मार्जिन में कटौती कर दी है। (BS Hindi)

21 सितंबर 2012

खेतों की नमी से रबी उत्पादन बढ़ाने पर फोकस

रबी कांफ्रेंस में दलहन व तिलहन का उत्पादन बढ़ाने पर खास चर्चा होगी इस साल के मानसूनी सीजन की लेट बारिश का फायदा उठाकर आगामी रबी सीजन में दलहन व तिलहन की फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए योजना तैयार की जाएगी। अगले सप्ताह होने वाली रबी कांफ्रेंस में सभी राज्य मिलकर इसी बिंदु पर खास बातचीत करेंगे। सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार रबी सीजन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कांफ्रेंस में इस बात पर खास जोर होगा कि खेतों की मौजूदा नमी का बेहतर उपयोग कैसे किया जाए। यह कांफ्रेंस अगले सोमवार से शुरू होगी। कांफ्रेंस में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने पर खास फोकस किया जाएगा। इन फसलों के लिए मुख्यत: आठ राज्यों मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मिजोरम, उत्तराखंड, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, मेघालय और दिल्ली के लिए एक अलग से सत्र आयोजित किया जाएगा। सरकारी बयान के अनुसार दो अन्य बिंदुओं पर विशेष विचार विमर्श के लिए ध्यान दिया जाएगा। इनमें पेस्टीसाइड्स का सही उपयोग और किसानों के खेतों तक तकनीकी जानकारी पहुंचाना शामिल हैं। कांफ्रेंस के प्रतिभागियों को भेजे गए कृषि मंत्रालय के एजेंडा में कहा गया है कि इस साल खरीफ में मानसून देरी से सक्रिय हुआ। इस वजह से जून व जुलाई माह में बुवाई गतिविधियां धीमी रही। लेकिन अगस्त में मानसून जोरों पर रहा। सितंबर में भी अच्छी बारिश हुई। अच्छी बारिश में देरी होने से बुवाई प्रभावित हुई और कुछ क्षेत्रों में बुवाई नहीं हो पाई। इससे खरीफ फसलों के उत्पादन पर असर पड़ सकता है। खासकर मोटे अनाजों का उत्पादन कम होगा। लेकिन अच्छी बारिश में देरी होने से एक मौका भी मिला है। रबी सीजन में इन क्षेत्रों में फसलें उगाई जा सकती है। सितंबर में हो रही बारिश से भी रबी फसलों को फायदा मिलेगा। सरकार का कहना है कि बारिश वाले क्षेत्रों में खेतों की नमी भले ही पौधों के अंकुरण के लिए पर्याप्त न हो लेकिन यह नमी नवंबर में हल्की बारिश होने तक के लिए पर्याप्त होगी। हो सकता है कि यह नमी दिसंबर और जनवरी में सर्दियों का बारिश तक भी बनी रहे। इस वजह से जरूरी है कि मिट्टी की नमी का फायदा उठाया जाना चाहिए और इसके लिए समय पर बुवाई होनी चाहिए और बीजों की बुवाई मिट्टी में गहराई में होनी चाहिए। इससे पौधों का अच्छा विकास होगा। इस कांफ्रेंस में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की गेहूं और अन्य सर्दियों की फसलों के लिए विशेष सिफारिशों पर भी चर्चा होगी। आईसीएआर ने पैदावार बढ़ाने वाली किस्मों, बीमारियों पर नियंत्रण और खेती की पद्धतियों में सुधार के लिए सिफारिशें की हैं।; (Business Bhaskar)

डॉलर की तुलना में रुपया मजबूत

विदेशी बाजारों में यूरो के मुकाबले अमेरिकी मुद्रा के कमजोर पडऩे के बीच पंूजी प्रवाह बढऩे से अंतर बैंक विदेशी विनिमय बाजार में आज शुरुआती कारोबार में रुपया 30 पैसे मजबूत होकर 54.08 प्रति डॉलर पर खुला। फॉरेक्स डीलरों ने कहा कि विदेशी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर के कमजोर होने के अलावा घरेलू शेयर बाजरों में तेजी से भी रुपये में मजबूती आई। इसके अलावा बहु ब्रांड खुदरा करोबार में एफडीआई लागू करने के लिए अधिसूचना जारी होने से भी रुपये की धारणा मजबूत हुई। (BS Hindi)

भारतीय बासमती की क्वालिटी पर सवाल उठाया अमेरिका ने

200 सैंपलों की जांच करके प्राथमिक रिपोर्ट का निष्कर्ष 1,200 सैंपलों का विश्लेषण करके जांच पूरी करेगा एफडीए 1.24 लाख टन बासमती का निर्यात किया गया था पिछले वित्त वर्ष में अमेरिका को निर्यातक क्वालिटी से आश्वस्त - भारतीय बासमती आर्सेनिक तत्व से पूरी तरह मुक्त है। चावल की जांच के बाद ही निर्यात किया जाता है। बासमती चावल का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश भारत हर साल दुनिया के तमाम देशों को करीब 20 लाख टन निर्यात करता है। लेकिन जांच पूरी करके वैज्ञानिक आधार पर ही परामर्श में कोई बदलाव होगा : अथॉरिटी यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) को भारत के बासमती चावल में आर्सेनिक तत्व (नुकसानदायक रसायनिक तत्व) मिलें हैं। इस अमेरिकी नियामक संस्था को भारतीय बासमती चावल के शुरूआती परीक्षण में ये तत्व मिले हैं। हालांकि भारत ने आर्सेनिक तत्व होने से इंकार किया है। उसका कहना है कि बासमती चावल इस तत्व से पूरी तरह मुक्त है क्योंकि इसका निर्यात आवश्यक जांच के बाद ही किया जाता है। भारत से पिछले साल करीब 1.24 लाख टन बासमती चावल का अमेरिका को निर्यात किया गया था। यह संस्था बासमती चावल के बारे में अपनी जांच पूरी करने के बाद ही उपभोक्ताओं को परामर्श जारी करेगी। आर्सेनिक एक ऐसे रसायनिक तत्व है जो पर्यावरण में होता है। यह प्राकृतिक और मानवीय स्रोतों से पैदा होता है। यह तत्व पानी, हवा, भोजन और मिट्टी में मिलने के अलावा अजैविक रूप में भी होता है। यूएसएफडीए ने भारत समेत विभिन्न देशों से आयातित और अमेरिकी बाजार में उपलब्ध चावल और इसके उत्पादों के 200 सैंपल एकत्रित किए थे। अमेरिकी संस्था ने एक वक्तव्य में कहा है कि वह पूरे मसले पर गहराई से जांच करने के लिए करीब 1200 सैंपल जुटाए जा रहे हैं और इनका विश्लेषण किया जा रहा है। आंकड़े एकत्रित करने का काम इस साल के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। सभी आंकड़े एकत्रित होने के बाद एफडीए उनके नतीजों का विश्लेषण करेगा। इसके बाद वह तय करेगा कि इस मसले पर और सिफारिशें जारी की जाएं या नहीं। अभी तक के 200 सैंपलों में 34 सैंपल भारतीय मूल के बासमती चावल के थे। इनमें से 31 सैंपलों में आर्सेनिक तत्व मिला। प्रति सर्विंग करीब 1.8 से 6.5 माइक्रोग्राम आर्सेनिक तत्व मिला। एफडीए की शुरूआती जांच के नतीजों पर ऑल इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा कि भारतीय बासमती आर्सेनिक तत्व से पूरी तरह मुक्त है। हम पानी और चावल की जांच के बाद ही निर्यात करते हैं। बासमती चावल का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश भारत हर साल करीब 20 लाख टन निर्यात करता है। एफडीए अपने बयान में कहा कि विभिन्न चावल और चावल उत्पादों के शुरूआती 200 सैंपलों में औसतन 3.5 से 6.7 माइक्रोग्राम अजैविक आर्सेनिक तत्व मिला। हालांकि उसने कहा है कि इस समय उपलब्ध आंकड़ों और वैज्ञानिक तत्वों के आधार पर एफडीए पर्याप्त वैज्ञानिक आधार नहीं है, जिसके आधार पर वह उपभोक्ताओं के लिए अपनी सिफारिशों में कोई बदलाव करे। हालांकि एफडीए पहली बार उपभोक्ताओं को सलाह दी है कि वे विभिन्न अनाजों का संतुलित भोजन करें। अमेरिकी नियामक के डिप्टी कमिश्नर माइकल टेलर ने कहा कि आंकड़े जुटाने की मौजूदा कवायद और उनके विश्लेषण से हमारे पास मजबूत वैज्ञानिक आधार होगा, जिसके आधार पर हम आवश्यकता होने पर कदम उठाने के लिए पहल कर सकेंगे जिससे आर्सेनिक तत्वों का प्रभाव आम उपभोक्ताओं पर न हो। (Business bhaskar)

धान की सरकारी खरीद के लिए 26,550 केंद्र खुलेंगे

आर. एस. राणा नई दिल्ली एफसीआई ने 400 लाख टन चावल खरीद का लक्ष्य तय किया पहली अक्टूबर में शुरू होने वाले खरीफ विपणन सीजन 2012-13 में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर धान की खरीद के लिए सरकार ने देशभर में 26,550 केंद्र खोलने की योजना बनाई है। विपणन सीजन 2012-13 के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने 400 लाख टन चावल की खरीद करने का लक्ष्य तय किया है जो पिछले खरीद सीजन के मुकाबले 15.7 फीसदी ज्यादा है। एफसीआई के कार्यकारी निदेशक (खरीद) सुरिंदर सिंह ने बिजनेस भास्कर को बताया कि विपणन सीजन 2012-13 में एमएसपी पर चावल की खरीद के लिए एफसीआई देशभर में 550 खरीद केंद्र खोलेगी। इसके अलावा, राज्य सरकार की खरीद एजेंसियां 26,000 केंद्रों के माध्यम से चावल खरीद करेगी। उन्होंने बताया कि विपणन सीजन 2011-12 में एमएसपी पर 345.62 लाख टन चावल की खरीद हुई थी। जबकि पहली अक्टूबर से शुरू होने वाले नए विपणन सीजन के लिए सरकार ने 400 लाख टन चावल की खरीद का लक्ष्य तय किया है। इसमें खरीफ में 340 लाख टन और रबी में 60 लाख टन खरीद करने की योजना है। उन्होंने बताया कि पहली सितंबर को केंद्रीय पूल में 717.53 लाख टन खाद्यान्न का भंडार मौजूद है जबकि एफसीआई और राज्य सरकारों की मिलाकर कुल भंडारण क्षमता 714 लाख टन की है। खरीद एजेंसियां धान की खरीद करती हैं, जिसका भंडारण चावल मिलों में किया जाता है। मिलिंग होने के बाद केंद्रीय पूल में चावल दिसंबर से मार्च के दौरान आता है। इस दौरान गोदामों से खाद्यान्न का उठाव होने से चावल भंडारण के लिए जगह बन जाएगी। साथ ही, 31 मार्च 2012 तक करीब 50 से 60 लाख टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता भी तैयार हो जाएगी। इसीलिए खरीफ में खरीदे जाने वाले चावल के भंडारण में निगम को कोई परेशानी नहीं आएगी। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2012-13 के लिए धान के एमएसपी में 17 फीसदी की बढ़ोतरी की है। ग्रेड-ए धान की खरीद का भाव बढ़ाकर 1,280 रुपये और कॉमन ग्रेड धान की खरीद का भाव 1,250 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि विपणन सीजन 2011-12 के लिए कॉमन ग्रेड धान का खरीद भाव 1,080 रुपये और ग्रेड-ए वेरायटी के धान का एमएसपी 1,110 रुपये प्रति क्विंटल था। कृषि मंत्रालय के चौथे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 में 10.43 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ है। मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार चालू खरीफ में अभी तक धान की रोपाई 361.64 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 379.01 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। (Business Bhaskar....R S Rana)

राशन चीनी बढ़ी तो फायदा मिलों को!

केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वह जन वितरण प्रणाली या राशन दुकानों के जरिए बेची जाने वाली चीनी की कीमतों में इजाफा करे। इस कदम से चीनी मिलों को दीर्घावधि में लाभ मिलने की संभावना है। मौजूदा समय में राज्य सरकारें मिलों के कुल उत्पादन का 10 फीसदी औसतन 19.05 रुपये प्रति किलोग्राम पर खरीदती है, जिसे लेवी चीनी कहा जाता है। इसकी ढुलाई में औसतन 2 रुपये प्रति किलोग्राम का खर्च आता है, लिहाजा राज्यों के लिए कुल लागत 21 रुपये प्रति किलोग्राम बैठती है। इसमें से हालांकि राज्य सरकारों को 13.50 रुपये प्रति किलोग्राम खर्च करने होते हैं जबकि केंद्र सरकार बाकी 7.50 रुपये प्रति किलोग्राम की भरपाई 6-8 महीने में कर देती है। एक ओर जहां केंद्र सरकार का हिस्सा गन्ना भुगतान के लिए इसके द्वारा तय उचित व लाभकारी मूल्य पर निर्भर करता है, वहीं राज्य सरकार का अंशदान साल 2002 से 13.50 रुपये प्रति किलोग्राम पर स्थिर है। उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, साल 2002 से केंद्र सरकार ने राज्यों से उसके अंशदान में बढ़ोतरी की कई कोशिशें की है, लेकिन हर बार वह नाकाम रही है। उन्होंने कहा कि कोई भी राज्य सरकार अपना बोझ बढ़ाने का इच्छुक नहीं है जबकि केंद्र हर साल उचित व लाभकारी कीमतों में बढ़ोतरी कर रहा है। आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने विपणन वर्ष 2012-13 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए उचित व लाभकारी मूल्य बढ़ाकर 170 रुपये करने की मंजूरी दी है। इस वजह से केंद्र सरकार का कुल हिस्सा आनुपातिक रूप से बढऩे की संभावना है। उपभोक्ता मंत्रालय का अनुमान है कि इस साल पीडीएस के लिए चीनी की खरीद कीमत में 19 फीसदी की बढ़ोतरी होगी और यह 25 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच जाएगा। (BS Hindi)

तांबे की खपत में नरमी के आसार

तांबे की खपत वाले प्रमुख क्षेत्रों मसलन निर्माण, बिजली, औद्योगिक मशीनरी आदि में जारी नरमी से इस कैलेंडर वर्ष में देश में तांबे की खपत में सुस्ती बनी रहने की संभावना है। देश में तांबे के कुल उत्पादन का करीब 90 फीसदी इन्हीं क्षेत्रों में इस्तेमाल होता है, लेकिन ये क्षेत्र पिछले कई महीनों से उपभोक्ताओं की तरफ से खर्च में कमी का सामना कर रहे हैं, लिहाजा इस साल तांबे की कुल विकास दर घट गई है। अग्रणी रेटिंग फर्म इक्रा के अध्ययन में कहा गया है कि इस साल देश में तांबे की खपत में महज 4 फीसदी की बढ़ोतरी होगी जबकि पिछले साल यह 6.3 फीसदी रही थी। अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि इस साल कुल 5.62 लाख टन तांबे की खपत होगी जबकि पिछले साल 5.40 लाख टन तांबे की खपत हुई थी। देश में तांबे की खपत का सीधा जुड़ाव अर्थव्यवस्था के विकास से है। ऐसे में तांबे के इस्तेमाल में कमी से संकेत मिलता है कि इलेक्ट्रिक व इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद समेत इन क्षेत्रों में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग घटेगी। इन क्षेत्रों में तांबे का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है। इक्रा के विश्लेषण में कहा गया है कि इस्तेमाल करने वाले उद्योगों में नरमी के चलते भारत में तांबे की खपत में साल 2012 के दौरान घट सकती है। भारत में प्रति व्यक्ति तांबे की खपत साल 2000 में 0.23 किलोग्राम थी, जो साल 2011 में बढ़कर 0.5 किलोग्राम हो गई है। लेकिन अगर चीन से इसकी तुलना की जाए तो यह काफी कम है क्योंकि वहां प्रति व्यक्ति खपत 5.9 किलोग्राम है। मध्यम अवधि में भारत में प्रति व्यक्ति तांबे की खपत चीन की तरह बढऩे की संभावना नहीं है।प्राइसवाटरहाउस कूपर्स के मैनेजर पुखराज सेतिया ने कहा, पिछले कुछ महीनों को छोड़ दें तो आम धातुओं खास तौर से तांबे की मांग पिछले कुछ सालों में धीरे-धीरे बढ़ी है। सामान्य तौर पर आम धातुओं का बाजार स्थिर रहा है और विभिन्न अवधि में कीमतें बढ़ी हैं। आम धातुओं के परिदृश्य भी अपेक्षाकृत स्थिर मांग का संकेत दे रहा है और लंबी अवधि में कीमत का परिदृश्य भी ठीक है। पिछले कुछ सालों से देश में तांबे के उत्पादन की क्षमता करीब 9.50 लाख टन सालाना रही है, जो साल 2014-15 तक बढ़कर 14.5 लाख टन होने की संभावना है। इस तरह से यूरोप व अफ्रीका को रिफाइंड तांबे और इसके उत्पादों का निर्यात ज्यादा होगा। वैश्विक बाजार में तांबे की कीमतों में बढ़ोतरी से पिछले कुछ सालों के मुकाबले आम धातु क्षेत्र में निवेश में सुधार हुआ है। उदाहरण के तौर पर सार्वजनिक कंपनी हिंदुस्तान कॉपर ने निजी कंपनियों को शामिल कर अपनी बंद पड़ी खदानों को शुरू किया है। आम धातुओं की मांग के ज्यादातर हिस्से की आपूर्ति के लिए भारत अभी भी आयात पर निर्भर करता है और इस क्षेत्र में निवेश की संभावनाएं हैं। हालांकि तांबे की वैश्विक कीमतें 17.2 फीसदी बढ़कर 8828 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है, पर अगस्त 2011 से इसमें तेज गिरावट देखी गई थी। इसकी तुलना में घरेलू कीमतें 16.6 फीसदी बढ़कर औसतन 455.3 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई। रुपये में गिरावट के चलते घरेलू कीमतें हालांकि धीमी रफ्तार से नीचे आई है। वैश्विक स्तर पर साल 2011 की कुल खपत में चीन की हिस्सेदारी 40.6 फीसदी रही है, इसके बाद अमेरिका की 9 फीसदी, जर्मनी की 6.4 फीसदी, जापान की 5.2 फीसदी, दक्षिण कोरिया की 4 फीसदी और भारत की 2.8 फीसदी रही है। एक ओर जहां वैश्विक खपत में चीन की हिस्सेदारी साल 2000 में 12.7 फीसदी थी और यह साल 2011 में 40.6 फीसदी पर पहुंच गई, वहीं भारत की हिस्सेदारी 1.6 फीसदी से बढ़कर 2.8 फीसदी ही हो पाई है। सेतिया को हालांकि लगता है कि आम धातुओं का परिदृश्य काफी कुछ चीन के आर्थिक प्रदर्शन पर निर्भर करता है, जिसकी हिस्सेदारी वैश्विक स्तर पर आम धातुओं की खपत में 40 फीसदी से ज्यादा है। वैसे ज्यादा समय तक अर्थव्यवस्थाओं में नरमी से मुनाफे पर दबाव और बढ़ेगा, हालांकि मुनाफा अभी स्थिर है। (BS HIndi)

