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30 अप्रैल 2012

कृषि निर्यात पर प्रधानमंत्री आज मंत्रियों से चर्चा करेंगे

कृषि निर्यात के सवाल पर बीच का रास्ता निकालने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सोमवार को संबंधित मंत्रालयों के मंत्रियों के साथ बातचीत करेंगे। मुख्य रूप से इस बैठक में कृषि मंत्री शरद पवार के आपत्तियों पर विचार होने की संभावना है।
उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कॉटन के निर्यात पर लगी पाबंदी के बारे में आपत्ति की थी। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कॉटन निर्यात की पाबंदी पर मुखालफत की थी।

वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने रविवार को संवाददाताओं को बताया कि प्रधानमंत्री दो बैठकों की अध्यक्षता करेंगे। एक बैठक में कृषि उत्पादों के बारे में चर्चा की जाएगी। सूत्रों के अनुसार इस बैठक में पवार के अलावा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी, खाद्य मंत्री के. वी. थॉमस और वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा भाग लेंगे।

कॉटन के निर्यात पर लगी पाबंदी पर पत्र लिखने वाले पवार ने पिछले दिनों पत्रकारों से बातचीत में बैठक की तो पुष्टि की लेकिन मंत्रियों के बीच मतभेद होने की बात पर इंकार किया। गौरतलब है कि पवार ने निर्यात के सवाल पर पत्र लिखकर कहा था कि सरकार की निर्यात नीति से किसानों के हितों को चोट पहुंच रही है।

उद्योग को राहत देने के लिए किसानों के हितों को तिलांजलि दी जा रही है। गौरतलब है कि कॉटन निर्यात के नए सौदों के पंजीयन पर पाबंदी होने से इसके घरेलू मूल्य में गिरावट आई है। (Business Bhaskar)

सिक्कों से खनकेंगे गेहूं के खलिहान

उत्तर प्रदेश में गेहूं की जबरदस्त पैदावार के बाद भी किसानों को माल औने-पौने भाव पर नहीं बेचना पड़ेगा। राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि पांच साल बाद अब एक बार फिर  निजी कंपनियां किसानों से सीधे गेहूं खरीद पाएंगी।

इस फैसले के बाद धान आदि जिंसों की खरीद भी सरकारी शिकंजे से बाहर  निकलने की उम्मीद है। राज्य सरकार जल्द ही किसानों से सीधी खरीद के दिशानिर्देश तय कर सकती है। किसानों को लागत की डेढ़ गुना कीमत दिलाने का चुनावी वायदा पूरा करने के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार ने कृषि व्यापार एवं विपणन विभाग के अधिकारियों से प्रस्ताव तैयार करने को कहा है। किसानों से उनके उत्पाद सीधे खरीदने की इच्छुक निजी कंपनियों को मंडी परिषद लाइसेंस जारी करेगी। अगले सीजन में इसे नए सिरे से लेना होगा।

पिछली मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद ने निजी कंपनियों को खरीद के लिए लाइसेंस देना बंद कर दिया था। लेकिन इस बार मंडी परिषद उत्तर प्रदेश में एक निजी कंपनी को 50,000 टन गेहंू खरीदने की इजाजत दे चुकी है  और दूसरी कंपनियों से बात चल रही है। प्रदेश सरकार का मानना है कि  इससे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य हर हाल में मिल जाएगा।

पिछली बार 2006 में मुलायम सिंह यादव सरकार ने निजी कंपनियों को सीधे गेहूं खरीदने की अनुमति दी थी। उस साल बरेली, शाहजहांपुर, रामपुर, सहारनपुर में आईटीसी और कारगिल ने सीधे किसानों से गेहूं खरीदा था। इससे किसानों को उपज की कीमत फौरन मिली और माल भाड़े से भी निजाम मिल गई। इन कंपनियों ने किसानों को उपहार भी दिए थे।

माया सरकार ने यह सिलसिला खत्म कर दिया और उनके समय में 2011 के अलावा किसी भी वर्ष खरीद का लक्ष्य हासिल नहीं हो सका। खुद वर्तमान खाद्य एवं रसद मंत्री रघुराज प्रताप सिंह ने एक बयान जारी कर कहा है कि बीते 5 वर्षों में उत्तर प्रदेश में किसानों से गेहूं या धान की सीधी खरीद की ही नहीं गई, बिचौलियों के जरिये यह काम किया गया था। (BS Hindi)

अधिक मात्रा में कपास निर्यात को मंजूरी

सरकार ने विपणन वर्ष अक्टूबर-सितंबर 2011-12 में और अधिक मात्रा में कपास निर्यात को आज मंजूरी दी। यह निर्णय कपास उत्पादन अधिक होने के अनुमानों के मद्देनजर लिया गया। वाणिज्य एवं उद्योग और कपड़ा मंत्री आनंद शर्मा ने कृषि मंत्री शरद पवार के साथ बैठक के बाद कहा, 'कपास निर्यात पंजीकरण पर रोक हटाने का फैसला किया गया है। सरकार कपास निर्यात के पंजीकरण चालू करेगी।'

पिछले महीने सरकार ने निर्यात पर से प्रतिबंध हटा लिया था लेकिन साथ ही नए पंजीकरण प्रमाणपत्र (आरसी) जारी न करने का फैसला किया था। सरकार ने सिर्फ उन्हीं खेपों के निर्यात को मंजूरी दी थी जिसके लिए पंजीकरण प्रमाण-पत्र पांच मार्च को लगे प्रतिबंध से पहले जारी किए गए थे।

शर्मा ने कहा कि निर्यात के पंजीकरण पर कोई मात्रात्मक प्रतिबंध नहीं होगा लेकिन मंत्रिसमूह अगले दो-तीन हफ्ते में स्थिति की समीक्षा करेगा। उन्होंने कहा, 'हमने कपास उत्पादन के संबंध में कृषि मंत्रालय के आंकड़े को स्वीकार कर लिया है। कपास परामर्श बोर्ड और कृषि मंत्रालय के संशोधित अनुमान के आधार पर हमने कपास निर्यात के पंजीकरण पर रोक हटाने का फैसला किया है।' (BS Hindi)

27 अप्रैल 2012

चढऩे लगा चावल पर महंगाई का रंग

बंपर उत्पादन के बावजूद करीब चार साल बाद चावल पर महंगाई का रंग फिर से चढऩे लगा है। भारी निर्यात मांग के कारण बासमती चावल-1121 तो महीने भर में ही 40 फीसदी से ज्यादा महंगा हो गया है। गैर-बासमती चावल भी निर्यात खुलने से चढ़ रहा है। इसी माह ईरान के साथ भुगतान समस्या सुलझने से बासमती की निर्यात मांग तेजी से बढ़ी है। सरकार ने भी इसी साल न्यूनतम निर्यात मूल्य घटाया था। इस वजह से भारतीय बासमती खासतौर पर पाकिस्तानी बासमती को पछाडऩे में कामयाब होता दिख रहा है।
अखिल भारतीय चावल निर्यात संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा कि ईरान के साथ भुगतान की दिक्क्त निपट जाने के बाद बासमती चावल की निर्यात मांग तेजी से बढ़ी है। गैर-बासमती चावल का निर्यात भी खूब हो रहा है। सितंबर 2011 से अब तक 25 लाख टन बासमती और 40 लाख टन से ज्यादा गैर-बासमती चावल का निर्यात हो चुका है। चावल निर्यातक रामविलास खुरानिया कहते हैं कि भारी निर्यात मांग के कारण बासमती चावल काफी महंगा हुआ है। पहले बासमती का न्यूनतम निर्यात मूल्य ज्यादा होने से पाकिस्तानी निर्यातक बाजार हथिया रहे थे, लेकिन अब भारतीय बासमती की मांग बढ़ी है।
दिल्ली अनाज कारोबारी संघ के अध्यक्ष ओमप्रकाश जैन कहते हैं कि तीन साल बाद बीते बरस गैर-बासमती के निर्यात की इजाजत मिली थी। निर्यात मांग बढऩे से डेढ़ माह के दौरान गैर-बासमती चावल में 250 से 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। इस बढ़ोतरी के बाद बाजार में पीआर-6  2,000 से 2,200 रुपये, पीआर-11 चावल  2500 से 2800 रुपये और प्रीमियम गैर-बासमती चावल शरबती 3,200 से 3,300 रुपये और सुगंधा 4,000 से 4,200 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। बासमती-1121 के दाम 4,200 रुपये से बढ़कर 6,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। चावल कारोबारी सुशील गुप्ता कहते हैं कि भारी तेजी के बाद इस सप्ताह बाजार स्थिर हुआ है।

झमाझम नहीं तो कम भी नहीं

रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स की ओर से देश के परिदृश्य रेटिंग घटाए जाने से भले ही थोड़ी मायूसी हुई हो लेकिन मॉनसून की भविष्यवाणी ने अर्थव्यवस्था को खुश होने का मौका दिया है। भारतीय मौसम विभाग ने आज 2012 के लिए मॉनसून की भविष्यवाणी में कहा कि इस साल देशभर में मॉनसून सामान्य रहने की उम्मीद है। हालांकि मौसम विभाग ने अल-नीनो के प्रभाव को भी पूरी तरह से नहीं नकारा है। अल-नीनो के चलते मॉनसून कमजोर पड़ जाता है, जिसके चलते अपेक्षाकृत कम बारिश होती है।
2012 में पहली आधिकारिक भविष्यवाणी में मौसम विभाग ने कहा है कि इस बार मॉनसून सत्र में लंबी अवधि में औसतन 99 फीसदी बारिश होने की संभावना है। पूरे सीजन के दौरान औसतन 99 से 104 फीसदी बारिश को सामान्य मॉनसून माना जाता है।
विभाग ने कहा कि इस साल मॉनसून के सामान्य रहने की संभावना 47 फीसदी है जबकि सामान्य कम मॉनसून की संभावना 24 फीसदी है। मौसम विभाग के महानिदेशक एल एस राठौड़ ने कहा, 'इस बार देशभर में 88 सेंटी मीटर बारिश होने की उम्मीद है।' हालांकि अल-नीनो का खतरा भी है जिसके चलते मॉनसून पर असर पड़ सकता है।
मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि फिलहाल इस बात की संभावना कम है कि मौसम की परिस्थितियों के चलते मॉनसून पर कोई असर पड़ सकता है। लेकिन मॉनसून सत्र के अंतिम दौर यानी अगस्त के दौरान अल-नीनो के खतरे को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता।
मौसम विभाग में लंबी अवधि की भविष्यवाणी विभाग के प्र्रमुख डॉ. डी शिवानंद पई ने कहा, 'मौसम विभाग ने 15 मौसम मानदंडों का अध्ययन किया है, जिसके आधार पर मॉनसून सामान्य रहने की संभावना 60 से 65 फीसदी है। इस साल भारतीय मॉनूसन पर अल-नीनो का प्रभाव पडऩे की आशंका कम है।' अंतिम बार 2009 में मॉनसून पर अल-नीनो का व्यापक प्रभाव देखा गया था, जिसके चलते कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों की विकास दर केवल 1 फीसदी रही थी। पई ने कहा, '2 से 7 साल के दौरान अल-नीनो कभी भी सक्रिय हो जाता है। ऐसे में इस बात की संभावना है कि यह 2012 में वापस आ सकता है।'
जून से शुरू होने वाला दक्षिण-पश्चिम मॉनसून करीब चार माह तक रहता है जो न केवल देश के कृषि क्षेत्र के लिए बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम माना जाता है। कृषि की बात करें तो देश की कुल कृषि भूमि का करीब 55 फीसदी हिस्सा मॉनसून पर ही निर्भर करता है। मॉनसून में होने वाली बारिश का प्रभाव शीत ऋतु़ में रबी फसलों (गेहूं, सरसों आदि) पर भी देखा जाता है। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान करीब 15 फीसदी है।
नैशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स ऐंड पॉलिसी रिसर्च के निदेशक रमेश चंद ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'कृषि पर पडऩे वाले इसके असर की स्पष्ट तस्वीर उस समय आएगी जब क्षेत्रवार मॉनसून की भविष्यवाणी जारी होगी। दरअसल, कृषि उपज बारिश की मात्रा पर ही निर्भर नहीं करती बल्कि अवधि, मात्रा और एकसमान बारिश पर निर्भर होती है।'
फसल की बेहतर पैदावार से खाद्यान्न कीमतों पर भी लगाम लग सकती है, जिससे सरकार कृषि सब्सिडी और राजकोषीय घाटे को कम करने की दिशा में कदम
उठा सकती है। मार्च में खाद्य महंगाई दहाई अंक के करीब पहुंच गई थी जो फरवरी में 6.07 फीसदी थी।
मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सामान्य मॉनसून के अनुमान पर कुछ अन्य कारकों का भी प्रभाव पड़ सकता है। इनमें यूरोप-एशिया में बर्फबारी (स्नो कवर) का योगदान होता है। पई ने कहा कि ज्यादा बर्फबारी से सामान्य मॉनसून की संभावना कम होती है। लेकिन भारतीय मॉनसून पर असर डालने वाले कई कारकों में से यह एक कारक है। (BS Hindi)

