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28 फ़रवरी 2012

पीडीएस में सस्ती दालों की बिक्री बंद करने की तैयारी

बिजनेस भास्कर दिल्ली

एक तरफ जहां सरकार देश की 64 फीसदी जनता को सस्ता खाद्यान्न देने के लिए प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के लिए प्रयासरत है वहीं दूसरी तरफ गरीबों को आवंटित की जाने वाली सब्सिडी युक्त दालों का आवंटन बंद करने जा रही है। ऐसे में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत सस्ती दालों का वितरण बंद हो जाएगा। वह भी ऐसे समय में, जब दलहन उत्पादन लगभग 10 लाख टन घटने का अनुमान है। सस्ती दालों के उठान में राज्यों की दिलचस्पी कम होने के चलते सरकार इसका आवंटन बंद करने जा रही है। हालांकि इस पर अंतिम फैसला खाद्य मामलों के उच्चाधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) की बैठक में ही होगा।
उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पीडीएस में आवंटन के लिए इस समय केवल छह राज्य ही दालों का उठान कर रहे हैं। इसीलिए मंत्रालय ने पीडीएस में आवंटित की जाने वाली दालों का आयात बंद करने की सिफारिश की है। इसका निर्णय ईजीओएम की आगामी बैठक में होने की संभावना है। सीमित उठान होने के कारण कंपनियां भी पीडीएस में आवंटन के लिए दलहन आयात में बेरुखी बरत रही हैं। चालू वित्त वर्ष 2011-12 के पहले आठ महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान पीडीएस में आवंटन के लिए सार्वजनिक कंपनियों ने केवल 76,000 टन दलहन का ही आयात किया जबकि वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान 2.6 लाख टन दालों का आयात किया गया था।
पीडीएस में आवंटन के लिए सरकार ने चार सार्वजनिक कपंनियों एसटीसी, एमएमटीसी, पीईसी और नेफेड को अधिकृत किया हुआ है तथा पीडीएस के तहत आवंटन के लिए सार्वजनिक कंपनियों को सरकार आयातित दालों पर 10 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी देती है। उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2010-11 में पीडीएस में आवंटन के लिए 12 राज्यों ने दालों का उठान किया था। इस दौरान सार्वजनिक कपंनियों ने 2.6 लाख टन दलहन का आयात किया था। वित्त वर्ष 2009-10 में पीडीएस में आवंटन के लिए सार्वजनिक कंपनियों ने 2.5 लाख टन दालों का आयात किया था तथा इस दौरान 10 राज्यों ने दालों का उठान किया था।
कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 में देश में दलहन उत्पादन 172.8 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2010-11 में 182.4 लाख टन का उत्पादन हुआ था। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर तक देश में दलहन का कुल आयात 16.59 लाख टन हो चुका है जो पिछले साल की समान अवधि के 16.29 लाख टन से थोड़ा ज्यादा है। दलहन आयात में सबसे बड़ी भागीदारी प्राइवेट आयातकों की है।(Business Bhaskar....R S Rana)

भारत से 61 लाख टन चावल निर्यात की संभावना

इंटरनेशनल ग्रेन्स काउंसिल (आईजीसी) ने चालू वर्ष 2012 के दौरान भारत से ज्यादा चावल निर्यात होने की उम्मीद जताई है। उसके अनुसार भारत से 61 लाख टन चावल का निर्यात हो सकता है। पहले 50 लाख टन चावल निर्यात होने की गुंजाइश बताई थी।

आईजीसी ने एक रिपोर्ट में कहा कि भारत से चावल निर्यात के बारे में यह अनुमान इसके आधार पर लगाया है कि सरकार गैर बासमती चावल का निर्यात चालू वर्ष में भी जारी रखेगी। सरकार ने घरेलू खपत से ज्यादा उत्पादन होने की संभावना के चलते सितंबर 2011 में चावल निर्यात की अनुमति दी थी।

पिछले माह आईजीसी ने दुनिया के दूसरे सबसे बड़े चावल उत्पादक देश भारत से 50 लाख टन चावल के निर्यात की संभावना जताई थी। पिछले साल 2011 के दौरान भारत से कुल 41 लाख टन चावल का निर्यात किया गया था। चालू फसल वर्ष 2011-12 (जुलाई-जून) के दौरान 1027.5 लाख टन चावल का उत्पादन होने का अनुमान है।

सरकार ने बासमती चावल के निर्यात के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को घटाकर 700 डॉलर प्रति टन तय किया है। चावल निर्यात के मामले में आईजीसी ने भारत व पाकिस्तान को छोड़कर बाकी सभी देशों से सप्लाई घटने का अनुमान जताया है। चावल निर्यात में कमी की संभावना वाले देशों में थाईलैंड, वियतनाम और अमेरिका शामिल हैं।

रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2012 में थाईलैंड का चावल निर्यात 106 लाख टन से घटकर 67 लाख टन रहने का अनुमान है। वियतनाम का निर्यात 71 लाख टन से घटकर 64 लाख टन रह सकता है।

इसी तरह अमेरिका से निर्यात 33 लाख टन से घटकर 30 लाख टन रहने की संभावना है। आईजीसी के अनुसार वैश्विक स्तर पर चावल का आयात सात फीसदी घटकर 322 लाख टन रह सकता है। बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे एशियाई देशों की खरीद में कमी आ सकती है। (Business Bhaskar)

चीनी डिकंट्रोल करने पर विशेषज्ञ रिपोर्ट छह माह में

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के चेयरमैन सी. रंगराजन ने कहा है कि चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने के मसले से जुड़े सभी बिंदुओं पर गहराई से जांच के लिए विशेषज्ञ समिति बनाई गई है। यह समिति छह माह में अपनी रिपोर्ट सौंप देगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले जनवरी में रंगराजन की अगुवाई में विशेषज्ञ समिति बनाई थी।

रंगराजन ने खाद्य, कृषि और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की एक बैठक के बाद संवाददाताओं को बताया कि हम चीनी उद्योग से जुड़े सभी मुद्दों को समझने और उनका समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं। विशेषज्ञ समिति की हर महीने बैठक हो रही है और उम्मीद है कि हम अगले छह माह में अपनी रिपोर्ट दे देंगे। चीनी का मुद्दा सरकार के लिए खासा संवेदनशील है।

चीनी के दाम बढऩे पर सरकार को उपभोक्ताओं की गुस्सा झेलनी पड़ सकती है। इस वजह से सरकार किसी भी तरह से चीनी महंगी नहीं होने देना चाहती है। मौजूदा नियंत्रणों के तहत सरकार मिलों से 10 फीसदी चीनी सस्ते दामों पर लेवी के तहत खरीदती है और गन्ने का मूल्य केंद्र और राज्य स्तर पर तय किया जाता है। मिलों को गन्ना खरीद के लिए राज्य सरकार द्वारा घोषित मूल्य देना होता है और अगर किसी राज्य ने मूल्य घोषित नहीं किया है तो केंद्र सरकार का मूल्य लागू होता है।

सरकार हर माह बिक्री के लिए चीनी का कोटा तय करती है। मिलों को कोटे के अनुरूप चीनी की बिक्री करनी होती है। इस तरह मिलों को चीनी बेचने की आजादी नहीं है। लेकिन मिलों को इन नियंत्रणों के तहत केन रिजर्व एरिया का अधिकार मिलती है। किसी क्षेत्र विशेष में कोई दूसरी मिल गन्ने की खरीद नहीं कर सकती है। (Business Bhaskar)

अब मेंथा में तेजी की खुशबू

जिंस एक्सचेंजों पर मेंथा तेल और जौ वायदा अचानक कारोबारियों की पसंदीदा जिंस बन गई है और पिछले कुछ महीने में इनमें कारोबारियों की भागीदारी काफी ज्यादा बढ़ गई है। इसके चलते इन जिंसों के वायदा कारोबार में कीमतें लगातार ऊपर की ओर जा रही हैं। लेकिन उद्योग से जुड़े लोग ग्वार और ग्वार गम जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति से इनकार कर रहे हैं।
मेंथोल में इस्तेमाल होने वाले मेंथा तेल की कीमतें पिछले छह महीने में करीब-करीब दोगुनी हो गई है, वहीं जौ की कीमतें इस अïवधि में करीब 50 फीसदी बढ़ी हैं। इन दोनों जिंसों का उत्पादन देश के कुछ चुनिंदा जिलों में होता है।
कीमतों में लगातार तेजी काफी मायने रखती है क्योंकि जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग ने हाल में ग्वार व ग्वार गम में भारी अनियमितताएं पकड़ी हैं। इन अनियमितताओं मसलन मार्जिन फंडिंग आदि को देखते हुए एफएमसी ने हाल में राजस्थान के तीन कारोबारियों को 6 से 12 महीने के लिए निलंबित कर दिया है। नियामक को हालांकि ऐसी अनियमितताएं दूसरी जिंसों मसलन मेंथा तेल व जौ में होने के सबूत नहीं मिले हैं। एफएमसी के एक अधिकारी ने कहा - इन जिंसों की कीमतें शुद्ध रूप से फंडामेंटल के चलते ऊपर गई हैं। ऐसे में मेंथा तेल व जौ के मामले में हमें कारोबारियों के खाते की जांच करने की दरकार नहीं लगती। उन्होंने कहा कि ग्वार के मामले में एफएमसी ने दंड देने की अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया। अभी भी कीमतें हालांकि बढ़ रही हैं। इससे संकेत मिलता है कि इस जिंस में फंडामेंटल के समर्थन से उछाल आई है। राजस्थान के कारोबारियों के खिलाफ नियामक की सख्ती के बाद भी ग्वार व ग्वार गम की फरवरी अनुबंध की कीमतें क्रमश: 18,096 रुपये व 58,700 रुपये प्रति क्विंटल के नए रिकॉर्ड पर पहुंच गईं। पिछले छह महीने में इन जिंसों की कीमतें 300 फीसदी से ज्यादा बढ़ी हैं। केडिया कमोडिटीज के विश्लेषक अजय केडिया के मुताबिक, मेंथा तेल के कारोबार में मजबूती है और स्टॉकिस्टों की मजबूत मांग के चलते जल्द ही यह 2000 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंच जाएगी। इस साल मेंथा वायदा में 44 फीसदी से ज्यादा की तेजी आई है और सोमवार को एमसीएक्स पर इसकी कीमतें 1906.90 रुपये प्रति किलोग्राम रहीं।
ऐंजल ब्रोकिंग के सहायक निदेशक नवीन माथुर ने कहा - वैश्विक बाजार व देसी दवा उद्योग की तरफ से बढ़ती मांग और देश की प्रमुख मंडियों में कम आपूर्ति के चलते हाजिर बाजार में मेंथा तेल काफी मजबूत रही है और यही चीजें वायदा बाजार में प्रतिबिंबित हो रही हैं। (BS Hindi)

घटती मांग से कपास में बढ़त की संभावना कम

विदेशी बाजारों में मांग और दाम कमजोर रहने तथा देसी धागा मिलों की हल्की खरीदारी से कपास की कीमतें लगातार गिर रही हैं। महीने भर के भीतर हाजिर और वायदा बाजार में इसके भाव 10 फीसदी लुढ़क चुके हैं। हाजिर बाजार में ग्राहक नहीं होने पर किसान सस्ते में माल बेच रहे हैं और वायदा बाजार में बिकवाली की वजह से कपास और कॉटनसीड लोअर सर्किट में फंसे हैं।
मंद मांग के बीच कपास (शंकर-6) का हाजिर भाव महीने भर में 37,100 रुपये से लुढ़कर 34,000 रुपये प्रति कैंडी के नीचे चले गए हैं। वायदा में आज एनसीडीईएक्स पर कपास और कॉटन के सभी अनुबंधों पर 4 फीसदी गिरावट के साथ लोअर सर्किट लगा। दरअसल विदेशी बाजार में कीमत गिर गई हैं और पिछले साल के उतारचढ़ाव झेल चुकी देसी कंपनियां भी ज्यादा खरीदारी नहीं कर रही हैं। वायदा बाजार में एक्सपायरी की तारीख नजदीक होने के कारण निवेशक माल जल्दबाजी में माल बेच रहे हैं।
कोटक कमोडिटी की उपाध्यक्ष प्रेरणा देसाई के मुताबिक यूरोप और चीन से कमजोर मांग का असर देश में भी पड़ रहा है। रुई का वायदा अनुबंध भी अप्रैल तक ही है, जिस कारण निवेशक माल निकालने में जल्दबाजी दिखा रहे हैं और रुई में लोअर सर्किट लग रहा है।
उधर धागा मिल मालिकों का कहना है कि उनके गोदाम भरे पड़े हैं, इसलिए वे माल नहीं खरीद रहे, जबकि माल की आपूर्ति खूब हो रही है। मंडियों में सूत्रों ने बताया कि उत्तर भारत की प्रमुख मंडियों में रोजाना करीब 30,000 गांठ (1 गांठ में 170 किलोग्राम कपाास), गुजरात में 64,000 और महाराष्ट्र की मंडियों में 4,000 गांठ कपास की आवक हो रही है। धागा मिलों के लिए कपास खरीदने वाले विशाल ने बताया कि मिल मालिक पहले 6 महीने का माल गोदाम में रखते थे, लेकिन पिछली बार कीमतों के उतार चढ़ाव में पिटने के बाद अब वे 3 महीने का माल रखते हैं।
कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार इस बार 30.87 लाख गांठ कपास उत्पादन की संभावना है, जो पिछले वर्ष 330 लाख गांठ था। कपास सलाहकार बोर्ड के मुताबिक इस बार 345 लाख टन कपास होगा, जबकि देसी मांग 250-260 लाख गांठ ही होगी। (BS Hindi)

25 फ़रवरी 2012

गरीबों को सस्ते अनाज के प्रावधान के लिए नई जुगत

आर.एस. राणा नई दिल्ल
देश की 63 फीसदी जनता को सस्ता अनाज दिला पाने की राह में बढ़ती अड़चनों के चलते संप्रग सरकार नई जुगत में लग गई है। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की महत्वाकांक्षी योजना ‘प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक’ पर सरकार में मतभेद के चलते बीच का रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है। केंद्र सरकार अब मौजूदा राशन प्रणाली के तहत ही प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के कुछ प्रावधानों को लागू करने पर विचार कर रही है। अगर बात सही दिशा में चली तो कैबिनेट की मंजूरी लेकर एक प्रशासनिक आदेश के जरिये इन प्रावधानों को लागू कर दिया जाएगा। इस समय खाद्य सुरक्षा विधेयक संसद की स्थायी समिति के पास है।

खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि प्रशासनिक आदेश के जरिये तकरीबन 63 फीसदी जनता को सस्ता अनाज मुहैया कराने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए दो श्रेणियां बनाई जाएंगी। इनमें से एक में गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले परिवार (एपीएल) और दूसरी में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवार (बीपीएल) शामिल होंगे। मौजूदा समय में सरकार तीन श्रेणियों एपीएल, बीपीएल और अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के माध्यम से राशन प्रणाली के तहत खाद्यान्न का आवंटन करती है।

उन्होंने बताया कि विधेयक के प्रारूप के अनुसार ही बीपीएल परिवारों को 3 रुपये प्रति किलो की दर से चावल, 2 रुपये प्रति किलो की दर से गेहूं और 1 रुपये प्रति किलो की दर से मोटे अनाजों का आवंटन करने की योजना है। उधर, एपीएल परिवारों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की आधी कीमत पर खाद्यान्न का आवंटन किया जाएगा। बीपीएल परिवार के प्रत्येक सदस्य को हर महीने सात किलो अनाज तथा एपीएल परिवार के प्रत्येक सदस्य को हर महीने तीन किलो अनाज सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से दिया जाएगा। हालांकि इससे सरकारी खजाने पर 27,663 करोड़ का अतिरिक्त भार पडऩे की संभावना है। इससे खाद्य सब्सिडी बिल का बोझ 95,000 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। इसके अलावा ज्यादा कृषि उत्पादन के लिए तकरीबन 1,10,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च भी बढ़ेगा क्योंकि इससे खाद्यान्न की मांग 550 करोड़ टन से बढ़कर 610 करोड़ टन हो जाने का अनुमान है।

नई कवायद

अब मौजूदा राशन प्रणाली के तहत ही प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल के कुछ प्रावधानों को लागू करने पर विचार कर रही है सरकार

अगर बात सही दिशा में चली तो कैबिनेट की मंजूरी लेकर एक प्रशासनिक आदेश के जरिये इन प्रावधानों को कर दिया जाएगा लागू

बिल का अप्रत्यक्ष विरोध

कृषि मंत्री < शरद पवार का कहना है कि खाद्य सुरक्षा कानून को यदि मौजूदा पीडीएस प्रणाली के जरिए ही लागू करने की कोशिश की गई तो यह लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता नहीं मिल पाएगी

>वित्त मंत्री <> प्रणब मुखर्जी ने बढ़ते सब्सिडी बोझ पर चिंता जताते हुए हाल ही में कहा था कि इससे उनकी रातों की नींद उडऩे लगी है।

<>तमिलनाडु <> की मुख्यमंत्री जे. जयललिता के अनुसार खाद्य सुरक्षा विधेयक भ्रम व त्रुटियों से परिपूर्ण है और यह खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने की पहल का मखौल उड़ाएगा।
(Business Bhaskar... R S Rana)