खरीफ की भरपाई रबी में करेगी सरकार

दक्षिण पश्चिम मॉनसून की बारिश के असमान वितरण के चलते विपणन वर्ष 2012-13 में एक साल पहले के मुकाबले खरीफ फसलों के उत्पादन में गिरावट की संभावना है, लिहाजा सरकार ने अपनी ऊर्जा रबी सीजन में फसलों के अधिकतम उत्पादन में झोंकने का फैसला किया है। रबी की बुआई अक्टूबर के आखिर में शुरू होती है। अधिकारियों ने कहा, तिलहन और दलहन के उत्पादन में सुधार पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। बारिश में देर से हुए सुधार से इस कोशिश में मदद मिलने की संभावना है। अधिकारियों ने कहा कि सोमवार से शुरू होने वाले दो दिवसीय सम्मेलन में मुख्य रूप से देर से हुई बारिश का बेहतर इस्तेमाल करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इस सम्मेलन में सभी प्रमुख राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों की भागीदारी की संभावना है। अधिकारियों ने कहा, जून व जुलाई में कम बारिश के चलते खरीफ सीजन की शुरुआत हालांकि निराशाजनक रही, लेकिन अगस्त में दक्षिण पश्चिम मॉनसून में सुधार से देश को मौका मिला है कि वह रबी फसलों के दायरे में अतिरिक्त रकबा ला सकता है। सामान्य तौर पर इस रबी सीजन में करीब 604.2 लाख हेक्टेयर जमीन इसके दायरे में लाया जाएगा, जिसमें अधिकतम हिस्सा गेहूं का होगा और उसके बाद दलहन व तिलहन का। अधिकारियों ने कहा, इस साल चूंकि खरीफ फसलों का रकबा सामान्य के मुकाबले 5-6 लाख हेक्टेयर कम रहने की संभावना है, लिहाजा रबी के दौरान ज्यादा जमीन खेती के दायरे में लाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। रबी में अधिकतम उपज हासिल करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने इलाकेवार और फसल के आधार पर अलग-अलग सिफारिशें तैयार किया है। अधिकारियों ने कहा, केंद्र सरकार आठ राज्यों मसलन पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, मिजोरम, उत्तराखंड, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, मेघालय और दिल्ली के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अलग से बैठक आयोजित कर सकती है ताकि दलहन व तिलहन की पैदावार में सुधार लाया जा सके। देश में खरीफ फसलों का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले करीब 120-140 लाख टन कम रहने की संभावना है क्योंकि बुआई के शुरुआती दौर में बारिश असामान्य रही ती। साल 2011 मेंं देश में खरीफ सीजन के दौरान 13 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ था। (BS Hindi)

बनेगा दूध पाउडर का सुरक्षित भंडार

दूध के दाम में आ रही अस्थिरता पर काबू पाने के लिए सरकार स्क्म्डि मिल्क पाउडर (एसएमपी) का बफर स्टॉक बनाने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। अधिकारियों ने कहा कि दुग्ध प्रसंस्करण कंपनियों के पास बनाए गए बफर स्टॉक के लिए सरकार पर्याप्त सब्सिडी देगी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'मुद्रास्फीति पर हाल में हुई अंतर-मंत्रालय समूह की बैठक में बफर स्टॉक विकसित करने के प्रस्ताव पर चर्चा की गई है।Ó खाद्य विभाग, उपभोक्ता मामलों के विभाग, कृषि विभाग और वित्त विभाग के वरिष्ठï अधिकारी इस बैठक में शामिल हुए। बैठक में सरकार के सामाजिक सुधार कार्यक्रमों में एसएमपी के इस्तेमाल को प्रोत्साहन देकर देश में इसकी पर्याप्त मांग विकसित करने पर जोर दिया गया। उद्योग के अधिकारियों के अनुसार देश में विभिन्न सहकारी और निजी दुग्ध डेयरियों के पास करीब 1,11,000 टन का एसएमपी पड़ा हुआ है जबकि देसी बाजार में इसकी सालाना खपत करीब 88,000 टन है। हत्सुन एग्रो प्रोडक्ट्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक आर जी चंद्रमोहन ने बताया, 'सरकार एसएमपी की खपत की नई संभावनाएं नहीं विकसित करती है तो दूध खरीद में कमी आ सकती है।' उन्होंने बताया कि दो साल पहले देसी बाजार में एसएमपी की कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने करीब 50,000 टन एसएमपी का आयात किया था, जिससे अतिरिक्त भंडार बन गया है। निजी क्षेत्र के एक और दुग्ध आपूर्तिकर्ता का कहना है, 'वैश्विक स्तर पर दाम में गिरावट आने के बाद निर्यात भी आकर्षक नहीं रह गया है।' हालांकि कारोबारियों का कहना है कि एसएमपी का बफर स्टॉक बनाने या फिर देसी बाजार में इसकी खपत बढ़ाने से कीमतों में आई अस्थिरता की समस्या का समाधान नहीं होगा। नोवा ब्रांड के तहत दुग्ध और दुग्ध के उत्पाद बनाने वाली कंपनी स्टर्लिंग एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक कुलदीप सलूजा ने कहा कि फिलहाल देश में 1 लाख टन एसएमपी का भंडार है, जो पिछले कुछ साल में हुए शुल्क मुक्त आयात का नतीजा है। सलूजा ने कहा, 'अब जब दूध के दाम स्थिर हो गए हैं, तो इस स्टॉक को बेचने का कोई तरीका नहीं है। सरकार को एक बार 30 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से सब्सिडी देनी चाहिए, जिससे निजी और सहकारी दुग्ध कंपनियां इसका निर्यात कर सकें।'(BS Hindi)

विदेशी कंपनियों के लिए रास्ता साफ, FDI अधिसूचना जारी

विपक्ष और अपने कुछ सहयोगी दलों के विरोध से विचलित हुए बिना सरकार ने गुरुवार को बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के फैसले को अमलीजामा पहना दिया। इससे वॉलमार्ट जैसी खुदरा श्रृंखला चलाने वाली विदेशी कंपनियों के लिये भारत में स्टोर खोलने का रास्ता साफ हो गया। सरकार ने इसके साथ ही विमानन और प्रसारण क्षेत्र में भी विदेशी निवेश नियमों को और उदार बनाने संबंधी निर्णयों को भी अधिसूचित कर दिया। सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी अपने निर्णयों की अधिसूचना ऐसे दिन जारी की है जब विपक्ष ने देशव्यापी बंद आयोजित किया और सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी और सरकार में शामिल द्रविड़ मुनेत्र कषगम इस बंद का समर्थन कर रही हैं। केन्द्र के सत्ताधारी गठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी तृणमूल कांग्रेस ने तो बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई अनुमति के सरकार के फैसले के विरोध में सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कल वह अपने मंत्रियों को सरकार से वापस बुला रही है। इस अधिसूचना के साथ वालमार्ट जैसी वैश्विक खुदरा कंपनियां 10 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में अपने खुदरा स्टोर खोलने के लिये 51 प्रतिशत तक निवेश कर सकेंगी। ये वे राज्य हैं जो बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के फैसले को अमल में लाने पर राजी हैं। इनमें दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड सहित दस राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश शामिल हैं। औद्योगिक नीति एवं संवर्ध विभाग ने अधिसूचना में कहा कि बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी है। इसमें कहा गया है कि निर्णय तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। (Live.Hindustan.com)

विदेशी खुदरा कंपनियों के लिये दुकान खोलने का रास्ता साफ, एफडीआई अधिसूचना जारी

नई दिल्ली। विपक्ष के विरोध से अविचलित सरकार ने बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की इजाजत देने के फैसले को अमलीजामा पहना दिया। इससे वालमार्ट जैसी खुदरा श्रंखला चलाने वाली विदेशी कंपनियों के लिये भारत में स्टोर खोलने का रास्ता साफ हो गया है। सरकार ने इसके साथ ही विमानन और प्रसारण क्षेत्र में भी विदेशी निवेश नियमों को और उदार बनाने संबंधी फैसलों को भी अधिसूचित कर दिया। सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी अपने निर्णयों की अधिसूचना विपक्ष की ओर से आहूत देशव्यापी बंद के दिन जारी कर जता दिया कि इस बार उसका इरादा पीछे हटने का नहीं है। सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी और सरकार में शामिल द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) ने भी इस बंद का समर्थन किया था। केंद्र के सत्ताधारी गठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की इजाजत देने के फैसले के खिलाफ सरकार से समर्थन वापस ले लिया और शुक्रवार को उसके मंत्री मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देंगे। इस अधिसूचना के साथ वालमार्ट जैसी वैश्विक खुदरा कंपनियां 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अपने खुदरा स्टोर खोलने के लिए 51 फीसद तक निवेश कर सकेंगी। ये वे राज्य हैं जो बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के फैसले को अमल में लाने पर राजी हैं। इनमें दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तराखंड सहित दस राज्य और केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं। औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग (डीआईपीपी) ने अधिसूचना में कहा कि बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 फीसद एफडीआई की मंजूरी है। इसमें कहा गया है कि फैसला तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। इन फैसलों में सबसे विवादास्पद बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की मंजूरी है। इस बारे में डीआईपीपी ने कहा है कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश लागू करने का फैसला राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के विवेक पर छोड़ दिया गया है। वे इस बारे में फैसला करने को स्वतंत्र हैं। इसमें कहा गया है कि इस लिहाज से खुदरा दुकानें उन राज्यों (केंद्र शासित प्रदेशों सहित) में स्थापित हो सकती हैं जिन्होंने इस पर फिलहाल सहमति जताई है या फिर भविष्य में इसकी इजाजत देने पर राजी हैं। विदेशी निवेशक न्यूनतम 10 करोड़ डालर निवेश करेंगे और दुकानें उन शहरों में स्थापित होगी जिनकी आबादी 10 लाख से ज्यादा है। वैश्विक खुदरा कंपनियों को निवेश का 50 फीसद हिस्सा शीत गृहों, गोदामों और परिवहन जैसे बुनियादी ढांचे के विकास पर खर्च करना पड़ेगा। बताते चलें कि सरकार ने बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र पिछले साल नवंबर में खोलने का फैसला किया था लेकिन सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस समेत विभिन्न दलों के पुरजोर विरोध के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। अबतक केवल 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की इजाजत दी है। इनमें आंध्र प्रदेश, असम, दिल्ली, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, उत्तराखंड, दमन दीव व दादर नागर हवेली हैं। डीआईपीपी की अधिसूचना में कहा गया है कि बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में निवेश करने वाली वैश्विक कंपनियों को आनलाइन कारोबार की इजाजत नहीं होगी। इसके अलावा लाटरी कारोबार, चिट फंड, सिगार और सिगरेट बनाने व परिवहन (मास रैपिट ट्रांसपोर्ट प्रणाली छोड़ कर) क्षेत्र में एफडीआई की इजाजत नहीं होगी। कंपनियों को अपनी जरूरत का कम से कम 30 प्रतिशत विनिर्मित और प्रसंस्कृत सामान उन छोटे उद्योगों से खरीदना होगा जिनका संयंत्र व मशीनरी में कुल निवेश 10 करोड़ डालर से ज्यादा नहीं हो। प्रमुख खुदरा कंपनियों ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। फ्यूचर ग्रुप के मुख्य कार्यपालक अधिकारी किशोर बियानी ने कहा कि अंतत: एफडीआई आ गया है। यह बहुत अच्छी खबर है। हमें विदेशी खुदरा कंपनियों से कोई खतरा नहीं है। आदित्य बिड़ला समूह के कारोबार निदेशक (परिधान व खुदरा व्यापार) प्रणब बरुआ ने कहा कि हमें अभी यह देखना होगा राज्य स्तर पर क्या होता है। इससे क्षेत्र को मदद मिलेगी। (Merikhabar.com)

20 सितंबर 2012

महंगी हो सकती है राशन की चीनी

महंगाई की मार झेल रहे लोगों को चीनी की मिठास में भी कड़वाहट मिल सकती है। राशन की दुकानों के जरिए वितरित की जाने वाली चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी की तैयारी सरकार कर रही है। सूत्रों का कहना है कि आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीईए) शुक्रवार को कोटे की चीनी महंगी करने का फैसला ले सकती है। यदि ऐसा होता है तो करीब एक दशक में पीडीएस के जरिए बांटी जाने वाली चीनी की कीमत में यह पहली बढ़ोतरी होगी। राशन की दुकानों के जरिए सरकार फिलहाल करीब 27 लाख टन चीनी 13.50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से हर साल बांटती है। खाद्य मंत्रालय ने सीसीईए को लिखे पत्र में हालांकि यह सिफारिश नहीं की है कि कीमतों में कितनी बढ़ोतरी की जानी है उसने यह काम प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले पैनल पर छोड़ा है। हालांकि मंत्रालय ने कहा है कि यदि कीमतों को बढ़ाकर 25.37 रुपये प्रति किलो की जाती है तो सरकार को लेवी शुगर पर किसी तरह की सब्सिडी देने की जरूरत नहीं पड़ेगी।लेवी प्रावधानों के तहत शुगर मिल्स को कुल उत्पादित चीनी का 10 फीसदी सरकार को राशन की दुकानों के जरिए वितरण के लिए सस्ती दर पर देना होता है। (Business bahskar)