कॉटन का स्टॉक जुटाना ठीक नहीं: सीएआई

उद्योग संगठन कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) ने सरकार से आग्रह किया है कि चीन की तर्क पर देश में कॉटन का स्टॉक जुटाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि देश में कॉटन की उपलब्धता बेहतर रहती है।

सीएआई ने एक बयान में कहा कि सरकार को कॉटन का रणनीतिक स्टॉक जुटाने की दिशा में पहल नहीं करनी चाहिए। खबर है कि वस्त्र और उद्योग मंत्रालय टेक्सटाइल मिलों को सप्लाई के लिए 25 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) कॉटन का रणनीति स्टॉक जुटाने पर विचार कर रहा है। इसके लिए खरीद कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) द्वारा की जा सकती है।

एसोसिएशन का मानना है कि चीन की तर्ज पर भारत में घरेलू टैक्सटाइल मिलों के लिए कॉटन की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक स्टॉक जुटाने की योजना गलत है क्योंकि चीन की तरह भारत में कॉटन की भारी किल्लत नहीं है। चीन में कॉटन की सप्लाई मांग के मुकाबले काफी कम है जबकि भारत में कॉटन घरेलू खपत से ज्यादा उपलब्ध है। ऐसे में घरेलू मिलों के लिए बाजार में कॉटन आसानी से उपलब्ध है।

सीएआई का कहना है कि रणनीतिक स्टॉक जुटाने से मूल्यों में उथल-पुथल होने की स्थिति में सरकार को भारी घाटा उठाना पड़ सकता है। अगर सरकार कॉटन का स्टॉक करती है तो उसे करीब 5,000 करोड़ रुपये निवेश करना होगा।

इसके अलावा इस राशि के ब्याज और भंडारण खर्च के रूप में 500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार उठाना होगा। यही नहीं, सीसीआई को मूल्यों में उथल-पुथल होने पर घाटा उठाना पड़ सकता है। एसोसिएशन ने सुझाव दिया कि अगर टेक्सटाइल उद्योग के समक्ष पैसे की कमी होने की समस्या है तो उसे बैंकों के जरिये मदद दी जा सकती है। (Business Bhaskar)

एनएचएम में 5.50 लाख टन के कोल्ड स्टोर के लिए सब्सिडी

राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम) के तहत चालू वित्त वर्ष 2012-13 में 5.50 लाख टन की अतिरिक्त कोल्ड स्टोरेज भंडारण क्षमता विकसित करने के लिए सब्सिडी जारी करेगी। बीते वित्त वर्ष 2011-12 में 5.71 लाख टन कोल्ड स्टोरेज भंडारण क्षमता विकसित करने के लिए सब्सिडी दी गई। यह एनएचएम के तहत निर्धारित लक्ष्य ज्यादा थी।

एनएचएम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि वित्त वर्ष 2011-12 में 5.25 लाख टन की अतिरिक्त क्षमता के कोल्ड स्टोर के निर्माण के लिए सब्सिडी देने का लक्ष्य तय किया गया था। लेकिन इस दौरान 5.71 लाख टन की अतिरिक्त क्षमता के कोल्ड स्टोर के लिए सब्सिडी जारी की गई। उन्होंने बताया कि बागवानी फसलों के रख-रखाव के लिए इस समय देशभर में 640 लाख टन की क्षमता के कोल्ड स्टोर की आवश्यकता है जबकि केवल 270 लाख टन क्षमता के कोल्ड स्टोर ही उपलब्ध है।

एनएचएम राज्य सरकारों के माध्यम से सब्सिडी जारी करता है। किसानों को राज्य सरकार के बागवानी डायरेक्टर से पहले प्रोजेक्ट की मंजूरी लेनी होगी उसके बाद बैंकों से ऋण पास कराना होगा। बैंक से ऋण पास होने के बाद एनएचएम राज्य सरकार के माध्यम से निवेशक को सब्सिडी प्रदान की जाती है।

वित्त वर्ष 2011-12 में 116 कोल्ड स्टोर के निर्माण के लिए सब्सिडी जारी की गई जबकि वर्ष 2010-11 में 110 कोल्ड स्टोर के लिए सब्सिडी जारी की गई थी। वित्त वर्ष 2011-12 में सबसे ज्यादा कोल्ड स्टोर पंजाब में 29, गुजरात में 28, आंध्र प्रदेश में 21, मध्य प्रदेश में 14 और हरियाणा में 7 कोल्ड स्टोर के लिए एनएचएम ने सब्सिडी जारी की है।

उन्होंने बताया कि कोल्ड स्टोर निर्माण के लिए एनएचएम परियोजना की कुल लागत की 40 फीसदी सब्सिडी 5,000 टन भंडारण क्षमता के गोदाम पर प्रदान करता है। पहाड़ी तथा जनजातीय क्षेत्रों में 5,000 टन की क्षमता के कोल्ड स्टोर के लिए सहायता राशि 55 फीसदी है। सरकार बागवानी फसलों के रख-रखाव के लिए कोल्ड स्टोर, रेफ्रीजरेटर वेन, ग्रेडिंग तथा पैकेजिंग पर जोर दे रही है।

एनएचएम बागवानी फसलों, जड़ी-बूटियां, मसाले, औषधीय पौधे, बीज एवं नर्सरी, जैविक उर्वरक, मधुमक्खी पालन, खुंभी (मशरूम) और गिरीदार फलों की खेती के लिए भी राज्य सरकारों के माध्यम से किसानों को सब्सिडी देता है। सब्सिडी की दर राज्य और फसल के आधार पर अलग-अलग है। (Business Bhaskar....R S Rana)

प्याज का एमईपी हटाने का प्रस्ताव

वाणिज्य मंत्रालय ने अगले दो माह के लिए प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) घटाने का प्रस्ताव रखा है, ताकि किसानों को उनकी फसल का अच्छा रिटर्न मिल सके। इस समय मंडियों में प्याज का मूल्य घटकर काफी कम रह गया है। अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह (ईजीओएम) की अगल बैठक में इस प्रस्ताव पर विचार होने की संभावना है।

ईजोओएम को चीनी निर्यात और दूसरे खाद्य मामलों पर बुधवार को चर्चा करनी थी लेकिन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की दूसरी व्यस्तताओं के चलते यह बैठक स्थगित कर दी गई। खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि प्याज पर एमईपी हटाने के वाणिज्य मंत्रालय के प्रस्ताव पर ईजीओएम की अगली बैठक में चर्चा होने की संभावना है इस समय प्याज के लिए 125 डॉलर प्रति टन एमईपी निर्धारित है।

वाणिज्य मंत्रालय के प्रस्ताव में कहा गया है कि एमईपी हटने से प्याज के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और इससे किसानों को अच्छा मूल्य मिल सकेगा। महानगरों में इस समय प्याज का फुटकर मूल्य 10-15 रुपये प्रति किलो के आसपास चल रहा है। वाणिज्य मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने बताया कि अगर यह प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है तो एमईपी मई-जून या जून-जुलाई के लिए हट सकता है।

सरकार ने फरवरी 2012 में एमईपी 25 डॉलर घटाकर 125 डॉलर प्रति टन तय किया था। इससे पहले जनवरी में एमईपी 250 डॉलर से घटाकर 150 डॉलर प्रति टन तय किया गया था। सरकार ने प्याज के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए यह कदम उठाया। प्याज के प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र के किसान संगठन भी प्याज पर लगा एमईपी हटाने की मांग करते रहे हैं। (Business Bhaskar)

एथनॉल को बढ़ावा किसान और उद्योग के हित में : खाद्य सचिव

गन्ना उत्पादकों के साथ ही उद्योग के हितों के लिए एथनॉल के उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इंटरनेशनल शुगर काउंसिल की 41वीं बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में केंद्रीय खाद्य सचिव डॉ. बी. सी. गुप्ता ने कहा कि विश्व में एथनॉल के उत्पादन और उपयोग की अपार संभावनाएं है।

चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर गठित प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन की अध्यक्षता में गठित समिति काम कर रही है। समिति की अगली बैठक तीन मई को प्रस्तावित है।

उन्होंने कहा कि रूस और यूरोपीय देशों में चुकंदर की पैदावार में बढ़ोतरी का कारण चीनी की ज्यादा मात्रा मौजूद होना है जबकि भारत में गन्ने का अतिरिक्त उत्पादन करके चीनी और एथनॉल की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है।

उन्होंने कहा कि अभी तक हुई गन्ने की बुवाई के आधार पर आगामी पेराई सीजन में भी देश में चीनी का उत्पादन बढऩे की संभावना है। चालू पेराई सीजन में चीनी के उत्पादन में बढ़ोतरी को देखते हुए फिलहाल चीनी की कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है। आईएसओ के कार्यकारी निदेशक डॉ. पीटर बेरोन ने इस अवसर पर कहा कि विश्व में चीनी का बकाया स्टॉक 60 लाख टन से अधिक रहने का अनुमान है। ज्यादा बकाया स्टॉक ब्राजील और अमेरिका में ज्यादा उत्पादन की संभावना के कारण है।

उन्होंने कहा कि चीनी उत्पादन में भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है तथा चालू पेराई सीजन में भारत ने बड़ी मात्रा में चीनी का निर्यात किया है। आगामी पेराई सीजन में भी उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान है। (Business Bhaskar....R S Rana)

इस साल सामान्य रहेगा मॉनसून

नई दिल्ली : सरकार का कहना है कि इस साल मानसून के सामान्य रहने की उम्मीद है। खरीद के दौरान अच्छी बारिश की संभावना जताई गई है। मौसम विभाग ने भी इस साल अच्छे मॉनसून की उम्मीद जताई है।

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री विलासराव देशमुख ने गुरुवार को कहा कि इस वर्ष देश में मानसून के सामान्य रहने की सम्भावना हैं। देशमुख ने कहा, ‘मौसम विभाग के वर्ष 2012 के लिए दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितम्बर) के पूर्वानुमान के अनुसार, पूरे देश में बारिश सामान्य रहने के आसार हैं। यह औसतन 96 से 104 प्रतिशत तक हो सकती है।’