गेहूं का भंडारण एफसीआई के लिए बड़ी चुनौती होगा

बिजनेस भास्कर नई दिल्ली

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की भंडारण क्षमता के मुकाबले केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक काफी ज्यादा है। ऐसे में रबी विपणन सीजन वर्ष 2012-13 में अप्रैल से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदे जाने वाले 320 लाख टन गेहूं के भंडारण में एफसीआई को काफी जद्दोजहद करनी पड़ सकती है। एफसीआई के पास 31 दिसंबर की कुल भंडारण क्षमता 333.59 लाख टन की है। इसके अलावा राज्य सरकारों के पास भी करीब 250 लाख टन से ज्यादा की भंडारण क्षमता है।

कुल सरकारी भंडारण क्षमता 583.59 लाख टन है जबकि केंद्रीय पूल में पहली फरवरी को 552.51 लाख टन खाद्यान्न मौजूद था। इस समय सरकारी गोदामों में 40 लाख टन से भी कम भंडारण क्षमता उपलब्ध है। एफसीआई ने विपणन सीजन वर्ष 2011-12 में एमएसपी पर 283.4 लाख टन गेहूं की खरीद की थी।

कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन 883.1 लाख टन होने का अनुमान है। वैसे भी चालू विपणन सीजन के लिए सरकार ने गेहूं का एमएसपी 1,285 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है जबकि उत्पादन मंडियों में लीन सीजन के बावजूद गेहूं के दाम इससे कम है।

ऐसे में गेहूं की सरकारी खरीद सरकार के तय लक्ष्य से भी ज्यादा होने का अनुमान है। सरकार ने 2009 में 152 लाख टन की अतिरिक्त भंडारण क्षमता तैयार करने की योजना बनाई थी। इसमें से अभी तक सिर्फ पांच टन से भी कम भंडारण क्षमता के गोदाम ही तैयार हो पाए हैं। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एचएलसी अभी तक 109 लाख टन की अतिरिक्त भंडारण क्षमता को मंजूरी दे चुकी है।

उन्होंने बताया कि 40 लाख टन की अतिरिक्त भंडारण क्षमता मार्च 2012 तक तैयार करने का लक्ष्य रखा है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत दस साल और सात साल के लिए संशोधित गारंटी योजना के तहत भंडारण क्षमता बढ़ाई जा रही है। केंद्रीय पूल में पहली फरवरी को 552.51 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूद है।

इसमें 318.26 लाख टन चावल और 234.25 लाख टन गेहूं का स्टॉक है जो बफर स्टॉक के तय मानकों के मुकाबले काफी ज्यादा है। बफर के हिसाब से पहली जनवरी को केंद्रीय पूल में 82 लाख टन गेहूं और 118 लाख टन चावल का ही स्टॉक होना चाहिए। (Business Bhaskar....R S Rana)

सब्सिडी का बोझ घटाने के लिए कीमत सुरक्षा कोष का प्रस्ताव

खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने पर सब्सिडी में होने वाली भारी बढ़ोतरी का भार कम करने के लिए सरकार ने कीमत सुरक्षा कोष का प्रस्ताव तैयार किया है। खाद्य व उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है और साल 2012-13 के बजट में यह सामने आ सकता है।
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि इस कोष का ढांचा अभी शुरुआती अवस्था में है और अभी इस पर विस्तार से काम होना बाकी है। कुछ चीजें कीमत सुरक्षा कोष के संबंध में राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा की गई सिफारिशों से ली गई हैं।
कृषि मंत्रालय द्वारा 11वीं पंचवर्षीय योजना से पहले एम एस स्वामीनाथन समिति गठित की गई थी। समिति ने कहा है कि बाजार कीमत स्थिरता कोष की स्थापना केंद्र व राज्य सरकारों के साथ-साथ वित्तीय संस्थाओं द्वारा संयुक्त रूप से की जानी चाहिए ताकि कीमतों में होने वाले उतारचढ़ाव के दौर में किसानों को संरक्षण मिल सके। उदाहरण के तौर पर समिति ने खास तौर से जल्द नष्ट होने वाली जिंसों मसलन प्याज, आलू, टमाटर के बारे में इस तरह की बात कही है।
हालांकि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित कोष के गठन पर उपभोक्ता के लिहाज से विचार किया जाना अभी बाकी है। उनके मुताबिक, इस कोष का मकसद प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के जरिए सब्सिडी में होने वाली बढ़ोतरी पर विचार किया जाना है और केंद्र पर जरूरत से ज्यादा बोझ देने की बजाय राज्यों पर भी इसका थोड़ा बहुत बोझ होना चाहिए। सब्सिडी का यह बोझ मौजूदा खाद्य सब्सिडी के अतिरिक्त होगा। अधिकारियों ने कहा कि कीमत सुरक्षा कोष का दायरा विस्तृत हो सकता है, न कि सिर्फ बीपीएल तक, जो मौजूदा समय में खाद्य सब्सिडी के लिए बेंचमार्क है। शुरुआती दौर में इस योजना के दायरे में जनवितरण प्रणाली के तहत दी जाने वाली जिंसें होंगी, लेकिन बाद में इसका दायरा दूसरी जिंसों तक बढ़ाया जा सकता है। इन जिंसों का फैसला फसल वर्ष और किसी खास वर्ष में मांग-आपूर्ति की स्थिति पर निर्भर करेगा।
बीपीएल परिवारों को दिए जाने वाले खाद्यान्न तक खाद्य सब्सिडी का बोझ केंद्र सरकार वहन करेगी, वहीं बाकी का भार कीमत सुरक्षा कोष पर होगा और इसकी साझेदारी राज्य सरकारों व केंद्र सरकार के बीच होगी। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि कुल मिलाकर पीडीएस व्यवस्था के तहत सभी केंद्रीय योजनाएं सिर्फ राज्यों के विषय का ही समर्थन करती है। ऐसे में खाद्य सब्सिडी में थोड़ी बहुत हिस्सेदारी करना राज्यों के लिए तार्किक बन जाएगा।
उच्च महंगाई और आवश्यक जिंसों की कीमतों में होने वाले उतारचढ़ाव से आम लोगों को कीमत सुरक्षा कोष के जरिए राहत मिलेगी। इससे खाद्यान्न की आपूर्ति देश के ज्यादातर लोगों तक सुनिश्चित होगी, न कि सिर्फ बीपीएल परिवारों तक। साल 2011-12 के लिए बजट में खाद्य सब्सिडी के तौर पर 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, वहीं वास्तविक सब्सिडी करीब 95,300 करोड़ रुपये है। पीडीएस के जरिए गेहूं, चावल, चीनी और केरोसिन की आपूर्ति बीपीएल परिवारों को होती है। (BS Hindi)

'जुर्माने की रकम निवेशक सुरक्षा कोष में जमा कराएं एक्सचेंज'

वायदा बाजार आयोग ने कहा है कि जिंस एक्सचेंज वसूली गई जुर्माने की रकम 31 मार्च तक निवेशक सुरक्षा कोष में जमा कर दें और 10 अप्रैल तक इस संबंध में नियामक के पास रिपोर्ट जमा करा दें। जिंस एक्सचेंजों को भेजे निर्देश में नियामक ने कहा है - '1 अप्रैल 2006 से वसूली गई जुर्माने की रकम एक्सचेंज आईपीएफ खाते में मार्च 2012 तक जमा करा दें। साथ ही इस निर्देश के अनुपालन की रिपोर्ट वे 10 अप्रैल 2012 तक नियामक के पास जमा करा दें।'
ऐंजल ब्रोकिंग के सहायक निदेशक नवीन माथुर ने कहा - 'इस खाते में जमा रकम से जागरूकता कार्यक्रम चलाने, सेमिनार के आयोजन और कारोबारियों को शिक्षित करने की खातिर चलाई जाने वाली दूसरी योजनाओं पर होने वाले खर्च में मदद मिलेगी।'
नियामक ने पहली बार ऐसा दिशानिर्देश जुलाई 2006 में जारी किया था और जिंस एक्सचेंजों को बतौर जुर्माना वसूली गई रकम आईपीएफ खाते में जमा करने का निर्देश दिया था। पिछले महीने के आखिर में एफएमसी ने एक्सचेंजों से कहा था कि वे अनिवार्य रूप से वित्त वर्ष के आखिर तक आईपीएफ ट्रस्ट का पंजीकरण करा लें।
नियामक की तरफ से उचित दिशानिर्देश के अभाव में राष्ट्रीय स्तर के तीन एक्सचेंज एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स और एनएमसीई जुर्माने के तौर पर वसूली गई रकम एक्सचेंज की आय के तौर पर मान रहे थे। लेकिन जुलाई 2006 में आईपीएफ की बाबत दिशानिर्देश जारी होने के बाद एक्सचेंज ने जुर्माने के तौर पर वसूली गई रकम को निवेशकों के हितों की रक्षा की खातिर एक अलग खाते में रखने लगे। लेकिन अब तक आईपीएफ खाते में पूरी रकम जमा नहीं की गई थी। कारोबारी सूत्रों के मुताबिक, एक्सचेंजों ने करीब 20 करोड़ रुपये इकट्ठा किए हैं और फरवरी 2007 तक इसे अपनी कंपनी के खातों में जमा रखा, जब एफएमसी ने एक बार फिर दिशानिर्देशों को दोहराया। इन एक्सचेंजों ने हालांकि नियामक के सामने दलील दी थी कि जुर्माने के तौर पर वसूली गई रकम को एक्सचेंज की आय मान ली जाए। लेकिन एफएमसी ने इसे अस्वीकार कर दिया था। एफएमसी ने हालांकि एक्सचेंजों को कुल रकम का 10 फीसदी प्रशासनिक खर्च के तौर पर अलग रखने की छूट दे दी है।
आईपीएफ खाते में निवेशकों द्वारा गड़बड़ी किए जाने के बाद उनसे वसूली गई रकम जमा की जाती है। इसका इस्तेमाल डिफॉल्ट की स्थिति में निवेशकों की सुरक्षा के लिए किया जाता था। लेकिन इस खाते में काफी कम रकम जमा है यानी कुछ हजार रुपये। ऐसे में एफएमसी चाहता है कि आईपीएफ में मजबूती लाई जाए और इसका अनिवार्य रूप से पंजीकरण हो।
खाद्य, उपभोक्ता मामले और जन वितरण पर गठित स्थायी समिति के चेयरमैन विलास मुत्तेमवार की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिंस एक्सचेंजों के सहयोग से एफएमसी को देश में छोटे किसानों के बीच जागरूकता कार्यक्रम का संचालन करना चाहिए और इसमें तेजी लाई जानी चाहिए। ऐसे में एफएमसी चेयरमैन रमेश अभिषेक ने इस कोष के एक हिस्से का इस्तेमाल जिंस एक्सचेंजों की बाबत और जागरूकता फैलाने में करने का प्रस्ताव रखा है। (BS Hindi)

रैपसीड व सरसों उत्पादन घटने की संभावना

प्रतिकूल मौसम और पाले के चलते इस साल रैपसीड-सरसों का उत्पादन 12 फीसदी घटने की संभावना है। कारोबारियों ने कहा कि रकबे में गिरावट के साथ-साथ फसल पर पाले के असर से रैपसीड-सरसों का उत्पादन इस साल 60 लाख टन पर सीमित रह जाएगा।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के हालिया सर्वेक्षण से संकेत मिल रहा है कि साल 2010 में सरसों का कुल रकबा 72.4 लाख हेक्टेयर था और कुल उत्पादन 68.5 लाख टन था। सरसों तेल उत्पादक संघ और एसईए फिलहाल रैपसीड-सरसों का सर्वेक्षण कर रहा है और इस बाबत 26 फरवरी को रिपोर्ट पेश की जाएगी।
शुरुआती अनुमान के मुताबिक, कारोबारियों को लगता है कि कुल रकबा 66 लाख हेक्टेयर रहेगा जबकि कुल 60 लाख टन उत्पादन होगा। एसईए के रैपसीड-सरसों प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन डी पी खंडेलिया ने कहा - इस साल उत्पादन 60 लाख टन से भी नीचे जा सकता है और संभावना है कि कुल उत्पादन करीब 55 लाख टन के आसपास सिमट जाए।
रैपसीड-सरसों का मुख्य उत्पादक राज्य राजस्थान है। रैपसीड-सरसों रबी की फसल है और देश के कुल रकबे का करीब आधा हिस्सा राजस्थान में है। पाले के चलते कई राज्यों में सरसों की फसल खराब हो गई है। खबर है कि हरियाणा के कुछ जिले में पाले के चलते सरसों की फसल खराब हुई है और सरकार किसानों को मुआवजा देने पर विचार कर रही है।
हालांकि कारोबारियों का कहना है कि इस साल सरसों-रैपसीड में तेल का प्रतिशत पिछले साल के मुकाबले करीब 1.5 फीसदी ज्यादा रहेगा। इसके चलते उत्पादन में होने वाली कमी की थोड़ी बहुत भरपाई करने में मदद मिलेगी। (BS Hindi)

घटेगा सोने का आयात!

चालू खाते के बढ़ते घाटे पर नियंत्रण के लिहाज से सोने का आयात सरकार के लिए सिरदर्द बन चुका है, लेकिन अगले वित्त वर्ष में सोने का आयात नरम रहने की संभावना है। एक ओर जहां प्रधानमंत्री के सलाहकार आयात में 30 फीसदी की गिरावट का अनुमान जता रहे हैं, वहीं उद्योग के दिग्गजों का मानना है कि अगर कीमतें उच्चस्तर पर रहीं और सरकार ने बेकार पड़े सोने को बाजार में लाने के लिए कुछ ठोस कदमों का ऐलान करें तो आयात में 15-20 फीसदी की गिरावट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि बेकार पड़े सोने को बाजार में लाना आयात का बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। अगर अगले वित्त वर्ष में सोने के आयात में अनुमानित गिरावट आंशिक रूप से भी पूरी हुई तो चालू खाते के घाटे को नियंत्रित करने की बाबत बड़ी राहत होगी।
प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) की रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल-जनवरी की अवधि में 50 अरब डॉलर के सोने का आयात हुआ और इस वित्त वर्ष में इसके 58 अरब डॉलर पर पहुंचने की संभावना है। इसमें चांदी के आयात का आंकड़ा भी शामिल है, लेकिन यह महज 3-4 अरब डॉलर हो सकता है। चांदी के आयात का आंकड़ा अलग से उपलब्ध नहीं है। हालांकि अगले साल के बारे में परिषद का अनुमान है कि सोने का आयात करीब 38 अरब डॉलर तक आ जाएगा, जो पिछले दो सालों के 33 अरब डॉलर व 30 अरब डॉलर के आंकड़ों के आसपास होगा।
वास्तव में मात्रा के लिहाज से सोने का आयात पिछले साल के समान स्तर के आसपास ही रहा है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक, कैलेंडर वर्ष 2010 में देश में 958 टन सोने का आयात हुआ जबकि साल 2011 मेंं 969 टन। सोने की कीमतों में तीव्र बढ़ोतरी और रुपये की विनिमय दर में गिरावट के चलते आयात का आंकड़ा कीमत के लिहाज से ज्यादा हो गया।
जेम्स ऐंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के चेयरमैन राजीव जैन ने कहा - 'सोने की मौजूदा उच्च कीमतों के चलते अगले वित्त वर्ष में आयात 15-20 फीसदी घट सकता है। अगर कीमतों में गिरावट आती है तो भी कीमत के लिहाज से आयात में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी शायद ही नजर आए।' उन्होंने हालांकि कहा कि सोने का इस्तेमाल देश में विभिन्न अनुष्ठानों में होता है, लिहाजा मांग में बड़ी गिरावट की उम्मीद नहीं की जा सकती। भारत में करीब 40 फीसदी सोना निवेश के लिए खरीदा जाता है।
पीएमईएसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के मौजूदा आर्थिक हालात से आयातित सोने की मांग में गिरावट आ सकती है। परिषद ने सरकार को जीवन बीमा व म्युचुअल फंड की तरह वित्तीय संपत्ति बनाने की तरफ काम करने का सुझाव दिया है, ताकि सोने की निवेश मांग वित्तीय संपत्ति की तरफ भेजी जा सके। विशेषज्ञ हालांकि स्वर्ण जमा स्कीम को उदार बनाने की बात कह रहे हैं, जिसके जरिए बेकार पड़े सोने को व्यवस्था में लाया जा सकता है। इसके तहत आने वाला सोना आयात का विकल्प हो सकता है। इस समय सिर्फ भारतीय स्टेट बैंक ने ऐसी योजना चलाई हुई है, जिसमें लॉक इन अवधि में एक फीसदी रिटर्न मिलता है।
सोने-चांदी के विश्लेषक भार्गव वैद्य ने कहा - निजी क्षेत्र के बैंकों समेत कई और बैंकों को ऐसी योजना पेश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र के बैंक ऐसी योजना की बाबत ज्यादा आक्रमक होंगी और ज्यादा रिटर्न की पेशकश भी कर सकती हैं। (BS Hindi)

22 फ़रवरी 2012

ऐतिहासिक है खाद्य सुरक्षा विधेयक : प्रधानमंत्री

नई दिल्ली| राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को ऐतिहासिक बताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को राज्यों से अपील की कि वे जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) में तेजी से सुधार करें ताकि संसद में इस विधेयक के पारित होने के बाद सरकार उसे लागू करने की स्थिति में रहे। मुख्य सचिवों की एक बैठक को सम्बोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि विधेयक को पेश करना संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का एक ऐतिहासिक कदम है।

प्रधानमंत्री ने कहा, "कानूनी हक तभी वास्तविकता में बदल सकता है जब हम अपनी जन वितरण प्रणाली में सुधार करें और यह सुधार प्रभावी और तीव्र गति से हो..संसद में पारित हो जाने के बाद हम खाद्य सुरक्षा विधेयक को प्रभावी तरीके से लागू कर सकने की स्थिति में होंगे।"

मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के समक्ष अलग-अलग तरह की चुनौतियां हैं और उन्होंने इन चुनौतियों को पहले ही पांच श्रेणियों-जीविका सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा का अहसास, ऊर्जा सुरक्षा, पारिस्थितिक सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता में विभाजित किया था।

प्रधानमंत्री ने कहा, "यह हम सभी लोगों के लिए महत्वपूर्ण है कि हम इन चुनौतियों के प्रति एक स्पष्ट समझ रखें और इन चुनौतियों से निपटते हुए केंद्र और राज्य को एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।"

मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के समक्ष जो मुश्किलें हैं उनसे निपटना मुश्किल नहीं है।

प्रधानमंत्री ने कहा, "वास्तव में, हमने पहले भी अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना किया है। हमने संकट और विषम परिस्थितियां झेली हैं लेकिन प्रत्येक बार देश और मजबूती के साथ उभरा है।"

उन्होंने कहा, "चुनौती चाहे जैसी भी हो, हमारे अंदर इच्छाशक्ति और कामयाबी हासिल करने की योग्यता है और इसके बारे में मुझे कोई संदेह नहीं है। बशर्ते कि हम दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ मिलकर काम करें।"

पिछले एक साल में आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर कमोबेश शांति सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वाम-पंथी चरमपंथ से मिलने वाली गम्भीर चुनौतियां, सीमा पार से आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता और जातीय हिंसा अभी भी कायम हैं। उन्होंने कहा कि इन चुनौतियों से सख्त, प्रभावी और संवेदनशील तरीके से निपटने की जरूरत है। (Meri khabar.com)

खाद्य सुरक्षा के कुछ विचारणीय बिन्दु

खाद्य एवं कृषि संगठन एफ.ए.ओ. के अनुसार खाद्य सुरक्षा से आशय सभी व्यक्तियों को सही समय पर उनके लिए आवश्यक बुनियादी भोजन के लिए भौतिक एवं आर्थिक दोनों रूप में उपलब्धि की गारंटी है । विश्व विकास रिपोर्ट की भी इसीसे मिलती जुलती अवधारणा है । कुल मिलाकर इसका आशय यह है कि भेजन की उपलब्धता सुनिश्चित होने के साथ साथ व्यक्तियों की पर्याप्त य शक्ति भी सुनिश्चित होना चाहिए तथा खाद्य उपलब्धता के लिए प्रभावी संस्थागत ढांचा भी होना चाहिए।
भारत में खाद्य सुरक्षा मिशन, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न खरीदी, बफर स्टाक तथा आईसीडीएस आदि कार्यमों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा उपलब्ध करवाई जा रही है । अभी हाल में ही मंत्रीमंडल द्वारा अनुमोदित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल 2011 इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम कहा जा सकता है । राष्ट्रीय खाद्या सुरक्षा के माध्यम से आम भारतीय को जीने का अधिकार प्रदान किया गया है । यह एक अलग बात है कि कृषि मंत्री शरद पवार को चिन्ता है कि यह बिल कानून बनने पर लागू किस प्रकार से हो सकेगाा। वित्त मंत्री को चिन्ता है कि इतनी बड़ी धनराशि कहां से आएगी । इस संबंध में विचारणीय बात यह है कि 1991 में अपनाई गई नव-उदारवादी नीतियों के कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली लक्षित वर्ग समूह तक सीमित कर दी गई थी तथा खाद्य सब्सिडी देश की जीडीपी का एक प्रतिशत से भी कम रही है । इस लिए सरकार का दायित्व बनता है कि समावेशीकरण के लिए खाद्या सुरक्षा हेतु जीडीपी का कम से कम 2 प्रतिशत अतिरिक्त व्यय होना ही चाहिए ।
यदि हम इटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीटयूट की वर्ष 2008 रिपोर्ट में प्रकाशित ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार भारत विश्व में 66 वे स्थान पर अफ्रीकी देश घाना एवं निकारागुआ के समकक्ष है। इंडियन स्टेट हंगर इंडेक्स के अनुसार भारत के 17 राय भुखमरी एवं कुपोषण की स्थिति अफ्रीका के इथोपिया से भी बुरी हैं जो बहुत ही चिन्ता का विषय है । इस पृष्ठभूमि में खाद्य सुरक्षा की महत्व बढ़ जाता है। खाद्य सुरक्षा को कुपोषण की सुरक्षा की दृष्टि से भी देखना चाहिए।
यद्यपि वर्तमान में खाद्य स्फीति नियंत्रण में बताई जा रही है किन्तु यह पुन: कब अपना सिर उठा ले कहा नही जा सकता है। इसलिए कृषि उत्पादन में वृध्दि बहुत जरूरी है। भूमि का क्षेत्र सीमित हाने के कारण कृषि उत्पादकता में वृध्दि से ही खाद्य पदार्थो की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। इसके लिए कृषि में निवेश, किसानों को उचित न्यूनतम समर्थन की सुनिश्चितता तथा विभिन्न सरकारी कार्यमों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा दिया जाना जरूरी हैं। खाद्य सुरक्षा हेतु खाद्य उत्पादन के साथ साथ खाद्य प्रबंधन तथा खाद्यान्नों को सड़ने गनले तथा कीटों से बचाव भी अति आवश्यक है । यहां यह भी रेखांकित करना जरूरी है कि भूमि की उत्पादकता में वृध्दि के लिए किसी भी लागत पर उत्पादन में वृध्दि की बजाय कृषि उत्पादन में प्रयुक्त होनेवाले हर एक साधन की उत्पादकता में वृध्दि से ही साधनों के अनुकूलतम उपयोग द्वारा कृषि कुशलता में वृध्दि कर खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास किया जाना चाहिए। यह इसलिए कि देश के पास संसाधन सीमित है । देश में स्वास्थ्य सेवाओं, कमजोर समूहों के कल्याण तथा सामान्य शिक्षा भी बहुत जरूरी है। भारत में रायों में लक्षित समूह के कल्याण के लिए जो योजनाओं की भरमार है किन्तु दुख की बात है कि उसका समूह के आम व्यक्ति को फायदा नही मिल पा रहा है तथा वर्ग भुखमरी की स्थिति में है। इसलिए आवश्यकता आधारित कार्यक्रमों को खाद्य सुरक्षा से जोड़ कर योजनाओं को प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन किया जाना चाहिए।
इसके साथ ही देश के सामाजिक एवं आर्थिक ढांचे में बदलाव हेतु प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन समाज के हाथों में दिया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में ग्रामीण क्षेत्र में सहकारी व सामुहिक कृषि व उपमों द्वारा ही दीर्धकाल में खाद्या सुरक्षा तथा समावेशी विकास सम्भव है। खाद्य सुरक्षा के लिए पर्यावरण सुरक्षा भी बहुत आवश्यक हैं। इसलिए अंधाधुंध औद्योगीकरण पर अंकुश आवश्यक है। विश्व के अनेक देशों में खाद्य प्रबंधन एवं खाद्य वितरण इतना कठिन हो गया हे कि बात भले ही हल्की फु ल्की लगे किन्तु विश्व स्तर पर भुखमरी एवं कुपोषण नियंत्रण हेतु यदि विश्व के वैज्ञानिक कोई ऐसी सस्ती कीमत की गोली विकसित कर सके जो सुबह शाम दो दो गोली लेने से व्यक्ति की भूख शान्त करते हुए उसकी कार्यक्षमता बनाए रखे। (Deshbandhu)

मांग घटने से रबर में और गिरावट की संभावना

बिजनेस भास्कर नई दिल्ली

टायर निर्माताओं की मांग घटने से नेचुरल रबर की कीमतों में और गिरावट आने की संभावना है। पिछले डेढ़ महीने में इसकी कीमतों में आठ रुपये की गिरावट आकर शुक्रवार को कोट्टायम में भाव 182-185 रुपये प्रति किलो रह गए। जनवरी महीने में नेचुरल रबर के उत्पादन में 3.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई जबकि इस दौरान इसकी खपत में 2.4 फीसदी की कमी आई है।

हरि संस मलयालम लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज कपूर ने बताया कि टायर निर्माताओं की मांग कमजोर है जबकि जनवरी में उत्पादन बढ़ा है जिससे घरेलू बाजार में नेचुरल रबर की कीमतों में और गिरावट की संभावना है। जनवरी महीने में नेचुरल रबर का उत्पादन 102,500 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 98,800 टन का उत्पादन हुआ था। इस दौरान नेचुरल रबर की खपत 2.4 फीसदी घटकर 82,000 टन की हुई है। कोट्टायम में सात जनवरी को नेचुरल रबर का भाव 188-193 रुपये प्रति किलो था जबकि शुक्रवार को भाव 182-185 रुपये प्रति किलो रह गया। भारतीय रबर बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2011-12 के अप्रैल से जनवरी के दौरान नेचुरल रबर की मांग और आपूर्ति के अंतर में कमी आई है। इस दौरान अंतर घटकर 15,580 टन रह गया जबकि अप्रैल से दिसंबर के दौरान 38,385 टन का अंतर था। अप्रैल से जनवरी के दौरान नेचुरल रबर का कुल उत्पादन 4.6 फीसदी बढ़कर 7.84 लाख टन का हुआ है। जबकि इस दौरान उद्योग की कमजोर मांग से खपत मात्र 1.3 फीसदी बढ़कर 7.99 लाख टन की ही हुई है।

रबर मर्चेंट्स एसोसिएशन के सचिव अशोक खुराना ने बताया मांग कम होने के कारण मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। विनको ऑटो इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर एम. एल. गुप्ता ने बताया कि पिछले साल दाम ऊंचे होने के कारण कंपनियों को घाटा उठाना पड़ा था। इसीलिए इस समय कंपनियां जरूरत के हिसाब से ही खरीद कर रही है। उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी चालू महीने में नेचुरल रबर की कीमतें घटी हैं जिससे घरेलू बाजार में गिरावट को बल मिला है। बैंकॉक में पहली फरवरी को नेचुरल रबर का भाव 201-202 रुपये प्रति किलो (भारतीय मुद्रा में) था जो शुक्रवार को घटकर 198-199 रुपये प्रति किलो रह गया। (Business Bhaskar....R S Rana)

कृषि मंत्रालय सरसों के रकबा में गिरावट कम करने में ‘सफल’

आर.एस. राणा नई दिल्ली

रबी सीजन में सरसों का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले काफी कम रहने का अनुमान है। लेकिन केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने उत्पादन में गिरावट थोड़ी कम करने में ‘सफलता’ हासिल की है। दरअसल मंत्रालय ने अनायास बुवाई का रकबा बढ़ाकर नहीं आंकड़ो की बाजीगरी से यह ‘कारनामा’ कर दिखाया है। इस साल तो सरसों का बुवाई आंकड़ा बढ़ाना संभव नहीं है तो मंत्रालय ने पिछले साल के बुवाई आंकड़े को ही थोड़ा घटा दिया है ताकि अंतर कम दिखाई दे।

बिजनेस भास्कर की जांच-पड़ताल में पता चला है कि मंत्रालय द्वारा 27 जनवरी को जारी बुवाई आंकड़ों में पिछले मार्केटिंग वर्ष 2010-11 में सरसों की बुवाई का रकबा 73.06 लाख हेक्टेयर बताया गया था। लेकिन एक सप्ताह बाद यानि 3 फरवरी को जारी मंत्रालय के आंकड़ों में पिछले साल का रकबा घट गया। पिछले साल का सरसों का रकबा 70.89 लाख हेक्टेयर दर्शाया गया।

ऐसे में बुवाई में कमी का अंतर 7.64 लाख हेक्टेयर से घटकर 5.12 लाख हेक्टेयर रह गया। चालू मार्केटिंग वर्ष 2011-12 के दौरान सरसों की बुवाई का कुल रकबा 65.30 लाख हेक्टेयर रहा है। पता चला है कि सरसों की बुवाई के पिछले साल के रकबा में हेराफेरी राजस्थान के आंकड़ों में की गई है। राजस्थान देश का सबसे बड़े सरसों उत्पादक राज्य है।

कृषि मंत्रालय द्वारा गत 20 जनवरी को जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2011-12 में सरसों की बुवाई 65.30 लाख हेक्टेयर में हुई, जबकि पिछले साल समान अवधि में 71.11 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी। इस तरह रकबा 5.81 लाख हेक्टेयर कर रहा। राजस्थान में इस दौरान सरसों का रकबा आलोच्य अवधि में पिछले साल के 32.10 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 26.41 लाख हेक्टेयर रहा। इसके बाद मंत्रालय ने 27 जनवरी को जारी आंकड़ों में बताया कि सरसों की बुवाई चालू वर्ष 2011-12 के दौरान 65.41 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस दौरान 73.06 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी। ऐसे में बुवाई का अंतर बढ़कर 7.64 लाख हेक्टेयर का हो गया। राजस्थान में इस दौरान रकबा पिछले साल के 32.45 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 26.41 लाख हेक्टेयर बताया गया।

यहां तक तो सब कुछ ठीक था लेकिन खेल इसके बाद शुरू हुआ। तीन फरवरी को मंत्रालय द्वारा जारी आकड़ों के मुताबिक वर्ष 2011-12 में बुवाई 65.77 लाख हेक्टेयर में दिखाई गई जबकि पिछले साल की बुवाई का रकबा 73.06 लाख हेक्टेयर के बजाय 70.89 लाख हेक्टेयर दर्शाय गया। चालू वर्ष के दौरान बुवाई के आगामी दिनों में रकबा न बढ़े, ऐसा तो हो सकता है लेकिन पिछले साल का रकबा घट जाए, यह समझ से परे है। मंत्रालय हर सप्ताह शुक्रवार को फसलों के बुवाई आंकड़े जारी करता है।

दस फरवरी को कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों में सरसों की बुवाई 65.83 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में रकबा 70.92 लाख हेक्टेयर दर्शाया गया। इस दौरान राजस्थान में बुवाई 26.41 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल का रकबा 30.24 लाख हेक्टेयर बताया गया। जबकि 27 जनवरी को जारी आंकड़ों में राजस्थान की बुवाई का पिछले साल का रकबा 32.45 लाख हेक्टेयर बताया गया था।(Business Bhaskar....R S Rana)

एक्सचेंजों के प्रतिनिधियों की 6 मार्च को खाद्य मंत्री प्रो. के वी थॉमस ने बैठक बुलाई

बिजनेस भास्कर >नई दिल्ली

>उपभोक्ता मंत्रालय क्षेत्रीय कमोडिटी एक्सचेंजों के विकास के प्रति खासा गंभीर है। इन एक्सचेंजों के विकास और कारोबार में वृद्धि के मसले पर चर्चा के लिए खाद्य राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के वी थॉमस ने क्षेत्रीय कमोडिटी एक्सचेंजों के प्रतिनिधियों की 6 मार्च को बैठक बुलाई है। बैठक में क्षेत्रीय एक्सचेंजों को कारोबार में आ रही परेशानियों पर विचार-विमर्श किया जाएगा।

उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जिंसों के कुल कारोबार में क्षेत्रीय एक्सचेंजों की भागीदारी दो फीसदी से भी कम है। इसीलिए मंत्रालय ने इनके कारोबार को बढ़ावा देने के लिए बैठक बुलाई है। उन्होंने बताया कि क्षेत्रीय एक्सचेंज को लोकल स्तर पर उत्पादित होने वाली एक से अधिक जिंसों में कारोबार करने की अनुमति देने पर विचार किया जाएगा। साथ ही क्षेत्रीय एक्सचेंजों को अपने ग्राहकों को कारोबार ऑनलाइन करने की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कहा जाएगा। हालांकि ऑनलाइन करने में खर्च ज्यादा आता है लेकिन एक से अधिक एक्सचेंज आपस में मिलकर ऐसा कर सकते हैं। जिंसों की संख्या में बढ़ोतरी और कारोबार ऑनलाइन होने से लोकल स्तर पर कारोबार करने के लिए कारोबारियों के पास ज्यादा अवसर उपलब्ध होंगे।

उन्होंने कहा कि बैठक में एक्सचेंजों के प्रतिनिधियों से कारोबार में आ रही परेशानी को दूर करने पर जोर दिया जाएगा। इस समय देशभर में 16 क्षेत्रीय एक्सचेंज कारोबार कर रहे हैं। ज्यादातर एक्सचेंजों में मात्र एक या दो जिंसों में ही कारोबार होता है।(Business Bhasakr....R S Rana)

सब्जियां उगाने की योजना खासी धीमी

आर.एस. राणा नई दिल्ली

शहरी क्षेत्रों के आसपास सब्जियां उगाने की सरकार की योजना काफी धीमी चल रही है। योजना के तहत तय लक्ष्य के मुकाबले केवल 50 फीसदी किसानों की ही पहचान हो पाई है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में इसके लिए सरकार ने देशभर में 1.32 लाख किसानों की पहचान का लक्ष्य तय किया है।

जबकि सब्जियां उगाने के लिए 31 जनवरी तक केवल 62 हजार किसानों की ही पहचान हो पाई है। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि शहरी क्षेत्रों में ताजी सब्जियों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) स्कीम के तहत सरकार ने वित्त वर्ष 2011-12 के बजट में 300 करोड़ रुपये का आवंटन किया था।