वायदा में 'गोलमाल' से रबर आयात में आएगी उछाल

भारतीय रबर उद्योग प्राकृतिक रबर का आयात बढ़ा सकता है क्योंकि वायदा बाजार में सटोरिया गतिविधियों के चलते हाजिर बाजार में रबर की उपलब्धता पर भारी असर पड़ा है। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन और ऑल इंडिया रबर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने बुधवार को यह जानकारी दी। स्थानीय वायदा कारोबार में प्राकृतिक रबर में एक बार फिर भारी सटोरिया गतिविधियां चल रही हैं और इसने देसी रबर के कारोबार को पटरी से उतार दिया है। हाल में एक्सपायर हुए सितंबर अनुबंध में कारोबार की मात्रा एक दिन में 100 टन रही और स्टॉक 200 टन से कम था। इसने कीमतों में बढ़ोतरी में मदद की। 14 सितंबर को सितंबर वायदा कारोबार के दौरान 4 फीसदी के अपर सर्किट को छू गया था और 193 रुपये प्रति किलोग्राम पर बंद हुआ। यह रुख इसके फंडामेंटल के मुताबिक नहीं था क्योंकि रबर बोर्ड के मुताबिक हाजिर कीमतें 185 रुपये प्रति किलोग्राम थीं। 15 को जब केरल में हड़ताल थी तब हाजिर बाजार में कारोबार बंद था, लेकिन सितंबर अनुबंध 4 फीसदी चढ़ा और 201 रुपये प्रति किलोग्राम पर बंद हुआ। विडंबना यह थी कि कारोबार की मात्रा महज 48 टन थी। उद्योग के संघ ने इस बारे में वायदा बाजार आयोग को सूचना भेजी है। वायदा बाजार में सटोरिया गतिविधियों के चलते हाजिर बाजार में कीमतें आगे बढ़ीं और उस दिन कीमतें 200 रुपये पर पहुंच गईं। दिलचस्प रूप से ऐसा तब हुआ जब वैश्विक बाजार में कीमतें महज 170 रुपये प्रति किलोग्राम थी। रबर उद्योग के मुताबिक, वायदा बाजार के ऐसे अप्राकृतिक व अतार्किक रुख से हाजिर कारोबार गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है और इसके परिणामस्वरूप उत्पादकों और इस कारोबार से जुड़े सभी लोगों के बीच गलत संदेश गया है। उनके बीच संदेश गया है कि सटोरिये और एक्सचेंज के ऑपरेटर के चलते ऐसा हुआ है। ऐसी परिस्थिति में किसान व कारोबारी स्टॉक को रोके हुए हैं और उपभोक्ताओं के पास आयात के लिए अनुबंध करने के अलावा कोई चारा नहीं है क्योंकि यहां उपलब्धता काफी कम है और आयातित व देश में खरीद की लागत का अंतर करीब-करीब 25-30 रुपये बैठता है। हालांकि उत्पादक व कारोबारी जोखिम के घेरे में हैं क्योंकि ऐसी सटोरिया गतिविधि बंद नहीं हो रही है और उत्पादन के पीक सीजन में आयात से स्थिति और भी भयावह हो सकती है। एआईआरआईए के अध्यक्ष विनोद सिमॉन के मुताबिक, घरेलू वायदा कारोबार में चल रही सटोरिया गतिविधियां मांग-आपूर्ति के फंडामेंटल को काफी कम तवज्जो दे रही हैं। कुल मिलाकर देश में रबर की कीमतें वैश्विक बाजार से ज्यादा क्यों होनी चाहिए, जब हमारे यहां उत्पादन का पीक सीजन चल रहा हो और रबर बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक 2.5 लाख टन कैरीओवर स्टॉक हो। इस साल आयात में अब तक 21 फीसदी की उछाल आ चुकी है। अपने संदेश में उद्योग ने कहा है कि वायदा बाजार में कीमतें उतारचढ़ाव की सीमा को मौजूदा चार फीसदी से घटाकर एक फीसदी कर दिया जाना चाहिए। (BS Hindi)

खुले बाजार में और गेहूं उतारने का सुझाव

गेहूं की ऊंची कीमतों से चिंतित महंगाई पर अंतर-मंत्रालय समूह ने सरकार को हर महीने खुले बाजार में 20-25 लाख टन गेहूं उतारने का सुझाव दिया है। समिति का कहना है कि इससे कीमतें घटेंगी और अगले महीने शुरू होने वाली नई फसल की खरीद के लिए जगह बनेगी। वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि पिछले हफ्ते मुख्य आर्थिक सलाहकार रघुराम राजन की अध्यक्षता में हुई बैठक में गेहूं, सब्जियां, खाद्य तेल, प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ, चीनी व दालों आदि की महंगाई कम करने के लिए विभिन्न मुद्दों पर विचार हुआ। समूह के सदस्यों के बीच इस बात पर आमसहमति थी कि खुले बाजार की योजना (ओएमएसएस) के तहत घरेलू बाजार में बिक्री के लिए गेहूं के ज्यादा आवंटन से बाजार में कीमतें घटेंगी। ओएमएसएस के तहत भारतीय खाद्य निगम थोक खरीदारों मसलन आटा मिलों व बिस्कुट निर्माताओं को निविदा के जरिए गेहूं की बिक्री करता है। सूत्रों ने कहा, कैरीओवर विकल्प के साथ हर महीने 20-25 लाख टन गेहूं के आवंटन को समूह ने उचित माना है। समिति ने सुझाव दिया है कि ओएमएसएस के तहत आवंटित गेहूं की मात्रा का अग्रिम संकेत दिया जाना चाहिए। खाद्य मंत्रालय ने इस साल अब तक 30 लाख टन गेहूं आवंटित किया है। मंगलवार को खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने कहा था कि सरकार इस योजना के तहत 50 लाख टन और गेहूं आवंटित करने पर विचार कर रही है। इस योजना के तहत सरकार की तरफ से गेहूं जारी करने से कीमतों पर बढ़ोतरी को रोकने में मदद मिली है, जो थोक बाजार में फिलहाल 15.50-22 रुपये प्रति किलोग्राम है जबकि एक महीने पहले यह 16.25-23 रुपये प्रति किलोग्राम थी। भंडार में 8 करोड़ टन खाद्यान रिकॉर्ड उत्पादन तथा अनाज की खरीद से देश में खाद्यान का भंडार 1 जुलाई को 8.05 करोड़ टन के स्तर पर पहुंच गया है। यह बफर स्टॉक सीमा से करीब दो गुना ज्यादा है। नई दिल्ली में जारी सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, 'केंद्रीय भंडार में खाद्यान का रिकॉर्ड भंडार है। 1 जुलाई 2012 की स्थिति के अनुसार देश में 8.05 करोड़ टन खाद्यान का भंडार है जबकि बफर सीमा 3.19 करोड़ टन है।' गेहूं का वास्तविक भंडार 4.98 करोड़ टन है जबकि न्यूनतम बफर सीमा 2.01 करोड़ टन है। (BS Hindi)

बढ़ सकता है खाद्य तेल का आयात

नवंबर में शुरू होने वाले नए सीजन (नवंबर 2012 से अक्टूबर 2013) में खाद्य तेल का आयात 10 फीसदी बढ़कर 92 लाख टन पर पहुंच सकता है। जनवितरण प्रणाली के तहत खाद्य तेलों का वितरण करने के लिए जिम्मेदार खाद्य व उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय का मोटे तौर पर यही अनुमान है। अधिकारियों के मुताबिक, पहले मंत्रालय ने कहा था कि मौजूदा सीजन में खाद्य तेल का आयात 95 लाख टन से 1 करोड़ टन पर पहुंच सकता है, लेकिन खाद्य तेल की खपत की मौजूदा दर इसे उचित नहीं ठहराता। वास्तव में, ऊंची कीमतों के चलते खाद्य तेल की खपत में कमी आई है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा, विभाग की तरफ से संग्रहित खपत के मौजूदा आंकड़े 170 लाख टन हैं, जो पिछले साल के मुकाबले 5-7 लाख टन कम है। उन्होंने कहा कि देर से हुई बारिश के चलते देश में तिलहन की आपूर्ति 10-12 फीसदी कम रहेगी, लेकिन आपूर्ति में होने वाली दिक्कत की भरपाई घटती मांग से होने की संभावना है। देश में तेल की कुल खपत 170 लाख टन रहने का अनुमान है, जिसमें से आधी की आपूर्ति देसी स्रोतों से हो जाएगी। हालांकि 2012-13 में देश में खाद्य तेल की आपूर्ति 71 लाख टन रहने की संभावना है जबकि पिछले साल यह 76 लाख टन रहा था। मंत्रालय की तरफ से संग्रहित तिलहन ïउïत्पादन के मोटे अनुमान बताते हैं कि इस साल उत्पादन 300 लाख टन रहेगा जबकि पिछले साल 324 लाख टन तिलहन का उत्पादन हुआ था। आधिकारिक सूत्रों ने कहा, देसी आपूर्ति के अनुमान पर नजर डालें तो खाद्य तेल का आयात आदर्श रूप में साल 2012-13 में 100 लाख टन रहेगा, लेकिन घटती मांग के चलते आयात 100 लाख टन से नीचे रह सकता है। अगर खपत में गिरावट रही तो यह घटकर 90 लाख टन के आसपास रह सकता है। संयोग से खाद्य तेल की वैश्विक कीमतें नीचे हैं और आयातित खाद्य तेल की कीमतें इसके आयात शुल्क के परिवर्तित ढांचे के चलते व रुपये में आई गिरावट के चलते बढ़ी हैं। सरकार ने जुलाई में रिफाइंड पामोलीन तेल पर टैरिफ की दरें संशोधित कर इसे पूर्व के 484 डॉलर के मुकाबले बढ़ाकर 1053 कर दिया है। पिछले छह साल से टैरिफ की दरें अपरिवर्तित थीं। अब हर पखवाड़े इसे संशोधित किया जाता है। एसईए के मुताबिक, मौजूदा समय में टैरिफ की दरें 1014 डॉलर प्रति टन है। रुपये में गिरावट और परिवर्तित टैरिफ दरों के बावजूद आरबीडी पामोलीन की आयातित कीमतें अगस्त 2012 में 1004 डॉलर प्रति टन रहीं जबकि अगस्त 2011 में यह 1192 डॉलर प्रति टन थीं। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक, मौजूदा तेल वर्ष के पहले नौ महीने में खाद्य तेल का आयात पिछले साल के मुकाबले 19 फीसदी बढ़ा है। अगस्त 2012 में 8.9 लाख टन खाद्य तेल का आयात हुआ जबकि एक साल पहले की समान अवधि में 8.17 लाख टन खाद्य तेल का आयात हुआ था। इसमें 8.82 लाख टन खाद्य तैल और 14,749 टन गैर-खाद्य तेल शामिल है। दूसरी ओर देसी बाजार में तिलहन की ऊंची कीमतों के चलते खली का निर्यात घटा है। एसईए के मुताबिक, अगस्त 2012 में 1,20,091 टन खली का निर्यात हुआ जबकि अगस्त 2011 में 2,91,466 टन खली का निर्यात हुआ था। इस तरह खली के निर्यात में 59 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। अप्रैल से अगस्त 2012 के बीच खली का निर्यात घटा है और इस अवधि में कुल 14.57 लाख टन खली का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल 16.94 लाख टन खली का निर्यात हुआ था। (BS Hindi)

तांबे की खपत में कमी

भारत में इस साल तांबे की खपत थोड़ी कम रहने की संभावना है क्योंकि निर्माण, ऊर्जा, औद्योगिक मशीनरी और उपकरण जैसे क्षेत्रों में मंदी का आलम बरकरार है। देश के कुल तांबा उत्पादन में से 90 फीसदी की खपत इन्हीं क्षेत्रों में होती है। लेकिन इन क्षेत्रों में पिछले कुछ महीने से उपभोक्ता कम खर्च कर रहे हैं नतीजतन इस साल इस धातु में कम वृद्घि के रुख दिख रहे हैं। एक प्रमुख रेटिंग एजेंसी आईसीआरए के पूर्वानुमानों के मुताबिक देश में तांबे की खपत वृद्घि इस साल 4 फीसदी पर बनी रहेगी जो पिछले साल 6.3 फीसदी थी। इस रेटिंग एजेंसी के अध्ययन के मुताबिक इस साल तांबे की कुल खपत 562,000 टन रहा जो पिछले साल 540,000 टन था। देश में तांबे की खपत को देश की अर्थव्यवस्था की वृद्घि से जोड़कर देखा जाता है। (BS Hindi)

18 सितंबर 2012

बारिश में सुधार से देश में बढ़ेगा सरप्लस चीनी का भंडार

मॉनसून की बारिश में सुधार के चलते उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना जताते हुए राबोबैंक इंटरनैशनल ने आगामी कटाई सीजन के लिए सरप्लस चीनी के भंडार के अनुमान में 13 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है। राबोबैंक का यह अनुमान चीनी मिलों को प्रभावित करेगा। अपनी ताजा रिपोर्ट में राबोबैंक ने कहा है कि भारत में साल 2012-13 (अक्टूबर-सितंबर) में 52 लाख टन सरप्लस चीनी उपलब्ध होगी जबकि पहले यह भंडार 46 लाख टन रहने का अनुमान जताया गया था। यह अनुमान हालांकि भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के अनुमान से कम है। इस्मा ने पिछले हफ्ते कहा था कि अगले सीजन यानी 2012-13 में सरप्सस चीनी या ओपनिंग स्टॉक करीब 60 लाख टन रहेगा। सरप्लस चीनी के भंडार का मामला महत्त्वपूर्ण है क्योंकि देश भर की चीनी मिलें इस्मा व राबोबैंक समेत विभिन्न एजेंसियों की तरफ से मांग-आपूर्ति के बारे में की गई भविष्यवाणी के आधार पर कारोबार की रणनीति तैयार करती हैं। मॉनसून की प्रगति में हुए हालिया सुधार के बावजूद अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पिछले महीनों में अपर्याप्त बारिश का फसल पर कितना असर पड़ा था। चीनी मिलों और दूसरे काम में गन्ने के इस्तेमाल बारे में अनिश्चितता के चलते भारत बाजार को आश्चर्यचकित कर सकता है। यह बताना मुश्किल है कि गन्ने की कितनी मात्रा की पेराई मिलों में होगी और कितनी मात्रा का इस्तेमाल दूसरी जगहों पर या दूसरे कामों में होगा। राबोबैंक का अनुमान है कि 2012-13 में देश का चीनी उत्पादन 240-250 लाख टन के बीच रहेगा जबकि 2011-12 में 260 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ। साल 2012-13 में 220-230 लाख टन चीनी की खपत का अनुमान है। अगस्त के आखिर तक बारिश सामान्य के मुकाबले 12 फीसदी कम रही है, हालांकि गन्ने के उत्पादन से जुड़े ज्यादातर इलाके सिंचित क्षेत्र हैं, लेकिन सूखे मौसम का असर गन्ने की फसल पर पडऩे की संभावना है। गन्ने की पैदावार प्रभावित हो सकती है क्योंकि मौजूदा जलाशय बारिश मेंं कमी की भरपाई नहीं कर सकते। इसके साथ ही गन्ना किसानों के बीच कम अवधि में परिपक्व होने वाली फसलों की बुआई का चलन बढ़ा है। साथ ही गन्ने की आपूर्ति चारे के लिए करने का भी, ताकि आकर्षक कीमतों का फायदा उठाया जा सके। बारिश में कमी के चलते सबसे बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में 2012-13 में उत्पादन 15 फीसदी घटकर 76 लाख टन रह जाने का अनुमान है जबकि 2011-12 में यहां 89 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ। कर्नाटक में साल 2012-13 के दौरान सूखे मौसम व रकबे में 11 फीसदी की कमी के चलते उत्पादन 21 फीसदी घटकर 30 लाख टन रहने का अनुमान है। हालांकि उत्तर प्रदेश की स्थिति ठीक है और यहां 2012-13 के दौरान उत्पादन 12 फीसदी बढ़कर 78 लाख टन पर पहुंचने की संभावना है। तमिलनाडु में भी पिछले सीजन के मुकाबले उत्पादन 11 फीसदी बढ़ सकता है और यहां पिछले सीजन में कुल 23 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ। (BS Hindi)

50 लाख टन अतिरिक्त गेहूं बेचेगा खाद्य मंत्रालय

खाद्य मंत्रालय ने महंगाई को काबू में लाने के लिए थोक बाजार में आटा मिलों और बिस्कुट विनिर्माता जैसे थोक उपभोक्ताओं के लिए 50 लाख टन अतिरिक्त गेहूं जारी करने की योजना बनाई है। खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने बताया, 'हमने खुली बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत थोक उपभोक्ताओं के लिए अतिरिक्त 50 लाख टन गेहूं बेचने की योजना बनाई है।' सरकार ने मानसून के दौरान भंडारण दबाव कम करने के लिए जून में अपने गोदामों से खुली बिक्री योजना के तहत 30 लाख टन गेहूं आबंटित किया था। अगर अतिरिक्त 50 लाख टन गेहूं बेचने की योजना सरकार मंजूर कर लेती है तो चालू वित्त वर्ष में बिक्री के लिए गेहूं की कुल मात्रा 80 लाख टन तक पहुंच जाएगी। अभी तक, सरकार मध्य जुलाई से करीब 13 लाख टन गेहूं जारी कर चुकी है और अन्य 10 लाख टन इसी महीने जारी किया जाना है। भारतीय खाद्य निगम ने शुरुआत में निविदा प्रक्रिया के जरिये खुली बाजार योजना के तहत 1,170 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर गेहूं बेचा। अगस्त में आधार मूल्य बढ़ाकर 1,285 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया। (BS Hindi)