99 प्रतिशत बारिश होने का मतलब अच्छा मानसून होता है। सरकार का कहना है कि अच्छे मानसून से देश में पैदावार अच्छी होगी। मालूम हो कि देश की सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की 15 प्रतिशत भागीदारी होती है। अगर मानसून सामान्य होता है तो जाहिर है कृषि पैदावार अच्छी होगी और देश की अर्थव्यवस्था को इससे मजबूती मिलेगी।

मौसम विभाग के मुताबिक जून से सितंबर में मॉनसून अच्छा रहने की उम्मीद है। इसी दौरान 60 फीसदी सिंचाई की जाती है। लिहाजा चावल, चीनी और गेहूं के किसानों के लिए इस बार मॉनसून खुशहाली लेकर आएगा। एक अनुमान के मुताबिक इस साल मॉनसून 25-28 अप्रैल के बीच आ सकता है। (Z-Business)

25 अप्रैल 2012

खाद्यान के भंडारण की क्षमता

सरकार ने गुणवत्ता नियंत्रण, भंडारण आदि जैसे कार्यक्षेत्रों को सुदृढ़ बनाने के लिए वर्ष 2010 में भारतीय खाद्य निगम के संगठन में पुन: संरचना की। कवर एंड प्लिंथ (सीएपी) के अधीन भंडारण को कम करने के लिए सरकार ने निजी उद्यमियों, केन्द्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) और राज्य भंडारण निगमों (एसडब्ल्यूसी) के जरिए भंडारण गोदामों के निर्माण की एक योजना बनाई। 

इस योजना के अधीन भारतीय खाद्य निगम निजी उद्यमियों को सुनिश्चित किराए पर देने के लिए अब दस वर्ष की एक गारंटी देगी। इस योजना के अधीन निजी उद्यमियों, केन्द्रीय और राज्य भंडार निगमों के जरिए 19 राज्यों में लगभग 151 लाख टन की क्षमता तैयार की जाएगी। इसमें से लगभग 89 लाख टन की भंडारण क्षमता निजी उद्यमियों द्वारा तैयार करने के लिए 15 फरवरी 2012 तक निविदाओं को अंतिम रूप दिया गया है। इस योजना के अधीन सीडब्ल्यूसी और एसडब्ल्यूसी क्रमश: 5.4 लाख टन और 14.75 लाख टन क्षमता का निर्माण कर रही हैं। इसमें से सीडब्ल्यूसी / एसडब्ल्यूसी द्वारा लगभग पाँच लाख टन क्षमता के निर्माण का कार्य पूरा कर लिया गया है। 

भारतीय खाद्य निगम ने खाद्यानों की क्षति की रोकथाम के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। कीड़ों / घुनों की रोकथाम के लिए प्रोफीलेक्टिक और उपचारात्मक उपाय नियमित रूप से किए जाते हैं। चूहों आदि पर नियंत्रण के प्रभावी उपाय भी किए जाते हैं। भंडारों में खाद्यान का उचित रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से गुणवत्ता जांच भी की जाती है। कैप (सीएपी) में रखे गए खाद्यान भंडारों की सुरक्षा के पर्याप्त उपाय किए जाते हैं। भंडारण के स्थानों को बराबर साफ किया जाता है और कीटनाशक दवाईयां छिड़की जाती हैं। सीएपी भंडारों को वर्षा और धूप आदि से सुरक्षित करने के लिए प्रत्येक बोरी पर पोलीथिन चढ़ाया जाता है। पोलीथिन थैलियों को नाइलोन की डोरियों से बांधा जाता है। राज्य सरकारों / एजेंसियों द्वारा सीएपी में रखे गए गेंहूं के भंडारों की एफसीआई और संबद्ध राज्य सरकारों /एजेंसियों के अधिकारियों द्वारा नियमित आधार पर संयुक्त रूप से निरीक्षण किया जाता है। भंडार आमतौर पर ‘पहले आएं पहले जाएं’ सिद्धांत पर जारी किए जाते हैं। यह जानकारी उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक मंत्रालय में राज्य मंत्री प्रोफेसर के वी थामस द्वारा आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।

21 अप्रैल 2012

खाद्यान्न उत्पादन 25.25 करोड़ टन होने का अनुमान

चालू फसल वर्ष (2011-12) के दौरान देश में खाद्यान्न का उत्पादन बढ़कर रिकॉर्ड 25.25 करोड़ टन तक पहुंचने का अनुमान है जो दूसरे आरंभिक अनुमान 25.04 करोड़ टन से ज्यादा है। हालांकि दलहन और तिलहन का उत्पादन तीसरे आरंभिक अनुमान में दूसरे अनुमान के मुकाबले कम रह सकता है।

कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार गेहूं और चावल का उत्पादन बढऩे से 2011-12 में देश में खाद्यान्न का कुल उत्पादन 25.25 करोड़ टन के रिकॉर्ड पर पहुंचने की संभावना है।

उन्होंने बताया कि गेहूं का उत्पादन दूसरे आरंभिक अनुमान 883.1 लाख टन से बढ़कर तीसरे अनुमान में 900 लाख टन होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि तीसरे आरंभिक अनुमान की घोषणा आगामी सप्ताह में होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि तीसरे आरंभिक अनुमान में दलहन और तिलहनों का उत्पादन दूसरे आरंभिक अनुमान के मुकाबले घटेगा।

दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार 2011-12 में दलहन का उत्पादन अनुमान 172.8 लाख टन होने का था जबकि तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार दलहन उत्पादन घटकर 170.2 लाख टन ही होने का अनुमान है। इसी तरह से तिलहन उत्पादन दूसरे आरंभिक अनुमान 305.29 लाख टन से घटकर 300 लाख टन होने का अनुमान है। (Business Bhaskar....R S Rana)

20 अप्रैल 2012

बढ़ते उत्पादन अनुमान से थम गई काली मिर्च की तेजी

विश्व में काली मिर्च के सबसे बड़े उत्पादक देश वियतनाम में उत्पादन के ताजा अनुमान से वैश्विक बाजार में तेजी का दौर थम गया है। इस सीजन में वियतनाम में उत्पादन बढ़कर 1,35,000 टन से 1,40,000 टन पर पहुंच सकता है जबकि पहले 1 लाख से 1.10 लाख टन काली मिर्च के उत्पादन का अनुमान था।
ये अनुमान नए इलाकों में उत्पादन में तेज बढ़ोतरी पर आधारित हैं। वियतनाम की रिपोर्ट के मुताबिक गियालई और क्वांगत्री जिले के कुछ नए इलाकों में इसकी बुआई हुई थी और वहां 50,000 टन से ज्यादा काली मिर्च का उत्पादन हो सकता है। पहले यहां सिर्फ 28,000 टन काली मिर्च के उत्पादन का अनुमान था। ऐसे में वियतनाम से खास तौर से एएसटीए किस्म की काली मिर्च की आपूर्ति ज्यादा होगी। अब वियतनाम के कारोबारी काली मिर्च की पेशकश कम कीमत यानी 6750 डॉलर प्रति टन पर कर रहे हैं, जो एक महीने पहले करीब 7200 डॉलर प्रति टन थी। इस सीजन में वियतनाम में फसलों की कटाई इंडोनेशिया के बाद होगी, जहां 20,000 टन काली मिर्च उत्पादन का अनुमान है। इंडोनेशिया में जून में कटाई की शुरुआत होगी।
इस बीच, इंडोनेशिया ने एएसटीए किस्म की कीमतें 7500 डॉलर प्रति टन से घटाकर 7350 डॉलर कर दी हैं जबकि ब्राजील 7100 डॉलर प्रति टन के भाव पर काली मिर्च की पेशकश कर रहा है। यूरोप व अमेरिका में मांग ने जोर नहीं पकड़ा है क्योंकि आयातक आने वाले हफ्तों में कीमतों में और कटौती की उम्मीद कर रहे हैं। अमेरिका के आयातकों ने कहा कि इंडोनेशिया के सक्रिय होने पर कीमतें घटकर 6000 डॉलर प्रति टन पर भी आ सकती हैं।
कीमतों के लाभ के चलते वियतनाम में निर्यात की अच्छी मांग है और अब वे अधिकतम मात्रा की पेशकश कर रहे हैं। मार्च में वियतनाम ने 17,000 टन काली मिर्च का निर्यात किया था। 8,000 डॉलर प्रति टन के सर्वोच्च स्तर पर होने के चलते काली मिर्च के वैश्विक बाजार में भारत कहीं नहीं है। वायदा बाजार में सटोरिया गतिविधियों के चलते भारतीय बाजार चौपट हो गया और कीमतें भी काफी ज्यादा रहीं। यूरोपीय और अमेरिकी खरीदारों की भारत में दिलचस्पी नहीं है क्योंकि दूसरी जगहों से उन्हें कम कीमत पर काली मिर्च उपलब्ध हो रही है। वियतनाम में एएसटीए किस्म कम कीमत पर इफरात में उपलब्ध है।
एफएमसी ने पिछले दो-तीन महीने से चल रही सटोरिया गतिविधियों के खिलाफ अब तक सख्त कदम नहीं उठाया है। ऐसे में भारतीय बाजार में अनावश्यक तेजी आ गई है। इससे खास तौर से केरल के उत्पादकों को लग रहा है कि कीमतें 500 रुपये प्रति किलोग्राम को पार कर जाएंगी। (BS Hindi)

थम गया काली मिर्च में तेजी का दौर

नई दिल्ली। विश्व में काली मिर्च के सबसे ब़डे उत्पादक देश वियतनाम में उत्पादन के ताजा अनुमान से वैश्विक बाजार में तेजी का दौर थम गया है। इस सीजन में वियतनाम में उत्पादन बढ़कर 1,35,000 टन से 1,40,000 टन पर पहुंच सकता है जबकि पहले 1 लाख से 1.10 लाख टन काली मिर्च के उत्पादन का अनुमान था।

ये अनुमान नए इलाकों में उत्पादन में तेज बढ़ोतरी पर आधारित हैं। वियतनाम की रिपोर्ट के मुताबिक> गियालई और क्वांगत्री जिले के कुछ नए इलाकों में इसकी बुआई हुई थी और वहां 50,000 टन से ज्यादा काली मिर्च का उत्पादन हो सकता है। पहले यहां सिर्फ 28,000 टन काली मिर्च के उत्पादन का अनुमान था। ऎसे में वियतनाम से खास तौर से एएसटीए किस्म की काली मिर्च की आपूर्ति ज्यादा होगी। अब वियतनाम के कारोबारी काली मिर्च की पेशकश कम कीमत यानी 6750 डॉलर प्रति टन पर कर रहे हैं, जो एक महीने पहले करीब 7200 डॉलर प्रति टन थी।

इस सीजन में वियतनाम में फसलों की कटाई इंडोनेशिया के बाद होगी, जहां 20,000 टन काली मिर्च उत्पादन का अनुमान है। इंडोनेशिया में जून में कटाई की शुरूआत होगी। इस बीच, इंडोनेशिया ने एएसटीए किस्म की कीमतें 7500 डॉलर प्रति टन से घटाकर 7350 डॉलर कर दी हैं जबकि ब्राजील 7100 डॉलर प्रति टन के भाव पर काली मिर्च की पेशकश कर रहा है। (Khas Khabar)

Mixed trend in pepper market

The pepper market showed a mixed trend on Thursday with the April contract dropping while other active contracts moving up.

