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26 फ़रवरी 2011

खाद्य सुरक्षा विधेयक में हैं कई छेद

January 13, 2011
गरीबों को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने और इससे जुड़ी बाधाओं को खत्म करने के लिए प्रतिबद्व राष्टï्रीय सलाहकार परिषद् (एनएसी) की मांग से इतर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख सी रंगराजन ने कई मुद्दे उठाए हैं जिनकी वजह से खाद्य सुरक्षा योजना पर अमल करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। नाम न बताने की शर्त पर एनएसी के एक सदस्य का कहना है कि एनएसी का नेतृत्व करने वाली सोनिया गांधी खाद्य सुरक्षा के मसले पर काफी मुखर हैं और मुमकिन है कि उनकी राय पर अमल किया जाए। खाद्य सुरक्षा से जुड़ी रंगराजन की रिपोर्ट को गुरुवार को जारी किया गया और इसमें एनएसी की सिफारिशों की समीक्षा की गई है। इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) पर जोर देकर ही खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य को पाया जा सकता है। दिलचस्प बात है कि इस रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में पीडीएस में सुधार के प्रयासों की काफी तारीफ की गई है। वहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। समिति ने हरियाणा और दिल्ली को छोड़कर कांग्रेस प्रशासित किसी राज्य की पीडीएस व्यवस्था में सुधार के लिए अपना समर्थन नहीं दिया है। इस रिपोर्ट में तमिलनाडु सरकार को ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम के जरिये पीडीएस व्यवस्था में प्रयोग, गुजरात द्वारा बार कोड वाले अनाज की बोरी का इस्तेमाल किए जाने और उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में एसएमएस अलर्ट सिस्टम की काफी तारीफ की है। इन सभी राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं है।यह रिपोर्ट विशेष तौर पर प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा पहल के खाद्य सब्सिडी से जुड़े असर को लेकर चिंतित है। समिति का कहना है कि एनएसी ने जितना अनुमान लगाया है उसके मुकाबले कुल सब्सिडी खर्च ज्यादा होगा। समिति का कहना है कि एनएसी के मुताबिक पहले चरण में कुल सब्सिडी 71,837 करोड़ रुपये होगा और अंतिम चरण में 79,931 करोड़ रुपये का खर्च होगा। लेकिन रंगराजन ने इन अनुमानों को चुनौती दी है। उनका कहना है कि इस आंकड़े में संशोधन की पूरी गुंजाइश है और सब्सिडी बढ़कर 85,584 करोड़ रुपये और 92,060 करोड़ रुपये हो जाएगी। इसके अलावा मौजूदा खरीद और भंडार की क्षमता भी 4.25 करोड़ टन से थोड़ा ही ज्यादा है। ऐसे में पहले चरण में 6.87 करोड़ टन और अंतिम चरण में 7.39 करोड़ टन अनाज मुहैया कराने के लिए कई तरह के खर्च बढ़ेंगे जिसका आकलन अभी नहीं किया गया है। इस रिपोर्ट में यह संकेत दिया गया है कि कानून बनने पर अनाज खरीद बाध्यता होगी और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) या आयात में भी बढ़ोतरी करनी होगी। समिति का कहना है कि ये विकल्प राजकोषीय बोझ को और बढ़ा सकते हैं। प्रधानमंत्री द्वारा गठित विशेषज्ञों की समिति ने इस विधेयक के जरिये केवल गरीबों के लिए सस्ते गेहूं और चावल का प्रावधान किए जाने की सिफारिश की है। समिति को लगता है कि सामान्य श्रेणी के लोगों को भी ऐसी सहूलियत के लिए शामिल करने में दिक्कतें होंगी। समिति ने कहा है कि रिपोर्ट में न केवल गरीबों बल्कि कुछ सीमांत परिवारों को प्रस्तावित कानून के दायरे में शामिल करने की सिफारिश की गई है। रंगराजन का कहना है कि एनएसी की सोच सही और सराहनीय है लेकिन खाद्य सुरक्षा को कानूनी मान्यता दी जाती है तो इसके सभी पहलुओं पर गौर करना ही होगा। (BS Hindi)

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