17 सितंबर 2012

किस्तों पर ज्वैलरी खरीदारी हिट

आर. एस. राणा नई दिल्ली सोने की कीमतों में चल रही रिकार्ड तेजी से गहनों की बिक्री बढ़ाने के लिए ज्वैलर्स स्कीमों को सहारा ले रहे हैं। दिल्ली सराफा बाजार में शुक्रवार को सोने का भाव बढ़कर 32,900 रुपये प्रति दस ग्राम की नई ऊंचाई पर पहुंच गया। गहनों की बिक्री बढ़ाने के लिए ज्वैलर्स मासिक योजना तो चला ही रहे हैं। साथ ही त्यौहारी सीजन को देखते हुए विशेष उपहार और कूपन योजना भी अगले महीने से शुरू करने जा रहे हैं। गोयल ज्वैलर्स के प्रबंधक वी. के. गोयल ने बताया कि सोने की कीमतें रिकार्ड स्तर पर होने के कारण गहनों की बिक्री सामान्य के मुकाबले 50 से 60 फीसदी कम हो गई है। ऐसे में ग्राहकों को लुभाने के लिए ज्वैलर्स मासिक स्कीम योजना को सहारा ले रहें हैं। मासिक स्कीम योजना दो तरह की है। पहली स्कीम में ग्राहक हर महीने एक निश्चित राशि किस्त के रूप में ज्वैलर्स के पास जमा कराता है। उसे 12 किस्त जमा करानी होती है उसके बाद दो किस्त उतनी ही रकम की ज्वैलर्स स्वयं भरता है। जिस दिन ग्राहक 12वीं किस्त जमा कराता है उस दिन के दाम के आधार पर पूरी रकम के गहने ग्राहक को दिए जाते हैं। उन्होंने बताया कि दूसरी स्कीम में ग्राहक हर महीने एक निश्चित रकम ज्वैलर्स के पास जमा कराता है उसी दिन के भाव के आधार पर ग्राहक के खाते में कीमत की दर के हिसाब से सोना जमा कर दिया जाता है। इससे ग्राहक पर एक ही बार में पैसा देने का दबाव कम हो जाता है। पी सी ज्वैलर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर बलराम गर्ग ने बताया कि सोने की कीमतों में आई रिकॉर्ड तेजी में बिक्री बरकरार रखने के लिए त्यौहारी सीजन में विशेष उपहार और कूपन योजना शुरू कर रहे हैं। इसके तहत हर 25,000 रुपये की खरीद पर ग्राहक को एक कूपन दिया जायेगा। कूपन में विशेष उपहार जैसे कार, ज्वैलरी या अन्य इनाम रखे गए हैं। इसके अलावा सोने के गहनों की खरीद पर ग्राहकों को मेकिंग चार्ज में 10 से 15 फीसदी की छूट तथा डायमंड के गहनों की खरीद पर एमआरपी में 10 से 15 फीसदी की छूट दी जायेगी। ऑल इंडिया जैम्स एंड ज्वैलरी ट्रेड फैडरेशन (जीजेएफ) के चेयरमैन बछराज बाम्लवा ने बताया कि सोने की कीमतों में सालभर में 18.6 फीसदी की तेजी आ चुकी है। दिल्ली सराफा बाजार में 16 सितंबर 2011 को सोने का भाव 27,740 रुपये प्रति दस ग्राम था जबकि शुक्रवार को भाव 32,900 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया। विश्व बाजार में दाम बढ़ रहे हैं इसलिए मौजूदा कीमतों में मंदे की संभावना नहीं है। ऐसे में ग्राहकों को लुभाने के लिए कम वजन के गहने जोकि दिखने में भारी लगे बनवाए जा रहे हैं। इसके अलावा मेकिंग चार्ज में छूट दी जा रही है। पिछले साल ज्वैलर्स मेकिंग चार्ज 550 से 600 रुपये प्रति ग्राम के आधार पर ले रहे थे जबकि इस समय 250 से 300 रुपये प्रति ग्राम के आधार पर मेकिंग चार्ज ले रहे हैं। (Business Bhaskar....R S Rana)

अच्छी बारिश से त्योहारों पर खाद्य तेलों में नरमी के आसार

आयात भी ज्यादा - चालू तेल वर्ष के पहले दस महीनों के दौरान खाद्य तेलों का आयात 18.97 फीसदी बढ़कर 81.62 लाख टन हो चुका है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट का रुख दिखाई दे रहा है। अगस्त-सितंबर में मानसूनी वर्षा अच्छी होने से खरीफ तिलहनों की पैदावार में सुधार होने की संभावना है। जबकि चालू तेल वर्ष के पहले दस महीनों (नवंबर-2011 से अगस्त-2012) के दौरान खाद्य तेलों का आयात 18.97 फीसदी बढ़कर 81.62 लाख टन हो चुका है। अक्टूबर में खरीफ तिलहनों की नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी। ऐसे में त्यौहारी सीजन में खाद्य तेलों की कीमत में नरमी रहने के आसार हैं। दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि अगस्त-सितंबर में अच्छी वर्षा हुई है जिससे तिलहनों फसलों सोयाबीन, मूंगफली, सनफ्लावर और तिल की पैदावार अच्छी होने का अनुमान है। अगले महीने से उत्पादक मंडियों में खरीफ तिलहनों की आवक शुरू हो जाएगी। ऐसे में खाद्य तेलों की कीमतों में त्यौहारी सीजन में तेजी की संभावना नहीं है। मांग के अभाव में महीने भर में खाद्य तेलों की थोक कीमतों में पांच से सात रुपये प्रति किलो की गिरावट आ चुकी है। खाद्य तेलों के थोक कारोबारी अशोक बंसल ने बताया कि राजस्थान में सरसों तेल की थोक कीमतें 850 रुपये घटकर 825 रुपये, सोया रिफाइंड तेल का भाव इंदौर में 815 रुपये से घटकर 775 रुपये, बिनौला तेल का भाव 720 रुपये से घटकर 700 रुपये, राजकोट में मूंगफली तेल का 1,320 रुपये से घटकर 1,160 रुपये, आरबीडी पामोलीन का भाव बंदरगाह पर 600 रुपये से घटकर 560 रुपये, सीबीओ का भाव 570 रुपये से घटकर 535 रुपये प्रति दस किलो रह गए। साई सिमरन फूड लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में मंदा आया है। आरबीडी पामोलीन का भाव इस समय भारतीय बंदरगाह पर पहुंच 1,004 डॉलर प्रति टन है जबकि अगस्त 2011 में इसका भाव 1,192 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रूड पाम तेल का भाव भी 1,089 डॉलर प्रति टन से घटकर 980 डॉलर प्रति टन रह गया। आयात में हुई बढ़ोतरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों का स्टॉक भी ज्यादा है। ऐसे में त्यौहारी सीजन में मांग बढऩे पर खाद्य तेलों के दाम स्थिर बने रह सकते हैं या नरमी आ सकती है। उत्कर्ष एग्रो के प्रबंधक एम. राव ने बताया कि मध्य प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन की कीमतों में गिरावट बननी शुरू हो गई है। शनिवार को सोयाबीन के प्लांट डिलीवरी भाव 200 रुपये घटकर 4,350-4,450 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। सरसों और मूंगफली की कीमतों में भी गिरावट आई है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में तिलहनों की बुवाई 171.17 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल 176.97 लाख हैक्टेयर में हुई थी। खरीफ की प्रमुख फसल सोयाबीन की बुवाई पिछले साल के 103.29 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 107 लाख हैक्टेयर में हुई है। (Business Bhaskar....R S Rana)

पुराने सोने से ज्वैलरों की चांदी

सोना रिकॉर्ड कीमत छू रहा है, लेकिन जवेरी बाजार में लोगों का जमघट लगा है। दरअसल ये जेवरात खरीदने नहीं बल्कि पुराना सोना बेचकर चांदी काटने के लिए पहुंचे हैं। मजे की बात है कि असली चांदी ज्वैलरों की हो रही है। खालिस सोने का सवाल खड़ा कर ज्वैलर्स ग्राहकों को फंसा रहे हैं और यही वजह है कि हरेक ज्वैलर की दुकान पर सोने का भाव अलग-अलग है। सोने का भाव 32,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के ऊपर जाने के बाद लोगों को पुराना सोना बेचने का सही समय दिख रहा है। उनहें लगता है कि बाद में सोने में 2 से 3 हजार रुपये की गिरावट आ सकती है। लेकिन पुराना सोना खरीदते वक्त ज्वैलर बुटिक छोड़कर कीमत तय करते हैं और फिर कैरेट के हिसाब से सोना खरीद लिया जाता है। इस कीमत में 4 से 10 फीसदी तक कटौती कर रकम ग्राहकों को सौंप दी जाती है। ज्वैलरों की दलील है कि जेवरात की शक्ल में आए पुराने सोने को गलाने पर 2 फीसदी अशुद्घि निकल जाती है और तांबे तथा चांदी के टांके भी निकलते हैं। इस नुकसान की भरपाई के लिए ही ग्राहक को कम कीमत दी जाती है। हालांकि मामला यहीं खत्म नहीं होता। पुराने सोने की कीमत में कटौती तो की ही जाती है, ज्वैलर सोने की कीमत भी अलग-अलग रखते हैं। 6 सितंबर को सोना रिकॉर्ड स्तर पर था, लेकिन ज्वैलर इसकी अलग-अलग कीमत बता रहे थे। मुंबई ज्वैलर्स एसोसिएशन के कुमार जैन कहते हैं कि जो ग्राहक के साथ धोखा करेगा, वह बाजार में बहुत अरसे तक नहीं टिक सकेगा। भाव की जानकारी देने के लिए बाजार में जगह-जगह स्क्रीन लगाई गई हैं, जिनसे ग्राहक को कीमत का पता कर लेना चाहिए। बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष पृथ्वीराज कोठारी कहते हैं कि ग्राहकों को सोना बेचते या खरीदते वक्त भरोसे के ज्वैलर या हॉलमार्क देने वाले ग्राहक के पास जाना चाहिए ताकि उन्हें सही कीमत हासिल हो सके। करीब एक महीने में बाजार में पुराना सोना बेचने वालों की गहमागहमी बढ़ गई है और हरेक ग्राहक औसतन 20 ग्राम सोना बेचता है। हालांकि पुराना सोना पिछले साल की तरह नहीं निकल रहा है क्योंकि ग्राहक मान रहे हैं कि कुछ वक्त की गिरावट के बाद सोना फिर उछलेगा। (BS Hindi)

वायदा में एस एक्सचेंज तीसरे स्थान पर काबिज

देश में 181 खरब रुपये के जिंस वायदा कारोबार में तीसरा स्थान हासिल करने के लिए प्रतिस्पर्धा तेज हो गई है। राष्ट्रीय स्तर के जिंस वायदा प्लैटफॉर्म पर कारोबार के महज दो साल के भीतर कोटक की अगुआई वाले एस डेरिवेटिव ऐंड कमोडिटी एक्सचेंज ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को कारोबार के मामले में पीछे छोड़ते हुए देश के तीसरे जिंस एक्सचेंज बनने का दावा पेश करने के स्तर पर पहुंच गया है। एस ने अपने दो निकटतम प्रतिद्वंद्वी अहमदाबाद के नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) और इंडियाबुल्स व एमएमटीसी द्वारा प्रवर्तित इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज (आईसीएक्स) को पांच पखवाड़े पहले ही बड़े मार्जिन से पीछे छोड़ दिया है। राष्ट्रीय स्तर पर मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज और नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज कारोबार के मामले में क्रमश: पहले व दूसरे स्थान पर काफी लंबे समय से बने हुए हैं। गैर-कृषि कारोबार के मामले में एमसीएक्स अग्रणी है जबकि गैर-कृषि जिंसों के मामले में एनसीडीईएक्स अव्वल है। 31 अगस्त 2012 को दोनों एक्सचेंजों की बाजार हिस्सेदारी क्रमश: 86.33 फीसदी व 10.62 फीसदी थी। वायदा बाजार आयोग की तरफ से संकलित आंकड़ों के मुताबिक, एक ओर जहां एस का कारोबार 16-30 जून के पखवाड़े में 7712.52 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, वहीं इस अवधि में एनएमसीई व आईसीएक्स का कारोबार क्रमश: 3789.49 करोड़ रुपये व 2623.10 करोड़ रुपये रहा। तब से एस का बेहतर प्रदर्शन जारी है और अपने दोनों प्रतिस्पर्धियों के कुल कारोबार के मुकाबले ज्यादा रहा। एस का कारोबार 12069.47 करोड़ रुपये रहा जबकि एनएमसीई व आईसीएक्स का कारोबार क्रमश: 7856.14 करोड़ रुपये व 4407.76 करोड़ रुपये रहा। इस क्षेत्र में बढ़ रही प्रतिस्पर्धा के बीच एस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने हालांकि इश कामयाबी पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। एस ने अगस्त 2010 में राष्ट्रीय जिंस एक्सचेंज का दर्जा हासिल किया था। इससे पहले वह क्षेत्रीय एक्सचेंज था। एस कृषि जिंसों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। तब से इस एक्सचेंज ने विशेषीकृत जिंस पर अपना ध्यान केंद्रित किया और सोया खली वायदा अनुबंध पेश किया, यह ऐसा उत्पाद है जो मौजूदा समय में राष्ट्रीय स्तर के किसी भी एक्सचेंज पर उपलब्ध नहीं है और इसे कारोबारियों का खासा समर्थन मिला है। साथ ही एक्सचेंज ने कई डिलिवरी केंद्र स्थापित किए हैं ताकि कारोबारियों के लिए यह सुविधाजनक हो। पिछले कई सालों से एमसीएक्स व एनसीडीईएक्स पहले व दूसरे स्थान पर बना हुआ है जबकि तीसरे स्थान के लिए जिंस एक्सचेंज बदलते रहे हैं। आईसीएक्स के प्रबंध निदेशक रजनीकांत पटेल ने कहा, हम अपने खोए हुए कारोबार को हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। एफएमसी के पास हमने 11 अनुबंधों की मंजूरी के लिए आवेदन भेजा है। मंजूरी मिलने के बाद हमें आंशिक कारोबार हासिल होगा। बागवानी पर केंद्रित एनएमसीई अपनी चुनौतियों से ही जूझ रहा है। एनएमसीई के प्रबंध निदेशक अनिल मिश्रा ने कहा, पिछले कई महीनों में घटे कारोबार का हम विश्लेषण कर रहे हैं और इसकी कमियों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। यह प्रगति महत्वपूर्ण है क्योंकि जिंस वायदा में प्रवेश करने वाले नए खिलाड़ी ने एक दशक पुराने खिलाड़ी को पीछे छोड़ दिया है। वास्तव में एनएमसीई को साल 2003 में राष्ट्रीय एक्सचेंज का दर्जा हासिल हुआ था और ऐसा दर्जा हासिल करने वाला यह पहला एक्सचेंज था। बाद में एमसीएक्स व एनसीडीईएक्स को राष्ट्रीय एक्सचेंज का दर्जा हासिल हुआ था। (BS Hindi)

विदेशी निवेश का जवाब भारत बंद

खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश का फैसला मनमोहन सरकार के लिए आंख की किरकिरी साबित हो रहा है. विपक्षी पार्टी बीजेपी, वामपंथी दल और मजदूरों के संघ बंद के लिए साथ हो गए हैं. लामबंद विपक्ष कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी ने भी खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के खिलाफ सड़क पर उतरने का फैसला किया है. उधर, बंगाल में सत्ता संभाल रही तृणमूल कांग्रेस ने भी सरकार का विरोध करने का एलान किया है. मुख्यमंत्री, ममता बनर्जी तो इस मसले पर कोलकाता की सड़कों पर भी उतर चुकी हैं. उन्होंने सरकार को 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया था. स्थानीय मीडिया में कहा गया है कि इस मसले पर तृणमूल के मंत्री प्रधानमंत्री को इस्तीफा भी सौंप सकते हैं.हालांकि तृणमूल की नेता ममता बनर्जी ने साफ किया है कि वो सरकार को बाहर से समर्थन देती रहेंगी. वाम दलों समेत सभी विपक्षी दलों ने लोगों से आह्वान किया है कि लोग गुरुवार को बंद का समर्थन करें. भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता, गुरुदास दासगुप्ता का कहना है, "20 सितंबर को जोरदार विरोध प्रदर्शन होगा. हम लोग हड़ताल करेंगे, धरना और गिरफ्तारियां देंगे." विरोध में मजदूर संगठन सिर्फ राजनीतिक दल ही नहीं, देश के मजदूर संगठन और खुदरा व्यापारी भी सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं. मजदूर संगठनों के राष्ट्रीय महासंघ के सचिव प्रवीण खंडेलवाल का कहना है, "इस फैसले से छोटे व्यापारी समाप्त हो जाएंगे.अंतरराष्ट्रीय कंपनियां बड़े आक्रामक तरीके से कीमतों का निर्धारण करती हैं. उनकी कोशिश होती है कि प्रतिस्पर्धियों को किसी भी तरह से बाजार से खदेड़ दिया जाए. इसके विरोध में सभी दुकानें बंद रहेंगीं और व्यापारी इस बारे में मिल बैठ कर रणनीति तय करेंगे." मजदूर संगठनों के राष्ट्रीय महासंघ में इस समय करीब 10 हजार संगठन शामिल हैं. खुश हैं निवेशक विपक्षी पार्टियां और मजदूर संगठन भले ही विदेशी निवेश का विरोध कर रहे हैं लेकिन उद्योग जगत सरकार के फैसले से खुश है. निवेशकों ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है. इस फैसले का असर रुपये की स्थिति पर भी पड़ा है. पिछले चार महीनों के बाद डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति मजबूत हुई है. मनमोहन सरकार ने पिछले शुक्रवार को ही खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की मंजूरी दी है. सरकार के फैसले के मुताबिक वॉलमार्ट और टेस्को जैसी बड़ी कंपनियां51 प्रतिशत तक निवेश कर सकती हैं बशर्ते वो कम से कम 10 करोड़ डॉलर का निवेश करें. सिर्फ खुदरा क्षेत्र ही नहीं सरकार ने उड्डयन क्षेत्र में विदेशी एयरलाइन कंपनियों को 49 फीसदी निवेश की इजाजत दे दी है. निवेशकों को उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए रिजर्व बैंक जल्द ही अपनी नीतियों की घोषणा करेगा.(DW Hindi)