Those holding speculatively and did not want to take delivery were liquidating and that pushed the April delivery down. April delivery was traded nearly Rs 9.50 a kg below spot prices.

There were no arrivals from the primary markets and at the same time activities on the spot were also limited.

Uncertainty over a decision of the government on its recent announcement that it was contemplating banning of futures trading in some of the commodities, including pepper, has been keeping the weak operators in a panic mode and hence they were liquidating, market sources told Business Line.

April contract on the NCDEX fell by Rs 360 to the last traded price (LTP) of Rs 37,150 a quintal. May and June contracts moved up by Rs 100 and Rs 85 respectively to the LTP of Rs 38,350 and Rs 39,070 a quintal.

Turnover

Total turnover dropped by 786 tonnes to 3,405 tonnes. Total open interest declined by 113 tonnes to 6,117 tonnes.

April open interest decreased by 239 tonnes to close at 553 tonnes while that of May and June increased by 124 tonnes and 2 tonnes respectively to 5,050 tonnes and 395 tonnes.

Spot prices remained unchanged on limited activities at Rs 36,600 (ungarbled) and Rs38,100 (MG1) a quintal.

Indian parity in the international market was at $7,450 a tonne (c&f) for Europe and $7,750 a tonne (c&f) for the US and is slowly getting competitive with other origins. Weakening of the rupee also aided in bringing the parity closer to other origins, they said.

India imported 1,848 tonnes of pepper in Mar 2012 and has become the third country to import such large quantity after the UAE and Singapore.

Vietnam reportedly exported 18,999 tonnes of pepper in March. According to the trade, some 1,000 tonnes might have gone to the extraction industry while the rest is believed to have gone to the crushing sector.

Overseas trend

Pepper markets, according to an overseas report, were firm in general. Farmers in Vietnam are reportedly holding back pepper and consequently local traders are finding it difficult to make any commitments to overseas buyers as getting offers of physicals from the farmers has become a matter of concern. This situation will coerce buyers into bidding ever higher numbers.

Indonesia is essentially unchanged. Brasil is firmer with increased inquiries from south and central American buyers. White pepper seems firmer from Indonesia but with a dearth of offers, the report added. (Business line)

काली मिर्च का बड़ा निर्यातक होगा वियतनाम

विश्व में काली मिर्च के सबसे बड़े उत्पादक व निर्यातक देश वियतनाम ने पिछले वित्त वर्ष में भारत के मुकाबले पांच गुना काली मिर्च का निर्यात किया। वियतनाम काली मिर्च संघ (वीपीए) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक काली मिर्च की जितनी मात्रा का निर्यात करने में भारत को पूरे साल लग गए, उसे वियतनाम ने महज तीन महीने (चौथी तिमाही जनवरी-मार्च) में पूरा कर दिया। कोई और उत्पादक देश वियतनाम के आसपास नहीं है, जबकि निर्यात के मामले में भारत का स्थान दूसरा रहा। पिछले वित्त वर्ष में वियतनाम ने 1,21,935 टन काली मिर्च का निर्यात किया, जबकि भारत से महज 25,500 टन काली मिर्च का निर्यात हुआ। निर्यात से भारत को 845 करोड़ रुपये मिले जबकि वियतनाम को 2500 करोड़ रुपये से ज्यादा। वीपीए के चेयरमैन ने कहा - वैश्विक बाजार में काली मिर्च के कुल निर्यात में वियतनाम की हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी रही।
वियतनाम में काली मिर्च के प्रसंस्करण के लिए 17 अत्याधुनिक फैक्ट्रियां हैं और इनकी सालाना क्षमता 60,000 टन है। इनमें से 10 फैक्ट्री अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को पूरा करती है। वियतनाम 1980 के दशक के मध्य से काली मिर्च के उत्पादन में तब सक्रिय हुआ था, जब काली मिर्च के बाजार में भारत का वर्चस्व था। 1990 के दशक में वियतनाम ने धीरे-धीरे भारत को पीछे छोड़ दिया और पहले स्थान पर आ गया। काली मिर्च का कुल उत्पादन करीब 1.35 लाख टन है। भारत का सालाना उत्पादन मोटे तौर पर 40,000 टन है जबकि यहां हजारों सालों से खेती हो रही है। अब भारत अमेरिका व यूरोप जैसे पारंपरिक बाजार खोता जा रहा है क्योंकि साल दर साल निर्यात में कमी आ रही है। इसकी वजह कीमतों का ऊंचा रहना है। (BS Hindi)

कई राज्यों में गेहूं के भाव एमएसपी से भी नीचे

आर.एस. राणा

यूपी में गेहूं सबसे सस्ते भाव त्र1,060-1,100 प्रति क्विंटल पर बिक रहा

बेचारा किसान
जल्दी और आसानी से अपनी फसल बेचने की मजबूरी में किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। सरकार ने चालू सीजन के लिए गेहूं का उचित मूल्य यानि एमएसपी 1,295 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। खराब मौसम के कारण भी जल्दबाजी में किसान कम भाव पर गेहूं बेचने को विवश हैं।

गेहूं खरीद के संबंध में सरकार के तमाम दावों के बावजूद दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा की मंडियों में गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम भाव पर बिक रहा है। गेहूं उत्तर प्रदेश की मंडियों में 1,060-1,100 रुपये, दिल्ली की नरेला मंडी में 1,194-1,250 रुपये, राजस्थान में 1,140-1,150 रुपये और हरियाणा में 1,160-1,200 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिक रहा है। जबकि चालू विपणन सीजन 2012-13 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं का एमएसपी 1,295 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।

कृषि उपज विपणन समिति नरेला के सचिव पी. एस. यादव ने बताया कि मंडी में गेहूं की दैनिक आवक 9,000 से 10,000 क्विंटल की हो रही है। बोली के माध्यम से मंडी में गेहूं 1,194 से 1,250 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है। एफसीआई द्वारा गेहूं की नाम मात्र की खरीद की जा रही है। ज्यादातर गेहूं व्यापारियों द्वारा ही खरीदा जा रहा है। खराब मौसम के कारण जल्दबाजी में किसान कम भाव पर गेहूं बेचने को विवश हैं।

उत्तर प्रदेश की हरदोई मंडी समिति के अधिकारी शिवराज सिंह ने बताया कि हरदोई मंडी में दैनिक आवक 6,000 से 7,000 क्विंटल के आसपास है। मंडी में गेहूं 1,050 से 1,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बिक रहा है। उन्होंने कहा कि गेहूं की सरकारी खरीद भी चल रही है लेकिन सरकारी खरीद केंद्रों के बजाय किसान मंडी में बोली के माध्यम से ज्यादा गेहूं बेच रहे हैं। सरकारी खरीद केंद्रों पर किसानों से जमीन के कागजात देखकर खरीद की जा रही है, साथ ही भुगतान में भी देरी हो रही है। इस वजह से किसान कम भाव पर ही गेहूं बेच रहे हैं।

जयपुर में अलवर व्यापार मंडल के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने बताया कि मंडी में गेहूं 1,140 से 1,150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है जबकि दैनिक आवक 4,000 से 5,000 क्विंटल की हो रही है। हरियाणा की पलवल मंडी में बुधवार को 1,160 से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं बिका। हालांकि हरियाणा मार्केट बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि राज्य की सभी मंडियों में गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद सुनिश्चित की जा रही है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश की सीमा से लगती कुछ मंडियों में उत्तर प्रदेश का गेहूं आया है जिसकी वजह से एक-दो मंडियों में खरीद प्रभावित हुई।

चालू रबी विपणन सीजन के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं की खरीद का लक्ष्य 318 लाख टन तय किया है। जिसमें से १८ अप्रैल तक ४५.८७ लाख टन की खरीद हो चुकी है। पिछले साल 283.34 लाख टन गेहूं की खरीद की गई थी। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 में गेहूं का उत्पादन बढ़कर 883.1 लाख टन होने का अनुमान है जो पिछले साल के 868.7 लाख टन से ज्यादा है। (Business Bhaskar....R S Rana)

19 अप्रैल 2012

भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाने के लिए नियमित निगरानी जरूरी’-प्रोफेसर के. वी. थॉमस

उपभोक्‍ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री, प्रोफेसर के. वी. थॉमस ने कहा है कि उपभोक्‍ताओं को गुमराह करने वाले विज्ञापनों से बचाने के लिए कानूनों में सुधार की आवश्‍यकता है। उन्होंने कहा कि अनेक प्रावधानों के बावजूद झूठे और गुमराह करने वाले विज्ञापन जारी किए जा रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि व्‍यापक रूप से यह माना गया है कि आत्‍मानुशासन और कानून नियंत्रण को साथ-साथ काम करना चाहिए। प्रोफेसर थॉमस विज्ञापनों में गुमराह करने वाले दावों के बारे में आयोजित एक सेमीनार को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन उपभोक्‍ता मामलों के विभाग ने किया।

श्री थॉमस ने कहा कि इस संगोष्ठी का आयोजन गुमराह करने वाले दावों से निपटने का रास्ता निकालने और उपभोक्‍ताओं को परेशानी से बचाने के लिए किया गया है। उन्‍होंने कहा कि विज्ञापन आज हमारे जीवन का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा बन चुका है। हालांकि यह जरूरी है कि इनका इस्तेमाल सावधानी से किया जाये, ताकि सामाजिक मूल्‍यों पर इसका प्रतिकूल असर न पडे।

प्रोफेसर थॉमस ने कहा कि हालांकि सही और तथ्‍यपूर्ण विज्ञापन सूचना के एक उपयोगी साधन हैं परंतु अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या यह भौतिकवाद और वर्गों के बीच भेदभाव पैदा करते हैं। अपने लक्षित बाजार तक पहुंचने के लिए विज्ञापनकर्ता कई बार कानूनी और सामाजिक नियमों का उल्‍लंघन करते हैं। भारत का संविधान अभिव्‍यक्ति की आजादी देता है फिर भी सरकार को व्यावसायिक विज्ञापनों को नियमित करने का अधिकार है। वह भ्रामक, झूठे, अनुचित और गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर रोक लगा सकती है। किसी विज्ञापन को ऐसी स्थिति में भ्रामक कहा जा सकता है जब वह उपभोक्‍ता की खरीदारी पर असर डाले। भारत में सिगरेट, शराब, पान-मसाला के विज्ञापनों को टीवी चैनलों में जगह मिल जाती है जबकि सरकार ने इनपर प्रतिबंध लागू कर रखा है, क्‍योंकि यह सभी स्‍वास्‍थ्‍य के लिए नुकसानदायक हैं।

प्रोफेसर थॉमस ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह के अनुचित और गुमराह करने वाले विज्ञापनों से उपभोक्‍ताओं को बचाने के लिए बने अनेक कानूनों के बावजूद उपभोक्‍ताओं का शोषण हो रहा है।

