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19 अप्रैल 2010

गेहूं-चावल से राहत, दाल-चीनी से आहत

नए वित्त वर्ष के पहले माह में गेहूं एवं चावल दोनों की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन दाल एवं चीनी अब भी महंगाई की आग को भड़का रही है।
राजीव कुमार / April 19, 2010
चालू वित्त वर्ष की शुरुआत चावल एवं गेहूं की कीमतों के लिए राहत लेकर आई है। दोनों के भाव में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले गिरावट दर्ज की गई है।
दाल के भाव में जरूर उम्मीद के विपरीत अच्छी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सरसों तेल कमोबेश पिछले साल के स्तर पर कायम है। चीनी के दाम भी गत अप्रैल के मुकाबले लगभग 700 रुपये प्रति क्विंटल अधिक है।
कारोबारियों के मुताबिक खरीफ के दौरान चावल के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 140 लाख टन से अधिक की कमी के बाद इसकी कीमतों में फरवरी-मार्च के बाद बढ़ोतरी की आशंका थी। चावल के उत्पादन में कमी को देखते हुए गेहूं के दाम भी बढ़ने लगे थे।
साधारण गेहूं के दाम दिसंबर-जनवरी में 1450 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक हो गए थे। लेकिन रबी के दौरान गेहूं के रकबे में मामूली इजाफा दर्ज किया गया और बेहतर उत्पादन की उम्मीद में गेहूं के भाव टूटने लगे। अब सभी राज्यों में गेहूं की नई आवक शुरू हो चुकी है। कीमतों के लिहाज से गेहूं की स्थिति कमजोर दिख रही है।
दिल्ली के थोक अनाज बाजार में गेहूं दड़ा के भाव 1130-1140 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर है। यानी कि गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (1100 रुपये प्रति क्विंटल) से सिर्फ 30 रुपये अधिक। कारोबारी बताते हैं कि एक क्विंटल गेहूं को लाने में ही 40 रुपये का खर्च बैठता है। गेहूं एमपी सर्वोत्तम के भाव पिछले 10 दिनों में 300-400 रुपये प्रति क्विंटल तक टूट चुके हैं।
2500 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाला एमपी गेहूं 2100-2200 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर है। कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल के तीसरे सप्ताह में गेहूं की औसत कीमत 1156 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि पिछले साल इस अवधि में यह कीमत 1165 रुपये प्रति क्विंटल थी।
हालांकि किसानों के मुताबिक इस साल गेहूं की पैदावार में 25 फीसदी तक की कमी है। इसलिए उनके उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले कमी आई है। इसके बावजूद विभिन्न प्रांतों की मंडियों में गेहूं दड़ा की कीमत 1130-930 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है।
चावल
कारोबारियों के मुताबिक गैर बासमती चावल एवं गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं होने का एक कारण यह भी है कि इन दोनों जिंसों के निर्यात पर प्रतिबंध है।
गेहूं के समर्थन से चावल के भाव में भी पिछले साल के अप्रैल माह के मुकाबले लगभग 3 फीसदी की कमी आई है। इस साल अप्रैल पहले सप्ताह के मुकाबले चावल के भाव में 10 फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है।
उत्तर प्रदेश में मोटे चावल के भाव 1300-1500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि पिछले साल अप्रैल में ये भाव 1400-1525 रुपये प्रति क्विंटल थे। बासमती चावल की निर्यात मांग में गिरावट के कारण इसके भाव में भी 300-400 रुपये प्रति क्विंटल की कमी दर्ज की गई है।
कारोबारी कहते हैं कि मई तक गेहूं की नई आवक के समर्थन से चावल के भाव में तेजी की कोई संभावना नहीं है। मई माह तक मानसून की स्थिति भी स्पष्ट हो जाएगी और मानसून के बेहतर होने पर चावल के दाम स्थिर ही रहेंगे।
दाल
लेकिन पिछले साल के अप्रैल माह के मुकाबले दालों की कीमतों में भारी तेजी है। रबी के दौरान अरहर दाल की अच्छी फसल के बावजूद इसके भाव में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 15 रुपये प्रति किलोग्राम तक की तेजी है।
कारोबारियों की दलील है कि गर्मी में सब्जियों के दाम बढ़ जाने से दाल की खपत अधिक हो जाती है। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र के किसान अरहर की आपूर्ति कम मात्रा में कर रहे हैं। मूंग दाल के भाव में भी पिछले साल की तुलना में 30 फीसदी तक की तेजी है। अरहर एवं मूंग में तेजी के समर्थन अन्य प्रकार की दालों में भी लगातार मजबूती आ रही है।
चीनी
चीनी की कीमतों में पिछले गत दो महीनों में 14 रुपये प्रति किलोग्राम तक की गिरावट आई है, लेकिन पिछले साल अप्रैल माह के भाव से तुलना करने पर यह कीमत अब भी लगभग 7 रुपये प्रति किलोग्राम अधिक है।
हालांकि उत्तर प्रदेश में लगभग 52 लाख टन चीनी उत्पादन एवं लगातार हो रहे आयात को देखते हुए कारोबारी चीनी में अभी और नरमी की संभावना जाहिर कर रहे हैं। महाराष्ट्र के दो दर्जन से अधिक चीनी मिलों में अभी गन्ने की पेराई जारी है। कारोबारी बताते हैं कि मार्च से चीनी की आपूर्ति में कोई कमी नहीं है और कीमत में लगातार थोड़ी-थोड़ी गिरावट हो रही है।
खाद्य तेल
खाद्य तेल के भाव कमोबेश पिछले साल के स्तर पर कायम है। कच्चे एवं रिफाइंड पाम तेल के आयात में लगातार हो रही बढ़ोतरी से सरसों एवं सोयाबीन तेल के भाव में पिछले साल के मुकाबले कोई तेजी नहीं दर्ज की गई है।
हालांकि खरीफ के दौरान तिलहन उत्पादन में पिछले साल की तुलना में 14 लाख टन की गिरावट दर्ज की गई थी। लेकिन आयात के समर्थन से किसी भी खाद्य तेल के दाम में तेजी नहीं आई। सरसों तेल के औसत भाव इस साल की तरह वर्ष 2009 के अप्रैल माह में भी 55 रुपये प्रति किलोग्राम थे।
सरसों के भाव में भी कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। इसकी कीमतें 2100-2200 रुपये प्रति क्विंटल चल रही णहै। कारोबारियों के मुताबिक कच्चे पाम तेल एवं सोया तेल के आयात पर शुल्क नहीं लगने तक तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की कोई उम्मीद नहीं है। सरकार के वर्तमान रुख को देखते हुए कच्चे वनस्पति तेल पर आयात शुल्क लगने के भी कोई आसार नहीं हैं। (बीएस हिंदी)

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