15 सितंबर 2012

खाद्य प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय मिशन का प्रस्ताव

सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए अगले वित्त वर्ष में राज्य सरकारों के सहयोग से खाद्य प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय मिशन का शुक्रवार को प्रस्ताव किया। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में भारत दुनिया में काफी पिछड़ा है और उचित ढांचागत सुविधाओं के अभाव में हर साल देश में करीब 44,000 करोड़ रुपए मूल्य के फल व सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 2012-13 के लिए बजट प्रस्तावों में कहा कि स्थानीय जरूरतों के मुताबिक बेहतर सहूलियत उपलब्ध कराने के लिए केन्द्र द्वारा प्रायोजित ‘खाद्य प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय मिशन’ नाम से एक नयी योजना शुरू की जाएगी। अगले वित्त वर्ष के लिए इस क्षेत्र को 660 करोड़ रुपए का बजटीय आबंटन किया गया है जो 2011-12 में 600 करोड़ रुपए है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के सचिव राकेश कैकर ने बताया कि इस मिशन के तहत जहां, राज्य सरकारें व्यापक स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करेंगी, वहीं केन्द्र उन्हें प्रौद्योगिकी व लाजिस्टिक मदद उपलब्ध कराएगा। सचिव ने कहा कि केन्द्र राज्यों को प्रौद्योगिकी उन्नयन, कौशल विकास, प्रोत्साहन गतिविधियों और गैर बागवानी कोल्ड स्टोरेज की स्थापना में सहायता उपलब्ध कराएगा। (Bhasha)

मॉनसून की वापसी में 7वें साल विलंब

इस साल मॉनसून के लिए 'देर आए, दुरुस्त आए' वाली कहावत सही बैठ रही है। देश में सूखे जैसे हालात पैदा करने के बाद दक्षिण पश्चिम मॉनसून कम से कम एक और सप्ताह तक सक्रिय रहेगा। यह सातवां साल है, जब मॉनसून की वापसी में विलंब हो रहा है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) की कार्यवाहक महानिदेशक स्वाति बसु ने बताया, 'दक्षिण पश्चिम मॉनसून के और एक सप्ताह तक सक्रिय बने रहने की संभावना है।' उन्होंने कहा कि उत्तर पश्चिम क्षेत्र में मॉनसून अब भी सक्रिय है। इस क्षेत्र में जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश आता है। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह मौसमी बारिश का अंतिम चरण होगा और अगले सप्ताह से पश्चिमी राजस्थान से मॉनसून वापस लौटने लगेगा। बसु ने कहा कि यह लगातार सातवां साल है, जब मॉनसून के लौटने में विलंब हो रहा है। आम तौर पर सितंबर के पहले सप्ताह में मॉनसून वापस लौटने लगता है, लेकिन इस बार यह महीने के तीसरे सप्ताह में वापस लौटेगा। सामान्य तौर पर मॉनसून के बादल सितंबर के अंत तक पूरे देश से छंट जाते हैं, लेकिन पिछले आठ साल से इसके वापस लौटने में विलंब हो रहा है और मॉनसून 11 अक्टूबर तक ठहर जाता है। मॉनसून के लौटने में विलंब के बावजूद देश में अब भी मॉनसूनी बारिश सामान्य के मुकाबले 8 फीसदी कम रही है। (BS Hindi)

मानसून में सुधार से फसलों के रकबे में कमी घटी

दलहन व कपास भी पीछे - दालों की बुवाई भी चालू खरीफ में पिछले साल के 105.14 लाख हैक्टेयर की तुलना में 98.94 लाख हैक्टेयर में हुई है। कपास की बुवाई चालू खरीफ में 114.44 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 120.04 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी। धान, दलहन और तिलहनों के बुवाई रकबे का अंतर काफी कम हो गया अगस्त-सितंबर में मानसूनी वर्षा में हुए सुधार से खरीफ फसलों खासकर के धान, दलहन और तिलहनों के बुवाई रकबे का अंतर काफी कम हो गया है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार जून-जुलाई के मुकाबले अगस्त-सितंबर महीने में बारिश में सुधार हुआ है। आईएमडी के अनुसार जून-जुलाई में देशभर में मानसूनी वर्षा सामान्य से 20 फीसदी कम थी जबकि इस समय यह अंतर घटकर केवल 8 फीसदी रह गया है। हालांकि मानसून में हुए सुधार के बावजूद भी चालू खरीफ में धान, मोटे अनाज, दलहन और तिलहनों की पैदावार पिछले साल की तुलना में कम रहेगी। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार खरीफ में धान की रोपाई 361.64 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 379.01 लाख हैक्टेयर में हुई थी। इसी तरह से तिलहनों की बुवाई 171.17 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। पिछले साल इस समय तक 176.97 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। खरीफ तिलहनों की प्रमुख फसलों में मूंगफली के बुवाई क्षेत्रफल में तो कमी आई है लेकिन सोयाबीन का बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ा है। चालू खरीफ में मूंगफली की बुवाई पिछले साल के 42.87 लाख हैक्टेयर से घटकर 38.11 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है। जबकि सोयाबीन की बुवाई पिछले साल के 103.23 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 107 लाख हैक्टेयर में हुई है। अक्टूबर महीने में उत्पादक मंडियों में नई सोयाबीन की आवक शुरू हो जाएगी जिससे मौजूदा कीमतों में गिरावट की संभावना है। कृषि मंत्रालय के अनुसार मोटे अनाज, गन्ने और जूट की बुवाई पूरी हो चुकी है। चालू खरीफ में अभी तक मोटे अनाजों की बुवाई 175.83 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 198.31 लाख हैक्टेयर में हुई थी। मोटे अनाजों में बाजरा, मक्का, रागी और ज्वार की बुवाई घटने से इनकी पैदावार में कमी आने की आशंका है। दालों की बुवाई भी चालू खरीफ में पिछले साल के 105.14 लाख हैक्टेयर की तुलना में 98.94 लाख हैक्टेयर में हुई है। कपास की बुवाई चालू खरीफ में 114.44 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 120.04 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी। गन्ना की बुवाई चालू खरीफ में पिछले साल के 50.63 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 52.88 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। जूट की बुवाई भी चालू खरीफ में 8.78 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 9.19 लाख हैक्टेयर में हुई थी। (Business Bhaskar...R S Rana)

अल्यूमीनियम में दीर्घावधि का निवेश देगा लाभ

मांग रहेगी मजबूत कैलेंडर वर्ष की चौथी तिमाही में अल्युमीनियम की सीजनल मांग बढऩे की है संभावना। अल्युमीनियम को स्टील के विकल्प के तौर पर भी देखा जा रहा है। अल्युमीनियम में निवेश के लिए निवेशकों को 115 रुपये के नीचे के स्तर पर सौदों की खरीद करनी चाहिए। क्योंकि लंबी अवधि के दौरान इसमें निवेश फायदेमंद हो सकता है। अभी एक साथ अधिक लॉट के सौदे न करें। अंतरराष्ट्रीय संकेतों से बेस मेटल्स की कीमतों में वृद्धि दर्ज की जा रही है। इसका असर घरेलू बाजार में अल्यूमीनियम के भावों पर भी देखने को मिल रहा है। हालांकि वैश्विक स्तर पर अल्यूमीनियम के उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्टील के विकल्प के तौर पर अल्यूमीनियम की बढ़ती संभावनाओं के कारण भविष्य में इसकी मांग बढऩे की संभावना है। इसलिए वायदा कारोबार में लंबी अवधि के लिए निवेशक अल्यूमीनियम में खरीद कर मुनाफा कमा सकते हैं। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज पर पिछले एक माह में अल्यूमीनियम के अक्टूबर वायदा अनुबंध में करीब 10 फीसदी की भारी तेजी दर्ज की गई है। 14 अगस्त को अल्यूमीनियम के अक्टूबर वायदा अनुबंध का भाव 105.75 रुपये प्रति किलो दर्ज किया गया था जो शुक्रवार को 116.05 रुपये प्रति किलो दर्ज किया गया। इस दौरान अल्यूमीनियम के हाजिर भावों में भी 16 फीसदी की भारी तेजी दर्ज की गई है। 14 अगस्त को घरेलू बाजार में अल्यूमीनियम का हाजिर भाव 101 रुपये प्रति किलो के स्तर पर दर्ज किया गया था जो शुक्रवार को 16 करीब 16 प्रतिशत की तेजी के साथ 117.05 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गया। कर्वी कॉमट्रेड के मेटल विश्लेषक सुमित मुखर्जी ने बताया कि चालू कलेंडर वर्ष की चौथी तिमाही में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अल्यूमीनियम की सीजनल मांग में भारी तेजी की संभावना को देखते हुए इसकी कीमतों में लगातार तेजी जारी रहने के संकेत हैं। उन्होंने बताया कि पिछले महीने यूरोपीय संघ ने वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए नए नियम बनाए हैं। इससे आगामी दिनों में वाहनों में स्टील के विकल्प के तौर पर अल्यूमीनियम की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। इससे मांग में बढ़ोतरी होने के कारण कीमतों में तेजी जारी रहने की संभावना है। लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में भी पिछले दस दिन में अल्यूमीनियम के भाव में 277 डॉलर प्रति टन की तेजी दर्ज की गई है। शुक्रवार को एलएमई पर अल्यूमीनियम की तीन माह की खरीद का माह 2177.25 डॉलर प्रति टन दर्ज किया गया। 3 सितंबर को एलएमई पर इसका भाव 1900.75 डॉलर प्रति टन दर्ज किया गया था। विश्लेषकों के मुताबिक साल की अंतिम तिमाही में अल्यूमीनियम की सीजनल मांग की वजह से कीमतों में तेजी जारी रहने की संभावना है। इस कारण निवेशकों के लिए एमसीएक्स पर लंबी अवधि के सौदों में निवेश फायदेमंद होगा। इंडियाबुल्स कमोडिटीज लिमिटेड के असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट (रिसर्च-कमोडिटीज) बदरुद्दीन का कहना है कि पिछले सप्ताह जर्मन कांस्टीट्यूशनल कोर्ट और फैडरल ओपन मार्केट कमेटी की पॉलिसी के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में अल्यूमीनियम के सौदे ऊंचे भावों पर किए गए। वैश्विक वित्तीय बाजारों के लिए पॉलिसी सकारात्मक होने की वजह से बेस मेटल्स की कीमतों में तेजी दर्ज की जा रही है। इसका असर घरेलू बाजार में भी बेस मेटल्स पर दर्ज किया जा रहा है। इसलिए अल्यूमीनियम के भाव में तेजी आई है। उन्होंने बताया कि आगामी कुछ समय के लिए बेस मेटल्स की कीमतों में सकारात्मक रुख रहने के संकेत मिल रहे हैं। विश्व की अनेक मिश्रित अर्थव्यवस्थाओं की ओर से स्टील की मांग में बढ़ोतरी और जिंक के सबसे बड़े सप्लायर चीन द्वारा उत्पादन में कटौती के प्रभाव से बेस मेटल्स की कीमतों में मजबूती रहने की संभावना है। इसका असर अल्यूमीनियम की कीमतों पर भी लगातार देखने को मिल सकेगा। मांग में बढ़ोतरी के संकेतों से अन्य बेस मेटल्स के साथ अल्यूमीनियम की कीमतों में तेजी जारी रहने की संभावना है। विश्लेषकों के मुताबिक फिलहाल अल्यूमीनियम में निवेश के लिए निवेशकों को 115 रुपये के नीचे के स्तर पर सौदों की खरीद करनी चाहिए। क्योंकि लंबी अवधि के दौरान अल्यूमीनियम में निवेश बेहद फायदेमंद हो सकता है। बेस मेटल्स की कीमतों में भारी तेजी की संभावना को देखते हुए भी अल्यूमीनियम में निवेश फायदेमंद होगा। हालांकि, निवेशकों को अल्यूमीनियम में स्केलिंग के आधार पर निवेश करना चाहिए। यानि एक साथ अधिक लॉट्स में सौदे नहीं करने चाहिए। क्योंकि अल्यूमीनियम के उत्पादन में बढ़ोतरी के संकेतों से बाजार अस्थिर भी हो सकता है। (Business Bhaskar)

सोने में चांदी से ज्यादा रिटर्न

वैश्विक अर्थव्यवस्था की धड़कन के साथ घटने-बढऩे वाले सोने की चमक चांदी से बेहतर रहने की संभावना दिखाई दे रही है। चांदी ने पिछले साल जोरदार रफ्तार से हर किसी को विस्मित कर दिया था लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात के चलते सोने में चांदी से ज्यादा तेजी की गुंजाइश है। विश्लेषकों का मानना है कि जब तक वैश्विक अर्थव्यवस्था डांवाडोल रहेगी, तब तक निवेशकों का रुझान सुरक्षित निवेश के लिए सोने की ओर रहेगा और इसमें तेजी आती रहेगी। शेअरखान कमोडिटीज के रिसर्च प्रमुख गौरव दुआ का कहना है कि चांदी के मुकाबले सोने में रिटर्न की बेहतर संभावनाएं होने की कई वजहें हैं। निवेशकों की पहली पसंद होने की मुख्य वजह सोने की कीमत ज्यादा होना ही है। एक लाख रुपये निवेश करने के लिए सिर्फ तीस ग्राम सोना खरीदना होगा जबकि चांदी करीब डेढ़ किलो खरीदनी होगी। मात्रा और वजन कम होने की वजह से सोने का लेनदेन और परिवहन काफी आसान है। दुआ का कहना है कि अमेरिका और यूरोप की आर्थिक स्थिति लगातार कमजोर बनी हुई है। ऐसे में निवेशकों का भरोसा करेंसी, इक्विटी, बांड और कमोडिटीज में कम हो रहा है। जोखिम से बचते हुए निवेश के लिए सोने के बेहतर कोई अन्य चीज नहीं है। यही वजह से सोने में तेजी आ रही है। सोने का पूरी दुनिया में किसी भी देश की करेंसी से कहीं ज्यादा भरोसेमंद अल्टीमेट एसेट के तौर पर देखा जाता है। जब तक दुनिया की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आएगी, तब तक सोने में बढ़ोतरी का रुख बना रहेगा। दूसरी ओर चांदी की बात करें, तो इसमें सोने जैसी खूबी नहीं है। इस वजह से चांदी में सोने से बेहतर रिटर्न मिलने की संभावना नहीं है। चांदी का औद्योगिक इस्तेमाल काफी ज्यादा होता है। चूंकि दुनिया में चांदी की सप्लाई पर्याप्त मात्रा में हो रही है जबकि इसकी औद्योगिक खपत अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर निर्भर करती है। अगर अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी है तो चांदी की औद्योगिक खपत सीमित ही रहेगी। कीमती धातुओं सोने और चांदी के बीच अनुपात इसके रिटर्न की रफ्तार को दर्शाता है। इस समय अंतरराष्ट्रीय मूल्य पर देखा जाए तो यह अनुपान करीब 52 का है। इसका आशय है कि अंतरराष्ट्रीय कीमत पर एक औंस सोना 1778 डॉलर में मिलेगा, जबकि इस कीमत में 52 औंस चांदी (34 डॉलर प्रति औंस की कीमत पर) खरीदी जा सकती है। पिछले साल सितंबर में यह अनुपात 45 पर था। इसका अनुपात 52 पर पहुंचने का आशय है कि चांदी के मुकाबले सोने की कीमत में ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। विश्लेषकों का अनुमान है कि यह अनुपात और बढ़ेगा क्योंकि सोने की कीमत और बढ़ सकती है। (Business Bhaskar)

