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29 अप्रैल 2010

रबर की बढ़ी कीमतें बनीं मुसीबत

कोच्चि April 28, 2010
प्राकृतिक रबर पर आधारित इकाइयों को इस समय गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है।
खासकर छोटी और मझोली इकाइयों को संकट ज्यादा है, क्योंकि प्राकृतिक रबर की कीमतों में जोरदार तेजी आई है। पंजाब और केरल जैसे प्रमुख राज्यों के उद्योग जगत के सूत्रों के अनुमान के मुताबिक करीब 200-300 छोटी इकाइयां पहले ही बंद हो चुकी हैं और करीब 500 इकाइयां बंदी के कगार पर हैं।
महज 4 महीनों के दौरान प्राकृतिक रबर की कीमतों में 25 प्रतिशत तेजी के बाद गैर टायर क्षेत्र में काम करने वाली 5000 इकाइयों को गंभीर आथक संकट का सामना करना पड़ रहा है। आरएसएस-4 ग्रेड के रबर की कीमतें पिछले सप्ताह 170 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गईं, जो इस साल के पहले सप्ताह में 138 रुपये किलो थीं।
इस समय प्राकृतिक रबर का बाजार बहुत तेज है और छोटी इकाइयों के सामने अब उत्पादन रोक देने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। मझोली और छोटी इकाइयां करीब 3500 विभिन्न उत्पाद बनाती हैं और इसकी आपूर्ति बड़ी कंपनियों और रेलवे जैसे सार्वजनिक क्षेत्र को माल की आपूर्ति करती हैं। वे पहले से हो चुके सौदों की दरों के मुताबिक माल की आपूर्ति नहीं कर पा रही हैं। सिर्फ रेल विभाग ही 2000 इकाइयों से विभिन्न उत्पादों की खरीदारी करता है।
कोट्टायम के एक एसएसआई विनिर्माता ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि रबर के साथ अन्य कच्चे माल जैसे केमिकल्स, धातुओं और रंगों की कीमतों में पिछले 6 से 9 महीने के दौरान 25-35 प्रतिशत की तेजी आई है। उन्होंने कहा- हम रोज बढ़ रही कीमतों के मुताबिक अपने उत्पादों के दाम नहीं बढ़ा सकते, क्योंकि बड़ी इकाइयों से कड़ी प्रतिस्पर्धा है।
छोटी इकाइयां मुख्य रूप से मॉडयूल्ड आयटम, डिप्ड गुड्स, शीटिंग्स, विभिन्न रबर गास्केट, फुट वियर, केबल, रबर बैंड सहित तमाम उत्पाद बनाती हैं। देश में कुल रबर उत्पादन में केरल की हिस्सेदारी 92 प्रतिशत है और इसमें से 60 प्रतिशत से ज्यादा रबर उत्तर भारत, खासकर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में भेजा जाता है। इन इकाइयों के असंगठित होने के चलते उत्पादन के वास्तविक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
कुछ विनिर्माताओं के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक छोटी इकाइयों में करीब 5,00,000 श्रमिक काम करते हैं। इन इकाइयों के बंद होने से बेरोजगारी का संकट भी है। कोचीन रबर मर्चेंट्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एन राधाकृष्णन ने कहा कि रबर के कुल उत्पादन का 15-20 प्रतिशत उपभोग छोटी इकाइयों में होता है और प्राकृतिक रबर की कीमतों में तेज बढ़ोतरी की वजह से इन इकाइयों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कीमतें 170 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाने के चलते पिछले दो महीने से उत्तर भारत से रबर की मांग भी कम हुई है। रबर का बाजार अब 200 रुपये प्रति किलो की ओर बढ़ रहा है।
अन ब्रांडेड फुट वियर बनाने वाले केजी पॉल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि ब्रांडेड माल की कीमतें कच्चे माल की कीमतों के साथ बढ़ सकती हैं। हम लोग कीमतें एक सीमा तक ही बढ़ा सकते हैं, क्योंकि चप्पल पहनने वाले हमारे समाज के लोग गरीब तबके से आते हैं। अगर एक निश्चित सीमा के आगे हम कीमतें बढ़ाते हैं तो खरीदारों का एक बड़ा तबका ब्रांडेड माल की ओर चला जाएगा।
छोटी और मझोली विनिर्माण इकाइयां बंदी के कगार पर
करीब 200-300 रबर आधारित छोटी इकाइयां बंद, 500 बंदी के कगार परमहज 4 महीने में रबर की कीमतें 25 प्रतिशत बढ़ींगैर टायर क्षेत्र की 5000 इकाइयां आर्थिक संकट मेंबड़ी उत्पादक इकाइयों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहे हैं छोटे व मझोले विनिर्माता (बीएस हिंदी)

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