स्कीम का उद्देश्य चयनित शहरों में सब्जी की मांग एवं आपूर्ति के हिसाब से उत्पादन और उत्पादकता में बढ़ोतरी करना है। स्कीम के तहत वित्त वर्ष 2011-12 में प्रत्येक राज्य के एक शहर या फिर राज्य की राजधानी या 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों के आसपास सब्जियां उगाने के लिए किसानों प्रोत्साहन देना है।

चुने गए शहरों के आसपास सब्जियों के उत्पादन के लिए भूमि और किसानों की पहचान के अलावा उन्हें प्रशिक्षण देने, प्रमाणित बीजों सुलभ कराने तथा सब्जियों को बेचने के लिए मंडियों की स्थापना करना है। उन्होंने बताया कि यह स्कीम लघु कृषक कृषि व्यवसाय संघ (एसएफएसी) के माध्यम से चलाई जा रही है तथा छोटे-छोटे किसानों को जोड़कर समूह बनाए जा रहे हैं।


उन्होंने बताया कि इस स्कीम के तहत कुल आवंटित रकम 300 करोड़ रुपये में से 207 करोड़ रुपये का आवंटन 31 जनवरी तक किया जा चुका है। उत्तर प्रदेश को छोड़कर अन्य राज्यों में बेसलाइन सर्वेक्षण का काम पूरा हो चुका है तथा 31 जनवरी तक देशभर के 62,000 किसानों के 3,061 समूह बनाए गए हैं। (Business Bhaskar...R S Rana)

भारी बर्फबारी से अगले साल मिलेगा सस्ता सेब

बिजनेस भास्कर नई दिल्ली

चालू सीजन में सेब के प्रमुख उत्पादक राज्यों जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में भारी बर्फबारी होने से सेब की पैदावार में 40-50 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। ऐसे में अगस्त में शुरू होने वाले नए सीजन में जहां उपभोक्ताओं को सस्ता सेब मिलने की आस बंधी है, वहीं उत्पादकों के लिए भी फायदेमंद है। पिछले साल उत्पादन कम रहने की वजह से इन दिनों सेब काफी महंगा बिक रहा है।

एप्पल ग्रोअर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रविन्द्र सिंह चौहान ने कहा कि प्रमुख उत्पादक राज्यों जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में भारी बर्फबारी से सेब के बगीचों को फायदा हुआ है। चालू सीजन में कई बार हुई बर्फबारी से सेब के पौधों की जड़ों में नमी की मात्रा लंबे समय तक बरकरार रहेगी। जिससे मार्च में पौधों पर फूल ज्यादा मात्रा में आएगा।

उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2011 में सेब का उत्पादन करीब 1.10 करोड़ बॉक्स (प्रति बॉक्स 20-22 किलो) हुआ था। मौजूदा मौसम के आधार पर अगस्त में शुरू होने वाले नए सीजन में हिमाचल में सेब का उत्पादन बढ़कर लगभग 2 करोड़ बॉक्स होने का अनुमान है। पिछले साल सेब का औसत भाव 1,500 से 1,600 रुपये प्रति बॉक्स था लेकिन उत्पादन बढऩे से नए सीजन में भाव घटकर 1,000 से 1,200 रुपये प्रति बॉक्स रह सकता है।


कुल्लू के सेब उत्पादक मोहन लाल ने बताया कि पिछले साल बर्फबारी कम हुई थी जिससे पैदावार में कमी आने से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। चालू सीजन में अभी तक के मौसम को देखते हुए उत्पादकता में बढ़ोतरी होने की अनुमान है।


नई फसल की आवक का जोर अगस्त से अक्टूबर तक रहता है। कश्मीर एप्पल मर्चेंट्स एसोसिएशन के महासचिव एम. कृपलानी ने बताया कि भारी बर्फबारी से चालू सीजन में सेब का उत्पादन बढऩे की संभावना है। पिछले साल प्रतिकूल मौसम से सेब की काफी फसल बर्बाद हो गई थी। सेब के पेड़ों में मार्च के दौरान आने वाली पत्तियों और अप्रैल में आने वाले फूलों के लिए बर्फबारी फायदेमंद साबित होगी।

जड़ों में नमी लंबे समय तक रहने से ज्यादा फूल आएंगे जिससे सेब उत्पादन अधिक होगा।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2011 में जम्मू-कश्मीर में सेब का उत्पादन करीब 7 लाख टन हुआ था जबकि वर्ष 2012 में उत्पादन 9 लाख टन से ज्यादा होने का अनुमान है। पिछले साल उत्पादक क्षेत्रों में सेब का दाम 55 से 60 रुपये प्रति किलो था लेकिन चालू सीजन में इसका भाव घटकर 35 से 40 रुपये प्रति किलो तक रह सकता है। (Business Bhasakr....R S Rana)

अंतरराष्ट्रीय बाजार में इफरात चीनी से घटेगा देसी निर्यात

वैश्विक स्तर पर इस साल इफरात चीनी की उपलब्धता से विश्व के बाजार में आपूर्ति करने की भारतीय निर्यातकों की मंशा और इससे ज्यादा रकम हासिल करने की उम्मीद शायद ही पूरी हो पाएगी। वित्तीय दबाव का सामना कर रही भारत की चीनी उत्पादक कंपनियां सरकार की अनुमति से ज्यादा कीमत पर चीनी की बिक्री के लिए वैश्विक बाजार में मौके तलाश रही हैं।
राबो बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर चीनी का उत्पादन लगातार दूसरे साल यानी 2012-13 में मांग के मुकाबले 60 से 80 लाख टन ज्यादा होगा। बार्कलेज बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक बाजार में इफरात चीनी उपलब्ध होगी और ब्राजील में उत्पादन घटने के बावजूद कुल 54 लाख टन चीनी ज्यादा उपलब्ध होगी।
बार्कलेज का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर साल 2011-12 में चीनी का उत्पादन साल दर साल के हिसाब से 4.2 फीसदी बढ़ेगा क्योंकि यूरोप में उम्मीद से बेहतर फसल हुई है। साथ ही ऑस्ट्रेलिया, भारत और थाईलैंड में अनुकूल मौसम व बेहतर कीमत के चलते किसानों ने गन्ने का रकबा बढ़ा दिया है। इसके चलते ब्राजील में उत्पादन में होने वाली कमी की भरपाई हो जाएगी। वैश्विक स्तर पर साल 2011-12 में 17.3 करोड़ टन चीनी उत्पादन का अनुमान है।
चीनी उत्पादक कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा - इस वजह से निश्चित तौर पर वैश्विक बाजार में ऊंची कीमतों पर चीनी बेचने की कंपनियों की मंशा पूरी नहीं हो पाएगी। लेकिन यह चीनी के उत्पादन और गन्ने से सीधे एथेनॉल उत्पादन में इस्तेमाल की जाने वाली गन्ने की मात्रा पर निर्भर करेगा।
ब्राजील में गन्ने का उत्पादन साल 2012-13 में 52 करोड़ टन पहुंचने की संभावना है। बार्कलेज का अनुमान है कि ब्राजील में चीनी का उत्पादन साल 2011-12 में 358 लाख टन रहेगा, जो साल दर साल के हिसाब से 5.8 फीसदी कम है।एक अधिकारी ने कहा - एक महीने पहले वैश्विक बाजार में चीनी की कीमतें 700 डॉलर प्रति टन थीं, जो गिरकर फिलहाल 650 डॉलर प्रति टन पर आ गई है। भारतीय बाजार में मौजूदा कीमतें भी विदेशी बाजार में आपूर्ति के आकर्षक मौके उपलब्ध करा रही हैं। भारतीय चीनी उद्योग के मुताबिक, देश में इस साल 260 लाख टन चीनी का उत्पादन होगा। सरकार ने ओजीएल के तहत अब तक 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है। इस बात के कयास जारी हैं कि सरकार अगले हफ्ते होने वाली बैठक में 10 लाख टन और चीनी निर्यात की अनुमति दे सकती है। भारत में निर्यात के लिए उपलब्ध इफरात चीनी और विभिन्न देशों में बंपर उत्पादन के चलते कीमतों में बढ़ोतरी सीमित हो जाएगी। साल 2012 के लिए महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या ब्राजील उत्पादन में होने वाली कमी की भरपाई कर लेगा और वहां गन्ने की कितनी मात्रा का इस्तेमाल एथेनॉल के उत्पादन में होगा।
एमसीएक्स पर मार्च वायदा पिछले हफ्ते 0.345 फीसदी घटकर 2881 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गया था। 21 फरवरी की आईसीई पर मार्च वायदा 0.16 सेंट बढ़कर 24.86 सेंट प्रति पाउंड पर पहुंच गया। वहीं एनसीडीईएक्स पर यह 2869 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया। (BS Hindi)

17 फ़रवरी 2012

नेफेड के लिए पैकेज मिलने के आसार

आर.एस. राणा नई दिल्ली
भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) की देनदारियां निपटाने के लिए कृषि मंत्रालय फिर से राहत पैकेज तैयार कर रहा है। इसको जल्द ही वित्त मंत्रालय के पास भेजा जाएगा। इस समय नेफेड की देनदारियां बढ़कर 1,735 करोड़ रुपये हो गई हैं।

कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नेफेड की देनदारियां लगातार बढ़ती जा रही हैं तथा निगम को होने वाली आय से बैंकों के ब्याज का भी पूरा भुगतान नहीं हो पा रहा है। वर्ष 2010-11 में नेफेड को 48 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था, लेकिन इस दौरान बैंकों के ब्याज के रूप में ही नेफेड को 170 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा। यही कारण है कि निगम की देनदारियां निपटाने के लिए मंत्रालय फिर से राहत पैकेज तैयार कर रहा है। इसको जल्द ही मंजूरी के लिए वित्त मंत्रालय के पास भेजा जाएगा। उन्होंने बताया कि जनवरी 2011 में भी नेफेड के लिए एकमुश्त राशि 1,200 करोड़ रुपये का राहत पैकेज तैयार किया गया था। इस पर 11 जनवरी, 2011 और 24 मार्च, 2011 को वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ दो बार बैठक भी हुई थी। उधर, 26 सितंबर 2011 को होने वाली बैठक रद्द हो गई थी तथा राहत पैकेज देने पर कोई फैसला नहीं हो सका था। नेफेड को राहत पैकेज देने का जो मसौदा तैयार किया गया था, उसके आधार पर सरकार ने नेफेड में 51 फीसदी हिस्सेदारी की शर्त रखी थी।
नेफेड के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार निगम की देनदारियां बढ़कर 1,735 करोड़ रुपये हो गई हैं। हालांकि, इस दौरान निगम को 1780 करोड़ रुपये मिलने भी हैं जिसे पाने के लिए निगम ने प्रयास तेज कर दिए हैं। चालू वित्त वर्ष में अभी तक 9 करोड़ रुपये की रिकवरी हुई है तथा आगामी वित्त वर्ष में इसमें और बढ़ोतरी होने की संभावना है। निगम ने ब्याज की रकम का भुगतान करने के लिए बैंकों से मार्च, 2012 तक का समय लिया हुआ है। नेफेड ने वर्ष 2003 में देशभर की 62 कंपनियों के साथ व्यापार के लिए 3,962 करोड़ रुपये का समझौता किया था जिसके आधार पर उसने वाणिज्यिक बैंकों से लोन लिया था। इनमें से ज्यादातर कंपनियां न तो आयात करती थीं और न ही निर्यात। इस वजह से ये कंपनियां नेफेड को पैसे का भुगतान नहीं कर पाईं। (Business Bhaskar......R S Rana)

यार्न मिलों की मांग घटने से कपास के मूल्य में गिरावट

बिजनेस भास्कर नई दिल्ली

यार्न निर्माताओं की मांग घटने और उत्पादक मंडियों में आवक बढऩे से कपास की कीमतों में 300 से 400 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) की गिरावट आई है। गुरुवार को अहमदाबाद मंडी शंकर-6 किस्म की कपास का भाव घटकर 35,900 से 36,100 रुपये प्रति कैंडी रह गए। जबकि उत्पादक मंडियों में कपास की दैनिक आवक बढ़कर 1.25 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) से ज्यादा की हो गई है।

केसीटी एंड एसोसिएटस के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि उत्पादक मंडियों में कपास की दैनिक आवक बढ़ी है जबकि यार्न मिलों के पास स्टॉक होने के कारण मांग कम हुई है। इसीलिए घरेलू बाजार में कपास के दाम घटे हैं। उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की मंडियों में दैनिक आवक करीब 30,000 गांठ, गुजरात की मंडियों में 65,000 गांठ और महाराष्ट्र की मंडियों में 35,000 गांठ की हो रही है। परफेक्ट कॉटन कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर सी. एल. ठक्कर ने बताया कि हाल ही में रुपये के मुकाबले डॉलर नरम हुआ है।

साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमतें घटी हैं जिससे निर्यातकों का मार्जिन कम हुआ है। न्यूयॉर्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में मार्च महीने के वायदा अनुबंध में 17 जनवरी को कॉटन का भाव 98.19 सेंट प्रति पाउंड था जबकि 15 फरवरी को इसका भाव घटकर 92.45 सेंट प्रति पाउंड पर बंद हुआ। इससे भी घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में गिरावट को बल मिला है।

कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार कपास का उत्पादन 340.87 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2010-11 में उत्पादन 330 लाख गांठ का हुआ था। उधर कॉटन एडवायजरी बोर्ड (सीएबी) ने वर्ष 2011-12 में कपास का उत्पादन 345 लाख गांठ का होने का अनुमान लगाया है। जबकि इस दौरान कपास की घरेलू खपत 260 लाख गांठ होने की संभावना है। (Business Bhaskar...R S Rana)

चालू वित्त वर्ष के अंत तक देश में विभिन्न जिंसों का वायदा कारोबार 3,500 अरब डॉलर के स्तर को छू जाएगा। वायदा बाजार आयोग के चेयरमैन रमेश अभिषेक ने शुक्रवार को कहा, 'इस वित्त वर्ष में वायदा बाजार कारोबार अभी तक 3,000 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर चुका है। ऐसे में वित्त वर्ष के अंत तक हम इसके 3,500 अरब डॉलर के आंकड़े को छूने की उम्मीद कर रहे हैं।'

दाल-दलहन उद्योग की उड़द और तुअर दाल में वायदा कारोबार फिर शुरू करने की मांग पर उन्होंने कहा कि इस पर आयोग वायदा अनुबंध नियमन कानून में संशोधन होते ही आगे कुछ करने की स्थिति में होगा। अगले कुछ महीने में संशोधन प्रस्ताव कैबिनेट के पास भेजा जा सकता है। अभिषेक ने कहा कि वायदा बाजार के बेहतर नियमन के लिए इको सिस्टम (उचित भंडारण, ऋण सुविधा, वित्तीय बाजार) के साथ उचित संतुलन जरूरी है।

उड़द, तुअर का वायदा कारोबार जनवरी 2007 में बंद हुआ था। उद्योग जगत लगातार इन जिंसों के वायदा कारोबार को दोबारा शुरू करने की मांग कर रहा है। फिलहाल सिर्फ चने का वायदा कारोबार होता है। उल्लेखनीय है कि अभिजीत सेन समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में दालों की कीमतों में तेजी के लिए वायदा कारोबार को जिम्मेदार नहीं ठहराया है। अभिषेक ने कहा कि वायदा बाजार कानून में संशोधन से न केवल वायदा बाजार का बेहतर तरीके से नियमन हो सकेगा बल्कि इसमें पारदर्शिता भी आएगी। (BS Hindi)

16 फ़रवरी 2012

निर्यात मांग घटने से लाल मिर्च में गिरावट की संभावना

बिजनेस भास्कर नई दिल्ली

लाल मिर्च की पैदावार में बढ़ोतरी और निर्यात मांग कमजोर होने से कीमतों में और गिरावट की संभावना है। आंध्र प्रदेश में लाल मिर्च की पैदावार बढ़कर 2.25 करोड़ बोरी (एक बोरी-40) होने की संभावना है। जबकि चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान लाल मिर्च का निर्यात 19 फीसदी घटा है। चालू महीने के आखिर तक आवकों का दबाव बन जाएगा इसलिए गिरावट को बल मिल रहा है।

गुंटूर चिली मर्चेंट्स एसोसिएशन के सचिव अशोक कोठारी ने बताया कि आंध्र प्रदेश में चालू सीजन में लाल मिर्च की बुवाई बढ़कर 0.37 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि मौसम भी फसल के अनुकूल रहा है। इसीलिए पैदावार पिछले साल के 1.90 करोड़ बोरी से बढ़कर 2.25 करोड़ बोरी होने का अनुमान है। गुंटूर में लाल मिर्च की दैनिक आवक 40 से 50 हजार बोरियों की हो रही है जबकि चालू महीने के आखिर तक आवक बढ़कर एक लाख बोरियों की हो जाएगी। इसलिए मौजूदा कीमतों में 300 से 500 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट और आने की संभावना है।

अशोक एंड कंपनी के डायरेक्टर अशोक दत्तानी ने बताया कि इस समय तेजा क्वालिटी में थोड़ी-बहुत मांग बांग्लादेश और मलेशिया की आ रही है। लेकिन पैदावार में बढ़ोतरी की संभावना के कारण अन्य देशों की आयात मांग पहले की तुलना में कम हुई है।

भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2011-12 के पहले नौ महीनों अप्रैल से दिसंबर के दौरान 153,500 टन लाल मिर्च का ही निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 190,500 टन का निर्यात हुआ था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय लाल मिर्च के दाम भी जनवरी के 3.53 डॉलर प्रति किलो से घटकर 3.20 डॉलर प्रति किलो रह गए हैं।

