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30 जून 2012

उद्योग को लेवी चीनी से राहत मिलने की उम्मीद

लेवी चीनी 10 फीसदी से घटकर 5 फीसदी किए जाने की संभावना डिकंट्रोल के मसले लेवी चीनी में कटौती का मुद्दा गन्ना रिजर्व एरिया व्यस्था पर पुनर्विचार राज्यों द्वारा लागू एसएपी व्यवस्था खुले बाजार में चीनी की नियंत्रण मुक्तबिक्री आयात-निर्यात की दीर्घकालिक नीति सरकारी नियंत्रण से नुकसान सरकारी नियंत्रणों के चलते चीनी उद्योग का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है। चीनी उद्योग में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) इसी वजह से आकर्षित नहीं हो पाया। चीनी कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन में गिरावट दर्ज की गई है। कमेटी से अपेक्षाएं उद्योग को उम्मीद है कि रंगराजन कमेटी की सिफारिशों का हश्र पिछली कमेटियों जैसा नहीं होगा। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के प्रमुख रंगराजन की अगुवाई में कमेटी सीधे प्रधानमंत्री को ही रिपोर्ट पेश करेगी। लंबे अरसे से डिकंट्रोल की मांग कर रहे चीनी उद्योग को रंगराजन कमेटी से मनमाफिक सिफारिशें आने की भारी उम्मीद है। उद्योग का कहना है कि कमेटी लेवी चीनी में कटौती करके डिकंट्रोल की दिशा में आगे बढऩे की सिफारिश कर सकती है। मिलों से इस समय 10 फीसदी लेवी चीनी ली जाती है। संभव है कि इसमें कटौती करके 4-5 फीसदी कर दिया। इससे चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति सुधरेगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा सी. रंगराजन की अगुवाई में गठित कमेटी उद्योग प्रतिनिधियों और दूसरे संबंधित पक्षों से बातचीत कर रही है। कमेटी जल्दी ही अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप देगी। अगर कमेटी लेवी चीनी में कटौती करने की सिफारिश करती है और सरकार इसे लागू करती है तो उद्योग को करीब 1,250-1500 करोड़ रुपये का हर साल फायदा होगा। सूत्रों के अनुसार लेवी चीनी घटाकर 4-5 फीसदी तय की जा सकती है। गौरतलब है कि सरकार मिलों से दस फीसदी चीनी लेवी के रूप में लेती है। यह चीनी सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत गरीबों को वितरित करती है। सरकार मिलों से इस समय करीब 1900 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर लेवी चीनी लेती है जबकि मिल डिलीवरी चीनी का भाव करीब 2,900 रुपये प्रति क्विंटल है। कमेटी गन्ना रिजर्व एरिया, राज्यों द्वारा घोषित होने वाले राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी), खुले बाजार में चीनी की नियंत्रण मुक्त बिक्री और चीनी के आयात-निर्यात की छूट के बिंदुओं पर विचार कर रही है। सरकारी नियंत्रणों के चलते चीनी उद्योग का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है। चीनी उद्योग में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) इसी वजह से आकर्षित नहीं हो पाया। चीनी कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन में गिरावट दर्ज की गई है। सबसे बड़ी चीनी कंपनी हिंदुस्थान शुगर्स मिल्स का लाभ सितंबर 2011 को समाप्त वर्ष में 76 फीसदी घटकर 12 करोड़ रुपये रह गया। इसी तरह बलराम चीनी मिल्स, सिंभावली शुगर्स और त्रिवेणी इंजीनियरिंग के भी मुनाफे पर प्रतिकूल असर रहा है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के डायरेक्टर जनरल अविनाश वर्मा ने कहा कि गरीबों को सस्ती चीनी सुलभ कराना सरकार का सामाजिक दायित्व है। इसलिए इसका वित्तीय भार सरकार को ही उठाना चाहिए। मिलों पर इसका भार नहीं डालना चाहिए। नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री के मैनेजिंग डायरेक्टर विनय कुमार ने कहा कि लेवी चीनी का भार घटता है मिलों की वित्तीय स्थिति सुधरेगी। मिलों को किसानों के गन्ने का भुगतान करने में भी मदद मिलेगी। उद्योग को उम्मीद है कि रंगराजन कमेटी की सिफारिशों को सरकार लागू करने में दिलचस्पी दिखाएगी। इस कमेटी की सिफारिशों का हश्र पिछली कमेटियों जैसा नहीं होगा। इस बार प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के प्रमुख रंगराजन की अगुवाई में कमेटी का गठन खुद मनमोहन सिंह ने किया है। यह कमेटी सीधे प्रधानमंत्री को ही रिपोर्ट पेश करेगी। इस रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने के लिए खाद्य मंत्रालय कैबिनेट बनाकर विचार के लिए मंत्रिमंडल के समक्ष पेश करेगा। (Business Bhaskar.)

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