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14 सितंबर 2010

जनवरी से कपास निर्यात शुरू करने की मांग

टेक्सटाइल उद्यमियों ने कपड़ा निर्यात कारोबार को बचाने के लिए अक्टूबर की जगह जनवरी 2011 से कपास निर्यात शुरू करने की मांग की है। उनकी दलील है कि अक्टूबर से दिसंबर के बीच कपास निर्यात की अनुमति देने पर अच्छी गुणवत्ता वाले कपास देश से बाहर चले जाएंगे। साथ ही कपास की कीमतों में भी बेहिसाब इजाफा होने की आशंका है। उनका कहना है कि आगामी एक अक्टूबर से कपास निर्यात की इजाजत मिलने के बाद कपास की कीमतों में पिछले 15-20 दिनों में 6000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी 355 किलोग्राम) की बढ़ोतरी हो चुकी है। वाणिज्य मंत्रालय ने एक अक्टूबर से शुरू होने वाले कपास सीजन के दौरान 55 लाख बेल्स कपास निर्यात की इजाजत दी है। हालांकि उन्होंने यह भी सफाई दी कि निर्यात पर दिसंबर तक रोक की मांग कर वे किसानों को अच्छी कीमत से वंचित नहीं करना चाहते हैं। सरकार से उनकी सिर्फ यह गुजारिश है कि कपड़ा निर्माण के लिए देश में स्थिर कीमत पर उन्हें कपास की उपलब्धता बनी रहे। कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज (सीआईटीआई) ने अपनी मांगों को लेकर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को भी ज्ञापन दिया है। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्टर्स आर्गेनाजेशन, इंडियन मिल ओनर्स एसोसिएशन, अपैरल एक्सपोर्टर्स एंड मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन, अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल, कॉटन टेक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने भी सीआईटीआई की इन मांगों का समर्थन किया है। वर्धमान टेक्सटाइल लिमिटेड के चेयरमैन एस.पी. ओसवाल ने बताया कि भारत में फिलहाल कपास की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुकाबले 10-15 फीसदी तक अधिक है। अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान में 40 लाख बेल्स (एक बेल=170 किलोग्राम) और चीन 120 लाख बेल्स तक भारत से कपास का निर्यात कर सकता है। पिछले साल कपास सीजन के आरंभ में कपास की कीमत 23,000 रुपये प्रति कैंडी थी जो इस साल 38,000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर पर पहुंच चुकी है। ओसवाल ने कहा कि सीएबी ने वर्ष 2009-10 के दौरान कपास का निर्यात 83 लाख बेल्स रहा और इस वजह से ओपनिंग स्टॉक बहुत ही कम बच गया है। कॉटन एडवाइजरी बोर्ड ने भी कहा है कि इस साल अधिकतम 49.5 लाख बेल्स कपास घरेलू उपभोग के बाद बचेगा। ऐसे में 55 लाख बेल्स कपास निर्यात होने से कपास की कीमतें और बढ़ेंगी और कपड़ा निर्यात कारोबार को भारी झटका लग सकता है। (Business Bhaskar)

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