लाल मिर्च के थोक कारोबारी मांगीलाल मुंदड़ा ने बताया कि मंडी में तेजा क्वालिटी की लाल मिर्च के भाव 5,000 से 5,600 रुपये और 334 क्वालिटी की लाल मिर्च के भाव 4,000 से 4,500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। एनसीडीईएक्स पर मार्च महीने के वायदा अनुबंध में तीन फरवरी को लाल मिर्च का भाव 5,730 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि बुधवार को इसका भाव घटकर 5,410 रुपये प्रति क्विंटल रह गया।

मसालों का निर्यात कम रहा
मुंबई चालू वित्त वर्ष के पहले नौ माह अप्रैल से दिसंबर के बीच भारत का मसाला निर्यात एक फीसदी गिरकर 396,665 टन रहा। इस दौरान लाल मिर्च, धनिया और लहसुन का निर्यात कमजोर रहने के कारण कुल मसाला निर्यात गिरा है। स्पाइसेज बोर्ड के एक बयान के अनुसार मूल्य के लिहाज से इस अवधि में मसालों का निर्यात 47 फीसदी ज्यादा रहा।

पिछले वर्ष 2011 के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 16 फीसदी गिरने का फायदा मसाला निर्यातकों को मिला। बोर्ड के अनुसार आलोच्य अवधि में लहसुन का निर्यात 93 फीसदी गिरकर 1,175 टन रह गया। लाल मिर्च का निर्यात 19 फीसदी घटकर 153,500 टन रहा। लेकिन इस दौरान काली मिर्च, हल्दी, जीरा और इलायची के निर्यात में बढ़ोतरी दर्ज की गई। (Business Bhaskar)

ग्रामीण गोदाम बनाने पर ज्यादा सब्सिडी की तैयारी

आर.एस. राणा नई दिल्ली

ग्रामीण भंडारण योजना (आरजीएस) के तहत गोदामों का निर्माण करने के लिए कृषि मंत्रालय ने बजट में प्राइवेट भागीदारों के लिए सब्सिडी की दर बढ़ाने की योजना बनाई है। इस समय आरजीएस के तहत गोदामों का निर्माण करने के लिए प्राइवेट भागीदारों को 15 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। इसको बढ़ाकर वित्त वर्ष 2012-13 के बजट में 25 फीसदी किए जाने की योजना है।

कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आरजीएस के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न भंडारण में प्राइवेट भागीदारों की हिस्सेदारी बढ़े, इसके लिए सब्सिडी को बढ़ाकर 25 फीसदी करने की योजना है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान कृषि मंत्रालय आरजीएस के तहत प्राइवेट भागीदारों को 15 फीसदी सब्सिडी दे रहा है।

हालांकि पब्लिक सेक्टर के भागीदार को इस योजना के तहत चालू वित्त वर्ष में भी 25 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। उन्होंने बताया कि सब्सिडी की दर कम होने के कारण ही प्राइवेट भागीदार गोदाम के निर्माण में आगे नहीं आ रहे हैं इसीलिए सरकार ने प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर को दी जाने वाली सब्सिडी की दर एक समान करने की योजना बनाई है।
उन्होंने बताया कि ढांचागत सुविधाओं के अभाव में इस योजना में किसानों की भागीदारी नाममात्र की है। सब्सिडी की दर ज्यादा होने के कारण पब्लिक सेक्टर इसका सर्वाधिक लाभ उठा रहा है। उन्होंने बताया कि सब्सिडी 33.33 प्रतिशत होने के बावजूद भी इस योजना में अनुसूचित जाति एवं जनजाति की भागीदारी लगभग शून्य है।


उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2011-12 के लिए आरजीएस स्कीम के तहत 136 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। यह पूरी राशि जारी की जा चुकी है। योजना शुरू होने के समय से 31 जुलाई 2011 तक देशभर में इस स्कीम के तहत 25,302 गोदामों का निर्माण हुआ है।
केंद्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न की बर्बादी में कमी लाने के लिए एक अप्रैल 2001 को ग्रामीण भंडारण योजना की शुरूआत की थी।

इस योजना का मुख्य लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में सहयोगी सुविधाओं के साथ वैज्ञानिक भंडारण प्रणाली का निर्माण करना था। ताकि किसानों द्वारा अपनी कृषि उपज और प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों को भंडारण करने की जरूरत को पूरा किया जा सके। इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 25 टन भंडारण क्षमता के गोदाम तैयार किए जाने हैं। (Business Bhaskar....R S Rana)

वनस्पति तेल का आयात घटा

देश का वनस्पति तेल आयात जनवरी में 8.5 फीसदी घटकर करीब 6.6 लाख टन रहा, जो पिछले वर्ष की समान 7.21 लाख टन था। खाद्य तेल उद्योग की ओर से जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। खाद्य तेलों और अखाद्य तेलों को मिलाकर वनस्पति तेलों का आयात नवंबर, 2011 से जनवरी 2012 के दौरान दो फीसदी बढ़कर 21.85 लाख टन हो गया जो पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में 21.42 लाख टन था।

नवंबर से अक्टूबर तक चलने वाले तेल वर्ष 2011-12 के पहले तीन महीनों में खाद्य तेलों का आयात बढ़कर 21.30 लाख टन हो गया, जो वर्ष भर पहले की समान अवधि में 20.74 लाख टन था। अखाद्य तेलों का आयात हालांकि घटकर 55,163 टन रहा, जो पहले 68,566 टन था।

साल्वेंट एक्स्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने एक बयान में कहा कि खाद्य तेलों का मौजूदा स्टॉक बंदरगाह और और पीछे से आ रहे माल (रास्ते में) दोनों को मिलाकर 1,85,000 टन रह गया जो एक साल पहले से 55 हजार टन कम है। एक फरवरी, 2012 की स्थिति के अनुसार विभिन्न बंदरगाहों पर 5,85,000 टन और पीछे से आ रही खेपों में 6,70,000 टन माल था।

भारत अपनी घरेलू जरूरतों के करीब 50 फीसदी भाग का आयात करता है। भारत इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम तेल का आयात करता है जबकि सोयाबीन तेल ब्राजील और अर्जेंटीना से आयात किया जाता है। तेल वर्ष 2010-11 में करीब 85 लाख टन वनस्पति तेल का आयात किया गया था। मौजूदा समय में कच्चे खाद्य तेल पर आयात शुल्क शून्य है। लेकिन रिफाइंड खाद्य तेल के आयात पर 7.5 फीसदी का सीमा शुल्क लगता है। (BS Hindi)

रबर की मांग-आपूर्ति का अंतर घटा

जनवरी में उत्पादन में बढ़ोतरी से देसी बाजार में प्राकृतिक रबर की मांग-आपूर्ति के बीच का अंतर काफी हद तक कम हो गया। जनवरी में उत्पादन 3.7 फीसदी बढ़कर 1,02,500 टन हो गया जबकि पिछले साल की समान अवधि में 98,800 टन प्राकृतिक रबर का उत्पादन हुआ था। जनवरी में हालांकि पिछले महीने के मुकाबले खपत में 2.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह 82,000 टन रही।
रबर बोर्ड के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, ऐसे में अप्रैल-जनवरी की अवधि में मांग-आपूर्ति के बीच का अंतर घटकर 15,580 टन रह गया। अप्रैल-दिसंबर की अवधि में यह अंतर 38,385 टन था। आधिकारिक आंकड़ों से रबर बोर्ड द्वारा पूर्व में अनुमानित मांग-आपूर्ति के अंतर की पुष्टि होती है। अप्रैल-जनवरी के दौरान कुल उत्पादन में 4.6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह 7,84,400 टन पर पहुंच गया, वहीं इस अवधि में खपत की रफ्तार धीमी रही और यह महज 1.3 फीसदी रही। इस तरह कुल खपत 7,99,980 टन की रही। उत्पादन में बढ़ोतरी के मुकाबले खपत में आई नरमी के चलते देसी बाजार में मांग-आपूर्ति पर बढ़ रहा दबाव थोड़ा कम हुआ।
इस महीने टायर उद्योग ने 1,00,000 टन शुल्क मुक्त रबर के आयात की अनुमति देने की मांग की है ताकि मांग-आपूर्ति की बढ़ती खाई को पाटा जा सके। वित्त मंत्री को सौंपे बजट पूर्व मांग में ऑटोमोटिव टायर इंडस्ट्री ने कहा है कि मौजूदा वित्त वर्ष में मांग-आपूर्ति का अंतर एक लाख टन होगा। रबर बोर्ड ने हालांकि महज 70,725 टन रबर की कमी का अनुमान जाहिर किया है। ऐसे में उत्पादन व खपत में हो रही बढ़ोतरी के मौजूदा रुख से संकेत मिलता है कि कुल मिलाकर 50,000 से 70,000 टन रबर की कमी होगी। बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2010-11 में 85,765 टन रबर की कमी थी। ये चीजें उद्योग की 1 लाख टन रबर के शुल्क मुक्त आयात की मांग को दरकिनार कर देती हैं।
भारतीय रबर उत्पादक संघ के महासचिव सिबी जे मोनिप्पली ने कहा कि रबर की मामूली कमी है और इसका इस्तेमाल करने वाला उद्योग देश में रबर की कमी की भरपाई अग्रिम लाइसेंस चैनल के जरिए कर सकते हैं क्योंकि 3600 करोड़ रुपये के टायर का निर्यात होता है। साल 2010-11 में रबर आधारित उद्योग ने शुल्क मुक्त चैनल के जरिए 1.14 लाख टन रबर का आयात किया था। उन्होंने कहा कि साल 2012-13 में उत्पादन व खपत क्रमश: 9.42 लाख टन व 10 लाख टन रहने का अनुमान है, ऐसे में महज 64,000 टन रबर की कमी होगी। उन्होंने कहा कि रबर का इस्तेमाल करने वाला उद्योग बिना शुल्क के करीब 1.30 लाख टन रबर का आयात कर सकता है।
इस वित्त वर्ष में जनवरी के आखिर तक अग्रिम लाइसेंस व घटे हुए शुल्क के जरिए 1,62,927 टन रबर का आयात हुआ है। अंतरराष्ट्रीय रबर अध्ययन समूह ने 2012 में रबर के आधिक्य की भविष्यवाणी की है। वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक रबर का उत्पादन 7.8 फीसदी बढ़कर 118 लाख टन पर पहुंच सकता है। (BS Hindi)

चाय के प्याले में महंगाई का उफान

जल्द ही लोगों के लिए चाय की चुस्की महंगी हो सकती है। दरअसल श्रम लागत में बढ़ोतरी के कारण भारतीय चाय संगठन (आईटीए) नए सत्र में आने वाली चाय की फसल के दाम बढ़ाने की योजना बना रहा है। इसके बाद चाय के खुदरा दाम 10-12 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़ सकते हैं।
आईटीए के वाइस चेयरमैन एवं गुडरिक ग्रुप के प्रबंध निदेशक अरुण एन सिंह ने कहा, 'दार्जिलिंग, असम और बंगाल जैसे चाय उत्पादक राज्यों में श्रम लागत में 34 फीसदी इजाफा हो चुका है। इस कारण चाय के खुदरा दाम में 10 से 12 रुपये प्रति किलोग्राम की बढ़ोतरी होगी। हालांकि यह बढ़ोतरी एक साथ नहीं की जाएगी।'
पिछले तीन साल के दौरान चाय का विक्रय मूल्य तीन गुना ज्यादा हो गया है लेकिन उत्पादकों पर चाय की गुणवत्ता सुनिश्चित रखने का भी दबाव होता है। उद्योग के प्रतिनिधियों ने कहा कि विनिर्माण प्रक्रिया में अंतर होने के बावजूद चाय की गुणवत्ता बरकरार रखी जाती है। वर्ष 1997 से लेकर 2007 का समय चाय उद्योग के लिए खराब रहा है। इस दौरान चाय की मांग में काफी गिरावट दर्ज की गई थी। लेकिन 2008 के बाद से चाय की मांग में लगातार इजाफा हो रहा है। आईटीए की निर्यात एवं आयात समिति के चेयरमैन आजम मोनेम ने कहा, 'चाय की खपत में सालाना 2.5 फीसदी इजाफा हो रहा है और इसके दाम भी बढ़ रहे हैं।'
इस साल देश में चाय की खपत 86 करोड़ किलोग्राम होने और आपूर्ति 79.5 करोड़ किलोग्राम रहने की उम्मीद है। 2011 में उत्पादन बेहतर रहने के बावजूद बढ़ती खपत और भंडार नहीं होने के कारण उद्योग को नए सत्र में फसल के दाम बढऩे की उम्मीद है। 2011 में चाय उद्योग का उत्पादन 98.8 करोड़ किलोग्राम रहा था, जो 2010 के मुकाबले 23 फीसदी ज्यादा है।
हालांकि चाय की प्रति व्यक्ति खपत अभी कम ही है। भारतीय चाय बोर्ड के लिए ओआरजी-मार्ग द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार देश में चाय की प्रति व्यक्ति खपत 0.8 किलोग्राम है जबकि पाकिस्तान के लिए यह आंकड़ा 0.95 किलोग्राम, बांग्लादेश व श्रीलंका के लिए 1.2 किलोग्राम और आयरलैंड, तुर्की व ब्रिटेन के लिए यह आंकड़ा 2 किलोग्राम से भी ज्यादा है। सिंह ने कहा, 'भारत बेहद जटिल बाजार है। यहां चाय की प्राथमिकता और उसे पीने के तरीकों में काफी विविधता है।' (BS Hindi_

एमसीएक्स के शेयर पर कालाबाजार चुस्त

देश के सबसे बड़े जिंस एक्सचेंज मल्टी कमोटिडी एक्सचेंज (एमसीएक्स) के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) को लेकर कालाबाजार सक्रिय हो गया है। एमसीएक्स का आईपीओ 22 फरवरी को खुल रहा है। आईपीओ लाने वाला यह पहला एक्सचेंज है। इस आईपीओ के तहत एमसीएक्स 64 लाख शेयरों की बिकवाली करेगी। एमसीएक्स की खुदरा श्रेणी के शेयरों पर ब्रोकरों की नजर टिक गई है और वे इस श्रेणी में उनके लिए 2 लाख रुपये के आवेदन करने पर आवेदकों को 3,500 रुपये दे रहे हैं।
मुंबई और गुजरात के ब्रोकर अभी से एमसीएक्स के शेयर के लिए निर्गम मूल्य से 20 फीसदी ज्यादा प्रीमियम दे रहे हैं। एक्सचेंज का बाजार मूल्यांकन करीब 5,000 करोड़ रुपये के आधार पर उन्हें निर्गम मूल्य 1,000 रुपये प्रति शेयर रहने की उम्मीद है। सिटीग्रुप ने 1,050 रुपये प्रति शेयर भाव पर सितंबर 2007 में एमसीएक्स के 19.5 करोड़ शेयर खरीदे थे।
मुंबई की एक ब्रोकिंग कंपनी में डीलर ने बताया, 'अगर एमसीएक्स उम्मीद के अनुसार सूचीबद्घ होता है, तो खुदरा निवेशक बाजार में फिर आ सकते हैं। चिंता की बात यह है कि मांग काफी ज्यादा है जबकि एक्सचेंज कम शेयरों का आवंटन कर रहा है। इसलिए आईपीओ से पहले सौदे शुरू हो गए हैं और ब्रोकर इंसेंटिव दे रहे हैं।' काफी लंबे समय बाद बाजार में कोई बड़ा आईपीओ आ रहा है। पिछले साल बाजार में छोटे आर्ईपीओ ही आए थे। (BS Hindi)

15 फ़रवरी 2012

उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने सीटीटी के वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव का विरोध किया

वित्त मंत्रालय ने अगले आम बजट में कमोडिटी फ्यूचर कारोबार पर टैक्स (कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स) लगाने की योजना बनाई है। इस बीच उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने इस तरह के किसी भी प्रस्ताव का विरोध किया है। उसका कहना है कि इससे उभरते कमोडिटी वायदा कारोबार का विकास प्रभावित होगा।

उपभोक्ता मामले मंत्रालय के सचिव राजीव अग्रवाल ने एसोचैम द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के बाद संवाददाताओं को बताया कि हम सीटीटी लगाए जाने के पक्ष में नहीं है। शेयर कारोबार पर लागू सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स की तरह कमोडिटी वायदा कारोबार पर सीटीटी लगाए जाने से इस बाजार के विकास में बाधा आएगी। उन्होंने कहा कि कमोडिटी वायदा कारोबार तमाम कमोडिटी के प्राइस डिस्कवरी के मकसद से शुरू किया गया था। इसकी शेयर बाजार के कारोबार से तुलना करना ठीक नहीं होगा। अटकलों के मुताबिक वित्त मंत्रालय सीटीटी लगाने के चार साल पुराने प्रस्ताव को दुबारा लाने पर विचार कर रहा है। वर्ष 2008-09 का बजट पेश करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने 0.017 फीसदी (एक लाख रुपये के वायदा कारोबार पर 17 रुपये) सीटीटी लगाने का प्रस्ताव रखा था। पिछले माह उपभोक्ता मामलों के मंत्री के. वी. थॉमस ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को भी पत्र लिखा था। उन्होंने कहा कि अगर वित्त विधेयक 2012 में कमोडिटी वायदा कारोबार पर सीटीटी लगाने का प्रस्ताव है तो उसे स्थगित किया जाना चाहिए।(Business Bhaskar)

