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19 अप्रैल 2011

उठने लगी हैं जीरे में भी लहरें

मुंबई April 17, 2011
घरेलू और वैश्विक हालात से अब यह साफ है कि जीरे की कीमतों में गिरावट का दौर खत्म हो गया है। उत्पादन कम होने की आशंका के कारण विदेशी बाजारों में जीरे की कीमतें ऊंची हो गई हैं। इसका असर घरेलू बाजार पर भी पड़ सकता है।पिछले एक महीने में जीरे की कीमतों में खास बढ़ोतरी नहीं हुई। जीरे की सबसे बड़ी मंडी ऊंझा (गुजरात) में एक महीने पहले जीरा 16,000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था जबकि 15 अप्रैल को इसका भाव 15,585 रुपये क्ंिवटल था। जियोजित कॉमटे्रड के प्रमुख विशेषज्ञ आनंद जेम्स के अनुसार नई फसल की मंडियों में आवक अच्छी थी लेकिन अब आवक कमजोर पडऩे लगी है। गुरुवार को मंडियों में 30,000 बोरी (एक बोरी बराबर 55 किलोग्राम) जीरा पहुंचा जबकि बीते सोमवार को 32,000 बोरियां आई थीं। इससे पिछले सप्ताह में हर रोज 40,000 बोरी जीरे की आवक हो रही थी।ऐंजल ब्रोकिंग की नलिनी राव कहती हैं कि जीरे में गिरावट का दौर खत्म हो चुका है क्योंकि मंडियों में आवक कमजोर हो चुकी है और मांग में तेजी बनी हुई है। विदेशी रुझानों का असर भी घरेलू बाजार पर पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस समय जीरे के दाम 3340-3400 डॉलर प्रति टन चल रहे हैं जबकि घरेलू बाजार में 3150-3200 डॉलर। इस साल देश में 24-25 लाख बोरी जीरा उत्पादन होने की उम्मीद है जबकि पिछले साल करीब 29 लाख बोरी जीरे का उत्पादन हुआ था। इस बार पिछले साल का (कैरी फॉरवर्ड) स्टॉक भी चार लाख बोरी ही है जबकि पिछले साल करीब 10 लाख बोरी का कैरी फॉरवर्ड स्टॉक था। कम उत्पादन की वजह दिसंबर में गुजरात में असमय बरसात को माना जा रहा है। इस असर फसल पर पड़ा और उत्पादन करीब 25 फीसदी घटा। जो फसल मंडियों में आ रही है, उसकी गुणवत्ता भी अच्छी नहीं है। उधर, तुर्की और सीरिया में भी फसल कमजोर होने के संकेत मिल रहे हैं। तुर्की में नई फसल मई के अंतिम सप्ताह तक मंडियों में आ पाएगी, तभी पता चलेगा कि उत्पादन कितना कम हुआ है। (BS Hindi)

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