सस्ता और सुरक्षित है सोने में इलेक्ट्रॉनिक निवेश

इलेक्ट्रॉनिक तरीके से निवेश के फायदे गोल्ड ईटीएफ को बिना किसी प्रीमियम का भुगतान किए प्रचलित बाजार कीमतों पर खरीदा जा सकता है गोल्ड ईटीएफ और ई-गोल्ड की डीमैट अकाउंट के जरिए सुविधाजनक तरीके से खरीद- बिक्री निवेशकों के सामने निवेश और सुरक्षा की कोई चिंता नहीं शेयरों की तरह ही गोल्ड ईटीएफ और ई-गोल्ड का कारोबार किया जा सकता है रीसेल की स्थिति में वैल्यू पूरी तरह से सुरक्षित होती है एक परिसंपत्ति वर्ग के रूप में सोना किसी भी निवेशक के पोर्टफोलियो में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह न केवल रिटर्न में स्थिरता बल्कि एक लंबे समय में अच्छी संपत्ति सृजित करने का मौका भी उपलब्ध कराता है। पिछले कुछ सालों में आपने देखा होगा कि रिटर्न के मामले में सोना शेयर मार्केट को भी टक्कर दे रहा है। हालांकि, यह रिटर्न सामयिक हो सकता है लेकिन एक बात तो सत्य है कि सका रिटर्न लगभग हमेशा ही महंगाई की तुलना में अधिक होता है। सोने में निवेश के तमाम विकल्प मौजूद हैं लेकिन किफायती विकल्पों में म्यूचुअल फंडों के गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड सेविंग फंड और एनएसईएल के ई-गोल्ड आदि शामिल हैं। संतुलित निवेश के लिए गोल्ड ईटीएफ या गोल्ड फंडों या ई-गोल्ड को अपने पोर्टफोलियो में शामिल करना निवेशकों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है। फाइनेंशियल प्लानर यह सलाह देते हैं कि निवेश पोर्टफोलियो में एक परिसंपत्ति वर्ग के तौर पर सोने की हिस्सेदारी पांच फीसदी तो होनी ही चाहिए। सोने में निवेश के किफायती विकल्प गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड सेविंग फंडों या ई-गोल्ड में निवेश कर आप सोना अभौतिक रुप में खरीदते हैं, इसमें भौतिक सोने में निवेश से जुड़ा जोखिम नहीं है। गोल्ड ईटीएफ और ई-गोल्ड चूंकि डीमैट रुप में होता है इसलिए जो निवेशक इसमें निवेश करना चाहते हैं उनका डीमैट खाता होना आवश्यक है। इसके विपरीत गोल्ड फंड, जो वास्तव में गोल्ड ईटीएफ में ही निवेश करते हैं, में निवेश के लिए डीमैट खाता होना जरूरी नहीं है। आम म्यूचुअल फंडों की तरह इनमें निवेश किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति गोल्ड ईटीएफ के यूनिटों की खरीदारी स्टॉक एक्सचेंज से कर सकता है। गोल्ड ईटीएफ ने पिछले एक साल में लगभग 14.44 प्रतिशत का औसत रिटर्न दिया है। समान अवधि में बीएसई के सेंसेक्स ने 9.44 प्रतिशत और एनएसई के निफ्टी ने 10.01 प्रतिशत का रिटर्न दिया है। जहां तक गोल्ड ईटीएफ में निवेश करने से पहले फंडों के एक्सपेंस रेशियो की तुलना कर लेनी चाहिए। जिस फंड का एक्सपेंस रेशियो कम हो उस गोल्ड ईटीएफ का चयन निवेश के लिए करना चाहिए। शादी-विवाह के लिए पहले से आभूषण खरीद कर रखने से बेहतर है कि आप गोल्ड ईटीएफ में निवेश करें। जब कभी आभूषण खरीदने की जरूरत हो तो इसके यूनिटों को बेच कर प्राप्त पैसों से नवीनतम डिजाइन वाले गहने खरीदे जा सकते हैं। ई-गोल्ड ई-गोल्ड सोने के निवेश का एक बेहतर जरिया है। हालांकि, यह अब तक निवेशकों में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाया है। नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) ने कई कमोडिटी में ई-सीरीज की शुरुआत की जिसमें ई-गोल्ड और ई- सिल्वर प्रमुख है। साल 2010 के मार्च से ई-गोल्ड में कारोबार की शुरुआत हुई। ई-गोल्ड के यूनिटों की खरीद-बिक्री शेयरों की तरह ही एनएसईएल से की जा सकती है। यहां ई-गोल्ड का एक यूनिट एक ग्राम सोने के बराबर होता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि आप इलेक्ट्रॉनिक तरीके से निवेश करते हुए भौतिक सोने की डिलिवरी ले सकते हैं। ई-गोल्ड में निवेश के लिए डीमैट खाता होना जरूरी है। डीमैट रूप में सोना खरीद कर आपको इसकी शुद्धता, सुरक्षा, रख-रखाव की लागत और इसके बीमा की चिंता नहीं करनी होती है। अगर कोई निवेशक ई-गोल्ड में निवेश कर उसकी भौतिक डिलिवरी नहीं लेना चाहता है तो वह जब चाहे ई-गोल्ड यूनिटों को बेच कर नकदी प्राप्त कर सकता है। ईटीएफ और ई-गोल्ड के तहत डिलिवरी सोने में दीर्घावधि के निवेश का यह भी एक सशक्त माध्यम है। इसकी लागत भी कम है। प्रति ग्राम 2-3 पैसे के एक बार ट्रांजेक्शन शुल्क के अलावा 0.2-0.3 प्रतिशत का ब्रोकरेज शुल्क देना होता है। ई-गोल्ड के अंतर्गत आप सोने के कम परिमाण जैसे 8-10 ग्राम की भौतिक डिलिवरी ले सकते हैं जबकि अगर ईटीएफ से भौतिक डिलिवरी के लिए कम से कम एक किलोग्राम सोना होना चाहिए। नेशनल स्पॉट एक्सचेंज के डिलिवरी सेंटर लगभग 13 शहरों में हैं। (Business Bhaskar)

सोने का भाव 33 हजार रुपये के निकट पहुंचा

सोने का भाव शुक्रवार को बढ़कर और ऊपर चला गया। विदेशी बाजार से तेजी के संकेत मिलने से घरेलू बाजार में भाव बढ़कर 33 हजार के नजदीक पहुंच गया। दिल्ली के सराफा बाजार में भाव 32,900 रुपये प्रति दस ग्राम पर दर्ज किया गया। फेडरल रिजर्व बैंक ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए तरलता बढ़ाने की घोषणा की है। इससे सोने के विदेशी मूल्य में तेजी दर्ज की गई। शुक्रवार को विदेशी बाजार में सोना 0.6 फीसदी बढ़कर 1778 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गया। पिछले फरवरी के बाद का यह सबसे ऊंचा स्तर था। इसके कारण घरेलू बाजार में सोना 310 रुपये बढकर 32,900 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया। दूसरी ओर घरेलू बाजार में चांदी 800 रुपये बढ़कर 62,000 रुपये प्रति किलो हो गई। कारोबारियों के अनुसार घरेलू बाजार में त्योहारी सीजन को देखते हुए स्टॉकिस्टों की खरीद बनी रही। इस वजह से भी बाजार में सोने की तेजी को बल मिला। (Dainik Bhaskar)

एफ़डीआई: ममता का अल्टीमेटम माया की धमकी

ख़ुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के मामले पर तृणमुल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और मनमोहन सिंह सरकार में फिर ठन गई है और ममता बनर्जी ने फैसले को वापस लेने के लिए 72 घंटे का समय दिया है. इसी तरह बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने भी कहा है कि वो सरकार के भविष्य पर 9 अक्टूबर को फैसला लेंगी. ममता बनर्जी डीज़ल के दामों में बढ़ोतरी और रसोई गैस के सिलेंडरों पर लगाई सीमा को लेकर भी नाराज़ हैं. समाचार एजेंसियों के मुताबिक़ तृणमुल कांग्रेस ने आगे का फैसला लेने के लिए पार्टी की संसदीय दल की बैठक 18 सितंबर को बुलाई है. पार्टी के महासचिव मुकुल राय के हवाले से कहा गया है कि अगर सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी तो तृणमुल इस मामले पर कड़ा रूख़ अपनाएगी. माया की मुहिम मायावती ने लखनऊ में पत्रकारों से बात करते हुए यूपीए सरकार के फैसलों को जनविरोधी करार दिया. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने इस मौके पर यह कहा कि 9 अक्टूबर को रैली के बाद वो राष्ट्रिय कार्यकारिणी की एक बैठक के बाद वो तय करेंगी की यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन जारी रखा जाए या नहीं. मायावती ने कहा कि यूपीए सरकार के दौर में प्रमोशन में आरक्षण का कानून लंबित पड़ा है. बसपा अध्यक्ष ने कहा कि उनकी पार्टी केवल मुद्दों के आधार पर यू पी ए को समर्थन दे रही है ताकी सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता से बाहर रखा जा सके. '.. फैसले की घड़ी' भारतीय समाचारपत्रों ने भी मनमोहन सिंह सरकार पर आए ताज़ा राजनीतिक संकट को काफी प्रमुखता दी है और इसे सरकार को दिए गए 'अल्टीमेटम' से लेकर 'ममता-मनमोहन में फैसले की घड़ी', क़रार दिया है. वामपंथी दल ने कहा है कि वो फैसले के विरोध में सड़कों पर उतरेगी, तो भारतीय जनता पार्टी ने इसे विदेशी तत्वों के दबाव में देश-विरोधी फैसला कहा है. अख़बारों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस बयान को भी काफ़ी तवज्जो दी गई है जिसमें उन्होंने कहा है कि वो लड़ते हुए जाएंगे. आर्थिक क्षेत्र के समाचारपत्र फाइनेनशियल एक्सप्रेस के संपादक एमके वेणु का कहना है कि सरकार इस फैसले से उस आरोप को ग़लत साबित करना चाहती है कि वो नीतियों को लेकर किसी तरह की गतिहीनता का शिकार है. सरकार की रणनीति आर्थिक जगत के समाचारपत्र और उद्योग और व्यापार समूह बार-बार इस बात को दुहराते रहे हैं कि सरकार नीतियों को लेकर बड़े फैसले नहीं ले रही है जिससे आर्थिक उदारीकरण का काम ठप्प सा पड़ गया है. विदेशी समाचारपत्रों में भी इस बात को लेकर प्रधानमंत्री को निशाना बनाया गया था और उन्हें 'अन्डरअचीवर' यानी आशा से कम सफलता पाने वाला प्रधानमंत्री बताया गया था. एमके वेणु ये भी कहते हैं कि सरकार बड़े नीतिगत फैसले लेकर लोगों का ध्यान उन मुद्दों से हटाना चाहती है जिसमें वो दिन-ब-दिन ज्यादा से ज्यादा घिरती नज़र आ रही है. संसद का मानसून सत्र कोयला खदान आवंटन पर सरकार और विपक्ष के बीच जारी रस्साकशी के कारण चल ही नहीं सका. साथ ही इन मामलों में मनमोहन सिंह सरकार के मंत्रियों और कांग्रेस नेताओं के नाम भी सामने आ रहे हैं जिससे सरकार को नित नई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन जानकारों का मानना है कि मनमोहन सिंह सरकार के फै़सलों से कहीं उसकी पुरानी दिक्कतें समाप्त होने की जगह नई न शुरू हो जाएं. (BBC Hindi)

बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत प्रतिशत विदेशी निवेश (एफडीआई) को मंजूरी

केंद्र सरकार ने बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश (एफडीआई) को 14 सितंबर 2012 को मंजूरी दी. साथ ही केंद्र सरकार ने वैश्विक खुदरा कंपनियों को दुकान खोलने की अनुमति देने का काम राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने एकल ब्रांड खुदरा कारोबार में 50 प्रतिशत से अधिक विदेशी निवेश पर स्थानीय फर्मों से सामान खरीदने के नियम में भी बदलाव किया. मौजूदा नियम के अनुसार कोई कंपनी अगर स्थानीय उद्योगों से 30 प्रतिशत सामान खरीदने की अनिवार्यता से छूट चाहती है तो उन्हें भारत में विनिर्माण संयंत्र लगाना होगा. विदित हो कि नवंबर 2011 में सरकार ने बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी थी, लेकिन संप्रग सहयोगी तृणमूल कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के विरोध के बाद इस निर्णय को स्थगित कर दिया गया था. रिटेल एफडीआई की मंजूरी से इंडस्ट्री खुश कैबिनेट ने मल्टीब्रैंड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दे दी है। सरकार का कहना है कि एफडीआई को लागू करना या ना करना राज्य सरकारों पर निर्भर करेगा। आनंद शर्मा का कहना है कि जो राज्य कृषि पर ज्यादा निर्भर हैं, वो एफडीआई के पक्ष में हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य एफडीआई का विरोध कर रहे हैं। मल्टीब्रैंड रिटेल एफडीआई नियमों के तहत 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में ही स्टोर शुरू करने की इजाजत होगी। कंपनियों को निवेश का 50 फीसदी हिस्सा बैक एंड इंफ्रास्ट्रक्चर में लगाना जरूरी होगा। मल्टीब्रैंड रिटेल में आने वाली विदेशी कंपनियों को कम से कम 10 करोड़ डॉलर पूंजी लगानी होगी, जिसमें से 50 फीसदी हिस्सा ग्रामीण इलाकों में निवेश किया जाएगा। मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई को मंजूरी मिलने से पैंटालून रिटेल, ट्रेंट, शॉपर्स स्टॉप जैसी कंपनियों को फायदा होगा। फिक्की का कहना है कि इस फैसले के लिए 3 साल से इंतजार किया जा रहा था और उम्मीद है कि आगे कोई अड़चने नहीं आएंगी। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा है कि आम सहमति से सारे फैसले लिए गए हैं और इन्हें वापस लेने का कोई इरादा नहीं है। देश की अर्थव्यवस्था दबाव में है और तेल के लिए ज्यादा कीमत देनी पड़ रही है। देश का व्यापार घाटा भी बढ़ रहा है ऐसे में ये फैसले बेहद जरूरी थे। लिहाजा सरकार के फैसलों पर राजनीति करने का समय नहीं है। राजनीतिक दलों को समस्याओं का हल बताना चाहिए ना कि फैसलों का विरोध करना चाहिए। आनंद शर्मा का कहना है कि ममता बनर्जी के दृष्टिकोण का सम्मान करते हैं, लेकिन सरकार ने मजबूरी में डीजल के दाम बढ़ाएं हैं। साथ ही जो दूसरे फैसले लिए गए हैं वो देशहित में लिए गए हैं। मल्टीब्रैंड रिटेल के फैसले से किसानों को जरूर फायदा होगा। वहीं मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों के लिए लागू किया गया है। सरकार की इन सभी फैसलों पर सर्वसम्मति की बजाए आम सहमति बनाने की कोशिश रहेगी क्योंकि कुछ लोग विरोध में ही रहेंगे। सरकार के फैसले से इंडस्ट्री काफी खुश है। सीआईआई के प्रेसिडेंट अदि गोदरेज के मुताबिक सरकार अगर और अहम फैसले ले तो, साल के अंत तक 8-9 फीसदी ग्रोथ रेट पाई जा सकती है। उधर महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने ट्वीट किया है। उन्होंने कहा कि सुधारों के सूखे से हम दावत में आ गए हैं। सरकार ने अपना हौसला पा लिया है और हमारी विनती है कि वो इस रास्ते पर बनी रहे। मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई को मंजूरी देने के फैसले से विदेशी रिटेल कंपनियां बहुत खुश हैं। वॉलमार्ट इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर राज जैन का मानना है कि इससे रिटेलर को तो फायदा होगा ही, साथ ही पूरी इकोनॉमी को मजबूती मिलेगी। घरेलू रिटेल कंपनियों और जानकारों का भी मानना है कि इस फैसले के बाद धीरे-धीरे रिटेल सेक्टर में निवेश को बढ़ावा मिलेगा। भारती एंटरप्राइजेज के वाइस चेयरमैन राजन मित्तल का कहना है कि रिटेल में एफडीआई से सभी को फायदा होगा। रिटेल में एफडीआई से भारत में टेक्नोलॉजी और निवेश बढ़ेगा। रिटेल में एफडीआई से सप्लाई चेन सुधरेगी, किसानों को फायदा होगा और लोगों को रोजगार मिलेगा। मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई को मंजूरी मिलने से रिटेल सेक्टर से जुड़े लोग बहुत खुश हैं। उनका मानना है कि इससे धीरे-धीरे इस सेक्टर में निवेश को बढ़ावा मिलेगा। शॉपर्स स्टॉप के मैनेजिंग डायरेक्टर गोविंद श्रीखंडे ने कहा है कि सरकार ने हिम्मत करके आखिर मल्टीब्रैंड में एफडीआई को मंजूरी दे ही दी। उनके मुताबिक एकदम से नहीं लेकिन धीरे-धीरे इस सेक्टर में निवेश को बढ़ावा मिलेगा। नेशनल कमेटी ऑन मार्केटिंग के चेयरमैन थॉमस वर्गीज ने मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई को मंजूरी को बड़ा फैसला बताया है। और कहा कि इससे इंडस्ट्री के साथ किसानों को भी बेहतर कीमत मिल पाएंगे और साथ ही रोजगार के ढ़ेरों मौके होंगे। टेक्नोपैक एडवाइजर्स के अरविंद सिंघल ने कहा है कि मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई सहित कई बड़े फैसलों से विदेशी निवेशकों का सरकार पर भरोसा बढ़ेगा। और विदेशी निवेशक इसे काफी पॉजिटिव लेंगे, और आने वाले दिनों में बड़े विदेशी निवेश देखने को मिल सकते हैं। बिड़ला ग्रुप के कुमार मंगलम बिड़ला के मुताबिक सरकार का कदम काफी अच्छा है। रिटेल में एफडीआई खुलने से विदेशी कंपनियों का सेक्टर में रुझान बढ़ेगा। भारती ग्रुप के चेयरमैन सुनील भारती मित्तल ने कहा है कि सरकार ने दिखा दिया है कि उसके एजेंडे में रिफॉर्म अब पीछे नहीं है। इससे देश में निवेश का माहौल सुधरेगा। टीवीएस मोटर के वेणु श्रीनिवासन का मानना है कि आनंद शर्मा और पी चिदंबरम रिफॉर्म के नए चेहरे बनकर उभरे हैं। रिटेल में एफडीआई से ही किसानों को फसल की सही कीमत मिलेगी। यही नहीं उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि सरकार इन फैसलों को वापस नहीं लेगी। (Moneycantrol.com)