सरकारी कंपनियों को भी गेहूं निर्यात की मंजूरी संभव

बिजनेस भास्कर नई दिल्ली
गेहूं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार सार्वजनिक ने कंपनियों एमएमटीसी, एसटीसी, पीईसी और नेफेड को निर्यात की अनुमति देने पर विचार कर रही है। वर्तमान में निर्यात की अनुमति प्राइवेट कंपनियों को दी हुई है जो खुले बाजार से गेहूं की खरीद कर निर्यात कर सकती है।

खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक कंपनियों को भी गेहूं निर्यात की अनुमति देने की योजना है। 9 सितंबर को सरकार ने गेहूं और गैर-बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दी थी। सितंबर से अभी तक गैर-बासमती चावल का निर्यात 22 लाख टन से ज्यादा का हो चुका लेकिन इस दौरान गेहूं का निर्यात केवल 3.9 लाख टन गेहूं का ही हुआ है।

प्रवीन कॉमर्शियल कंपनी के डायरेक्टर नवीन गुप्ता ने बताया कि हालांकि हाल ही में रुपये के मुकाबले डॉलर कमजोर होने से निर्यातकों को पड़ते नहीं लग रहे हैं। भारत के मुकाबले रूस और यूक्रेन का गेहूं सस्ता है जबकि ऑस्ट्रेलिया में भी पैदावार पिछले साल की तुलना में ज्यादा है। इसीलिए भारत से निर्यात पड़ते नहीं लग रहे हैं। रूस के गेहूं का भाव 245 डॉलर, यूक्रेन का 242 डॉलर और ऑस्ट्रेलिया का 254 डॉलर प्रति टन (एफओबी) है। इसके मुकाबले भारतीय गेहूं का दाम ज्यादा है। रूस में गेहूं का उत्पादन 562 लाख टन, यूक्रेन में 220 लाख टन और ऑस्ट्रेलिया में 283 लाख टन होने का अनुमान है। इंटरनेशनल ग्रेन काउंसिल (आईजीसी) के अनुसार विश्व में गेहूं का उत्पादन पहले के अनुमान 68.3 करोड़ टन के मुकाबले बढ़कर 69 करोड़ टन होने का अनुमान है। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार देश में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 883.1 लाख टन का अनुमान है जबकि एक फरवरी को केंद्रीय पूल में गेहूं का 234.25 लाख टन का स्टॉक बचा हुआ है। अप्रैल में नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी। ऐसे में घरेलू बाजार में मार्च तक गेहूं की मौजूदा कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है। मुंदड़ा बंदरगाह पर गुजरात के गेहूं का भाव 1,250 रुपये और राजस्थान के गेहूं का भाव 1,300 रुपये प्रति क्विंटल है लेकिन पड़ते नहीं होने के कारण निर्यातक खरीद नहीं कर रहे हैं। (Business Bhaskar...R S Rana)

चावल निर्यातकों को ईरान से पेमेंट फंसने का अंदेशा

गत दिवस इस्रायल के राजनयिक पर हमला होने के बाद भारत के चावल निर्यातकों को ईरान के साथ भुगतान का मुद्दा और उलझने की आशंका सता रही हैं। चावल निर्यातकों के संगठन ने कहा है कि इससे अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कर रहे ईरान के साथ कारोबारी रिश्ते और मुश्किल हो जाएंगे।

ईरान के परमाणु कार्यक्रम के चलते उसे दंडित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ ने प्रतिबंध और कड़े कर दिए हैं। जबकि भारत इन प्रतिबंधों के खिलाफ जाकर ईरान के साथ कारोबारी रिश्ते बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। वह ईरान के साथ कारोबार बढाऩे और तेल सप्लाई के ऐवज में भारत से निर्यात की कोशिश कर रहा है।ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि कार बम धमाके में इस्रायली दूतावास के कर्मचारियों के घायल होने के बाद पैदा हालात में भारत और ईरान के बीच व्यापार अनिश्चितता में फंस गया है। उन्होंने कहा कि भुगतान का मामला और पेचीदा हो सकता है। हालांकि यह कहना अभी मुश्किल है कि इससे व्यापार पर कितना असर पड़ेगा। लेकिन यह तय है कि धमाके के बाद तनाव बढ़ेगा और भारत-ईरान के बीच व्यापार की संभावनाएं धूमिल होंगी। इस्रायल ने अपने कट्टर दुश्मन ईरान को धमाके लिए जिम्मेदार ठहराया है।मौजूदा दौर में ईरान के क्रूड ऑयल का सबसे बड़ा खरीदार देश भारत ही है। भारत ईरान को सालाना 11 अरब डॉलर के क्रूड ऑयल का भुगतान निपटाने के लिए गेहूं और चावल का निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। पश्चिमी जगत के प्रतिबंधों के बाद दोनों पक्षों के बीच भुगतान में बाधा पैदा होने के बाद दोनों देशों के अधिकारी इसके निपटाने के लिए कोई तंत्र विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं।सेतिया के अनुसार भुगतान न हो पाने के कारण भारत से करीब दो लाख टन चावल आयात करने वाले ईरानी कारोबारी पहले ही डिफॉल्टर हो चुके हैं। इन आयातकों पर करीब 14.4 करोड़ डॉलर का भुगतान करना है। उन्होंने बताया कि डिफॉल्ट की रकम लगातार बढ़ती जा रही है।ईरानी आयातक भुगतान के लिए और ज्यादा समय की मांग कर रहे हैं। आमतौर पर भारतीय निर्यातक करीब 90 दिन का भुगतान के लिए समय देते हैं। अमेरिकी कृषि विभाग के अनुसार ईरान अपनी कुल चावल खपत 29 लाख टन में से 45 फीसदी चावल आयात करता है। (Business Bhaskar)

हरियाणा में तेज हुई गन्ने की पेराई

पिछले साल के मुकाबले इस साल हरियाणा में गन्ने की पेराई तेजी से हो रही है। राज्य कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक 31 जनवरी तक राज्य में 281.99 लाख टन गन्ने की पेराई हो चुकी है और कुल 23.09 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन हुआ है। पिछले साल की समान अवधि में 226 लाख क्लिंटल गन्ने की पेराई हुई थी और कुल 18.24 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन हुआ था। हरियाणा में 14 चीनी मिलें हैं (10 सहकारी, निजी क्षेत्र की 3 और हेफेड प्रबंधित एक मिल)।
इस साल गन्ने की पेराई में बढ़ोतरी इसलिए हुई है क्योंकि हरियाणा में गन्ने का रकबा बढ़ा है। साल 2011 में 2 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुआई हुई जबकि पिछले साल 1.45 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुआई हुई थी। पिछले साल के मुकाबले इस साल रकबा 38 फीसदी बढ़ा है। इस साल (में 430 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई का लक्ष्य रखा गया है और इसके लिए 45-50 लाख क्विंटल चीनी उत्पादन का अनुमान है। राज्य में निजी क्षेत्र की चीनी मिलों में से एक सरस्वती शुगर मिल इस साल 140 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई कर सकती है और मिल का कुल चीनी उत्पादन 14.28 लाख क्विंटल हो सकता है।
सहकारी चीनी मिलों के वित्तीय आयुक्त और प्रधान सचिव कृष्ण मोहन ने कहा कि राज्य की 10 सहकारी मिलों की स्थापित क्षमता 2,37,500 क्विंटल रोजाना की है और मिलों ने 385 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई का लक्ष्य रखा है।
गन्ने के रकबे में बढ़ोतरी सरकार के लिए शुभ संकेत है क्योंकि सरकार गन्ने के रकबे में बढ़ोतरी सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा रही है। साल 2007-08 में राज्य में 1.40 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुआई हुई थी, जो साल 2009-10 में घटकर 72,000 हेक्टेयर रह गया। इस तरह रकबे में कुल 38 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इसके बाद सरकार ने गन्ना उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहन के कई कदम उठाए। साल 2011-12 के पेराई सीजन में राज्य सरकार ने गन्ने की तीन किस्मों की कीमतें बढ़ाकर 231 रुपये, 226 रुपये और 221 रुपये प्रति क्विंटल कर दी। (BS Hindi)

चाय उत्पादन 23 फीसदी बढ़ा

साल 2011 में रिकॉर्ड 98.8 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन हुआ, जो पिछले साल के मुकाबले करीब 23 फीसदी ज्यादा है। भारतीय चाय संघ के आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर तक चाय उत्पादन 21.92 करोड़ किलोग्राम की बढ़त के साथ 98.8 करोड़ किलोग्राम पर पहुंच गया जबकि पिछळे साल 96.6 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन हुआ था। हालांकि कुल उत्पादन चाय उत्पादकों की 1 अरब किलोग्राम के अनुमान से कम रहा। आईटीए के एक अधिकारी ने कहा - प्रतिकूल मौसम के चलते चाय उत्पादन में गिरावट आई है। पहले मौसम सूखा था जबकि अक्टूबर-नवंबर में जरूरत से ज्यादा जाड़ा, लिहाजा फसल पर इसका असर पड़ा। अक्टूबर तक उत्पादन में 330 लाख किलोग्राम की बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन दिसंबर में उद्योग ने फसल में 70 लाख किलोग्राम से ज्यादा की गिरावट देखी।
पिछले साल चाय का उत्पादन पिछले तीन साल के गिरावट वाले रुख से उबरने में कामयाब रही। साल 2007 में कुल 98.6 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन हुआ था, जो उस समय का रिकॉर्ड है। हालांकि बाद में उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई। साल 2008 में 98.1 करोड़ किलोग्राम, 2009 में 97.9 करोड़ किलोग्राम, 2010 में 96.6 करोड़ किलोग्राम उत्पादन हुआ। (BS Hindi)

पानी निकासी समस्या से सोहटी वासी हुए परेशान

पानी निकासी समस्या से सोहटी वासी हुए परेशान

भास्कर न्यूज त्न खरखौदा

सोहटी गांव की कई मुख्य गलियों पक्की न होने व गंदे पानी की निकासी व्यवस्था पूरी तरह से ठप होने के कारण ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीणों ने जिला प्रशासन के प्रति सोमवार को रोष प्रकट किया और मांग की है कि उनके गांव की कच्ची गलियों को जल्द पक्का कराया जाए, ताकि राहगीरों को दिक्कतों का सामना न करना पड़े।

रोष प्रकट करते हुए ग्रामीण राकेश, बबलू, संजय, सागर, रणदीप, प्रमिला, रामपति, संतरा का कहना है कि पिछले चार वर्षों से उनकी गली इतनी अधिक खस्ताहाल है कि यहां से बच्चों व बुजुर्गों का निकलना दूभर हो रहा है। उबड़-खाबड़ गली होने के कारण राहगीरों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

ग्रामीणों ने इस संदर्भ में बीडीपीओ व डीसी को भी शिकायत दी थी, लेकिन समस्या का समाधान न होने के कारण ग्रामीणों की मांग पर 20 फरवरी 011 की सीएम रैली में भी इस समस्या का उठाया गया था, जिसे मंजूर किया गया था। लेकिन आज तक सोहटी गांव की इस गली का निर्माण कार्य तो दूर की बात है इस गली की मरम्मत भी नहीं हुई। गंदगी अधिक फैलने के कारण मच्छर पनप रहे हैं। लेकिन जिला प्रशासन का अभी तक कोई ध्यान नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि एस्टीमेट तैयार किए गए हैं, लेकिन समस्या अभी ज्यों की त्यों बनी हुई है। बीडीपीओ जितेंद्र कुमार का कहना है कि जिन गलियों के एस्टीमेट मंजूर हो गए हैं, वहां पर तत्काल कार्रवाई शुरू की जाएगी, बाकी गलियों को पक्का कराने के लिए एस्टीमेट बनाए जा रहे हैं। (Dainik Bhasar, sonepat )

09 फ़रवरी 2012

पीडीएस में सुधार की खातिर

एक तरफ सरकार जहां अनाज के बदले लोगों को नकद राशि देने की योजना को अमली जामा पहनाने पर विचार कर रही है वहीं दूसरी तरफ पीडीएस यानी जन वितरण प्रणाली में सुधार कर उसे अधिक सशक्त बनाने का अभियान भी जोर पकड़ रहा है। क्या देश की करीब 60 साल पुरानी पीडीएस को खत्म कर राशन के बदले नकद पैसा दिया जाना आम आदमी के हक में है? इस सवाल पर बेहद गंभीरता से विश्लेषण करने की जरूरत है। क्या अनाज के बदले नकद की योजना पीडीएस से अधिक कारगर साबित हो सकती है? वह भी उन हालातों में जब विधवा पेंशन जैसी नकद राशि देने वाली कई योजनाओं का पैसा लक्षित समूह तक नहीं पहुंच रहा हो। इसलिए अनाज के बदले नकद देने की इस नीति को लागू करने से पहले यह जानना अधिक जरूरी है कि पीडीएस की विफलता का मुख्य कारण क्या हैं? फिर तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ के राज्यों में यही पीडीएस अन्य राज्यों की अपेक्षा सफल कैसे रहा?
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के दूरदराज के अंदरूनी इलाकों का दौरा करने से पता चला कि वजह कुछ भी हो पर यहां आम आदमी को सस्ता राशन मिल रहा है। हांलाकि शहर के लोगों में खासकर जो वर्ग पीडीएस प्रणाली का हिस्सा नहीं इस बात को लेकर क्षोभ भी है कि अगर हर गरीब आदमी को एक या दो रुपए में 35 किलो अनाज मिल जाएगा तो वह काम पर क्यों जाएगा? लेकिन मुख्यमंत्री रमन सिंह इसे शहरी मध्यवर्गीय सोच का परिचायक मानते हुए कहते हैं अगर आज बस्तर के अभुजमाड़ और टोंडवाल जैसे जंगली इलाकों के गरीब लोगों को भी पीडीएस का चावल मिल रहा है तो यह उनकी सोची समझी नीति का नतीजा है। ‘‘गोदाम में अनाज को सड़ने दें लेकिन किफायत पर न दंे यह कहां की समझदारी है।’’
आखिर वह सोचा-समझा कौन सा फार्मूला है जिसे देश के अन्य राज्यों में भी लागू करने की योजनाएं चल रही है? इसे जानने के लिए मैंने एक बार छतीसगढ़ के पीडीएस को विस्तार से जानने की कोशिश की तो पता चला कि इसे प्रभावी बनाने के लिए कईं स्तर पर प्रयास किए गए। ज्ञात हो कि राष्ट्रीय स्तर पर भोजन के अधिकार के अधिनियम को लागू करने में भी इसकी मदद ली जा रही है।
साल 2004 में छत्तीसगढ़ की सरकार ने राशन की दुकानों पर अनाज न मिलने की बढ़ती शिकायतों के मद्देनजर नया पीडीएस नियंत्रण आदेश जारी किया था। इसके तहत् तीन स्तरों पर नए सुधारात्मक आदेश लागू किए गए।
अति गरीबों और आदिवासियों को घर के नजदीक आटा, चावल, और तेल मुहैया कराने के लिए सरकार ने उचित मूल्यों की दुकानों के लाइंसेस निजी व्यापारियों की बजाए स्थानीय समुदाय जैसे वन कोपोरेटिव, ग्राम पंचायत, ग्राम परिषदों और स्वयं सहायता समूहों को सौंप दिए। इसके लिए 2872 निजी व्यापारियों के लाइसेंस रद्द किए गए। इसका फायदा यह हुआ कि स्थानीय लोगों की भागीदारी से दुकानें पूरा दिन खुली रहने लगी और गांव वाले अपनी सुविधानुसार राशन लेने लगे। पूरे राज्य में ऐसी 2297 राशन की दुकानें हैं जो स्वयं सहायता समूहों द्वारा चलाई जा रही हैं। स्थानीय लोगों की भागीदारी ने जवाबदेही को भी बढ़ाने का काम किया। अब निजी व्यापारी की तरह दुकान चलाने वाले समूह जल्द दुकान बंद करने और राशन खत्म होने का बहाना नहीं कर सकते थे। संरचनात्मक स्तर पर अगला सुधार राशन की दुकानों की गिनती बढ़ाना था। दुकानों की गिनती 8492 से बढ़ाकर 10465 कर दी गई। इसके तहत् हर ग्राम पंचायत में एक दुकान खोली गई। इससे राशन लेने की लंबी कतारों में कमी आई और कम समय में ही राशन मिलने लगा।
इसका स्पष्ट उदाहरण आंदा है। बस्तर के अंदरूनी इलाके चित्रकोट के आदिवासी आंदा की खुशी उसकी झुर्रियों से साफ झलक रही थी। आदिवासी आंदा के लिए इससे संतोष की अधिक क्या बात हो सकती है कि महीने की छह तारीख को ही उसे महीने भर का चावल, तेल और शक्कर मिल गया। आंदा ने दिखाया कि उसने 35 किलो चावल खरीदा है और वह भी केवल एक रुपए किलो के हिसाब से। आंदा को यह राशन अपने गांव के यमुना स्वयं सहायता समूह द्वारा चलाई जा रही उचित मूल्य की दुकान से मिला। आंदा के पास लाल रंग का कार्ड है जो अति गरीब लोगों को एक रुपए प्रति किलो अनाज मुहैया कराने के लिए दिए गए हैं।
इसके बाद सबसे बड़ा सुधार राशन को गोदामों से दुकानों तक पहुंचाने के लिए ट्रांसपोटेशन प्रणाली में बदलाव कर किया गया। अभी तक निजी व्यापारी अपने कोटे का राशन उठाकर दुकान तक पहुंचने से पहले ही ओपन मार्किट में उसे ऊंचे दामों पर बेच देते थे। लेकिन नए सिस्टम के तहत् सिविल सप्लाई कारपोरेशन ने सभी उचित मूल्यों की दुकानों पर बिना किसी अतिरिक्त लागत के राशन की सप्लाई करने की शुरुआत की। इसके लिए हर महीने की छह तारीख तक पीले रंग के विशेष ट्रकों में पूरी सप्लाई पहुंचाई जाती है। सारी सप्लाई सीधा दुकान तक पहुचने से ब्लैक मार्किटिंग की संभावना में कमी हुई।
अधिकतर राशन की दुकानें घाटे में चलने के कारण व्यापारी अक्सर राशन का चावल या आटा मिल मालिकों को अधिक दामों में बेचकर अपना मुनाफा बढ़ाने की फिराक में रहता था। ऐसे भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए पीडीएस की कमीशन 8 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 30 रुपए प्रति क्ंिवटल की गई। इस प्रोत्साहन ने आम आदमी का आटा-चावल बाजार में बेचे जाने की प्रवृति पर कुछ हद तक रोक लगाने का काम किया। इसके लिए 40 करोड़ रुपए प्रति वर्ष की अतिरिक्त लागत राज्य सरकार को सहनी पड़ी। पीडीएस चलाने के लिए ब्याज रहित 75 हजार रुपए तक के ऋण देने की योजना ने भी लोगों को पीडीएस की बागडोर अपने हाथों में लेने के लिए प्रोत्साहित किया। पीडीएस के अलावा दूसरी चीजें बेचने की अनुमति ने भी स्थानीय लोगों को पीडीएस की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित किया। इससे पीडीएस की दुकान चलाने वालों का मुनाफा 700 रुपए प्रति माह से बढ़कर 2500 रुपए हो गया।
किसी भी राज्य में पीडीएस की असफलता का सबसे बड़ा कारण फर्जी कार्ड हैं। हाल ही में कर्नाटक और महाराष्ट्र में लाखों की संख्या में फर्जी कार्ड पकड़े जाने का मामला सामने आया। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे कार्डों से छुटकारा पाना एक बड़ी चुनौती थी। अधिक लोगों तक राशन पहुुंचाने के लिए सरकार ने पुराने कार्डों को खत्म कर नए प्रकार के कार्ड जारी किए। इस प्रक्रिया में तीन लाख के करीब फर्जी कार्डों को रद्द किया गया। बीपीएल के अलावा बूढ़े, विकलांग, अति गरीब लोगों को भी पीडीएस में शामिल करने के लिए पांच प्रकार के नए कार्ड जारी किए गए जिसमें अनुसूचित जाति और जनजाति के परिवारों को भी शामिल किया गया और अति गरीबों को एक रुपए प्रति किलो चावल देने के कार्ड दिए गए। इससे करीब 80 प्रतिशत लोगों को कवर किया गया। कुल मिलाकर राज्य सरकार इस नई प्रणाली को जारी रखने के लिए फिलहाल प्रति वर्ष 1440 करोड़ रुपए की सब्सिडी प्रदान कर रही है।
रमन सिंह सरकार का दावा है कि इन सुधारांे ने हर घर में अनाज पहुंचा कर राज्य की मातृत्व मृत्यु दर को 407 प्रति लाख से कम कर 337 प्रति लाख और नवजात शिशु मृत्यु दर को 76 प्रति हजार से कम कर 56 प्रति हजार तक पहुंचा दिया है। भले ही इन सुधारों के जरिए राज्य सरकार अधिक से अधिक लोगों तक अनाज पहुंचाने में काफी हद तक सफल रही हो लेकिन आलोचकों का मानना है कि 35 किलो अनाज का काफी हिस्सा महंगे दामों में मार्किट में बिक रहा है। जैसे कि राज्य के कांग्रेस नेता अजित जोगी का मानना है कि एपीएल परिवारों के हिस्सों का अनाज सीमावर्ती राज्यों में बेचा जा रहा है।
दूसरी बड़ी आलोचना का कारण यह है कि छत्तीसगढ़ का पीडीएस एक महंगा मॉडल माना जा रहा है जिन्हें अन्य राज्यों में लागू करना संभव नहीं। इसके लिए अधिक संसाधनों और बजट की जरूरत है। छत्तीसगढ़ के पास बजट भी अधिक है और अनाज भी जो कि अन्य राज्यों के लिए संभव नहीं। इसके अलावा इस मॉडल में भी दुकानों तक सप्लाई पहुंचाकर सरकार ने काफी हद तक गरीबों के हिस्से का अनाज ओपन मार्किट तक पहुंचने पर रोक लगा दी है लेकिन दुकानों से परिवारों तक अनाज पहुंच रहा है कि नहीं इसकी मॉनिटरिंग में अभी सुधार की जरूरत है। (First News live)

