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31 मई 2010

आसान होगा यूरिया आयात

अंतरराष्ट्रीय बाजार में यूरिया की कीमतों में आई भारी गिरावट के चलते सरकार इसके आयात को डि-कैनालाइज कर सकती है। इस समय एसटीसी, एमएमटीसी और आईपीएल को यूरिया आयात की इजाजत है। डीएपी और एमओपी जैसे उर्वरकों और उनके कच्चे माल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में जो गिरावट आई है उसके चलते सरकार इन पर सब्सिडी घटा सकती है या फिर इनका उत्पादन और बिक्री करने वाली कंपनियों पर किसानों के लिए कीमतें घटाने का दबाव बढ़ा सकती है। उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक दोनों ही मोर्चो पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है।इस समय देश में यूरिया का आयात 265 डॉलर की कीमत (सीआईएफ) पर किया जा सकता है। रुपये और डॉलर की मौजूदा विनिमय दर पर यह कीमत 12,455 रुपये प्रति टन बैठती है। इस पर पांच फीसदी का आयात शुल्क और बैगिंग पर दूसर खर्च जोड़ने पर आयातित कीमत करीब 14,000 रुपये प्रति टन बैठती है। जबकि इस समय देश में यूरिया की उत्पादन लागत गैस आधारित संयंत्रों में 9,000 रुपये से 11000 रुपये टन आती है। फ्यूल ऑयल व नाफ्था आधारित संयंत्रों में यूरिया की उत्पादन लागत 15,000 रुपये से 20,000 रुपये प्रति टन की आ रही है। करीब 35 लाख टन यूरिया का उत्पादन नाफ्था और फ्यूल ऑयल का इस्तेमाल करने वाली इकाइयां कर रही हैं। उक्त सूत्र का कहना है कि इस स्थिति में यूरिया के उत्पादन की बजाय इसका आयात बेहतर विकल्प है। यही वजह है कि वित्त मंत्रालय आयात को डि-कैनालाइज करने पर जोर दे रहा है। यह कदम यूरिया को पूरी तरह नियंत्रणमुक्त करने का काम भी आसान करगा। मंत्रालय का मानना है कि ऐसे में तीन सरकारी एजेंसियों के अलावा यूरिया उत्पादन करने वाली इकाइयों को भी आयात या उत्पादन का विकल्प दे देना चाहिए। इस समय यूरिया का आयात केवल सरकारी कंपनियां एमएमटीसी, एसटीसी और इंडियन पोटाश लिमिटेड (आईपीेएल) ही कर सकती हैं।फरवरी में यूरिया की आयातित कीमत 340 डॉलर प्रति टन चल रही थी और उसके बाद से अब यह घटकर 265 डॉलर प्रति टन पर आ गई है। इसके पहले अगस्त, 2008 में इसकी आयातित कीमत 850 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थी। ऐसी स्थिति में इसका आयात व्यावसायिक रूप से संभव नहीं था। सूत्रों का कहना है कि इस दौरान उर्वरकों पर सब्सिडी काफी बढ़ गई थी। लेकिन मौजूदा स्थिति यूरिया आयात को डि-कैनालाइज करने के लिए सही समय है। सब्सिडी कम करने में भी इससे मदद मिलेगी। उद्योग भी इस बात से सहमत है। कंपनियों का कहना है कि अपना वितरण नेटवर्क होने से हम सरकारी आयातक एजेंसियों से बेहतर स्थिति में हैं। कांप्लेक्स उर्वरकों के लिए आयातित यूरिया का उपयोग करने वाली कंपनियां भी इसका आयात कर सकेंगी। असल में सरकार ने मार्च में न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) के तहत चालू साल 2010-11 के लिए जो सब्सिडी तय की थी उसके मुकाबले यूरिया और डीएपी की आयातित कीमत काफी कम रह गई है। आयातित मूल्य का जो आधार उस समय रखा गया था कीमतें उससे काफी कम हैं। उर्वरक विभाग ने 16 मार्च को यह दरें तय की थी। इसके तहत नाइट्रोजन के लिए सब्सिडी दर 23।22 रुपये किलो, फास्फोरस के लिए 26.27 रुपये किलो, पोटाश के लिए 24.48 रुपये किलो और सल्फर के लिए 1.78 रुपये किलो थी। इस आधार पर डीएपी उत्पादकों के लिए केंद्र 16,268 रुपये प्रति टन और एमओपी के लिए 14,692 रुपये प्रति टन की सब्सिडी दे रहा है। सब्सिडी तय करते समय सरकार ने आयातित उर्वरकों की कीमत में यूरिया के लिए 310 डॉलर प्रति टन, डीएपी के लिए 500 डॉलर प्रति टन, एमओपी के लिए 370 डॉलर प्रति टन और सल्फर के लिए 190 डॉलर प्रति टन की कीमत को आधार बनाया था। यह कीमत आंक ने के लिए रुपया-डॉलर विनिमय दर 46 रुपये प्रति डॉलर रखी गई थी। इस समय यूरिया की आयातित कीमत 260 से 265 डॉलर प्रति टन, डीएपी की 465 से 470 डॉलर प्रति टन और सल्फर की आयातित कीमत 165 डॉलर प्रति टन रह गई है। उक्त अधिकारी का कहना है कि इसके चलते इन उर्वरकों पर सब्सिडी घटाने या कीमत में कटौती का पुख्ता आधार बनता है। लेकिन एनबीएस दरं पूर साल 2010-11 के लिए हैं, ऐसे में स्थिति बहुत साफ नहीं है। (बिज़नस भास्कर)

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