14 सितंबर 2012

डीजल पर उफना देश, विपक्ष का प्रदर्शन, सहयोगी भी नाराज

भारतीय जनता पार्टी [भाजपा] ने आरोप लगाया कि देश के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश को कंगाल बना देने के बाद अब डीजल के पांच रुपए प्रति लीटर दाम बढ़ा कर आम आदमियों पर वित्तीय आतंकवाद थोप दिया है। साथ ही रसोई गैस सिलंडर की राशनिंग करके इसकी कालाबाजारी को वैध बना दिया है। प्रधानमंत्री के प्रति अपने तेवर लगातार कड़े करते जा रहे मुख्य विपक्षी दल ने कहा कि आखिर कब तक ऐसे प्रधानमंत्री और उसकी सरकार को बर्दाश्त किया जाए जो पूर्णत: विफल साबित हो चुकी है। पार्टी प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने देश के सकल घरेलू उत्पाद की रफ्तार को नौ प्रतिशत की दर से दौड़ाने का दावा किया था। लेकिन वह गति 5.5 प्रतिशत पर औंधे मुंह गिर चुकी है। यानी देश के खजाने में चार प्रतिशत की कटौती हो गई है जिसकी भरपाई के लिए वह अब डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ा कर और रसोई गैस की राशनिंग के जरिए आम आदमी से वसूली कर रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, महासचिव राहुल गांधी, तृणमूल नेता ममता बनर्जी, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव सहित संप्रग के सभी घटक दलों से सीधा सवाल किया कि क्या वे डीजल के दाम में वृद्धि और रसोई गैस की राशनिंग के मनमोहन सिंह सरकार के फैसले के साथ है या उसके खिलाफ? मुख्य विपक्षी दल ने कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम में 1.76 लाख करोड़ रुपयों और अब कोयला ब्लाक आवंटन मामले में उससे भी कहीं अधिक रकम के कथित भ्रष्टाचार का इतिहास बना चुकी इस सरकार को वह और बर्दाश्त नहीं करेगी। पार्टी के कोर ग्रुप की गुरुवार शाम हुई बैठक में इस सरकार के खिलाफ शनिवार से नौ दिवसीय देशव्यापी आंदोलन छेड़ने का निर्णय किया गया है। संप्रग के सहयोगी दलों और विपक्षी पार्टियों ने डीजल मूल्यवृद्धि को तत्काल वापस लेने की जोरदार मांग करते हुए इसके खिलाफ सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी है, जबकि समाजवादी पार्टी ने कहा है कि वह कड़ा कदम उठाने में संकोच नहीं करेगी। कांग्रेस ने जहां एक ओर सरकार के निर्णय को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में अचानक आयी बढ़ोतरी के चलते मजबूरी में उठाया गया कदम करार दिया, वहीं कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री ने इसमें आंशिक कमी करने की मांग की। संप्रग सहयोगी तृणमूल कांग्रेस ने डीजल मूल्यवद्धि और रसोई गैस सिलेंडरों की राशनिंग का विरोध किया है तथा तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने मूल्यवद्धि वापस लेने की मांग को लेकर शनिवार को कोलकाता में एक रैली का नेतृत्व करेंगी। संप्रग के एक अन्य सहयोगी द्रमुक ने मूल्यवद्धि को अत्यधिक और अप्रत्याशित करार देते हुए उसे वापस लेने की मांग की। डीजल की कीमतों में भारी वृद्घि और रसोई गैस के राशनिंग के फैसले के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन का सिलसिला जारी है। जबकि सरकार इसे मजबूरी में उठाया कदम बता रही है। उत्तर प्रदेश केंद्र सरकार द्वारा की गई डीजल की कीमतों में वृद्घि के खिलाफ उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) के कार्यकर्ताओं ने अलग-अलग शहरों में शुक्रवार को प्रदर्शन कर अपना विरोध दर्ज किया। सपाईयों ने बुलंदशहर और वाराणसी में रेलगाड़ियां रोकीं। डीजल की कीमतों में वृद्घि और रसोई गैस की उपलब्धता को लेकर केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इलाहाबाद, कानपुर, आगरा, वाराणसी, बुलंदशहर, गोरखपुर और मेरठ में प्रदर्शन किया। केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए सपाईयों ने केंद्र सरकार का पुतला फूंका। प्रदर्शन में समाजवादी पार्टी की युवा इकाई समाजवादी युवजन सभा के कार्यकर्ता भी शामिल थे। डीजल की कीमतों में वृद्घि और रसोई गैस की उपलब्धता को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं ने राज्य के अलग-अलग शहरों में शुक्रवार को जोरदार प्रदर्शन किया। केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ताओं ने इलाहाबाद, लखनऊ, कानपुर, आगरा, वाराणसी और शाहजहांपुर में प्रदर्शन कर केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। कार्यकर्ताओं की अगुवाई अलग-अलग जगहों पर प्रदेश ईकाई के वरिष्ठ नेताओं ने की। इस दौरान कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी का पुतला फूंककर अपना विरोध दर्ज कराया। राजधानी में जहां सांसद लालजी टंडन के नेतृत्व में लोगों ने प्रदर्शन किया, वहीं कानपुर में प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री तथा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने भी डीजल के दामों में भारी वृद्धि और उपभोक्ताओं को साल में रसोई गैस सिलिंडर देने की संख्या सीमित किये जाने का कड़ा विरोध करते हुए इसे वापस लेने की मांग की और कहा कि केन्द्र की संप्रग सरकार आम जनता की निगाह में दुखदायी सरकार बन गयी है। उन्होंने कहा कि रसोई गैस पर कोटा व्यवस्था लागू कर प्रत्येक घर में सालाना छह सिलिंडर ही देने की सीमा तय करने से ऐसा लगता है कि केन्द्र सरकार देश की घरेलू व्यवस्था को फिर से पुराने युग में ले जाना चाहती है। देश के लिये यह अशुभ और शर्म की बात होगी। बिहार उधर बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डीजल की कीमतों में बढो़तरी और रसोई गैस के कोटा व्यवस्था को महंगाई की मार क्षेल रही जनता के साथ क्रूर मजाक बताया है। मुख्यमंत्री ने केंद्र की संप्रग सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि केंद्र कीमतों को अविलंब वापस ले। उन्होंने कहा कि डीजल महंगा होने से किसानों पर अतिरिक्त मार पड़ेगी और कृषि कार्य महंगा होगा। डीजल की कीमतों में बढो़तरी के कारण अनाजों की कीमत और माल भाड़े में बढो़तरी होगी और महंगाई फिर चरम सीमा पर पहुंचेगी। केंद्र सरकार के सहयोगी दल राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने भी डीजल की कीमत में बढो़तरी और रसोई गैस का कोटा निर्धारित किये जाने पर केंद्र सरकार की आलोचना की। लालू ने कहा कि डीजल की कीमतों में बढो़तरी और रसोई गैस की कीमत बढा़ना दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय है। शासक वर्ग को जनता का ख्याल रखना चाहिए। इस फैसले से कृषि की लागत और महंगाई दोनों बढे़गी। सरकार को अपने फैसले पर विचार करना चाहिए। राज्य के सत्ताधारी दलों भाजपा और जदयू ने अलग अलग विरोध प्रदर्शन करते हुये रैलियां निकाली और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का पुतला फूंका। मध्य प्रदेश डीजल की कीमत बढ़ाने और रसोई गैस की राशनिंग किए जाने को लेकर मध्य प्रदेश में भी नाराजगी है। भारतीय जनता पार्टी केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतर आई है। इंदौर में तो भाजपा महिला मोर्चा ने सड़क पर रोटी पका कर अनोखा प्रदर्शन किया है। महिला मोर्चा ने सड़क पर चूल्हा जलाकर रोटियां सेकी। साथ ही अचार रोटी भी खाने को बांटी और कहा कि महंगाई के चलते आने वाले दिनो में आम आदमी का भोजन भी यही होने वाला है। नई दिल्ली भाजपा कार्यालय से पार्टी कार्यकर्ताओं की एक विरोध प्रदर्शन रैली पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठाकुर के नेतृत्व में निकली। पार्टी कार्यकर्ताओं ने राजधानी में व्यस्त डाक बंगला चौराहे पर प्रधानमंत्री का पुतला फूंका। उधर डीजल की कीमतों में बढो़त्तरी को जनता के साथ भारी धोखा करार देते हुए मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने इस फैसले के बहाने तृणमूल कांग्रेस पर निशाना साधने का प्रयास किया और आरोप लगाया कि तृणमूल का यह कहना पाखंड है कि उससे विचार-विमर्श नहीं किया गया। पार्टी पोलित ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने कहा कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस आलोचना से बचने के लिए कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति [सीसीपीए] की बैठक में अपने मंत्री मुकुल रॉय की अनुपस्थिति का बहाना बना रही है। इसी बैठक में डीजल की कीमतों में बढोत्तरी का फैसला किया गया। ओडिशा ओडिशा भी में गैर कांग्रेसी दलों ने डीजल मूल्य वृद्धि एवं सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या सीमित करने के केंद्र सरकार के फैसले के विरोध में को प्रदर्शन किया। राजधानी भुवनेश्वर में सत्तारुढ़ बीजू जनता दल (बीजद) के कार्यकर्ताओं ने केंद्र सरकार के खिलाफ जुलूस निकाला और इस फैसले को तुरंत वापस लेने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी का पुतला भी फूंका। बीजद के उपाध्यक्ष दामोदर राउत ने कहा कि डीजल मूल्य में वृद्धि होने से आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि का सामना कर रहे आम आदमी का जीवन और कठिन हो जाएगा। उन्होंने कहा कि हम इस निर्णय को तुरंत वापस लेने की मांग करते हैं। वाम एवं भारतीय जनता पार्टी ने भी भुवनेश्वर एवं कटक में मूल्य वृद्धि के विरोध में अलग-अलग प्रदर्शन किया। केरल केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कहा कि केंद्र को डीजल के दामों में वृद्धि करने से बचना चाहिए। उन्होंने डीजल के दामों में की गई वृद्धि को आंशिक रूप से वापस लेने की मांग भी की है। कांग्रेस नेता और राज्य की यूडीएफ सरकार की अगुवाई कर रहे चांडी ने यहां कहा मूल्य वृद्धि को पूरी तरह वापस लिया जाना तो मुश्किल है, लेकिन केंद्र को चाहिए कि वह इसे आंशिक रूप से वापस ले ले। उधर कांग्रेस ने कहा है कि डीजल की कीमतों में बढो़तरी करने का फैसला मजबूरी में उठाया गया कदम है। डीजल की कीमतों में शाम पांच रुपए प्रति लीटर की बढो़तरी किए जाने के बाद कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि यह फैसला बहुत मजबूरी में किया गया है। अल्वी ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में बढो़तरी को देखते हुए घरेलू तेल कंपनियों की वित्तीय स्थिति पर बुरा असर पड़ रहा था। उन्होंने कहा कि सरकार ने मजबूरन दाम बढा़ए हैं। उन्होंने कहा कि जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतों में नरमी आएगी तो सरकार भी उपभोक्ताओं को राहत पहुंचाने में देर नहीं करेगी। (Live.Hindustan.com)

सोना 33 हजार के करीब पहुंचा

फेडरल रिजर्व की घोषणा के साथ ही विदेशी बाजारों में आई चौतरफा तेजी के बीच दिल्ली सर्राफा बाजार में भी शुक्रवार को सोना 32900 रुपए के नए रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया। जबकि चांदी भी 800 रुपए प्रति किलो की बढ़त लेने में कामयाब रही। स्थानीय सर्राफा बाजार में सोना 310 रुपए प्रति दस ग्राम की बढ़त के साथ 32900 रुपए प्रति दस ग्राम के भाव पर पहुंच गया। यह सोने का अब तक का उच्चतम स्तर है और इसने दो दिन पहले ही हासिल 32600 रुपए प्रति प्रति दस ग्राम के स्तर को काफी पीछे छोड़ दिया है। चांदी 800 रुपए की तेजी के साथ 62000 रुपए प्रति किलो के भाव पर दर्ज की गई। इस तरह इसने गत सोमवार को ही हासिल पिछले एक साल के अपने उच्चतम स्तर की बराबरी कर ली। इस चौतरफा तेजी के बीच गिन्नी और चांदी सिक्का भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने में सफल रहे। (Navbhart)

सोना 33 हजार के करीब पहुंचा, चांदी भी हुई महंगी

नई दिल्ली। फेडरल रिजर्व की घोषणा के साथ ही विदेशी बाजारों में आई चौतरफा तेजी के बीच दिल्ली सर्राफा बाजार में भी शुक्रवार को सोना 32900 रूपए के नए रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया जबकि चांदी भी 800 रूपए प्रति किलो की बढ़त लेने में कामयाब रही। स्थानीय सर्राफा बाजार में सोना 310 रूपए प्रति दस ग्राम की बढ़त के साथ 32900 रूपए प्रति दस ग्राम के भाव पर पहुंच गया। यह सोने का अब तक का उच्चतम स्तर है और इसने दो दिन पहले ही हासिल 32600 रूपए प्रति प्रति दस ग्राम के स्तर को काफी पीछे छोड़ दिया है। चांदी 800 रूपए की तेजी के साथ 62000 रूपए प्रति किलो के भाव पर दर्ज की गई। इस तरह इसने गत सोमवार को ही हासिल पिछले एक साल के अपने उच्चतम स्तर की बराबरी कर ली। इस चौतरफा तेजी के बीच गिन्नी और चांदी सिक्का भी रिकार्ड स्तर पर पहुंचने में सफल रहे। (IBN-7)

