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17 नवंबर 2011

चीनी निर्यात पर फैसला 21 को संभव

आर.एस. राणा नई दिल्ली

सरकार 21 नवंबर को चीनी निर्यात पर फैसला ले सकती है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने बिजनेस भास्कर को बताया कि खाद्य मामलों पर प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की 21 नवंबर को बैठक होगी जिसमें चीनी के निर्यात पर फैसला लिया जायेगा। उन्होंने चीनी निर्यात की मात्रा पर कहा कि इस बारे में फैसला ईजीओएम को करना है।
चालू पेराई सीजन में देश में चीनी का उत्पादन बढऩे का अनुमान है, इसीलिए उद्योग चाहता है कि ओपन जरनल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत 30 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी जाये। जबकि खाद्य मंत्रालय छोटी-छोटी मात्रा में निर्यात की अनुमति देने के पक्ष में है। सूत्रों के अनुसार 21 नवंबर को होने वाली ईजीओएम की बैठक में पांच लाख टन चीनी के निर्यात को अनुमति दी जा सकती है।
इसके अलावा इस बैठक में 19,000 टन चीनी के निर्यात की अनुमति मित्र देशों को (डिप्लोमेटिक आधार) पर दिए जाने की संभावना है। खाद्य मंत्रालय के अनुसार चालू पेराई सीजन के दौरान देश में 247.7 लाख टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है।आलोचना:- वर्ष 2007 में महंगे दामों पर चीनी आयात के बाद अगले ही साल 2008 में उन्होंने चीनी निर्यात का फैसला करने पर पवार की कड़ी आलोचना देश में हुई थी। पिछले साल विपक्षी दलों ने खाद्यान्नों की ऊंची कीमतों के लिए पवार की नीतियों को ही जिम्मेदार ठहराया था।भारत दुनिया के सबसे बड़े खाद्यान्न उपभोक्ताओं में से एक है। ऐसे में खाद्यान्न निर्यात का मामला काफी संवेदनशील होता है। लेकिन जब खाद्यान्न निर्यात की बारी आती है तो तुरुप का पत्ता कृषि मंत्री शरद पवार के हाथ में होता है। चार दशक से भारतीय राजनीति में जमे और मौजूदा यूपीए सरकार में अपनी निर्णायक भूमिका के कारण उनकी बात टालना किसी के लिए भी संभव नहीं होता है।
माना जा रहा है कि इस सप्ताह वे देश से 5 लाख टन चीनी निर्यात के लिए दबाव बढ़ा सकते हैं। विपक्ष और अपनी सरकार में ही उनके कुछ साथियों को शायद ऐसे में असहज स्थिति का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि महंगाई को काबू में करने और 120 करोड़ आबादी वाले घरेलू बाजार में चीनी की सप्लाई को पर्याप्त रखने की चुनौती देश के सामने है। कुछ जानकारों ने तो इस तरह की आशंका भी जताई है कि यदि चीनी निर्यात की जाती है तो इसका चीनी की कीमतों पर भारी असर पड़ सकता है और देश में चीनी कीमतें 50 रुपये प्रति किलो तक भी उछल सकती हैं।
70 वर्षीय पवार पहले ही इस साल कई निर्यात सौदों के लिए दबाव डाल चुके हैं, जिनकी देश में आलोचना भी होती रही है। पवार इससे बढ़ती कीमतों का फायदा किसानों को दिलाने का प्रयास करते हैं ताकि अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मतदाताओं को प्रभावित किया जा सके। 2007 में महंगे दामों पर चीनी का आयात करने के बाद अगले ही साल 2008 में उन्होंने चीनी निर्यात का फैसला किया जिसकी कड़ी आलोचना देश में हुई। पिछले साल विपक्षी दलों ने खाद्यान्नों की ऊंची कीमतों के लिए पवार की नीतियों को ही जिम्मेदार ठहराया।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उपभोक्ता और ब्राजील के बाद दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक है। ऐसे में भारत से चीनी का आयात या निर्यात दोनों ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों को बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है। हालांकि यह इसके उत्पादन पर निर्भर करता है। भारतीय किसान संगठनों के संघ के महासचिव पी. शेंगाल रेड्डी पवार के प्रभाव को लेकर कहते हैं, 'प्रधानमंत्री उनकी (पवार की) बात सुनते हैं और कैबिनेट पीएम की। कृषि और खाद्यान्न संबंधी मामलों में वह एक अथॉरिटी हैं। उनके प्रस्ताव भले ही प्रधानमंत्री हों या कैबिनेट एक दिन से ज्यादा दिन नहीं टलते।'
जनवरी 2011 तक पवार के पास खाद्यान्न मंत्रालय भी था और उनको किसानों और उपभोक्ताओं के जरूरतों के बीच संतुलन बैठाने के लिए जूझना पड़ता था। अब केवी थॉमस को खाद्यान्न मंत्रालय दिया जा चुका है और निर्यात पर बने मंत्रियों के पैनल में पवार के प्रस्तावों का थॉमस विरोध करते नजर आते हैं। यह पैनल जब भी मिलता है कृषि निर्यात की इजाजत देता है। यह दर्शाता है कि पवार अपने मतदाताओं को फायदा पहुंचाने के लिए सबकुछ करते हैं और यही कारण है कि चार दशक के राजनीतिक जीवन में उन्होंने कभी चुनाव नहीं हारा। (Business Bhaskar....R S Rana)

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