सब्सिडी के बोझ से उड़ी वित्त मंत्री की नींद

खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडी के बोझ ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की रातों की नींद उड़ा दी है। वित्त मंत्री ने बुधवार को राजधानी दिल्ली में आयोजित राज्यों के कृषि व खाद्य मंत्रियों के सम्मेलन में खुद यह बात कही। दो दिन का यह सम्मेलन लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली और भंडारण के मुद्दे पर बुलाया गया है।

प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘‘वित्त मंत्री के तौर पर जब मैं विभिन्न मदों में दी जाने वाली भारी सब्सिडी के बारे में सोचता हूं तो मेरी नींद उड़ जाती है। इसमें कोई शक नहीं।’’ बता दें कि

चालू वित्त वर्ष के दौरान खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडी के बजट अनुमान से कम से कम एक लाख करोड़ रुपए बढ़ जाने का अंदेशा है। बजट में 1.43 लाख करोड़ रुपए सब्सिडी का अनुमान है, जबकि वास्तव में इसके 2.45 लाख करोड़ रुपए के आसपास रहने का आकलन है।

माना जा रहा है कि प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून के अमल में आने के बाद जहां एक तरफ खाद्यान्नों की आपूर्ति बढ़ाने की जरूरत होगी, वहीं दूसरी तरफ सरकार का सब्सिडी बोझ भी बढ़ेगा। राशन व्यवस्था और खाद्य सुरक्षा की बात करते-करते वित्त मंत्री का ध्यान अचानक सब्सिडी बोझ की तरफ चला गया। उर्वरक सब्सिडी के लिए इस साल 50,000 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान है। यह अभी तक 67,700 करोड़ रुपए हो चुकी है और मार्च 2012 तक एक लाख करोड़ रुपए हो जाने का अनुमान है।

वित्त मंत्री 16 मार्च को 2012-13 का आम बजट पेश करेंगे। वित्त मंत्री ऐसे माहौल में यह बजट लाएंगे, जब दुनिया में आर्थिक अनिश्चितता छाई है। देश की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार भी धीमी पड़ी है और राजस्व प्राप्ति व खर्च के बीच अंतर बढ़ रहा है। इस साल राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.6 फीसदी रहने का बजट अनुमान है, लेकिन माना जा रहा है कि यह बढ़कर कम से कम 5.6 फीसदी पर पहुंच जाएगा। (Aarth Kam)

खाद्य सुरक्षा बिल को लागू करना काफी मुश्किल: पवार

नई दिल्ली। देश के करोड़ों गरीबों को भोजन देने की सोनिया गांधी की महत्वाकांक्षी योजना, कृषि मंत्री शरद पवार को रास नहीं आ रही है। शरद पवार ने कहा है कि मौजूदा पीडीएस सिस्टम के तहत खाद्य सुरक्षा योजना लागू करने में कई दिक्कतें हैं। ऐसे में सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पवार राजनीतिक कारणों से इस लोकलुभावन योजना में अड़ंगा डाल रहे हैं।

दरअसल देश के करीब 65 फीसदी गरीबों को भोजन की गारंटी का अधिकार को मनरेगा के बाद कांग्रेस इस प्रस्तावित कानून को अपना ब्रह्मास्त्र मान रही है। सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के दिमाग से उपजी ये योजना अब बिल की शक्ल में संसदीय समिति के पास है। लेकिन कृषि मंत्री शरद पवार को ये पहल रास नहीं आ रही है। शरद पवार का कहना है कि मौजूदा पीडीएस की सीमाएं हैं, जैसे कि मंडियों की क्षमता, राज्य की एजेंसियों की वित्तीय स्थिति, कर्मचारी, भंडारण आदि। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार किए बिना इसे पूरे देश के में लागू करने में दिक्कतें आएंगी।

वहीं भ्रष्टाचार के तमाम मामलों में घिरी कांग्रेस को यकीन है कि ये कानून लागू हुआ तो 2014 के लोकसभा चुनाव में उसकी नैया आसानी से पार हो जाएगी। जाहिर है, कांग्रेस को पवार का ये रुख रास नहीं आ रहा है। शरद पवार की ये दलील भी है कि इस योजना के लागू होने से मंत्रालय पर सब्सिडी का बोझ 65000 करोड़ रुपए से बढ़कर 1 लाख करोड़ तक हो जाएगा। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी भी कह रहे हैं कि बढ़ती सब्सिडी से उनकी नींद उड़ जाती है। लेकिन उनका ये भी कहना है कि खाद्य सुरक्षा के कानूनी अधिकार के लिए जनता अब और इंतजार नहीं कर सकती।

राजनीतिक गलियारों में शरद पवार के विरोध को उनके पिछले बयानों से जोड़कर भी देखा जा रहा है। पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि घोटालों से यूपीए सरकार की छवि खराब हुई है। जनता के बीच ये धारणा बनी है कि यूपीए सरकार ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाएगी। तो क्या पवार के रुख में भविष्य की राजनीति छिपी है। इस कानून के दायरे में 75 फीसदी ग्रामीण और 50 फीसदी शहरी आबादी आएगी जिन्हें सस्ते दाम पर गेहूं, चावल और दूसरे अनाज दिए जाएंगे। ऐसे में कांग्रेस को बड़ी राजनीतिक बढ़त मिल सकती है, जो शायद पवार को पसंद नहीं आ रहा। (IBN Khabar)

सोनिया के खाद्य सुरक्षा बिल ने प्रणब की नींद उड़ाई

नई दिल्ली।। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की नींद उड़ गई है। वजह है सरकार का बढ़ता सब्सिडी बिल। शायद ही सरकार की ओर से पहले खुलकर इस सचाई को स्वीकार किया गया है। प्रणब के कबूलनामे के बाद यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के ड्रीम प्रॉजेक्ट खाद्य सुरक्षा बिल की राह और कठिन हो गई है। कई सूबे खुलकर और गैर-कांग्रेसी केंद्रीय मंत्री इशारों-इशारों में पहले ही खाद्य सुरक्षा बिल का विरोध कर चुके हैं।

पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम और स्टोरेज पर आयोजित एक समारोह में प्रणब ने कहा, 'वित्त मंत्री होने के नाते जब मैं सोचता हूं कि कितनी ज्यादा सब्सिडी देनी है तो मेरी नींद उड़ जाती है।' उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा बिल लागू करने की भारी जिम्मेदारी सरकार ने उठाई है, लेकिन आसमान छूते सब्सिडी के आंकड़ें चिता बढ़ा रहे हैं। यह सब्सिडी बिल को खतरनाक स्तर पर पहुंचा देगा। मैं इस चिंता में सो नहीं पा रहा हूं।'

इस बयान का मेसेज साफ है। मुखर्जी की इमेज ऐसा नेता की है, जो बहुत सोच-समझकर ही कुछ बोलते हैं। उनके इस बयान का मतलब यह निकाला जा रहा है कि बजट में सब्सिडी पर चोट हो सकती है। क्रिसिल में चीफ इकनॉमिस्ट सुनील सिन्हा ने कहा, 'वित्त मंत्री साफगोई बरत रहे हैं। वह इसकी जमीन तैयार कर रहे हैं कि बजट से नाटकीय रियायतों की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।'

इससे पता चलता है कि 2012-13 बजट में जोर फिस्कल कंसॉलिडेशन पर होगा। 16 मार्च को पेश होने जा रहे बजट से टैक्स रियायतों की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। सरकारी खर्च बेकाबू होने से उनके मंत्रालय को काफी आलोचनाएं सुननी पड़ी हैं। इससे वित्त मंत्रालय का परफॉर्मेंस भी दागदार हुआ है।

पिछले हफ्ते उन्होंने कोलकाता में कहा था कि इंडस्ट्री को ज्यादा टैक्स देने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसका मतलब यह निकाला गया कि सरकार ने 2008-09 के स्लोडाउन के वक्त जो राहत दी थी, उसे बजट में वापस लिया जा सकता है। ऐसे में इंडस्ट्री को अगले फाइनैंशल ईयर में ज्यादा एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स देना पड़ सकता है।

खजाने को लेकर सरकार बड़ी मुश्किल में है। 2011-12 में सब्सिडी लक्ष्य से काफी ज्यादा रह सकता है और टैक्स रेवेन्यू में कमी आई है। सरकार दूसरे जरियों से भी खजाने में पैसा नहीं डाल पाई है। दिसंबर 2011 में संसद के शीतकालीन सत्र में प्रणब ने कहा था कि सब्सिडी बिल बजट अनुमान से एक लाख करोड़ रुपये ज्यादा रह सकता है। 2011-12 के बजट में सब्सिडी के करीब 1.4 लाख करोड़ रहने का अंदाजा लगाया गया था। सरकार विनिवेश और टैक्स से ज्यादा पैसा नहीं जुटा पाई है। वह टेलिकॉम स्पेक्ट्रम की नीलामी भी नहीं कर सकी है। सिर्फ इनडायरेक्ट टैक्स का लक्ष्य हासिल होता दिखाई दे रहा है।(Navbharat)

सोनिया के खाद्य सुरक्षा बिल ने प्रणब की नींद उड़ाई

नई दिल्ली। खाद्य सुरक्षा विधेयक पर राज्यों के एतराज के बाद बाद अब संप्रग सरकार के मंत्रियों ने विरोधी स्वर अलापना शुरू कर दिया है। इससे सोनिया के ड्रीम प्रोजेक्ट की राह और कठिन हो गई है।

कृषि मंत्री शरद पवार ने बुधवार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली [पीडीएस] की खामियों का हवाला देते हुए दो टूक कहा कि इसे लागू करना संभव नहीं है।

खाद्य मंत्री केवी थॉमस की राय भी कुछ ऐसी ही है। काग्रेस के संकटमोचक और वित्ता मंत्री प्रणब मुखर्जी का भी कहना है कि खाद्य सुरक्षा बिल लागू करने की भारी जिम्मेदारी सरकार ने उठाई है, लेकिन आसमान छूते सब्सिडी के आकड़ें चिता बढ़ा रहे हैं। यह सब्सिडी बिल को खतरनाक स्तर पर पहुंचा देगा। मैं इस चिंता में सो नहीं पा रहा हूं।

शरद पवार ने राज्यों-संघ शासित प्रदेशों के खाद्य एवं कृषि मंत्रियों के सम्मेलन में कहा, पीडीएस में आमूलचूल बदलाव बिना प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल लागू करना मुश्किल होगा। अगर बिल को मौजूदा प्रणाली के जरिए ही लागू करने की कोशिश की गई तो यह लक्ष्य प्राप्ति में विफल साबित होगा। मैं इस पर इसलिए जोर दे रहा हूं, क्योंकि यह मेरा कर्तव्य है।

खाद्य मंत्री के वी थामस ने भी पवार की बात को सही बताते हुए कहा, हमें इस कानून को लागू करने के लिए और उत्पादन करने और पीडीएस को मजबूत करने की जरूरत है। सम्मेलन को संबोधित करते हुए वित्ता मंत्री प्रणब मुखर्जी ने पीडीएस में सुधार की वकालत करते हुए कहा कि केंद्र और राज्यों को मिलकर इस समस्या को दूर करने की जरूरत है। बढ़ते सब्सिडी बिल पर गंभीर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा, चालू वित्ता वर्ष में इसके 2.34 लाख करोड़ रुपये के पार जाने का अनुमान है। मुखर्जी ने यह कहने से भी गुरेज नहीं किया, मैं इस चिंता में सो तक नहीं पा रहा हूं। प्रस्तावित विधेयक के तहत 63.5 फीसदी आबादी को सस्ती दर पर अनाज मुहैया कराया जाएगा। विधेयक को दिसंबर, 2011 में संसद में पेश किया गया। संसद की स्थायी समिति इस पर विचार कर रही है।

खाद्य सुरक्षा बिल को लागू करने के लिए सालाना करीब 6 करोड़ 50 लाख टन खाद्यान्न खरीदना होगा। अभी औसतन 5 करोड़ 55 लाख टन खाद्यान्न खरीदा जाता है। (jagarn)

खाद्य सुरक्षा कानून के लिये सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बदलाव जरुरी: पवार

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का जनता को खाद्य सुरक्षा गारंटी देने का महत्वकांक्षी कार्यक्रम एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गया है.

कृषि मंत्री शरद पवार ने यह कहकर सवाल खड़ा किया कि मौजूदा राशन प्रणाली के ढांचे में बड़ा सुधार किये बिना प्रस्तावित कानून पर पूरी तरह से अमल करना मुश्किल होगा.

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बढ़ते सब्सिडी बोझ को लेकर अपनी चिंता जताई. उन्होंने तो यहां तक कहा कि जब उनका ध्यान बढ़े सब्सिडी बिल की तरफ जाता है तो उनकी रातों की नींद उड़ जाती है. इस साल सरकार का सब्सिडी बोझ अनुमान से कहीं अधिक बढ़कर 2.34 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाने की आशंका बनी है. खाद्य सुरक्षा विधेयक पर अपनी बात रखते हुये उन्होंने कहा कि लागू होने पर यह दुनिया का सबसे बड़ा सब्सिडीयुक्त खाद्य वितरण कार्यक्रम होगा.