किराना में विदेशी निवेश को मिली मंजूरी

नई दिल्ली: भारत सरकार की आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने शुक्रवार को लंबे इंतज़ार के बाद किराना और एविएशन में विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी. कैबिनेट कमेटी ने किराना के मल्टी ब्रांड में 51 फीसदी और एविएशन सेक्टर में 49 फीसदी विदेशी निवेश को मंजूरी दी. जबकि रिटेल के सिंगल ब्रांड में 100 फीसदी एफडीआई की मंजूरी दी गई. सरकार ने इसके अलावा केबल और डीटीएच में भी 74 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दी. किराना में एफडीआई को मंजूर देते हुए सरकार ने यह शर्त रखी है कि विदेशी कंपनियों को 30 फीसदी सामना भारत से ही खरीदने पड़ेंगे. इस फैसले से वालमार्ट जैसी वैश्विक रिटेल कम्पनियों को भारत में अपना कारोबार फैलाने का अवसर हासिल होगा. कई वैश्विक कम्पनियों के भारत में पहले से स्टोर हैं, लेकिन उन्हें सीधे आम लोगों को उत्पाद बेचने का अधिकार अब तक नहीं था. वे छोटे स्टोरों को माल बेच सकते थे. अब वे आम लोगों को भी माल बेच पाएंगे. सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी और केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में लिए गए फैसलों की घोषणा की. शर्मा ने बताया कि एकल ब्रांड रिटेल में 100 फीसदी और बहुब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दी गई है. इस फैसले पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, "बड़े आर्थिक सुधारों का वक्त आ गया है." सरकार ने अपने फैसले में विरोधियों की राय को भी ध्यान में रखा है और राज्य सरकारों को अधिकार दिया है कि वे अपनी भूमि पर बहुब्रांड रिटेल को अनुमति देने के बारे में फैसला ले सकते हैं. ग़ौरतलब है कि बीजेपी, एसपी और टीएमसी सहित वामपंथी दल भी इसका जबरदस्त विरोध कर रहे हैं. कई राज्य सरकारें भी इसका विरोध कर रही हैं. पिछले साल भी सरकार ने किराना के मल्टी ब्रांड में 51 फीसदी एफडीआई को मंज़री दी थी, लेकिन विपक्ष और कुछ सहयोगी दलों के विरोध के कारण उसे अपने फैसले को 24 नवंबर 2011 को वापस लेना पड़ा था. सरकार के ताज़ा फैसले से किराना क्षेत्र में दुनिया की बड़ी कंपनियां भारत में अपना स्टोर खोल सकेंगी और इस तरह किराना में मल्टी ब्रांड की नामी कंपनी वॉलमार्ट के लिए अब भारत के दरवाज़े खुल गए हैं और वे 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में अपना स्टोर खोलने के लिए स्वतंत्र होंगीं. (ABP News)

मल्टी ब्रैंड रीटेल में FDI को कैबिनेट की मंजूरी

नई दिल्ली।। डीजल के दामों में भारी बढ़ोतरी करने के बाद अब सरकार ने मल्टी ब्रैंड रीटेल में एफडीआई का रास्ता साफ कर दिया है। आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने शुक्रवार को कुछ शर्तों के साथ मल्टी ब्रैंड रीटेल में 51 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दे दी। सरकार ने कहा है कि यह राज्य सरकारों पर निर्भर करेगा कि वे अपने यहां इसे लागू करते हैं या नहीं। सरकार ने एविएशन सेक्टर में भी 49 फीसदी एफडीआई की मंजूरी दे दी है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा, 'शुक्रवार को आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने मल्टी ब्रैंड रीटेल सेक्टर में कुछ शर्तों के साथ एफडीआई को मंजूरी दे दी है।' उन्होंने कहा कि पहले सामान विदेशों में बनते और यहां पर बेचे जाते थे लेकिन अब विदेशी कंपनियों को देश में ही सामान बनाना पड़ेगा और उन्हें 30 फीसदी खरीदारी भी यहीं करनी पड़ेगी। उन्होंने बताया कि सरकार ने सिंगल ब्रैंड रीटेल में 100 फीसदी एफडीआई को भी हरी झंडी दे दी है। शर्मा ने कहा, 'कमिटी ने केबल और डीटीएच सेक्टर में भी एफडीआई बढ़ाने पर सहमति दे दी है।' उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से देश में लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर मिलेंगे और किसानों को फायदा होगा। जानकारों का मानना है कि सरकार के इस फैसले से रीटेल सेक्टर का चेहरा बदल जाएगा और इससे महंगाई पर काबू पाया जा सकेगा। सबसे अहम बात यह है कि सरकार के इस फैसले को संसद से पास कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यूपीए के सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। इसी बीच प्रधानमंत्री ने कहा है कि सुधारों का वक्त आ गया है और अब उनके सामने करो या मरो की स्थिति है। यही नहीं, सरकार ने कहा है कि विनिवेश से वह 15 हजार करोड़ रुपये जुटाएगी। कैबिनेट के इस फैसले के बाद विदेशी कंपनियां भारत के मल्टी ब्रैंड रीटेल में 51 फीसदी की हिस्सेदारी कर सकेंगी। याद होगा, सरकार ने पिछले साल मल्टी ब्रैंड रिटेल में 51 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी थी, लेकिन सहयोगी दलों, विपक्षी पार्टियों और रीटेल कारोबारियों के विरोध के बाद इसे टाल दिया था। (Navbharat)

काजू प्रसंस्करण इकाइयों के लिए ज्यादा रकम की मांग

वाणिज्य मंत्रालय की इकाई काजू निर्यात प्रोत्साहन परिषद (सीईपीसीआई) ने 12वीं योजना के दौरान काजू प्रसंस्करण इकाइयों के आधुनिकीकरण के लिए आवंटन में कई गुणा बढ़ोतरी की मांग की है। वाणिज्य मंत्रालय को भेजे प्रस्ताव में सीईपीसीआई ने 100 करोड़ रुपये की मांग की है जबकि 11वीं योजना के दौरान उद्योग के आधुनिकीकरण के लिए महज 9 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। फिलहाल इस प्रस्ताव पर केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार है। 11वीं योजना की अवधि में सीईपीसीआई ने आधुनिकीकरण व विशाखन योजना लागू की थी और इसके तहत सदस्य निर्यातकों को अपने प्रसंस्करण व विनिर्माण इकाइयों के उन्नयन व सुधार के लिए वित्तीय सहायता दी गई थी। सीईपीसीआई के चेयरमैन हरि कृष्णन आर नायर ने कहा, 12वीं योजना के दौरान काजू प्रसंस्करण इकाइयों के आधुनिकीकरण, गुणवत्ता के उन्नयन, खाद्य सुरक्षा प्रमाणन और विदेश में भारतीय काजू के प्रमोशन से संबंधित प्रस्ताव हमने सौंप दिया है। सीईपीसीआई की 57वीं सालाना आम बैठक में उन्होंने कहा कि विदेशी प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए काजू प्रसंस्करण क्षेत्र का आधुनिकीकरण अनिवार्य है। परिषद ने सरकार से अनुरोध किया है कि वह काजू को न्यू स्टेटस होल्डर्स इन्सेंटिव स्क्रिप (एसएचआईएस) योजना के योग्य वस्तुओं की सूची में शामिल करे ताकि यह प्रतिस्पर्धा में टिक सके। उन्होंने कहा, नई योजना में गहन श्रम वाले क्षेत्र के स्टेटस होल्डर्स तकनीकी उन्नयन की खातिर पूंजीगत सामानों के आयात के लिए इस स्क्रिप का इस्तेमाल करने के योग्य हैं। काजू भी ऐसा क्षेत्र है, जहां गहन श्रम की दरकार होती है। उन्होंने कहा कि वियतनाम व ब्राजील जैसे काजू उत्पादक देशों ने सरकारी सहायता से अपने उद्योग का आधुनिकीकरण किया है। साल 2011-12 में हुए निर्यात को संदर्भित करते हुए उन्होंने कहा कि काजू कर्नेल और इसके विभिन्न उत्पादों के निर्यात से देश ने 9280 लाख डॉलर यानी 4450 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित की है। देश से 1,31,760 टन काजू कर्नेल का निर्यात हुआ और इसकी कुल कीमत 4390.68 करोड़ रुपये रही। मात्रा और कीमत के लिहाज यह अब तक का रिकॉर्ड है। साल 2010-11 के मुकाबले काजू कर्नेल के निर्यात में 24.59 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अमेरिकी क्षेत्र को 37 फीसदी, यूरोपीय क्षेत्र को 27 फीसदी, पश्चिम एशिया व अफ्रीका को 23 फीसदी, दक्षिण पूर्वी व पूर्वी एशिया को 12 फीसदी काजू का निर्यात हुआ है। भारतीय काजू कर्नेल के प्रमुख खरीदार हैं अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, नीदरलैंड और जापान आदि। कच्चे काजू के उत्पादन के बारे में नायर ने कहा कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इसकी उत्पादकता में तीव्र बढ़ोतरी हुई है। हालांकि कर्नाटक, ओडिशा और गोवा में यह घट रहा है या फिर स्थिर है। नायर ने कहा कि राज्य बागवानी विभाग राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत उपलब्ध संशाधनों का इस्तेमाल करे और काजू की खेती में महाराष्ट्र में मिली सफलता का दोहराव इन राज्यों में करे। काजू निदेशालय के अनुमान के मुताबिक, महाराष्ट्र में 2.23 लाख टन कच्चे काजू का उत्पादन हुआ जबकि आंध्र प्रदेश में 1.10 लाख टन, ओडिशा में 97,000 टन, केरल में 73,000 टन और तमिलनाडु में 68,000 टन कच्चे काजू का उत्पादन हुआ। देश का उत्पादन 6.92 लाख टन रहा जबकि 2010-11 में 6.53 लाख टन काजू का उत्पादन हुआ था। इस तरह उत्पादन में 6 फीसदी की उछाल आई। (BS Hindi)

खुद प्याज बेच सकेंगे निर्यातक

सरकारी एजेंसी को सौंपे बिना प्याज निर्यातकों को इसके निर्यात की अनुमति मिल सकती है। देश से प्याज निर्यात को मुक्त करने के कदम के तहत विदेश व्यापार महानिदेशालय इसे मुक्त कर सकता है। मौजूदा समय में प्याज निर्यातकों की खेपों का विनियमन स्टेट ट्रेडिंग एजेंसी करती है। ऐसा तब हो रहा है जब प्याज निर्यात को ओपन जनरल लाइसेंस के तहत रखा गया है और सरकार ने न्यूनतम निर्यात कीमत की सीमा हटा दी है। सूत्रों ने कहा, सरकारी एजेंसियों के बिना निर्यातक अब सीधे प्याज की खेप विदेश भेज सकेंगे और डीजीएफटी के सामने कागजात पेश कर सकेंगे। इस प्रगति से जुड़े सूत्रों ने कहा, इस साल अब तक करीब 8 लाख टन प्याज का निर्यात हुआ है। मॉनसून में सुधार के बाद प्याज की फसल मेंं सुधार की उम्मीद बढ़ी है और ऐसे वक्त में देश के विभिन्न भंडार गृहों में भंडारित प्याज के सडऩे की संभावना भी बढ़ गई है। सूत्रों ने कहा कि इतना ज्यादा प्याज देशी बाजार में नहीं उतारा जा सकता क्योंकि लागत के हिसाब से यह लाभकारी नहीं होगा। अगस्त के आखिर से भंडार गृहों से आवक के चलते थोक बाजार में प्याज की कीमतें घट रही हैं। प्याज का भंडारण करने वाले कारोबारी व किसान इसके सडऩे के डर से प्याज बेचने की जल्दी में हैं। इसके साथ ही प्याज की ताजा फसल की आवक आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में शुरू हो गई है। दूसरी ओर, सूत्रों ने कहा कि निर्यातकों की शिकायत है कि प्याज निर्यात के लिए नियुक्त स्टेट ट्रेडिंग एजेंसी प्रक्रियागत देरी कर रही है और इस वजह से लेन-देन की लागत बढ़ रही है। एक कारोबारी ने कहा, प्याज निर्यात की तत्काल जरूरत है क्योंकि वैश्विक बाजार में इसकी कीमतें अपेक्षाकृत कम हैं और देसी बाजार में भी कीमतें नीचे आ रही हैं। इसके अलावा भंडारित प्याज के नष्ट होने का भी डर है। ऐसे में प्याज की ताजा आवक से पहले भंडारित प्याज का एक हिस्सा बाजार में उतारना बेहतर रहेगा। इस साल मई में सरकार ने प्याज से न्यूनतम निर्यात मूल्य हटा लिया था, वहीं चीनी निर्यात से भी मात्रात्मक प्रतिबंध हटा लिया था। इस बीच, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में खरीफ में उत्पादित प्याज की आवक शुरू हो गई है। वास्तव में कर्नाटक में यह अगस्त के आखिर में शुरू हो गई। आंध्र प्रदेश में कुल रकबे के 66 फीसदी हिस्से यानी 12,000 हेक्टेयर में खरीफ प्याज की बुआई हुई है, वहीं कर्नाटक में पिछले साल के मुकाबले 18 फीसदी रकबे में खरीफ प्याज की बुआई होने की संभावना है। पिछले साल 17,500 हेक्टेयर में खरीफ प्याज की बुआई हुई थी। प्याज की आवक सितंबर के आखिर तक जारी रहने की संभावना है। मॉनसून में देरी के चलते महाराष्ट्र में पिछले साल के मुकाबले करीब 45 फीसदी रकबे में प्याज की बुआई की संभावना है और यहां कुल रकबा 33,000 हेक्टेयर रह सकता है। महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक देश में प्याज के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। गुजरात में पिछले साल के मुकाबले खरीफ के दौरान करीब 95 फीसदी रकबे में प्याज की बुआई की संभावना है और यह करीब 2700 हेक्टेयर है। बारिश में देरी और अपर्याप्त बारिश के चलते ऐसा हुआ है। राजस्थान में पिछले साल के मुकाबले करीब 80 फीसदी रकबे में खरीफ प्याज की बुआई की संभावना है और यह करीब 17,000 हेक्टेयर है। यहां प्याज की बुआई करीब-करीब समाप्त हो गई है। (BS Hindi)

हर तरफ ग्वार की बुवाई से बंपर उत्पादन के आसार

ग्वार की फसल चहुंओर - इस साल उन किसानों ने भी ग्वार की बुवाई की है, जिन्होंने पहले इस फसल का नाम भी नहीं सुना था। राजस्थान और हरियाणा के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश में भी बड़ी संख्या में किसानों ने बुवाई की है। नई फसल से पहले ग्वार के भाव घटकर एक चौथाई रह गए मौजूदा खरीफ सीजन में मौसम रकबा बढऩे और मौसम अनुकूल रहने के कारण देश में ग्वार सीड का बंपर उत्पादन होने का अनुमान है। बंपर उत्पादन की संभावना के चलते ग्वार सीड और ग्वार गम के मूल्य में भारी गिरावट आ रही है। इसके भाव अपने रिकॉर्ड स्तर से घटकर करीब एक चौथाई (25 फीसदी) रह गए हैं। जोधपुर मंडी में ग्वार सीड 7,500-8000 रुपये और ग्वार गम 25000-26000 रुपये प्रति क्विटंल रह गया है। जबकि इस साल के शुरू में भाव बढ़कर क्रमश: 30,000 रुपये और 100,000 रुपये प्रति क्विंटल के रिकॉर्ड पर पहुंच गए थे। ग्वार सीड के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र राजस्थान के जोधपुर के थोक कारोबारी शिखर चंद डूगर ने कहा कि इस साल उन किसानों ने भी ग्वार की बुवाई की है, जिन्होंने पहले इस फसल का नाम भी नहीं सुना था। इस वजह से रकबा काफी बढऩे के कारण पैदावार में भारी बढ़त हो सकती है। ग्वार के प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान और हरियाणा के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश में भी बड़ी संख्या में किसानों ने इस फसल की बुवाई की है। ग्वार की बुवाई जून व जुलाई माह में की जाती है और इसकी कटाई अक्टूबर व नवंबर में होती है। सामान्यतया ग्वार मरुस्थलीय क्षेत्र में उगाया जाता है क्योंकि इस फसल को कम सिंचाई की जरूरत होती है। पहली बार ग्वार की बुवाई करने वाले महाराष्ट्र में अमरावती के एक किसान 48 वर्षीय कैलाश बजाज ने कहा कि अपने क्षेत्र में ग्वार पर एक सेमिनार में हिस्सा लेने के बाद पहली बार उन्होंने ग्वार बोने का फैसला किया क्योंकि ग्वार के मूल्य काफी आकर्षक रहे और उनके क्षेत्र में कम बारिश होने के कारण जलवायु भी अनुकूल थी। बजाज ने इस साल सात हैक्टेयर में सोयाबीन छोड़कर ग्वार उगाई है। उनका कहना है कि अगर उन्हें अच्छी कीमत मिली तो अगले साल रकबा और बढ़ाएंगे। इस साल मार्च में ग्वार सीड और ग्वार गम के मूल्य में अप्रत्याशित तेजी आने के कारण इसका वायदा कारोबार रोक दिया गया था और फॉरवर्ड मार्केट कमीशन ने तेजी की जांच शुरू की थी। मार्च में ग्वार गम के भाव पिछले साल के मुकाबले बढ़कर दस गुने हो गए थे। मार्च में ग्वार गम एक लाख रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर पहुंच गए और ग्वार सीड 30 हजार रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर निकल गए। अभी तक एफएमसी ने ग्वार का वायदा कारोबार दुबारा शुरू करने के बारे में कोई फैसला नहीं किया है। (Business Bhaskar)