संभवत: विपणन संचार के क्षेत्र में सबसे विवादास्‍पद मुद्दा है विज्ञापनों की विषय वस्‍तु। विज्ञापनों की नैतिक निर्णय की बात करें तो तीन क्षेत्र सामने आते हैं ये हैं – व्‍यक्तिगत स्‍वायत्‍तता, उपभोक्‍ता सत्‍ता और उत्‍पाद की प्रकृति। व्‍यक्तिगत स्‍वायत्‍तता बच्‍चों के विज्ञापन से जुड़ी हुई है। उपभोक्‍ता सत्‍ता का सीधा संबंध ज्ञान के स्‍तर और लक्ष्‍य समूह के परिष्‍करण से, जबकि हानिकारक उत्‍पाद लम्‍बे समय से जनमत के केन्‍द्र रहे हैं। खतरनाक उत्‍पादों के विज्ञापनों की तीखी आलोचना होती रही है। खासतौर से तब, जब इनका लक्ष्‍य वे लोग होते हैं जिनकी स्‍वायत्‍तता कम हैं अर्थात बच्‍चे। बच्‍चे सिर्फ ग्राहक ही नहीं होते, बल्कि उपभोक्‍ता भी हैं और वे परिवार में निर्णयकर्ताओं को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा एक और मुश्किल यह है कि वे निर्णय करने वालों पर खासा असर डालते हैं। इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए कि बच्‍चों के लिए विज्ञापनों पर होने वाले खर्च में पिछले पांच से दस वर्षों के दौरान बढ़ोतरी होती गयी है और टेलीविज़न पर जितने विज्ञापन दिखाए जाते हैं उनमें से दो तिहाई खाने-पीने की चीजों के बारे में होते हैं। स्‍वीडन, नॉर्वे, जर्मनी, नीदरलैंड और ऑस्‍ट्रेलिया जैसे देशों में बच्‍चों के लिए जारी होने वाले विज्ञापनों पर अनेक कड़े प्रतिबंध लगाए जाते हैं।

विज्ञापन मानक और विज्ञापन उद्योग द्वारा आत्मानुशासन बहुत महत्‍वपूर्ण मुद्दे हैं, खासतौर से भारत जैसे देश में जहां अधिकांश उपभोक्‍ता ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी हैं। अपना रिकॉर्ड सुधारने के लिए हमें अपने आपकी बाकी दुनिया के साथ तुलना करनी होगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई अंतर्राष्‍ट्रीय मानक बना हुआ है, जिसके आधार पर मानक तैयार किये जाते हैं और जिन पर आधारित विज्ञापनों के बारे में यह तय किया जा सकता है कि वह हानिकारक हैं अथवा नहीं। अगर हम सिर्फ विज्ञापनों की संख्‍या के अनुसार चलें और उनके लिए यह देखें कि विज्ञापन मानक परिषद कितनी शिकायतें प्राप्‍त करता है, तो जान पड़ेगा कि भारत में विज्ञापन बहुत ऊंचे दर्जे के होते हैं। इसका कारण यह है कि भारत की विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) के सामने ब्रिटेन की एडवर्टाइजिंग स्‍टैंडर्ड्स ऑथोरिटी-एएसए की तुलना में कम शिकायतें आती हैं। अगर एएससीआई को कुछ सौ शिकायतें प्राप्‍त होती है तो उनकी तुलना में एएसए को दस हजार से ज्‍यादा शिकायतें मिलती हैं। भारत में सही तस्‍वीर अक्‍सर इस बात से नहीं मिलती है कि कितनी शिकायतें प्राप्‍त हुई और न ही उनसे उपभोक्‍ता के असंतुष्‍ट होने के स्‍तर का पता चल पाता है। इसके कारण हैं जागरूकता स्‍तर कम होना और उपेक्षा। एएसए पहले ही कार्रवाई करने की दिशा में काफी सक्रिय है। इसने राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय प्रेस में ऐसे सर्वेक्षण कराये हैं जिनसे एएसए संहिता के परिपालन की जांच हो पाती है। इसके अच्‍छे परिणाम रहे हैं और 97 प्रतिशत विज्ञापन, एक सर्वेक्षण के अनुसार, संहिताओं के अनुरूप पाये गए।

उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अनुच्‍छेद-2 (आर) में अनुचित व्‍यापार पद्धति की व्‍यापक परिभाषा दी गई है और अनुच्‍छेद-14 उन निर्देशों से संबंधित है जो ऐसे व्यवहारों के बारे में अदालत जारी कर सकती है। इस दिशा में उपभोक्‍ता अदालतों ने शानदार काम किया है और वह भ्रामक विज्ञापनों से निपटने में कामयाब हुई हैं। लेकिन उपभोक्‍ता अदालतों के पास न तो अधिकार हैं और न ही छानबीन करने की मूल सुविधाएं। उनके पास अन्वेषण का कोई तंत्र भी नहीं है वे सिर्फ प्राप्‍त शिकायतों पर फैसला सुना सकती है, लेकिन उपभोक्‍ता अदालतें अंतरिम आदेश जारी करके भ्रामक विज्ञापनों को तब तक बंद करा सकती हैं, जब तक मुक़दमे का फैसला नहीं हो जाता। वे इनके कारण हुए नुकसान की भरपाई के आदेश भी जारी कर सकती हैं।

सज्जनों और देवियो, हमने आपके सामने अनेक तर्क और वितर्क प्रस्‍तुत किए, ताकि प्रतिनिधि और इस विषय से जुड़े हुए हितधारक इन पर विचार करें। आखिर में मुझे उम्‍मीद है कि यहां जो चर्चा होगी उससे ऐसे दस्‍तावेज तैयार किये जाएंगे, जिनके जरिए रचनात्‍मक कदम उठाए जा सकेंगे और अगर जरूरी हुआ, तो विधायी प्रयास भी किए जाएंगे। समय का तकाजा है कि हम देश के लोगों को इस बात के मजबूत संकेत दें कि उपभोक्‍ता की सत्‍ता से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता और न ही उन्‍हें धोखा दिया जा सकता है। भारत जैसे देश के लिए यह भी जरूरी है कि यहां का बाजार इस बात की पूरी प्रतिबद्धता जाहिर करे कि उपभोक्‍ता के अधिकारों की रक्षा की जाएगी।

एक दिन के इस सेमिनार में राज्‍य सरकारों, विभिन्‍न केन्‍द्रीय मंत्रालयों, विज्ञापन परिषद और उपभोक्‍ता निकायों के प्रतिनिधि शामिल हुए। (PIB.NIC)

16 अप्रैल 2012

वायदा बाजार में जिंसों के मूल्यों पर नजर रखेंगी दो समितियां

नई दिल्ली वायदा बाजार में जिंसों पर नजर रखने के लिए सरकार दो समितियों का गठन करेगी। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के सदस्यों की अध्यक्षता में इन समितियों का गठन किया जाएगा। एक समिति वायदा बाजार में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव की निगरानी करेगी, जबकि दूसरी समिति का काम नॉन एग्री जिंसों पर नजर रखना होगा।

उपभोक्ता मामला मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि खाद्य राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के वी थॉमस ने एफएमसी के चेयरमैन रमेश अभिषेक और उपभोक्ता मामला मंत्रालय के सचिव राजीव अग्रवाल के साथ शुक्रवार को दिल्ली में बैठक की। बैठक में वायदा बाजार में जिंसों की कीमतों में उतार-चढ़ाव पर नजर रखने के लिए दो समितियों का गठन करने पर सहमति बनी।

उन्होंने बताया कि जल्द ही इन समितियों का गठन किया जाएगा तथा गठन के तीन सप्ताह बाद समितियों को अपनी रिपोर्ट खाद्य मंत्री को देनी होगी। इन समितियों में एफएमसी के सदस्यों के अलावा किसानों के प्रतिनिधि, ब्रोकर, हेजिंग कारोबारी और एक्सचेंजों के प्रतिनिधियों को भी सदस्य बनाया जाएगा। चना, सोया और सरसों की कीमतों में आई तेजी रोकने के लिए एफएमसी पिछले पंद्रह दिनों में तीन बार अतिरिक्त मार्जिन लगा चुका है।

साथ ही उसने कारोबारियों की पोजिशन लिमिट में कटौती भी की है, लेकिन इनके दाम फिर भी तेज ही बने हुए है। चालू महीने में वायदा बाजार में चने की कीमतों में 4 फीसदी, सरसों के दामों में 2.2 फीसदी और सोया तेल की कीमतों में 3 फीसदी की तेजी आई है। हालांकि, तेजी का प्रमुख कारण चना एवं सरसों के उत्पादन में कमी और डॉलर के मजबूत होने से आयात पड़ता महंगा होना भी है। (Buseinss Bhaskar....R S Rana)

टायर उद्योग की मांग घटने से नेचुरल रबर में गिरावट

टायर उद्योग की कमजोर मांग से नेचुरल रबर की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है। कमजोर मांग से सप्ताहभर में इसकी कीमतों में 200 रुपये की गिरावट आकर भाव 19,600 से 19,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। हालांकि मार्च महीने में नेचुरल रबर का घरेलू उत्पादन भी 400 टन घटकर 54,000 टन रह गया। इस वजह से आगामी दिनों में मूल्य में मजबूती का रुख आ सकता है।

हरि संस मलयालम लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज कपूर ने बताया कि मार्च महीने में नेचुरल रबर के उत्पादन में तो कमी आई है लेकिन मार्च में टायर उद्योग की मांग कमजोर रही है इसीलिए कीमतों में मंदा आया है। मार्च महीने में नेचुरल रबर का उत्पादन 54,000 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 54,400 टन का उत्पादन हुआ था। उन्होंने बताया कि घरेलू बाजार में नेचुरल रबर का कुल स्टॉक पिछले साल की तुलना में कम है।

वैसे भी लीन सीजन चल रहा है इसीलिए मौजूदा कीमतों में ज्यादा गिरावट की संभावना नहीं है। भारतीय रबर बोर्ड के अनुसार वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान नेचुरल रबर का उत्पादन 4.3 फीसदी बढ़कर 8.99 लाख टन का हुआ है जबकि इस दौरान खपत में 2 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल खपत 9.66 लाख टन की हुई है। नेचुरल रबर के आयात में पिछले साल की तुलना में बढ़ोतरी हुई है।

वित्त वर्ष 2011-12 में नेचुरल रबर का कुल आयात 2.05 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 1.88 लाख टन का आयात हुआ था। घरेलू बाजार में नेचुरल रबर का कुल स्टॉक भी मार्च के आखिर में 2.30 लाख टन का ही है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 2.88 लाख टन का स्टॉक बचा हुआ था।

विनको ऑटो इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर एम. एल. गुप्ता ने बताया कि क्लोजिंग के कारण मार्च महीने में टायर उद्योग और अन्य उद्योगों की मांग कमजोर रही थी। उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी नेचुरल रबर के दाम घटे है। जिसका असर घरेलू बाजार में इसकी कीमतों पर पड़ा है। अगस्त तक नेचुरल रबर के उत्पादन का लीन सीजन रहेगा तथा कुल स्टॉक पिछले साल से कम है इसीलिए आगामी दिनों में घरेलू बाजार में फिर कीमतें बढऩे की संभावना है।

सात अप्रैल को कोट्टायम में नेचुरल रबर का दाम 19,800 से 20,000 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि शुक्रवार को घटकर 19,600-19,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। बैंकाक में भी शुक्रवार को नेचुरल रबर का भाव घटकर 19,800 से 19,900 रुपये प्रति क्विंटल (भारतीय मुद्रा में) रह गया। (Business Bhaskar...R S Rana)

टायर उद्योग की मांग घटने से नेचुरल रबर में गिरावट

टायर उद्योग की कमजोर मांग से नेचुरल रबर की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है। कमजोर मांग से सप्ताहभर में इसकी कीमतों में 200 रुपये की गिरावट आकर भाव 19,600 से 19,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। हालांकि मार्च महीने में नेचुरल रबर का घरेलू उत्पादन भी 400 टन घटकर 54,000 टन रह गया। इस वजह से आगामी दिनों में मूल्य में मजबूती का रुख आ सकता है।

