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24 सितंबर 2010

एमसीएक्स-एसएक्स को शेयर कारोबार की इजाजत नहीं

सेबी का झटका - प्रमोटरों की शेयरहोल्डिंग नियम के मुताबिक नहीं, आवेदन खारिजशेयर बाजार के नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एमसीएक्स-एसएक्स की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए इस एक्सचेंज को इक्विटी, इक्विटी डेरिवेटिव, ब्याज दर और डेट में ट्रेडिंग की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। सेबी ने कहा है कि ऐसा करना न तो बाजार के हित में होगा और न ही जनहित में। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एमसीएक्स-एसएक्स ने कहा है कि सेबी का यह फैसला अन्याय और भेदभावपूर्ण है। एक्सचेंज ने कहा है कि वह फैसले का अध्ययन कर रहा है और सभी पहलुओं पर विचार के बाद आगे का कदम उठाएगा। माना जा रहा है कि सेबी के इस फैसले के खिलाफ एक्सचेंज सिक्युरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (सैट) जा सकता है।एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड (एमसीएक्स-एसएक्स) को अभी सिर्फ करेंसी डेरिवेटिव में ट्रेडिंग की इजाजत है। इसने बाकी श्रेणी में कारोबार शुरू करने के लिए 7 अप्रैल 2010 को आवेदन किया था। इस आवेदन में मझोले और छोटे उपक्रमों (एसएमई) के लिए एक्सचेंज शुरू करने की भी इजाजत मांगी गई थी। आवेदन को खारिज करते हुए सेबी ने कहा, वह इस बात से सहमत नहीं है कि आवेदन को मंजूरी देना ट्रेड और जनहित में होगा। एक्सचेंज को अभी करेंसी डेरिवेटिव के लिए 15 सितंबर 2011 तक मान्यता मिली हुई है। इस मान्यता को विस्तार देते समय सेबी ने प्रमोटर एवं अन्य की शेयरहोल्डिंग के संबंध में नियमों के पालन का निर्देश भी दिया था। 7 अप्रैल को भेजे अपने आवेदन में एक्सचेंज ने कहा था कि उसने सभी नियमों का पालन कर लिया है और अब वह नई सिक्युरिटीज में ट्रेडिंग करवाने के योग्य है।आवेदन पर सेबी की तरफ से कोई जवाब न मिलने पर एक्सचेंज ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने 10 अगस्त को सेबी को 30 सितंबर तक फैसला लेने का निर्देश दिया। कोर्ट ने नियामक को एमसीएक्स-एसएक्स के शेयरधारकों से सभी संबंधित सूचनाएं लेने का भी निर्देश दिया था। कोर्ट ने एक्सचेंज को भी निर्देश दिया था कि वह शेयरहोल्डिंग नियमों पर बोर्ड द्वारा पारित प्रस्ताव से सेबी को अवगत कराए। लेकिन सेबी शेयरहोल्डिंग नियमों के पालन के एक्सचेंज के दावे से सहमत नहीं हुआ और 30 अगस्त 2010 को एक नोटिस भेजकर उससे पूछा कि उसे दूसरे सेगमेंट में ट्रेडिंग करवाने की इजाजत क्यों दी जाए। सेबी ने 6 सितंबर को एमसीएक्स-एसएक्स की सुनवाई की। एक्सचेंज की तरफ से 16 सितंबर को लिखित जवाब भी दिया गया। गुरुवार को जारी सेबी ने अपने 68 पेज के आदेश में कहा है, 'मामला स्टॉक एक्सचेंज के रूप में मान्यता देने का नहीं है, क्योंकि एमसीएक्स-एसएक्स पहले ही एक स्टॉक एक्सचेंज है। बल्कि मामला किसी दूसरे स्टॉक एक्सचेंज की तरह अन्य श्रेणी की सिक्युरिटीज में ट्रेडिंग की इजाजत का है।सेबी के पूर्णकालिक निदेशक के.