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10 फ़रवरी 2011

इस साल होगा आभूषण निर्यात का लक्ष्य पूरा

मुंबई February 09, 2011
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की ऊंची कीमतें, उत्पादन कम रहने की आशंका और कपास निर्यात की सीमा बढ़ाए जाने की अटकलों की बीच घरेलू बाजार में कपास की कीमतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। पिछले 10 दिनों में कपास के दाम तकरीबन 15 फीसदी बढ़ चुके हैं। वायदा बाजार में लगातार कपास सौदों पर लग रहे ऊपरी सर्किट पर काबू करने के लिए लगाए गए विशेष मार्जिन का भी कोई असर नहीं हुआ है और बुधवार को भी कपास वायदा पर ऊपरी सर्किट लग गया।हाजिर बाजार में दस दिन पहले एक फरवरी को शंकर-6 कपास का भाव 48800 रुपये प्रति कैंडी था जो 9 फरवरी को बढ़कर 56,000 रुपये प्रति कैंडी के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। एक जनवरी को कपास की बिक्री 43,000 रुपये प्रति कैंडी की दर से हो रही थी। वही एक साल पहले यह कीमत 27,000 रुपये प्रति कैंडी थी। पिछले 10 दिनों में देश की सभी प्रमुख कपास मंडियों में प्रति कैंडी 7000-8000 रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। हाजिर बाजार की तरह कपास वायदा में भी लगातार तेजी देखने को मिली और एमसीएक्स कपास वायदा पर चार फीसदी का और एनसीडीईएक्स पर पांच फीसदी का ऊपरी सर्किट लग गया। ऊपरी सर्किट लगते समय एनसीडीईएक्स पर कपास अप्रैल अनुबंध का भाव 1158.70 रुपये प्रति 20 किलोग्राम पर पहुंच चुका था, जबकि एक जनवरी को यह 754.70 रुपये और एक फरवरी को 953.70 रुपये था। भारतीय कपास निगम (सीसीआई) के एक अधिकारी के अनुसार गुजरात में कपास की कीमतें बुधवार को 55,000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर पर पहुंच गईं। पंजाब और हरियाणा में कपास की कीमतें प्रति क्विंटल 6,400 के सर्वश्रेष्ठï स्तर पर पहुंच चुकी हैं। यह पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले दोगुनी है। लगातार कपास वायदा पर लग रहे ऊपरी सर्किट पर काबू करने के लिए एनसीडीईएक्स ने कपास के सभी वायदा कारोबार पर 5 फीसदी का विशेष मार्जिन लागू कर दिया, लेकिन इसके बावजूद कपास वायदा पर ऊपरी सर्किट लग गया। लगातार लग रहे ऊ परी सर्किट के बारे में एनसीडीईएक्स की ईबीपी उमा मोहन कहती हैं, 'बाजार में लिक्विटी बहुत ज्यादा है जिसके कारण कपास वायदा पर सर्कि ट लग रहा है। एफएमसी अगर अनुमति देगा तो विशेष मार्जिन की सीमा और बढ़ाई जा सकती है।Ó हालांकि एमसीएक्स ने अपने मार्जिन मनी पर कोई बदलाव नहीं किया है। कपास की तेजी से बढ़ रही कीमतों के बारे में एंजल ब्रोकिंग की वेदिका नारवेरकर ने कहा कि इसकी सबसे प्रमुख वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमतों का अधिक होना है। दूसरी वजह उत्पादन का अनुमान से कम होने संबंधी खबरें हैं। (BS Hindi)

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