हरि संस मलयालम लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज कपूर ने बताया कि मार्च महीने में नेचुरल रबर के उत्पादन में तो कमी आई है लेकिन मार्च में टायर उद्योग की मांग कमजोर रही है इसीलिए कीमतों में मंदा आया है। मार्च महीने में नेचुरल रबर का उत्पादन 54,000 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 54,400 टन का उत्पादन हुआ था। उन्होंने बताया कि घरेलू बाजार में नेचुरल रबर का कुल स्टॉक पिछले साल की तुलना में कम है।

वैसे भी लीन सीजन चल रहा है इसीलिए मौजूदा कीमतों में ज्यादा गिरावट की संभावना नहीं है। भारतीय रबर बोर्ड के अनुसार वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान नेचुरल रबर का उत्पादन 4.3 फीसदी बढ़कर 8.99 लाख टन का हुआ है जबकि इस दौरान खपत में 2 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल खपत 9.66 लाख टन की हुई है। नेचुरल रबर के आयात में पिछले साल की तुलना में बढ़ोतरी हुई है।

वित्त वर्ष 2011-12 में नेचुरल रबर का कुल आयात 2.05 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 1.88 लाख टन का आयात हुआ था। घरेलू बाजार में नेचुरल रबर का कुल स्टॉक भी मार्च के आखिर में 2.30 लाख टन का ही है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 2.88 लाख टन का स्टॉक बचा हुआ था।

विनको ऑटो इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर एम. एल. गुप्ता ने बताया कि क्लोजिंग के कारण मार्च महीने में टायर उद्योग और अन्य उद्योगों की मांग कमजोर रही थी। उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी नेचुरल रबर के दाम घटे है। जिसका असर घरेलू बाजार में इसकी कीमतों पर पड़ा है। अगस्त तक नेचुरल रबर के उत्पादन का लीन सीजन रहेगा तथा कुल स्टॉक पिछले साल से कम है इसीलिए आगामी दिनों में घरेलू बाजार में फिर कीमतें बढऩे की संभावना है।

सात अप्रैल को कोट्टायम में नेचुरल रबर का दाम 19,800 से 20,000 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि शुक्रवार को घटकर 19,600-19,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। बैंकाक में भी शुक्रवार को नेचुरल रबर का भाव घटकर 19,800 से 19,900 रुपये प्रति क्विंटल (भारतीय मुद्रा में) रह गया। (Business Bhaskar...R S Rana)

कपास में बिकवाली से होगा मुनाफा

सरकार द्वारा कॉटन निर्यात के लिए नए पंजीकरण सौदों को अनुमति नहीं दिए जाने से कीमतों में गिरावट की संभावना है। यार्न मिलों के पास भी अच्छा स्टॉक है। जबकि उत्पादक मंडियों में दैनिक आवक लगभग एक लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) से ज्यादा की हो रही है।

चालू महीने में उत्पादक मंडियों में कॉटन की कीमतों में 500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) की गिरावट आई भी है। जबकि वायदा बाजार में चालू महीने में कपास की कीमतों में 5.6 फीसदी की गिरावट आ चुकी है।

एनसीडीईएक्स पर अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में चालू महीने में कपास की कीमतों में 5.6 फीसदी की गिरावट आई है। 31 मार्च को अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में कपास का भाव 786.5 रुपये प्रति 20 किलो था जबकि शुक्रवार को भाव घट कर 806 रुपये प्रति 20 किलो पर कारोबार करते देखा गया। अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में 6,125 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। ब्रोकिंग फर्म एंजेल कमोडिटी के एग्री विश£ेशक बद्दरूदीन ने बताया कि निर्यात के लिए नए पंजीकरण सौदों को मंजूरी नहीं दिए जाने से मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट आने का अनुमान है।

केसीटी एंड एसोसिएट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि सरकार ने कॉटन के निर्यात के लिए नए निर्यात पंजीकरण सौदों की अनुमति नहीं दी है। केवल उन्हीं सौदों का निर्यात हो पायेगा जिनका पंजीकरण पहले हो चुका है तथा इनकी जांच भी विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा की जा रही है। ऐसे में केवल 10 लाख गांठ का ही और निर्यात हो पायेगा है। वैसे भी यार्न मिलों के पास स्टॉक ज्यादा है जबकि दैनिक आवक एक लाख गांठ से ज्यादा की हो रही है इसीलिए कॉटन की मौजूदा कीमतों में गिरावट बनी हुई है।

मुक्तसर कॉटन प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर नवीन ग्रोवर ने बताया कि निर्यातकों के साथ स्टॉकिस्टों के पास भी कपास का स्टॉक ज्यादा है। ऐसे में आगामी दिनों में स्टॉकिस्टों की बिकवाली की भी बढऩे की संभावना है। जिससे मौजूदा कीमतों में और भी 500 से 1,000 रुपये प्रति कैंडी की गिरावट आ सकती है।

अहमदाबाद में शुक्रवार को शंकर-6 किस्म की कपास का भाव घटकर 34,200 से 34,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) का रह गया। जबकि 31 मार्च को इसका भाव 34,700 रुपये से 35,000 रुपये प्रति गांठ था। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार 2011-12 में कॉटन का उत्पादन 340.87 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2010-11 में 330 लाख गांठ का हुआ था। (Business Bhaskar....R S Rana)

गड़बड़ी पाई तो और जिंसों के वायदा पर गिरेगी गाज

पिछले महीने ग्वार और ग्वार गम वायदा कारोबार को निलंबित करने के बाद उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कहा है कि अगर वास्तविकता में दूसरी जिंसों में भी कीमतों में अनावश्यक बढ़ोतरी होती है तो मंत्रालय वायदा बाजार आयोग से ऐसे कदम उठाने की सिफारिश करने से नहीं हिचकिचाएगा। मंत्रालय ने कहा कि ऐसे तथ्यों की जांच के बिना ऐसे कदम नहीं उठाए जा सकते।
हाजिर बाजार में कुछ जिंसों की कीमतों पर लगाम कसने और वायदा बाजार में उच्च उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए सरकार ने सभी हितधारकों और विशेषज्ञों की आठ सलाहकार समिति बनाने का फैसला लिया है। ये समितियां वायदा एक्सचेंजों पर कारोबार होने वाली सभी जिंसों (मुख्य रूप से आवश्यक जिंसों) की कीमतों में हो रहे उतार-चढ़ाव पर नजर रखेंगी। इसके अलावा उपभोक्ता मामलों के सचिव भी वायदा बाजार में कीमतों में हो रहे उतार-चढ़ाव की अलग से जांच करेंगे। यह रिपोर्ट 10-15 दिनों में सौंपी जाएगी।
ये कदम मेंथा तेल, इलायची, चना, काली मिर्च और सोया तेल जैसी जिंसों के वायदा कारोबार में असामान्य उतार-चढ़ाव को देखते हुए उठाए गए हैं और इसका असर हाजिर बाजार पर नजर आ रहा है। इसके अलावा उपभोक्ता मामलों का विभाग वित्त मंत्रालय की मदद यह सुनिश्चित करने में लेगा कि जिंस वायदा एक्सचेंजों में कहीं अवैध धन का हस्तांतरण तो नहीं हो रहा है। उपभोक्ता मामलों के मंत्री के वी थॉमस ने कहा कि वायदा बाजार में कुछ जिंसों की कीमतों में अचानक हो रहे उतार-चढ़ाव पर विभाग नजर रखे हुए है और इस पर लगाम कसने के लिए वह हर संभव कदम उठाएगा। इन कदमों में कुछ जिंसों के वायदा कारोबार पर पाबंदी की सिफारिश शामिल हो सकते हैं।
थॉमस ने कहा - हमारा मानना है कि वायदा बाजार में हाजिर बाजार की मांग व आपूर्ति के फंडामेंटल के हिसाब से फैसला होना चाहिए और यह महज बेहतर कीमत दिलाने वाला प्लैटफॉर्म होना चाहिए। लेकिन इस प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल होर्डिंग के लिए नहीं होना चाहिए। (BS Hindi)

कपास पर बढ़ सकती है केंद्र सरकार की सख्ती

कपास पर साल 1986 की तरह सख्ती बढ़ सकती है क्योंकि तब इसे आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के दायरे में लाया गया था और कपास आवश्यक जिंस बन गई थी। अगर हम प्रस्तावित कपास व्यापार (विकास व विनियमन) अधिनियम 2012 के मसौदे पर नजर डालें तो मामला कुछ इसी तरह का नजर आ रहा है। इस मसौदे में कपास पर केंद्र सरकार के पूर्ण नियंत्रण का प्रस्ताव है। अगर कपास के उत्पादन, प्रसंस्करण व विनिर्माण पर राज्यों के मौजूदा कानून केंद्र सरकार के प्रस्तावित कानून का उल्लंघन करते नजर आएंगे तो केंद्र को उन पर जुर्माना लगाने का अधिकार होगा।
इस विधेयक के मसौदे में सभी जिनिंग व प्रसंस्करण वाली इकाइयों, कपास के कारोबारियों और सूती धागेके विनिर्माताओं को कानून बनने के तीन महीने के भीतर कपड़ा आयुक्त के पास फिर से पंजीकरण कराना होगा और उन्हें अपने परिसर में स्थायी तौर पर गांठों की पहचान की व्यवस्था स्थापित करनी होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि सभी प्रसंस्करण व जिनिंग इकाइयों को ताजा मार्क नंबर दिए जाएंगे और पुराने नंबर अवैध हो जाएंगे।
अधिकारियों ने कहा कि आयुक्त के कार्यालय से नए प्रेस मार्क हासिल किए बिना कपास की कोई भी इकाई गांठों पर इसे नहीं लगा पाएंगी। अधिकारियों ने कहा कि प्रेस हाउस से बिना मार्क वाले गांठ हटाने पर 5000 रुपये प्रति गांठ प्रति दिन के हिसाब से जुर्माना देना होगा। उन्होंने कहा कि ये कदम कच्चे कपास के आकलन, उत्पादन और खपत को विनियमित करने के लिए उठाए जाएंगे क्योंकि आंकड़े संकलित करने के लिए कोई वैधानिक ढांचा नहीं है और इसके चलते कपास सलाहकार बोर्ड को कपास की बैलेंस शीट तैयार करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इन्हीं वजहों से आधिकारिक व कारोबारी आंकड़ों में अंतर दिखता है। उद्योग के सूत्रों ने कहा कि जल्द ही कपास पंजीकरण के मौजूदा नियम सख्त हो जाएंगे। मौजूदा समय में कोई अनिवार्यता नहीं है कि कपास के कारोबार से जुड़ी इकाइयां आयुक्त के कार्यालय में अपना पंजीकरण कराए। फिलहाल कपड़ा आयुक्त के नियम व कानून ऐच्छिक हैं। अभी कपास की जिनिंग करने वाली इकाइयां या अन्य इकाइयां हर सीजन मेंं अपने परिसर में रजिस्टर रखती हैं और उसमें जिनिंग व दूसरी चीजों के बारे में आंकड़े रखती हैं यानी इसका खुलासा करती हैं। इसके अलावा हर सीजन में लिंट के उत्पादन का ब्योरा भी देना पड़ता है और इसमें नाकाम रहने पर इकाइयों को 50,000 रुपये जुर्माना चुकाना पड़ता है।
इसके अलावा कपास जिनिंग इकाइयां, स्वतंत्र प्रेसिंग फैक्ट्रियां व कारोबारियों को मासिक उत्पादन का रिटर्न दाखिल करना होता है और इसमें नाकाम रहने पर कानून के तहत उन्हें सजा मिलती है। पहले रिटर्न फाइल करना और रजिस्टर बनाना ऐच्छिक था, न कि कानूनी रूप से अनिवार्य। एक ओर जहां कपास का प्रसंस्करण करने वाली हर इकाई या नई इकाइयों को इसकी स्थापना के 30 दिन के भीतर सूचना दाखिल करनी होती है, लेकिन नई फैक्ट्री की स्थापना पर भी अब सूचना देनी होगी। (BS Hindi)

