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27 अप्रैल 2011

बढ़ी कीमतों से मेंथा बना खास

लखनऊ April 26, 2011
मेंथा तेल की लगातार चढ़ती कीमतों ने उत्तर प्रदेश में किसानों को एक बार फिर से इसकी खेती की तरफ मोड़ दिया है। प्रदेश में मेंथा का हब कहे जाने वाले बाराबंकी और लखनऊ जिले में इस बार मेंथा की खेती पर जोर है। इस सीजन में गन्ने का अपेक्षित भाव न मिलना भी मेंथा के लिए वरदान साबित हो रहा है। नकदी फसल के लिए इस समय किसानों को मेंथा सबसे मुफीद लग रहा है। कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो इस साल मेंथा के रकबे में बीते साल के मुकाबले 40 फीसदी की बढ़ोतरी तय है। बीते साल राज्य में मेंथा का रकबा 1.5 लाख हेक्टेयर रह गया था जिसके इस साल बढ़कर 2.10 लाख हेक्टेयर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। इन दिनों मेंथा की बुआई का सीजन चल रहा है और ऐसे में हो रही बारिश ने किसानों के उत्साह को दोगुना करने का काम किया है। अप्रैल में हुई दो बार की बारिश से किसानों को मेंथा की नर्सरी लगाने में सहारा मिला है। राज्य में मेंथा के बड़े खेतिहर और उन्नत किसान पुरस्कार से सम्मानित रामदरश का कहना है कि बीते साल मेंथा तेल की कीमत 600 से 700 रुपये लीटर की रही जबकि इस समय इस की कीमत 1200 रुपये लीटर चल रही है ऐसे में किसानों इस साल मेंथा गन्ने से ज्यादा लाभकारी लग रहा है। उनका कहना है कि इस बार कई ऐसे जिलों के लोग भी बाराबंकी से मेंथा की जड़ें ले जा रहे हैं जहां पहले इसकी खेती नही की जाती थी। वायदा बाजार की मानें तो आने वाले दिनों में भी मेंथा की कीमत में गिरावट के आसार नहीं हैं। बेहतर मॉनसून की भविष्यवाणी के बाद किसानों को फसल के भी अच्छी रहने की उम्मीद जगी है। गौरतलब है कि देश के कुल मेंथा उत्पादन का 90 फीसदी उत्तर प्रदेश में होता है। उत्तर प्रदेश में मेंथा उत्पादक जिलों में बाराबंकी, अंबेडकरनगर, मुरादाबाद, सहारनपुर, मेरठ और लखनऊ का नाम शुमार होता है। महज 90 दिनों में तैयार हो जाने वाली इस फसल को किसान गेहंू की कटाई के बाद अप्रैल में लगाते हैं और जून अंत से लेकर जुलाई तक फसल तैयार हो जाती है। इस तरह मेंथा उत्पादक किसान आराम से खरीफ और रबी की फसल भी लेते हैं। कृषि वैज्ञानिक सुशील कुमार सिंह के मुताबिक देश में कुल 35000 टन से लेकर 40000 टन मेंथा का उत्पादन हर साल होता है जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में ही 30000 टन मेंथा का उत्पादन होता है।देश में हर साल 10000 टन मेंथा की खपत होती है जबकि शेष उत्पाद को चीन और अन्य यूरोपीय देशो को भेजा जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जून और जुलाई में भी जब फसल तैयार हो आकर बाजार में आएगी तब भी दाम गिरने के आसार नहीं हैं। (BS Hindi)

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