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04 जुलाई 2011

गन्ना और एथेनॉल की मूल्य नीति में झोल

ओईसीडी और एफएओ की एक रिपोर्ट में भारत की गन्ना कीमत निर्धारण नीति की आलोचना की गई है

ई दिल्ली July 03, 2011
देश में चीनी क्षेत्र की खामियां दूर करने के लिए विशेषज्ञों और इस उद्योग के कारोबारियों ने गन्ना एवं एथेनॉल की कीमत तय करने के तरीकों में बड़े सुधारों की पैरवी की है। उनकी यह मांग आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) और संयुक्त राष्टï्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट में भारत की गन्ना कीमत निर्धारण नीति की आलोचना किए जाने के बाद उठी है। यह रिपोर्ट कहती है कि गन्ना कीमतों और अपेक्षाकृत बाजार संचालित चीनी के भाव के बीच कोई संबंध नहीं होता।देश में गन्ने का भाव केंद्र सरकार की ओर से हर साल घोषित होने वाले उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के आधार पर तय किया जाता है। इस मामले में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) से भी संपर्क किया जाता है। एफआरपी नीति के मुताबिक यदि राज्य सरकारें गन्ने के लिए ऊंचा भाव (राज्य सलाह मूल्य) रखने की मंशा रखते हैं, तो इसकी लागत उन्हें ही उठानी पड़ती है। लेकिन सीएसीपी के अध्यक्ष अशोक गुलाटी ओईसीडी और एफएओ के आकलन को पूरी तरह से सही नहीं ठहराते। उन्होंने कहा, 'चीनी क्षेत्र की खामियां दूर करने के लिए बड़े सुधारों की जरूरत है। लेकिन, सरकार अब भी इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बदालव करने में संकोच कर रही है।उन्होंने कहा कि ओईसीडी और एफएओ के आकलन में भारत को लेकर गन्ने की कीमत और चीनी के भाव को एक-दूसरे से अलग करके देखा गया है, जो पूरी तरह सही नहीं है। उन्होंने कहा, 'हम कीमतें तय करते समय बाजार की परिस्थितियों और मांग एवं आपूर्ति के घटकों पर गौर करते हैं। इसमें नौकरशाही के मसले शामिल होते हैं और इसी के चलते कीमतें एक-दूसरे के अनुक्रम में नहीं होतीं।Ó उन्होंने यह भी कहा कि बाजार से ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता, जिसकी मदद से कीमतें निर्धारित की जा सकें।बावजूद इसके, वह कहते हैं, 'ब्राजील के कारखाने गुड़ से चीनी की ओर रुख करते हैं और उनका रवैया इसके विपरीत भी हो सकता है, जो बाजार की जरूरतों पर निर्भर करता है। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। यहां अब तक गुड़ से केवल एथेनॉल तैयार किया जाता है। भारतीय चीनी मिलों के संगठन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने भी कहा कि गन्ने की कीमत और चीनी के भाव में कोई संबंध नहीं होता। लेकिन चीनी की कीमतों के मामले में अलग-अलग राज्यों का रवैया भिन्न-भिन्न होता है।उन्होंने कहा, 'सरकार एक बेंचमार्क कीमत देती है। एफआरपी निश्चित मानकों पर आधारित होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्यों में एफआरपी की वैधता नहीं होती क्योंकि वे एसएपी तय करते हैं, जो गन्ने की न्यूनतम कीमत होती है। यह एफआरपी से बहुत अधिक होती है। गुलाटी ने कहा कि कुछ प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में ऊंची एसएपी की वजह से कीमतों में भारी अंतर रहता है।वर्मा के मुताबिक ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और थाइलैंड जैसे देशों में विशेष कीमत फॉर्मूला इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि अगले महीने के लिए 3-4 लाख टन चीनी आगे बढ़ाई गई है क्योंकि सरकार ने जरूरी कोटे से अधिक चीनी जारी की थी। लेकिन जून में ऐसा नहीं हुआ। इस महीने चीनी का कारखाना भाव बहुत नीचे चला गया क्योंकि चीनी के कोटे को आगे नहीं बढ़ाया गया। उन्होंने बताया कि इस वर्ष के शुरुआती महीनों के दौरान उत्तर प्रदेश और महाराष्टï्र में प्रति क्विंटल लगभग 300 रुपये का नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि चीनी की बिक्री लागत से कम भाव पर की गई। (BS Hindi)

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