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24 अगस्त 2011

कॉटन-निर्यात पर हटी रोक से मिलेगा सपोर्ट

मांग व आपूर्ति की अनिश्चितता की वजह से इस पखवाड़े भी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कॉटन की कीमतों में सुस्ती बनी रही। यूएसडीए द्वारा इस साल निर्यात में कटौती के अनुमानों व चीनी की मांग में कमी की वजह से अमेरिकी बाजारों में कॉटन की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज हुई है। यूएसडीए की समीक्षा के बाद आपूर्ति में थोड़ी तेजी आई है। इस समय साल 2011-12 के लिए वैश्विक स्टॉक/यूज रेशियो 43.7 फीसदी के स्तर पर है जो तीन सालों के दौरान सबसे ज्यादा है। अमेरिका में आईसीई वायदा बाजार का बेंचमार्क अक्टूबर सौदा 0.90 सेन्ट्स यानी 0.88 फीसदी गिरकर 1.0200 डॉलर प्रति पाउंड पर बंद हुआ।
साल 2011-12 में वैश्विक स्तर पर कपास के उत्पादन में 8 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 26.9 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान। क्योंकि साल 2010-11 में किसानों को कपास की कीमतों में तेजी का फायदा मिला है, इससे प्रेरित होकर वे उत्पादन बढ़ा सकते हैं। अमेरिका को छोडक़र दुनिया के सभी बड़े कपास उत्पादक देशों के पैदावार में वृद्धि होगी। उम्मीद के अनुसार भारत और ऑस्ट्रेलिया में इसका उत्पादन रिकार्ड स्तर पर पहुंच सकता है। अमेरिका में खेती योग्य भूमि में बढ़ोतरी होने के बावजूद टैक्सास में सूखे के कारण न केवल लोग वहां इसकी खेती से मुंह मोड़ेंगे बल्कि इसका असर कुल उत्पादन पर भी पड़ेगा। अमेरिका में 2011-12 में 35 लाख टन कपास उत्पादन का अनुमान लगाया गया है जो कि पिछले सीजन से 12 फीसदी कम है। जहां तक खपत की बात है तो यदि अनुमानित वैश्विक इकनामिक ग्रोथ मूर्त रूप लेता है तो 2011-12 के दौरान वैश्विक कपास के मिल खपत में बढ़ोतरी होगी। कपास की बढ़ी हुई उपलब्धता ने इसमें हवा दे दी है। लेकिन कपास की कीमतों में तेजी और पॉलिएस्टर से मिल रही प्रतिस्पर्धा के कारण इसमें कमी हो सकती है। 2011-12 में कपास मिल खपत 25 मिलियन टन होने का अनुमान है जो कि पिछले साल से 2 फीसदी ज्यादा है। चीन में फसलों के उत्पादन की अच्छी स्थिति और अनुकूल मौसम के कारण कपास की कीमतों में सुस्ती बनी रहेगी। चीन का इकॉनामिक बेल्ट कहलाने वाले उत्तरी तियानशान में कपास की स्थिति अच्छी है जबकि उत्तरी जिजियांग में मौसम की भविष्यवाणी के मद्देनजर बारिश की संभावना व्यक्त की गई है। पिछले साल यहां किसानों को बहुत फायदा हुआ था लेकिन इस साल थोड़ी चिंताएं अभी बनी हुई हैं।
जहां तक भारत का सवाल है बचे हुए कॉटन मार्केटिंग ईयर के लिए कॉटन निर्यात की इजाजत देने से यहां इसकी मांग में मजबूती बनी हुई है। कपास का उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और मध्यप्रदेश ने कृषि मंत्रालय से कपास पर निर्यात की रोक को हटाने हेतु पत्र लिखा था। इसके पीछे उनकी दलील थी की घरेलू बाजार में कपास की मांग में आ रही कमी और सत्र के अंत तक कपास का विशाल स्टॉक होने के कारण निर्यात के रास्ते खोल देने चाहिए। इसके बाद सरकार ने कमॉडिटी की कीमतों में आई कमी और देश में इसकी पर्याप्त उपलब्धता होने की बात कहते हुए कपास पर से निर्यात की रोक हटा ली और ओपन जेनरल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत बचे हुए कपास सीजन तक निर्यात की इजाजत दे दी। कपास सीजन के बचे हुए दो महीने के लिए निर्यातकों को केवल डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (डीजीएफटी) के साथ पंजीकरण कराना होगा। सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में कीमतों में अवरोध को चेक करने और घऱेलू टेक्सटाइल बाजार के लिए कच्चे माल की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए कपास निर्यात की सीमा 55 लाख बेल्स तय कर दी थी।
गुजरात में सबसे ज्यादा बिकने वाली श्रेणी शंकर-6 की कीमतें प्रति कैंडी 3200 रुपये की वृद्धि के साथ 35,500 रुपये प्रति कैंडी पर आ चुकी है। आने वाले दिनों में महाराष्ट्र में अच्छी गुणवत्ता वाले कपास का भाव 33000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर को छू सकता है। कॉटन एडवाइजरी बोर्ड की मानें तो औद्योगिक मांग में कमी की वजह से वर्तमान सीजन के अंत में करीब 52.5 लाख बेल्स कपास की अतिरिक्त उपलब्धता होगी। वर्तमान मौसम कपास की खेती के अनुकूल है। सभी कपास उत्पादन करने वाले राज्यों में आवक में अच्छी वृद्धि हुई है। पिछले साल की 295.00 लाख बेल्स की तुलना में 5 अगस्त 2011 को 325.81 लाख बेल्स आवक (2010-11) दर्ज की गई।
आउटलुक
दुनिया के सबसे बड़ा कपास आयातक देश चीन में मांग में कमी आने की वजह से इसके वैश्विक कीमतों में नरमी छाई हुई है। इसके अलावा ग्राहकों का ऊंची कीमतों की वजह से इसके विकल्प के रूप में पॉलियस्टर के इस्तेमाल किए जाने से कपास की मांग में और कमी आ गई है। कपास की कीमतों में उतार चढ़ाव से अमेरिकी उत्पादकों पर असर पडऩा लाजिमी है। इसकी वजह से अस्थाई समस्या पैदा हो सकती है। लंबी अवधि में चीनी अर्थव्यवस्था में महंगाई, करेंसी मूल्यन आदि का प्रभाव इसके थोक मूल्यों पर पड़ेगा। विकसित अर्थव्यवस्थओं सहित असल इस्तेमालकर्ताओं के पारंपरिक बाजारों में इस उत्पाद को लेकर कमजोरी बनी हुई है तथा आने वाले महीने में भी खुदरा बाजार में वस्त्रों की कीमतों में बढ़ोतरी के मद्देनजर उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया पर संदेह बना हुआ है। भारत सरकार ने 2 अगस्त 2011 को कपास के निर्यात पर से रोक हटा ली है, इससे बाजार के सेंटीमेंट पर कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। (Mani Manter)

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