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24 मार्च 2012

डॉलर की तपिश में खौलेंगे खाद्य तेल

तिलहन की पैदावार घटने से खाद्य तेलों के दाम काफी बढ़ चुके हैं। ऊंचे भाव पर इनकी कीमतों में गिरावट की उम्मीद थी, लेकिन डॉलर में आ रही मजबूती के कारण कीमतों में गिरावट की उम्मीद टूटने लगी है। इस महीने रुपये की तुलना में डॉलर करीब 4 फीसदी मजबूत हुआ है। डॉलर में तेजी जारी रहने पर खाद्य तेल और महंगे हो सकते हैं।
इस महीने आयातित क्रूड पाम तेल 550 रुपये से बढ़कर 575 रुपये और क्रूड सोया डिगम तेल 645 रुपये से चढ़कर 665 रुपये प्रति 10 किलोग्राम पर पहुंच गया है। देश में सरसों तेल के भाव 25 से 30 रुपये चढ़कर 845 रुपये और सोया रिफाइंड तेल 20 रुपये बढ़कर 750 रुपये प्रति 10 किलो हो गए हैं।
बी. एल. एग्रो ऑयल लिमिटेड के प्रबंध निदेशक घनश्याम खंडेलवाल ने बताया कि तिलहन की पैदावार कम होने से खाद्य तेलों के दाम बढ़े हैं। उन्होंने कहा कि सरसों की पैदावार घटने से इसका तेल दो माह में 20 फीसदी से ज्यादा महंगा हुआ है। सेंट्रल आर्गेनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड (कोएट) के अध्यक्ष सत्यनारायण अग्रवाल कहते हैं कि उत्पादन में कमी खाद्य तेलों में तेजी की प्रमुख वजह है। उनका कहना है आधे से ज्यादा खाद्य तेलों की आपूर्ति आयात के जरिए होती है। ऐसे में डॉलर मजबूत होने से आयातित खाद्य तेल महंगे हो गए हैं। इसका असर घरेलू खाद्य तेलों पर भी हो रहा है। एक तेल मिल मालिक का कहना है कि कम उत्पादन की आड़ में वायदा बाजार में सटोरिये सोयाबीन और सरसों के दाम लगातार बढ़ा रहे हैं। इनके वायदा कारोबार पर रोक लगनी चाहिए, जिससे खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी रोकी जा सके। (BS Hindi)

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