चीनी निर्यात के तरीके पर ईजीओएम करेगा फैसला

दस लाख टन चीनी निर्यात के फैसले के करीब तीन हफ्ते बाद निर्यात के विवादास्पद तौर-तरीके का फैसला अधिकारप्राप्त मंत्रियों का वही समूह करेगा क्योंकि खाद्य व कृषि मंत्रालयों के बीच उठे विवाद के चलते निर्यात की अधिसूचना जारी होने में देर हो रही है। 26 मार्च को निर्यात के फैसले के बाद भेजे संदेश में ईजीओएम ने खाद्य मंत्रालय से इसके तरीके को अंतिम रूप देने को कहा है और इसके लिए समानता व पारदर्शिता के सिद्धांत अपनाने को कह रहा है। इसका मतलब है मिलों के हिसाब से निर्यात कोटा आवंटन की पुरानी व्यवस्था को जारी रखना, लेकिन यह पहले आओ, पहले पाओ की व्यवस्था से अलग होगी, जिस पर ईजीओएम ने चर्चा की थी। व्यवस्था में बदलाव से बंदरगाह के आसपास मौजूद मिलों को फायदा होता, लेकिन उत्तरी राज्यों की मिलों पर इसका असर दिखाई देता। ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तरी राज्यों की मिलें पुरानी व्यवस्था के तहत निर्यात कोटे की बिक्री के जरिए थोड़ा बहुत मुनाफा अर्जित करने की स्थिति में होती।
ईजीओएम की बैठक का ब्योरा खाद्य मंत्रालय पहुंचने के बाद कृषि मंत्री शरद पवार ने वित्त मंत्री व ईजीओएम के प्रमुख प्रणव मुखर्जी को पत्र लिखा और ईजीओएम की बैठक व वास्तविक ब्योरे के अंतर को उजागर किया। इस बीच, उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों मसलन बिड़ला, द्वारिकेश, डीसीएम श्रीराम आदि ने पुरानी व्यवस्था की जगह पहले आओ पहले पाओ की व्यवस्था का विरोध जारी रखा। हालांकि खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने कहा कि मिलों के हिसाब से निर्यात कोटे का आवंटन जारी रहेगा।
लेकिन खाद्य मंत्रालय ने अपना नजरिया बदला और निर्यात के नए तौर-तरीके समानता व पारदर्शिता के सिद्धांत पर मुखर्जी की मंजूरी लेने का फैसला किया। इस प्रगति से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि वित्त मंत्री ने यह मामला तय नहीं किया है और शुक्रवार को इसे एक बार फिर ईजीओएम के पास ले जाने का फैसला हुआ ताकि निर्यात के तरीके पर आमसहमति से कोई फैसला हो। ईजीओएम की बैठक की तारीख की जानकारी अभी हालांकि नहीं है।
सूत्रों ने बताया कि यह पहला मौका होगा जब ईजीओएम का फैसला दोबारा ईजीओएम की बैठक में इसे लागू करने के तौर-तरीके पर फैसला लेने के लिए जाएगा। निर्यात व्यवस्था में प्रस्तावित बदलाव ने न सिर्फ कृषि व खाद्य मंत्रालयों में मतभेद पैदा कर दिया है बल्कि उद्योग भी दो हिस्सों में बंट गया है। एक ओर जहां दक्षिण व पश्चिम की कंपनियां पहले आओ पहले पाओ की व्यवस्था लागू करने की मांग कर रही हैं, वहीं उत्तर भारत की मिलों का तर्क है कि इस बदलाव से उन्हें नुकसान होगा और इसके नतीजे में गन्ना किसानों को भुगतान में देरी होगी।
उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि इस भ्रम का खामियाजा उन्हें भी भुगतना होगा क्योंकि दुनिया में चीनी के सबसे बड़े उत्पादक देश ब्राजील में एक महीने से भी कम समय में उत्पादन शुरू हो जाएगा और इससे निर्यात बाजार से मिलने वाले लाभ पर दबाव बढ़ जाएगा। (BS Hindi)

MSP for Kharif Crops of 2011-12

The Cabinet Committee on Economic Affairs has approved the Minimum Support Prices (MSPs) for Kharif Crops of 2011-12 seasons. The MSP of Paddy (Common) has been fixed at Rs.1080 per quintal and of Paddy (Grade A) at Rs. 1110 per quintal, which represents an increase of Rs.80 per quintal over the last year’s MSPs.

The MSPs of Jowar (Hybrid), Bajra and Maize each have been raised by Rs.100 per quintal and fixed at Rs.980 per quintal each. The MSP of Jowar (Maldandi) has also been raised by Rs. 100 per quintal over the last year’s MSP and fixed at Rs. 1000 per quintal. The MSP of Ragi has been fixed at Rs. 1050 per quintal, raising it by Rs. 85 per quintal over the last year’s MSP.

The MSP of Arhar (Tur) has been fixed at Rs. 3200 per quintal, of Moong at Rs. 3500 per quintal and of Urad at Rs. 3300 per quintal marking an increase of Rs. 200 per quintal, Rs.330 per quintal and Rs. 400 per quintal, respectively over the last year’s MSPs. The MSPs of Arhar (Tur) and Moong have been fixed at a level higher by Rs.100 per quintal than that recommended by Commission for Agricultural Costs & Prices (CACP). In addition, similar to last year an additional incentive at the rate of Rs. 500 per quintal for tur, urad and moong sold to the Government procurement agencies during the harvest/ arrival period of two months shall also be given.

The MSPs of Groundnut-in-shell, Sun flowers seed, Sesamum and Nigerseed have been increased by Rs. 400 per quintal, Rs. 450 per quintal, Rs.500 per quintal and Rs.450 per quintal over the last year’s MSPs and have been fixed at Rs. 2700 per quintal, Rs. 2800 per quintal, Rs. 3400 per quintal and Rs. 2900 per quintal, respectively. The MSPs of Soyabean (Black), Soyabean (Yellow) have been increased by Rs. 250 per quintal each over the last year’s MSPs and fixed at Rs.1650 per quintal and Rs. 1690 per quintal, respectively.

MSP of Cotton has been raised by Rs. 300 per quintal and fixed at Rs. 2800 per quintal for Staple length (mm) of 24.5 - 25.5 and Micronaire value of 4.3 - 5.1 and at Rs. 3300 per quintal for Staple length (mm) of 29.5 - 30.5 and Micronaire value of 3.5 - 4.3. (PIB)

12 अप्रैल 2012

नाराज शरद पवार ने पीएम को पत्र लिखा

नई दिल्ली। दूध, कपास एवं चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध से नाराज कृषि मंत्री शरद पवार ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियां किसानों को नुकसान पहुंचा रही हैं एवं उन्हें एक तरह से उद्योग के लिए सब्सिडी देनी पड़ रही है।

कृषि मंत्री ने मंगलवार को यह चिट्ठी लिखी। इससे एक दिन पहले ही मंत्रिसमूह ने चालू विपणन वर्ष में 1.3 करोड़ गांठ से अधिक के कपास निर्यात को अनुमति देने से इंकार कर दिया था। पवार ने विशेष रूप से केवी थॉमस की अगुआई वाले खाद्य मंत्रालय एवं आनंद शर्मा के कपड़ा मंत्रालय को आडे़ हाथ लेते हुए कहा कि उनकी नीतियां किसानों के खिलाफ हैं। कपास निर्यात पर रोक को पीछे ले जाने वाला कदम है। कपास की खेती करने वाले किसान से यह नहीं कहा जा सकता कि वह कपड़ा मिलों के लिए सब्सिडी का बोझ उठाए। कपड़ा उद्योगपतियों के लाभ के लिए छोटे कपास किसानों के हितों के साथ समझौता उचित नहीं है।

पवार ने कहा कि इसी तरह खाद्य मंत्रालय के चीनी निर्यात की मंजूरी पर नकारात्मक रुख से निर्यात आमदनी का भारी नुकसान हुआ है। इस आमदनी का इस्तेमाल गन्ना किसानों के बकाया भुगतान के लिए किया जा सकता था। आठ हजार करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। उन्हाेंने कहा कि ऊंची उत्पादन लागत और अपनी उपज का कम दाम मिलने की वजह से किसान को संघर्ष करना पड़ रहा है। ऐसे में मुक्त व्यापार व्यवस्था की जरूरत हो गई है, जो किसानाें को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करा सके। पवार के अलावा कपास निर्यात प्रतिबंध का विरोध गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी एवं कांग्रेस पार्टी की महाराष्ट्र व गुजरात इकाइयां भी कर चुकी हैं। (Dainik Jagran)

कृषि क्षेत्र में पूंजी निवेश में निरंतर वृद्धि

हाल के वर्षों में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में पूंजी निवेश में निरंतर वृद्धि देखी गयी है। यह वर्ष 2004-05 के 13.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2010-11 में 20.1 प्रतिशत हो गया। कृषि क्षेत्र को एक टिकाऊ व्यवसाय बनाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा उठाये गये विभिन्न कदमों के फलस्वरूप यह संभव हुआ है।

सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश में सिंचाई, कमान क्षेत्र विकास, भूमि सुधार, वनरोपण और राजकीय फार्मों का विकास शामिल हैं। निजी क्षेत्र के निवेश में भूमि सुधार सहित निर्माण संबंधी गतिविधियां, गैर आवासीय भवनों, फार्म हाऊसों, कुओं और अन्य सिंचाई सुविधाओं का निर्माण शामिल है।

देश के सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष सकल पूंजी निर्माण के रूप में पूंजी निवेश को मापा जाता है।

कृषि और सहकारिता विभाग की ओर से वर्ष 2011-12 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010-11 में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों का सकल पूंजी निर्माण 1,42,254 करोड़ रुपये था, जो वर्ष 2004-05 में 76,096 करोड़ रुपये था। (PIB)

बागवानी मिशन के अंतर्गत राज्यों को 5840 करोड़ रुपये जारी किए गए

वर्ष 2005-2012 के दौरान राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत राज्यों को 5840.47 करोड़ रुपये जारी किए गए। वर्तमान वित्त वर्ष (2012-13) के मिशन के लिए 1360 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान किया गया है। पिछले वित्त वर्ष में 975 करोड़ रुपये जारी किये गये थे। योजना में 17 राज्यों तथा दिल्ली, लक्षदीप,अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और पुदुचेरी केन्द्र शासित प्रदेशों के 372 जिले शामिल किए गए हैं।

मिशन के तहत प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता इस प्रकार हैः

(करोड़ रुपये)

राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश

रकम

1

महाराष्ट्र

801.61

2

आंध्र प्रदेश

620.80

3

कर्नाटक

608.58

4

तमिलनाडु

486.96

5

उत्तर प्रदेश

422.82

6

छत्तीसगढ़

412.77

7

केरल

344.58

8

मध्य प्रदेश

328.14

9

हरियाणा

326.79

10

गुजरात

269.45

11

राजस्थान

258.68

12

ओडिशा

256.47

13

झारखंड

211.95

14

पंजाब

185.93

15

पश्चिम बंगाल

146.04

16

बिहार

134.27

17

गोवा

11.80

18

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह

7.37

19

दिल्ली

3.00

20

पुदुचेरी

1.53

21

लक्षदीप

0.93

कुल राज्य

5840.47

पूर्वोत्तर तथा पहाड़ी राज्यों को अन्य योजना में रखा गया है जिसे पूर्वोत्तर एवं हिमाचल राज्य बागवानी मिशन कहा जाता है। (PIB)

बारिश से गेहूं की क्वालिटी प्रभावित होने की आशंका

गेहूं की फसल खेतों में बिछने से कटाई में भी हो सकती है देरी

विशेषज्ञ की राय
बारिश और आंधी से तैयार खड़ी गेहूं की फसल की क्वालिटी प्रभावित होने की आशंका है। पंजाब और हरियाणा में गेहूं की फसल की कटाई चल रही है इससे इन राज्यों में कटाई में भी विलंब हो सकता है। - डॉ. इंदू शर्मा, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, गेहूं अनुसंधान निदेशालय, करनाल

बारिश कहां हुई
पटियाला, लुधियाना, भिवानी, रोहतक, पलवल, सोनीपत, मेरठ, बागपत, बड़ौत, अलवर

पिछले दो दिनों से हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कई जिलों में बारिश और आंधी ने गेहूं किसानों की चिंता बढ़ा दी है। बारिश के साथ तेज हवा चलने से तैयार खड़ी गेहूं की फसल की कटाई में देरी होने की आशंका है। कई जगह थ्रेशिंग के लिए कटी हुई फसल भी भीग गई। इससे गेहूं की क्वालिटी प्रभावित होने की आशंका बन गई है।

गेहूं अनुसंधान निदेशालय की प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. इंदू शर्मा ने बताया कि बारिश और आंधी से तैयार खड़ी गेहूं की फसल की क्वालिटी प्रभावित होने की आशंका है। पंजाब और हरियाणा में गेहूं की फसल की कटाई चल रही है इससे इन राज्यों में कटाई में भी विलंब हो सकता है।

उन्होंने कहा कि मौसम विभाग ने अगले 24 घंटे में उत्तर भारत के हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में तेज हवा चलने की चेतावनी दी है। हालांकि उन्होंने कहा कि इससे गेहूं के उत्पादन में तो कमी नहीं आएगी, लेकिन दानों में नमी की मात्रा बढऩे से भंडारण में जरूर परेशानी आएगी।

पिछले दो दिनों में पंजाब के पटियाला और लुधियाना, हरियाणा के भिवानी, रोहतक, पलवल और सोनीपत, उत्तर प्रदेश के मेरठ, बागपत और बड़ौत तथा राजस्थान के अलवर जिलों में बारिश के साथ आंधी चलने से गेहूं की तैयार खड़ी फसलें खेतों में बिछ गई है। साथ ही कटी हुई फसलों की थ्रेशिंग में भी देरी होगी। रोहतक जिले के किसान गजे सिंह ने बताया कि बारिश के साथ तेज हवा चलने से गेहूं की पकी फसल लेट गई है। इससे फसल कटाई में तो परेशानी आएगी ही, साथ ही गेहूं के दानों का रंग भी काला पड़ सकता है।

किसानों से सीधे खरीद में पंजाब का कानून बना रोड़ा

नई दिल्ली किसानों से सीधे गेहूं की खरीद करके भुगतान करने की केंद्र सरकार की योजना में पंजाब के कानून ने ही अड़ंगा लगा दिया है। पंजाब के मंडी बोर्ड अधिनियम में सीधे खरीद का प्रावधान न होने के कारण खरीद में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले राज्य पंजाब से सरकारी एजेंसियां चालू विपणन सीजन में गेहूं की खरीद आढ़तियों के माध्यम से ही करने को विवश है। चालू विपणन सीजन के लिए खाद्य मंत्रालय ने सीधे किसानों से गेहूं की खरीद करके उन्हें एकाउंट पेई चैक के माध्यम से भुगतान करने की योजना बनाई है।

भारतीय खाद्य निगम पंजाब रीजन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पंजाब के मंडी बोर्ड अधिनियम में किसानों से गेहूं की सीधी खरीद का प्रावधान नहीं है। इसीलिए इस मुद्दे को कानून मंत्रालय के पास भेजा गया है। चालू विपणन सीजन 2012-13 में गेहूं की खरीद आढ़तियों के माध्यम से शुरू कर दी है। अभी तक मंडियों से 1,500 टन गेहूं की खरीद की जा चुकी है। आढ़तियों के माध्यम से गेहूं की खरीद करने के लिए उन्हें 2.5 फीसदी कमीशन दिया जाता है।(Business Bhaskar.....R S Rana)

सूखे से इलायची पिचकी

केरल के इडुक्की जिले के ज्यादातर इलायची उत्पादक क्षेत्रों में भीषण गर्मी से इसकी 20 फीसदी फसल खराब हो गई है। उदुमबानचोला तालुका के उत्पादकों के मुताबिक गर्मी में बारिश न होने से इलायची के पौधों के साथ ही नए फुटाव को भी नुकसान पहुंचा है। इससे अगले सीजन में उत्पादन घट सकता है।
करीब 35 फीसदी नया फुटाव पहले ही खराब हो चुका है, जिससे अगले सीजन में फसल की आवक में 4-6 सप्ताह की देरी होगी। आमतौर पर इलायची की कटाई जून तक शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार यह जुलाई के आखिरी सप्ताह या अगस्त के पहले सप्ताह तक शुरू हो सकेगी। अत्यधिक गर्मी की स्थिति तालुका के ज्यादातर हिस्सों जैसे कट्टाप्पाना, नेदुनकदडम, वांडांमेडु, नारायनपारा और इराट्टयार में है, जहां इलायची प्रमुख फसल है। हालांकि अन्य तालुकों जैसे तोदुपुझा और पीरुमेडु में पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान 5-6 बार गर्मी की बारिश हुई है लेकिन ज्यादातर इलाचयी उत्पादक क्षेत्र अभी बारिश की बाट जोह रहे हैं। इसलिए गर्मी और सूखे मौसम की वजह से पौधों को भारी नुकसान पहुंच रहा है।
हालांकि नए फुटाव को भारी नुकसान पहुंचा है, लेकिन उत्पादकों को उम्मीद है कि अगर पौधों को अगले कुछ सप्ताह में बारिश मिल जाए तो नुकसान की भरपाई हो सकती है। उनके अनुसार पिछले सीजन में भी ऐसी ही गर्मी थी, जिससे उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ था। इस बार कुल उत्पादन 10-15 फीसदी घटने की संभावना है। पिछले सीजन में उत्पादन 11,000 टन रहा था। इस बार उत्पादन 9,000 टन रहने का अनुमान है।
सूखा मौसम काली मिर्च के लिए भी नुकसानदायक है, क्योंकि नये ताजा फुटाव के लिए बारिश बहुत जरूरी होती है। हालांकि तोदुपुझा क्षेत्र में काली मिर्च की फसल को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा है। लेकिन जिले थेक्कडी-कुमली क्षेत्र में इसकी फसल प्रभावित हुई है।
उत्पादकों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि प्रचंड गर्मी की वजह से इस क्षेत्र में काली मिर्च की बहुत अधिक बेल खराब हुई हैं। राज्य में काली मिर्च का सालाना औसत उत्पादन 45,000 टन है। (BS Hindi)

सोने में पहले सुस्ती फिर चुस्ती

अमेरिका में क्यूई3 यानी राहत पैकेज के तीसरे चरण की संभावना घटने और यूरो जोन के आर्थिक संकट में धीमे सुधार से अल्पावधि में सोने की कीमतें सुस्त बनी रहेंगी। लेकिन लंबी अवधि में सोने की कीमतें सुधर कर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकती हैं।
वैश्विक कीमती धातु सलाहकार कंपनी थॉमसन रॉयटर्स जीएफएमएस के बुधवार को जारी सर्वे के अनुसार अगले एक या दो महीने में सोने की कीमतें गिरकर 1,550 डॉलर प्रति औंस से नीचे आ जाएंगी। हालांकि सलाहकार कंपनी अपने पिछले पूर्वानुमान पर कायम है, जिसमें उसने कहा था कि चालू वर्ष के अंत तक सोना 2,000 डॉलर प्रति औंस के स्तर को छू सकता है। इस साल की शुरुआत में सोने की कीमत गिरकर 16,00 डॉलर प्रति औंस से नीचे आ गई थी, लेकिन बाद में सुधर कर यह फिलहाल लंदन में 1,658.9 डॉलर प्रति पर कारोबार कर रहा है।
थॉमसन रॉयटर्स जीएफएमएस के वैश्विक प्रमुख (धातु विश्लेषण) फिलिप क्लैपविज ने सोने में निवेश करने वालों को सतर्क रहने की सलाह देते हुए कहा, 'कीमत 1,600 डॉलर पर आना अचरज है। बहुत संभावना है कि यह धातु और भी नीचे जा सकती है, संभवत: अगले एक या दो महीने में 1,550 डॉलर से नीचे।'
क्लैपविज ने कहा कि हमारा मानना है कि मध्यम अवधि में सोने में तेजी रहेगी। उन्होंने कहा, 'हम पिछले साल सितंबर का रिकॉर्ड टूटते आसानी से देख सकेंगे और दिसंबर 2012 से पहले इसके 2,000 डॉलर के आसपास पहुंचने की संभावना है। हालांकि यह आंकड़ा पूरी तरह अगले वर्ष की पहली छमाही में टूट सकता है।'
वर्ष के दौरान इस स्थिति में बदलाव की प्रमुख वजह यूरोजोन सॉवरिन ऋण संकट फिर से उभरना है। यूरो जोन के लिए अब स्पेन चिंता का विषय बन गया है। इसके अलावा यह भी माना गया था कि अगले कुछ महीनों में अमेरिका में सुधार थम जाएगा, जिससे फेडरल रिजर्व को अतिरिक्त मौद्रिक उपाय अपनाने होंगे। इन दोनों वजहों से मौद्रिक तरलता में सुधार की संभावना जताई गई थी।
उन्होंने कहा, 'इन मौद्रिक उपायों से महंगाई के फिर सिर उठाने की संभावना है और यदि ईरान व अमेरिका के बीच तनाव बढऩे से तेल की कीमतों में इजाफा हुआ तो महंगाई और बढ़ सकती है।'
निवेशकों को केंद्रीय बैंक की नीतियों में बदलाव से प्रोत्साहन भी मिला क्योंकि पिछले साल अधिकृत तौर पर खरीद में 450 टन से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस वृद्धि का मुख्य कारण अगले वर्ष में केंद्रीय बैंक स्वर्ण समझौते के हस्तारक्षरकर्ताओं द्वारा कम बिक्री करने और डॉलर के बजाय अन्य परिसंपत्ति को तरजीह देने के इच्छुक लोगों की भारी खरीद को माना गया।
फंडामेंटल आधार पर सबसे अच्छा पहलू यह रहा कि 2011 में आभूषण निर्माण में केवल दो फीसदी ही गिरावट आई। उन्होंने कहा, 'बाजार स्पष्ट रूप से उभरते हुए बाजारों की आर्थिक शक्तियों पर निर्भर था। जैसे चीन में आभूषणों की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची और भारत में गिरावट 3 फीसदी से कम रही। (BS Hindi)