पवार और मुखर्जी दिल्ली में बुधवार 8 फरवरी को शुरु हुये दो दिवसीय लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली और भंडारण पर राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के खाद्य एवं कृषि मंत्रियों के सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.

पवार ने कहा, ‘‘मैं अपना कर्तव्य निभाने में असफल रहूंगा यदि में इस बात पर जोर नहीं देता कि खाद्य सुरक्षा कानून को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के मौजूदा ढांचे के ज़रिये ही लागू करने का प्रयास किया गया तो हम कभी भी इसके पूर्ण लक्ष्य पाने को हासिल करने सफल नहीं हो पायेंगे.’’

राशन व्यवस्था में बदलाव
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून के जरिये देश की 63.5 प्रतिशत आबादी को राशन की दुकानों के जरिये सस्ता राशन दिये जाने का कानूनी अधिकार दिया जायेगा. पवार का मानना है कि इतने बड़े खाद्य वितरण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये राशन व्यवस्था व्यापक बदलाव किये जाने की आवश्यकता है. पवार संप्रग सरकार के महत्वपूर्ण घटक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख हैं.

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने की दिशा में पहल करके सरकार ने एक बहुत बड़ी जवाबदेही अपने हाथ में ली है. लेकिन इस दौरान उन्होंने बढ़ती जनसंख्या, पानी की घटती उपलब्धता और बढ़ती सब्सिडी को लेकर अपनी चिंता भी जाहिर की. उन्होंने कहा, ‘‘देश की आबादी 1.2 अरब से ऊपर निकल चुकी है. हर साल ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या के बराबर लोग इसमें जुड़ जाते हैं, पानी की उपलब्धता भी सीमित हो रही है, इससे सिंचाई सुविधाओं पर दबाव बढ़ रहा है. ऐसे में यह बड़ी चुनौती हमारे सामने है.’’

खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्री के वी थॉमस से पवार की चिंताओं के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘जो कुछ उन्होंने कहा है वह गलत नहीं है. हमें कानून लागू करने के लिये मजबूत वितरण प्रणाली की आवश्यकता है.’’

खाद्य सुरक्षा विधेयक संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल पर लाया गया है. विधेयक संसद में पेश कर दिया गया है और खाद्य मामलों पर संसद की स्थायी समिति विधेयक पर विचार कर रही है. (Samay Live)

तमिलनाडु को नहीं चाहिए खाद्य सुरक्षा कानून

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बाद तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने भी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के मसौदे को खारिज करते हुए कहा है कि यह मसौदा भ्रम और अशुद्धि से भरा है। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में जया ने तमिलनाडु को खाद्य सुरक्षा कानून के दायरे से बाहर रखने की भी मांग की है। साथ ही उन्होंने केंद्र द्वारा राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने पर रोक लगाने की भी अपील की है। जया ने कहा कि इस तरह की जनकल्याणकारी योजनाओं को बनाने और उन्हें लागू करने का काम राज्य सरकारों को सौंप दिया जाना चाहिए। उधर, योजना आयोग उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने खाद्य सब्सिडी के कारण पड़ने वाले 21 हजार करोड़ के अतिरिक्त बोझ को कम करने के लिए तेल सब्सिडी खत्म करने का सुझाव दिया है। जया से पहले विधेयक का विरोध करते हुए नीतीश ने कहा था कि योजना का खर्च केंद्र सरकार खुद उठाए। जबकि पटनायक ने कहा था कि बिना किसी शर्त के हर गरीब को सस्ता अनाज योजना के तहत लाया जाना चाहिए। मंगलवार को जयललिता ने प्रस्ताव पर केंद्र की ओर से राज्य के मांगे गए विचार पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर जवाब दिया। जया ने विधेयक में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के जरिये खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य को हासिल करने वाले प्रावधान पर कहा कि टीपीडीएस को जबर्दस्ती लागू कराने से 1800 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। जबकि केंद्र की ओर से इस संबंध में कोई भी वैधानिक प्रतिबद्धता नहीं है। सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि खाद्य सुरक्षा विधेयक के वित्तीय बोझ को केंद्र सरकार को उठाना चाहिए। राज्य सरकारें इसे वहन करने की स्थिति में नहीं हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि योजना के लाभार्थियों की पहचान एक स्वतंत्र आयोग के जरिये की जाए। वहीं, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा था कि प्रत्येक गरीब को बिना किसी शर्त के सस्ता अनाज योजना के तहत लाया जाना चाहिए। (BS Hindi)

बढ़ सकती हैं पॉलिमर की कीमतें

करीब एक साल तक लगातार कीमतों में कटौती की मार झेलने वाले पॉलिमर विनिर्माता पॉलिप्रोपलीन की कीमतें 2 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़ा सकते हैं। इसकी वजह सालाना रखरखाव के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा अपनी तीन इकाइयों को बंद करने का ऐलान और वैश्विक बाजार में कीमतों में आई मजबूती है। पॉलिथिलीन की कीमतें हालांकि इसी स्तर पर बनी रहने की संभावना है। इससे पहले हल्दिया पेट्रोकेमिकल ने सालाना रखरखाव के लिए अपनी इकाइयां बंद की थीं। उद्योग के सूत्रों ने आगाह किया कि घरेलू बाजार में मांग में बढ़ोतरी इसकी वजह नहीं है बल्कि पॉलिमर के प्रमुख उत्पादकों द्वारा क्षमता में की गई कटौती है।
इसके अलावा चीन, ताइवान और जापान में मांग बढऩे के चलते आयात महंगा हो गया है। इन देशों के बाजार 15 दिसंबर के बाद से निष्क्रिय हो गए थे और अब चीनी नव वर्ष के बाद खुल गए हैं। पॉलिमर खास तौर से पॉलिप्रोपलीन की वैश्विक कीमतें 100-120 डॉलर प्रति टन बढ़ गई हैं और अब यह 1400-1420 डॉलर प्रति टन पर बिक रहा है जबकि एक महीने पहले इसका भाव 1300-1320 डॉलर प्रति टन था।
दूसरी ओर पॉलिविनाइल यानी पीवीसी विनिर्माता देश में इसका इस्तेमाल करने वालों के पास ज्यादा भंडार होने के चलते दुविधा में हैं, लेकिन कीमतें बढ़ाने के लिए मौके का इंतजार कर रहे हैं। दक्षिण पूर्वी व पूर्वी देशों से मांग में तेजी के चलते वैश्विक कीमतें बढ़ी हैं और यह पिछले कुछ दिनों में 970-990 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 1000-1020 डॉलर प्रति टन हो गई हैं।
कंपनी के सूत्रों ने कहा - कीमतों में बढ़ोतरी के लिए विनिर्माता वैश्विक कीमतों व डॉलर की चाल का इंतजार करेंगे और एक हफ्ते में ऐसा हो सकता है। अगर वैश्विक कीमतों में बढ़त जारी रहती है और रुपये के मुकाबले डॉलर स्थिर रहता है या मजबूत होता है तो कीमतें बढ़ सकती हैं। हालांकि आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि आयात के मोर्चे पर घरेलू बाजार में पीवीसी की कीमतें अपेक्षाकृत ज्यादा हैं क्योंकि मुनाफा बनाए रखने के लिए विनिर्माता कीमतों में कटौती नहीं करेंगी। इसकी वजह कच्चे माल की लागत ऊंची रहना भी है। सूत्रों ने कहा कि आयातित व घरेलू कीमतों के बीच का अंतर आज भी करीब 2 रुपये प्रति किलोग्राम है। पीवीसी की आधारभूत किस्म की कीमतें जनवरी में दो बार कम की गई थीं और कुल कटौती विभिन्न उत्पादों में करीब 3.50 रुपये प्रति किलोग्राम की थी। मौजूदा समय में देश में पीवीसी की आधारभूत किस्म की कीमतें 55 रुपये प्रति किलोग्राम हैं और इसमें कर शामिल नहीं है।
पॉलिप्रोपलीन और पॉलिथिलीन के मामले में घरेलू बाजार में मांग कमजोर है और ग्राहकों को खींचने के लिए विनिर्माता कीमत सुरक्षा योजना की पेशकश कर रहे हैं। पॉलिप्रोपलीन में सरकार ने सऊदी अरब से आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी समाप्त कर दी है, जो विश्व के प्रमुख विनिर्माताओं में से एक है। सूत्रों ने कहा कि इस वजह से भी घरेलू बाजार में नरमी है क्योंकि सऊदी से आयात करना सस्ता है।
पीई अभी भी 80-85 रुपये प्रति किलोग्राम के दायरे में है जबकि पीपी 84-86 रुपये प्रति किलोग्राम के दायरे में। कीमत सुरक्षा योजना के तहत एक बार जब उपभोक्ता उत्पाद खरीदता है तो उसे होने वाली नुकसान की भरपाई की जाती है, अगर कंपनी एक हफ्ते या महीने के भीतर कीमतों में कटौती का ऐलान करती है। पॉलिमर के प्रमुख विनिर्माता हल्दिया पेट्रोकेमिकल्स, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, गेल और रिलायंस इंडस्ट्रीज हैं। पॉलिप्रोपलीन का इस्तेमाल रोजाना इस्तेमाल होने वाले सामानों में किया जाता है। (BS Hindi)

खाद्य कानून पर उभरे मतभेद

वित्त वर्ष 2012-13 का बजट आने से पहले प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर कृषि मंत्रालय और खाद्य मंत्रालय द्वारा अपने मतभेद जाहिर करने के बाद बुधवार को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बढ़ती सब्सिडी को लेकर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि एक वित्त मंत्री के तौर पर सरकार द्वारा वर्तमान में झेले जा रहे सब्सिडी के बोझ और भविष्य में आने वाले भार को देखते हुए उनकी नींद उड़ जाती है। उन्होंने कहा, 'वित्त मंत्री होने के नाते जब मैं दी जाने वाली सब्सिडी के बारे में सोचता हूं तो इसमें कोई शक नहीं है कि मेरी रातों की नींद उड़ जाती है।'
उन्होंने कहा कि मनरेगा और शिक्षा के अधिकार जैसे कानूनी हक के जरिये लोगों की सशक्तिकरण की आकांक्षाओं पर खरा उतरना पड़ेगा। मुखर्जी ने कहा, 'अब आजादी के 65 सालों बाद लोग इंतजार नहीं करना चाहते हैं। लोग अब सशक्त होना चाहते हैं। न सिर्फ कागजी तौर पर बल्कि कानूनी हक के जरिये भी। खाद्य सुरक्षा कानून के पीछे भी यही कारण है।' सब्सिडी के बढ़ते बोझ को लेकर वित्त मंत्री का यह बयान और भी महत्त्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि वर्ष 2012-13 के आम बजट पेश करने के कुछ हफ्तों पहले ही दिया है। सरकार को वर्ष 2011-12 के दौरान सब्सिडी के बोझ के कारण बजट अनुमान से 1 लाख करोड़ रुपये अधिक खर्च करने होंगे। वित्त मंत्री ने बयान से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने में पेश आ रही मंत्रालय की समस्याओं की ओर भी इशारा किया है। कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि इस विधेयक से खाद्य सब्सिडी में 1,20,000 करोड़ रुपये का इजाफा हो जाएगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ जाने से खाद्य सब्सिडी में बढ़ोतरी की उम्मीद है। जबकि खाद्य मंत्रालय का मानना है कि सब्सिडी में सिर्फ 28,000 करोड़ रुपये का इजाफा होगा। कृषि मंत्री शरद पवार का कहना है कि खराब सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कारण खाद्य सुरक्षा विधेयक कभी अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकेगा। पवार ने किसानों को सरकारी खरीद एजेंसियों द्वारा खाद्य फसलों के उत्पादन के लिए दी जाने वाली गारंटी के न मिल पाने का मामला भी उठाया। जिसके कारण हतोत्साहित होकर किसान गैर अनाज फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। सब्सिडी खर्चे के बढ़ जाने के डर से खाद्य सुरक्षा विधेयक को संशय जताए जाने पर खाद्य मंत्री केवी थॉमस कहते हैं कि 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना पूरी होने के बाद नये लाभार्थियों के जुड़ जाने के बाद किसी भी हाल में सब्सिडी का खर्च तकरीबन 85,000 करोड़ रुपये बढऩा तय है, चाहे खाद्य कानून बने या नहीं। थॉमस कहते हैं, 'नई जनगणना पूरी होने के बाद खाद्य सब्सिडी का खर्च करीब 85,000 करोड़ रुपये बढऩा तय है। चाहे कानून बने या नहीं।' (BS Hindi)

07 फ़रवरी 2012

कल से जलवायु परिवर्तन, सतत कृषि और सार्वजनिक नेतृत्व पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत

जलवायु परिवर्तन, सतत कृषि और सार्वजनिक नेतृत्व पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन कल से यहां शुरु होगा। भारतीय कृषि अनुसंधान और शिक्षा परिषद् तथा राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और सार्वजनिक नेतृत्व परिषद के गठजोड़ में इस सम्मेलन का आयोजन किया गया है।

इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, सतत कृषि और सार्वजनिक नेतृत्व के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा के लिए विश्व भर से वैज्ञानिकों, शिक्षकों, अनुसंधानकर्ताओं, अर्थशास्त्रियों, प्रबंधकों और नीति निर्धारकों को एक मंच पर एकत्रित करना और भविष्य के जलवायु परिदृश्य, भारतीय कृषि और खाद्य सुरक्षा को संबोधित करने के लिए बहुमूल्य संस्तुतियों के माध्यम से सर्वसम्मति विकसित करना है।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल और विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार जलवायु परिवर्तन वैश्विक पर्यावरण, कृषि उत्पादकता और मानव जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। विशेष बात यह है कि जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में विकासशील देशों के किसानों के लिए खेती करना मुश्किल होगा। विकासशील देश, खासकर भारत जलवायु बदलाव और जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील है क्योंकि यहां काफी हद तक कृषि वर्षा पर आधारित होती है। कृषि फसलों के रोपण क्षेत्र और वार्षिक उत्पादन में बदलाव सीधे तौर पर एक दूसरे से जुडे हैं, विशेषकर वर्षा और वर्षा के क्रम पर।

राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के विषय में ज्ञान और इसके संबंध में जानकारी अपर्याप्त तथा अधूरी है। 1992 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन प्रारुप संधिपत्र को अपनाने का साथ जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के अंतरराष्ट्रीय प्रयास प्रारंभ हुए। जलवायु परिवर्तन के प्रति प्राकृतिक और मानव तंत्र की संवेदनशीलता के महत्व और इन बदलावों के प्रति अनुकूलन को तेजी से समझा जा रहा है।

विभिन्न राष्ट्रीय संगठनों के साथ आईसीआरआईएसएटी (ICRISAT), एफएओ (FAO), आईएफएडी (IFAD) और आईसीएआरडीए(ICARDA) जैसे कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन तथा मोरक्को, केन्या, सीरिया, कनाडा, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और सिंगापुर के विशेषज्ञों के इस सम्मेलन में हिस्सा लेने की संभावना है। (PIB)

राज्‍यों के खाद्य मंत्रियों की सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार पर विचार के लिए बैठक

उपभोक्‍ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार पर विचार करने के लिए राज्‍यों के खाद्य और कृषि मंत्रियों की बैठक बुलाई है। यह बैठक प्रस्‍तावित राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को ध्‍यान में रखते हुए बुलाई गई है और इसके एजेंडे में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली, खाद्यान्‍नों की वसूली और भंडारण क्षमता में विस्‍तार शामिल है।

दो दिवसीय सम्‍मेलन नई दिल्‍ली में इस महीने की 8 और 9 तारीख को होगा। बैठक का उद्घाटन वित्‍त मंत्री श्री प्रणब मुखर्जी करेंगे और कृषि मंत्री श्री शरद पवार और उपभोक्‍ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रोफेसर के.वी. थॉमस सम्‍मेलन को सम्‍बोधित करेंगे। विभिन्‍न केन्‍द्रीय मंत्रालयों, योजना आयोग और यूआईडीएआई के वरिष्‍ठ अधिकारी भी सम्‍मेलन में भाग लेंगे।

बैठक में वसूली केन्‍द्रों से उपभोक्‍ता राज्यों तक खाद्यान्‍न को तेजी से पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध लदान प्रणाली पर भी विचार किया जाएगा। वसूली को प्रोत्‍साहित करने के लिए सीधे किसानों को अदायगी करने के तरीके को भी अपनाया जा रहा है। राज्‍य सरकारों से अनुरोध किया जाएगा कि इन प्रयासों को और सुदृढ़ बनाने के उपायों का पता लगाए।

सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली का कम्‍प्‍यूटरीकरण भी शुरू किया है, कुछ पायलट परियोजनाएं सफलतापूर्वक पूरी की जा चुकी हैं और कुछ राज्‍यों में बायोमीट्रिक कार्ड जारी करने, विभिन्‍न वर्गों के लाभ उठाने वालों की पहचान और जाली राशन कार्डों को समाप्‍त करने की दिशा में उल्‍लेखनीय प्रगति हुई है। सम्‍मेलन इन प्रयासों को और सुदृढ़ करने और उसे यूआईडीएआई के साथ जोड़ने पर भी विचार किया जाएगा।

बैठक में महिला और बाल विकास मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, कृषि विभाग, गृह मंत्रालय, आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय, स्‍कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, आर्थिक मामले विभाग, राष्‍ट्रीय सलाहकार परिषद और योजना आयोग के वरिष्‍ठ अधिकारी भी अपने विचार रखेंगे।(PIB)