एम. अब्राहम की तरफ से जारी आदेश में नियामक ने आवेदन रद्द करने के पांच कारण बताए हैं। इन कारणों में एक है- दो प्रमोटरों मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) और फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज इंडिया लिमिटेड (एफटीआईएल) के हाथों में एक्सचेंज का इकोनॉमिक इंटरेस्ट होना। सेबी ने कहा है कि इस मामले में शेयरहोल्डिंग नियमों का पूरी तरह पालन नहीं किया गया है। सेबी ने कहा है कि आवेदक (एमसीएक्स-एसएक्स) और इसके प्रमोटरों का व्यवहार ईमानदारी भरा नहीं है इसलिए उनका आवेदन स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। सेबी ने तीन शेयरहोल्डरों आईएफसीआई, पीएनबी और आईएलएंडएफएस के साथ प्रमोटरों के बायबैक सौदे पर भी सवाल उठाए हैं और इसे गैर-कानूनी बताया है। नियामक ने कहा है कि एमसीएक्स-एसएक्स के दो प्रमोटर मिलकर काम कर रहे हैं, इसलिए दोनों मिलकर एक्सचेंज में अधिकतम पांच फीसदी इक्विटी रख सकते हैं। इस समय दोनों की पांच-पांच फीसदी इक्विटी है। सेबी ने कहा है, एमसीएक्स-एसएक्स ने बताया था कि दोनों प्रमोटरों का प्रबंधन एक नहीं है, जबकि जांच में यह पाया गया कि दोनों इकाइयां जिग्नेश शाह के नेतृत्व वाली एक ही प्रबंधन के अधीन काम कर रही हैं। नियामक के अनुसार एफटीआईएल की वेबसाइट पर एमसीएक्स को ग्रुप कंपनी और जिग्नेश शाह को ग्रुप सीईओ बताया गया है। सेबी ने कहा है कि जिग्नेश शाह दोनों प्रमोटर कंपनियों एफटीआईएल और एमसीएक्स को चला रहे हैं, यह जानने के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। कंपनी एक्ट के तहत यह निष्कर्ष आसानी से निकाला जा सकता है कि दोनों प्रमोटर एक ही मैनेजमेंट के तहत काम कर रहे हैं। गौरतलब है कि एमसीएक्स में एफटीआईएल की 30 फीसदी हिस्सेदारी है। जिग्नेश शाह एफटीआईएल के चेयरमैन हैं और एमसीएक्स में उनका पद वाइस प्रेसिडेंट का है। सेबी ने कहा है कि एमसीएक्स-एसएक्स में सिर्फ एफटीआईएल की हिस्सेदारी ही प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से पांच फीसदी की सीमा से ज्यादा है। दूसरा तथ्य यह है कि दो प्रमोटर मिलकर काम कर रहे हैं। सेबी के अनुसार स्टॉक एक्सचेंज भी एक तरह से नियामक संस्था है इसलिए उसके प्रमोटरों के हाथों में ज्यादा आर्थिक हित नहीं होने चाहिए।सेबी बनाम एमसीएक्स-एसएक्स : घटनाक्रम16 सितंबर 2008 : एमसीएक्स-एसएक्स को सेबी से एक साल के लिए एक्सचेंज चलाने की मंजूरी मिली।18 सितंबर 2008 : सेबी ने स्पष्ट किया कि यह मंजूरी सिर्फ करेंसी डेरिवेटिव के लिए है।15 जनवरी 2009 : एमसीएक्स-एसएक्स ने सेबी के पास रिन्यूअल के लिए आवेदन किया। सेबी ने एक साल का विस्तार दिया।31 अक्टूबर 2009 : एमसीएक्स-एसएक्स बोर्ड ने मालिकाना नियमों के तहत रिस्ट्रक्चरिंग को स्वीकृति दी।21 दिसंबर 2009 : एमसीएक्स-एसएक्स ने रिस्ट्रक्चरिंग पर सेबी को पत्र भेजा।19 मार्च 2010 : बॉम्बे हाईकोर्ट से एमसीएक्स-एसएक्स की कैपिटल रिस्ट्रक्चरिंग को स्वीकृति मिली।7 अप्रैल 2010 : एमसीएक्स-एसएक्स ने सेबी को हाईकोर्ट के फैसले से अवगत कराया। इंटरेस्ट रेट डेरिवेटिव, इक्विटी, फ्यूचर-ऑप्शन, डेट में ट्रेडिंग की अनुमति मांगी। साथ मेंं एक एसएमई एक्सचेंज शुरू करने की भी इजाजत मांगी।4 जून 2010 : एमसीएक्स-एसएक्स ने अपनी मान्यता के रिन्यूअल के लिए सेबी को पत्र लिखा। (सेबी ने इसकी मान्यता सितंबर 2011 तक बढ़ा दी है)16 जुलाई 2010 : कोई जवाब न मिलने की स्थिति में एमसीएक्स-एसएक्स ने सेबी की चुप्पी पर मीडिया कैंपेन शुरू किया। मुंबई हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल की।10 अगस्त 2010 : हाईकोर्ट ने सेबी को 30 सितंबर तक फैसला लेने का निर्देश दिया।23 सितंबर 2010 : सेबी ने एमसीएक्स-एसएक्स का आवेदन रद्द किया। (Business Bhaskar)

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